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हरे कृष्ण जप चर्चा पंढरपुर धाम 10 जून 2021 848 स्थानो से भक्त जप कर रहे हैं । ( एक भक्त को संबोधित करते हुए परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज ) हे राम नाथ ! तुम्हारा भी लोकेशन । ब्रह्म देश (लैंड मार्क), ब्रह्मा का नाम वैसे, ब्रह्म का देश हुआ करता था 'ब्रह्म देश' । अभी और कुछ नाम रखा है । जैसे भारत का नाम इंडिया हो गया । हरि हरि !! पाकिस्तान तो कोई खली स्थान , या था एक समय हिंदुस्तान । भागवत में जैसे हम कल पढ़ रहे थे देवताओं ने कहा इस पृथ्वी को ही भारत कहा । जो इंडिया बचा हुआ है उसको भारत कह रहे हैं । भारत माता की ( जय ! ) । भारत भूमि का महिमा का गान स्वयं देवता ही कर चुके हैं । एतदेव हि देवा गायन्ति अहो अमीषां किमकारि शोभनं प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरिः । यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे मुकुन्दसेवौपयिकं स्पृहा हि नः ॥ ( श्रीमद् भगवतम् 5.19.21 ) अनुवाद:- चूँकि आत्मसाक्षात्कार के लिए मनुष्य - जीवन ही परम पद है , अतः स्वर्ग के सभी देवता इस प्रकार कहते हैं - इन मनुष्यों के लिए भारतवर्ष में जन्म लेना कितना आश्चर्यजनक है । इन्होंने भूतकाल में अवश्य ही कोई तप किया होगा अथवा श्रीभगवान् स्वयं इन पर प्रसन्न हुए होंगे । अन्यथा वे इस प्रकार से भक्ति में संलग्न क्योंकर होते ? हम देवतागण भक्ति करने के लिए भारतवर्ष में मनुष्य जन्म धारण करने की मात्र लालसा कर सकते हैं , किन्तु ये मनुष्य पहले से भक्ति में लगे हुए हैं । देवों ने गान किया ,भारत भूमि के महिमा का गान किया । जिस गान को स्वयं सुकदेव गोस्वामी महाराज सुना ए राजा परीक्षित महाराज को । राजा परीक्षित ही जो भारत बंसी , इसलिए उनको भरत या इसलिए भी उनको इस देश का या इस पृथ्वी का नाम भारत हुआ । तो भागवत् में भारत भूमि की गौरव गाथा गाई है । देवता गा रहे हैं । सुकदेव गोस्वामी उनको सुनाएं । और फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ... भारत-भूमिते हैल मनुष्य जन्म यार । जन्म सार्थक करि' कर पर-उपकार ॥ ( चैतन्य चरितामृत आदि-लीला 9.41 ) अनुवाद:- जिसने भारतभूमि (भारतवर्ष ) में मनुष्य जन्म लिया है, उसे अपना जीवन सफल बनाना चाहिए और अन्य सारे लोगों के लाभ के लिए कार्य करना चाहिए। ऐसे चैतन्य महाप्रभु ने कहे ,भारत भूमि के उल्लेख किया । यही तो बात है "करि' कर पर-उपकार" । भारत भूमि के क्या वैशिष्ट्य है ? यहां के जन परोपकारी होते हैं , औरों को उपर करते हैं । हरि हरि !! अगर नहीं करते हैं तो वो नहीं रह गए तथाकथित भारतीय या हो गए इंडियन । फिर परोपकार नहीं करते । हरि हरि !! "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" एशी भी वाणी है । जननी और जन्मभूमि या जब कहा जा रहा है "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है ऐसा देवताओं ने कहा भी । वह जन्मभूमि भारत भूमि है । भारत भूमि हे तो फीर "स्वर्गादपि गरीयसी" । अमेरिका भूमि अभी अमेरिकन भूमि बन गई । या कई सारी भूमि अब पाकिस्तान इस स्थान उसस्थान बन गए । उन संस्थान की जन्मभूमि यों को "स्वर्गादपि गरीयसी" इंसानो .. उनको नहीं कहा जा सकता । इस भारत भूमि को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ भूमि क्यों कहा है ? कोई अंतर तो होगा ? और वह है ..और भूमिया और स्थान भोग भूमिया है 'भोग भूमि' । स्वर्ग भोग भूमि है । और अमेरिका का क्या कहना ! लैंड ऑफ अपॉर्चुनिटी (अवसर की भूमि) भोगी भाग चलते हैं । भोग विलास चलते हैं । हो सकता है रसिया, चाइना, अनफॉर्चूनेटली (दूरदेव से) इंडिया भो है । तो वह स्थान भोग भूमि हो गई । तो फिर कुछ पॉकेट से ही रहेंगे जो हम भारत भूमि कह सकते हैं । आपने अपने घर ही एक तो भोग भूमि और दूसरा तपोभूमि तो भारत भूमि का यह विशेष वैशिष्ट्य है 'तपोभूमि' ,जहां तप होता है । जहां के जन तपस्या करते हैं । मुझे पहला आदेश भगवान ने ब्रह्मा को दिए प्रथम जीव जो प्रकट हुए , और ऐसा समय था कि बस एक भगवान और एक ही जीब ब्रह्मांड में थे । भगवान ने; भगवान कहे 'तप' 'तप' ब्रह्मा समझ गए ओ' 'तपस्या' तपस्या करनी चाहिए । और उन्होंने तपस्या की । और यह बन गए तपोभूमि । ऋषभ उवाच नार्य देहो देहभाजां नलोके कष्टान्कामानहते विड्भुजा ये । तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं शुद्धधेरास्माद्ब्रह्मसौख्य वनन्तम् ॥ ( श्रीमद् भगवतम् 5.5.1 ) अनुवाद:- भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा - हे पुत्रो , इस संसार समस्त देहधारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए ही दिन - रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कूकर - सूकर भी कर लेते हैं । मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का दिव्य पद प्राप्त करने लिए वह अपने को तपस्या में लगाये । ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है , तो उसे शाश्वत जीवन का आनन्द मिलता है , जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला है । भगवान ऋषभदेव पुत्रों को कहें पुत्रों , क्या करो ? "तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं शुद्धधेरास्माद्ब्रह्मसौख्य वनन्तम्" तपस्या करो तपस्या करो ! यह भारत भूमि तपोभूमि है । तपस्या करने से क्या होता है ? येन सत्त्वं शुद्धधे , फिर शुद्धिकरण होता है , दिमाग जो मेली हे ही , खतरनाक तो दिमाग , मन का प्रदूषण ... कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान्गुणः । कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् ॥ ( श्रीमद् भगवतम् 12.3.51 ) अनुवाद:- हे राजन् , यद्यपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है । कली के कई दोष यह हमारे मन में घुस जाते हैं । मनको कलुषित बनाते हैं । यह तप क्या करता है ? 'येन सत्त्वं शुद्धधे' शुद्धीकरण करता है । Ant 20.12 चेतो - दर्पण - मार्जन भव - महा - दावाग्नि - निर्वापणं श्रेयः कैरव - चन्द्रिका - वितरणं विद्या - वधू - जीवनम् । आनन्दाम्बुधि - वर्धन प्रति - पद पूर्णामृतास्वादन सर्वात्म - स्नपन पर विजयते श्री - कृष्ण - सङ्कीर्तनम् ॥ ( चैतन्य चरितामृत अन्त्य-लीला 20.12 ) अनुवाद:- भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम के संकीर्तन की परम विजय हो , जो हृदय रूपी दर्पण को स्वच्छ बना सकता है और भवसागर रूपी प्रज्वलित अग्नि के दुःखों का शमन कर सकता है । यह संकीर्तन उस वर्धमान चन्द्रमा के समान है , जो समस्त जीवों के लिए सौभाग्य रूपी श्वेत कमल का वितरण करता है । यह समस्त विद्या का जीवन है । कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन दिव्य जीवन के आनन्दमय सागर विस्तार करता है । यह सबों को शीतल और मनुष्य को प्रति पग पर पूर्ण अमृत का आस्वादन करने में समर्थ बनता है । और ऐसा होने पर ही "ब्रह्मसौख्य वनन्तम्" फिर उस तपस्वी को ऐसे भारतीयों को यह जो सुख मिलता है ! कितना सुख? "ब्रह्मसौख्य वनन्तम्" । ब्रह्म सुख या परम ब्रह्म सुख या कृष्णानंदी कहिए । यह जो ब्रह्म सुख इस शब्द को सुनने से ब्रह्मानंद यह माया बाद हुआ । और तपस्या करो और शुद्धीकरण करो । और फिर कृष्णानंद को प्राप्त करो । आप आनंद में हो ना तो चाहते हो हमारा स्वभाव ही है आनंदमय । हरि हरि !! "आनन्दमयोऽभ्यासात्" ( वेदांत सूत्र 1.1.12 ) भगवान के लिए कहा है । भगवान स्वयं ही आनंदमय मूर्ति है । हम उनके अंश है तो हम भी आनंदमय स्वभाव से हैं । यह आनंद में स्थिति "ब्रह्मसौख्य वनन्तम्" यह संसार का सुख आता है तो फिर खत्म हो गया । आता है जाता है । सुख का ऋतु , दुख ऋतु यह चलता रहता है किंतु ऐसा भविष्य भी हमारा प्रतीक्षा कर रहा है कि हम, सुख क्या होता है ? उसको सुख नहीं कहा गया है उसको आनंद कहा गया है । सुख का परिणाम दुख में परिणत होता है । यह नोट करो । कब सिखों गे समझोगे ? आनंद का कोई प्रतिक्रिया नहीं है । आनंद की प्रतिक्रियाएं और आनंद है । क्रियाएं, प्रतिक्रियाएं । तो सुख की प्रतिक्रिया हे दुख । लेकिन आनंद की प्रतिक्रिया है तो आनंद ही है । तो यह होता है तपस्या करने से । यह जप करना भी तप है । *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥* यह भी तप है । भगवान गीता में कहे हैं शरीर से तप होता है । फिर वाचा से होता है या फिर वाणी से होता है । "कायेन मनसा वाचा" मन से होता है । तो यह भारत भूमि तपोभूमि है । और स्थान सब भोग भूमियां है । तो इस भारत भूमि को हमें और समझना है । हरि हरि !! और भगवान ... परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ( भगवत् गीता 4.8 ) अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ । जो कहे, मैं प्रकट होता हो तो; भगवान के प्राकट्य इस पृथ्वी पर ही होता है या भारत भूमि पर होता है । ज्यादातर मेरा कहना है कि भारत पर ही होता है । फिर ... प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम । विहितवहित्रचरित्रम खेदम । केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे ॥ ( दशावतार स्तोत्र – श्री जयदेव गोस्वामी ) मत्स्य अवतार तो सागर में या तो कछुआ भारत भूमि में प्रकट नहीं हुए । 10 अवतारों से 2 अवतार जलचर रहे । जल में विचरण किया । 2 अवतार तो वनचर रहे । 1 नृसिंह 2 बन में रहते हैं ना नृसिंह और वराह यह भी वनचर ही होते हैं । कृष्ण प्रकट होते हैं तो वह वृंदावन में प्रकट होते हैं । तो भगवान इंडिया में क्यों प्रकट होते हैं ? यानी पृथ्वी पर होते हैं ? तो भगवान का अपने निजी स्थान इस पृथ्वी पर है । पृथ्वी से कुछ उनका संबंध है ! ऐसे स्थान भी फिर क्यों ना वह वृंदावन ही नहीं है । या अयोध्या धाम की भी है । मायापुर धाम की भी है । जगन्नाथ पुरी धाम की जय ! पंढरपुर धाम की जय ! द्वारका धाम की जय ! बद्रीका आश्रम धाम की जय ! यह जो धाम है यह भारत के वैशिष्ट्य है । विशेष स्थान है । यह अन्यत्र नहीं है । हरि हरि !! सारे यह जो पवित्र नदियां हैं ... गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।। ( स्नान मंत्र ) यह पवित्र नदियां है ,जॉर्डन रिवर ,मिडिल ईस्ट में इसको पवित्र मानते हैं । होता है । लेकिन खत्म हो गया और कोई इस पृथ्वी पर भारत के बाहर कोई पवित्र नदी तो है ही नहीं ! हरि हरि !! और फिर ... एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥ ( भगवत् गीता 4.2 ) अनुवाद:- इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु - परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई , अत : यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है । तो फिर भगवान भी प्रकट होते हैं । भगवान तो प्रकट होते ही हैं यहां भारत में और फिर संत महात्मा आचार्य ... आचार्य मां विजानीयान्नवमन्येत कर्हिचित् । न मर्त्यबुद्ध्यासूयेत सर्वदेवमयो गुरु ; ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 11.17.27 ) अनुवाद:- मनुष्य को चाहिए कि आचार्य को मेरा ही स्वरूप जाने और किसी भी प्रकार से उनका अनादर नहीं करे । उन्हें सामान्य पुरुष समझते हुए उनसे ईर्ष्या-द्वेष नहीं रखे क्योंकि वह समस्त देवताओं के प्रतिनिधि है । या मैं ही आचार्य के रूप में प्रकट होता हूं । आचार्य समकक्ष हैं । साक्षाद्धरित्वेन समस्त-शास्त्रैर् उक्तस्तथा भाव्यत एव सद्भिः । किंतु प्रभोर्-यः प्रिय एव तस्य वंदे गुरोः श्री चरणारविंदं ॥ 7 ॥ ( श्रीगुरुर्वाष्टकम ) अनुवाद:- समस्त शास्त्र स्वीकार करते हैं कि श्री गुरु में भगवान श्री हरि के समस्त गुण विद्यमान रहते हैं और महान संत भी उन्हें इसी रूप में स्वीकार करते हैं । किंतु वास्तव में वे भगवान को अत्यंत प्रिय है , ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वंदना करता हूँ । ऐसे आचार्य यही प्रकट होते रहेंगे । या कभी कबार बहुत ही कम समय आते है जैसे की 'जीसस क्राइस्ट' एक 'जीसस क्राइस्ट' या एक मोहम्मद पैगंबर । यहां एक वहां एक ऐसे ही । लेकिन इस भारत में या महाभारत 5000 वर्ष पूर्व का इतिहास खोल के मतलब कि यह महाभारत हम खोल कर देखेंगे तो पता चलेगा कि कितने सारे महानुभाव महात्मा ऋषि , मुनि असंख्य सिर्फ एक ही नहीं जैसे की जीसस जो भगवान के पुत्र थे । ठीक है यह बहुत बढ़िया है इसाई मसीहा भगवान के पुत्र हैं अच्छे पुत्र हैं इसीलिए फिर उनका उल्लेख हो रहा है लेकिन भारत भूमि में कितने अच्छे और सच्चे और यहां तक की बहुत अच्छे ठीक है तुला नहीं करनी चाहिए लेकिन कई सारे रामायण काल, फिर महाभारत काल, और सब समय ऐसे आचार्य प्रकट होते ही रहते हैं । या उनको भगवान भेजते ही रहते हैं इसी भारत भूमि में । उसमें कितने सारे महिमा भर जाता है ... भवव्दिधा भागवतास्तीर्थभूता: स्वयं विभो । तीर्थीकुर्वन्ति तीर्थानि स्वान्तस्थेन गदाभृता ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 1.13.10 ) अनुवाद:- हे प्रभु, आप जैसे भक्त,निश्चय ही, साक्षात पवित्र स्थान होते हैं। चूँकि आप भगवान् को अपने हृदय में धारण किए रहते हैं,अतएव आप समस्त स्थानों को तीर्थ स्थानों में परिणत कर देते हैं । और वे जहां भी जन्म लेते हैं या जहां वे रहते हैं उनके स्थान बन जाते हैं, तीर्थ स्थान बन जाते हैं । "तीर्थीकुर्वन्ति तीर्थानि" और इसी भारत भूमि में भगवत गीता प्राप्त हुए । “धृतराष्ट्र उवाच धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः । मामकाः पाण्डवाश्र्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥ ( भगवत् गीता 1.1 ) अनुवाद:- धृतराष्ट्र ने कहा — हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ? तो ऐसे स्थान भी कहा है ! धर्म क्षेत्र कहा है । जितने क्षेत्र आपको भारत में मिलेंगे धर्मक्षेत्र और ऐसे नहीं मिलेंगे आपको । हर एक कदम में इस भारत भूमि पर यानी पग-पग पर तीर्थक्षेत्र है । पवित्र स्थल , पवित्र नदियां , पवित्र महात्मा मिलेंगे , पवित्र ग्रंथ मिलेंगे । सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च । वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥ ( भगवत् गीता 15.15 ) अनुवाद:- मैं प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हूँ और मुझ से ही स्मृति, ज्ञान तथा विस्मृति होती है । मैं ही वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ । निस्सन्देह मैं वेदान्त का संकलनकर्ता तथा समस्त वेदों का जानने वाला हूँ । मुझे जानने के लिए , मैंने ही की हुई व्यवस्था है भगवान कह रहे हैं ! वह व्यवस्था है वेद । "अहं ऐव वेद्यः" वैद्य हे भगवान । मतलब जानने योग्य (वर्थनोइंग) । और ऐसे वैद्य भगवान को कैसे जाना जा सकता है ? वेदों से । इसीलिए शास्त्रों में कहां है भगवान कैसे हैं ? श्रुति गोचरः या शब्द गोचरः । गोचरः मतलब हम जान सकते हैं कैसे ? श्रुति से । श्रवण से या श्रुति शास्त्रों के अध्ययन से और स्मृति से । तो श्रुति और स्मृति दोनों शास्त्रों के मदद से हम भगवान को जान सकते हैं । तो ऐसे शास्त्र यही उपलब्ध कराएं । वैसे यह सर्वत्र उपलब्ध कराए जा सकते हैं । श्रेया प्रभुपाद ने वैसी व्यवस्था की है । गीता,भागवत् 18 पुराण, वेदांग,उपवेद,महाभारत मैं ही 1,00,000 श्लोक है । सारे पुराणों की श्लोकों की संख्या 4,00,000 है । उसमें फिर 18,000 मंत्र या श्लोक श्रीमद्भागवतम् के हैं । 24,000 श्लोक रामायण के हैं । फिर यह जो सारा वैदिक वांग्मय जो है या फिर इसकी वांग्मय मूर्ति भी है । यह भी यही उपलब्ध है । इसीलिए पुराने अच्छे समय में, बदल गया और आ गया कली आ धमका । और अपना पराया शुरू हो गया । एक समय तो सारा संसार के लोग जो जहां पर भी है इस पृथ्वी पर तो आप कहां से हो ? , आप कौन हो ? मैं भारतीय हूं । फिर जावा सुमात्रा है या इंडोनेशिया है यहां वहां या फिर एक समय प्राचीन भारतीय संस्कृति पूरी पृथ्वी पर थी । इसके कई सारे सबूत हैं । हरि हरि !! तो मैं भारतीय हूं । एक समय सभी कहते थे लेकिन कली आ गया और वाद विवाद शुरू हुआ तू-मैं, तु-मैं , अहं त्वम यह द्वंद आ गया और उसी के साथ सारे संसार के विभाजन हुए । और उसी के साथ सारा संसार भी वंचित हो गया । जो है भारतीयता ! इससे वे वंचित हुए । हरि हरि !! तो इस भारत भूमि का महिमा तो हे तो सास्वत हेतो अनंत । या श्रीला प्रभुपाद भी जब एक समय इंग्लैंड में थे पत्रकार परीछद् में पूछा गया स्वामी जी आप इंग्लैंड क्यों आए हो ? हमारे देश को ? उस समय कहे थे उसके उत्तर में ..कि मैं आपको भारतीयता देने आया हूं । मैं भारतीय संस्कृति बांटने आया हूं । यह सब अलग शब्द में श्रील प्रभुपाद कहे होंगे । सटीक उद्धरण मिलता नहीं है । लेकिन श्रील प्रभुपाद इस भाव से कह रहे थे । मैं आपके ऊपर कुछ उपकार करने आया हूं । इस वक्त में लेने नहीं आया हूं, भारत के लोग जब भी जाते हैं विदेश कुछ मांगने के लिए जाते हैं । हमको यह दे दो वह दे दो ! लेकिन मैं मांगने नहीं आया हूं मैं देने आया हूं । क्या दूंगा ? वैसे में भारतवर्ष का जो धन है वह धन आपको दे दूंगा ! देना चाहता हूं । यह भारतीय संस्कृति इस देश की संपत्ति है । भारत के जो गीता,भागवत् शास्त्र है यह हमारी संपत्ति है । और फिर क्या कहना यह जो भगवान का जो नाम है यह तो हीरे मोती संसारी हीरे मोती नहीं, आध्यात्मिक जगत की हीरे मोती ऐसा मूल्यवान है यह .. हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ यह सारी भारतीयता, यह सारी भारत की संपत्ति का में वितरण करने आया हूं । इसको मैं होम डिलीवरी देने आया हूं । इसके बदले में मैं कुछ नहीं चाहता हूं । कृपया इसको स्वीकार कीजिए । तो श्रील प्रभुपाद जो भी कहे उन पत्रकारों को वें अपने शब्दों में । वैसे देवताओं ने भारत भूमि का गान किया और श्रील प्रभुपाद अपने साक्षात्कारो के साथ भारत भूमि का वैभव गान भी कर रहे थे । भारत की असली संपत्ति की पहचान कर रहे थे । और मैं इसको वितरण करने आया हूं ऐसा उन्होंने कहा । तुम लोग भी आए और श्रील प्रभुपाद ने आगे कहा अपने भारत को गुलाम बनाया । और आप सभी ने हमारे भारत को शोषण किया । और जिस चीज को अपने मूल्यवान समझा उसको तो आप ने लूट लिया । कोहिनूर हीरा समेत । वह भी आपने लंदन म्यूजियम में रखा है सभी जिसे देख सकते हैं । और कई सारी चीजे । लेकिन वैसे आप लोग जाकर वायसरॉय (राज प्रतिनिधि) या गवर्नर (राज्यपाल) जो रहते हैं , भारत के असली संपत्ति को नहीं पहचाने । वह भारत रत्न श्रील प्रभुपाद । श्रील प्रभुपाद की (जय) । भारत रत्न श्रील प्रभुपाद । वाकी तो तथाकथित जो भारत रत्न है वह कोयले ही है । वह रत्न नहीं है वह कोयला है । कोयले का क्या वैशिष्ट्य है ? जितना घिशोगे क्या होगा ? और काला ! तो काले पन की चमक धमक और प्रकट होगी । और घिशो क्या मिलेगा ? और ज्यादा काला । एक प्रकार से यह काले लोग या इनके धंधे भी काले विशेषकर उनके भाग काले । हरि हरि !! यह अंधे और अनाड़ी या फिर कह सकते हैं जो भारत के महिमा का, भारत के असली संपत्ति को नहीं पहचाने, नहीं देखे तो अंधे ही तो हो गए । अंदर के विचार भी नीच विचार । हरि हरि !! उसमें से कुछ होंगे । कुछ रत्न सम डिग्री । लेकिन रत्न कहना है भारत रत्न तो श्रील प्रभुपाद थे या श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती रत्न ऐसे सब । यह महात्मा भारत रत्न होते हैं । फिर वो माधवाचार्य,रामानुचार्य,विष्णु स्वामी इत्यादि इत्यादि । हमारे जो पूर्वज रहे । भारत के जनता के पूर्व आचार्य । हरि हरि !! या पितामह भीष्म, और बहुत सारे नाम । तो वे रचना रहे । तो श्रील प्रभुपाद कह रहे थे आप तो पहचाने नहीं देश को, हमारे देश के असली संपत्ति को । जिस संपत्ति को अपने पीछे छोड़ा मैं उस संपत्ति को लेकर आया हूं । होम डिलीवरी देने आया हूं । कृपया इसको ग्रहण कीजिए । तो श्रील प्रभुपाद , भारत भूमि जो इंडिया लिमिटेड नक्शा बन गया इस भारत भूमि का विस्तार श्रील प्रभुपाद करने का उनका एक सफल प्रयास उनका रहा । और प्रयास जारी ही है । एक सभा में हमारे शिवराम स्वामी महाराज कह रहे थे ! उन्होंने कहा कि ऐसा उनका अनुभव रहा और मेरा भी रहा ( परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज कह रहे हैं ) उदाहरण दे रहा हूं । उन्होंने कहा जो इस्कॉन के मंदिर है इस फोन के विभिन्न आए समुदाय है, इस्कॉन के अनुयाई जहां-जहां यह कृष्ण भावना मृत होने का अभ्यास कर रहे हैं, साधना कर रहे हैं फिर वह स्थान कोई घर ही क्यों ना हो । या कोई इस्कॉन टेंपल भी ना हो , न्यू वृंदावन, न्यू मायापुर , न्यू जगन्नाथ पुरी ऐसे बड़े बड़े प्रोजेक्ट भी, 1000 एकड़ जमीन 500 एकड़ जमीन कई सारे स्थानों पर श्रील प्रभुपाद ने स्थापना की फिर गौशाला भी वहां हुई और जो गौ भक्षक से उनको गौ रक्षक बनाएं । और वहां पर गुरुकुल विद्यालय स्थापित हुए । कहां पर ग्रंथों का गीता भागवत् का अध्ययन होने लगा और गीता भागवत का वितरण होने लगा । और वहां पर परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तनम , हरि नाम का संकीर्तन केबल मंदिर में या घर में ही नहीं , भक्ति जाने लगे जा रहे हैं हरे कृष्ण लोग - हरे कृष्ण लोग नाम ही हुआ फिर हरे कृष्ण कीर्तन , मृदंग करताल के साथ कीर्तन करने वाले लोगों को कहने लगे हरे कृष्ण लोग वह है । तो इस प्रकार से श्रील प्रभुपाद ने जगन्नाथ रथ यात्रा प्रारंभ किए सैन फ्रांसिस्को में । गोल्डन गेट नेशनल पार्क में । वह धीरे-धीरे मैनहैटन ,न्यू यॉर्क मैं रथ यात्रा, लंदन में रथ यात्रा होती रही । तो वह अमेरिका नहीं रहा, लंदन नहीं रहा जहां जगन्नाथ रथ यात्रा होती है वह जगन्नाथपुरी बन जाती है उस स्थान । इस प्रकार यह ( International Society for Krishna consciousness ) अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ के माध्यम से यह जो भारतीयता है । उसका प्रसारण उसका विस्तार और उसकी स्थापना इस पृथ्वी पर होना प्रारंभ हो चुका है । और चैतन्य महाप्रभु ने कहा है .. यह केवल अगले 9500 बरसों में होने वाला है । पृथिवीते आछे यत नगरादि - ग्राम । सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम ॥ ( चैतन्य भागवत अन्त्य - खण्ड 4.1.26 ) अनुवाद:- पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गाँव हैं , उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा । चैतन्य महाप्रभु ने पृथ्वी कहे एक समय जिसे भारत रहा सारे पृथ्वी पर वैसे ही पुनः वैसा आकार लेगा पृथ्वी पर फेलेगा । इस पृथ्वी के सभी नगरों में ग्रामों में क्या होगा ? "सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम" मेरे नाम का प्रचार होगा । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ सभी शहरों और ग्रामों में यह पूरे पृथ्वी पर तो उस समय केवल कीर्तन ही नहीं होने वाला है ! मंदिर भी होंगे, और बड़े-बड़े गौशालाऐं भी होंगे । तो फिर यात्राएं भी होगी उन स्थानों पर । प्रसाद वितरण होगा । यह पूर्ण फॉर लाइफ चलेगा । पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति । तदहं भक्तयुपहृतमश्र्नामि प्रयतात्मनः ॥ ( भगवत् गीता 9.26 ) अनुवाद:- यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ । और शास्त्र का अध्ययन ... एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम् । एको देवो देवकीपुत्र एव ॥ एको मन्त्रस्तस्य नामानि यानि। कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा ॥ (गीता महात्म्य 7) अनुवाद:- “आज के युग में लोग एक शास्त्र, एक ईश्र्वर, एक धर्म तथा एक वृति के लिए अत्यन्त उत्सुक हैं। अतएव सारे विश्र्व के लिए केवल एक शास्त्र भगवद्गीता हो। सारे विश्र्व के लिए एक इश्वर हो-देवकीपुत्र श्रीकृष्ण । एक मन्त्र, एक प्रार्थना हो- उनके नाम का कीर्तन, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे। केवल एक ही कार्य हो – भगवान् की सेवा ।” एक ही शास्त्र पर्याप्त है वह है गीता । साथ में कहे भगवतम् भी है । किताब हीं आधार है । तो हर नगर में हर ग्राम में यह गीता भागवत का वितरण भी होगा और इसका अध्ययन भी करेंगे लोग । तो ऐसा भविष्य स्वयं भगवान कहे हैं । और कहें भी है ! "परम विजयते श्री कृष्णा संकीर्तनं" । यह संकीर्तन आंदोलन विजय ही होगा । सर्वत्र फेलेगा । यतो धर्मः ततो जयः (या, यतो धर्मस्ततो जयः) ( महाभारत ) "जहाँ धर्म है वहाँ जय (जीत) है।" और सत्यमेव जयते , अंततोगत्वा सत्यमेवा जयते यानी सत्य की जीत होती है, सत्य की स्थापना होती है । तो यह सब होने वाला है भाइयों ,बहनों , मित्रों, शिष्यों , बॉयज एंड गर्ल्स । हरि हरि !! ठीक है मैं यहां रुकता हूं । ॥ हरे कृष्ण ॥

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