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हरे कृष्ण,
जप चर्चा,
29 जनवरी 2021,
पंढरपुर धाम.
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
775 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। दशावतार हरे कृष्ण, रघुवीर मॉरिशियस से और सभी भक्त आप सबको देख कर प्रसन्नता हुई। प्रभुपाद भी आप सब से बहुत प्रसन्न हैं। आचार्य भी आपसे प्रसन्न हैं। जब भी देखते हैं कि आप सब जप कर रहे हो।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
यह मैं भी देखता हूं और श्रील प्रभुपाद भी देख रहे हैं और हमारी परंपरा गौड़िय वैष्णव परंपरा के आचार्य देखते हैं। गौड़िय वैष्णव परंपरा की जय! और फिर भगवान तो देखते ही रहते हैं। भगवान तो साक्षी हैं हमारे हर कर्म के। वह सभी प्रसन्न हो जाते हैं जब हम सब जप करते हैं। कीर्तन करते हैं। कलयुग में इस प्रकार जब हम धार्मिक बन जाते हैं, धर्म के नियम या धर्म के विधि का हम पालन करते हैं भली-भांति समझते हैं की, कलिकालेर धर्म हरिनाम संकीर्तन कलयुग का धर्म है हरिनाम संकीर्तन। यह सब समझ कर जब हम जप करते हैं, कीर्तन करते हैं तो हमसे सब प्रसन्न हो जाते हैं। गुरु गौरांग जयते गुरु और गौरांग प्रसन्न हो जाते हैं।
हम कुछ दिनों से श्रील प्रभुपाद का हरे कृष्ण महामंत्र के ऊपर लिखा हुआ, कहां हुआ या फिर रिकॉर्ड किया हुआ वचन है, उसको सुन रहे हैं और फिर उसको सुनकर समझने का भी हमारा प्रयास चल रहा है।
श्रील प्रभुपाद ने आगे कहा है, भगवान की यह जो प्रकृति है, प्राकृत शक्ति है, भौतिक शक्ति जिसको हम माया कहते हैं। श्रील पभुपाद यह कहते हैं कि हम भी एक शक्ति हैं। यहां आत्मा का संबोधन होता है, आत्मा का उल्लेख होता है। आत्मा भी एक शक्ति है, आत्मा भी एक भगवान की शक्ति है। यह माया भी एक भगवान की शक्ति है। यह प्रकृति यह सारा संसार भगवान की प्रकृति है, शक्ति है। हम तो जीव हैं हम भी भगवान की एक शक्ति हैं। प्रकृति कहो या उसको माया कहा है (भौतिक शक्ति को), जीव को तटस्थ शक्ति कहा है। उसका उल्लेख यहां पर प्रभुपाद ने नहीं किया है किंतु कई स्थानों पर उल्लेख जीव है। भगवान की तटस्थ शक्ति तो एक है माया शक्ति और दूसरी है तटस्थ शक्ति। तटस्थ शक्ति हम हैं। संसार के जितने भी सारे जीव हैं, कहीं पर भी हो, किसी भी देश या किसी लोक में हो, स्वर्ग में हो या तलाताल में हो या सुतल में हो, या महातल में हो, या वितल में हो इतने सात लोक नीचेे हैं। अधः गच्छंति भगवान नेे कहा नीचे जाते हैं वह जीव जो पापी होते हैं और ऊपर जाते हैं ऊर्ध्व गच्छंति ऊपर जाते हैं। अधः गच्छंति नीचे जाते हैं, समझ रहे हो? अध: नीचे उर्ध्व ऊपर, ऊपर सात लोक हैं। स्वर्गलोक, जनलोक, तपलोक, सत्यलोक, ब्रह्मा का लोक ऐसे अलग-अलग सात ऊपर सात नीचे लोक हैब।
नाम बिना किछु नाहिक आर, चौदाभुवन-माझे भक्तिविनोद ठाकुर ने कहा है इन चौदह भुवनो में सात ऊपर सात नीचे हैं। हम बीच में पृथ्वी लोक पर जो मध्य में है इन सारे चौदह भुवनों में कई सारे जीव से भरे पड़े हैं। शास्त्रज्ञ को पता नहीं है, शास्त्रज्ञ तो अंधे हैं, उनका प्रयास चल रहा है, टेलिस्कोप और क्या-क्या सब यंत्रों की मदद से। लेकिन भगवान ने यह देखना आसान किया है शास्त्र चक्षुषा शास्त्र का चश्मा पहनो भाइयों और देखो बहुत कुछ दिखाई देगा। जो इन अंधे जीवों को या बध्द जीवों को, संशयात्मा विनश्यति संशय करने वाले जो जीवात्मा हैं या लोग हैं, उनको नहीं दिखाई देता है। लेकिन जो शास्त्र चक्षुषा हैं उनको समझ में आएगा कि चौदह भुवन हैं और कई सारे जीवों से वह भरे पड़े हैं और तटस्थ है बस इतना ही समझ लेते हैं।
श्रील प्रभुपाद ने आगे कहा है यह जो भौतिक जगत है, जो पंचमहाभूतों से बना हुआ है, इन पंचमहाभूतों से भी श्रेष्ठ यह तटस्थ शक्ति है । भगवान का जो जीव है, जीवभूत है, जीवात्मा जिसे भगवान ने गीता में जीवभूत कहा है ।
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च । अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ।।
(Bg 7.4)
अनुवादः पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश मन बुद्धि और अहंकार यह आठ मेरे भिन्न प्राकृतिक शक्ति हैं।
आत्मा जो चेतन है वह जड़ प्रकृति से श्रेष्ठ है, श्रील प्रभुपाद ने कहा है, जो सत्य है। भगवान की एक परा प्रकृति है एक अपरा प्रकृति है। माया जो पंचमहाभूतो की बनी हुई है या त्रिगुणमयी माया यह अपरा प्रकृति है' शक्ति है' और जीवभूत जीवात्मा जो है यहां परा प्रकृति है श्रेष्ठ शक्ति है। भगवतगीता में इसका आधार क्या है? भगवत गीता सातवां अध्याय श्लोक चौथा और पाँचवा। श्रील पभुपाद कई बार या बारंबार उनको मिलने के लिए आए लोगों को संबोधित करते हैं प्रभुपाद तो कोई सिद्धांत की बात या तत्व की बात समझाते समय कहते हैं, वह श्लोक को ढूंढो। फिर सचिव वह श्लोक ढूंढ लेते हैं और प्रभुपाद कहते हैं, पढ़कर सुनाओ हम भी और फिर प्रभुपाद ने कहा जीवात्मा यह तटस्थ शक्ति यहां पर है।
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च । अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ।।
अष्टधा इसको जरा पढ़ो समझो। अष्टधा मतलब यह जो आठ प्रकार के मेरी प्रकृति है। इसको भिन्ना प्रकृतिरष्टधा, 8 प्रकार की मेरी भिन्न प्रकृति है। माया शक्ति है। पंचमहाभूत है, पृथ्वी आप तेज वायु आकाश और मन बुद्धि अहंकार यह सुक्ष्म तत्व है। यहांं बहिरंगा भी हुई और माया शक्ति भी हुई भिन्न प्रकृति भी हुई, आगेेे पांचवे श्लोक मे भगवान कहेंगे श्रीभगवानुवााचच तो चल ही रहा है।
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् । जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥
अनुवाद: महाबाहु अर्जुन इसके अलावा मेरी और एक श्रेष्ठ ऐसी परा प्रकृति है। जिसमें जीव आते हैं, यह जीव कनिष्ठ भौतिक प्रकृति चीजों का उपभोग लेते हैं।
चौथे श्लोक में जिस प्रकृति का उल्लेख किया है, उसे भिन्ना प्रकृति कहा गया। अष्टधा आठ प्रकार की प्रकृति कहें या फिर आठ प्रकार है माया या भौतिक प्रकृति कहा है।
इसको अपरेयमि यह प्रकृति है अपरा , किंतु का उपयोग किया है भगवान ने। किंतु इसके अलावा यह जो भिन्नात प्रकृति है, यह माया प्रकृति है। यह अपरा है परा नहीं है। इसके अलावा इतः अन्यात दूसरी एक मेरी प्रकृति है। अन्यातप्रकृतिं विद्धि मे पराम् और दूसरी एक मेरी प्रकृति है वह कैसी है पराम् अष्टधा यह जो आठ सूक्ष्म तत्व मिलके जो माया प्रकृति है, भौतिक प्रकृति है यह अपरा है। इसके अलावा जो प्रकृति है वह परा प्रकृति है। जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥ यह जीवभूतां जीव भगवान की दूसरी प्रकृति है। जिसको हम कहते हैं, परा जीव परा है और भौतिक प्रकृति अपरा है। ऐसा भगवान ने कहा है, यह शास्त्र है यही सत्य है। इसी के साथ हम थोड़े ज्ञानवान हो जाते हैं। इसी के साथ क्या होता है,
ओम अज्ञान तिमिरंधास्य ज्ञानांनजन शलाकायचक्षुरन्मिलितन्मेन तस्मैश्रीगुरुवे नमः
हमारी आंखों में ज्ञान का अंजन भगवान ही डाल रहे हैं। कृष्णम वंदे जगतगुरु आदिगुरु तो भगवान ही हैं या फिर बलराम है आदिगुरु तो बलराम भी कृष्ण ही हैं, हमको सिखा रहे हैं, हमको समझा रहे हैं। हम जीवों की खोपड़ी में कुछ प्रकाश डाल रहे हैं। भगवान एक तो तुम समझ लो हे बेटा, हे पुत्र तुम हो कौन तुम हो जीव और दूसरी मेरी प्रकृति अष्टधा भिन्न प्रकृति माया प्रकृति, माया कनिष्ठ है और तुम श्रेष्ठ हो। तुम परा प्रकृति हो। स्वयं को खोजो। इस प्रकार हम स्वयं को खोज सकते हैं, मैं कौन हूं? भगवान समझा रहे हैं। श्रील पभुपाद यहां कह रहे हैं, यह जो जीवात्मा है, है तो परा प्रकृति लेकिन वो अपरा प्रकृति के चंगुल में फंस जाता है। माया से प्रभावित होता है, यह जीव तटस्थ शक्ति और यही तो हाल है। ऐसा स्वभाव है जीव का तटस्थ, बीच में है या तो माया से प्रभावित होता है, मतलब भगवान की बहिरंगा शक्ति से प्रभावित होता है या फिर भगवान की अंतरंगा शक्ति से प्रभावित होता है। जब वह बहिरंगा शक्ति से प्रभावित होता है या फिर बहिरंगा शक्ति के संग में आ जाता है,
तो वहां मेल न खाने वाली परिस्थिति है। श्रील प्रभुपाद कह रहे हैं फिर वह मेल नहीं खाता है। उनका जमता नहीं दोनों का उसमें बिगाड़ हो जाता है, परेशान हो जाता है जीव। जब इस माया शक्ति से प्रभावित होता है जीव और प्रभावित होकर यह सारे कार्य कलाप करता है। प्रभावित होना चाहिए भगवान की अंतरंगा शक्ति से, अंतरंगा शक्ति यह दिव्य शक्ति है, अलौकिक शक्ति है। यह जीव भी है अलौकिक जीव भी है, दिव्य जीव भी है। जीव भगवान की अंतरंगा शक्ति के संपर्क में आ जाता है। अंतरंगा शक्ति चलायमान करती है, प्रभावित करती है तो वह मेल खाने वाली परिस्थिति बन जाती है, मेल बैठता है। शादी के वक्त भी यह मेल देखा जाता है, कुंडली बनाई जाती है। नहीं नहीं यह मेल नहीं खाता है। यह जब दूल्हा-दुल्हन बनेंगे तो इनमें कोई मेल नहीं रहेगा। वैवाहिक जीवन में कठिनाइयां रहेगी, मेल रहना मेल नहीं रहना तो इस संसार में अनुभव होता ही है। वैसा ही अनुभव जीवात्मा और भगवान की इन दो प्रकृति बहिरंगा प्रकृति और अंतरंगा प्रकृति के साथ होता है। बहिरंगा प्रकृति के संग में या प्रभाव में लोग दुखाःलयम अशाश्वतम कहो। दुख ही दुख भोगता है। फिर आदि भौतिक आदि आध्यात्मिक आदिदैविक जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम् ॥
यह सारा बहिरंगा शक्ति के संग में आने से इसके चंगुल में फंसने से उससे प्रभावित होकर कार्यकलाप करने से, सलाह तो यह दी जा रही है कि, हमें अंतरंगा शक्ति के प्रभाव में रहना चाहिए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
ठीक है, इसका आश्रय लिया हमने। नामाश्रय कोरी जतन तुम्ही ताकह आपन काजे
नाम का आश्रय लो, भगवान के नाम की शरण में जाओ, मामेकं शरणम व्रज। तो भगवान ने कहा ही है ऐसा जब जीव करता है तो फिर अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः भगवान उस जीव को मुक्त करते हैं। बहिरंगा शक्ति है या बहिरंगा शक्ति बन जाती है व्यक्ति तो वह है दुर्गा छायेव यस्य भुवनानि विभर्ति दूर्गा कहा है। छाया एव छाया है, माया है छाया ।
हरि हरि। यह छाया किसकी है कृष्ण की छाया है या राधा की छाया है, राधा कृष्ण की छाया है। यह माया ओरिजिनल तो राधा रानी है जो अंतरंगा शक्ति का अल्हादिनी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। अल्हदिनी शक्ति बन जाती है व्यक्ति परसोनिफिकेशन या एंबोडीमेंट (अवतार) जब होता है तो वह है राधा रानी और दूसरी है दुर्गा। दुर्गा सेेेे प्रभावित होकर और दुर्गा के पास त्रिशूल है विनाशायच दुष्कृतम फिर दृष्टों का संहार होता है उनकी पिटाई होती है इस जगत मे वे दंडित किए जाते हैं, यह सारा संसार कारागार तो हैै ही। दूसरा आश्रय है
महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः । भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्।।
(श्रीमद भगवद्गीता 9.13)
अनुवाद: हे पार्थ! मोहमुक्त महात्माजन दैवी प्रकृति के संरक्षण में रहते हैं | वे पूर्णतः भक्ति में निमग्न रहते हैं क्योंकि वे मुझे आदि तथा अविनाशी भगवान् के रूप में जानते हैं |
महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिता: भगवान नेेेे सलाह दी है हे जीव, क्या करो मेरी दैवी प्रकृति का आश्रय लो वह दैवी प्रकृति है राधा रानी। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। का जब हम ध्यान पूर्वक जप करते हैं, राधा रानी का आश्रय चाहते हैं, राधा रानी को पुकारते हैं और आश्रय की मांग करते हैं। मुझे आश्रय दे दो सेवा योग्यम कुरु मुझे सेवा के योग्य बना दो, हे राधा रानी मया सह रमस्व मेरे साथ रहो इत्यादि इत्यादि प्रार्थनाए हम करते हैं। जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं उच्चारण करते हैं तो हम राधा को पुकारते हैं। या श्रील प्रभुपाद समझाते थे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहते वक्त हम लोग हे राधे हे कृष्ण हमको आश्रय दो, उसको भी श्रील प्रभुपाद समझाया करते थे। एक तरफ बहिरंगा शक्ति का प्रभाव, बहिरंगा शक्ति हैंडल करती है जीव को और फिर जब जीव को अन्तरंगा शक्ति का आश्रय मिल जाता है तो फिर स्थिति कुछ अलग है। आनंद ही आनंद है वही जीवन है। प्रान्नत्ती, पुन्नत्ती, शुबन्नति मंगलमय जीवन विश्वम पूर्णम सुखायते फिर सुख ही सुख है तो माया के चंगुल में फंसे हुए या माया से प्रभावित जीव की स्थिति श्रील प्रभुपाद एक उदाहरण के साथ बताया करते थे। जैसे बिल्ली के मुंह में चूहा, बिल्ली ने चूहे को पकड़ लिया। कभी देखा है आपने... तो उस चूहे की जैसी स्थिति या हाल होता है चिल्लाता है बेचारा लेकिन चंगुल से छूट नहीं सकता। भली-भांति पकड़ा हुआ है बिल्ली ने तो यह स्थिति है और फिर वही बिल्ली अपने बच्चे को (किटेन ) को वह जब छोटा होता है तो असहाय होता है एक स्थान से दूसरे स्थान चल कर भी नहीं जा सकता। कभी ऊपर की मंजिल पर जाना है तो छोटा बिल्ली का बच्चा क्या करता है म्याव म्याव... बस। मतलब मम्मी को पुकारता है मदद करो मदद करो तो मम्मी बिल्ली आ जाती है और उसको पकड़ लेती है या हो सकता है गले में पकड़ती है और उसको एक स्थान से दूसरे स्थान या एक मंजिल से दूसरी मंजिल पहुंचाती है। उस समय जो बिल्ली का बच्चा है वह आराम से रहता है वहां से कुछ छूटने का या उस चंगुल से बचने का प्रयास बिल्कुल भी नहीं करता है वहां प्रसन्न रहता है। तो एक ही बिल्ली, जैसे हम चर्चा कर रहे हैं.. बहिरंगा शक्ति का प्रभाव डालती है चूहे के ऊपर और अपने बच्चे के ऊपर वह अंतरंगा शक्ति जैसा कार्य करती है उसका आदान-प्रदान होता है। जैसे अंतरंगा शक्ति का जो आश्रित जीव है, भक्त है, जो शरणागत है और भगवान शरणागत वत्सल है भगवान शरण देते हैं। श्रील प्रभुपाद ने आगे लिखा है जो तटस्थ शक्ति हैं (जीव ) वह जब अंतरगा शक्ति के संपर्क में आ जाती है उस अंतरंगा शक्ति को हरा कहते हैं और हरा से ही फिर होता है हरे और यही है राधा। फिर तटस्था शक्ति जो जीव है जीवभूत महाबाहो वे प्रसन्न हो जाते हैं। प्रभुपाद कह रहे हैं आगे जीव के लिए सामान्य बात है सुखी होना प्रसन्न होना और दुखी होना यह असामान्य बात है। तो नॉर्मल हो जाओ सुखी हो जाओ ऐसा ही संदेश ऐसा ही एक उपदेश ऐसी इच्छा भी भगवान की ही इच्छा है की, सभी जीव सुखी हो। सर्वे सुखिनो भवंतु, सर्वे संतु निरामयाः। सर्वानि भद्राणि पश्यन्तु , न क्वचित दुखः भाग भवेत तो केवल सर्वे सुखीनः भवंतु ऐसी प्रार्थना ही नहीं है। उसके साथ भगवान बता रहे हैं श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु ने बताया और वही बात गौड़िय वैष्णव आचार्य परंपरा में बता रहे हैं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
महामंत्र का जाप करो और सुखी बनिये। हम सुखी बनेंगे जब हम जप करेंगे। जब कीर्तन करेंगे तो खुश रहेंगे सुखी बनेंगे और इसको सहजता कहा है।
हरि हरि, ठीक है फिर मैंने सोचा था की, यह पूरा करेंगे लेकिन पूरा हुआ नहीं। कुछ पंक्तियां बची हैं उसको अगले सत्र में सुनाएंगे। तब तक के लिए क्या होगा? आराम, आराम हराम है। मायावी ढंग का आराम हराम है। लेकिन अध्यात्मिक आराम आत्मा को आराम इसका स्वागत है। तब तक आप आराम करो। वैसे जप करेंगे, कीर्तन करेंगे, कीर्तनीय सदा हरी होगा तभी आराम मिलने वाला है जीव को, आत्माराम आत्मा में ही आराम। ठीक है, कुछ प्रश्न है या कुछ विचार है या और क्या है।
प्रश्नः अगर जीव श्रेष्ठ है और भौतिक प्रकृति कनिष्ठ है। आपातकालीन परिस्थिति होती है उस समय हम देखते हैं श्रेष्ठ शक्ति को पर कनिष्ठ शक्ति हावी हो जाती है ऐसा क्यों?
गुरु महाराज: मैंने समझाया ना जीव है तटस्थ शक्ति, है तो आध्यात्मिक। अध्यात्मिक है इसीलिए भौतिक से श्रेष्ठ है। भौतिक शक्ति को अपरा कहा है और जीव को अध्यात्मिक दिव्य अलौकिक कहा है, इसीलिए श्रेष्ठ है। भौतिकता कनिष्ठ है और आध्यात्मिक श्रेष्ठ है। जीवात्मा है अध्यात्मिक इसीलिए श्रेष्ठ है। भौतिक जगत कनिष्ठ है और जीवात्मा श्रेष्ठ है। जीवात्मा भौतिकता श्रेष्ठ कैसे हैं? इसको तटस्थ किसने बनाया? जीवात्मा तटस्थ है। मार्जिनल कहा है। जीव है तो आध्यात्मिक लेकिन कभी-कभी वह माया के प्रभाव में आ जाता है। माया उस पर हावी हो सकती है। कभी-कभी हावी भी हो जाता है। यह सब माया की व्यवस्था है। जीव कभी-कभी संभ्रमित हो जाता है। यह सब माया की व्यवस्था है। समुद्र तट होता है जिसको अंग्रेजी में ब्रिज कहते हैं। उसकी एक ओर समुद्र होता है और दूसरी ओर तट। पूर्णिमा के समय वह खारे पानी से धुल जाता है। पानी का प्रभाव पानी में डूब जाता है। पानी में अच्छादित हो जाता है और फिर दूसरे समय वहैं तक जमीन भूखंड बन जाता है। कभी वह तट पानी का हिस्सा होता है, कभी जमीन का होता है, इसीलिए उसको ब्रिज या तट भी कहा है। प्रभुपाद समझाया करते थे, कैसे जीव की ऐसी दुर्दैवी स्थिति है या उसका बनावट, मार्जिनल मतलब बीच वाला। इसीलिए स्वभाव से श्रेष्ठ है तो भी तटस्थ होने के कारण आखिर उसने जब अहंकार आ जाता है भूल जाता है। दासोस्मि मैं कृष्ण का दास हूं इसको भुलता है। और फिर जीव भोगवाछां करता है।
प्रश्न 2 - गायत्री को हमें कौन सी शक्ति समझना चाहिए आध्यात्मिक या भौतिक?
गुरु महाराज - आध्यात्मिक,सारा श्रीमद भगवतम गायत्री का भाष्य है ऐसी समझ है। गायत्री, इसको गाने से गायत्री का जप करने से मतलब श्रवण कीर्तन करने से वह मुक्त करती है। त्र मतलब त्रायते ऐसे हैं गायत्री। गायत्री की बहुत बड़ी महिमा है। लेकिन फिर वैसे हर देवता की गायत्री है, गायत्री के भी कई प्रकार हैं। कौन से देवता आपने चुने हैं और उस देवता की आराधना, उस गायत्री के उच्चारण से आपने की है तो उस पर निर्भर करेगा। तो वह भौतिक रूप से भी एक्ट करेगा। गंगा की भी गायत्री है, अलग-अलग देवताओं की भी गायत्री है। वैसे गुरु गायत्री भी है, ब्रह्म गायत्री भी है, गौरांग गायत्री भी है, कई सारी गयत्रियाँ हैं, गणेश गायत्री भी है। गायत्री का बहुत बड़ा विशाल जगत है, फिर अलग-अलग परंपरा में अलग-अलग गायत्रियाँ हैं और जो परंपरा में नहीं हैं उनके लिए भी कुछ जो चार वैष्णव संप्रदाय है उसके अलावा उनके लिए भी कुछ गायत्रियाँ हैं। इसको भगवान ने फिर कहा है सर्वधर्मान परित्यज्य धर्म तो है लेकिन कुछ गौण धर्म है और कुछ प्रधान मुख्य धर्म है। सर्व धर्म सार यह कीर्तन जप यह सर्व धर्म का सार है। कुछ गौण धर्म भी हैं कुछ ध्येय हैं और कुछ उपाध्येय हैं। कुछ स्वीकार करना चाहिए किसी को और कुछ ठुकराना चाहिए। गौण धर्म के अंतर्गत भी कई सारे देवता हैं और उनकी गायत्रियाँ हैं और फिर गायत्री का उच्चारण करके आप स्वर्ग जाओगे मतलब आध्यात्मिक नहीं हुआ। फिर और गायत्री का उच्चारण करके आप गोलोक जाओगे। आध्यात्मिक पंच रात्र में सब समझाया है पंचरात्रिक विधि में एकान्तिकी हरेर भक्ति उत्पात कुछ डिस्टरबेंस भी उत्पन्न हो सकता है अगर हमने शास्त्रों की विधि विधान या पंच रात्रि के विधि विधान के बिना भागवत विधि, पंच रात्रि की विधि। पंचरात्रि विधि के अंतर्गत यह गायत्री की विधि की आराधना उपवास यह सब आता है।
हरे कृष्ण।