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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *12 दिसंबर 2021* हरे कृष्ण ! आज 1022 भक्त हमारे साथ जपा टॉक में सम्मिलित हैं। हरे कृष्ण। हरि बोल। हमारे पास दो आईडी है। पद्ममली आपको जपा टॉक के अंत में बताएंगे। एक आईडी में 1000 भक्त जुड़े हैं और दूसरी आईडी में 22 भक्त जुड़े हैं। आपका स्वागत है। हम प्रसन्न हैं कि आप हमारे साथ हो। हमारे जब मैं यहां कह रहा हूं तो मैं और जप कर्ता भक्त हैं उन्हीं का उल्लेख नहीं होता है। आप हमारे साथ हो, मैं जोड़ना चाहूंगा कि आप भगवान के साथ हो। आप यहां हो तो मतलब आप भगवान के साथ हो। इस कॉन्फ्रेंस में सम्मिलित हो, आप कृष्ण से मिल रहे हो। आप भगवान के साथ हो। भगवान कभी अकेले नहीं होते। आप भगवान के भक्तों के, बस भगवान का नाम कृष्ण है। तो आप कृष्ण के साथ हो। ऐसे साथ के लिए आपका धन्यवाद है। हम अपना हर्ष भी व्यक्त कर रहे हैं। भगवान यहां पर हमें हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, अपने नाम के रूप में संघ देते हैं और दर्शन भी देते हैं। इस नाम उच्चारण का उद्देश्य भगवान का दर्शन भी करना है एक दिन। वह हमें 1 दिन दर्शन देंगे। कब होगा वह दिन। *प्रेमाञ्जनच्छुरितभक्तिविलोचनेन सन्तः सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति।* *यं श्यामसुन्दरमचिन्त्यगुणस्वरूपं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ।।* (ब्रम्हसंहिता 5.38) *अनुवाद :* जिनके नेत्रों में भगवत प्रेम रूपी अंजन लगा हुआ है ऐसे भक्त अपने भक्ति पूर्ण नेत्रों से अपने ह्रदय में सदैव उन श्याम सुंदर का दर्शन करते हैं जो अचिंत्य है तथा समस्त गुणों के स्वरूप है । ऐसे गोविंद जो आदि पुरुष है मैं उनका भजन करता हूं । विलोकयन्ति मतलब देखते हैं। भगवान के भक्त भगवान को जप करते समय भी देखते हैं। ऐसा है यह अफसर, यह जपा कॉन्फ्रेंस और जपा टॉक का यह अफसर है। अब गीता जयंती दूर नहीं है सिर्फ 2 दिन बाकी है। इन 2 दिनों में मोक्षदा एकादशी आएगी। एकादशी आ रही है। तो एकादशी के दिन, एकादशी के साथ श्रीकृष्ण भी आ रहे हैं और अर्जुन को साथ लेकर आएंगे। कृष्ण अर्जुन के सारथी बनेंगे पार्थ सारथी। अर्जुन उवाच सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थाप्य मेऽच्युत | यावदेतान्निरिक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् || २१ || कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे || २२ || (श्रीमद भगवत गीता यथारूप 1.21–22) अनुवाद अर्जुन ने कहा – हे अच्युत! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलें जिससे मैं यहाँ युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों कि इस महान परीक्षा में, जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ | वह आएंगे और अर्जुन की इच्छा और लगभग आदेश ही कहो। कृष्ण केवल चालक हैं और रथ के मालिक तो अर्जुन ही है। अर्जुन है रथी और कृष्ण है सारथी। आप समझते हो। हम इन शब्दों को समझ सकते हैं, रथी और सारथी – स रथी। रथ पर जो विराजमान है या जो रथ का स्वामी है उन्हे रथी कहते हैं और दूसरा शब्द है और दूसरा नाम भी है सारथी। सारथी मतलब रथी के साथ – स रथी। अर्जुन रथी है और इस रथी के साथ हैं सारथी श्रीकृष्ण। तो कृष्ण का ऐसा पद है। वह रथ के चालक हैं। अर्जुन ने उनको आदेश भी दिया है। *सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थाप्य* दोनों सेनाएं वहां पर पहुंची है। धृतराष्ट्र उवाच धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः | मामकाः पाण्डवाश्र्चैव किमकुर्वत सञ्जय || १ || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 1.1) अनुवाद: धृतराष्ट्र ने कहा — हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ? धृतराष्ट्र कहे है *मामकाः* मेरे पुत्रों की सेना और *पाण्डवाश्र्चैव* मेरे भ्राताश्री पांडु के पुत्रों की सेना भी वहां पहुंची हैं। दो सेनाएं है पांडवों की और कौरवों की सेनाएं वहां पर पहुंची है। अर्जुन को जैसे सारथी श्रीकृष्ण रण आंगन में ले आए है। रण मतलब युद्ध और आंगन जहां युद्ध खेलेंगे। यह एक प्रकार का खेल ही है। जैसे कुश्ती के जंगी मैदान में पहलवान कुश्ती खेलते हैं। यह भी एक प्रकार का खेल है। युद्ध खेलेंगे, इस खेल के मैदान में या युद्ध के मैदान में रण आंगन करेंगे। श्रीकृष्ण अर्जुन को ले आए। ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ | माधवः पाण्डवश्र्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः || १४ || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 1.14) अनुवाद: दूसरी ओर से श्र्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये | यह सब महाभारत है। तो भगवत गीता महाभारत का एक अंग है। मैं कहने जा रहा था छोटा अंग है। आकार की दृष्टि से छोटा है क्योंकि महाभारत में 100000 श्लोक हैं। एक लाख श्लोक श्रील व्यासदेव लिखे है। उन 100000 श्लोकों में भगवत गीता के केवल 700 श्लोक ही है। जो बड़ा हिस्सा नहीं है। महाभारत के जो अट्ठारह पर्व है। यह सब कब कहेंगे और थोड़े समय में कैसे कहेंगे। 18 पर्वों में से एक है भीष्म पर्व और भीष्म पर्व के 18 अध्याय भगवद गीता के है। महाभारत इतिहास है। रामायण महाभारत को इतिहास कहा है। वैसे कुछ इतिहास पुराणों में भी है। इतिहास जब कहते हैं तो यह दो बड़े प्रसिद्ध है। रामायण की रचना वाल्मीकि मुनि ने की और महाभारत स्वयं श्रील व्यासदेव भगवान के शक्त्यावेश अवतार ने यह इतिहास लिखा। इति हास, इतिहास 3 शब्दों से बना है – इति, ह और आस। इति मतलब ऐसा हुआ और वैसा हुआ। शास्त्रों में नेति नेति नेति होता है। फिर इति, इति, इति होता है। ऐसा नहीं है ऐसा नहीं है ऐसा नहीं है मतलब ना इति ना इति ना इति। फिर इति इति इति, ऐसा हुआ या ऐसी घटनाएं घटी, तो इति ही हास। तो महाभारत इतिहास है। सचमुच में घटी हुई घटनाओं का वर्णन है इसीलिए इसको इतिहास कहते हैं। यह काल्पनिक नहीं है यह सच है इतिहास है।

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