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31 जुलाई 2019 हरे कृष्ण! आज इस जप चर्चा में 656 प्रतिभागी हैं। मैं आप सभी जप कर्ताओं का स्वागत और अभिनंदन करता हूं। आप सबके लिए एक अनुस्मारक है कि अगले दो दिनों में कोई जपा सत्र नहीं होगा। जैसा कि आप जानते हैं कि मैं विदेश यात्रा पर जा रहा हूं। एक सुबह मैं दिल्ली से न्यूयॉर्क की फ्लाइट में रहूंगा। दूसरे दिन सुबह मैं न्यूयॉर्क से लॉस एंजिल्स जाऊंगा। फिर हम जप सत्र को जारी रखने के बारे में निश्चित रूप से सूचित करेंगे लेकिन आप सब जप करते रहिए। यद्यपि जैसा मैं कह रहा था कि मैं अगले दो दिन ज़ूम कॉन्फ्रेंस पर नहीं रहूंगा, तो आप में से कुछ भक्त कह रहे हैं कि वे मुझे काफी याद करेंगे, पर आपको अपना जप नहीं छोड़ना है, ना ही जप में कोई बदलाव लाना है। भले ही मैं आपके साथ शारीरिक या व्यक्तिगत रूप से जप न करूं परंतु आप निरतंर जप करते रहिए। जैसे आप मुझसे जप की प्रेरणा ले रहे हैं, वैसे ही आप अपने आस पास के लोगों से प्रेरणा ले सकते हैं। हो सकता है कि कोई आपके परिवार में से आपका प्रेरणा स्रोत बन जाए। आप किसी अन्य भक्त से भी अपनी प्रेरणा ले कर अपना जप जारी रख सकते हो। आप अपने परामर्शदाता के पास जा कर उनसे मदद मांग सकते हो या शिक्षा गुरुओं से प्रेरणा ले सकते हो, अन्य भक्तों से या वरिष्ठ भक्तों से मदद की याचना कर सकते हो। आप उनकी शरण में जाकर मदद की स्थिति में आप उनकी मदद मांग सकते हो। आप उनसे कह सकते हो कि हमें संभालिये और हमें मदद की आवश्यकता है, हमारी मदद कीजिए। आप उन्हें अपना हीरो बनाएं। वे आपको आध्यात्मिकता के साथ साथ सामान्य मार्गदर्शन भी दे सकते हैं। यह कहते हुए मुझे एक प्रसंग याद आ रहा है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण उद्धव जी से संवाद कर रहे हैं " आत्मीय गुरु आत्मानहा" किसी एक व्यक्ति के काफी गुरू हो सकते हैं जिनसे वह अलग अलग चीज़ें सीख सकता है, उसी प्रकार आप भी अन्य भक्तों के संग से कुछ सीख सकते हो। वे आपके आध्यात्मिक हीरो बन सकते हैं। जब मैं ज़ूम कॉन्फ्रेंस पर उपस्थित नहीं होऊंगा तब आप कुछ अन्य दिनों के लिए उनसे मदद ले सकते हैं। हरि हरि! कुछ दिनों पहले हम श्रीमद्भगवतम के 11 स्कन्ध के 7 अध्याय से चर्चा कर रहे थे। भगवान, उद्धव से कह रहे हैं कि हमें प्रयास करना चाहिए कि हम अपने गुरु स्वयं बन पाए। हमारे आध्यात्मिक जीवन में हमें स्वयं खुद की मदद करनी चाहिए। हमें अपने स्वयं के पैरों पर खड़ा होकर देखना होगा कि हमारे आस पास क्या चल रहा हैं और किस प्रकार से हम हमारी मदद कर सकते हैं। हो सकता है कि आपके दीक्षा गुरु व्यक्तिगत, शारीरिक रूप से आपके आस पास अर्थात साथ न हो,ऐसी स्थिति में आपको खुद के आध्यात्मिक जीवन की जिम्मेदारी स्वयं लेनी चाहिए एवं इसके साथ साथ अपने आस पास जो अन्य भक्त, दूसरे शिक्षा गुरु हैं,हमें उससे भी कुछ सीखने और समझने के लिए प्रयास करना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि हमें आध्यात्मिक जीवन की किसी भी अवस्था में अपनी कृष्ण भावनामृत को बनाए रखना है। हमें सदैव सचेत एवं सक्षम रहना चाहिए कि कैसी भी परिस्थिति आए हम उसके लिए अपनी उपयुक्त आध्यात्मिक प्रतिक्रिया दे पाए। हमें अपनी ज़िम्मेदारी खुद उठानी होगी। इस संवाद में भगवान श्री कृष्ण उद्धव जी से चर्चा कर रहे हैं । उस चर्चा में भगवान,उद्धव जी को महाराज यदु और एक अवधूत के विषय में बताते हैं कि किस प्रकार यदु महाराज का सामना एक ब्राह्मण अर्थात अवधूत दत्तात्रेय से हुआ था। भगवान उद्धव जी को अपने सवांद में यदु और दत्तात्रेय के बीच हुए सवांद के विषय में बताते हैं। यदु महाराज भगवान के परम भक्त थे। काफी उच्च कोटि के भक्त थे, यदु वंश का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है। इसी कारण उनको यादव कहा जाता है। उनके ही कुल में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिए भगवान यादव भी कहलाते हैं। इस प्रसंग में ऐसा संवाद है कि एक बार यदु महाराज एक अवधूत का दर्शन करते हैं जिनको कोई देहभान नही था। न तो उन्होंने ठीक से वस्त्र पहने हुए थे। वे लगभग निर्वस्त्र ही थे और इधर उधर घूम रहे थे परंतु यदु महाराज ने एक चीज़ देखी कि वह इस अवस्था में भी बहुत खुश थे। यदु महाराज ने सोचा कि अरे! ये क्या हो गया? मैं इतना बड़ा राजा हूँ,मेरे पास प्रचूर मात्रा में धन और सुविधाएं हैं, बहुत अधिक मंत्रीगण, इतनी बड़ी सेना, प्रजा है, हर एक चीज़ मेरे पास है लेकिन उस रूप में मुझे ख़ुशी या इतनी प्रसन्नता का अनुभव नहीं होता। वे अवधूत से पूछते हैं कि तुम्हारे पास ऐसा क्या है जिससे तुम इतने आनंद और प्रसन्नता में रहते हो। मैं राजा होने के बावजूद भी इतना प्रसन्न नही हूँ, कृपया मेरे साथ अपना राज साझा कीजिए। जैसा कि आप जानते हैं कि अवधूत उस व्यक्ति को कहते हैं जो आध्यात्मिक जीवन में काफी प्रगति कर चुका होता है। वह सामान्य मानदंडों का पालन नहीं करता है, वह उच्च स्तर से परे होता है। दत्तात्रेय जी वैसे ही अवधुत थे, वे यदु महाराज के पूछने पर बताते हैं कि मेरी प्रसन्नता का कारण यह है कि मैंने अपने जीवन में बहुत सारे गुरू बनाए हैं और मैं बहुत सारे लोगों से अलग अलग शिक्षाएं लेता हूं, मैं उनका अनुसरण करता हूं। उन्होंने बताया कि मेरे जीवन में 24 गुरु हैं और उन 24 लोगों से या 24 स्थानों से मैंने शिक्षाएं प्राप्त की हैं, यही मेरे आनंद और प्रसन्नता का कारण है। फिर दत्तात्रेय उन 24 गुरुओं की सूची बताते हैं कि पृथ्वी मेरी गुरु है, वायु से भी मैंने कुछ सीखा है, सूर्य मेरा गुरु है, चंद्रमा मेरा गुरु है। कबूतर का जोड़ा नर और मादा कबूतर मैंने उससे से भी बहुत कुछ सीखा है। मैंने वेश्या से भी बहुत कुछ सीखा है। समुन्दर भी मेरा गुरु है। इस प्रकार उनके पास एक लंबी सूची है। दत्तात्रेय मुनि बताते हैं कि मेरे जीवन में कुल 24 गुरु अर्थात शिक्षा गुरु हैं जिनसे मैंने अलग अलग शिक्षाएं प्राप्त की हैं। मैं उनके मार्गदर्शन का पालन कर रहा हूं। उनके निर्देश ही मेरी प्रसन्नता और आनंद का कारण है। दत्तात्रेय मुनि इस विषय में आगे बताते हैं कि ऐसा नही है कि मैंने दीक्षा प्राप्त की है। दीक्षा तो एक औपचारिकता मात्र है, ऐसा नहीं है कि मेरे ये गुरु माइक पर आकर प्रवचन करते हैं या मुझे पास बैठा कर मुझे शिक्षाएं देते हैं। वे जहाँ है, वही रहते हैं। जहां मैं हूं, वहीं रह कर उनके जीवन चरित्र से सीखता रहता हूं। उनके कार्यकलापों से अलग अलग शिक्षा लेता रहता हूँ जैसा मैंने कहा कि पृथ्वी से मैंने सीखा है, कबूतर के जोड़े से भी मैंने सीखा है। समुंदर से भी मैंने सीखा है एवं शिक्षाएं प्राप्त की हैं। अतः वे जहां है, वे वहीं पर है और मैंने उनके जीवन चरित्र से यहां पर रह कर शिक्षाएं प्राप्त की है। दत्तात्रेय मुनि जी कहते हैं कि इस तरह से मुझे इन 24 गुरुओं द्वारा प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसलिए मैंने पृथ्वी से सहन शीलता सीखी है। जब मैं पृथ्वी को देखता हूँ कि वह कितनी अधिक सहनशील है, कितना सहती है। इसलिए, सहनशील होने का यह सबक मैंने धरती माता से सीखा है। जैसा कि कुछ दिनों पहले, हमनें उन 5 अलग अलग जानवरों या जीवों के बारे में बात की थी और किस प्रकार उनकी इंद्रियां नियंत्रण में नहीं थी, परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई। जैसे हिरण की श्रवण इंद्री उसके संयम में नही थी जिससे उसने अपना जीवन खो दिया।इस वजह से उसकी मृत्यु हो गयी। इसी प्रकार से पतंगा की देखने की दृष्टि भी संयमित नही रहती। इस वजह से उनकी मृत्यु होती है। अवधूत ब्राह्मण दत्तात्रेय जी ने इन पांच जीवों या प्राणियों से भी शिक्षा प्राप्त की कि किस प्रकार उनकी इंद्रियां संयम में नही रहती, उस वजह से उनकी मृत्यु हो जाती है। दत्तात्रेय मुनि जी कहते हैं कि हमारी इन्द्रियां वश में या संयमित होनी चाहिए। मैं सतर्क रह कर पवित्र बन जाता हूँ। रोकथाम इलाज से बेहतर है। मैं उन चीजों को होने से रोकता हूं। मैंने ऐसे करके अलग अलग गुरुओ से काफी शिक्षाएं प्राप्त की हैं। इसके बारे में समझाते हुए दत्तात्रेय ऋषि कहते हैं कि मैंने दो प्रकार की शिक्षाएं प्राप्त की है, दो प्रकार के निर्देश , श्रेणियां हैं। एक को 'ईया' और दूसरे को 'उपादेय' कहते है। ईया का अर्थ है जिसे करना है। उपादेय जिसे नहीं करना है। उदाहरण रूप में हम देख सकते है कि हमें हिरण की तरह नहीं करना है और हमें पृथ्वी की तरह सहनशील बनना है। इस प्रकार मैंने कुछ करने के और कुछ न करने के सबक भी सीखे। अपने 24 गुरु की सूची में दत्तात्रेय जी एक अन्य उदाहरण देते है कि एक व्यक्ति लुहार अपने औजारों की धार को तेज बना रहा था और वह उसी में केंद्रित, एकाग्र था। उस समय उसकी दुकान के सामने से एक बहुत बड़ा जुलूस निकला या शादी की बारात निकली या ऐसा कह सकते हैं कि हरे कृष्ण वाले संकीर्तन करते हुए निकले या उनकी रथ यात्रा निकल रही थी लेकिन इतना शोर और आवाज होने पर भी वह अपने कार्यों में लगा रहा। कुछ समय बाद एक व्यक्ति ने आकर पूछा कि भैया! क्या आपने रथ यात्रा को इस मार्ग से निकलते हुए देखा है, क्या वह शादी का जलूस या कोई बारात या कुछ लोग यहां से निकले थे क्या वो निकल गए? क्या आपने ध्यान दिया था। तब उस व्यक्ति ने कहा नहीं! वह अपना काम कर रहा था और जुलूस पर कोई ध्यान नहीं दिया। मैंने कुछ नहीं देखा है, ये प्रसंग जब दत्तात्रेय जी ने देखा था उन्होंने ने भी मन बना लिया कि जब मैं हरे कृष्ण महामंत्र का जप करूंगा तो मैं इसी प्रकार से करूँगा। उन्होंने उस व्यक्ति को भी अपना गुरु बना लिया। वे कहते हैं कि इस व्यक्ति से मैंने शिक्षा प्राप्त कि ध्यान से किस प्रकार कार्य करते है या जब एक कार्य कर रहे हो उसमे कैसे अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। वह व्यक्ति आसपास की परिस्थितियों से पूरी तरह से अनजान था अर्थात वह बाहरी कार्यकलापों से पूरी तरह अज्ञान था। तब ऋषि ने भी मन बना लिया कि जब मैं हरे कृष्ण महामंत्र का जप करूंगा। तो इसी प्रकार जप करूंगा व इतने ध्यान से जप करूंगा कि मेरे आस पास या बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है, उसका मुझे कोई स्पर्श न हो। केवल मेरा ध्यान मेरी साधना में हो और उसी में ही लगा रहे । इन 24 गुरुओं में दत्तात्रेय जी लुहार के प्रसंग के बाद कपोत नर कबूतर मादा कबूतर के बारे में समझाते हुए कहते हैं कि ये भी मेरे गुरु हैं। उन्होनें कबूतर जोड़े की जीवन शैली का पूरा अवलोकन किया। वे एक गृहमेधी के जीवन का नेतृत्व कर रहे थे। नर और मादा कबूतर विवाह करते हैं, वे अंडे देते हैं, फिर उनके बच्चे होते हैं, बच्चों की जरूरत पूरी करने के लिए परिश्रम करने में व्यस्त थे। बच्चों की जरुरत पूरी करने के अतिरिक्त और किसी अन्य कार्य के लिए उनके पास समय नहीं होता। यहां तक जब जन्माष्टमी के लिए भी हरे कृष्ण वाले आमंत्रित करते है तो वे कहते है, नहीं! नही! हम बड़े बिजी चल रहे हैं। हमारे पास समय नही है । हम किसी और कार्य के लिए सोच भी नहीं सकते। हम बहुत व्यस्त हैं, हम अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। अभी हम नहीं आ सकते, हमें बाद में कॉल करिएगा। इस प्रकार उनका भी जीवन कबूतर के जोड़े के जीवन की तरह है। एक दिन एक शिकारी ने अपना जाल बिछा कर नर मादा कबूतर के बच्चों को पकड़ लिया। वे माता पिता अपने बच्चों से इतने आसक्त थे कि दोनों नर मादा ने सोचा कि हमें अपने बच्चों को बचाने के लिए जाना चाहिए। ये सोच कर वे भी उस जाल में फंस गए और कॄष्ण चेतना के लिए कोई भी समय दिए बिना अपना जीवन खो दिया। इस प्रसंग से दत्तात्रेय जी ने सोचा ये भी मेरे गुरु हैं।मैं इन्हें भी गुरुओं की सूची में रखूंगा। इनसे मुझे ये सीखना है कि मैं एक गृह मेधी की तरह अपना जीवन व्यतीत नहीं करूंगा। मैं उनके उदाहरण का पालन नहीं करूंगा, जो चीज़ें उन्होंने की, वे ऐसा नहीं करेंगे। इसलिए वे भी मेरे आध्यात्मिक गुरु हैं। 24 गुरू की सूची में आगे अवधूत बताते हैं कि मैंने वेश्या से भी शिक्षा प्राप्त की है। जनकपुर में एक वेश्या थी जोकि हर रात्रि की तरह एक रात्रि पूर्ण रूप से तैयार हो कर दरवाजे पर खड़े होकर अपने ग्राहक की प्रतीक्षा कर रही थी। कब कोई व्यक्ति आएगा और मुझे अपने साथ ले जाएगा । वह देखती थी कि वह व्यक्ति अमीर दिखता है, वह आएगा ही आएगा, ये बहुत सुंदर दिख रहा है, ये तो मेरा संग करने के लिए आ ही जाएगा और मुझे ले जाएगा।लेकिन उस रात किसी ने उसकी बुकिंग नहीं की।कोई व्यक्ति उनका संग करने या उनके साथ समय व्यतीत करने के लिए नहीं आया और फिर एकदम उनके मन में विचार आया कि ये मैं क्या कर रही हूं। मैं इस शरीर जो केवल हड्डी और मांस की थैली है, उसके लिए मैं इतना परिश्रम कर रही हूं। मैं इसके लिए किसी का शरीर भोग रही हूं, कोई मेरा शरीर भोग रहा है। मैं यह सब कार्य छोड़ना चाहती हूं और मैं यह सब छोड़कर पूर्ण पुरषोत्तम नारायण परमेश्वर सच्चिदानंद विग्रह की सेवा में लग जाऊंगी। जिस प्रकार लक्ष्मी नारायण की सेवा करती है, उसी तरह से मैं भी रमा की तरह सेवा करूँगी, मैं सेविका बनूंगी। मैं अब सांसारिक शरीरों की सेवा नहीं करूंगी, इस विचार से उन्होंने यह संकल्प लिया कि अब बस बहुत हो गया। इतने साल मैंने ये वेश्यागमन/ देहव्यापार किया अब मैं यह नहीं करूंगी। पूर्ण पुरषोत्तम नारायण की सेवा में लग जाऊंगी। जब ये पूरा प्रसंग वेश्या के बारे दत्तात्रेय जी ने सुना तो उन्होंने उन्हें भी अपना गुरु बना लिया। आप भी इन 24 गुरुओं का अध्ययन श्रीमद्भगवतम के 11वें स्कन्द के 7,8, 9 के तीन अध्यायों में कर सकते हैं। आप भी उनको गुरु बना सकते हैं। लेकिन सूची सीमित नहीं है। आपके पास अपने शिक्षा गुरुओं की सूची हो सकती है। कोई सूची में आंकड़ो की कमी नहीं है आपके दस, पंद्रह, बीस, पचास, सौ हो सकते हैं जिनसे आप अलग अलग शिक्षा प्राप्त कर सकते हो। मूलतया मुद्दा ये है हमें गुरुओं से सीख कर कृष्ण भावना भावित होना है और हमें पूरा जीवन अलग अलग स्थितियों में कृष्ण भावना भावित रहना है। हरे कृष्ण! आप कृष्ण भावना भावित बने रहिए। आप जप करते रहिए और दूसरों को भी जप करवाते रहिए। बोधयन्त: परस्परम् एक दूसरे को प्रेरित करते रहिए। आप भी किसी नवदीक्षित या अन्य के लिए आदर्श हो सकते हो, किसी के शिक्षा गुरु बन सकते हो। भक्ति के विषयों में ,आध्यात्मिक जीवन के विषयों में शिक्षा देना जारी रखिये और सदैव जप करते रहिए। अभी अभी हमें संदेश मिला है आज भक्तों की संख्या में वृद्वि हुई है।आज 700 अलग अलग स्थानों से प्रतिभागी जप कर रहे ह हैं। ये काफी अच्छा समाचार है, आप जप करते रहिए और किसी भी स्थिति में कृष्ण भावनाभावित बने रहिए। आप जप करते रहिए, दो दिन के बाद हम पुनः हमारी कॉउंसलिंग जारी रखेंगे। हरे कृष्ण!!!

English

31st July 2019 BECOME SELF SUFFICIENT. I welcome & congratulate all the chanters. There is a reminder that next two days there will be no chanting session as you know I will be travelling long distance travel. On one morning I will be travelling from Delhi to New York & then from New York to Los Angeles. Then we will notify you hopefully & certainly about continuing our japa session. But you all keep chanting. Some of you are saying, you will miss me but don't miss chanting, even though I will not be physically or personally chanting with you. As you are taking inspiration from me to chant, similarly you can take inspiration from others around you. May be your family members are good chanters, attentive chanters, regular chanters, offenseless chanters. Such person could be your family members, neighbours. There are so many many possibilities. You could take inspiration to chant continuously, devotionally, offenselessly. May be your counsellor & like that, take inspiration from your instructing spiritual masters. There are actually so many of them instructing you, giving 'siksha'. Giving you guidance. They are your friends, philosophers & guides. Turn to them, Help! Help! Help! You could take help from them, take inspiration from them. Make them your heroes. They can give you spiritual as well as general guidance. This is reminding me of Lord Krishna. He explains to Uddhava such thoughts that there can be so many gurus. That is a big topic from eleventh canto of Bhagavatam, chapter seven. Few days ago, we did quote Lord Krishna, as He was talking to Uddhava. He said, “Atmaiva guru atmanaha” Atma remains or guru is atma. We should become our own guru also. Yourself, you become your own guru, train yourself, become independently thoughtful & learn things from different sources & train yourself. Equip yourself. Keep practicing Krishna consciousness, as self-help. Stand on your own feet & help yourself how to take the help of those around you & become self-sufficient. Something like that otherwise you become responsible, take the responsibility. You become able, or capable to respond to different situations or circumstances. What different things can be done so that you become capable to handle all situations or stay Krishna conscious under all circumstances. So, we should be able to become responsible like that. Your initiating spiritual master may not be available physically, personally. But you take siksha from where you are stationed. Look around & maybe you learn lessons from different objects, different personalities. To get this message across to Uddhava, Lord Krishna has talked about the past history or life of king Yadu. How Yadu had an encounter with one brahmin. Yadu Maharaj & this Avadhut was Lord Dattatreya. He is having dialogue & Lord is making reference to Uddhava about it. Yadu maharaj is very very exalted personality himself. Yadu vansha or Yadu dynasty is named after him. That is why he is called Yadav. Krishna is called Yadav, because he comes from Yadav dynasty. So that Yadu Maharaj is now wondering looking at this Avadhut brahmana. He is improperly dressed, but he is so happy, so jolly. He is blessed out. Yadu is wondering, how? I mean I am king, I have so much facilities. This is at my disposal, that is at my disposal, whole treasury, ministers, this & that but as I don't experience joy or happiness as I could see you are in. What has made you happy like this? Share the secrets with me. Kindly let me know the cause of your happiness. There is no stress & strain that I could observe in your personality, but only happiness, joy. Please tell me what has made you happy. Then this Avadhut, you understand what an Avadhut is. He doesn't follow the normal norms. He is transcendental. So that was this Avadhut brahmana. Then this Avadhut explained, what has made me happy is because I had many gurus in my life. I take instructions from so many personalities, so many sources. They are source of my inspiration. I follow them. He has mentioned " I have 24 gurus" He has given list of 24 gurus. Prithvi (earth) is my guru, vayu (air) is my guru. The Surya (sun) is my Guru. Chandrma (moon) is my guru & list goes on & on. The couple of pigeons - he & she pigeon, I have learnt so much from that couple. Prostitute from Videha - I have learnt so much lesson from that prostitute. Like that he has 24 guru's instructing him & he has learnt so much from them. They are guiding principles & I am following their guidance. Their Instructions which have made me happy & joyful, in this material life of trials & tribulations. So not that I have undergone initiation ceremony & this guru's get on the mike come to me & they made me sit down & talk to me or instruct me & they are talking, that is also not the case. They are where they are, but I just consider teachings from their life. This lesson from Prithvi, I take another lesson from Samudra the ocean, another from that couple - he & she pigeon, another lesson from that prostitute. They never came to me. I am learning or understanding. I could learn from this party, that party. This is how I am being trained by these 24 gurus of mine. So, from earth I have learned tolerance. As I watch or look around, I could see how much mother earth is tolerant. So, this lesson of being tolerant I have learnt from mother earth. Few days ago, we talked about those five different animals or creatures & how one of their senses was not under control, as a result the deer lost life as there was no control over sense of hearing. Another animal the moth, lost life as there was no control over the eyesight. So that is also a lesson that Avadhut Brahmin Dattatreya is talking about that 'I should control my senses.' I should have control over my sense of hearing & I should control my senses. That makes me aware, be aware. You don't control your senses like these animals. So, I become 'sachet'- cautious. Prevention is better than cure. I prevent those things from happening, I am learning lessons from those different animals. That's a kind of lesson. Those become my gurus. There are two kinds of Instructions, two categories, it is explained here. One is called 'Eya' & other is called 'Upadeya'. 'Eya' means don't do this. Reject this, abondoan this. So, he has learned some things like don't do this & lessons like that of not doing certain things & 'Upadeya' is do like this, don't do this. Do like earth but don't do things like deer & loose own life. So 'eya' & 'Upadeya'. I learned some lessons to do this & other lessons of don't do that. There was a person who was making his tool sharp & he is busy doing that sharpening his tools & he was, focused, concentrated, absorbed in that. Then there went a procession with a lot of noise. After some time another person came & inquired whether he has seen the procession going from there. But he told he was doing his work & he don't know about that procession. So Dattatreya made him his guru & learned from him how work should be done with complete concentration. That person was totally unaware of the surrounding circumstances so I wanted to chant like he was sharpening his tool. Try to chant, like he was sharpening his tool. From each of these 24 gurus he has learned different lessons, he has taken different instructions. He observed lifestyle of pigeon couple. They were leading life of griha-medhi. They got married, they lay eggs & soon there were children & they were so busy, busy taking care of the needs of their children & life was going on like that. Even if they were invited by Hare Krishna devotees for Janmastami & they explained no no we are busy, we can't come. We are doing our duty. Call us later we can't come now. So, this used to be their attitude & then the shikari (hunter) comes & he captures the children & then the parents pigeon they are helpless. They are attracted, they wanted to help out their children so they also entered the net of this hunter & they were caught & all lost their life without giving any time for Krishna consciousness. So, this Avadhut Dattatreya says, okay this party is also my guru. This he pigeon, she pigeon, I made them my gurus. What do you learn? - I don't want to be like them. I made them my gurus. As saw their lifestyle, being busy busy, no time for Krishna consciousness. So, I made them my guru. I will not follow their example, I will not do the things they did, so they are also my spiritual masters. Ok time is passing. Then there was a prostitute of Videha or Janakpur. She was one night waiting for customers. O! He looks very rich person. Surely, he will come & then become my customer. I will enjoy him & he will enjoy me. But that night no one booked her or tried her or came in to enjoy her & she was waiting & waiting. She was going in the house again coming back looking for customers, but nothing was working out, but then she was very very fortunate that night as some thought prevail, what? Why should I keep doing this profession? I will stop this. No more of this prostitution business. Did this make me happy? No! This body is just a bag of stool & urine & this & that. I tried to enjoy that & they also tried to enjoy my body which is also similar bag of pus & urine & stool. I will stop this kind of business & she did stop & she came to this conclusion. She took sankalpa, determination. No more!! of this illicit sex or sex all together & from today onwards I am going to serve my Lord. Lord of my heart Narayan, like Laxmi serves Narayan. I will serve like Rama, Laxmi serves Narayan. I will become servant. I will serve Him. I will not serve the worldly bodies. I will serve the eternal form of Lord. She came to that conclusion, that determination & Avadhut said, okay you are my guru. He has observed this whole incidence of prostitute which she has shared & so he accepted her as his spiritual master & she was added in list of 24 gurus. So, like that, you could study this, eleventh canto chapter 7th, 8th & 9th describing the various gurus of this Avadhut. You could also make them as your gurus. But list is not limited. You could have your own list of gurus. Five, ten, twenty, fifty or a hundred gurus around you & take lessons, inspiration, instructions from them & stay Krishna conscious as this Avadhut Brahmana became Krishna conscious. He became happy, jolly, transcendental to worldly affairs. Okay. Hare Krishna! Devotees just informed me that we have crossed 700 participants today. Feel happy & keep chanting. Get others to chant with you. You could become their gurus. Take inspiration from them. You could take inspiration from them. 'Bodhayantaha parasparam' could happen. Mutually keep inspiring each other, as we go on chanting, practising Krishna conscious forever. So, keep chanting. After two days we will continue our conference. Hare Krishna!

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