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जप चर्चा पंढरपुर धाम से 10 जुलाई 2021 हरे कृष्ण!!! श्रील भक्ति विनोद ठाकुर का तिरोभाव तिथि महोत्सव तो संपन्न हुआ किंतु हम ज्यादा कुछ बोल नहीं पाए इसलिए आज सोचा कि क्यों ना आज हम उनको याद करें। तत्पश्चात सोचा कि उन्होंने कई सारे गीत लिखे हैं। जैसा कि आप जानते हो भक्ति विनोद ठाकुर हमारे पूर्वज हैं। हमें अपने पूर्वजों को जानना चाहिए, उनको याद करना चाहिए। हम उनके ऋणी हैं। इसे ऋषि ऋण कहते हैं। जैसे मातृ ऋण होता है। समाज का ऋण होता है, वैसे ही ऋषि ऋण होता है। हम उनके कर्जदार हैं। हम श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के भी ऋणी हैं। उन्होंने कई सारे गीत लिखे हैं। भजनावली, गीतावली, शरणागति नामक ग्रंथ उनके गीतों के संग्रह है। वैसे हम अधिकतर इस्कॉन में उन्हीं के गीत गाते हैं अर्थात उनके ही रचित गीतों को हम गाते हैं। आप याद करो। मैं नहीं कहूंगा कि हम कौन-कौन से गीत गाते हैं। जब कोई व्यक्ति गाता अथवा बोलता अथवा लिखता है, उसी से उस व्यक्ति की पहचान हो जाती है। श्रील प्रभुपाद भी कहा करते थे, यदि किसी को माइक्रोफोन दे दो व उसको बोलने दो तब उसके मुंह खोलते अथवा बोलते ही पता चलेगा कि वह कौन है। मूर्ख नंबर एक है या कुछ ज्ञानवान है। उसके व्यक्तित्व, उसके चरित्र की असली पहचान तो उसकी वाणी से होती है। वह क्या गाता है, वह क्या बोलता है, वह क्या लिखता है। हरि! हरि! भक्ति विनोद ठाकुर को जज करने वाले हम कौन से जज हैं। किंतु वे हमारे एक प्रामाणिक पूर्व आचार्य हैं। हम उनके गीत भी गाते हैं, उनके भजन भी गाते हैं। उन गीतों में से एक *(जय) राधा माधव (जय) कुंजबिहारी। (जय) गोपीजन वल्लभ (जय) गिरिवरधारी॥* *(जय) यशोदा नंदन (जय) ब्रजजनरंजन। (जय) यमुनातीर वनचारी॥* अर्थ: वृन्दावन की कुंजों में क्रीड़ा करने वाले राधामाधव की जय! कृष्ण गोपियों के प्रियतम हैं तथा गोवर्धन गिरि को धारण करने वाले हैं। कृष्ण यशोदा के पुत्र तथा समस्त व्रजवासियों के प्रिय हैं और वे यमुना तट पर स्थित वनों में विचरण करते हैं। भक्तिगीत संचयन,जोकि मायापुर से प्रकाशित बांग्ला भाषा ग्रंथ है, उसमें यह भक्ति विनोद ठाकुर के गीत है। मैं थोड़ा देख रहा था- तब मुझे यह गीत भी मिला। वैसे भक्ति विनोद ठाकुर का छोटे-छोटे गीतों का गीतावली नामक संग्रह है। गीतावली अर्थात गीतों की पंक्ति अर्थात गीतों का संग्रह। जैसे दीपावली - दीपों की आवली होती है। वैसे ही इस गीतावली में उन्हीं के गीत हैं। प्रभुपाद जिसे गाए बिना कथा करते ही नहीं थे अर्थात यह गाए बिना वे आगे बोलते ही नहीं थे। (जय) राधा माधव (जय) कुंजबिहारी। (जय) गोपीजन वल्लभ (जय) गिरिवरधारी॥ (जय) यशोदा नंदन (जय) ब्रजजनरंजन। (जय) यमुनातीर वनचारी॥।। यह भी श्रील भक्ति विनोद ठाकुर द्वारा रचित गीत है। उन्होंने सौ से भी अधिक गीत लिखे। अंदर जो है या जो दिमाग में है- वही व्यक्ति बोलता है लिखता है। भक्ति विनोद ठाकुर के इन गीतों के विषय में श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि यह वेदवाणी ही है। वेदवाणी संस्कृत भाषा में है लेकिन उसको ओर थोड़ा सरल बना कर अर्थात जिस भाषा को हम भी समझते हैं अथवा लोक भाषा या चलती भाषा में लिखा है अर्थात आचार्यों ने अपने अपने स्थान की लोकल भाषा में लिखा है। जैसे महाराष्ट्र में तुकाराम महाराज ने मराठी में अभंग लिखे। सूरदास ने - अवधी भाषा में लिखा। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर व इत्यादि के भी कई सारे गौड़ीय गीत हैं, वे अधिकतर बांग्ला भाषा में ही हैं। यह सब आचार्यों के गीत हैं, यह गीत वेद तुल्य वचन हैं, वेदों की वाणी है। इन गीतों व भजनों के लिए हम श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के ऋणी हैं। कई कारणों के लिए हम भक्ति विनोद ठाकुर के ऋणी हैं। उनके ग्रंथ भी हैं, उन्होंने नवद्वीप धाम महात्म्य नामक ग्रंथ भी लिखा है। यह नवद्वीप मंडल परिक्रमा की गाइड पुस्तक है। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के नवद्वीप महात्म्य का एक परिक्रमा खंड भी है, प्रमाण खण्ड। उसके बिना हम नवद्वीप मंडल परिक्रमा में एक भी पैर आगे नहीं रख सकते। वह नवद्वीप धाम महात्म्य श्रील भक्ति विनोद ठाकुर की रचना है। हरि हरि! हम लोग प्रतिदिन जप करते हैं । श्रील भक्ति विनोद ठाकुर भी जप किया ही करते थे। वे गृहस्थ थे लेकिन 64 माला का जप करते थे। उनके 10 बच्चे भी थे। आप में किसी के 10 बच्चे हैं? कोई 10 बच्चे वाला है? नहीं। अब अष्ट पुत्र सौभाग्यवती का जमाना चला गया। पहले अष्ट पुत्र सौभाग्यवती भव, ऐसे आशीर्वाद मिलते थे। भक्ति विनोद ठाकुर के दस बालक बालिकाएं थी, इतना बड़ा परिवार था। वे जगन्नाथपुरी के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट थे। वे अंग्रेजों के जमाने के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट थे। ऐसी पदवी कुछ ही भारतीयों को मिलती थी। भक्ति विनोद ठाकुर का नाम केदार नाथ दत्त भी था। वे आगे भक्ति विनोद ठाकुर के नाम से प्रसिद्ध हुए। वह जमाना भी देखिए, थोड़ा कठिन भी था।अंग्रेजों के साम्राज्य का पीक ओवर (उच्च समय) था। लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व 1838 में भक्ति विनोद ठाकुर का जन्म हुआ था। ऐसे कठिन काल में गुलाम थे। एक तरह से यह गुलामगिरी का समय था। ऐसे काल में श्रील भक्तिविनोद दुष्टों का संहार कर रहे हैं। *परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।* (श्रीमद भगवद्गीता ४.८) अर्थ:भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | किसी ने घोषित किया कि मैं भगवान हूं। उन्होंने उसको गिरफ्तार किया। वे डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भी थे। विनाशाय च दुष्कृताम् किया और वह बेचारा जेल में ही मर गया। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर ने धर्म की स्थापना की और जगन्नाथ मंदिर के सारे कार्यभार अर्थात मंदिर की देखरेख रखना उनकी ही सेवा थी। भक्ति विनोद ठाकुर निश्चित ही जगन्नाथपुरी में रहा करते थे। उनकी जो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की कोठी जोकि रथ यात्रा मार्ग पर है, वह आज भी है। वहां पर अब एक गौडीय मठ की स्थापना हो चुकी है। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर वहां पर ही रहते थे। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर का जन्म वहीं हुआ। ( मैं किसी क्रम से कुछ नहीं कह रहा हूं जो जो उमड़ कर आ रहा है, उसे कह ही रहा हूं।) श्रील भक्ति विनोद ठाकुर रिटायर होना चाहते थे- सेवानिवृत्त होकर बस नवद्वीप धाम में जाकर अपनी साधना भजन करना चाहते थे। वे सातवें गोस्वामी के रूप में प्रसिद्ध होने वाले थे। जैसे रूप सनातन भी रिटायर हुए। वे राजा हुसैन शाह के मंत्री थे। दबीर खास साकर मल्लिक रिटायर होकर चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन से जुड़ गए और वृंदावन पहुंच गए। वैसे ही श्रील भक्ति विनोद ठाकुर भी मायापुर जाकर अब अपने धर्म की स्थापना करना चाह रहे थे। लेकिन यह बड़े ही नामी जिलाधिकारी थे। अंग्रेज सरकार उनको छोड़ना नहीं चाहती थी। वे रिटायर तो नहीं हो पाए किंतु उनको जगन्नाथ पुरी से नवद्वीप के पास जो कृष्णा नगर जिला है, वहां भेज दिया गया। वे वहां के भी जिलाधिकारी हुए किंतु श्रील भक्ति विनोद ठाकुर गोद्रुम द्वीप में रहने लगे जोकि नवद्वीपों में से एक द्वीप है। गोद्रुम द्वीप, शायद कल भी बताया ही था जो कि जालाघिं व सरस्वती नदी के तट पर ही है। वह उनका निवास स्थान बना। डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट भक्ति विनोद ठाकुर अथवा केदारनाथ दत्त, इतने महत्वपूर्ण थे कि अंग्रेज सरकार ने भक्ति विनोद ठाकुर की सुविधा के लिए एक रेल की व्यवस्था की। उनके घर के सामने ही वह रेलवे की पटरी है, जिससे भक्ति विनोद ठाकुर रेल से ही अपने निवास स्थान और कृष्णा नगर के मध्य की यात्रा किया करते थे। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने ही अपने गुरु महाराज, अपने शिक्षा गुरु जगन्नाथ दास बाबा जी की मदद से चैतन्य महाप्रभु का जो जन्म स्थान है, उसको निर्धारित किया। उस समय कहीं सारे मत मतान्तर थे, चैतन्य निमाई का जन्मस्थान कहां पर है, यहां वहां है- इस तट पर है, उस तट पर है, पूर्व में है, पश्चिम में है। गंगा के तट पर है। इस तरह पहले कई सारी विचारधाराएं थी लेकिन अब एक विचारधारा हो गई। जहां अब योगपीठ है, वह श्रील विनोद ठाकुर की ही देन है। जो यह संभ्रम उत्पन्न था, उसको श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने मिटाया। जन्म स्थान भी निर्धारित किया और वहां पर मंदिर की स्थापना भी की। वे कोलकाता में घर-घर जाकर सबसे एक रुपया लेते थे। केवल एक रुपया चाहिए। वे कहते थे कि आपका एक करोड़ या दस हज़ार नहीं चाहिए, मुझे सिर्फ एक रुपया चाहिए। वे अधिक से अधिक लोगों को अवसर देना चाहते थे। मंदिर के निर्माण का प्रारंभ भक्ति विनोद ठाकुर ने ही किया। आगे श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर ने उसका समापन किया। अब नवद्वीप में योगपीठ मंदिर है। हरि हरि! (मैं तो यह कह रहा था कि नवद्वीप धाम ग्रंथ श्रील भक्ति विनोद ठाकुर द्वारा लिखा गया है)। वृंदावन के 6 गोस्वामी हैं। उन्ही का समक्ष अथवा काउंटर पार्ट नवद्वीप में भक्ति विनोद ठाकुर बने। जो स्थान षड् गोस्वामी वृन्दों अर्थात जो कार्य षड् गोस्वामियों ने वृंदावन में किया, वह कार्य भक्ति विनोद ठाकुर ने नवद्वीप धाम में किया। उन्होंने मंदिरों की स्थापना या ग्रंथों की रचना, प्रचार का कार्य आदि सब किया । उन्होंने गोद्रुम कल्पतवी नामक ग्रंथ की रचना की, उसी के साथ उन्होंने नामहट्ट की स्थापना की। *नदिया-गोद्रुमे नित्यानन्द महाजन। पातियाछे नाम-हट्ट जीवेर कारण॥1॥* अर्थ:- भगवान् नित्यानंद, जो भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम का वितरण करने के अधिकारी हैं, उन्होंने नदिया में, गोद्रुम द्वीप पर, जीवों के लाभ हेतु भगवान् के पवित्र नाम लेने का स्थान, नाम हट का प्रबन्ध किया है। यह गीत भी भक्ति विनोद ठाकुर का है, इसमें वे लिखते हैं कि नित्यानंद प्रभु ने सभी जीवों के कल्याण के लिए नाम हट्ट प्रारंभ किया। चैतन्य महाप्रभु के आदेशानुसार नित्यानंद प्रभु सारे भारत में प्रचार कार्य कर रहे थे, वही कार्य श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने नवद्वीप मायापुर अर्थात गोद्रुम द्वीप में पुनः प्रारंभ किया। उन्होंने गोद्रुम कल्पतवी नामक ग्रंथ में वे नामहट्ट का दृष्टिकोण, सारा उद्देश्य, सारी कार्ययोजना, आदि का विवरण दिया। उसकी मदद से हमारे जय पताका स्वामी महाराज ने नामहट्ट का प्रचार बंगाल, उड़ीसा भर में प्रारंभ किया। बड़ा ही यशस्वी सफल प्रयास रहा। सारे विश्व भर में नाम हट्ट फैल रहा है, नामहट्ट कहो या भक्ति वृक्ष कहो। यह सारा भक्तिविनोद ठाकुर का दृष्टिकोण अथवा योजना थी और है। उन्होंने जैव धर्म नामक ग्रंथ लिखा, जैव धर्म अर्थात जीव का धर्म। जो जीव का धर्म अर्थात धर्म के जो तत्व है। धर्मस्य तत्वं गुह्यं... भक्तिविनोद ठाकुर के हृदय प्रांगण में धर्म के तत्व उदित हो रहे थे। उनको साक्षात्कार हो रहे थे। उन्होंने जैव धर्म नामक ग्रंथ में बड़े ही सुंदर, मनोरंजक पद्धति से गौड़ीय वैष्णव सिद्धांत की स्थापना की है। हरि नाम चिंतामणि भक्तिविनोद ठाकुर का प्रसिद्ध ग्रंथ है। आप सभी को हरिनाम चिंतामणि का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। जिसमें उन्होंने श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु तथा नामाचार्य श्री हरिदास ठाकुर के मध्य के संवाद की रचना की है व हरि नाम की महिमा के साथ साथ जो नाम अपराध होते हैं, उन नाम अपराधों को समझाया है। इसको कहते हैं - नाम अपराध, यह है नाम अपराध। हमें अपराधों को समझना चाहिए ताकि जिससे हम ज्ञान प्राप्त कर सकें कि यह नाम अपराध है फिर हम हरिनाम के विरूद्ध होने वाले अपराध को टाल सकेंगे। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर का हरि नाम चिंतामणि ग्रंथ काफी उपयोगी है। इस प्रकार उन्होंने लगभग एक सौ ग्रंथों की रचना की जो अधिकतर बांग्ला भाषा है लेकिन उन्होंने संस्कृत भाषा में भी ग्रंथ लिखे है। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर का जमाना ऐसा था कि जब सारे धर्म की इतनी ग्लानि हो चुकी थी कि श्रील भक्तिविनोद ठाकुर को चैतन्य चरितामृत की प्रति बंगाल में प्राप्त नहीं हो रही थी। वे खूब खोज रहे थे, कहां मिलेगा- कहां है चैतन्य चरितामृत। बहुत प्रयास करने के उपरांत उनको सौभाग्य से उड़ीसा में एक चैतन्य चरितामृत की प्रति प्राप्त हुई। तत्पश्चात श्रील भक्ति विनोद ठाकुर चैतन्य चरितामृत पर एक भाष्य लिखा जिसका उन्होंने नाम अमृत प्रवाह भाष्य दिया। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने भी चैतन्य चरितामृत पर एक भाष्य लिखा। उन्होंने उसे अनु भाष्य नाम दिया। श्रील प्रभुपाद ने भी जब चैतन्य चरितामृत का अंग्रेजी में अनुवाद किया। जैसा कि उनको भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर का आदेश हुआ था। 'किताबें छापों,अंग्रेजी भाषा में प्रचार करो' प्रभुपाद ने भी अमृत प्रवाह भाष्य औऱ अनु भाष्य लिखा। उन्होंने चैतन्य चरितामृत के अध्यायों का जो सार है, या परिचय है, उसमें अमृत प्रवाह भाष्य के आधार पर लिखा है। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के योगदान अथवा उनकी देन अथवा उन्होंने जो जो किया अथवा दिया, इस गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के लिए अर्थात श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के लिए इसका व्याख्यान तो हम वैसे भी करने में समर्थ नहीं हैं। उन्होंने इतनी सारी बातें व इतने कार्य किए हैं, वे अनगिनत हैं। उनके कार्य अथवा सफल प्रयास रहे। वे पुस्तक प्रिंटिंग अथवा पुस्तक वितरण तथा विदेशों में भी अपने ग्रंथ भेज रहे थे। यह पुस्तक वितरण की जो स्पिरिट (आत्मा) है, श्रील प्रभुपाद जो पुस्तक वितरण करो, पुस्तक वितरण करो , पुस्तक वितरण करो- जो आदेश देते थे। जब 1896 में श्रील प्रभुपाद जन्में थे अर्थात जिस वर्ष श्रील प्रभुपाद यानि अभय का जन्म कोलकाता में हुआ। उसी वर्ष भक्ति विनोद ठाकुर अपने ग्रंथों को चैतन्य लाइफ एंड परसेप्ट नाम का एक छोटा ग्रंथ विदेशों में इधर उधर अर्थात कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि भेज रहे थे। ऐसा ग्रंथ वितरण का कार्य भी श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने ही प्रारंभ किया। हरि! हरि! क्या कहें, अब यह हरे कृष्ण आंदोलन सर्वत्र फैल रहा है। उन्होंने इसकी भविष्यवाणी भी की थी। चैतन्य महाप्रभु ने यह कहा ही था कि यह हरिनाम नगर आदि ग्राम में फैलेगा। *पृथिवीते आछे यत नगरादि ग्राम।सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम।। ( चैतन्य भागवत) अर्थ:- पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गांव है, उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने भी कहा था- एक समय आएगा, जब विदेश से जर्मनी, इंग्लैंड यहां, वहां के लोग भारत आएंगे और नवद्वीप पहुंचेंगे। भारतीयों व बांग्लाइयो के साथ एकत्रित होकर मिलजुलकर वे गाएगें। जय शचीनन्दन जय शचीनन्दन शचीनन्दन गौर हरि। गाइए। आप गा रहे हो? हमारे साथ यूक्रेन के भक्त हैं, अर्जुन है। अन्य भी देशों के भक्त हैं। भक्ति विनोद ठाकुर ने कहा था कि विदेश के भक्त और भारत के भक्त इकट्ठे होकर गाएंगे। अगर हम आज गाते है, यह श्रील भक्ति विनोद ठाकुर की भविष्यवाणी सच हो रही है। आज बर्मा, थाईलैंड से भक्त भी हैं, कुछ अफ्रीका से हैं, कुछ रशिया से हैं। कई सारे देशों के भक्त हमारे साथ हैं और वे सब गा रहे हैं, जय शचीनन्दन, जय शचीनन्दन,जय शचीनन्दन, जय शचीनन्दन गौर हरि ।। हरे कृष्ण!!!

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