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*जप चर्चा,* *पंढरपुर धाम* *25 अप्रैल 2021* हरे कृष्ण! 745 स्थानों से भक्त हमारे साथ जुड़े हैं। गौरंग गौरंग नित्यानंद नित्यानंद गौरंग नित्यानंद गौरंग नित्यानंद। हरि हरि। वृंदावन में कहेंगे दाऊजी के भैया आपकी बारी है कहो दाऊजी के भैया कृष्ण कन्हैया कहो। हे कृष्ण कन्हैया, कृष्ण कन्हैया दाऊ जी का भैया। फिर कोई पूछता है डाकोरमा कौन छे? आप गुजराती हो? तो फिर आपकी परीक्षा होगी कि आप गुजराती हो इसका उत्तर दे सकते हो डाकोरमा कौन छे? राजा रणछोड़ छे। अगर आपने ऐसा कह दिया तो आप गुजराती हो इसका मतलब आपने परीक्षा पास कर ली। डाकोरमा कौन छे? डाकोर में कौन है? राजा रणछोड़ है इतना तो पता होना चाहिए। लेकिन कई को इतना भी पता नहीं होता। डाकोरमा कौन छे? राजा रणछोड़ छे। वृंदावन में कृष्ण कन्हैया, कौन है कृष्ण कन्हैया? वह दाऊजी के भैया है। दाऊजी मतलब दादा, बड़े दादा। महाराष्ट्र में बड़े दादा, बड़े भैया को दादा कहते हैं। कृष्ण कन्हैया कौन है? दाऊजी के भैया कौन है, बलराम के भाई कौन है? कृष्ण कन्हैया। यह वृंदावन की बात हुई तो फिर मायापुर जाओ, वहां चलता रहता है - गौरंग नित्यानंद गौरंग नित्यानंद। वही गौरंग वही कृष्ण *नंदनंदन जय सचि सुत हुइलो सई बलराम हुईलो निताई*। यह सचिनंदन थे या नंदनंदन थे – मायापुर में श्रीकृष्ण वही सचिनंदन बन जाते हैं। *बलराम हुईलो निताई* वही बलराम नित्यानंद बन जाते हैं। यही बलराम नित्यानंद है आपको सुना चुके हैं। आपको याद है ना? याद रखा करो। कलयुग में मायापुर में प्रकट होने वाले गौर निताई है। द्वापर में कृष्ण बलराम, त्रेता युग में राम लक्ष्मण थे। हरि हरि। यह तो अच्छी बातें हैं और मैं जो कहने वाला हूं वह बुरी बातें तो नहीं है। बुरी बातें वैसे कल बात कर रहे थे। उसकी और चर्चा करते हैं, आत्मा की चर्चा है। हम सभी आत्मा हैं। हर शरीर में आत्मा है। लेकिन ऐसा सब समझते नहीं है। आत्मा तो केवल मनुष्य शरीर में ही है और शरीर में आत्मा नहीं है ऐसा हो सकता है क्या? लेकिन ऐसा प्रचार संसार भर में होता है या ईसाई ऐसा प्रचार करते हैं। उनका ज्ञान अधूरा है। तो वह अधूरे ज्ञान का ही प्रचार करते हैं। वह झूठ का प्रचार प्रसार करते हैं। यह झूठ है या आधा सच है या अज्ञान है। वह अज्ञानता का प्रचार करते हैं। प्रचार तो ज्ञान का होना चाहिए, सत्य का होना चाहिए। लेकिन अज्ञान का प्रचार होता है। वैज्ञानिक इत्यादि मंडली अज्ञान का प्रचार करती है। शास्त्रों की भाषा में परा विद्या और अपरा विद्या, ऐसे विद्या के दो प्रकार कहे हैं। *परा विद्या आध्यात्मिक विद्या विद्यानाम्*। यह परा विद्या उच्च (सुपीरियर) ज्ञान है और अपरा हीन (इनफीरियर) ज्ञान है। जड़ के संबंध की विद्या कहो और चेतन के संबंध की विद्या, चेतना, आत्मा, परमात्मा कहो। यह सब आध्यात्मिक ज्ञान की बातें, यह परा विद्या है और संसार भर का ज्ञान या मिट्टी का ज्ञान, कुछ भूगोल है, कुछ खगोल है इस संबंध का जो ज्ञान है, यह अविद्या है या अपरा विद्या है। तो अधिकतर प्रचार अपरा विद्या का ही होता है। आजकल के शिक्षा प्रणाली में आत्मा और परमात्मा को बाहर निकाल दिया गया है। केवल मिट्टी का अध्ययन करो, रसायनिक विज्ञान का अध्ययन करो। हरि हरि। तो वैज्ञानिक इत्यादि मंडली तो अविद्या या अपरा का प्रचार करती ही है। परा अपरा विद्या का प्रचार इस संसार में है। यह जो आज की ताजा खबर(ब्रेकिंग न्यूज़) या प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। आप जानते हो ना इलेक्ट्रॉनिक मीडिया? जो टेलीविजन है और यह सोशल मीडिया इसमें अधिकतर प्रचार या संसार भर की कई सारी किताबें हैं, पुस्तकालय है, विश्वकोश है। यह सारे अविद्या से भरे पड़े हैं। हरि हरि। कुछ परा विद्या, सुपीरियर नॉलेज आत्मा के संबंध का ज्ञान, परमात्मा या भगवान के संबंध का ज्ञान का प्रचार अलग-अलग धर्म करते हैं। लेकिन दुरदेव से उनका ज्ञान भी कुछ अधूरा ही है। हरि हरि। यह अज्ञान ही है। हम कल भी बात कर रहे थे और आज भी बात थोड़ा आगे करना चाह ही रहे हैं। मुझे एक लेख(आर्टिकल) मिला। इसको निबंध भी कह सकते हो। उसमें आत्मा का मूल(ओरिजन), आत्मा की यात्रा(जर्नी), आत्मा का गंतव्य(डेस्टिनेशन)। इसकी चर्चा इसमें की हुई है। हिंदी भाषा में वे जो लिखे हैं आत्मा का स्त्रोत यानी सोर्स, आत्मा कहां से, कैसे और किससे उत्पन्न हुआ। फिर उत्पन्न हुआ तो संसार में कैसे उसका प्रवास कहो, उसकी जर्नी कहो। कहां-कहां वह आता जाता है और फिर अंततोगत्वा उसका गंतव्य, उसका लक्ष्य और किस लक्ष्य तक वह पहुंचता है। तो अलग-अलग धर्मों में या इस पृथ्वी पर जिन धर्मो का प्रचार, प्रसार और उसके अनुसार आचरण भी करते हैं। तो यह आत्मा का स्त्रोत, आत्मा का प्रवास इस संसार में या शरीरों में या कितने शरीरों में प्रवास करता है और अंततोगत्वा वह कहां पहुंचता है, लक्ष्य क्या है। इसके संबंध में संसार को जो ज्ञान है या जो अलग-अलग धर्म ग्रंथ हैं अलग-अलग धर्मों के और उनका जो प्रचार होता है उसमें सारी भिन्नता है। *जत् मत् तत् पथ्* जितने भी मत हैं उतने पथ है। वह खूब प्रचार करते रहते हैं और प्रचार कर करके उन्होंने जैसे ईसाई धर्म है। जो एक तिहाई संसार की आबादी में ईसाई बन चुके हैं। एक चौथाई हिस्सा इस्लाम है और हिंदू धर्म तृतीय स्थान पर आता है जिसमें से 15% मनुष्य हिंदू है। 7–8% बौद्ध धर्म का है। हरि हरि। बचे हुए 10,12 या 15 प्रतिशत में पूरे नास्तिक ही है। उन्होंने घोषित करा हुआ है कि वह भगवान पर विश्वास नहीं करते है। आत्मा या परमात्मा नहीं मानते और उन्हें घोषित करा है। वह बेशर्म हैं, उनको ऐसा कहने पर कोई लज्जा महसूस नहीं होती या कभी रूबाब के साथ कहेंगे कि हमारा विश्वास नहीं है। हरि हरि। दुरदेव से या जैसे भी भगवान ही वैसे उनसे कहलवाते हैं कि भगवान नहीं है। ऐसा कौन कहते हैं, लोग तो कहते हैं। लेकिन उनको कौन निर्देश देता है? भगवान देते हैं। वही बात मैं आपको कभी-कभी बताता हूं। तुम्हारी पिताजी से मिलना है। बालक ने कहा देख कर आता हूं। वह देखने गया घर में पिताजी है कि नहीं। उनके पिताजी इनके मित्र को जो द्वार पर खड़े हैं मिल सकते हैं या नहीं यह बालक उनको बताना चाहता है। तो जब बालक अपने पिताजी से मिलता है, वह पटेल है ना आपसे मिलने आए हैं, मिलना चाहते हैं। वह पटेल से मिलना नहीं चाहते। तो फिर उन्होंने बालक को कहा, अपने पुत्र को कहा कि उनको बता दो कि मैं घर में नहीं हूं। तो बालक भागे दौड़े द्वार पर आता है और पटेल जी से कहता है और क्या कहता है? मेरे पिताजी ने कहा कि वह घर में नहीं है। आप सुने और समझे? मेरे पिताजी ने कहा कि वह घर में नहीं है। बिल्कुल ऐसी ही बात है कि अगर कोई कहता है भगवान नहीं है, तो किसने कहा? भगवान ने ही कहा। ऐसी तुम्हारी समझ है। नास्तिक के हृदय प्रांगण में भगवान बैठे हुए हैं। यही नहीं कि केवल आस्तिक के हृदय प्रांगण में ही भगवान बैठे हुए होते हैं। *सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्टो* *मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च |* *वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो* *वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् || १५ ||* (श्रीमद्भगवद्गीता 15.15) *अनुवाद* मैं प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हूँ और मुझ से ही स्मृति, ज्ञान तथा विस्मृति होती है | मैं ही वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ | निस्सन्देह मैं वेदान्त का संकलनकर्ता तथा समस्त वेदों का जानने वाला हूँ | समझ तो यह है कि पशु, पक्षी ,जीव जंतु सभी के हृदय प्रांगण में, जितना उनका छोटा बड़ा ह्रदय होगा, वहां भगवान वहां बैठे हैं यह समझ है। सभी मनुष्यों के हृदय प्रांगण में तो बैठे हैं ही। वह नास्तिक हो या आस्तिक हो। वहां बैठकर भगवान क्या करते हैं? उन्होंने ही कहा है *श्रीभगवान उवाच*, *सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्टो* *मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च |* सभी के हृदय प्रांगण में मैं विराजमान होकर। फिर मैं क्या करता हूं? *ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् |* *मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः || ११ ||* (श्रीमद्भगवद्गीता 4.11) अनुवाद:- जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ | हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता है | *ये यथा मां प्रपद्यन्ते* व्यक्ति कितनी मेरी शरण में आया है। उस के अनुसार या तो उनको मेरा स्मरण दिलाता हूं *मत्तः स्मृति* या फिर मैं उनको ज्ञान देता हूं। जितना शरण में आया है, मैं इतना ज्ञान देता हूं। मैं प्रकट होता हूं। जो मेरी शरण में नहीं आना चाहता है, मुझे नहीं मानता है, *अपोहनं च* मैं उसको अज्ञान देता हूं, अज्ञान में उसको गोते लगवाता हूं। उससे कहलवाता हूं कि भगवान नहीं है, भगवान नहीं है। अंदर से भगवान ही ऐसा विचार देते है। तर्क, वितर्क,लॉजिक, आर्गुमेंट, रीजनिंग अंग्रेजी में बड़े रुबाब के साथ कहते हैं। यह तर्क वितर्क जो है या तर्क वितर्क की बातें जो लोग करते हैं। मुझे तो आपसे आत्मा की ही बातें करनी थी। लेकिन कुछ और ही बातें शुरू हो गई। लेकिन यह सब एक दूसरे से संबंधित है। तो संसार में भगवान नहीं है और भगवान है तो कई लोग आश्वस्त हैं कि भगवान हैं। पूरे दावे के साथ कह सकते और उनका अनुभव भी है कि भगवान है। उनके पास कई सारे सबूत है, शास्त्रों के उदाहरण है। जिनकी मदद से वह समझा सकते हैं, उनकी आस्था जो है औरों को वह कह सकते हैं। यह सिद्ध करने के लिए कि भगवान है। उसी तरह जो भगवान को नहीं मानते उनके पास भी सारा मसाला है औचित्य(जस्टिफिकेशन) है। जिसको हम कहते हैं सारे तर्क वितर्क कर बैठे हैं कि भगवान नहीं हैं। कैसे हो सकते है भगवान? इतने सारे लोग मर रहे हैं, इतने सारे लोग पीड़ित हैं। भगवान होते तो ऐसा थोड़ी ना होने देते। हरि हरि। जो भगवान नहीं है कहने वालों के पास भी सारा तर्क वितर्क है, लॉजिक या रिजनिंग है। उनके जन्म लेने के पूर्व यह तर्क वितर्क था। यह तर्क वितर्क तब से है जब से यह सृष्टि बनी है। तो दोनों ही हैं। भगवान है इस को सिद्ध करने के लिए सारे सबूत हैं। भगवान नहीं है जिसको कहना है उनके लिए भी सारी तैयारी है, सारे विचार और तर्क वितर्क है। इन दोनों की सृष्टि करने वाले भी भगवान ही हैं। भगवान ने ऐसी सारी व्यवस्था करके रखी हुई है। तो हमारा कहना जो भगवान नहीं है, भगवान नहीं है कहने वालों का वह भी स्वतंत्र नहीं है। *मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः*। भगवान गीता में कहते हैं कि *मम वर्त्मा* मतलब मेरा मार्ग, मेरे द्वारा बनाए हुए मार्ग। सारे संसार के लोग भगवान के द्वारा बनाए हुए मार्ग हैं, उसी पर चलते हैं कोई स्वतंत्र नहीं है। फिर वह आस्तिक है या नास्तिक है, सुर है या असुर है, दो प्रकार के ही लोग इस संसार में होते हैं। तमोगुण भी तो भगवान ने बनाया है। *प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वशः |* *अहङकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते || २७ ||* (श्रीमद्भगवद्गीता 3.27) अनुवाद:- जीवात्मा अहंकार के प्रभाव से मोहग्रस्त होकर अपने आपको समस्त कर्मों का कर्ता मान बैठता है, जब कि वास्तव में वे प्रकृति के तीनों गुणों द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं | इस संसार में अहंकार जो है वैसे अहंकार एक तत्व है या सूक्ष्म धातु है। मन, बुद्धि और अहंकार। तो इस संसार में अहंकार उपलब्ध है। अहंकार का स्त्रोत क्या है? तमोगुण से अहंकार उत्पन्न होता है। *तम* मतलब ही अंधेरा होता है। हरि हरि। सत्वगुण है, रजोगुण है, तमोगुण है। इतना काफी है, मैं दूसरी बातें नहीं करने वाला हूं। तो अज्ञान का प्रचार, कुछ लोगों को या कुछ धर्मों में होता है क्योंकि उनको उतना ही ज्ञान है। फिर वह उतना ही प्रचार करते हैं। जैसे हम कल भी कह रहे थे और यहां पर भी लिखा हुआ है। इस्लाम में, जब स्त्री और पुरुष का समागम होता है। जब लिंगइक क्रिया होती है। धारणा शायद आप यह समझते हो। आत्मा ने गर्भ में प्रवेश कर लिया। ईसाई धर्म में, आत्मा गर्भ में कब प्रवेश करता है? इस संबंध में कई मत मतमातनतर हैं। तो उनके भी कई सारे मत हैं। कई सारे संप्रदाय हैं। लेकिन अधिकतर मान्यता यह है कि 120 दिनों के बाद गर्भ में आत्मा का प्रवेश होता है। जैसे कल कहा था कि 120 दिनों के पहले आप आराम से गर्भपात वगैरह कर सकते हो। गर्भपात करो कोई पाप नहीं है। आप पाप से मुक्त हो। आत्मा का अंततोगत्वा क्या होता है? बौद्ध धर्म ऐसा कहेंगे। बौद्ध धर्म श्रीलंका, थाईलैंड, कंबोडिया, बर्मा और लाओस में उपस्थित है। आप इसको सुनिए मैं अंग्रेजी में पढ़ रहा हूं। मृत्यु के समय जो भी साक्षात्कारी है। जीवन भर साधना कर रहा था, बौद्ध साधना अब जब मृत्यु हो रही है तब वह साक्षात्कारी पुरुष उसका निर्वाण होगा। जिसको आप अपनी भाषा में मोक्ष कहते हो। मोक्ष को निर्वाण कहते है। निर्वाण अथार्थ: आत्मा की ज्योति मृत्यु के समय बुझ जायेगी। तो यह ऐसे ही समझा जा सकता है जैसे मोमबत्ती को आप बुझाते हो। इसको निर्वाण कहते है, या शून्यवाद कहते है। अंततोगत्वा क्या प्राप्त करना है शून्यवाद। हम जो भी थे अब वे नही रहेंगे हम। हम शून्य बनेंगे। क्योंकि समझ ये भी है की जब तक हम जीते रहेंगे हमे भुगतना पड़ेगा। क्योंकि जब तक हम जीवित है , इच्छाएं है, यही इच्छाएं हमारे दुखो का कारण है। ऐसा बुध देव ने प्रचार किया था। उन्होंने अपने ग्रंथो में भी समझाया है की इच्छाएं ही वजह है जिसकी वजह से हम भुगतना पड़ता है। संसार के दुखो से कैसे मुक्त हो सकते है उसके लिए अपने अस्तित्व को समाप्त करो, शून्य बन जाओ। निर्विशेष शून्यवादी पाश्चात्य देश तारीने। निर्विषेष वाद, मायावादियों का अद्वैतवादियों का और यह दूसरा है शून्य वाद। आत्मा का क्या हुआ उसकी मृत्यु हो गई। हरी बोल। तो क्या आत्मा की मृत्यु हो गई ऐसा कहने से सच में आत्मा की मृत्यु हो जाती है? कृष्ण तो बहुत कुछ कहे है, लेकिन दुनिया तो बहुत कुछ अलग अलग कहती रहती है। अलग अलग धर्मो की अपनी मान्यताएं है। केवल मान ने से क्या होता है। इसी बात को प्रभुपाद भी कहा करते थे। जैसे एक पक्षी है उसका कोई पीछा कर रहा है जैसे शेर या बाघ या और कोई पशु तो ये पशु अपनी जान बचाने के लिए दौड़ रहा है , पीछे देखता है और फिर दौड़ता है। तो फिर पीछा छूट नही रहा है, पशु जो बलवान है जो पीछा कर ही रहा है। उसकी जान ही लेगा। तो जो अपनी जान बचाने के लिए पक्षी दौड़ रहा था वो क्या करेगा , वो गढ़ा बनाएगा। गढ़ा बनाकर अपना सर उस में दाब देगा। और सोचेगा की जो पशु पीछा कर रहा था वो पीछे नहीं आ रहा है। मैं अब सुरक्षित हु। ऐसा व्यवहारिक जीवन में करते है, लेकिन होता क्या है कुछ ही क्षणों में पीछा करने वाला पक्षी आ जाता है और उसको पूछ से बाहर निकाल कर खा लेगा। तो केवल मानने से की आत्मा अब नही रही , निर्वाण हुआ। वैसे आत्मा का जीवन समाप्त नहीं हो सकता। *ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः* । *मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति* ॥७॥ (श्रीमदभगवदगीता 15.7) अनुवाद: इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं । बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है । कृष्ण कहे है जीव आत्मा मेरा अंश है और ये अंश अंश ही रहेगा सदा के लिए। या कृष्ण जब भगवद गीता में अपना गीत सुनाने लगे । *न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः*। *न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्* ॥१२॥ (श्रीमदभगवदगीता 2.12) अनुवाद : ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं न रहा होऊँ या तुम न रहे हो अथवा ये समस्त राजा न रहे हों; और न ऐसा है कि भविष्य में हम लोग नहीं रहेंगे | देखा जाए तो भगवद गीता यही से शुरू होती है । भगवान आत्मा का ज्ञान देते है अर्जुन को , उस ज्ञान के अंतर्गत कृष्ण ने कहा , हे अर्जुन ऐसा कभी समय नहीं था जैसे आजकल की विचार धारा ही की आत्मा का कोई अस्तित्व ही नहीं । आत्मा ऐसे ही आ जाता है और प्रवेश कर लेता है गर्भ में 120 दिनों के बाद । लेकिन भगवान यह स्पष्ट कह रहे है की ऐसा समय कभी नही था की मैं कभी नही था और तुम भी भूत काल में थे और ये सब राजा महाराजा जो युद्ध भूमि में एकत्रित हुए है ये भी थे और अभी भी है । मैं हु और तुम भी मेरे समक्ष हो और ये सेनाएं भी है। भूतकाल में तो हम थे और वर्तमान में तो हम है ही और भविष्य में भी ऐसा समय कभी नही होगा जब हम नही रहेंगे और ये बाकी के राजा भी नही रहेंगे। क्या भगवान आत्मा की ही बात कर रहे है या फिर भगवान जानते है और ऐसा ही होता है। राजा राजा नही रहेंगे और भी कुछ बन सकते है मुक्त हो सकते है। तो राजाओं के शरीर में आत्मा है , और जो तुम्हारे शरीर में आत्मा है, और मैं तो परमात्मा हु, तो हम सदा के लिए रहेंगे। कही ना कही रहेंगे, किसी ना किसी रूप में , शरीर में रहेंगे। यह सत्य है। आत्मा शाश्वत है , ना जायते ते न म्रियते । कुछ शास्त्रों में कहते है की आत्मा था नही या मृत्यु होती है। लेकिन कृष्ण कह रहे है की आत्मा न जायते , आत्मा का जन्म नही हुआ है। न म्रियते , ना ही किसी आत्मा की मृत्यु होने वाली है। आत्मा रहेगा , बाकी ये निर्वाण और शून्यवाद को भूल जाओ इसका कोई स्थान ही नही है। हरी हरी। इसी लेख में उल्लेख हुआ है की हरे कृष्ण वालो को भी ज्ञान दिए है। और लिखा है की वेद वेदांत , शंकराचार्य का एक अद्वैत वेदांत है । और विष्णु का है द्वैत वेदांत। आत्मा की प्रेम भक्ति भगवान है। आत्मा का भगवान से प्रेम या प्रेम मई सेवा, यही प्रेम मई सेवा आत्मा को मुक्त करेगी। शरीर से मुक्त करेगी, माया से मुक्त करेगी। कृष्ण से मुक्त करने वाली नही है, माया से मुक्त हुआ, मोक्ष प्रपात किया लेकिन आत्मा का अस्तित्व समाप्त नही होता है। प्रभुपाद के एक अनुयाई रहे जॉर्ज हैरिसन जो की इंग्लैंड के थे। बड़े प्रसिद्ध गायक रहे। प्रभुपाद से जब पूछा गया था की आपने जॉर्ज हैरिसन को कोई आध्यात्मिक नाम दिया है या नही , तो प्रभुपाद ने कहा था की उनका नाम हैरिसन जो है वह आध्यात्मिक ही है। जॉर्ज हैरिसन प्रचार में कहा करते थे की अगर आप राम और कृष्ण का नाम जपोगे तो आप मुक्त हो जाओगे। वह केवल प्रचार ही नही करते थे वे "हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे " का कीर्तन भी करते थे। और उन दिनों में उन्होंने रिकॉर्डिंग एल्बम भी बनाई हरे कृष्ण कीर्तन की। 50 वर्ष पूर्व की बात है। उस समय ग्रामों फोन चलते थे। आपको शायद पता भी नही होगा की ग्रामों फोन क्या होता है। कई बुजुर्ग शायद जानते होंगे। पहल ग्रामों फोन खरीद ते थे और उसको बजाया करते थे। देवानंद जो की एक कलाकार थे उसके गाने भी बजा करते थे। दम मारो दम मिट जाए गम, उसने भी हरे कृष्ण हरे राम का गलत प्रचार किया था। उस समय मैं जुड़ा ही था और जब प्रचार करने के लिए जाते मुंबई डाउनटाउन में तो हम में से हरे कृष्ण वाले उस समय में भी अंग्रेज हुआ करते थे कुछ भक्त, तो हम देखते ही जब हम वहा से गुजरते तो वो दोडते हमारी तरफ और फिर ये गाना चलाते दम मारो दम। और इतनी तेज आवाज कर देते ताकि हम भी सुने। और कहते की ऐसे ही है हरे कृष्ण वाले, पहल हरे कृष्ण कहते है और फिर गांजा फूंकते है। लेकिन उनको पता नही था की हरे कृष्ण वाले तो चाय भी नही पीते। प्रभुपाद ने 1966 में जब पहले बैच को दीक्षा दे रहे थे तो संकल्प करवाया चार नियम पालन करवाए, किसी भी प्रकार का नशा नहीं करना, चाय भी नही पीनी है। पर कुछ लोग कहते की चाय ही मना करी है लेकिन कॉफी तो पी सकते है। कोल्ड ड्रिंक भी नही कोकोकोला वाली । एक समय जब हमने ग्रामों रिकॉर्ड बनाई थी। तो वो टॉप 10 में जॉर्ज हैरिसन का हरे कृष्ण की रिकॉर्डिंग टॉप 10 में आ गई थी । हरे कृष्ण की धुन उन्होंने गाई थी हरे कृष्ण भक्तों के साथ ही। हमारी जमुना माताजी, जिन्होंने गोविंदम आदि पुरषाम गीत गाया है मेरी गुरु बहन ही है और अन्य भक्तो के साथ मिलकर गाया। उसमे गिटार बजा कर कीर्तन किया। यह हरे कृष्ण महा मंत्र का कीर्तन विश्व भर में प्रसिद्ध हुआ ग्रामों फोन रिकॉर्ड के साथ। तो इसमें लिखा है की जॉर्ज हैरिसन ने कहा था की अगर आप राम या कृष्ण का भजन करते है तो आप मुक्त हो जाओगे। यह जो हरे कृष्ण आंदोलन है , इस्कॉन उनकी ही फिलॉस्फी ऐसी है जिसको जॉर्ज हैरिसन मान गए। और उसी फिलासफी के अनुसार वे कृष्ण कीर्तन करते थे। और अधिकतर जो भारतीय परंपरा है , या धर्म है उनके समझ भी ऐसी ही है। लेकिन अद्वैत वेदांत की बात भी लिखी है। उनका अद्वैत वेदांत, शंकराचार्य के अनुयाई, उनकी समझ ये है की आत्मा परमात्मा में लीन हो जाता है। क्योंकि इस लेख में मूल , यात्रा और गंतव्य की चर्चा हुई है। निर्कारवादी जो है उनकी भी यही समझ है की आत्मा लीन होती है परमात्मा में। जो की सच नहीं है। या कुछ होता भी है तो पुनः गिर जाता है। अगर हरे रंग का पक्षी हरे वृक्ष में जाकर बैठ गया तो आप कहोगे की वो लीन हो गया। तो वो पक्षी वृक्ष में जाकर लीन नही हुआ है, उसका अस्तित्व समाप्त नही हुआ है। आप देख सकते हो की पक्षी शाखा पर बैठा हुआ है, पक्षी भी है और वृक्ष भी है। रामानंद आचार्य का विशिष्ट अद्वैत सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अनुसार नदी का पानी सागर में मिल जाता है। तो कोई कह सकता है की नदी सागर में मिल जाती है। तो नदी लीन हुई सागर के साथ। जल के बिंदु है अगर उसका विभाजन करोगे तो उसके जो एटम है उसका विनाश नही होता है। सागर में प्रवेश तो हुआ नदी के जल का लेकिन वो एक कभी नही होते । सागर का जल रहता ही है, और नदी का जल भी रहता ही है। इसको रामानुजाचार्य विशिष्ट अद्वैत सिद्धांत कहे। मतलब द्वैत सिद्ध हुआ। आत्मा समाप्त नही हुआ। प्रभुपाद कहते है की निरंकार निर्गुण वालो की जो बात है आत्महत्या । शरीर की मृत्यु हो सकती है लेकिन आत्मा की मृत्यु नही होती है। लेकिन सोचते है की आत्मा के अलग अस्तित्व को समाप्त करेंगे। हमको समझना चाहिए। *माया मुक्त जीवेरा नही स्वतः कृष्ण ज्ञान।* केवल शरीर नही होता स्वतः में आत्मा भी है। उनको प्रपात करना है इसलिए मनुष्य जीवन है। शरीर को समझ लिया, खाते रहे सोते रहे तो क्या हो गया जीवन सफल? ऐसी गुमराही से बचो। मेने नही सोचा था की इतना समय हो जायेगा आज। पर जब आप आनंद लूट ते रहते हो तो पता ही नही चलता की समय कैसे बीत जाता है। निताई गौर प्रेमानंदे हरी हरी बोल!

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