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शीर्षक श्रीमद भगवत गीता श्लोक 10.12 जप चर्चा रेवाडंडा से 28 दिसंबर 2021 1055 प्रतिभागी भक्त | ओम नमो भगवते वासुदेवाय |अर्जुन का साक्षात्कार ऐसा ही रहा | उन्होंने तो दूसरे शब्दों में कहा है | यह बात अर्जुन ने 4 श्लोक में सुनी (श्रीमद्भगवद्गीता 10.8-11) और नवे अध्याय मे भी सुनी और यह सब सुनने के उपरांत अहम् सर्वस्व प्रभव एवं तेशाम नित्या सुने | BG 10.8 “अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते | इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः || ८ ||” अनुवाद मैं समस्त आध्यात्मिक तथा भौतिक जगतों का कारण हूँ, प्रत्येक वस्तु मुझ ही से उद्भूत है | जो बुद्धिमान यह भलीभाँति जानते हैं, वे मेरी प्रेमाभक्ति में लगते हैं तथा हृदय से पूरी तरह मेरी पूजा में तत्पर होते हैं | BG 10.9 “मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् | कथयन्तश्र्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च || ९ ||” अनुवाद मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परमसन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं | BG 10.10 “तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते || १० ||” अनुवाद जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं | तो फिर अर्जुन को साक्षात्कार हुआ | कृष्ण का साक्षात्कार हुआ, इसे भगवान का साक्षात्कार कहते है | कृष्ण के वचन सुन सुनकर अर्जुन को साक्षात्कार हुआ | वैसे पहले तो कई अध्यायों में कृष्ण अर्जुन को आत्मसाक्षात्कार ही करवाए थे | तुम आत्मा हो तुम आत्मा हो | BG 2.13 “देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा | तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति || १३ ||” अनुवाद जिस प्रकार शरीरधारी आत्मा इस (वर्तमान) शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था में और फिर वृद्धावस्था में निरन्तर अग्रसर होता रहता है, उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा दूसरे शरीर में चला जाता है | धीर व्यक्ति ऐसे परिवर्तन से मोह को प्राप्त नहीं होता | BG 2.22 “वांसासि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि | तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्य- न्यानि संयाति नवानि देहि || २२ ||” अनुवाद जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ के शरीरों को त्याग कर नवीन भौतिक शरीर धारण करता है | BG 2.20 “न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः | अजो नित्यः शाश्र्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे || २० ||” अनुवाद आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु | वह न तो कभी जन्मा है, न जन्म लेता है और न जन्म लेगा | वह अजन्मा, नित्य, शाश्र्वत तथा पुरातन है | शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता | BG 2.23 “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः | न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः || २३ ||” अनुवाद यह आत्मा न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खण्ड-खण्ड किया जा सकता है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न जल द्वारा भिगोया या वायु द्वारा सुखाया जा सकता है | तुम शरीर नहीं हो तुम आत्मा हो तुम अमर हो तुम शाश्वत हो | इस प्रकार के कई सारे वचनों से यह समझाएं थे और अर्जुन समझ रहे थे और यहां पर अब अर्जुन को आत्म साक्षात्कार हुआ | और अब कृष्ण साक्षात्कार हो रहा है | कृष्ण का साक्षात्कार कृष्ण कौन है? मैं कौन हूं? मैं समझ गया | अब आप कौन हो? इसको भी मैं समझ रहा हूँ, समझ चुका हुँ | इसीलिए अर्जुन कह रहे हैं | भगवत गीता दसवां अध्याय 10. 8-11 प्रतिदिन एक एक श्लोक हम सुन रहे थे तो उसके तुरंत बाद वाले श्लोक मे अर्जुन कहते हैं | BG 10.12-13 “अर्जुन उवाच परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् | पुरुषं शाश्र्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् || १२ || आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा | असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे || १३ ||” अनुवाद अर्जुन ने कहा- आप परम भगवान्, परमधाम, परमपवित्र, परमसत्य हैं | आप नित्य, दिव्य, आदि पुरुष, अजन्मा तथा महानतम हैं | नारद, असित, देवल तथा व्यास जैसे ऋषि आपके इस सत्य की पुष्टि करते हैं और अब आप स्वयं भी मुझसे प्रकट कह रहे हैं | आप परम ब्रह्म हो, हो सकता है हम भी ब्रह्म हो, या हम भी ब्रह्म हैं | अद्वैत वादी कहते रहते हैं अहम् ब्रह्मास्मि अहम् ब्रह्मास्मि | परंतु अहम परम ब्रह्मास्मि तो कोई नहीं कह सकता | परम ब्रह्म का अंश हम ब्रह्म है | किंतु हम परम ब्रह्म नहीं है, आप परम ब्रह्म हो| आप सभी के आश्रय हो, आप पवित्र हो, परम पवित्र हो, यदि पवित्र को जानना है, पवित्र के पास पहुंचना है तो हमको पवित्र होना होगा | पवित्र व्यक्ति ही पवित्र अर्थात भगवान के पास पहुंच सकता है| आप पवित्र हो | आप पुरुष हो | गोविंदम आदि पुरुषम ब्रह्मा जी ने कहा हैं | 5. 1 श्लोक १ ब्रम्हसंहिता ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः । अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वकारणकारणम् ॥१ ॥ अनुवाद - सच्चिदानन्दविग्रह श्रीगोविन्द कृष्ण ही परमेश्वर हैं वे अनादि , सबके आदि और समस्त कारणोंके कारण हैं ॥१ ॥ यह ब्रह्मा जी का साक्षात्कार है | अनादि आदि गोविंदम आप सभी के आदि हो | यहाँ अर्जुन भी कहने वाले हैं | आप शाश्वत हो | पहले कृष्ण कह चुके थे कि अर्जुन ऐसा समय नहीं था जब तुम नहीं थे, मैं नहीं था और ये राजा नहीं थे | अब भी हम सभी हैं और भविष्य में भी रहेंगे | शाश्वतता की बात हुई | वहां अर्जुन ने यह बातें द्वितीय अध्याय मे कृष्ण से सुनी थी | और अब उनको अनुभव हो रहा है कि हां आप शाश्वत हो | सृष्टि की स्थिति होती है और फिर प्रलय भी होता है | आपका प्रलय नहीं होता, आप सृष्टि के पहले भी रहते हो और सृष्टि के उपरांत भी रहते हो | आप शाश्वत हो| आप दिव्य हो, आप आदिदेव हो, देवों के भी देव हो, 33 कोटि देव हैं लेकिन आप आदि देव हो | वह ईश्वर है तो आप परम ईश्वर हो | 12.13.16 निम्नगाना यथा गङ्गा देवानामच्युतो यथा वैष्णवानां यथा शम्भुः पुराणानामिदं तथा ॥१६ जिस तह गंगा समुद्र की ओर बहने वाली समस्त नदियों में सबसे बड़ी है भगवान् अच्युत देवों में सर्वोच्च हैं और भगवान् शम्भु ( शिव ) वैष्णवों सबसे बड़े हैं , उसी तरह श्रीमद्भागवत समस्त पुराणों में सर्वोपरि है । सभी देवों में अच्युत श्री कृष्ण श्रेष्ठ है | वैष्णव में शंभू शंकर श्रेष्ठ हैं, सभी नदियों में गंगा श्रेष्ठ है, पुराणों में भागवतम श्रेष्ठ है और फिर साथ में भगवत गीता भी श्रेष्ठ है, गीता भागवत सभी ग्रंथों में श्रेष्ठ है, श्री कृष्ण सभी देवों में श्रेष्ठ है, सभी वैष्णव में शंकर भोलेनाथ श्रेष्ठ हैं| देवों के भी आप आदि हो, स्रोत हो | 2-3-4 अक्षर वाले शब्द तो एक-एक छोटे छोटे हैं जैसे अजम | मैं कितनी सारी बातें कह रहा हूँ ज्ञान की बातें कह रहा हूँ साक्षात्कार की बातें कह रहा हूँ अर्जुन यहा कह रहे हैं आदिदेव अजम आप अजम हो | अ अर्थात नहीं एवं ज अर्थात जन्म | आप अजन्मा हो | आपका जन्म नहीं होता | आपने चौथे अध्याय में संभवामि युगे युगे कहा है तो आप प्रकट होते हो फिर से आप अपने धाम में चले जाते हो | BG 15.6 “न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः | यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम || ६ ||” अनुवाद वह मेरा परम धाम न तो सूर्य या चन्द्र के द्वारा प्रकाशित होता है और न अग्नि या बिजली से । जो लोग वहाँ पहुँच जाते हैं, वे इस भौतिक जगत् में फिर से लौट कर नहीं आते | मेरा परमधाम है मेरा धाम है और वह परम है | इस प्रकृति के परे है, वहां मैं रहता हूं उसका नाम गोलोक हैं | फिर ब्रह्मा हमको अपना साक्षात्कार सुनाएंगे | जैसे 11 वे अध्याय में अर्जुन को भगवान अब विराट रूप दिखाने वाले हैं वैसे ही ब्रह्मा को भी विराट रूप दिखाएं थे | ब्रह्मा को सिर्फ एक ब्रह्मांड की नहीं दिखाएं, कई सारे ब्रम्हांड दिखाएं | अर्जुन को सिर्फ एक ब्रह्मांड दिखाएं | ब्रह्मांड के परे जो परयोम है, दिव्य धाम है अलौकिक वैकुंठ जगत है, बैकुंठ से भी ऊपर का दर्शन करा रहे थे, वह देखो वह देखो साकेत अयोध्या और और ऊपर जाओ वह है द्वारिका वह है मथुरा | और सबसे ऊपर है वृंदावन धाम | वृंदावन धाम की जय | ब्रह्मा एक साथ नीचे से ऊपर तक भगवान की सारी प्रकृति को देख रहे थे, वह विराट रूप या विश्वरूप का दर्शन तो बहुत ही विशाल रहा था | अर्जुन अब विराट रूप 11 वे अध्याय में देखने वाले हैं | उससे भी अधिक बड़ा विराट रूप एक ही साथ सारी सृष्टि ब्रह्मा ने देखते हुए फिर कहा था ब्रम्ह संहिता 5.43 *गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवीमहेशहरिधामसु तेषु तेषु।* *ते ते प्रभावनिचया विहिताश्च येन गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।।* अनुवाद: -जिन्होंने गोलोक नामक अपने सर्वोपरि धाम में रहते हुए उसके नीचे स्थित क्रमशः वैकुंठ लोक (हरीधाम), महेश लोक तथा देवीलोक नामक विभिन्न धामों में विभिन्न स्वामियों को यथा योग्य अधिकार प्रदान किया है, उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूंँ। तो आप वहां रहते हो और वहां से बस कृष्ण जन्माष्टमी के दिन आप प्रकट होते हो | हम लोग जन्म कहते हैं लेकिन आपका जन्म से कोई संबंध नहीं हैं क्योंकि जिनका जन्म होता है वह मरते हैं, लेकिन आप मरने वालों में से नहीं हो | आप शाश्वतम हो | हाँ और एक बात तो रह गई | आप पुरुषम आदि पुरुष हो | लेकिन पृथ्वी पर जितने मनुष्य है उनमें से कुछ लोग धार्मिक भी होते हैं |भगवान पुरुष है व्यक्ति है यह बात उनके पल्ले नहीं पड़ती है, यह समझ में नहीं आती है| कई हिंदुओं को समझ में नहीं आती है | अद्वैतवादीयों को समझ में नहीं आती है | कर्मकांड करने वालों को समझ में नहीं आती है | और हमारे मुसलमान भाई तो उनको तो समझ में आती ही नहीं है | हिंदू समाज में बड़े मायावादी हैं| जो भी अन्य धर्म है उनका प्राकट्य हिंदू से ही हुआ है | कोई मुसलमान बना तो कोई इसाई बना तो कोई और क्या बना, कोई बौद्ध बना| बौद्ध पंथी की उत्पत्ति भी हिंदू से ही हुई है, बौद्ध ने तो शुन्य ही कहा| भगवान को कोई शुन्य कहता है तो कोई एक कहता है | निर्विशेषवाद, शून्यवाद के मातावलम्बी जो हैं उनको यह बात समझ में नहीं आती कि भगवान पुरुष है, भगवान व्यक्ति हैं फिर हम भी पुरुष हैं, हम प्रकृति हैं हम व्यक्ति तो जरूर हैं | और भगवान के साथ हमारा संबंध है और यह बात गीता की विशेषता है जहां कृष्ण यह सारा ज्ञान दे रहे हैं | और श्रील प्रभुपाद उस ज्ञान को यथारूप प्रस्तुत भी कर रहे हैं | वह धाम ही है, वहां सदैव नित्य श्री कृष्ण का निवास है | कृष्ण फिर यहां प्रकट होते हैं और गीता का उपदेश सुनाते हैं और भी लीलाएं करते है | उन लीलाओं को हमें सुनना चाहिए| यह गीता का उपदेश सुनना चाहिए समझना चाहिए | और हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना चाहिए | हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे यह झूठ मुठ के तथाकथित जो धर्म है या कर्मकांड है | M 19.149 कृष्ण - भक्त - निष्काम , अतएव ' शान्त ' । भुक्ति - मुक्ति - सिद्धि - कामी - सकलि अशान्त ' ।। 149 ।।। अनुवाद " चूँकि भगवान् कृष्ण का भक्त निष्काम होता है , इसलिए वह शान्त होता है । सकाम कर्मी भौतिक भोग चाहते हैं , ज्ञानी मुक्ति चाहते हैं और योगी भौतिक ऐश्वर्य चाहते हैं ; अत : वे सभी कामी हैं और शान्त नहीं हो सकते । कृष्ण भावनामृत को स्वीकार करना चाहिए, भगवान की शरण में जाना चाहिए | BG 18.66 “सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज | अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः || ६६ ||” अनुवाद समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत । भगवान कृष्ण कहते हैं मैं तुमको मोक्ष दूंगा | मैं तुम्हें मेरे धाम ले आऊंगा | मैं वहां भी हूं वहां आकर के तुम मुझे मिलना तुम वहा selfie खींच सकते हो | मैं सुंदर भी हुँ मैं घनश्याम हुँ | तुम भी सुंदर हो क्योंकि तुम मेरे हो | बाप जैसा बेटा | बाप सुंदर है तो बेटा भी सुंदर होता है लेकिन यह शरीर तो कारागार की वर्दी पहन रखा है और उसके साथ तुम photos, selfies खींचते रहते हो, ये मामले छोड़ दो | संसार दुख आलयम है कृष्ण ने ऐसा सुनाया है | यह दुखालय है इसको सुखालय नहीं बना सकते हो | सुखालय तो मेरा धाम है | संसार में सुख का अनुभव तब कर सकते हो जब तुम मेरे भक्त बनकर रहोगे | यहां के सुख दुख को सहन करना सीखोगे| BG 2.14 “मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः | अगामापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत || १४ ||” अनुवाद हे कुन्तीपुत्र! सुख तथा दुख का क्षणिक उदय तथा कालक्रम में उनका अन्तर्धान होना सर्दी तथा गर्मी की ऋतुओं के आने जाने के समान है | हे भरतवंशी! वे इन्द्रियबोध से उत्पन्न होते हैं और मनुष्य को चाहिए कि अविचल भाव से उनको सहन करना सीखे | भगवान ने श्रीमद्भगवद्गीता में यह सब सिखाया है | यह सब सिखाते सिखाते आधी शिक्षा हो गई क्योंकि दसवां अध्याय चल रहा है | अभी दसवें अध्याय की शुरूआत ही है, कुल 18 अध्याय हैं | इस प्रकार अभी आधी भागवत गीता हो गयी हैं | आधी भगवत गीता अभी तक सुनाई है, इतने में ही अर्जुन को साक्षात्कार हो गया है | जो जो भी गीता पढ़ेंगे, उनको उनको भी साक्षात्कार होना चाहिए | दसवें अध्याय पढ़ते-पढ़ते साक्षात्कार का समय आ गया है | हमको भी अपने स्वयं के अनुभव के साथ कहना होगा, या कहना चाहिए | यहां तो अर्जुन बोल रहे हैं| अब हमारी बारी है, हम पढ़ेंगे सुनेंगे, श्रद्धा पूर्वक सुनेंगे | BG 4.39 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः | ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति || ३९ ||” अनुवाद जो श्रद्धालु दिव्यज्ञान में समर्पित है और जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया है, वह इस ज्ञान को प्राप्त करने का अधिकारी है और इसे प्राप्त करते ही वह तुरन्त आध्यात्मिक शान्ति को प्राप्त होता है | BG 4.34 “तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया | उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः || ३४ ||” अनुवाद तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो | उनसे विनीत होकर जिज्ञासा करो और उनकी सेवा करो | स्वरुपसिद्ध व्यक्ति तुम्हें ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य का दर्शन किया है | BG 4.9 “जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || ९ ||” अनुवाद हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | भगवान ने कहा है कि मेरे संबंध के ज्ञान के तत्व को समझो | अर्जुन कहते हैं आप अज हो, आप अजन्मा हो, अविभुम हो, सर्वोच्च हो, कई सारे वैभवो से संपन्न हो | 10 वे अध्याय में कृष्ण विभूति योग सुनाने वाले हैं | अपनी विभूतियों का, अपने ऐश्वर्य का उल्लेख करने वाले हैं, शायद हम आपको आने वाले दिनों में या कल हो सकता है सुनाएंगे | अर्जुन ने भगवान को विभूम कहा है | BG 10.12-13 “अर्जुन उवाच परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् | पुरुषं शाश्र्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् || १२ || आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा | असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे || १३ ||” अनुवाद अर्जुन ने कहा- आप परम भगवान्, परमधाम, परमपवित्र, परमसत्य हैं | आप नित्य, दिव्य, आदि पुरुष, अजन्मा तथा महानतम हैं | नारद, असित, देवल तथा व्यास जैसे ऋषि आपके इस सत्य की पुष्टि करते हैं और अब आप स्वयं भी मुझसे प्रकट कह रहे हैं | अर्जुन कहते है कि जो मैं कह रहा हूँ या मेरे साक्षात्कार सुना रहा हूँ ऐसा साक्षात्कार केवल मेरा ही नहीं है देवर्षि नारद भी यही भाषा बोलते हैं जो मैं बोल रहा हूं मैं जो कह रहा हूँ | साधु शास्त्र की बात हो गई | सभी की एक ही वाणी है कि भगवान परम ब्रह्म है परमधाम है पवित्रम है परम भवान आदि देवम एवं परम विभूम पुरुषम हैं शाश्वत दिव्य है | यह जो भगवान के संबंध में विशेषण है वैशिष्ट्य है साधु भी ऐसा कहते हैं, गीता भी यही कह रही है, आप भी वही सुना रहे हो, साधु शास्त्र आचार्य यही भाषा बोलते हैं, प्रभुपाद वही सुनाएं | और परंपरा में यह बातें सदा के लिए सुनाई जाएगी | यह सत्य है और सत्यमेव जयते | सत्य की जीत होती है सत्य ही बना रहता है | इस सत्य का प्रचार और प्रसार होना चाहिए | झूठ का खूब प्रचार-प्रसार हो रहा है और पूरे मानव जाति को गुमराह किया जा रहा है, पथभ्रष्ट किया जा रहा है, ठगा जा रहा है | तथाकथित teachers बन रहे हैं cheaters| Cheat कर रहे हैं| हमारे सारे लीडर अंधे हैं | तो सावधान होकर भगवान को सुनो, गीता पढ़ो | भगवत गीता यथारूप खास तौर पर पढ़ो | और पढाओ सुनाओ | पठन-पाठन करो | पढ़ो पढ़ाओ इस्कॉन का यही कार्यक्रम है | श्रील प्रभुपाद ने यही कार्य दिया है | हम सब अनुयायियों को गीता को पढ़ना है और गीता को पढ़ाना है | Read and Teach and Share इसीलिए इस महीने में गीता का वितरण अधिक से अधिक संख्या में करना है | सभी का पार्टिसिपेशन चाहिए | सिर्फ 40% भक्तों का पार्टिसिपेशन चल रहा है | ज्ञान तो दिया जा रहा है लेकिन ज्ञान का विज्ञान नहीं हो रहा है | ज्ञान का प्रैक्टिकल एप्लीकेशन ही विज्ञान है और वह सभी नहीं कर रहे हैं | हम 100% पार्टिसिपेशन के लिए प्रार्थना करते हैं |

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