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*हरे कृष्ण* *जप चर्चा-२७/०५/२०२२* *परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज* हरे कृष्ण गौरांग *श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत्य गदाधर श्रीवासादि गौर भक्त वृंद* जपा टॉक के लिए तयार हो ? Iskcon पद यात्री तयार हो? आज है मेरे पीछे भेद कह।, खजाना कहो, भंडार कहो चैतन्य भगवत की जय आज प्रातःकाल आपके मन में प्रश्न उठा होगा क्या है आज है वृन्दावन दास ठाकुर का आज जन्म दिवस है जन्मोत्सव है। यह स्वयं वेद व्यास थे। चैतन्य दास थे वृध्नवान दास जो भागवत की रचना किये वे पुनः प्रकट हुए और उन्होंने लिखा चैतन्य भागवत। वेद किस उद्देश्य से लिखे जाते है मुझे जानने के लिए ही वेद है ऐसा कृष्ण कह रहे है गीता में। चैतन्य भागवत वेद है। वेदो का रचइया श्रील व्यास देव है जो स्वयं भगवान् के श्यकतावेश अवतार है। उन्होंने आपने सम्बन्ध की जो बाते *श्रीराधिका-माधवयोर्अपार* *माधुर्य-लीला-गुण-रूप-नाम्नाम्* *प्रतिक्षणाऽऽस्वादन-लोलुपस्य* *वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम* राधा माधव के नाम , रूप गुण लीला की बात कहो श्री कृष्णा चैतन्य महाप्रभु स्वयं राधा कृष्ण है। यदि वृन्दावन दास ठाकुर ५०० वर्ष पूर्व जन्मे नहीं होते तो हमको नहीं पता चलता। हम पर विशेष कृपा की है हमें वेद दिया उन्होंने। वेद भगवान को जानने के लिए होता है। चैतन्य भागवत के दाता है वृन्दावन दास ठाकुर वे महान है आज वे जन्मे। नारायणी के पुत्र थे वृन्दावन दास ठाकुर नारायणी का अद्भुत व्यक्तित्व रहा। बचपन में ही नारायणी को महाप्रभु का अंग संग प्राप्त हुआ। चैतन्य महाप्रभु के आन्दोलन को फैलाना है तो चैतन्य महाप्रभु ने श्रीवास आँगन को बनाया कार्यालय। वही पर चैतन्य महाप्रभु का दर्शन हुआ नारायणी को। ऐसी गुणवती थी नारायणी। नारायणी को उच्छिष्ट खिलाया करते थे चैतन्य महाप्रभु । ४ साल की थी नारायणी तो उसमे भक्ति का ऐसा प्रदर्शन किया सब चकित हुए उसके हाव भाव को देख के। नारायणी के पुत्र थे वृन्दावन दास ठाकुर। ऐसे माता के पुत्र संछिप्त में कहा मैंने। माँ के पुत्र कैसे होंगे। माता से पुत्र का परिचय होता है और पुत्र से माता का परिचय होता है की माँ कैसी होगी। यह जन्म हुआ आज के दिन वृन्दावन दास ठाकुर को तो चैतन्य महाप्रभु का अंग संग नहीं प्राप्त हुआ। वृन्दावन दास ठाकुर और नारायणी नवद्वीप में एक स्थान है गोद्रुम द्वीप वहा वे रहने लगे नाम गाछी नाम है यही पर नारायणी रहने लगी उस समय नारायणी के पति नहीं थे वृन्दावन दास ठाकुर उस समय गर्भ में थे। हरतकि नाम का एक वृक्ष है वहा। नित्यानंद प्रभु के साथ जब भ्रमण कर रहे थे तो नित्यानंद प्रभु ने हर तकि संभल के रखे थे वे और कहते थे मई कल खाऊंगा। नित्यानंद सभी गुरु के गुरु है उनके शिष्य है श्रील व्यास देव और अभी भूमिका निभा रहे है वृन्दावन दास ठाकुर का। नाम , रूप , गन , लीला का उन्होंने वर्णन किया था। नाम गाछी नाम का एक स्थान है जब हम परिक्रमा करते है तो इस स्थान पर दर्शन करते है यहाँ लीला कथा होती है वृन्दावन दास ठाकुर का स्मरण करते है। वृन्दावन दास ठाकुर को कोटि कोटि नमस्कार करो हम स्पर्श तो नहीं कर सकते। मै सोच रहा था वृन्दावन दास ठाकुर महाप्रभु का वर्णन किये है और चैतन्य भागवत में नित्यानंद का वर्णन अधिक है चैतन्य भागवत में। २ मुख्या ग्रन्थ है चैतन्य भागवत और चैतन्य चरितामृत। चैतन्य भागवत - श्रील भक्ति सिद्धांत श्रील प्रभुपाद चैतन्य चरितामृत का भाष्य लिखे है हरी हरी। चैतन्य भागवत में चैतन्य महाप्रभु के नवदीप लीला का विस्तार से वर्णन है। चैतन्य महाप्रभु ४८ वर्ष में से २४ वर्ष नवदीप मायापुर में है इसका वर्णन चैतन्य भागवत में है आदि खंड मध्य खंड मिलके ४५ अध्याय है। ४५ अध्याय में नस्वीप का वर्णन है। चैतन्य चरितामृत में केवल २४ अध्याय में है अधिक लीला आपको चैतन्य भागवत में मिलेगा। चैतन्य महाप्रभु में सन्यास की लीला २४ वर्ष तक चलती रही। वृन्दावन दास ठाकुर इसका वर्णन १० अध्याय में किये है। चैतन्य महाप्रभु की अंतिम लीला है २० अध्याय में। ये दोनों ग्रन्थ मिलके एक पूरा ग्रन्थ बन जाता है। केवल चैतन्य चरितामृत पढ़ेंगे तो अधूरा ज्ञान रह जायेगा। दोनों मिलाके पूरा ग्रन्थ बनता है। चैतन्य भागवत , चैतन्य चरितामृत , चैतन्य मंगल यह सब वेद वाणी है। और क्या कहे ऐसा विचार आ रहा था हम ऋणी है वृन्दावन दास ठाकुर के। वे भगवान् है। स्वयं भगवान श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने लीला की। दूसरे भगवान आये वृन्दावन दास ठाकुर के रूप में मुरारी गुप्त डायरी नहीं लिखते तो क्या होता भगवान स्वयं आते है और धर्म की स्थापना करते है यह सब करते है और लिखने की व्यवस्था करते है। वेद व्यास के रूप में आकर भगवान सब लिखते है। किसका आभार माने, भगवान दयालु है कृपालु है कृपा वश कृपा से करना ही होता है उन्हें सब। कृपालु बनके उन्होंने संकलन किया वर्णन किया। और हमको कहना पड़ता है अहैतुकी कृपा। वृन्दावन दास ठाकुर के रूप में वेद व्यास है उन्होंने चैतन्य भागवत की रचना करके हम पर कृपा की है। यह विचार आ रहा था मै जप कर रहा था तो मई जब औरो को जप करते देख रहा था तो मई सुख का अनुभव कर रहा था। आपको भी ऐसा लगाना चाहिए आपके मन में विचार आना चाहिए अधिक लोग जप करे कीर्तन करे जो कलियुग का धर्म है मै यह भी सोच रहा रहा था ऐसे विचार क्यों आते है यह विचार भगवान के विचार होते है। *महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत* *वादित्रमाद्यन्-मनसो-रसेन* *रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरंग-भाजो* *वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम* ऐसा विचार भगवान का है क्योकि वे स्वयं नृत्य आकृति है। महाप्रभु जब नवद्वीप में प्रकट हुए तो उस गोलोक के नवद्वीप में सदैव कीर्तनिया सदा हरी करते रहते है। वे सदैव कीर्तन नृत्य करते है सारा संसार नृत्य करे ऐसा वे सोचते है। *हरेर नाम एव केवलं* हमारे मन में विचार उठने चाहिए सारा संसार करे कीर्तन और जप। सारी दुनिया ऐसा ही करे। इस प्रकार हमारा सम्बन्ध महाप्रभु के साथ होता है। भगवान भागवत में कहे है साधु मेरा ह्रदय है और साधु का ह्रदय मै हु। ऐसे सचि नंदन आपके ह्रदय प्रांगण में हो। श्रील वृन्दावन दास ठाकुर की जय। श्रील प्रभुपाद की जय। गौर प्रेमा नंदे हरी हरी बोल।

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