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*जप चर्चा*
*09 -03 -2022*
*भगन्नाम की महिमा*
(श्रीमान अनंत शेष प्रभु द्वारा)
*ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम : ।।*
*श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले । स्वयं रूप: कदा मह्यंददाति स्वपदान्न्तिकम् ।।*
*नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले श्रीमते भक्तिवेदांत-स्वामिन् इति नामिने ।*
*नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी-प्रचारिणे निर्विशेष-शून्यवादि-पाश्चात्य-देश-तारिणे ॥*
*श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।*
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
हरे कृष्ण सर्वप्रथम में गुरु महाराज के श्री चरणों में दंडवत प्रणाम करता हूं तथा समस्त वैष्णव भक्तों के चरणों में दंडवत प्रणाम करता हूं। जैसा कि सभी भक्त नवद्वीप का दर्शन कर ही रहे थे। जैसे कि श्री गौरांग महाप्रभु की महिमा का वर्णन हम कल कर ही रहे थे तो उसी के अंतर्गत हम आगे की चर्चा को करेंगे। देखते हैं समय के अनुसार कितना कवर कर पाते हैं। कल जहां हमने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की भगवत्ता के विषय में जो श्रवण किया कि श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं राधा कृष्ण का ही जुगल रूप है और प्रछन्न अवतार है। भक्ति तथा शास्त्र प्रमाण के विषय में हमने चर्चा की थी कैसे उन्होंने बाल रूप में चिन्हों को प्रकट किया लीला प्रमाण और अंततः शास्त्र प्रमाण को हम देख रहे थे उसके अंतर्गत अंतिम जो भाग शेष रहा था चैतन्य महाप्रभु के विषय में केवल नाम ही नहीं बल्कि उनकी जन्मतिथि के विषय में भी शास्त्रों में वर्णन होता है विश्वसार तंत्र में दिया गया है।
*गंगाया दक्षीणे भागे नवद्वीपे मनोरमे कलि पापे विनाशये शचि गर्भे सनातनि*
कली के पापों का नाश करने के लिए गंगा के दक्षिण भाग में नवदीप में भगवान प्रकट होंगे जगन्नाथ मिश्र के निवास स्थान पर फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि को तो इसी तरह के कई प्रमाण हैं और भी वायु पुराण में भी इस बात को बताया गया है कि ब्राह्मण के रूप में वे जन्म लेंगे। उनके घर में सन्यास रुप को धारण करेंगे और उनका नाम होगा श्रीकृष्ण चैतन्य। भगवतम के ही एकादश स्कंध का यह प्रसिद्ध श्लोक है तीन आचार्यों ने इसकी तीन प्रकार से व्याख्या की है।
*त्यक्त्वा सुदुस्त्यजसुरेप्सितराज्यलक्ष्मी धर्मिष्ठ आर्यवचसा यदगादरण्यम् । मायामृगं दयितयेप्सितमन्वधावद् वन्दे महापुरुष ते चरणारविन्दम् ॥*
(श्रीमद भागवतम ११.५.३४ )
अनुवाद - हे महापुरुष, मैं आपके चरणकमलों की पूजा करता हूँ। आपने लक्ष्मी देवी तथा उनके सारे ऐश्वर्य का परित्याग कर दिया, जिसे त्याग पाना अतीव कठिन है और जिसकी कामना बड़े बड़े देवता तक करते हैं। इस तरह धर्मपथ के अत्यन्त श्रद्धालु अनुयायी होकर आप ब्राह्मण के शाप को मान कर जंगल के लिए चल पड़े। आपने मात्र अपनी दयालुतावश पतित बद्धजीवों का पीछा किया, जो सदैव माया के मिथ्या भोग के पीछे दौड़ते हैं और उसी के साथ अपनी वांछित वस्तु भगवान् श्यामसुन्दर की खोज में लगे भी रहते हैं।
एक श्लोक की व्याख्या को बतलाया जाता है यह जो वंदना है यह प्रभु रामचंद्र के लिए की गई है। दूसरा अर्थ जो बतलाया गया है वह भगवान श्रीकृष्ण के लिए बताया गया है और तीसरा अर्थ वह श्री चैतन्य महाप्रभु के विषय में है उन महाप्रभु के चरणों में हम वंदना करते हैं। त्यक्त्वा जिन्होंने त्याग किया, किस का त्याग किया है ? *सुदुस्त्यजसुरेप्सितराज्यलक्ष्मी* जो अत्यंत कठिन है, कौन सा? राज्य लक्ष्मी का अर्थ यहां पर बतलाया जाता है नवद्वीप धाम, यह नवद्वीप धाम सुरेप्सित मतलब देवतागण, देवता जिस धाम में वास करने के लिए लालायित होते हैं उस धाम का त्याग किया। श्रीचैतन्य महाप्रभु ने धर्मिष्ठ, धर्मिष्ठ मतलब कलयुग का युग धर्म हरि नाम संकीर्तन उन्होंने पालन किया और आर्यवचसा मतलब ब्राह्मण के वचन का पालन करते हुए, जहां प्रभु श्री रामचंद्र के अर्थात दशरथ के विषय में और चैतन्य महाप्रभु के विषय में जब श्रीवास के आंगन में महाप्रभु संकीर्तन कर रहे थे तब बताया जाता है कि एक ब्राह्मण को जब प्रविष्ट नहीं हुआ तो उन्होंने कहा कि यह शचिनंदन गौर हरी है यह अपने संकीर्तन में प्रविष्ट नहीं होने देता। मैं इसे श्राप देता हूं कि यह भौतिक जीवन गृहस्थ जीवन से विहीन हो जाए तो बताया जाता है कि उन्हीं शब्दों का पालन करते हुए और एक अर्थ में अद्वैत आचार्य ने बतलाया यहां अरण्य मतलब जगन्नाथपुरी जो वृंदावन धाम से अभिन्न है उसको यहां पर अरण्य कहा गया है मतलब श्रीचैतन्य महाप्रभु उस देवताओं के धाम अर्थात नवद्वीप का त्याग करते हुए भक्तों के कहने पर नीलांचल में जगन्नाथ पुरी में वास किया किसलिए *मायामृगं दयितयेप्सितमन्वधावद्* मायामृगं मतलब कलयुग के वे जीव जो बद्ध हैं उनके ऊपर दया दिख लाने के लिए उनके पीछे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु दौड़ पड़े हैं ऐसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के चरणो में वंदना करते हैं। अंततः इन श्लोकों के तात्पर्य में यह बतलाया जाता है क्योंकि चैतन्य महाप्रभु श्री रामचंद्र और भगवान श्रीकृष्ण यह तीनों को इंगित करता है लेकिन षड्भुज गौरांग जोकि चैतन्य महाप्रभु का रूप है उनकी वंदना के रूप में भी इसे कहा जाता है
उर्धव मानव संहिता के अनुसार ,
यह कहा गया है वयोवस पतान्तते ब्राह्मण कली के प्रारंभ में गंगा तीर्थ पर ब्राह्मण परिवार में श्रीचैतन्य महाप्रभु प्रकट होंगे हरि नाम तदा दत्वा हरि नाम को प्रदान करेंगे लाखों लोगों को ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य चांडाल सभी का उद्धार करेंगे उनका स्वर्ण कलेवर होगा और वे सभी का उद्धार करेंगे और अंत में बताया गया है कि वह सन्यास को धारण करेंगे यहां पर एक कांचन ग्राम है नीलांचल के लिए कांचन ग्राम बताया गया है शायद एक बार कह रहे थे।
गरुड़ पुराण के अनुसार -
एक बहुत सुंदर वर्णन है उन चैतन्य महाप्रभु के विषय में बताया गया है जो वृंदावन में गोपियों के साथ विहार करते हैं हे भगवान जिन्होंने कंस का संहार किया और पांडवों के सखा बनके और उनके विरुद्ध उन्होंने युद्ध किया युद्ध भूमि पर वही भगवान जिन्होंने वृंदावन में गोपियों के साथ विहार किया, जिन्होंने कंस का संहार किया और जो पांडवों के सखा के रूप में पार्थ सारथी बने हैं वही भगवान वैष्णव दंड कौन सा आभूषण है उनका, वैष्णव दंड को उन्होंने धारण किया है।
वही श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में धरातल पर प्रकट हुए हैं
गौरी क्यों कहा जाता है गौरी प्रिया श्रीमती राधारानी है और हरी कृष्ण का ही नाम है तो जब राधा और कृष्ण युगल रूप में आए हैं इसलिए उनको गौर हरी कहा जाता है श्री शचि नंदन गौर हरि की जय ! क्या करेंगे भगवान ?
चैतन्य उपदेशामृत के अनुसार
*स्वनाम मूल सर्वेण सर्वं आल्हाद विभू* अपने नाम के मूल रूप में वे आल्हादित करेंगे सिर्फ भगवान उस मंत्र का जप करेंगे, यह कौन सा मंत्र होगा हरि इति कृष्ण इति राम इति हरे कृष्ण और राम यह तीन मंत्रों से वह अपने नाम का जप करेंगे जीव गोस्वामी का यह प्रसिद्ध श्लोक है जो इस संदर्भ में उद्धृत करते हैं अंतः कृष्ण बहिर गौर यह आपने कई बार गुरु महाराज के मुख से श्रवण किया होगा जो की भीतर से कृष्ण हैं और बाहर से गौर स्वरूप में है और कलयुग में संकीर्तन के द्वारा हम उनका आश्रय ग्रहण करते हैं।
*राधा-कृष्ण एक आत्मा, दुइ देह धरि । अन्योन्ये विलसे रस आस्वादन करि' ।।* (चैतन्य चरितामृत )
अनुवाद- राधा तथा कृष्ण एक ही हैं, किन्तु उन्होंने दो शरीर धारण कर रखे हैं। इस प्रकार वे प्रेम-रस का आस्वादन करते हुए एक-दूसरे का उपभोग करते हैं।
यहां कृष्णदास कविराज गोस्वामी के श्लोक की व्याख्या में बतलाया जाता है कि राधा कृष्ण एक ही हैं किंतु रसविलास के लिए वह दो का रूप धारण करते हैं और वही आगे चलकर
*सेइ दुइ एक एबे चैतन्य गोसाइं। रस आस्वादिते दोंहे हैला एक-ठाङि ।।* (चैतन्य चरितामृत )
अनुवाद- अब वे रसास्वादन हेतु श्रीचैतन्य महाप्रभु के रूप में एक शरीर में प्रकट हुए हैं।
पहले एक से वह दो हुए फिर पुनः वह चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट होकर वह एक हुए इस तरह का प्रमाण कविराज गोस्वामी बतला रहे हैं यह प्रसिद्ध है। जब मीराबाई का आगमन हुआ था वृंदावन में जीव गोस्वामी से जब उनकी भेंट हुई तब उस समय में ही यह बताया जा रहा है उन्होंने जब श्रीचैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का श्रवण किया जीव गोस्वामी से तब उन्होंने अपने साक्षात्कार इस पद में लिखे हैं।
*अब तो हरि नाम लौ लागी,
सब जगको यह माखनचोरा, नाम धरयो बैरागी॥
कित छोड़ी वह मोहन मुरली, कित छोड़ी सब गोपी।
मड़ू मड़ुाइ डोरि कटि बांधी, माथेमोहन टोपी॥
मात जसोमति माखन-कारन, बांधेजाके पांव।
स्यामकिसोर भयो नव गौरा, चतैन्य जाको नांव॥
पीतांबर को भाव दिखावे, कटि कोपीन कसै।
गौर कृष्ण की दासी मीरां, रसना कृष्ण बस॥
वह समझ गई की वही गिरधारी गिरिराज जी जिन को कहते हैं श्याम सुंदर हैं जिन्होंने वैरागी रूप धारण किया है। समझ लो मुरली को त्याग दिया है और गोपियों के साथ विहार भी त्याग दिया और अपना सिर मुंडन करके वे सन्यास को धारण किए हैं यशोदा मैया जिनको माखन के कारण ऊखल से बांधती हैं वही अभी गौर बने हैं और उनका नाम चैतन्य हुआ है जो पीतांबर धारण करते हैं वृंदावन में वही श्रीकृष्ण अभी संन्यास वेश को धारण किए हैं।
ऐसा ही चैतन्य चंद्राव्रत के अनुसार - जहां पर वह कहते हैं पहले जो यमुना नदी के तट पर वृंदावन में विहार करते थे वही उस स्थान को त्याग कर अब कहां आए हैं लवणम बुद्धिम मतलब, समुद्र के तट पर श्री जगन्नाथ पुरी में उस नीलांचल में वे वास कर रहे हैं। जो पीतांबर का त्याग किए हैं अरुणपट अरुण मतलब लालिमा युक्त पट मतलब वस्त्र , उन्होंने संन्यास वेश को धारण किया है और उन्होंने अपने रूप को तिरोहित किया है मतलब श्याम सुंदर रूप को तिरोहित करके गौरी, गौरी मतलब श्रीमती राधारानी के रूप को प्रकाशित किया है। वर्ण को प्रकाशित किया है चैतन्य चरितामृत में भी ऐसे ही भाव को वर्णित किया है और साथ में जब चैतन्य महाप्रभु प्रकट हो गए तब चैतन्य महाप्रभु एक ही रूप में प्रकट नहीं होंगे बल्कि तीन रूपों में प्रकट होकर कलि काल के बद्ध जीवों का उद्धार करने के लिए हुए, उसको चैतन्य भागवत में भी वर्णन किया जाता है स्वयं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जब सन्यास लिया और अंततः जब वे अपनी मां से मिले हैं बताया जाता है कि वहां पर भी इस बात को कहा है
*एइ माता तुमि अमारा माता जन्मे जन्मे। तोमार अमारा कबहुँ त्यागा नाही मर्मे।।* (चैतन्य भगवत मध्य) 27.49
हे माता आपका और मेरा संबंध तो नित्य है शाश्वत है हम कभी अलग नहीं होते जब मैं राम के रूप में आया तब आप कौशल्या के रूप में आई जब मैं कृष्ण के रूप में आया तब आप यशोदा के रूप में आयी हैं और कलिकाल में बता रहे हैं।
*मोर अर्चा मूर्ति तुमि से धरणी जिह्वा रूपा तुमि माता नामेरा जननी* (चैतन्य भगवत मध्य) 27.48
आपको शोक हो रहा है कि मैं संन्यास लेकर आपसे दूर जा रहा हूं परंतु मैं और जो 2 अवतार यहां पर ले रहा हूं जिन 2 अवतारों में मैं सदैव आपके साथ रहूंगा। कौन से दो अवतार हैं ? एक है विग्रह अवतार श्रीचैतन्य महाप्रभु का "विग्रह अवतार" और दूसरा है "नाम अवतार" कलयुग में कलि काले नाम रुपे कृष्ण अवतार गौरांग महाप्रभु नाम के रूप में और विग्रह के रूप में विराजमान रहते हैं। भगवान जो विग्रह के रूप में आते हैं तो विग्रह को जहां स्थापित किया जाता है वह शचि माता का स्वरूप कहां गया है और जिस जिव्हा पर गौरांग महाप्रभु का नाम उच्चारित किया जाता है वह जिव्हा को भी सच्ची माता का स्वरूप कहा जाता है। हे माता इस दो रूपों में संकीर्तन आंदोलन का जब प्रारंभ होगा तब मैं इन दो रूपों में सदा आपके साथ रहूंगा आप बिल्कुल शोक ना करें।
*करो दुइ जन्मा एइ संकीर्तनारम्भे हाइबा तोमार पुत्र अमि अविलम्बे* (चैतन्य भगवत मध्य) 27.47
हम देखते हैं श्रील प्रभुपाद के अनुग्रह से संपूर्ण जगत में हम श्री गौर निताई गौरांग महाप्रभु के विग्रह जहां-जहां प्रकट हो रहे हैं और चैतन्य महाप्रभु के नाम का भी सर्वत्र नाम प्रकट हो रहा है और यह जो वास्तविक नाम प्रकट हुआ है या अवतार लिया है तो यह कहां से प्रकट हुआ है ?
लघु भागवतामृत में कहते हैं श्रीचैतन्य महाप्रभु का अवतार जो इस कलिकाल में हुआ है एक विशेष महामंत्र है जैसा कि कल हम इस बात को कह रहे थे। यह ध्यान में रखना चाहिए विशेष रूप से आप भारत में देखते हैं यह मंत्र भले ही उल्टे प्रकार से लिया जाए *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* ऐसे लेते हैं परंतु भारत में महाराष्ट्र में यह मंत्र बहुत प्रचलित है लगभग महाराष्ट्र में तो प्रत्येक आरती के अंत में इस महामंत्र को कहा जाता है परंतु उस मंत्र में और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन के इस मंत्र में बहुत बड़ा अंतर है क्योंकि यहां जो मंत्र है हरे कृष्ण महामंत्र यह चैतन्य महाप्रभु के मुख से प्रकट हुआ है और इसकी विशेषता क्या है ?चैतन्य महाप्रभु के मुख से जो प्रकट हुआ है, महामंत्र है समस्त जगत को कृष्ण प्रेम में डुबो देता है यह विशेषता है इस महामंत्र की और व्यवहारिक रूप से यह देखा भी गया है। इस मंत्र का उच्चारण करने के लिए कई होते हैं परंतु सभी का अनुभव है जब हरे कृष्ण भक्त महामंत्र का कीर्तन करते हैं तो उनमें जो भाव प्रकाशित होते हैं उन्हें जो भक्ति का वर्धन होता है अन्यत्र पाया नहीं जाता है, इस तरह से यह हरे कृष्ण महामंत्र प्रकट होता है। यहां तक हमने श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की भगवत्ता के विषय में सुना है परंतु स्वयं भगवान भी "मैं चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट होऊंगा इस बात की उन्होंने घोषणा की थी। ऐसे कौन से प्रमाण हैं तो यह वास्तव में चैतन्य मंगल में प्राप्त होते हैं जहां पर नारद मुनि जब द्वारका में जाते हैं और वहां पर जब माता रुक्मणी और द्वारकाधीश का दर्शन करते हैं और द्वारका में रुकमणी किस प्रकार से राधा रानी के भाव के रूप को बतलाती हैं कि वास्तव में राधा रानी के भक्तों का जो भाव होता है आपके लिए विरह में व्याकुल हो जाते हैं यह आप समझ नहीं सकते और उस समय जब नारद मुनि वहां पर आए तो तुरंत श्रीकृष्ण ने वहां पर घोषणा की, यह जो प्रेम का सुख मेरे भक्त लेते हैं वृंदावन के भक्त हैं मैं स्वयं भी उसका आस्वादन करूंगा और जगत को भी उसका आस्वादन करवाऊंगा। दैन्य भाव प्रकाश मैं वैष्णव के दैन्य भाव को प्रकाशित करूंगा। इस कलयुग में क्या कह रहे हैं द्वारकाधीश श्रीकृष्ण कि मैं भक्तों को साथ में लेकर भक्ति करूंगा अपने प्रेम को ईश्वर होते हुए भी मैं स्वयं वितरण करूंगा निज नाम संकीर्तन प्रकट करिबो और संकीर्तन को प्रकट करूंगा *नवद्वीप शची गृहे जन्म लगिभो शची माता के गृह* में मैं जन्म लूंगा बंगाली शब्द जब आप धीरे-धीरे पढ़ते हैं तो हिंदी और मराठी मैं जिस प्रकार समानता है उसी प्रकार यह समझे जा सकते हैं इसीलिए मैंने सभी के अनुवाद को यहां पर प्रकट नहीं किया है और कैसा उनका रूप रहेगा । श्रीकृष्ण कह रहे हैं मैं गौर वर्ण में रहूंगा दीर्घ कलेवर ऐसा प्रकांड मेरा शरीर होगा और अजान बाहू मेरे होंगे एकदम सुमेरु पर्वत की तरह, तेजस्वी मेरा सुंदर अति अनुपम रूप रहेगा और जैसे ही श्रीकृष्ण कहने लगे तत्क्षण क्या देखा नारद मुनि ने उसी क्षण श्रीकृष्ण ने पहली बार इस पृथ्वी पर भूतल पर श्रीकृष्ण ने तुरंत गौरांग महाप्रभु के रूप को प्रकट किया है, नारद मुनि अत्यंत आनंदित हुए हैं यह प्रथम महाप्रभु का प्रकाट्यी करण हुआ है द्वापर के अंत में। यहां पर भी हम देखते हैं कि श्रीकृष्ण प्रतिज्ञा लिए हुए थे कि मैं कलयुग में प्रकट हूंगा आगे चलकर यह प्रसिद्ध कथा है। कथा का जो मैंने अंतिम भाग लिया है जहां पर शिवजी नारद मुनि और कात्यायनी का जो प्रसंग है। महाप्रसाद की कथा, जो कि आप जानते होंगे नारद मुनि को प्रसाद प्राप्त हुआ और उन्होंने शिव जी को दिया और अंततः कात्यायनी देवी को जब प्रसाद प्राप्त हुआ तब उन्होंने तपस्या की और यह संकल्प लिया की कलि काल में समस्त जीवों को मैं भगवान नारायण का प्रसाद दिलवा दूंगी। वहां पर बतलाया जाता है कि नारायण अत्यंत प्रसन्न हुए हैं और भगवान प्रकट हुए हैं कात्यायनी देवी के सामने और उस वक्त जो वचन थे उसमें से एक भाग है कि मैं पृथ्वी पर प्रकट होऊंगा और विशेष लीला करके मैं करुणा को प्रसारित करूंगा। *कलि युगे विशेष्य* कलयुग में मैं संकीर्तन को प्रकट करूंगा मनुष्य रूप में प्रकट होकर *तनु हवे गोरा* मेरा गौर वर्ण रहेगा और तुम्हारी जो प्रतिज्ञा है प्रसाद का वितरण, जगन्नाथ पुरी धाम में प्रसाद का भी वितरण करवाऊंगा और उच्च कोटि के माधुर्य प्रेम का जो प्रचार है वह मैं करूंगा। मेरे हृदय की बात "हे कात्यायनी मैं तुम्हें बता रहा हूं" कृपया इस बात को अपने मन में छुपा कर रखना।
*सर्व अवतारा सार गौरा कली अवतार निस्तरीब लोक निज गोपनीय*
समस्त अवतारों का सार गौर अवतार है कलयुग में जो अपने गुणों के द्वारा समस्त जीवों का उद्धार करेंगे। यह कहां पर प्राप्त होता है >तो लोचन दास ठाकुर का संदर्भ भी दिया हैं। ब्रह्म पुराण केअनुसार -
विष्णु कात्यायनी में यह संवाद आता है महाराज प्रताप रूद्र ने उस समय 500 वर्ष पूर्व इसकी प्रतियां बनाई थी जो यह ब्रह्म पुराण संवाद है उत्कल खंड का जहां पर जगन्नाथ जी के प्रसाद का वितरण हुआ और श्री चैतन्य महाप्रभु प्रकट होंगे इसकी उन्होंने प्रतियां बनाकर वितरित की थी. ऐसा लोचन दास ठाकुर कह रहे हैं पहला प्रमाण चैतन्य मंगल से देखा जहां स्वयं द्वारकाधीश ने नारद मुनि को कहा दूसरा यहां विष्णु ने कात्यानी देवी से कहा है। वैसे ही जब गौरांग महाप्रभु प्रभु का दर्शन किया अंत में नारद मुनि ने तो वहां पर गौरांग महाप्रभु भी स्वयं इस बात को कहते हैं जब आध्यात्मिक जगत में पहुंचे जहां जहां पर उनका अभिषेक हो रहा था हे नारद मुनि ! जान लो मेरे हृदय में अभी प्रेम का जो प्रवाह उमड़ पड़ा है और मैं तुरंत जन्म लूंगा अपने प्रेम को देने के लिए, कैसा प्रेम दूंगा? मैं अत्यंत दुर्लभ इस प्रेम भक्ति को कलयुग के जीवो को देने वाला हूं और वहां पर भी वह कहते हैं चैतन्य महाप्रभु गंगा के तट पर जगन्नाथ मिश्र के घर पर मैं शचि माता के गर्भ से प्रकट होऊंगा , क्या विशेषता है ? अभी बहुत सुंदर श्री चैतन्य महाप्रभु का अन्य समस्त अवतारों से एक विशेष गुण यहां पर बतला रहे हैं गया है जो आगे भी मैं कुछ वर्णन करूंगा समय अगर रहा तो । अन्य अवतारों जैसा ही ये अवतार नहीं है अन्य सारे अवतार क्या करते हैं ?इस पृथ्वी पर आकर असुरों का संहार करते हैं अर्थात पहले कैसा वातावरण रहता था। पहले जो महाकाय महा असुर होते थे और उनके अस्त्र होते थे तब मैं भी अपने अस्त्र को धारण करता था और युद्ध भूमि पर उनका संघार किया जाता था परंतु कलयुग की क्या दुर्दशा है कलयुग में क्या है केवल असुर बाहर से नहीं है बल्कि वह सभी जीवो के हृदय में बैठ चुका है। अभी सुदर्शन चक्र और मेरी गदा काम नहीं करेंगी और युद्ध भूमि भी कहां रही , अब तो सर्वत्र असुर हो चुके हैं कौन सा उपाय है? तब चैतन्य महाप्रभु आगे कहते हैं।
नाम गुणों संकीर्तन वैष्णवर शक्ति प्रकाश करीबो आमि निज प्रेमी भक्ति
मैं ,नाम ,गुण, संकीर्तन ,भक्तगण, यह मेरे अस्त्र रहने वाले हैं और मैं कलिकाल में अपनी प्रेमा भक्ति को प्रकट करूंगा। अच्छा चैतन्य महाप्रभु अब असुरों का संहार कैसे करेंगे यह बड़ा प्रश्न है। नारद मुनि कह रहे हैं कि आप सभी देवताओं को लेकर के आगे प्रकट हुए है। अधिक विचार ना कीजिए यहां पर हम सदैव श्रील प्रभुपाद जी की वाणी सुनते हैं। सूत्र खंड में आता है चैतन्य मंगल में जहां पर स्वयं महाप्रभु कह रहे हैं। संकीर्तन रूपी तीक्ष्ण तलवार को मैं धारण करूंगा और अंतर में यह जो असुर है ह्रदय में जो वास करने वाला असुर है उनका मैं विनाश करूंगा। प्रश्न है कि जब चैतन्य महाप्रभु ने असुरों का विनाश किया ऐसे कई जीव हैं जो उस कृपा से वंचित हो गए जो चैतन्य महाप्रभु की कृपा के क्षेत्र से बाहर थे चैतन्य महाप्रभु की कृपा क्षेत्र के बाहर हो जो गुजरात में है जो महाराष्ट्र में है जहां पर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की कृपा पहुंच नहीं पाई ऐसे सभी जीवो के लिए कह सकते हैं क्या होगा मेरा सेनापति भक्त वहां पर जाएगा और इस नाम संकीर्तन को पहुंचाएगा। और क्या होगा वहां श्रील प्रभुपाद पहुंचेंगे तो सेनापति भक्तों के पहुंचने पर और ऐसा समय आने वाला है कि पूरा ब्रह्मांड जो है इस माधुर्य प्रेम में डूब जाएगा , हरि बोल ! फिर कोई दुख और शोक किंचित मात्र भी नहीं रहेगा किन को मैं डुबाउंगा केवल मनुष्यों को ही नहीं स्थावर जंगम और देवगढ़ भी इस प्रेम में डूब जाएंगे इस कलिकाल में, हरि बोल ! लोचन दास ठाकुर ने यह सुनकर आनंदित हो रहे हैं हरि बोल ! यह वार्ता तो तीनों लोकों में प्राप्त नहीं हो सकती वृंदावन धाम में प्रकाशित हो ,क्या करेंगे चैतन्य महाप्रभु ?कलयुग में वृंदावन का धन ब्रज का प्रेम सभी जीवो को देने वाले हैं। कैसा प्रेम है, जिसके विषय में लोचन दास ठाकुर कहते हैं शिव ब्रह्मा भी जिस प्रेम के लिए लालायित होते हैं याचना करते हैं कलयुग के एकदम अधम से अधम जीवो को भी जो ब्रह्मा और शिव भी जिस प्रेम का आस्वादन नहीं कर पाए बड़े से बड़ा भक्त भी पूर्व में जिस प्रेम का आस्वादन नहीं कर पाया वह कलयुग के अधम जीवो को मैं देने वाला हूं। यह चैतन्य महाप्रभु ने घोषणा की इसीलिए यहां पर लोचन दास ठाकुर कहते हैं अब मैं समझ गया हूं कि कलयुग तो सबसे बड़ा भाग्यशाली है जितना भाग्यशाली कलयुग हुआ है चैतन्य महाप्रभु के होने से इतना भाग्यशाली कोई युग नहीं था हरि बोल ! अन्य युग में युग धर्म का आचरण अत्यंत कठिन है परंतु कलयुग में केवल हरि नाम ही है जिसमें हरि नाम युग के धर्म का पालन करके जिस सहजता से चैतन्य महाप्रभु की कृपा प्राप्त कर सकता है। क्यों संकीर्तन करना है और नृत्य करना है ? जो बद्ध है वह मुक्त हो जाएगा और नाम संकीर्तन के अंदर तो भक्तों से यमराज भी भयभीत होकर दूर भाग जाते हैं हरि बोल ! इस प्रकार हमने चैतन्य महाप्रभु की भागवत लीला में तीन भागों में देखा शास्त्र प्रमाण से और स्वयं चैतन्य महाप्रभु ने भी इस बात की भविष्यवाणी की कि मैं कलिकाल मंक प्रकट होने वाला हूं संकीर्तन नाम से ,हम गौड़िये वैष्णव को यह समझ में आता है कि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जैसा कोई नहीं है मुझे स्मरण है विशेष रूप से एक समय में कथा श्रवण कर रहा था परम पूजनीय श्री राधा गोविंद महाराज जी से उन्होंने मुझसे कहा कि यदि मुझे चॉइस दी जाए या दोनों में से एक चीज कीजिए। राधा गोविंद महाराज जी आप जानते ही हैं कि श्रीमद्भागवत और भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का बहुत सुंदर आस्वादन करते हैं और जगत को आस्वादन करवाते हैं उ.न्होंने जब कहा कि मुझे चॉइस मिले तो मैं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को चुनूंगा। श्री कृष्ण को नहीं चुनुँगा। क्या विशेषता है चैतन्य महाप्रभु की, कुछ शब्दों को हम यहां पर सुनेंगे चैतन्य चरित्रामृत का यह बहुत सुंदर शब्द है। मैं उन चैतन्य महाप्रभु की स्तुति कर रहा हूं किन चैतन्य महाप्रभु की पहले भी तो अवतार हुए चैतन्य महाप्रभु की विशेषता क्या है पहले के अवतारों में क्या-क्या है ?दैत्यों का संघार किया। यह कौन सी बड़ी बात है हमने सुना राम अवतार में वरहा अवतार में नरसिंह अवतार में तो यह कौन सी बड़ी बात है और हमने सुना कि भगवान कपिल देव के रूप में आए और उन्होंने योग आदि सांख्य का प्रकाशन किया है क्या यह भगवान की भगवता की श्रेष्ठता है। भगवान सृष्टि पालन संघार करते हैं यह भगवान के गुण अवतार में क्या यह भगवान की महत्वता है। नहीं !पृथ्वी का उद्धार किया, पृथ्वी का कौन से रूप में, वराह रूप में ,क्या यह बहुत बड़ी बात है। नहीं ! इस प्रेम रूपी ज्वाला को प्रकाशित करके सभी को महान भक्ति का वर्तन मतलब महान भक्ति के मार्ग को जिन्होंने बताया है वह चैतन्य महाप्रभु से श्रेष्ठ वास्तविक कोई नहीं। इसी के संदर्भ में जैसे चैतन्य भागवत में भी वर्णन किया जाता है जब चैतन्य महाप्रभु ने नित्यानंद प्रभु के आग्रह पर जगाई मधाई का उद्धार किया उस प्रसंग को मैं देख रहा था जहां पर जगाई मधाई ने बहुत सुंदर स्तुति की और वहां पर बताया जाता है कि वास्तव में इस जगत में भगवान आपने तो कई अवतार लिए किंतु वास्तव में तो आज आपकी जो कृपा आप का उद्धार करने की क्षमता है उसकी पूर्णता को आप ने प्राप्त किया है। वहां पर वे कहते हैं
*अमि दुइ पातकिया देखिया उद्धारा अल्पत्वा पाइला पूर्व महिमा तोमार* (चैतन्य भागवत मध्य 13.260)
आज आपने जो हमारा उद्धार किया तो वास्तव में आपने इस पूर्णता को प्राप्त किया है। कैसे ? वहां पर कुछ दृष्टांत दिए हुए हैं वह हम पूरा तो नहीं पढेंगे किंतु चैतन्य महाप्रभु की भगवत्ता के विषय में बताया जा रहा है कि पहला उदाहरण/ दृष्टांत दिया जगाई मधाई कहते हैं कि हमने सुना है कि आपने अजामिल का उद्धार किया इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई।
*अजामिल उद्धारेरा एतेका महत्त्वा अमरा उद्धारे सेहो पाइला अल्पत्वा* (चैतन्य भागवत मध्य 13.261)
इसमें आपकी कोई बहुत बड़ी महत्वत्ता नहीं है क्योंकि अजामिल जो था अंततः उसने आपके नाम का उच्चारण किया है।
*नारायण नामे सुनि अजामिल मुखे करि महाजने अइला सेइ जाना देखे* (चैतन्य भागवत मध्य 13.268)
पहली बात है कि उसने नारायण नाम का उच्चारण किया है तो वह महिमा आपकी नहीं आपके नाम की हुई। यह पहला दृष्टांत दिया, उन्होंने अजामिल का उद्धार कोई बड़ी बात नहीं है। अच्छा भगवान आप ने पूर्व में कुछ असुरों का संहार करके उनका उद्धार किया था जैसे कंस जरासंध इत्यादि दैत्य गण इसमें भी कौन सी बड़ी बात है।
*यदि बाला कंसा अदि दैत्या गण तहारे ो द्रोह करि पाइला मोचन* (चैतन्य भागवत मध्य 13.273)
वह तो आपके शत्रु थे और आपने उनका उद्धार किया तो कैसे माने वास्तविक में उनकी कुछ विशेषता थी। क्या वो तीन विशेषताएं हैं जो जगाई मधाई कहते हैं पहली चीज कि वह आपका प्रत्यक्ष दर्शन कर रहे थे दूसरी चीज वे निरंतर आपका चिंतन कर रहे थे तीसरा वह अपने क्षत्रिय धर्म का पालन कर रहे थे युद्ध किया कंस और जरासंध आदि ने तो उन्होंने क्षत्रिय धर्म का पालन किया, उन्होंने आपका प्रत्यक्ष दर्शन किया हमने तो आपका दर्शन भी नहीं किया था और वह निरंतर आप का चिंतन करते थे उनका उद्धार हुआ तो कौन सी बड़ी बात हुईऔर कहते हैं कि गजेंद्र का आपने उद्धार किया है
*महाभक्त गजराजा करिला स्तवन एकांत सराणा देखि करिला मोचना* (चैतन्य भगवत मध्य 13.280)
जब तक वह एकांतिक रूप से पूर्ण रूप से आपकी शरण मैं नहीं आए तब तक तो आपने उनका उद्धार नहीं किया। गजेंद्र ने जब पूर्ण समर्पण किया है, आर्त भाव से पुकारा है तब आप दौड़े हैं। अच्छा अन्य असुरों का आपने उद्धार किया है कौन हैं पूतना है, अघासुर है, बकासुर आदि इनके विषय में तो स्पष्ट रूप से बताते हैं कि मैंने उद्धार किया तो कैसे उद्धार किया असुरों को आपने मृत्युदंड दिया अर्थात मार दिया है मर गए हैं और शास्त्र कहता है कि उनका उद्धार हुआ किसने देखा मरने के बाद उद्धार हुआ? तो महाप्रभु कह रहे हैं ।
*ये करिला ऐइ दुइ पातकी सरीरे सकसते देखिला इहा सकल संसारे* (चैतन्य भगवत मध्य 13.283)
जो जितने पापी गण हैं उन्होंने शरीर छोड़ दिया और उनको दिव्य गति प्राप्त हुई वेदों को छोड़कर किसकी कितनी शक्ति और सामर्थ्य है।
*छाड़िया से देहा तारा गेला दिव्यगति वेद वाणी तहा देखे कहरा सक्ति* (चैतन्य भगवत मध्य 13.282 )
किसको पता, कहां हमने देखा, उनको दिव्य गति प्राप्त होते हुए और दूसरी बात यहां कहते हैं जरासंध और कंस यह जब मरे हैं जरासंध का जब वध हुआ है वहां पर किसी महान वैष्णव ने आकर उनका आलिंगन किया था, नहीं ऐसे किसी भी असुर का वर्णन कीजिए जिनका केवल उद्धार ही नहीं हुआ बल्कि उनको कृष्ण प्रेम भी प्राप्त हुआ है, कोई नहीं है ऐसा असुर इसीलिए यहां पर जगाई मधाई इस बात को कहते हैं। हे भगवान आपने हमारा जो उद्धार किया वह केवल हमारा उद्धार ही नहीं किया हमारे पापों का भी हरण किया और तत्क्षण सर्वोच्च प्रेम प्रदान किया है। जिस प्रकार नित्यानंद प्रभु कहते हैं जगाई मधाई ऐसे थे जिनकी छाया पडने पर लोग वस्त्रों समेत गंगा में स्नान करते थे और आगे चलकर चैतन्य महाप्रभु के पास जगाई मधाई इतने पवित्र हो गए दर्शन मात्र से गंगा स्नान का फल प्राप्त होता था। हरि बोल ! चैतन्य महाप्रभु की जय ! चैतन्य महाप्रभु की अद्वितीय क्या है ? श्रीचैतन्य महाप्रभु कभी भी किसी का पास्ट रिकॉर्ड नहीं देखते।
*पात्रापात्र-विचार नाहि, नाहि स्थानास्थान।
येइ याँहा पाय, ताँहा करे प्रेम-दान*
(सी सी आदि 7.23 श्लोक)
अनुवाद-- भगवत्प्रेम का वितरण करते समय श्रीचैतन्य महाप्रभु तथा उनके संगियों ने कभी यह विचार नहीं किया कि कौन सुपात्र है और कौन नहीं है, इसका वितरण कहाँ किया जाये और कहाँ नहीं। उन्होंने कोई शर्त नहीं रखी। जहाँ कहीं भी अवसर मिला, पंचतत्त्व के सदस्यों ने भगवत्प्रेम का
वितरण किया।
कभी भी इसी योग्यता को विचार नहीं करते चैतन्य चंद्रावली के शब्दों में कहा जाए तो पात्र अपात्र का विचार नहीं करते। कौन मेरा है, कौन पराया है यह भी श्रीचैतन्य महाप्रभु नहीं देखते ऐसा भेद भी नहीं है कि कौन देने लायक है और कौन नहीं देने लायक है, कौन सा सही समय है और कौन सा सही समय नहीं है यह भी विचार नहीं करते और श्रवण दर्शन प्रणाम ध्यान जो नवधा भक्ति के द्वारा भी प्राप्त करना अत्यंत दुर्लभ है, श्रीचैतन्य महाप्रभु के प्रति जिनकी निष्ठा हो जाती है उन्हें तुरंत वहां सर्वोच्च माधुर्य प्रेम महाप्रभु प्रदान करते हैं हरि बोल ! और पूर्व में कोई भी योग्यता नहीं है पुनः उन्हें यहां कहते हैं। ऐसे भी चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन में कृपा प्राप्ति वाले जीव हैं जिनके जीवन में पहले कभी कोई योग नहीं किया, ना ध्यान आप में से पहले कोई योग करके आए हैं यहां अपने कभी ध्यान किया है? कि हम तो इससे पहले कभी भी किसी भी एंगल से भक्त बनने के योग्य थे ही नहीं केवल श्रील प्रभुपाद का अनुग्रह है न योग न ध्यान न जप न तप न त्याग न नियम जो भगवत मार्ग में भगवान को प्राप्त करने के लिए नियम अंगो का पालन करना होता है वहां वैसे कोई भी नियम नहीं दिए। न वेद न शास्त्रों का ज्ञान न आचार कोई भी शास्त्र युक्त आचरण भी हमारा नहीं था इतना ही नहीं शास्त्र के विरुद्ध भी जो आचरण है उसमें भी हमारा मन मुक्त नहीं हुए थे मतलब पापमय क्रियाओं में लिप्त थे। श्रीचैतन्य महाप्रभु जब कलिकाल में अवतरित हुए पुरुषार्थ में जो शिरोमणि क्या है ? प्रेम पुरुषार्थ कृष्ण प्रेम है ऐसे जीव जिनकी कोई योग्यता नहीं थी ऐसे जीव चैतन्य महाप्रभु की कृपा से उस सर्वश्रेष्ठ प्रेम को प्राप्त करेंगे हरि बोल ! और विशेष रूप से राधा गोविंद महाराज की कथा में हमने सुना था श्रीकृष्ण के माधुर्य से श्रेष्ठ है चैतन्य महाप्रभु का एक विशिष्ट गुण औदार्य कहा जाता है। चैतन्य महाप्रभु को महावदान्याय क्यों कहा जाता है? उसका बहुत सुंदर अर्थ आचार्यों ने बतलाया है महावदान्याय इसलिए कहते हैं कि अन्य समस्त अवतारों में उन्होंने अपनी दयालुता को प्रकाशित किया है। जीवों का उद्धार किया है। कैसे उद्धार किया है ?चैतन्य महाप्रभु को महावदान्याय इसलिए कह रहे हैं कि जीवन में चैतन्य महाप्रभु केवल पापों का नाश नहीं करते बल्कि श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु अपनी प्रेम भक्ति भी प्रदान करते हैं, इसीलिए इसे महावदान्यय कहा गया है। एक बहुत सुंदर उदाहरण देखा था कि जब जीव भगवान से कैसे आकर्षित होता है उनकी दयालुता और दयालुता की पराकाष्ठा को देखकर वह माधुर्य से आकर्षित नहीं होता जैसे मान लीजिए किसी व्यक्ति को चोट लगी है और उसके हाथ में खून बह रहा है प्रश्न है कि उस समय यदि आप उसको गुलाब जामुन देंगे तो उसको पसंद आएगा या उस समय आप उसके हाथ को बैंडेज लगाएंगे तो उसको पसंद आएगा। स्वाभाविक है कि उस समय गुलाब जामुन के स्वाद का आस्वादन नहीं कर पाएंगे उस समय आवश्यक क्या है कि उसके कष्ट का निवारण हो। कलियुग के जीवों का जो कष्टों से पीड़ित हो चुके हैं श्रीचैतन्य महाप्रभु की उदारता ही जीवों को आकर्षित करती है। यहां पर चैतन्य महाप्रभु की अद्वितीय क्या है कि चैतन्य महाप्रभु की भक्ति करके वृंदावन की कृपा प्राप्त होती है विशेष रूप से जो नरोत्तम दास ठाकुर का भजन है
*गौरंगा दुति पद , जार धन सम्पदा , से जाने भक्ति- रस -सार , गौरांगेरा मधुरा-लीला जार करणे प्रवेसिला, हृदय निर्मल भेलो तार,गौरा -प्रेमा-नावे ,से तरंगे जेबा डूबे , से राधा -माधव -अन्तरंगा।*
( नरोत्तम दास ठाकुर )
उसमें पुन: बात बताते हैं और प्रेम में गौर भक्ति में अपने आप को डुबो देते हैं वह राधा माधव की अंतरंग सेवा प्राप्त करते हैं। भक्ति विनोद ठाकुर के शब्दों में कहा जाए वृंदावन के भक्तों में और नवदीप के भक्तों में उन्हें कभी भेद नहीं देखना चाहिए जब आपको नवदीप और वृंदावन के भक्त एक जैसे ही हैं यह समझ में आ जाएगा तो आपको ब्रज निवास प्राप्त होगा । हरि बोल ! और धाम में आपका जो मुख्य रूप प्रकट होगा और श्रीमती राधारानी का दासत्व प्राप्त होता है। एक बहुत सुंदर उदाहरण जो मैं सुन रहा था कल्पना कीजिए कोई हिंद महासागर के अंदर प्रवेश करता है स्नान करने के लिए और निकला तो क्या देखा कि वह प्रशांत महासागर में बाहर निकला। प्रवेश हुआ हिंद महासागर में और निकला है वह प्रशांत महासागर से , वैसे ही चैतन्य महाप्रभु के भी नाम में जब डूबते हैं तब आपको राधा कृष्ण की लीला में प्रवेश प्राप्त होता है हरि बोल !जितना अधिक आप चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन में सेवा करते हैं इसका मतलब क्या हुआ कि आप श्रीमती राधा रानी के चरणों में सेवा प्राप्त करते हैं और यह भी कहा जाता है कि चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन में जब तक आप चैतन्य महाप्रभु के भक्तों की सेवा नहीं करते तब तक आप को वृंदावन में प्रवेश नहीं मिल सकता। धर्म का आचरण कोई कर रहा है विष्णु की अर्चना कर रहा है तीर्थों में यात्रा कर रहा है और वेदों का भी पाठ कर रहा है जब तक गौर प्रिय चैतन्य महाप्रभु के भक्तों की सेवा नहीं की वेदों में भी जो दुर्लभ है, वृंदावन वह नहीं जा सकता है। धर्म का भी पालन करता है विष्णु की भी सेवा करता है तीर्थों में पर्यटन करता है और वेद में पारंगत हो जाता है परंतु वह बृज तत्व को तब तक नहीं समझ सकता जब तक गौर भक्तों का आश्रय नहीं लेता है। इस प्रकार से यहां पर चैतन्य महाप्रभु की अधिकता के विषय में कहा गया है।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
हरे कृष्ण !