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जप चर्चा 19 मई 2020 पंढरपुर धाम श्री गुरु गौरांग जयते

मृत्यू की तैयारी कृष्णभावना संग

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।

श्री शुकदेव गोस्वामी पधार गए हैं श्रील शुकदेव गोस्वामी महाराज की जय! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। कथा व्यास व्यासदेव के पुत्र ही है शुकदेव गोस्वामी। येषां संस्मरणात पुंसां सद्यः शृध्यंति वै गृहा। किं पुनर्दर्शनस्पर्शपादशौचासनादी।।

अनुवाद : आपके केवल स्मरण से ही हमारे घर उसी क्षण पवित्र हो जाते हैं तो फिर आपके प्रत्यक्ष दर्शन होने से आपका स्पर्श मिलने से आपके पवित्र चरण प्रक्षालन करने से और आपको बैठने के लिए हमारे घर में आसन देने से क्या क्या होगा (श्रीमदभागवतम 1.19.33)

शुकदेव गोस्वामी जैसे महाभागवतो का स्मरण ही पर्याप्त है जैसे यहां कहा गया हैं : संस्मरणात सम्मित प्रकार से स्मरण पुंसां सद्यः शृध्यंति वै गृहा। गृहस्थ ब्रह्मचारी वानप्रस्थ संन्यासी सभी शुद्ध हो सकते हैं। परीक्षित महाराज ने कहा, परीक्षित महाराज गृहस्थ थे इसलिए कह रहे हैं हम जैसे गृहस्थ भी शुद्ध हो सकते हैं कैसे संस्मर्णात संस्मरणी अस बलं, स्मरण ही पर्याप्त है किंतु आज क्या हो रहा है, आज हमको अतिशय सौभाग्य प्राप्त हो चुका है दर्शनात इसलिए हमें आपका दर्शन प्राप्त हो रहा है पादशौचासनादी स्पर्श पादस्पर्श अब हम आपके चरणों का स्पर्श कर पायेंगे

आपके चरणों का पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हो रहा है

आसनादी। हम आपको आसन दे पा रहे हैं सिंहासन पर आरूढ़ हो जाइए और फिर माल्यार्पण भी होगा आदीही पुष्प वृष्टि भी हो सकती है आदिभि के अंतर्गत अंत में हम कुछ दक्षिणा भी दे पाएंगे, इसके पहले वैसे हम आपके के मुखारविंद से भागवत कथा सुनेंगे, जब स्मरण ही पर्याप्त हैं हमारे शुद्धिकरण के लिए ,सिद्धि के लिए, आज तो हमें आपका सानिध्य, आपका दर्शन, आपका स्पर्श ,हम आपके चरणों को स्पर्श करेंगे और हो सकता है आप हमें अपना आलिंगन भी दे दो अपने गलेे भी लगा सकते हो संभावना है । इन शब्दों में राजा परीक्षित श्रील शुकदेव गोस्वामी का स्वागत कर रहे हैं अपना हर्ष व्यक्त कर रहे हैं अपनी कृतज्ञता को व्यक्त कर रहे हैं ।अनायास ही आ गए बिना प्रयास आ गए जिन्हें आमंत्रित नहीं किया था। यह व्यवस्था भगवान की ही थी

ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव । गुरु कृष्ण प्रसादे पाय भक्ति लता बीज॥ माली हैया करे सेई बीज आरोपण।

किसी की तो व्यवस्था है राजा परीक्षित की तो यह व्यवस्था नहीं है लेकिन भगवान ने ही कुछ किया और वहां श्रील शुकदेव गोस्वामी को पहुंचा दिया भाग्यवान बनाया। राजा परीक्षित और फिर परीक्षित महाराज के साथ और भी भाग्यवान बनने वाले हैं। वहां उपस्थित सभी राजर्षि देवर्षि महर्षि संसार भर के सभी ऋषि मुनि वहां पहुंचे हैं। हरि हरि तो कहने की बात यह थी वैसे मैं जो आज कहना चाह रहा था यहां की राजा परीक्षित ने परिप्रश्नेन सेवया।

तव्दिध्दि प्रणिपातेन तो हो गया और प्रणिपात हो अब क्या होगा परी प्रश्न होगा

तव्दिध्दि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिन।।

आध्यात्मिक गुरु के पास जाकर तत्व जानने का प्रयास करो नम्रता पूर्वक उन्हें प्रश्न करो और उनकी सेवा करो आत्म साक्षात्कार व्यक्ति तुम्हें ज्ञान प्रदान कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने तत्व पहले से ही जान लिए हैं।(भगवद्गीता 4.34)

यह की राजा परीक्षित ने परिप्रश्नेन सेवया। तव्दिध्दि प्रणिपातेन तो हो गया और प्रणिपात हो अब क्या होगा परीप्रश्न होगा। राजा परीक्षित प्रश्न करेंगे एक ही प्रश्न करेंगे जिसका उत्तर है श्रीमदभागवतम होगा पूछा एक प्रश्न यह 11 स्कंदो की कथा सुनाई शुकदेव गोस्वामी ने आपको पता है ना शुकदेव गोस्वामी की कथा 12 स्कंदो वाली नहीं है 11 स्कंदो वाली ही है। प्रथम स्कंध के अंत में राजा परीक्षित शुकदेव गोस्वामी का मिलन हो रहा है। अभी-अभी प्रश्न पूछा जाएगा तो उसके उत्तर बचे हैं। 11 स्कंदो में कहे जाएंगे उत्तर, भगवदगीता में श्रीभगवान उवाच 17 अध्याय में ही भगवान बोले हैं। पहले अध्याय में भगवान नहीं बोले कुछ ही शब्द बोले, वैसे ही भागवत मे भी प्रथम स्कंद मे शुकदेव गोस्वामी नहीं बोले प्रथम स्कंद मे शुकदेव गोस्वामी कि कथा नहीं है सुत गोस्वामी की कथा है द्वितीय स्कंध प्रथम अध्याय श्रीशुक उवाच भागवतम शुरू हुआ शुकदेव गोस्वामी की कथा का प्रश्न क्या है ?

अतः पृच्छामि संसिथ्दिं योगीना परम गुरुम्। पुरुषस्येह यत्कार्य म्रियमाणस्य सर्वथा।।

आप सभी महान संतों के और भक्तों के अध्यात्मिक गुरु हैं मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि सभी लोगों को और जो सर्वथा मृत्यु के समीप हैं उसको इस जीवन के पूर्णत्व के सिद्धि का आप मार्ग बताये । (श्रीमदभागवतम1.19.37)

यह प्रश्न है शुकदेव गोस्वामी कहिए या मैं पूछ रहा हूं उसका आप उत्तर दीजिए पृच्छामि संसिथ्दिं जीवन की सिद्धि जीवन की पूर्णता जीवन का साफल्य किस में है क्या करने से जीवन सफल होगा ।

योगीनां परम गुरुम्। पुरुषस्येह यत्कार्य म्रियमाणस्य सर्वथा।।

उस व्यक्ति को मरने वाला है म्रियमाणस्य उसको क्या करना चाहिए केवल राजा परीक्षित ही म्रियमाण नहीं है। वैसे उनके सात दिन ही बचे हैं, सात दिनों के उपरांत उनकी मृत्यु निश्चित है। क्या औरों की मृत्यु निश्चित नहीं है? औरों की मृत्यु निश्चित है । यह प्रश्न राजा परीक्षित ने अपने लिए नहीं पूछा, अपने लिए भी है और औरों के लिए भी है, कितने औरो के लिए, सभी के लिए एक सौ प्रतिशत आबादी के लिए। सिर्फ भारतीय की बात नहीं है, यह नहीं कि अमेरिकन नहीं मरते या चाइनीज कभी नहीं मरते सभी मरते हैं । तो म्रियमानस्य.. तो जो भी मरने वाले हैं या उनको क्या करना चाहिए जीवन में ताकि उनका जीवन सफल हो जाए। और फिर यह बात हम आपसे पूछ रहे हैं क्योंकि योगी नाम परमं गुरु..आप परमहंस हैं तथा योगियों एवं हम सभी के परम गुरु भी हैं।

यच्छ्रोतव्यमथो जप्यं यत्कर्तव्यं नृभि: प्रभो । स्मर्तव्यं भजनीयं वा ब्रूहि यद्वा विपर्ययम् ॥ श्रीमद भागवत १.१९. ३८ ॥

अनुवाद - कृपया मुझे बताएं कि एक आदमी को क्या सुनना, जपना, याद रखना और पूजा करना चाहिए, और यह भी कि उसे क्या नहीं करना चाहिए। कृपया मुझे यह सब समझाएं। यह सब प्रश्न कहिए, पहले प्रश्न से संबंधित ही है दोनों मिलकर एक ही प्रश्न है वैसे। यच्छ्रोतव्यम... हमें क्या सुनना चाहिए ऐसे मनुष्य को क्या सुनना चाहिए जिसकी मृत्यु निश्चित है ऐसे व्यक्ति को क्या सुनना चाहिए । जप्यं.. ऐसे व्यक्ति को कौन सा जप करना चाहिए कैसे जप करना चाहिए। यत्कर्तव्यं... ऐसे व्यक्ति का क्या कर्तव्य है । हे शुकदेव गोस्वामी महाराज, स्मर्तव्यं... कौन सा स्मरणीय किस का स्मरण करना चाहिए भजनीयं... किस का भजन करना चाहिए किस का पूजन करना चाहिए। संबंधित प्रश्न क्या हो सकता है,

श्रीप्रह्राद उवाच श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ २३ ॥ इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा । क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥ २४ ॥

अनुवाद - प्रह्लाद महाराज ने कहा: भगवान विष्णु के पारमार्थिक पवित्र नाम, रूप, गुण, पराक्रम और भूतकाल के बारे में सुनना और जप करना, उन्हें याद करना, प्रभु के चरण कमल की सेवा करना, सोलह प्रकार के भगवान के साथ सम्मानपूर्वक पूजा करना, प्रार्थना करना। भगवान, उनके सेवक बनकर, भगवान के सबसे अच्छे दोस्त पर विचार करते हुए, और उनके प्रति अपना सब कुछ समर्पण कर देना (दूसरे शब्दों में, शरीर, मन और शब्दों के साथ उनकी सेवा करना) - इन नौ प्रक्रियाओं को शुद्ध भक्ति सेवा के रूप में स्वीकार किया जाता है। जिसने इन नौ विधियों के माध्यम से कृष्ण की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया है, उसे सबसे अधिक सीखा हुआ व्यक्ति समझा जाना चाहिए, क्योंकि उसने अन्य ज्ञान प्राप्त कर लिया है।

श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम्.. किसका पादसेवन करना चाहिए, अर्चनं.. किस की अर्चना करनी चाहिए, सख्यम्.. किसके साथ सख्य भाव स्थापित करना चाहिए और धीरे-धीरे आत्मनिवेदनम्.. किस के चरणों में सब कुछ समर्पित करना चाहिए। यत् जो कहा है ब्रूहि यद्वा विपर्ययम्.. क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, विधि भी कहिए और निषेध को भी समझाइए। बस इतना ही प्रश्न राजा परीक्षित पूछे है। और यह प्रश्न सुनकर शुकदेव गोस्वामी इतने प्रसन्न है, तो उसका उत्तर देने के पहले इस प्रश्न का उत्तर देने के पहले प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं शुकदेव गोस्वामी इन शब्दों में।

श्रीशुक उवाच वरीयानेष ते प्रश्न: कृतो लोकहितं नृप । आत्मवित्सम्मत: पुंसां श्रोतव्यादिषु य: पर: ॥२.१.१ ॥

अनुवाद - श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा हे राजन आपका प्रश्न महिमामय है। क्योंकि यह समस्त प्रकार के लोगों के लिए बहुत लाभप्रद है। इस प्रश्न का उत्तर श्रवण करने का प्रमुख विषय है और समस्त अध्यात्मवादियों में इसको स्वीकार किया है।

हा बहुत बढ़िया है, हे राजन तुम्हारा प्रश्न और इस प्रश्न के उत्तर से क्या होगा, लोकहितं.. सभी लोगों का हित करने वाले, इस प्रश्न के उत्तर से सभी लोगों का हित होगा, यह प्रश्न है । अभिनंदन है, स्वागत है तुम्हारे प्रश्न का ।

श्रोतव्यादीनि राजेन्द्र नृणां सन्ति सहस्रश: । अपश्यतामात्मतत्त्वं गृहेषु गृहमेधिनाम् ॥२.१. २ ॥

* अनुवाद* - हे सम्राट, भौतिकता में उलझे उन व्यक्ति जो परम सत्य विषयक ज्ञान के प्रति अंधे है उनके पास मानव समाज में सुनने के लिए अनेक विषय होते हैं।

तो विपर्यया.. निषेध की बात यहां शुकदेव गोस्वामी कहना प्रारंभ कर ही दिए श्रोतव्यादीनि राजेन्द्र.. हे राजा परीक्षित श्रोतव्य आदिनी.. श्रोतव्य , स्मर्तव्य, भजणीय इसका आदिनी जो होगा, नृणां सन्ति सहस्रश:.. इस संसार के लोग उनके पास श्रवण, कीर्तन, स्मरण, भजन करने के कई सारे विषय है, कितने हैं.. सहस्त्रशः.. यह दुनिया वाले इतनी सारी बातें करते रहते हैं, इतना सारा स्मरण भी करते रहते हैं, समर्पित भी होते होंगे। अपश्यतामात्मतत्त्वं गृहेषु गृहमेधिनाम्.. हरि हरि ! इस संसार के लोग आत्म तत्व को नहीं जानते नहीं देखते है वे, नहीं जानने के कारण वे व्यस्त है खबर तोड़ने में.. वही तो है ना श्रवण हुआ कि नहीं रेडिओ सुना ..श्रवण तो दिव्य आध्यात्मिक शब्द है ,कार्य है लेकिन उसी का प्रतिबिंब है, तो सांसारिक श्रवण क्या है रेडियो को सुनना कोई ग्राम कथा सुनना बक बक कोई कर रहा है बकवास कोई कर रहा है उसको सुनो तो उसी में लोग व्यस्त हैं । क्योंकि वे अपश्यतामात्मतत्त्वं... आत्मा तत्व को नहीं जानते हैं और वे हैं गृहेषु गृहमेधिनाम्.. वे गृहमेधी है एक होते हैं गृहस्थ, गृहस्थ आश्रम के गृहस्थ, और वैसे गृहस्थ कुछ कम ही पाए जाते हैं, इस कलयुग में अधिकतर है गृहमेधी। तो क्या करते गृहमेधी..

निद्रया ह्रियते नक्तं व्यवायेन च वा वय: । दिवा चार्थेहया राजन् कुटुम्बभरणेन वा ॥ २.१.३ ॥

अनुवाद - ऐसे ईर्ष्यालु गृहस्थ (गृहमेधी) का जीवन रात में सोने में या तो मैथुन में रत रहने तथा दिन में धन कमाने या परिवार के सदस्यों के भरण पोषण में बीतता है।

इतना ही कह कर अभी और कुछ समय... अब हम सवा सात बजे तक ही जप चर्चा करेंगे आज भी और कुछ समय के लिए देखते हैं और फिर कुछ परिवर्तन होता है । अब दर्शन खुलेंगे सवा सात बजे । तो ऐसे हैं दुनिया वाले, शुकदेव गोस्वामी अभी-अभी ओम नमो भगवते वासुदेवाय कहे और कथा प्रारंभ किए हैं और शुरुआत में तो गृहमेधी की व्याख्या कहो या वर्णन कहो सुना रहे हैं । तो ऐसे गृहमेधी नहीं होना चाहिए। हरि हरि ! कैसा होना चाहिए, कैसा नहीं होना चाहिए, क्या निषेध है, उसी का उल्लेख हो रहा है । तो गृहमेधी क्या करते हैं दिवाचार्थे.. दिवा मतलब दिवस, सूर्य उदय होते ही अर्थ... अर्थव्यवस्था, विभिन्न पैसे आर्थिक विकास वैसे दूसरा तीसरा धंधा ही नहीं है

दिवा चार्थेहया राजन् कुटुम्बभरणेन वा.. और जब पैसा थोड़ा कमा लिया तो क्या करो परिवार का पालन पोषण करने में उनका पूरा दिन बीत जाता है। धन कमाओ फिर खरीदारी करो, परिवार बनाए रखो, बस यह तो दिन हुआ, रात तो बची है रात में क्या करेंगे नींद्रया.. खूब सोएंगे, वैसे जल्दी नहीं सोएंगे, देर से सोएंगे, पार्टियां वगैरह होगी, ऐसे पैसा जो कमाया अभी फिर अंदाज़ से जिएंगे, देसी दारू नहीं पिएंगे, हरि हरि ! नीद्रया.. तो फिर रात्रि को सोएंगे, देर से सोएंगे तो जल्दी उठेंगे नहीं, ब्रह्म मुहूर्त को भूल जाओ या ब्रह्म मुहूर्त को मारो गोली। निद्रया ह्रियते नक्तं.. और इंद्रिय तर्पण मे इंद्रिय तर्पण..

वाचो वेगं मनसः क्रोधवेगं जिह्वावेगमुदरोपस्थवेगम्। एतान्वेगान्यो विषहेत धीरः सर्वामपीमां पृथिवीं स शिष्यात् ॥ उपदेशामृत १ ।।

अनुवाद - वह धीर व्यक्ति जो वाणी के वेग को, मन की मांगों को, क्रोध की क्रियाओं को तथा जीभ, उदर एवं जननेंद्रियो के वेगो को सहन कर सकता है, वह सारे संसार में शिष्य बनाने के लिए योग्य है।

जीव्हा पर नियंत्रण नहीं है, पेट भर गया तो जननेंद्रिय पर दबाव बढ़ गया, तो जननेंद्रिय के तृप्ति के लिए इंद्रिय तर्पण की बात है । उसी में ही रात बिताएंगे तो यह है जीवन, यह वैसे निषिद्ध है । शुकदेव गोस्वामी कहे यह उचित नहीं है, यह कार्य किनका है जो आत्म तत्व को नहीं जानते । यह भागवत सिखाएगा अभी शुकदेव गोस्वामी सिखाने वाले हैं आत्म तत्व या भगवत तत्व विज्ञान ताकि लोगों का क्या होगा सं सिद्धिं... सिद्धि होगी या पूर्णता होगी वैसे पूर्णता किस में होगी अंते नारायण स्मृति में क्या है पूर्णता है, सिद्धि है।

एतावान् सांख्ययोगाभ्यां स्वधर्मपरिनिष्ठया । जन्मलाभ: पर: पुंसामन्ते नारायणस्मृति:॥ २.१.६ ॥

* अनुवाद* - पदार्थ तथा आत्मा के पूर्ण ज्ञान से, योग शक्ति के अभ्यास से, या स्वधर्म का भली-भांति पालन करने से मानव जीवन की जो सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त की जा सकती है, वह है जीवन के अंत में भगवान का स्मरण करना।

अंत में नारायण की स्मृति हो तो जीवन सफल ।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

तो हरे कृष्ण जपीए और अपना जीवन उत्तम बनाइए।

English

19 June 2020

Ultimate perfection of life!

Hare Krishna! We have participants from 809 locations. Gauranga!

Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare

Om namo bhagavate vasudevaya!

Śrila Śukadeva Goswami Mahārāja ki jai! Śrila Śukadeva Goswami was the son of Vyasadeva.

yeṣāṁ saṁsmaraṇāt puṁsāṁ sadyaḥ śuddhyanti vai gṛhāḥ kiṁ punar darśana-sparśa- pāda-śaucāsanādibhiḥ

Translation Simply by our remembering you, our houses become instantly sanctified. And what to speak of seeing you, touching you, washing your holy feet and offering you a seat in our home? (ŚB 1.19.33)

Just remembering Śukadeva Goswami is also enough. This is for brahmacāris, grihastas, vanaprasthas and sannyasis. Parīkshit Mahārāja was also a grihasta and therefore he said to Śukadeva Goswami, ‘A grihasta can become pure simply by remembering you. But today we are getting a special opportunity to have your darsana. Now we can touch your lotus feet, wash your holy feet and offer you a seat in our home.' ādibhiḥ - offering a garland, showering flowers or giving gifts.'We will hear Bhagavata Katha from you. You may embrace or congratulate us.' In this way, Parīkshit Mahārāja is welcoming Śrila Śukadeva Goswami and expressing his gratitude. He has come anayās - without being invited. This was the Lord's arrangement.

brahmāṇḍa bhramite kona bhāgyavān jīva guru-kṛṣṇa-prasāde pāya bhakti-latā-bīja

Translation According to their karma, all living entities are wandering throughout the entire universe. Some of them are being elevated to the upper planetary systems, and some are going down into the lower planetary systems. Out of many millions of wandering living entities, one who is very fortunate gets an opportunity to associate with a bona fide spiritual master by the grace of Kṛṣṇa. By the mercy of both Kṛṣṇa and the spiritual master, such a person receives the seed of the creeper of devotional service. (CC Madhya 19.151)

The Lord made this arrangement and made King Parīkshit fortunate by arranging the association of Śukadeva Goswami for him. Along with King Parīkshit, all the sages are also becoming fortunate.

tad viddhi praṇipātena paripraśnena sevayā upadekṣyanti te jñānaṁ jñāninas tattva-darśinaḥ

Translation Just try to learn the truth by approaching a spiritual master. Inquire from him submissively and render service unto him. The self-realized souls can impart knowledge unto you because they have seen the truth. (BG. 4.34)

Then King Parīkshit asked a question. He asked one main question and another question along with it. He asked one question and Śukadeva Goswami recited the katha of 11 cantos. They met at the end of the first canto and all the answers to the questions will be there in the remaining 11 cantos. Please note this, just as the Lord has not spoken anything in the 1st chapter of Bhagavad-gītā, but He speaks in the remaining 17 chapters, similarly there is no recitation by Śukadeva Goswami in the first canto of Śrīmad Bhāgavatam. Śrila Śukadeva Goswami’s katha started from the 2nd canto, first chapter. When Parīkshit Mahārāja inquired,

ataḥ pṛcchāmi saṁsiddhiṁ yogināṁ paramaṁ gurum puruṣasyeha yat kāryaṁ mriyamāṇasya sarvathā

Translation You are the spiritual master of great saints and devotees. I am therefore begging you to show the way of perfection for all persons, and especially for one who is about to die. (ŚB 1.19.37)

This is a very important question.'What should be done to make the life successful of the one who is about to die?' King Parīksit was to die in the next 7 days. He is not the only one who is going to die, but we are also going to die sooner or later. This question asked by King Parīksit is for everyone. It's not that it's for Indians only and Chinese or Americans will not die. Everyone will die. 'What should be done then in order to make life successful of the one who is about to die?' Parīkshit Mahārāja said,'We are asking you because you are the spiritual master of great saints and devotees.'

yac chrotavyam atho japyaṁ yat kartavyaṁ nṛbhiḥ prabho smartavyaṁ bhajanīyaṁ vā brūhi yad vā viparyayam

Translation Please let me know what a man should hear, chant, remember and worship, and also what he should not do. Please explain all this to me. (ŚB 1.19.38)

This is a secondary question related to the first question. i) What one should hear whose death is certain? ii) What mantra should he chant? iii) What is his duty? iv) Who is supposed to be remembered and worshiped? Related questions could be asked in such a way.

Who should be the object of the 9 types of bhakti? I. śravaṇa (listening to the name, form, qualities and pastimes of the Lord) II. kīrtana (praying) III. smaraṇa (remembering the teachings in the scriptures about the pastimes of the Lord) IV. pāda-sevana (service to the feet) V. arcana (worshiping), VI. namaskar or vandana (bowing to the divine) VII. dāsya (service to the divine) VIII. sākhya (friendship with the divine), and IX. ātma-nivedana (self-surrender to the divine).

What should be done? (vidhī) and what should not be done (nishedha)?

Śukadeva Goswami is expressing his pleasure over such questions.

varīyān eṣa te praśnaḥ kṛto loka-hitaṁ nṛpa ātmavit-sammataḥ puṁsāṁ śrotavyādiṣu yaḥ paraḥ

Translation Śrī Śukadeva Gosvāmī said: My dear King, your question is glorious because it is very beneficial to all kinds of people. The answer to this question is the prime subject matter for hearing, and it is approved by all transcendentalists. (ŚB 2.1.1)

Śrī Śukadeva Goswami said, “Your questions are glorious because they are very beneficial to all kinds of people. Your questions are welcomed.”

śrotavyādīni rājendra nṛṇāṁ santi sahasraśaḥ apaśyatām ātma-tattvaṁ gṛheṣu gṛha-medhinām

Translation Those persons who are materially engrossed, being blind to the knowledge of ultimate truth, have many subject matters for hearing in human society, O Emperor. (ŚB 2.1.2)

He started to speak about do’s and don'ts. O! King Parīksit, people of this world have thousands of topics to hear, chant and remember. These people are not aware of atma-tattva. Hence they are busy in breaking the news. Śravana is hearing the transcendental word and whatever we hear on the material platform is just a reflection of it. People remain busy in listening to radio, gram katha or gossip because they don't know 'atma-tattva'. They are grhamedhi. In Kaliyuga, very few are grihastas and many are grhamedhis.

nidrayā hriyate naktaṁ vyavāyena ca vā vayaḥ divā cārthehayā rājan kuṭumba-bharaṇena vā

Translation The lifetime of such an envious householder is passed at night either in sleeping or in sex indulgence, and in the daytime either in making money or maintaining family members. (ŚB 2.1.3)

We will have a japa talk till 7.15 am for some days. We are discussing that Śukadeva Goswami has started katha by explaining grhamedhi. We shouldn't be grhamedhis like this. This has been explained over here. As soon as a grhamedhi wakes up, he indulges in earning money. As soon as one earns money his entire day goes in maintenance of a family. They will sleep late at night and then will not wake up early. Forget about brahma muhurta.

vāco vegaṁ manasaḥ krodha-vegaṁ jihvā-vegam udaropastha-vegam etān vegān yo viṣaheta dhīraḥ sarvām apīmāṁ pṛthivīṁ sa śiṣyāt

Translation A sober person who can tolerate the urge to speak, the mind’s demands, the actions of anger and the urges of the tongue, belly and genitals is qualified to make disciples all over the world. (Text 1, The Nectar of Instruction)

There is no control over the tongue. When having eaten what is not to be eaten, then they will use the genitals. This is the life of a grhamedhi. Śukadeva Goswami said, “This is not right and these things are done by those who do not know atma-tattva. Śukadeva Goswami will now explain 'atma-tattva' or 'Bhagavata tattva’. By taking benefit of this people can make their lives successful.

etāvān sāṅkhya-yogābhyāṁ sva-dharma-pariniṣṭhayā janma-lābhaḥ paraḥ puṁsām ante nārāyaṇa-smṛtiḥ

Translation The highest perfection of human life, achieved either by complete knowledge of matter and spirit, by practice of mystic powers, or by perfect discharge of occupational duty, is to remember the Personality of Godhead at the end of life. (ŚB 2.1.6)

Perfection is there in ante nārāyaṇa-smṛtiḥ, remembering the Personality of Godhead at the end of one’s life. This will make one's life successful.

Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare

Chant Hare Krishna and make your life perfect.

Hare Krishna!

Russian

Наставления после совместной джапа сессии 19 июня 2020 г. ОКОНЧАТЕЛЬНОЕ СОВЕРШЕНСТВО ЖИЗНИ! Харе Кришна! У нас есть участники из 809 мест. Гауранга! Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе Ом намо бхагавате васудевая! Шрила Шукадева Госвами Махараджа ки джай! Шрила Шукадева Госвами был сыном Вьясадевы. йешам самсмаранат пумсам садйах шуддхйанти ваи гр̣хах̣ ким пунар даршана-спарша- пада-шаучасанадибхих Перевод Шрилы Прабхупады: Наши дома мгновенно освящаются, даже если мы просто вспоминаем тебя, и тем более, если мы созерцаем тебя, прикасаемся к тебе, омываем твои святые стопы и предлагаем тебе место в нашем доме. (Ш.Б. 1.19.33) Достаточно просто вспомнить Шукадеву Госвами. Это для брахмачари, грихастасх, ванапрастх и санньяси. Махараджа Парикшит также был грихастхой, и поэтому он сказал Шукадеве Госвами: “Грихастха может стать чистым, просто вспомнив вас. Но сегодня у нас есть особая возможность получить даршан. Теперь мы можем прикоснуться к вашим лотосным стопам, омыть ваши святые стопы и предложить вам место в нашем доме. адибхих - предложить гирлянду, цветы или подарки. Мы услышим от вас Бхагават-катху. Вы можете обнять или благословить нас”. Таким образом, Парикшит Махарадж приветствует Шрилу Шукадеву Госвами и выражает свою благодарность. Он пришел анайас - без приглашения. Это был план Господа. брахманда бхрамите кона бхагйаван джива гуру-кршна-прасаде пайа бхакти-лата-биджа Перевод Шрилы Прабхупады: «Живые существа, влекомые своей кармой, скитаются по вселенной. Кто-то из них достигает высших планет, а кто-то попадает на низшие. Из многих миллионов таких существ лишь редкий счастливец по милости Кришны встречает на своем пути истинного духовного учителя. Тогда Кришна и духовный учитель даруют ему семя преданного служения». (Ч.Ч. Мадхья лила 19.151) Господь устроил встречу Махараджа Парикшита с Шукадевой Госвами, это и сделало его счастливым. Вместе с Махараджей Парикшитом все мудрецы также стали счастливы. тад виддхи пранипатена парипрашнена севайа упадекшйанти те джнанам джнанинас таттва-даршинах Перевод Шрилы Прабхупады: Чтобы узнать истину, вручи себя духовному учителю. Вопрошай его смиренно и служи ему. Осознавшие себя души могут дать тебе знание, ибо они узрели истину. (Б.Г. 4.34) Затем царь Парикшит задал вопрос. Он задал один основной вопрос и еще один вместе с ним. Он задал один вопрос и Шукадева Госвами поведал катху из 11 песен. Они встретились в конце первой песни, и ответы на все вопросы будут в остальных 11 песнях. Пожалуйста, обратите внимание: точно так же, как Господь ничего не сказал в 1-й главе Бхагавад-гиты, но Он говорил в оставшихся 17 главах, точно так же в первой песне «Шримад Бхагаватам» Шукадева Госвами не произнес ни слова. Катха Шрилы Шукадевы Госвами началась со 2-й песни, первой главы. Когда Парикшит Махарадж спросил: атах прччхами самсиддхим йогинам парамам гурум пурушасйеха йат карйам мрийаманасйа сарватха Перевод Шрилы Прабхупады: Ты духовный учитель великих святых и преданных. Поэтому я умоляю тебя: укажи путь, который может привести к совершенству каждого, а особенно тех, кто стоит на пороге смерти. (Ш.Б. 1.19.37) Это очень важный вопрос. «Что нужно сделать, чтобы жизнь того, кто скоро умрет, была успешной?» Царь Парикшит должен был умереть в ближайшие 7 дней. Он не единственный, кто должен умереть, мы также умрем рано или поздно. Этот вопрос, заданный царем Парикшитом, предназначен для всех. Он был не только для индийцев, а китайцы или американцы никогда не умрут. Все умрут. «Что нужно сделать, чтобы жизнь того, кто скоро умрет, была успешной?» Парикшит Махарадж сказал: «Мы спрашиваем тебя, потому что ты духовный учитель великих святых и преданных.» йач чхротавйам атхо джапйам йат картавйам нр̣бхих прабхо смартавйам бхаджанийам ва брухи йад ва випарйайам Перевод Шрилы Прабхупады: Открой мне, пожалуйста, что человек должен слушать, воспевать, вспоминать и кому поклоняться, а также чего ему не следует делать. Пожалуйста, объясни мне все это. (Ш.Б. 1.19.38) Это дополнительный вопрос, связанный с первым вопросом. Что следует слушать тому, чья смерть близка? Какую мантру он должен воспевать? Каков его долг? Кого следует помнить и кому поклоняться? Подобные вопросы можно задать таким образом. Кто должен быть объектом 9 типов бхакти? шраванам (слушание об имени, форме, качествах и лилах Господа) киртанам (молитва) смаранам (памятование о лилах Господа изложенных в Священных Писаниях) пада-севанам (служение стопам) арчанам (поклонение), намаскар или вандана (принесение поклонов Божеству) дасья (служение Господу) сакхйя (дружба с Господом) и атма-ниведанам (предание Господу). Что нужно делать? (видхи) и что не следует делать (нишедхи)? Шукадева Госвами выражает свое удовольствие от таких вопросов. шри-шука увача варийан эша те прашнах крто лока-хитам нрпа атмавит-самматах пумсам шротавйадишу йах парах Перевод Шрилы Прабхупады: Шри Шукадева Госвами сказал: Дорогой царь, твой вопрос достоин всяческих похвал, ибо несет благо каждому. Все трансценденталисты единодушны в том, что ответ на него — важнейшее из всего, о чем следует слушать. (Ш.Б. 2.1.1) Шри Шукадева Госвами сказал: «Ваши вопросы великолепны, потому что они очень полезны для всех людей. Ваши вопросы приветствуются.» шротавйадини раджендра нрнам санти сахасрашах апашйатам атма-таттвам грхешу грха-медхинам Перевод Шрилы Прабхупады: О император, люди, погрязшие в материальном, глухи к науке о высшей истине и потому находят множество тем для обсуждения, связанных с жизнью человеческого общества. (Ш.Б. 2.1.2) Он начал говорить о том, что можно и чего нельзя делать. O! Царь Парикшит, у людей этого мира тысячи тем, которые можно слушать, о которых можно петь и которые можно помнить. Эти люди не знают об атма-таттве. Поэтому, они заняты распространением новостей. Шраванам значит слушать трансцендентные речи, а все, что мы слышим на материальной платформе, является лишь его отражением. Люди по-прежнему слушают радио, грам-катху или сплетни, потому что они не знают «атма-таттву». Они грихамедхи. В Кали Югу очень мало грихастх и много грихамедх. нидрайа хрийате нактам вйавайена ча ва вайах дива чартхехайа раджан кутумба-бхаранена ва Перевод Шрилы Прабхупады: По ночам такие завистливые домохозяева спят или занимаются сексом, а днем зарабатывают деньги или заботятся о членах своей семьи. В этих занятиях проходит их жизнь. (Ш.Б. 2.1.3) Наши разговоры о джапе будут до 7.15 в течение нескольких дней. Мы говорим о том что Шукадева Госвами начал катху с описания грихамедх. Мы не должны быть такими, как они. Мы говорили здесь об этом. Грихамедхи начинают зарабатывать деньги как только просыпаются. Когда они зарабатывают деньги, весь свой день они тратят на содержание семьи. Они поздно ложатся спать и не могут проснуться рано утром. Забудьте о брахма-мухурте. вачо вегам манасах кродха-вегам джихва-вегам ударопастха-вегам этан веган йо вишахета дхирах сарвам апимам пр̣тхивим са шишйат Перевод Шрилы Прабхупады: Уравновешенный человек, способный контролировать свою речь и ум, сдерживать гнев и укрощать побуждения языка, желудка и гениталий, достоин принимать учеников повсюду в мире. (Нектар наставлений, стих 1) У них нет контроля над языком. Когда они едят то, что не нужно есть, у них возникает желание использовать гениталии. Это жизнь грихамедхи. Шукадева Госвами сказал: «Это неправильно и это делают те, кто не знает атма-таттвы. Далее Шукадева Госвами объяснит «атма-таттва» или «Бхагавата-таттва». Воспользовавшись этим, люди могут сделать свою жизнь успешной. этаван санкхйа-йогабхйам сва-дхарма-париништхайа джанма-лабхах парах пумсам анте нарайана-смртих Перевод Шрилы Прабхупады: Высшее совершенство человеческой жизни, которого можно достичь, либо познав природу материи и духа, либо овладев мистическими силами, либо в совершенстве исполняя предписанные обязанности, состоит в том, чтобы в конце жизни помнить о Личности Бога. (Ш.Б. 2.1.6) Совершенство жизни объяснено в анта нарайана-смрити, вспоминайте Верховную Личность Бога в конце жизни. Это сделает вашу жизнь успешной. Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе Повторяйте Харе Кришна и делайте свою жизнь идеальной. Харе Кришна! (Перевод Кришна Намадхан дас, редакция бхактин Юлия)