*जप चर्चा,*
*पंढरपुर धाम से*
*23 अप्रैल 2021*

*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*

श्रवण संकीर्तन महोत्सव की जय! हर एकादशी पर कीर्तन मिनिस्ट्री महोत्सव का आयोजन करती है इस महोत्सव का नाम हैं श्रवण कीर्तन महोत्सव। हम इस दिन पर श्रवण और कीर्तन करते हैं। इस तिथि का चुनाव हुआ है ज्यादा से ज्यादा श्रवण और कीर्तन करने के लिए। भगवान को याद करना है श्रवण कीर्तन श्रवणोत्सव कीर्तनोत्सव के साथ। कीर्तन मिनस्ट्री की तरफ से अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित होते हैं। उसमें से मुख्य है कीर्तन। अलग-अलग कीर्तनकार कीर्तन करते हैं, हरे कृष्ण कीर्तन! दिन भर ज्यादा से ज्यादा कीर्तन करते हैं, मुलतः कीर्तन और भजन। एकादशी का दिन भजन करने का दिन है। भक्त कम भोजन करते हैं या फिर भोजन करते ही नहीं। काफी सारे भक्त है जो निर्जला एकादशी करते हैं। वह पानी भी नहीं पीते वह सिर्फ अमृत का पान करते हैं। पानी क्यों पिया जाए जब हरिनामामृत है! कम भोजन अन्न नहीं लेते और ज्यादा भजन। उस दिन वह भजनानंदी बनते हैं।

समाधिनाम काम बाद में हम कुछ अलग ढंग से बोलते हैं, हम बोलते हैं काम पहले और फिर समाधि बाद में। किंतु एकादशी के दिन हम इसका उल्टा कर सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा भजन कर सकते है, ध्यान कर सकते हैं। समाधि, यहां फिर समाधिस्थ बनने की कोशिश कर सकते हैं। तो यह दिन भजन का दिन है। हम भजनानंदी बन सकते हैं। हम ज्यादा से ज्यादा कीर्तन करते हैं, जप करते हैं। भक्तगण एकादशी के दिन अधिक संख्या में जप करते हैं। एकादशी के दिन अलग-अलग भक्तों के अलग-अलग प्रण होते हैं । हमें भी कुछ भक्त पता है। बहुत सारे भक्त 64 माला का जाप करते हैं। कुछ भक्त 32 माला का जाप करते हैं, तो कुछ 25 माला का जाप करते हैं। हमें यह देखना है कि हर एक भक्त एकादशी के दिन अधिक माला का जप करें।

कीर्तन मिनिस्ट्री के श्रवण कीर्तन महोत्सव के हिस्सा होने के नाते हमें कुछ अग्रणी भक्तों को बोलने के लिए बुलाते हैं। वह क्या बोलते हैं? किसके बारे में बोलते हैं? वह बोलते हैं हरिनाम की महिमा के बारे में! हम उन्हें प्रोत्साहित करते हैं, हरिनाम महिमा के बारे में ज्यादा से ज्यादा बोलने के लिए। उस पर ध्यान देने के लिए हरिनाम महात्म्य और गौरांग की कीर्तन लीला वही उनके प्रवचन का विषय होना चाहिए।और नाम महिमा उन्होंने भी जप किया है, हरिनाम महिमा या फिर ढूंढ सकते हो हमारे शास्त्रों में। *हर्रेनाम हर्रेनाम हर्रेनामेव केवलम् । कलौं नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ।।* यह भी हरिनाम की महिमा है। कुछ अग्रणी भक्त या फिर प्रवचन कर्ता हरिनाम का जप या कीर्तन करते है और फिर हम भी गंभीर हो जाते है। जब हम हरि नाम का महिमा सुनते हैं तो हम भी सब और महामंत्रका जप करने केेे लिए ज्यादा गंभीर हो जाते है।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरेेे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।

और फिर हम अधिक गंभीरता पूर्वक ध्यानपूर्वक हरिनाम जप करते हैं। मंत्र ध्यान करते हैं। यह महत्वपूर्ण हैै कि हम श्रवण करें हरिनाम महिमा का। जाहिर सी बात है की, हर एकादशी पर हम सब सभी कुछ नहीं करते है। अलग-अलग एकादशी पर हम अलग-अलग चीजें प्रस्तुत करते हैं। कुछ एकादशी पर हम साथ में जपा करते हैं, पूरे 7 दिनोंं के नहीं बस एक डेढ़ घंटे केे लिए। भक्त मंत्र ध्यान और कीर्ततन में अग्रणी हिस्सा लेतेे हैं और वह अपनी अलग-अलग तकनीक सिखाते हैं। वह एक नियम पुस्तिका प्रस्तुत करते हैं, कैसे जप करना चाहिए, कैसेेेे ध्यान पूर्वक जप करना चाहिए ऐसे कई सारी जप चर्चा होती है। और फिर हम हमारे प्रस्तुतकर्तााओं को भजन करने के लिए प्रोत्साहित करतेे हैं, जो इस श्रवण कीर्तन उत्सव का एक भाग है। तो वह भजन गाते है। वैष्णव भजन जो भक्तिविनोद ठाकुर के भजन है वे वह गातेे हैं। नरोत्तम दास ठाकुर के भजन गाते हैं। श्रील प्रभुपाद ने हमें बहुत सारेेेे वैष्णव भजन से अवगत कराया है। हम इस्कॉन में हम मूलतः कीर्तन और भजन करते हैं। हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन और वैष्णव भजन का गान करते हे। कुछ प्रस्तुत कर्ता है जो वैष्णव भजन गाते हैं और फिर हम उनको उसका अर्थ बताने केेे लिए भी कहते हैं। भजनों में भाव और भक्ति, तत्वज्ञान का वर्णन होता है। बहुत बार ऐसा होता है की, हम भजन गाते हैं लेकिन हमें पता नहीं होता कि हम क्या गा रहेे हैं। हम सिर्फ तोते के जैसे गाते हैं। हमेंं पता होना चाहिए कि हम क्या गा रहे हैं।

श्रील प्रभुपाद सिर्फ भजन गाते नहीं थे बल्कि उन्होंने कुछ भजनों का अर्थ लिखा है बोला है। हम भी ऐसेे ही कुछ तो कोशिश करते है। एकादशी केे दिन हम कोई एक भजन लेते हैं उसका अर्थ बताते है उसेेे गाते हैं। कीर्तन मिनिस्ट्री और एक कोशिश करती है कि, हम आपको कुछ टिप्स देते हैं कि कैसे भजनों का उच्चार किया जाए, मंत्र श्लोक का कैसे अच्छे से उच्चार किया जाए। हमें यह सब कुछ ठीक से नहीं आता है या फिर यह हमारी भाषा नहीं है। संस्कृत या फिर बंगाली यह हमारी मातृभाषा नहीं है। जाहिर सी बात है कि हमें हिंदी और मराठी भी पता ना हो क्योंकि हम भारतीय नहीं हैं। जिन की भाषा संस्कृत शब्दों से भरी हैं या फिर एक जैसे उच्चार हो संस्कृत तो, विशेषता वह प्रभुजी और माताजी जो विश्वभर से है उनको सीखने की जरूरत है। सही से उच्चारण करना सीखना चाहिए क्योंकि हम इसमें ठीक नहीं है। कीर्तन मिनिस्ट्री यह भी देखना चाहती है कि हम सभी संस्कृत बंगाली हिंदी शब्दों का सही से उच्चारण कर सके। मुझे लगता है शायद आज हमारो नित्यानंद प्रभु प्रस्तुतीकरण कर रहे हैं। आज वे कैसे सही से संस्कृत उच्चारण हो इसका प्रस्तुतीकरण कर रहे हैं।

आप सभी का फिर से एक बार मैं स्वागत करता हूं और धन्यवाद देता हूं कि आप इस कार्यक्रम से जुड़ गए हो। आज का प्रथम प्रस्तुत करता मैं हूं और आज मैं गाने जा रहा हूं, यशोमती – नन्दन , ब्रजवर नागर , और उसके बाद मैं हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करूंगा। वक्त की मर्यादा है, मैं इस भजन का अर्थ बताऊंगा यह भजन बहुत ही सरल है। यह भगवान के विविध नामों से भरा श्रीकृष्ण और बहुत सारे नाम जिनके पीछे का मतलब है उनकी लीला उनका बाकी भक्तों के साथ संबंध, वह वृंदावन के निवासी हैं। कृष्ण को लाखों करोड़ों नाम मिले हैं उसी में से कुछ नाम यहां पर है। इस भजन में भक्तिविनोद ठाकुर ने एक साथ लाए हैं। इसी तरह से नाम एकत्रित आए हैं। यशोमती नंदन आप समझ सकते हो। यह सभी नाम बहुत विशेष है। जैसे ही हम यह भजन गाने को शुरुआत करते हैं हम महसूस कर सकते हैं, यह समझ सकते हैं की, कृष्ण के अर्चविग्रह यहां उस नाम के पीछे का लीला या फिर कोई भक्त जो भगवान कृष्ण के संग आया है। तुरंत ही हम समझ पाते हैं

*यशोमती – नन्दन , ब्रजवर नागर , गोकुल -* *रञ्जन कान । गोपी – पराणधन , मदन – मनोहर* , *कालीय – दमन – विधान ।। अमल हरिनाम अमिय – विलासा ।* *नवीन नागरवर ।, वंशीवदन सुवासा ।। ब्रज – जन – पालन ,* *असुरकुल – नाशन , विपिन – पुरन्दर , नन्द -* *गोधन – रखवाला । गोविन्द , माधव , नवनीत -* *तस्कर , सुन्दर नन्दगोपाला ।। यामुन – तटचर ,* *गोपी – वसनहर , रास – रसिक कृपामय ।* *श्रीराधा – बल्लभ , वृन्दावन – नटवर ,* *भकतिविनोद आश्रय ।।*

अनुवाद – ब्रजके श्रेष्ठ नागर जो समस्त गोकुलवासियोंको आनन्द प्रदान करनेवाले , गोपियोंके प्राणधनस्वरूप साक्षात् मदन ( कामदेव ) के मनको भी हरण करनेवाले एवं कालीयनागका दमन करनेवाले हैं , उन श्रीयशोदानन्दनकी जय हो । उनका नाम अमल है अर्थात् चिन्मय है तथा अमृतके समान है और वे नवीन नागर ( श्रीकृष्ण ) विपिन ( द्वादशवनों एवं उपवनों ) के राजा हैं , उनके श्रीमुख ( अधरों ) पर वंशी सुशोभित हो रही है । ब्रजवासियोंका पालन एवं असुरोंका विनाश करनेवाले , नन्द महाराजकी गायोंकी रक्षा करनेवाले और माखनचुरानेवाले नन्दनन्दनकी जय हो । जिनके गोविन्द , माधव आदि अनेक नाम हैं , जो यमुनाके किनारे नाना प्रकारकी लीलाएँ करते हैं , गोपियोंके वस्त्रोंको हरण करनेवाले हैं तथा उनके साथ रास रचानेवाले हैं । भक्तिविनोद वृन्दावनके उस श्रेष्ठ नट श्रीराधाबल्लभजीके ( राधाजीके प्रणानाथ ) श्रीचरणोंमें आश्रय ग्रहण करता है ।

यशोमती नंदन कहते ही हमे तुरंत स्मरण होता है यशोदा मैया का, यशोदा मैया की जय! यशोमती नंदन, नंदन मतलब पुत्र यशोमती नंदन सचिनंदन नंदन! नंदन मतलब पुत्र आप लिख कर लो अब जब भी गाओगे देवकीनंदन कौशल्या नंदन,

यशोमती – नन्दन , ब्रजवर नागर वे वह है जो वृंदावन में रहते हैं। जो वृंदावन वासियों को अति प्रिय है।
गोकुल – रञ्जन कान इस भजन में जो शब्दों की श्रृखला है। उसने यह शब्द कान्हा सम्मिलित हुआ है जो इस पद को पूर्ण करता है। यहां पर कुछ बदलाव किए गए कान्हा का कान बन गया है।

गोकुल – रञ्जन कान मतलब वह कृष्णा जो पूरे गोकुल का मनोरंजन करते हैं।
गोकुल – रञ्जन कान ।
गोपी – पराणधन , मदन – मनोहर, कालीय – दमन – विधान।।

गोपी – पराणधन, पराणधन क्या है? यह शब्द इसमें आया प्राण क्या है? राधा कृष्ण प्राण मोर, इस भजन में पराण लिखा है। हम गाते हैं गोपी पराणधन कृष्ण गोपियों के प्राण है। और वह मदन मनोहर है और वह मनोहर मन को हरने वाले है। उन्होंने मदन का मन हर लिया है। मदन मतलब कामदेव काम के देवता कई सारे नाम है। उनको अनंग भी कहते हैं। अनंग इसलिए कहते हैं, अनंग मतलब जिनको शरीर नहीं है। उनका शरीर उन्होंने खो दिया है। शिवजी ने उनके शरीर को भस्म किया यह एक अलग लीला है। *कंदर्पकोटि कमनिय विशेष शोभम* मदन मनोहर है कालीय – दमन – विधान और वे कालिया का दमन करने वाले हैं। उन्होंने कालिया का वध नहीं किया दमन किया। इसीलिए इसे कालिया वध नहीं कहा जाता कालिया दमन कहते हैं। तो वह कालिया का दमन करने वाले है। उन्होंने कालिया का दमन किया कालिया के फनों पर वे नाच रहे थे। उसको डांट भरी और कहा कि यहां से निकल जा और कालिया ने वैसे ही किया। श्रील प्रभुपाद ने फिजी में कालिया का मंदिर स्थापित किया, उसमे नाग पत्नियां भी है और कृष्ण कालिया के फनों पर है।

अभी मुझे थोड़ी गति बढ़ानी होगी, क्योंकि मुझे गाना भी हैं, मुझे हरेकृष्ण महामंत्र को भी गाना है। अमल हरिनाम अमिय – विलासा । काश हम सभी अमल हरिनाम ले पाए या फिर और कही पर भक्तिविनोद ठाकुर ने लिखा है।*अपराध शुन्य हय कृष्णनाम* ना जाने कब मैं अपराध शुन्य नाम जप करूंगा! ना जाने कब अपराध विरहित जप करूंगा। वह शुद्ध नाम जप होगा वही बात यहां पर अमल हरिनाम। अमल मतलब धूली! अपराधों की धुली उस धूली से मुक्त होकर अगर मैं जप करूंगा तो अमिया विलासा तभी मैं सुखी हो जाऊंगा। मैं आत्माराम बनूंगा। मेरी आत्मा स्वयं समाधानी बनेगी। अगर मैं अमल हरिनाम करूंगा विपिन – पुरन्दर विपिन मतलब वन वह सच में वन के ईश्वर है फिर कोई सखी आती है और कहती हैं, नहीं नहीं! राधारानी वृंदावनेश्वरी है। राधा वृंदावन की ईश्वरी है, कृष्ण तुम नहीं हो। उसके बाद उनका युद्ध शुरू होता है। सारे गोप और गोपियां झगड़ा करने लगते हैं। वृंदावन के ईश्वर कौन हैं? कृष्ण है कि राधा है?

विपिन – पुरन्दर कृष्णा सभी के ईश्वर है। हम भी समझ सकते हैं कि कृष्ण 7 वन के ईश्वर है बाकी 5 वन के के बलराम ईश्वर है।
यह सब उनके पिता की संपत्ति हैं, नंद महाराज की संपत्ति। *आराध्य भगवान ब्रजेश तनय* नंद महाराज ब्रज के ईश हैं, नंद महाराज वृंदावन के स्वामी है मालिक है, वे और एक ईश्वर है। और उनके पुत्र उसका विभाजन कर रहे है। ठीक है यह वन कृष्ण का है और यह वन मेरे लिए हैं यह बलराम जी कह रहे हैं और एक ब्रज के ईश्वर। *नवीन नगरवर* कृष्ण ब्रज के नायक है, वे सर्वोत्तम है। उनके सौंदर्य में सदा अति नवीनता रहती है

*आद्यं पुराणपुरुषं नवयौवनंच*
*वंशी वदन सुवास*। सिर्फ एक नाम और हम बहुत कुछ उसके ऊपर बोल सकते हैं, बहुत कुछ हमें याद भी दिलाता है। कृष्ण वंशी धारी है और उनके पास कितने तरह के वंशी हैं? वे बंसी बजाने वाले हैं और वहां पर असीमित महिमा है उस वंशी की, उन वंशी बजाने वाले की असीमित महिमा है। वंशी वदन वह वही है जो वह है। और सुवास! सु का मतलब है अच्छा और वास मतलब संस्कृत भाषा में वास के अनेक मतलब है इसलिए संस्कृत बहुत सुंदर भाषा है। वहां पर एक ही शब्द के अलग-अलग मतलब है। वास का एक और मतलब है रहने का स्थान भी होता है निवास। और यहां पर वास का मतलब *वासांसि जीर्णानि यथा विहाय* कृष्ण ने यहां पर कहा वास का मतलब कपड़े हैं। तो सुवास मतलब ऐसे भगवान जिन्होंने अच्छी तरह से कपड़े धारण किए हैं। और भक्तिरसामृतसिंधु मैं इसका वर्णन आता है कि, कैसे भगवान पुरी बारीकी से कपड़े धारण करते हैं। हमें भगवान का श्रृंगार करने में बहुत समय बिताना चाहिए। तो सुवास यह सिर्फ एक शब्द है और उसी से हम बहुत कुछ बात कर सकते हैं और याद कर सकते है।

*ब्रज-जन-पालन, असूर-कुल-नाशन*,
*नन्द-गोधन-रखवाला।*
तो यह वैसा ही है जैसे
*परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |*
*धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || 8||*

तो भगवदगीता से यह बात है या यहां पर हम देख रहे हैं इस भजन में कि *ब्रज-जन-पालन* कृष्ण ब्रज वासियों के संरक्षक है, रक्षक है, तो यह हुआ *परित्राणाय साधुनां*। और *असुर-कुल-नाशन* और *विनाशायच दुष्कृताम्* वे असुरो को मारने वाले और उनका विनाश करने वाले हैं। आसुरी शक्तियां और आसुरी मानसिकता का विनाश करने वाले हैं। *नंद गोधन रखवाला* सबसे पहले गाये संपत्ति है धन है। किन की संपत्ति है यह? नंद गोधन गाये नंद महाराज की संपत्ति है धन है। और रखवाला नंद महाराज के गायों का ध्यान रखने वाले उनका रक्षण करने वाले कृष्ण है नंद गोधन रखवाला। यह वही एक कृष्ण का नाम है गायों की देखभाल करने वाले, गायों का पालन करने वाले गोपाल। हरि हरि। और गायों की देखभाल करना उनका पालन करना यह धर्म है। *धर्मसंस्थापनार्थाय* मैं धर्म की स्थापना करने के लिए अवतरित हुआ हूं, तो गायों का पालन करना यह भी एक धर्म है। भगवान ने भी यशोदा से यही कहा तुम मेरे लिए इतना चिंतित क्यों होती हो? ओ मुझे जूते पहनने चाहिए, मुझे छाता लेना चाहिए, चिंता मत करो! आओ हम सब मिलकर गायों का पालन करते हैं और वही धर्म है! वही हमारा कर्तव्य है! या हम उस तरह के कर्तव्य का पालन करते हैं। हम गायों की देखभाल करने के उस धर्म का पालन करते हैं फिर *धर्मो रक्षति रक्षतः* तब धर्म हमारी रक्षा करेगा। हमें हमारी रक्षा करने के लिए अलग से कुछ प्रयास करने की जरूरत नहीं है। तो ऐसे कृष्ण तर्क वितर्क बहस कर रहे थे। यह बहस तर्क वितर्क वे यशोदा मैया के साथ कर रहे थे।
*गोविन्द माधव, नवनीत-तस्कर,*

*सुन्दर नन्द-गोपाला॥3॥*
गोविन्द माधव बस तीन अक्षर और इन में बहुत कुछ कहा है, गोविन्द गोविन्द गोविन्द गोविन्द। कृष्ण के सभी नामों में से गोविन्द एक सुंदर नाम है। फिर हमें स्मरण होता है कि इंद्र ही है जिन्होंने कृष्ण को गोविन्द नाम दिया है। फिर गो का मतलब है गाय, गो का मतलब है भूमि, गो का मतलब है इंद्रिया। इसका मतलब है की कृष्ण गायों को आनंद देते हैं, भूमि को आनंद प्रदान करते हैं, इंद्रियों को आनंद प्रदान करते हैं इस तरह के अर्थ है गोविन्द नाम के। माधव यह कृष्ण के सुंदर नाम उनमें से एक नाम है राधा माधव। मा का अर्थ है लक्ष्मी, ध का अर्थ है पति जो लक्ष्मी के पति है। यहां पर तो इसका अर्थ है महालक्ष्मी के जो पति है। वह राधा है राधा महालक्ष्मी है। धव का अर्थ है पति, जब किसी स्त्री का पति नहीं होता है तब उसे विधवा कहा जाता है पति के बिना। और पति के साथ जो स्त्री होती है उसे साधवा कहते है।

माधव ध का अर्थ है पति और मा का अर्थ है लक्ष्मी कृष्ण लक्ष्मी के पति है। और वे लक्ष्मी नारायण के रूप में भी है और सीताराम कृष्ण राम है वहां पर और राधा रानी सीता के रूप में है और कृष्ण नारायण बन जाते हैं और राधा लक्ष्मी बन जाती हैं तो वह माधव है। *नवनीत- तस्कर* कृष्ण चोर है। क्या? भगवान और चोर? यह कैसे संभव है? हां कृष्ण चोर के नाम से जाने जाते हैं। परंतु नवनीत- तस्कर है। वे माखन चोर के नाम से जाने जाते हैं। हरि हरि। तो ऐसे मधुर है कृष्ण, माखन से भी ज्यादा मीठे मधुर है। उनको माखन बहुत अच्छा लगता है *मैया मोहे माखन भावे* कृष्ण जोर-जोर से रोने लगते हैं मुझे माखन बहुत पसंद है। मेवा पकवान आप हमेशा मुझे खिलाते रहते हैं पूरी, हलवा, पकोड़ा, 56 भोग पर आपको पता है मुझे यह माखन बहुत अच्छा लगता है। तो ऐसे माखन चोर की महिमा असीमित है। तो एक शब्द नवनीत-तस्कर और वही कृष्ण का एक नाम बन गया। और हम उस समुद्र में डूब गए हैं जो सभी इससे संबंधित है नवनीत तस्कर नवनीत माखन है। *सुंदर नंद गोपाला* और भगवान के सौंदर्य के बारे में क्या कहे! भगवान के जो षडऐश्वर्य हैं उसमें से एक है सौंदर्य। प्रेम माधुर्य, रूप माधुर्य, लीला माधुर्य, वेणु माधुर्य कृष्ण इन चार माधुर्य के लिए जाने जाते हैं। उसमें से एक है रूप माधुर्य अद्भुत रूप, अतुलनीय रूप, अतुलनीय सौंदर्य। सौंदर्य में कोई भी उनके पास नहीं आता। भगवान राम भी नहीं बस कृष्ण और कृष्ण अकेले ही है। केवल कृष्ण सुंदर है, जब सुंदरता की बात आती है *मत्तः परतरम न अन्यत*। नंद गोपाल वे गोपाल है, गायों का पालन करने वाले, किन की गाये? नंद महाराज कि गाये। गो का मतलब है गाय और पाल का मतलब है पालन करने वाले। फिर से हमें इन बातों को विस्तार से और गहरे अर्थ के साथ समझने का प्रयास करना चाहिए गो गाय, पाल पालन करने वाले गोपाल। ठीक है हम आगे बढ़ते हैं तेजी से आगे बढ़ना मुश्किल है।

*यामुना-तट-चर, गोपी-वसन-हर*
*रास-रसिक, कृपामय।*

तो *यमुना-तट-चर* यमुना के तट पर चर-विचर कृष्ण हमेशा भ्रमण करते रहते हैं और *गोपी-वसन-हर* कभी-कभी कृष्ण यमुना के तट पर गोपियों के वस्त्र चोरी करते है। मार्गशीष मास मे पूर्णिमा के दिन उन्होंने गोपियों के वस्त्र चोरी किए थे। कार्तिक मास के बाद मार्गशीष मास प्रारंभ होता है, पूर्णिमा के दिन गोपियों के वस्त्र कृष्ण द्वारा चुराए गए थे। गोपी-वसन मतलब गोपियों के वस्त्र और हर मतलब चुराना। *रास- रसिक* कृष्ण रास का आनंद लेने वाले हैं। जब कहीं बहुत रस होता है तो उसे रास कहते हैं। बहुत सारे रस और मुख्य रूप से माधुर्य रस गोपियों के और राधा रानी के संबंध में है। और पूरे रस में वह नृत्य करने लगते हैं, गाते हैं। कृष्ण रसिक है रस का आनंद लेने वाले रसिक! कृपामय मय का मतलब पूर्ण रूप से, आनंद मय, प्रेममय, कृपामय वह पूर्ण रुप से कृपा और दया से भरे हुए हैं। हम सभी जीवो के प्रति दयालु हैं।

*श्रीराधा-वल्लभ, वृन्दावन-नटवर*,
*भकतिविनोद आश्रय॥4॥*

तो *श्रीराधा-वल्लभ* मतलब राधा के पति राधा बल्लभ गोपी वल्लभ और *वृन्दावन-नटवर* नट का अर्थ है अभिनेता और वर का मतलब है सर्वोत्तम सर्वश्रेष्ठ अभिनेता। बहुत सारे कार्य भगवान कृष्ण ने किए हैं तो वह अभिनेता है, सभी अभिनेताओं में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता। हर कदम चलना जैसे एक नृत्य है वे उस प्रकार के अभिनेता है, उनका चलना जैसे एक नृत्य की तरह है। *भकतिविनोद आश्रय* श्रील भक्ति विनोद ठाकुर आश्रय लेना चाहते हैं उन कृष्ण का, यशोमती नंदन का, गोकुलरंजन कान का और उन ब्रजजन पालन का उन गोविन्द माधव का आश्रय लेना चाहते हैं। ठीक है। अब में यह पे रूक जाता हूं। हरे कृष्ण!