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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *दिनांक 13 फरवरी 2022* हरे कृष्ण!!! आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में 1067 स्थानों से प्रतिभागी सम्मिलित हैं। हरे कृष्ण! आपका स्वागत है। यू आर वेलकम। *माधव-तिथि, भक्ति जननी, यतने पालन करि। कृष्ण वसति, वसति बलि, परम आदरे बरि॥2॥* ( वैष्णव भजन..) एकादशी तिथि को माधव तिथि भी कहते हैं। माधव की तिथि, भगवान की तिथि। कोई विशेष प्रसंग, विशेष उत्सव जब संपन्न होते हैं, उसको माधव तिथि कहते हैं। विशेष रूप से यह एकादशी माधव तिथि के नाम से जानी जाती है। माधव तिथि कैसी है? भक्ति जननी अर्थात यह भक्ति की जननी है। माधव तिथि मतलब माधव का कोई उत्सव। आज एकादशी महोत्सव है। इसका पालन करने से हमें अधिक भक्ति प्राप्त होती है। हम अधिक भक्तिमान बनते हैं। अभी अभी हम कीर्तनीय सदा हरि कर रहे थे। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* अब हम थोड़ा नित्यम भागवत सेवया करते हैं। कुछ भागवत कथा का श्रवण करते हैं। हम चैतन्य भागवत से एक कथा का श्रवण करेंगे जो कथा या लीला एकादशी के दिन संपन्न हुई थी। जब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु शिशु ही थे अथवा बालक ही थे या निमाई ही थे, एकादशी के दिन जब उनको शची माता ने जगाया होगा उठी उठी गोपाला.... यह कृष्ण कन्हैया लाल ही हैं। यह मायापुर गोकुल से अभिन्न हैं। कृष्ण ही श्री कृष्णचैतन्य या निमाई बने हैं, यशोदा शची माता बनी है। जैसे बालक, बालकृष्ण को यशोदा जगाती थी तो वैसे ही बाल निमाई को भी शची माता या यशोदा ने जगा दिया और जगते ही निमाई ने रोना प्रारंभ किया 'ही स्टार्टड क्राइंग' कीर्तन करो। कीर्तन करो। चलो हम भी कीर्तन करते हैं। शची माता यह जानती थी कि निमाई जब कभी रोता है तब कीर्तन करने से वह चुप हो जाता है। इसलिए वह कहने लगी कि तुम भी कीर्तन करो। तुम भी कीर्तन करो। नाचो निमाई। नाचो कीर्तन करो। निमाई रोना बंद नहीं करता है। उसका क्रंदन चल ही रहा है। तब फिर निमाई सोचते हुए कहता है कि मैं कीर्तन करते-करते, रोते-रोते जान दे दूंगा। आई विल गिव अप माय लाइफ। अगर आप मुझे बचाना चाहती हो तो कीर्तन नहीं। आज मुझे प्रसाद ग्रहण करना है। मुझे अन्न प्रसाद चाहिए। शची माता के साथ जगन्नाथ मिश्र भी हैं। दोनों ही समझाने बुझाने का प्रयास करते हैं। मत रो! मत रो निमाई! निमाई कहता है कि नहीं, मुझे अन्न प्रसाद चाहिए। मुझे भोग चाहिए नैवेद्य चाहिए। आज तो एकादशी है। एकादशी के दिन अन्न ग्रहण नहीं होता। बेटा! ऐसी शास्त्र में उक्ति नहीं है या वेद प्रमाण नहीं है। एकादशी के दिन अन्न ग्रहण करना वर्जनीय है। निमाई ने कहा- नहीं! नहीं! मैं नहीं जानता। मुझे अन्न चाहिए। मुझे भोग चाहिए। मुझे भोग चाहिए। उनके पिता ने कहा- कहां से लाए, तुम्हारे लिए भोग? तत्पश्चात निमाई ने कहा वह जो जगदीश पंडित, हिरण्य भागवत है ना, उनके घर में आज विशेष पकवान या छप्पन भोग बने हैं। वो मुझे लाकर दो। शची माता और जगन्नाथ मिश्र ने यह बात सुनी तो बोले क्या... क्या उनके घर में अन्न प्रसाद बना हुआ है! विशेष नैवेद्य तैयार है! यह तुमको कैसे पता? उन्होंने सोचा कि यह ऐसे ही कह रहा है। वहां कोई अन्न प्रसाद नहीं होगा। निमाई जब हठ लेकर बैठा ही है। उसका रोना चल ही रहा है। तब जगन्नाथ मिश्र जाते हैं, जगदीश पंडित और हिरण्य भागवत उनके मित्र ही थे लेकिन बहुत दूर रहते थे। वहां वह जब चल कर गए,पता लगवाया तो सचमुच उन्होंने उस दिन कुछ विशेष पकवान बनाए थे एकादशी होते हुए भी। वैसे एकादशी का व्रत तो हम साधकों के लिए है। भगवान के लिए तो नहीं है भगवान एकादशी का उपवास नहीं करते। अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए यह जो नियम है, अन्न ग्रहण वर्जनीय है। यह नियम भगवान के लिए लागू नहीं होता। वैसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु या निमाई उस एकादशी के दिन यह कुछ सिद्ध करना चाह रहे थे या इस बात का थोड़ा सा खुलासा करना चाह रहे थे कि वे कौन हैं? वे स्वयं भगवान हैं, इस बात को छिपाने का प्रयास तो करते ही थे लेकिन कुछ ऐसी लीलाएं/ घटनाएं घटती जिससे पता चल ही जाता और यह बात लीक हो जाती कि ये स्वयं भगवान हैं। जब यह मांग की कि एकादशी के दिन मुझे अन्न प्रसाद चाहिए और उनको पता भी कैसे चला। जब वे जगदीश पंडित और हिरण्य भागवत के यहां पहुंचे तो इन दोनों को भी बड़ा अचरज हुआ कि आपका घर इतना दूर है। निमाई अभी-अभी तो जगा है और उसको आज पता भी कैसे चला कि आज एकादशी है ... उसने कोई घोषणा या अनाउंसमेंट तो नहीं सुनी। न तो वह कोई पंचांग पढ़ता है लेकिन उसको पता कैसे चला कि आज एकादशी है? इतना ही नहीं, आपका घर कई मील दूरी पर है और हमारे घर में और ऐसा विशेष अन्न प्रसाद बना है या भोग बने हैं नैवेद्य तैयार है,यह निमाई को कैसे पता चला? इसी के साथ उनके हृदय प्रांगण में यह बातें प्रकट हो रही हैं। उनको यह साक्षात्कार हो रहा है कि यह जो निमाई है, निमाई स्वयं भगवान हैं। भगवान सर्वज्ञ होते हैं। यह बात छिपी नहीं रह सकती कि हमारे घर में कुछ विशेष भोजन की व्यवस्था हुई है। हमनें कहा कि जब भागवत कथा सुनते हैं तो हम चैतन्य भागवत के आदि खंड के छठवें अध्याय में से यह लीला सुना रहे हैं। चैतन्य भागवत में यह लीला विस्तार से सुनाई है। वैसे चैतन्य चरितामृत में तो एक ही श्लोक या एक ही पयार श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी ने लिखा है किंतु निमाई की बाल लीला का विस्तार से वर्णन तो वृंदावन दास ठाकुर ने अपने चैतन्य भागवत में किया है। यहां पर हिरण्य और जगदीश कहने लगे *भुझीलान ए शिशु परम् रूपवान, जानिएही एह देहे गोपाल अधिष्ठान* ( चैतन्य भागवत आदि लीला ६.३०) आपका जो यह निमाई बालक है, एक तो रूपवान है, बहुत सुंदर है। गौर सुंदर! और यह स्वयं गोपाल है। इसमें गोपाल का अधिष्ठान है या तुम्हारे निमाई में गोपाल की प्रतिष्ठा हुई है। *ए शिशुर देहे क्रीडा करे नारायण ह्रदय वसिया ये बोलाए वचन।।* ( चैतन्य भागवत आदि लीला ६.३१) इस शिशु निमाई के हृदय प्रांगण में पूरा हृदय ही नहीं पूरा व्यक्तित्व ही भगवान् है, हृदय से ये वचन निकल रहे हैं। ये मांग कर रहा है मुझे अन्न प्रसाद चाहिए अन्न प्रसाद चाहिए। यह हिरण्यगर्भ व जगदीश पंडित कह रहे हैं *ए शिशुर देहे क्रीडा करे नारायण* इस शिशु के देह अथवा निमाई के रूप में नारायण ही लीला खेल रहे हैं।आज एकादशी के दिन अन्न मांग रहे हैं। यह नारायण की मांग है, यह भगवान चाहते हैं। *द्वि विप्र बोले बाप खाओ, उपहार सकल कृष्ण स्वार्थ हलए हमार* ( चैतन्य भागवत आदि लीला ६.३२) ले जाओ, ले जाओ, यह सारे उपहार या पकवान जो हमने बनाए हैं, ले जाओ। निमाई को खिलाओ। इससे हमारा जीवन कृतार्थ होगा। वे यह भी कहते हैं- *भक्ति विना चैतन्य गोसाई नहीं जानि अनंत ब्रह्मांड यारलोमे कूपे गनि* ( चैतन्य भागवत आदि लीला ६.३५) जिनके रोम रोम से ब्रह्मांड उत्पन्न होते हैं।.. भगवान तो अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक कहलाते हैं। नायक बनने से पहले उसकी उत्पत्ति भी तो भगवान से ही होती है। भगवान के रोम-रोम से, महाविष्णु के रोम-रोम से एक एक ब्रह्मांड उत्पन्न होता है। हमारे रोम रोम से.. जब हम कभी परिश्रम करते हैं, कुछ दौड़ते हैं तब उस परिश्रम के बिंदु या कुछ स्वेद बिंदु, कुछ जल के बिंदु जैसे हमारे शरीर से उत्पन्न होते हैं जिसको हम पसीना कहते हैं। भगवान के रोम-रोम से ब्रह्मांड उत्पन्न होते हैं। अनंत कोटी ब्रम्हांड। जिन दो भक्तों के घर में अन्न प्रसाद बना था। वे कह रहे हैं, ये तो अनंत कोटी ब्रम्हांड नायक हैं या ये वैकुंठ नायक हैं। यह तुम्हारा है निमाई! कृपया ले जाइए! निमाई को खिलाइए, हमारा जीवन कृतार्थ होगा। जगन्नाथ मिश्र ने वैसा ही किया घर पर जब प्रसाद पहुंचा दिया। प्रसाद तो नहीं कह सकते। भगवान् को भोग लगने के बाद प्रसाद होता है। यह भोग ही है, जब वहां भोग पहुंचाया। निमाई को भोग लगाया। उस भोग को देखते ही निमाई नाचने लगे, कीर्तन करने लगे। प्रसाद को देखते ही उनका मूड चेंज हुआ। रोना बंद और कीर्तन प्रारंभ। साथ में नृत्य हो रहा है- *कृष्ण बड दयामय, करिबारे जिह्वा जय, स्वप्रसाद-अन्न दिलो भाई। सेइ अन्नामृत पाओ, राधाकृष्ण-गुण गाओ, प्रेमे डाक चैतन्य-निताई॥* अर्थ:- भगवान् कृष्ण बड़े दयालु हैं और उन्होंने जिह्वा को जीतने हेतु अपना प्रसादम दिया है। अब कृपया उस अमृतमय प्रसाद को ग्रहण करो, श्रीश्रीराधाकृष्ण का गुणगान करो तथा प्रेम से चैतन्य निताई! पुकारो। अब अन्नामृत का पान भी करने वाले हैं। उन्होंने राधा कृष्ण का गुणगान भी प्रारंभ किया। केवल अकेले नहीं, जब सारा नैवेद्य, सारा भोग वहां जगन्नाथ मिश्र भवन, मायापुर में पहुंच गया। तब निमाई ने अपने कई सारे मित्रों को इकट्ठा किया और सभी मिलकर यह प्रसाद या भोग ग्रहण कर रहे हैं । यह लीला ऐसी ही हुई जैसे कृष्ण अपने मित्रों के साथ, ग्वाल बालकों के साथ, यमुना के तट पर कृष्ण लीला में भोजन अपने मित्रों के साथ किया करते थे। स्वयं भी खाते व औरों को भी खिलाते थे, उनके मित्र भी उनको खिला रहे हैं। यह सारा प्रसाद ग्रहण करने का उत्सव या फीस्ट फेस्टिवल है। कीर्तन और गान भी हो रहा है। नृत्य करते-करते वे खा रहे हैं, खिला रहे हैं । कुछ पकवान एक दूसरे के ऊपर फेंक भी रहे हैं। कुछ उनके शरीर पर मल रहे हैं या मुख में डाल रहे हैं। छोटे बच्चे कुछ खाते हैं, कुछ फेंकते हैं। कुछ अन्न के साथ क्या करते हैं, कुछ क्या करते हैं। वही यहां हो रहा था इस महाप्रसादे गोविंदे.. जब महाप्रसाद का भक्षण निमाई ने अपने मित्रों के साथ किया। एक बड़ा बड़ा उत्सव ही बना। सब बुजुर्ग लोग इस उत्सव को देख रहे थे। शची माता, जगन्नाथ मिश्र और भी पड़ोसी वहां पहुंचे हैं। यह जो क्रीडा प्रसाद या अन्न ग्रहण करने की जो क्रीड़ा है। निमाई बांट रहे हैं। उसके साथ खेल रहे हैं। नाच रहे हैं। एवरीथिंग इज गोइंग ऑन। आज एकादशी है तो एक एकादशी के दिन निमाई ने मायापुर में इस प्रकार की लीला खेली। *श्री कृष्णचैतन्य राधा कृष्ण नहे अन्य।* ( चैतन्य भागवत) श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं भगवान हैं। उन्होंने अपनी भगवत्ता का प्रदर्शन इस लीला के माध्यम से कराया। हमें भी समझना चाहिए या हमें समझाने के लिए यह लीला हो रही है। यह जो नियम है कि एकादशी के दिन अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए, यह हम साधकों के लिए नियम है। वैसे भी मंदिर के या आपके भी विग्रह हैं, उनके लिए नियम नहीं है। आज अन्न ग्रहण नहीं होगा, हे पंढरीनाथ! हे राधा पंढरीनाथ! या हे गोपीनाथ! हे जगन्नाथ! वैसे जगन्नाथपुरी में, वहां के जो पंडा है, वे भी अन्न ग्रहण करते हैं। वे एकादशी का पालन नहीं करते। वे समझते हैं, वैसे यह नियम वैकुंठवासियों और गोलोक वासियों के लिए भी नहीं है। एकादशी है तो अन्न ग्रहण नहीं करना है। जगन्नाथ पुरी के जो पंडा, पुजारी हैं; वह भी खूब... "जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ।" वे जगन्नाथ का भात, आज के दिन में भी खाते हैं। वे कहते हैं कि नहीं! यह नियम हमारे लिए नहीं है। यह तो साधकों के लिए है। हम तो सिद्ध महात्मा हैं, हम पहुंचे हुए हैं। हम तो भगवान के साथ हैं हम उनके धाम में हैं। ऐसे भावों व विचारों के साथ इस जगन्नाथपुरी में भी, वे जगन्नाथ का प्रसाद/ जगन्नाथ का भात खाते रहते हैं। हरि! हरि! लेकिन हम नहीं खाते। हम तो पालन करेंगे। पहली बात तो हम क्या सोचते हैं, उसकी इस्कॉन के हर मंदिर में अनाउंसमेंट होती है। अनुस्मारक होता है, नो ग्रेन अर्थात आज अन्न ग्रहण नहीं होगा। उसका कारण भी है कि हम अन्न ग्रहण क्यों नहीं करते। सारे संसार भर का पाप एकादशी के दिन उस अन्न में निवास करता है। इसीलिए हम उससे दूर रहते हैं लेकिन वैसे उपवास मतलब फास्टिंग ही नहीं है। उपवास का भावार्थ तो यह है- उप मतलब पास, वास मतलब निवास। भगवान के अधिक पास। भगवान के अधिक निकट। अधिक निकट निकटतर तत्पश्चात संभव है तो निकटतम पहुंचना मतलब भगवान के पास पहुंच गए, तब निकटतम हुआ। कम से कम निकट या निकटतर अर्थात अधिक अधिक निकट पहुंचने का यह दिन है। इसको उपवास कहते हैं। भगवान के पास पहुंचने/अधिक निकट जाने का दिन है। आइए तो हम तो फास्टिंग अर्थात उपवास करेंगे। अन्न ग्रहण नहीं करेंगे या कम अन्न ग्रहण करेंगे अर्थात दूसरा प्रसाद भी हम थोड़ा कम ही खाएंगे। अधिक क्या करेंगे? अधिक होगा- श्रवण, कीर्तन। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* यह अधिक करने का.. मोर चैंटिंग, अधिक श्रवण, कीर्तन, अधिक नित्यम भागवत सेवया... अधिक साधु संग, भक्तों का सङ्ग करने का यह दिन है। एकादशी के दिन कुछ विशेष विग्रह आराधना/ कुछ विशेष ड्रेसिंग/ श्रृंगार इत्यादि भी होता है। भक्त करते हैं। हमारा जो देहात्मबुद्धि का कंसेप्ट जो है, उसको घटाने अथवा कम करने का ... देह ही आत्मा है। ऐसा मानने वाले को देहात्माबुद्धि वाला कहते हैं। *यस्यात्मबुद्धिः कुणपे त्रिधातुके स्वधी : कलत्रादिषु भौम इज्यधीः । यत्तीर्थबुद्धिः सलिले न कहिचि जनेष्यभिजेषु स एव गोखरः ॥* ( श्रीमद् भागवतं 10.84.13) अर्थ:- जो व्यक्ति कफ , पित्त तथा वायु से बने निष्क्रिय काया को स्वयं मान बैठता है , जो अपनी पत्नी तथा अपने परिवार को स्थायी रूप से अपना मानता है , जो मिट्टी की प्रतिमा या अपनी जन्मभूमि को पूज्य मानता है या जो तीर्थस्थल को केवल जल मानता है , किन्तु आध्यात्मिक ज्ञानियों को अपना ही रूप नहीं मानता, उनसे सम्बन्ध का अनुभव नहीं करता , उनकी पूजा नहीं करता अथवा उनके दर्शन नहीं करता - ऐसा व्यक्ति गाय या गधे के तुल्य है । तात्पर्य : असली बुद्धि तो आत्म की मिथ्या पहचान से मनुष्य की उन्मुक्तता द्वारा प्रदर्शित होती है । जैसाकि बृहस्पति संहिता में कहा गया है देह ही आत्मा है। ऐसी संसार भर के अधिक लोगों की मान्यता है। देह ही आत्मा है लेकिन नहीं यह झूठ है। यह सच नहीं है। उल्टे है क्या? *जीवेर ' स्वरुप ' हय-कृष्णेर ' नित्य-दास ' ।* *कृष्णेर ' तटस्था-शक्ति ' ' भेदाभेद-प्रकाश ' ।।* (चैतन्य चरितामृत 20.108) अनुवाद : कृष्ण का सनातन सेवक होना जीव की वैधानिक स्थिती है , क्योकि जीव कृष्ण की तटस्था शक्ति है और वह भगवान् से एक ही समय अभिन्न और भिन्न है । हम जीव हैं और कृष्ण के दास हैं, नित्य दास है। आज जो शरीर की मांगे हैं, उन मांगो को कम करने का और आत्मा की मांग.. आत्मा की पुकार... आत्मा को कौन चाहिए? आत्मा को भगवान चाहिए। शरीर को मिट्टी चाहिए, यह संसार चाहिए। लेकिन आज के दिन अधिक से अधिक इस बात को ध्यान में रखते हुए कि हम आत्मा हैं। आत्मा की जो मांग है वैसे आत्मा की मांग तो भगवान ही हैं। जब तक यह भगवान प्राप्त नहीं होते, भगवान की पूर्ति नहीं होती। सप्लाई नहीं होती। तब तक हम को रोते ही रहना चाहिए जैसे निमाई रो रहा था। उसकी जो मांग थी- नहीं, मुझे वो भोजन चाहिए। जगदीश के घर में जो भोजन बना है, वो चाहिए। तब तक निमाई रोता ही रहा, जब तक उन्हें भोजन नहीं मिला। वैसे ही जब तक हमें भी कृष्ण प्राप्त नहीं होते, आत्मा को परमात्मा भगवान प्राप्त नहीं होते तब तक हमें भी रोते ही रहना चाहिए। रोते ही रहना चाहिए। हम कैसे रोते हैं- *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* यह कहते हुए रोना है। जैसे श्रील प्रभुपाद कहा करते थे- चैटिंग लाइक ए क्राइंग बेबी। जैसे बालक का क्रंदन या रोना होता है। जैसे बालक मां के लिए रोता है या हो सकता है उसको कोई और खिलौना चाहिए। जब तक उसे नहीं मिलता तब तक वह रोता ही रहता है। श्रील प्रभुपाद कहा करते थे, जप कैसा होना चाहिए? जप कैसा होना चाहिए? क्राइंग ऑफ द बेबी अर्थात जैसे बच्चों का रोना होता है। तो रोते रहिए। गाते रहिए। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* जब रोते-रोते हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हुए शरीर में रोमांच और *प्रेमाञ्जनच्छुरितभक्तिविलोचनेन सन्तः सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति।* *यं श्यामसुन्दरमचिन्त्यगुणस्वरूपं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ।।* (ब्रम्हसंहिता 5.38) *अनुवाद :* जिनके नेत्रों में भगवत प्रेम रूपी अंजन लगा हुआ है ऐसे भक्त अपने भक्ति पूर्ण नेत्रों से अपने ह्रदय में सदैव उन श्याम सुंदर का दर्शन करते हैं जो अचिंत्य हैं तथा समस्त गुणों के स्वरूप हैं। ऐसे गोविंद जो आदि पुरुष हैं मैं उनका भजन करता हूं । हम जप कर रहे हैं, कीर्तन कर रहे हैं मतलब रो रहे हैं। क्रंदन कर रहे हैं। आंसू बहा रहे हैं तो फिर *सन्तः सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति।* वैसे बच्चा जब रोता है तो बड़ा फोकस रहता है। वह सोचता है कि मम्मी, मम्मी कहां है। वह रो भी रहा है और मम्मी को याद भी कर रहा है या हो सकता है कि कुछ खिलौना चाहिए या कुछ मिठाई चाहिए। उसका स्मरण भी करता होगा। वह मिठाई, वह लड्डू, वह खिलौना.. उसको याद करते करते वह रोता रहता है। जब तक प्राप्त नहीं होता, मां आकर, उसको उठाकर गोद में लेटा नहीं लेती हैं या कुछ खिलौना नहीं देती। तब तक वह रोता ही रहता है। वैसे ही हमें भी ... कीप चैटिंग एंड चैटिंग एंड चैटिंग ....इसलिए कहा है- *हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् । कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥* ( चैतन्य चरितामृत आदि लीला 17.21) अनुवाद:- " इस कलियुग में आत्म - साक्षात्कार के लिए भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन , भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन , भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है , अन्य कोई उपाय नहीं है, अन्य कोई उपाय नहीं है । " तीन बार कहा है। जोर दिया है। जप या कीर्तन करते रहिए। जप कीजिए, कीर्तन कीजिए। *तृणादपि सु-नीचेन तरोरिव सहिष्णुना। अमानिना मान-देन कीर्तनीयः सदा हरिः ॥* ( चैतन्य चरितामृत आदि लीला 17.31) अनुवाद: जो अपने आपको घास से भी अधिक तुच्छ मानता है, जो वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु है। जो किसी से निजी सम्मान की अपेक्षा नहीं रखता, फिर भी दूसरों को सम्मान देने के लिए सदा तत्पर रहता है, वह सरलता से सदा भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन कर सकता है।" एकादशी के दिन किए हुए जप, कीर्तन और साधना का अधिक फल है या सफल। भगवान प्राप्त होंगे या भगवान के अधिक निकट हम पहुंच सकते हैं। अधिक गति से। आज की हुई साधना भक्ति के कारण कुछ स्पीड बढ़ेगी इट इज द बूस्ट। इसलिए माधव तिथि भक्ति की जननी है। एकादशी का सदुपयोग करना चाहिए। पूरा लाभ उठाना चाहिए। भक्ति करने का सीजन है- वनडे। सीजन तो कुछ समय के लिए होता है या कुछ वीक्स या मंथ्स। वैसे ही यह 1 दिन का सीजन है। इसलिए पूरा फायदा उठाइए। हरि! हरि! जहां हम स्थित हैं। पंढरपुर धाम की जय! वैसे हर एकादशी को पंढरपुर में उत्सव होता है। हर एकादशी को उत्सव होता है और हर एकादशी को कई सारे भक्त कीर्तन करते हुए, चलते हुए पदयात्रा करते हैं ।(उसको दिंडी कहते हैं।) यहां आते हैं। उन एकादशियों में कुछ एकादशी या तो विशेष हैं जैसे कि आज की माघ। माघ एकादशी या मागवरी कहते हैं। वारी मतलब बारंबार आना। जो बारंबार आते हैं, उनको वारकरी भी कहते हैं। आज यहां लाखों लाखों लोग या वारकरी या विट्ठल भक्त पहुंचे हैं। यह धाम वैसे नाद ब्रह्म के लिए प्रसिद्ध है। नादब्रह्म, भगवान के नाम का कीर्तन यहां खूब होता है। पूरी रात भर चल ही रहा था और आज यहां पूरे दिन भर होगा। चंद्रभागा में स्नान होगा। सब उन्हीं की सुविधा के लिए हमनें यहां प्रभुपाद घाट बनवाया है। इस्कॉन की जो प्रॉपर्टी नदी के तट पर ही है।(आप आए होंगे तो देखा होगा।) उस प्रभुपाद घाट पर इतनी भीड़ है। इस समय कुम्भ मेले जैसा ही वातावरण यहां बन चुका है। हजारों गांव से, नगरों से यात्री यहां पहुंचे हैं। प्रभुपाद घाट और इस्कॉन पंढरपुर की यात्रा भी चल रही है। यात्री राधा पंढरीनाथ के भी दर्शन कर रहे हैं और घाट पर विट्ठल रुक्मणी का दर्शन। प्रभुपाद घाट पर और लोग बड़ी संख्या में स्नान भी कर रहे हैं। यह विशेष त्योहार है, वैसे अब तक पिछले एक-दो साल से लॉकडाउन ही चल रहे थे। शायद यह पहली मुख्य एकादशी होगी जब लॉक डाउन नहीं है। इसलिए इसका फायदा उठाते हुए कुछ अधिक यात्री आ पुहंचे हैं। निश्चित ही, उनका लक्ष्य तो विट्ठल भगवान का दर्शन भी करना होता है। लंबी कतारों में यात्री खड़े हैं और विट्ठल भगवान की ओर आगे बढ़ रहे हैं। हम आपको जपा सेशन में विठ्ठल और रुक्मणी के दर्शन दिखा रहे थे। *सुन्दर ते ध्यान उभे विटेवरी| कर कटावरी ठेवलो* ||1|| *तुशीहार गा कासे पांंबर |अवध निरंतरता हेचि ध्यान* ||2|| *मकर केण्डे तपती श्रावण | कंठी कौस्तुभमणी विराजित*||3|| *तुका म्हने मझे हेचि सर्व सुख* *| पाहिन श्रीमुख आवडीने* | |4|| -- संत तुकाराम महाराज ये तुकाराम महाराज का प्रसिद्ध अभंग है जिसको सभी पंडालों में सभी वारिकरी गा रहे हैं। देखिए! वारिकरी! इस्कॉन पंढरपुर मंदिर में भी आ जा रहे हैं। अच्छा होता है कि हम आपको प्रभुपाद घाट का दृश्य दिखाते लेकिन हमनें ऐसी व्यवस्था तो नहीं की । शायद कल भी दिखा सकते हैं वीडियो या कोई फुटेज। ठीक है। हरे कृष्ण!!!

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