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हरे कृष्ण! जप चर्चा पंढरपुर धाम 02 जुलाई 2021 गौरांग! 857 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद। जय अद्वैत चंद्र जय गौर भक्त वृंद।। तो कुछ दिन पहले मैं चैतन्य चरितामृत पढ़ रहा था। मध्य लीला 19 अध्याय या परिच्छेद बंगाली में कहते हैं। पूरा तो नहीं पढा कुछ अंश ही पढा मैंने। ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव । गुरु - कृष्ण - प्रसादे पाय भक्ति - लता - बीज ।। अनुवाद “ सारे जीव अपने - अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में घूम रहे । हैं । इनमें से कुछ उच्च ग्रह - मण्डलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह - मण्डलों को । ऐसे करोड़ों भटक र जीवों में से कोई एक अत्यन्त भाग्यशाली होता है , जिसे कृष्ण की कृपा से अधिकृत गुरु का सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है । कृष्ण तथा गुरु दोनों की कृपा से ऐसा व्यक्ति भक्ति रूपी लता के बीज को प्राप्त करता है । तो वहां वह पयार मैंने पढ़ा जिससे हम सभी परिचित हैं। हां परिचित हो कि नहीं युगावतार? ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव। सुनो, अभी तो कोई जप ही कर रहे हैं, कोई सो रहे हैं। जीव जागो जीव जागो हां अलका माताजी सुनो, यह जप चर्चा का समय है। तो ब्रह्मांड भ्रमिते इससे आप परिचित हो कि नहीं? यहां पर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु श्रील रूप गोस्वामी को प्रयागराज में दशाश्वमेध घाट पर 10 दिनों तक जो उपदेश किए, उसी के अंतर्गत यह वचन श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ही कहे। तो कहने वाले महाप्रभु है। अगर हम जान सकते हैं महाप्रभु को, तो फिर हम समझ जाएंगे उनके वचन, उनका उपदेशामृत भी कितना केवल मधुर ही नहीं महत्वपूर्ण भी होना चाहिए। जो उपदेश वे रूप गोस्वामी को सुना रहे हैं। तो साक्षात भगवान ही बोल रहे हैं। और फिर दूसरा एक संवाद कृष्ण अर्जुन का संवाद। वह तो भगवदगीता के रूप में प्रसिद्ध है ही। यहां कृष्ण है श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और अर्जुन के स्थान पर यहां श्री रूप गोस्वामी को उपदेश किया जा रहा है। वैसे चैतन्य चरितामृत के अंतर्गत यह उपदेश है। तो चैतन्य चरितामृत बड़ा उच्च अभ्यासक्रम भी है। पोस्ट ग्रेजुएशन सिलेबस है यह चैतन्य चरितामृत का अध्ययन। चैतन्य चरित्रामृत की शिक्षाएं। चैतन्य महाप्रभु कहे ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव। इस ब्रह्मड में भ्रमण करने वाले पुनरपि जनमम मरनम करने वाले जीव तो असंख्य है। उसमें से कुछ जीवो को भगवान भाग्यवान बनाते हैं। उनके भाग्य का उदय कराते हैं। क्या करके? ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव । गुरु - कृष्ण - प्रसादे पाय भक्ति - लता - बीज ।। उनको भगवान कैसे भाग्यवान बनाते हैं? उनको गुरु के पास पहुंचाते हैं। फिर शुरुआत में वह वर्त्म प्रदर्शक गुरु हो सकते हैं या शिक्षा गुरु हो सकते हैं। फिर वह अंततोगत्वा दीक्षा गुरु भी हो सकते हैं। तो इन गुरुओ के पास भेज कर वे जीव को भाग्यवान बनाते हैं। वैसे भाग्यवान बनाने वाले भगवान ही यहां कह रहे हैं। तो जब गुरु के पास पहुंचा कर उसे भाग्यवान बनाया। गुरु के पास पहुंचाया भाग्यवान बनाया और भी क्या होता है? वे गुरु भगवान की ओर से भक्ति लता का बीज देते हैं उस व्यक्ति को, उस जीवात्मा को, उस भाग्यवान जीव को। भाग्यवान जीव आजकल हम अभियान भी चला रहे हैं। भाग्यवान जीव आप भी बनाते हो, आप प्रचार करते हो आप औरों को प्रेरित करते हो। तो भगवान का एजेंट बनकर या भगवान की ओर से भगवान का प्रतिनिधित्व करके आप भी उन जीवों को भाग्यवान बनाते हो। भक्ति लता बीज देखा तो हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे वह भी भक्ति लता बीज का एक प्रकार हुआ कहो। यह भक्ति लता बीज है नाम बीज है। इतना तो हम पढ़े या सुने होते हैं यह वचन। लेकिन मैं जब पढ़ रहा था चैतन्य चरित्रामृत तो मेरा ध्यान उसके बाद वाला जो वचन श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कहे उससे अधिक आकृष्ट हुआ। या कुछ और अधिक समझ में आया, विचारोत्तेजक था। तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कहे माली हइया करह सिंचन। बीज रोपण ठीक है बीज तो प्राप्त हुआ या जीव भाग्यवान बन गया. उसको बीच प्राप्त हुआ। तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कह रहे हैं रूप गोस्वामी प्रभुपाद को कह रहे हैं की उस बीज प्राप्त किए हुए भाग्यवान जीव को माली हइया उसको माली बनना चाहिए, उसको किसान बनना चाहिए। और उस बीच का रोपण करना चाहिए। केवल उस बीज को संग्रहित ही नहीं करना है, उस बीज का रोपण करना है माली बनकर। और फिर वह माली बन गया, बीज का रोपण भी किया। और फिर चैतन्य महाप्रभु आगे कहे श्रवण कीर्तन जले करेन सिंचन। पहले तो कहे कि जीव भाग्यवान बनता है या भगवान ही बनाते हैं किसी जीव को भाग्यवान। उसे गुरुजनों के पास पहुंचाते हैं। गुरुजन देते हैं भक्ति लता बीज। बीज है तो उससे फिर आगे बहुत कुछ उत्पादन या निर्माण होता है बीज से। और फिर उस बीज प्राप्त हुए व्यक्ति को फिर माली की भूमिका निभानी चाहिए। किसान की भूमिका निभानी चाहिए। उस बीज का रोपण करना चाहिए। और फिर श्रवण कीर्तन जले करह सिंचन। हरि हरि। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु बता रहे हैं यहां जब व्यक्ति माली बना है, उसने रोपण भी किया, सिंचन भी कर रहा है। तो चैतन्य महाप्रभु बता रहे हैं सावधान माली। उसने जो बीज बोए थे, वह तो उगेंगे और उसके साथ साथ तुम्हारा जो सिचन है जो खाद्य या जल जो पिला रहे हो, खिला रहे हो उस बीज को। तो वह तो अंकुरित होगा, उगेगा। लेकिन साथ ही साथ और कई सारे बीज भी अंकुरित होंगे उगेंगे। कई घास उगेगा, कई कांग्रेस एक घास का प्रकार है उगेगा जिसको यहां कहां है अनर्थ। अनर्थ उत्पन्न होंगे। फिर उस माली के जो अनर्थ है, अन अर्थ अर्थहीन हैं, बेकार है, बेकार का घास है या और भी कुछ उग रहा है। तो माली बन कर उस माली को, किसान को वह जो घास है तृन है और जो फालतू चीजें उग रही है उसे उखाड़ के फेकना चाहिए। ताकि तुम्हारा जो श्रवण कीर्तन का जल है, खाद्य पानी है वह पुष्टि करेगा, तुम्हारे भक्ति लता बीच की पुष्टि करेगा। उसको बांटना नहीं पड़ेगा और बीजों के साथ और घास के साथ। तो फिर यह जो लता है वह उगती रहेगी। चैतन्य महाप्रभु कह रहे हैं माली को यह ज्ञान होना चाहिए। इस लता को हरियाली यहां तो नहीं कहे हैं चैतन्य महाप्रभु। किंतु एक होता है फसल या तो पौधे होते हैं। और लता कुछ और होती है फसल से कुछ भिन्न होती है लता। लता समझते हो? तो इस लता का थोड़ा अधिक ख्याल करना पड़ता है। यह बड़ी नाजुक भी होती है हो सकता है हवा के झोंके के साथ यह टूट सकता है। और इसको सदैव सहारे की आवश्यकता होती है। इसीलिए किसान इसीलिए किसान उसमें कोई डंडे गड्ढे बनाकर उसमें खड़े करते हैं। कुछ मंच बनाते हैं वहां लता को पहुंचाते हैं। उगती रहती है वहांऋ इस प्रकार यह लता होने के कारण उसका अधिक ख्याल करना होगा। संभालना होगा इस लता को। इस लता को भक्तिलता कहां है। भक्ति लता बीज इस बीज से लता उत्पन्न होने वाले हैं। और यहां ब्रह्मांड को भेंद करके इसको ब्रह्मांड के बाहर भी पहुंचाना है। ऊपर तक पहुंचेगी और रास्ते में यह ब्रह्माज्योति से आगे बढ़ना है। ऊंचा करना है। चढ़ना है स्वता को बैकुंठ धाम अगर आ गए तो वही है। उगती जाएगी यह भक्तिलता बीज। गोलोकधाम वगैरह आ गए तो वही है। और उगती जाएगी यह भक्तिलता। और गोलोक पहुंचेगी फिर श्रीकृष्ण चैतन्य कहो या श्रीकृष्ण उनके चरणों का आश्रय लेगी।और फिर प्रारंभ में जो इस बीज का आरोपण किया था। बोया था और फिर सिंचन भी हुआ। जो अनर्थ है उसका उन्मूलन भी हुआ। और फिर विशेष ध्यान भी दिया। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु यहां पर कहते है। हरि हरि, यह पूजा लाभ प्रतिष्ठा के विचार आ जाते हैं। यह बहुत बड़ा अनर्थ है। और कई अनर्थ तो है ही, लेकिन यह कुछ महाअनर्थ भी मन में उठ सकते हैं। मेरी पूजा हो। लाभ हो। मुझे और भी कुछ लाभ हो। प्रतिष्ठा, मैं प्रतिष्ठित हूं। मैं कुछ विशेष हूं। ऐसी मेरी मान्यता है। इस प्रकार के अनर्थ होते है। इनसे बचना है और अनर्थ तो है ही उसकी तुलना में यह पूजा लाभ प्रतिष्ठा का जो विचार है। ऐसा कपटी, अन्यथा विचार, ढोंग, दंभ दर्प अहम यह उसी के अंतर्गत होता है। अहम् ब्रह्मास्मि। माया का आखरी स्तर प्रभुपाद कहते हैं। अहम अहम अहम तो चलता ही रहता है। और फिर जीव ऐसे मायावादी होते हैं। और फिर भगवान को नहीं समझते है। मैं हीं भगवान हूं। अहम् ब्रह्मास्मि ब्रह्म मैं हूं। ब्रह्म में लीन होने का विचार यह बहुत बड़ा अहंकार है। अहंकार की कोई सीमा ही नहीं रही। इनसे बचना होगा। यह पूजा लाभ प्रतिष्ठा के जो विचार है। और बद्धजीव ऐसे अनर्थ से पीड़ित जो व्यक्ति हैं ऐसी कई सारी योजनाएं व्यवस्था ही बनाते रहता है। ताकि उसकी होगी पूजा, उसकी होगी प्रतिष्ठा, उसका होगा लाभ, उसको और कुछ लाभ हो अनर्थोसे बचते हुए देखना है। लता पहुंच जाती है भगवतधाम। भगवान के चरणों का आश्रय लेती हैं. भगवान का आश्रय लेती है। और फिर बीज का रोपन जो हुआ था, उसका अंततोगत्वा फल प्राप्त होगा। और वह फल है कृष्णप्रेम का फल। कृष्णप्रेम उदित होगा। या उसका माली उसका आस्वादन करना चाहेगा। और फिर इतना ही नहीं। अच्छा माली है तो, कितने सारे फल उसको मिलने वाले हैं। बहुत सारे फल। फिर वह उसे चख सकता है। चैतन्य महाप्रभु यहीं पर कही यह भी कहे हैं, मैं माली तो हूं ही. लेकिन मैं अकेला माली कितने सारे फल तोड़ सकता हूं। इस बगीचे में इतने सारे फल, मैं अकेला इकट्ठा कर सकता हूं। मुझे इसको बांटने वाले चाहिए। तो माली क्या करेगा वह औरों को देगा। या वह फल चख भी रहा है। यह एक आदर्श माली है। निस्वार्थ है। परोपकारी है। तो वहां औरों को बुला लेगा। आ जाओ पार्टी होगी। हम साथ में खाएंगे, चखेंगे,, आस्वादन होगा। और साथ ही में हम ही क्यों कोई और क्यों नहीं? और लोग क्यों नहीं सिर्फ 903 ही क्यों? केवल 903 स्थानों से ही जितने भक्त हैं वहीं आस्वादन कर रहे हैं, इस हरिनाम का। हरि कथा जप चर्चा का। बाकी क्यों नहीं और लोग क्यों नहीं? तो फिर वह याद करेंगे औरों को याद करेंगे। माली सोचेगा कि वह भी यहां पर होते फिर उनसे संपर्क करेगा। और उनके साथ की अपना फल शेयर करेगा यह माली। इस प्रकार यह माली के अलग-अलग भूमिका या सेवा का वर्णन हुआ। यहा चैतन्य महाप्रभु अपेक्षा कर रहे हैं। माली की बात मुझे अच्छी लगी। चैतन्य महाप्रभु ने माली हय्या वह तो हम सुनते ही रहते हैं। पढ़ते ही रहते हैं या मैं तो पढ़ते रहता हूं।ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव । गुरु - कृष्ण - प्रसादे पाय भक्ति - लता - बीज लेकिन फिर आगे कहां। आप माली है या माली बनो। हम माली बनके यह करो वह करो वह करो तो आप भी माली हो या आपको माली बनना है। या अच्छे माली बनो। तो और क्या क्या हमें तो कुछ संकेत भी चैतन्य महाप्रभु ने कुछ कहा है। आपको कुछ स्मरण दिलाया। एक तो माली बनना है। और माली बनके यह सारा करना है। आप क्या कहोगे या और क्या करना चाहिए। यह जो सारी बातें हैं इसको बढ़िया से। इस सेवा को माली होने की, जो जिम्मेदारी है, जिम्मेदार माली। माली मालियों में तो अंतर होता है। मैं अब जहां रहता हूं वहां पर पीछे कई सारे खेत हैं। अलग-अलग किसानों के अलग-अलग माली के कहो। एक में तो खेत में बढ़िया से फसल उगी है। एक में उसके नामोनिशान नहीं है। काफी सारा घास है। अनर्थ है। वही उग रहा है। कांग्रेस उग रहा है। कांग्रेस मतलब पार्टी नहीं एक घास को कांग्रेस कहते हैं। कांग्रेस नाम का एक घास। हर के खेत में माली के कम अधिक प्रयासों के कारण वहां फसल फल या अनाज भी है। वह भी कुछ कम अधिक उसका उत्पादन होता है। यह देखा जाता है. पता नहीं, अब माली कौन होता है या किसान क्या करता है, क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए कुछ कल्पना नहीं है। या तो शहर में आप जन्मे हो। बिगड़े लोग आप हो। खेत का नाम आपने सुना है। कोई होते हैं। किसान अपने सुना है लेकिन कुछ पता नहीं है। लेकिन यहां तो चैतन्य महाप्रभु आपको माली बनने के लिए कह रहे हैं। कल फिर आपको पता लगवाना होगा मालिक कौन होता है। क्या-क्या करता है। क्या करना चाहिए। तो आप कहो आप क्या क्या कर रहे हो? क्या सही कर रहे हो क्या गलत कर रहे हो या आपको पता भी चला है क्या? क्या करना चाहिए आपसे हम सुनना चाहते हैं। आप में से कोई माली आपको शायद पता भी ना हो। मुझे नहीं पता मैं माली था। या चैतन्य महाप्रभु मुझे किसान बनने के लिए रहे हैं। और फिर किसान है तो खेत भी कौन सा होना चाहिए, या फिर खेत को कैसे तैयार करना चाहिए। यह सब जानना होगा। बीज तो है लेकिन जब ग्रीष्म ऋतु होता है उस वक्त बीज को नहीं बोना होता है। बीज का रोपन करो और रोपीत करो। बीज का रोपन करो। लेकिन वह तो सुनते ही दौड़े पर खेत की ओर। उसने देखा नहीं कौन सा ऋतु चल रहा है। वर्षा हुई है कि नहीं है। या रोपन के पहले भी खेत में जमीन को तैयार करना होता है। उसको मशागत कहते हैं। उस पर हल चलाते हैं और क्या-क्या करते हैं। बीज बोने के पहले हमें खेत का क्षेत्र तैयार करना होता है। ठीक है. अभी आप बोलिए। आप में से कोई बोलिए। पदमामाली अभी आपको बोलना है। हरे कृष्ण।

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