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*जप चर्चा* *01 -12 -2021* *पंढरपुर धाम से* हरे कृष्ण ! आज 990 स्थानों से भक्त इस जप कॉन्फ्रेंस में सम्मिलित हैं हरि बोल! वेलकम जिन्होंने एडिशनल ज्वाइन किया है लगता है कि कल अलग-अलग भक्तों ने आप को संबोधित भी किया, प्रेरणा के कुछ अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए इसी का परिणाम है कि आज एकादशी तो नहीं है किन्तु एकादशी की जो संख्या थाउजेंड, वन के जो कहते हैं तो आज भी हम लोग 990 हैं और काउंटिंग जिसको कहते हैं इसीलिए आप सभी का स्वागत है यू आल आर वेलकम हरि हरि ! कभी-कभी मैं कहता ही रहता हूं आज आपका यहां पर स्वागत हो रहा है इस जपा कॉन्फ्रेंस में या जपा टॉप में जप सुनने के लिए जो जप किया आपने। ऐसा ही आपका स्वागत या इससे और बढ़िया स्वागत एक दिन आपका वैकुंठ या गोलोक में हो। अच्छा होगा कि नहीं ? सो दैट इज द आईडिया हरि हरि ! इस्कॉन की बोट जा रही है वी आर गोइंग बैक टू होम, हम जा रहे हैं, भगवत धाम लौट रहे हैं। श्रद्धावान जन हे ! श्रद्धा वान जन ! हे श्रद्धा वान लोगों , भक्तों क्या करो ? चेंट *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* "नदिया गोद्रुमे नित्यानन्द महाजन पतियाछे नामहट्ट जीवेर करण" नित्यानंद प्रभु, चैतन्य महाप्रभु ने यह नाम हाट खोला है इसका भी एक नामहट है। हाट मतलब बाजार, भगवान के नाम का, मतलब होली नेम और यहां की जो कमोडिटी है इसका वितरण होता है या कहो बिक्री भी होती है और वह हरि नाम का वितरण होता है (श्रद्धावान जन हे, श्रद्धावान जन हे) फिर कह भी दिया श्रील भक्ति विनोद ठाकुर कह रहे हैं, आप इस नाम हाट में आए हो , दिस इज द मार्केट प्लेस ऑफ होली नेम, मार्केटप्लेस है नाम हाट है, बाजार है और यहां उपलब्ध हो रहा है। *हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् । कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥* (आदि लीला17.21) अनुवाद " इस कलियुग में आत्म - साक्षात्कार के लिए भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन, भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन, भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है, अन्य कोई उपाय नहीं है, अन्य कोई उपाय नहीं है । " यहां केवल हरि नाम का ही वितरण होता है। अतः महा सेल चल रहा है सेल जब होता है तब डिस्काउंट वगैरा की बातें चलती है। बाय टू एंड टेक वन फ्री, ऐसा भी कुछ कहते रहते हैं। खरीद लो, ले जाओ 3 ऐसे लोग आपको ठगाते रहते हैं हरि हरि! और यहां पर भी काफी डिस्काउंट चल रहा है एक तो हम कहते हैं फ्री फ्री फ्री में ही हरि नाम दिया जा रहा है। बस एक हल्का सा मूल्य चुकाना है और वह है "श्रद्धा" श्रील भक्ति विनोद ठाकुर कह रहे हैं श्रद्धावान ! श्रद्धा मूल्य है जो श्रद्धा लेकर आए हैं जिसके पास श्रद्धा है, जिस के दिल में है श्रद्धा उनको मिलेगा यह माल मालामाल होंगे। हरि नाम यह माल जो है इसको आप ले जा सकते हो हरि हरि ! फिर श्रील भक्तिविनोद ठाकुर और समझाते हैं की श्रद्धा कुछ कम और अधिक भी हो सकती है उसके अनुसार ही यह हरि नाम की प्राप्ति होगी, यह हरि नाम का साक्षात्कार होगा हरि हरि ! अर्थात श्रद्धा ही तो मूल्य है लेकिन श्रील भक्ति विनोद ठाकुर "गोद्रुम कलपतरि" ऐसा कोई ग्रंथ है ,अभी मुझे थोड़ा याद नहीं आ रहा है उसमें समझाते हैं कि ठीक है आप हरि नाम प्राप्त करने या खरीदने आए तो हो, फिर क्या श्रद्धा को भी लेकर आए हो? लेकिन क्या आपकी श्रद्धा कोमल ही चल रही है कोमल श्रद्धा थोड़ा सा ही फेथ है लिटिल फेथ तो हरि नाम भी फिर उतना ही मिलेगा। यह हरि नाम का अनुभव साक्षात्कार, उतनी मात्रा में ही होंगे। इसे व्यापार तो नहीं कह सकते भगवान कहते हैं गीता में , *ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् | मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ।।* (श्रीमद भगवद्गीता 4.11) अनुवाद- जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ | हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता है। जो जितनी क्या करता है? “ये यथा मां प्रपद्यन्ते , मेरी शरण में आता है तो मैं भी उतना ही, यदि हम समझेंगे तब हैरान होंगे, कृष्ण कहते हैं मैं भी उतना ही भजता हूं। भजाम्यहम् , अहम भजामि , अर्थात कोई मेरा भक्त भजन कर रहा है तो मैं भी उसका भजन करता हूं। “ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्यह मैं भी भजन करता हूं यथा तथा की बात है , जितना उतना जो जितनी मेरी शरण में आएगा और यह शरण आना मतलब जितनी उसकी श्रद्धा है उतना ही वह शरण में आता है। हर एक की श्रद्धा कुछ कम, किसी की अधिक श्रद्धा है, तांस्तथैव भजाम्यहम् , मैं भी स्वयं को उतना ही प्रकट करता हूं। या कहो जो जितनी शरण में आता है जिसके पास जितनी श्रद्धा है उतना ही उस व्यक्ति को मैं प्रकट होता हूं। हरे कृष्ण महामंत्र भगवान है यह भगवान यह हरि नाम प्रभु हमको उतना ही दर्शन देंगे हरे कृष्ण हरे कृष्ण का दर्शन या साक्षात्कार या अनुभव यह भगवान ही है, यह कितनी मात्रा में होगा जितनी श्रद्धा है। भक्ति विनोद ठाकुर कहते हैं नाम हाट में तो आ गए आप हरिनाम प्राप्ति के लिए, हरी नाम को खरीदने के लिए, ले जाने के लिए कहो, लेकिन उसके पास, वह चवन्नी लेकर आया यह पुराने जमाने की बात है यह भक्त चैतन्य को समझ में नहीं आएगी चवन्नी एक समय चवन्नी अठन्नी सोलह आना , सोलह आना का ₹1 होता था। जब हम छोटे थे तब हमने देखा है कि चवन्नी अठन्नी, चाराने आठाने सोलहा आने , कोई चवन्नी लेकर आया है उसको उतना ही प्राप्त होगा *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* यह 16 नाम वाला 32 अक्षर वाला सभी को महामंत्र तो प्राप्त हो रहा है एवं दीक्षा के समय भी यह मंत्र दिया जाता है किंतु यह मंत्र केवल अक्षर नहीं हरे कृष्ण यह अक्षर नहीं है स्वयं साक्षात भगवान हैं। यह साक्षात्कार है। उस व्यक्ति की शरणागति इस पर निर्भर रहती है जितनी श्रद्धा, कोई लेकर आया ठीक है ले लो हरि नाम, *ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् | मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।* (श्रीमद भगवद्गीता 4.11) अनुवाद- जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ | हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता है। किन्तु उतना ही हरि नाम के रहस्य का उद्घाटन होगा या उतना ही दर्शन होगा उतना ही हरि नाम समझ में आएगा और उतना ही प्रेम प्राप्त होगा, क्यों? क्योंकि हरि नाम क्या है यह प्रेम है। *गोलोकेर प्रेमधन, हरिनाम संकीर्तन, रति ना जन्मिल केने ताय। संसार-विषानले, दिवानिशि हिया ज्वले, जुडाइते ना कैनु उपाय॥2॥* अर्थ- गोलोकधाम का ‘प्रेमधन’ हरिनाम संकीर्तन के रूप में इस संसार में उतरा है, किन्तु फिर भी मुझमें इसके प्रति रति उत्पन्न क्यों नहीं हुई? मेरा हृदय दिन-रात संसाराग्नि में जलता है और इससे मुक्त होने का कोई उपाय मुझे नहीं सूझता। उतना ही प्रेम उदित होगा। हम कह तो रहे हैं हरे कृष्ण हरे कृष्ण चल तो रहा है। *नित्य-सिद्ध कृष्ण-प्रेम 'साध्य" कभु नय। श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय॥* (मध्य लीला 22.107 ) अनुवाद-"कृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम जीवों के हृदयों में नित्य स्थापित रहता है। यह ऐसी वस्तु नहीं है, जिसे किसी अन्य स्रोत से प्राप्त किया जाए। जब श्रवण तथा कीर्तन से हृदय शुद्ध हो जाता है, तब यह प्रेम स्वाभाविक रूप से जाग्रत हो उठता है।" हमारी आत्मा का जो भगवान से प्रेम है वह उतना ही जागृत होगा जितनी हमारी श्रद्धा है। चवन्नी जितनी श्रद्धा है तो उतना ही भगवान प्रकट होंगे, हरि नाम प्रकट होगा, हरि नाम दर्शन देगा, उतना ही कृष्ण प्रेम प्राप्त होगा फिर वह कहते हैं कोई अठन्नी लेकर आया है अठन्नी मतलब आधा रुपया तब उसको यह हरिनाम उतना दर्शन देगा, उतना साक्षात्कार कराएगा और कोई सोलह आने लेकर आया तो उतना ही और जिसमें पूरी श्रद्धा है, बड़ी श्रद्धा है क्योंकि मुझे वह भी याद आ रहा है दसवां नाम अपराध क्या है ? हरिनाम में श्रद्धा नहीं होना नॉट टू हैव फेथ इन होली नेम , भगवान नाम में विश्वास ना होना यह भी एक नाम अपराध है। नाम में श्रद्धा नहीं होना संख्या कम या अधिक होती है तब श्रद्धा नहीं होना डेट इज़ वर्स्ट सबसे निकृष्ट बात यही है कि श्रद्धा ही नहीं है। लेकिन जिनकी श्रद्धा है, सभी की श्रद्धा एक जैसी नहीं होती और फिर यहां श्रील भक्ति विनोद ठाकुर समझाते हैं कि जितनी श्रद्धा होगी उतना ही यह हरि नाम प्राप्त होगा उतना ही कृष्ण प्राप्त होंगे उतना ही कृष्ण प्रेम प्राप्त होगा हरि हरि! *नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया । भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी ॥* ( श्रीमदभागवतम 1.2.18) अनुवाद - भागवत की कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा शुद्ध भक्त की सेवा करने से हृदय के सारे दुख लगभग पूर्णतः विनष्ट हो जाते हैं और उन पुण्यश्लोक भगवान् में अटल प्रेमाभक्ति स्थापित हो जाती है , जिनकी प्रशंसा दिव्य गीतों से की जाती है । यह भागवत का एक विशेष वचन है और इसमें सिद्धांत भी छिपा हुआ है। इसमें कहा है कि नित्यम भागवत सेवया, नित्य प्रति हम भागवत की सेवा करेंगे तो क्या होगा? भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी भगवान का एक नाम है उत्तम श्लोक, भगवती अर्थात भगवान में, उत्तम श्लोक में, भक्तिर्भवति नैष्ठिकी, भक्ति उत्पन्न होगी, कैसी भक्ति होगी? नैष्ठिकी अर्थात निष्ठावान बनेंगे। यह माधुर्य कादंबिनी का विषय है माधुर्य कादंबिनी इसमें श्रद्धा से प्रेम तक के सोपान समझाएं हैं। श्रद्धा से प्रेम तक, शुरुआत मंय आदौ श्रद्धा , श्रद्धा के बिना हम आगे बढ़ ही नहीं सकते या कृष्ण ने कहा भी है। *श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः |ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ||* ( श्रीमद भगवद्गीता 4.39) अनुवाद- जो श्रद्धालु दिव्यज्ञान में समर्पित है और जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया है, वह इस ज्ञान को प्राप्त करने का अधिकारी है और इसे प्राप्त करते ही वह तुरन्त आध्यात्मिक शान्ति को प्राप्त होता है | श्रद्धा वान को ज्ञान होगा या अनुभव होगा या कृष्ण प्राप्त होंगे और कृष्ण ने यह भी कहा है। *अज्ञश्र्चाश्रद्दधानश्र्च संशयात्मा विनश्यति | नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ||* ( श्रीमद भगवद्गीता 4.40 ) अनुवाद- किन्तु जो अज्ञानी तथा श्रद्धाविहीन व्यक्ति शास्त्रों में संदेह करते हैं, वे भगवद्भावनामृत नहीं प्राप्त करते, अपितु नीचे गिर जाते हैं | संशयात्मा के लिए न तो इस लोक में, न ही परलोक में कोई सुख है | श्रद्धा नहीं है संशयात्मा, ऑलवेज डाऊटिंग, अपने लॉजिक तर्क वितर्क का खूब उपयोग करते रहता है जिसकी श्रद्धा नहीं है। कृष्ण ने कहा विनश्यति संशयात्मा यह दो अच्छे वचन हैं इनको नोट करना चाहिए एक है। श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं या श्रद्धावाँल्लभते प्रेम भी कह सकते हैं। जो श्रद्धालु है उसको ज्ञान या प्रेम प्राप्त होगा ज्ञाननंजन या प्रेम अंजन श्रद्धावान व्यक्ति को प्राप्त होगा और जो संशय आत्मा है संशय करने वाला ऑलवेज डाउटिंग उसका विनाश होगा। यहां पर भी कृष्ण ने श्रद्धा की उपयोगिता, अनिवार्यता समझाई है। श्रृद्धा होना अनिवार्य है, आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत तो होती है आध्यात्मिकता से आदौ श्रद्धा लेकिन वह श्रद्धा भक्तिरसामृत सिंधु में कहा है कोमल हो सकती है वेरी टेंडर, तो इस कोमल श्रद्धा को मतलब अठन्नी चवन्नी वाली श्रद्धा है या १० पैसे या ३० पैसे की श्रद्धा वाला है तब श्रद्धा को निष्ठा में परिणत करना है। निष्ठावान मतलब दृढ़ श्रद्धा, *तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ||* ( श्रीमद भगवद्गीता 10.10 ) अनुवाद- जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं | श्रद्धा से शुरुआत हो सकती है लेकिन कम श्रद्धा व कोमल भी हो सकती है। इस भागवत के वचन में सूत गोस्वामी कह रहे हैं, जब हम निष्ठावान बनेंगे मतलब दृढ़ श्रद्धा या फिर श्रील प्रभुपाद कहते हैं वहां से गाड़ी को रिवर्स नहीं करेंगे इर रिवर्सिबल वहां से यू टर्न नहीं लेंगे, आदौ श्रद्धा है या थोड़ी श्रद्धा है, कोमल श्रद्धा है, तो हो सकता है हम कहीं अटक जाएंगे या कहीं पथभ्रष्ट होंगे, संभावना है पुन: मूषिक भवः पुन: बन गया चूहा, ऐसा कुछ हो सकता है। लेकिन जब व्यक्ति निष्ठावान बनता है इसी को इररिवर्सिबल कहा है। जब व्यक्ति निष्ठावान बनेगा तब वह केवल आगे बढ़ेगा ही गो फॉरवर्ड , नोट डाउन वर्ल्ड, हरी हरी! यह जो श्रद्धावान जन है तो यह नामहट खुला हुआ है। श्रद्धावान लोगों आओ, श्रद्धा ही है मूल्य हरि नाम को प्राप्त करना चाहते हो तो श्रद्धा, किंतु यहां यह बात या चर्चा हो रही है कम या अधिक श्रद्धा के अनुसार कम अधिक प्राप्ति भी होगी कृष्ण प्राप्ति या प्रेम प्राप्ति यह साक्षात्कार अनुभव कम अधिक प्राप्त होगा। हमें प्रयास करना है कि हम श्रद्धा तक पहुंच जाएं, हम निष्ठावान बने। केवल श्रद्धा उससे काम नहीं बनेगा उस श्रद्धा को निष्ठा में परिणत करना होगा। निष्ठावान बनना होगा निष्ठावान मतलब दृढ़ श्रद्धा, फुली कन्वेंस कनविक्शन हरि हरि! हर रोज जैसे कि यह भी कहा जा सकता है कभी जप किया या कभी जप नहीं किया या फिर इस कांफ्रेंस में भी कभी ज्वाइन किया कभी नहीं ज्वाइन किया यह भी श्रद्धा के कम या अधिक होने का कारण हो सकता है हमारी श्रद्धा कुछ कमजोर है कुछ कोमल है और कई सारे विघ्न आ जाते हैं नींद आ जाती है तब नींद का आश्रय लेते हैं और यह है वह है , *निद्रया हियते नक्तं व्यवायेन च वा वयः । दिवा चार्थेहया राजन् कुटुम्ब भरणेन वा ॥* ( श्रीमद भागवतम 2.1.3) अनुवाद - ऐसे ईर्ष्यालु गृहस्थ ( गृहमेधी ) का जीवन रात्रि में या तो सोने या मैथुन में रत रहने तथा दिन में धन कमाने या परिवार के सदस्यों भरण - पोषण में बीतता है । कुटुंब का पालन पोषण करने की भी जिम्मेदारी (उत्तरदायित्व) है। उठते ही हमने वेयर इज मनी वेयर इज मनी धन कहां है कहां है कैसे कमाएंगे आज क्या योजना है , उठते ही स्टार्ट उसी का चिंतन शुकदेव गोस्वामी ने कहा है दिवा मतलब दिन में अर्थव्यवस्था मतलब इकोनामिक डेवलपमेंट दिवा चार्थेहया राजन् कुटुम्ब भरणेन वा, फिर कुटुंब का पालन पोषण करो और इसी में लगे रहेंगे व्यस्त रहेंगे बिजी रहेंगे और मर जाएंगे मर के हरि हरि ! तो अपनी श्रद्धा को बढ़ाइए यह भी कहा जा सकता है या कह रहे हैं (वेयर इज योर फेथ) हरि नाम में अपनी श्रद्धा बढ़ाइए और और बातों में माया में जो श्रद्धा है उसको हटाइए, मिनिमाइज थोड़ा कुछ कुछ वैराग्य अपने जीवन में, वैराग्य भी हो। *वैराग्य-विद्या-निज-भक्ति-य़ोग-शिक्षार्थमेक:पुरुष:पुराण:।श्री-कृष्ण-चैतन्य-शरीर-धारी कृपाम्बुधिर्य़स्तमहं प्रपद्ये।।* (श्रीचैतन्य-चरितामृत, मध्य लीला,6.254) अनुवाद: -मैं उन पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण की शरण ग्रहण करता हूंँ, जो हमें वास्तविक ज्ञान, अपनी भक्ति तथा कृष्णभावनामृत के विकास में बाधक वस्तुओं से विरक्ति सिखलाने के लिए श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतरित हुए हैं। वे दिव्य कृपा के हिंदू होने के कारण अवतरित हुए हैं। मैं उनके चरण कमलों की शरण ग्रहण करता हूंँ। कार्तिक मास में कई भक्त वैराग्य वैरागी बने थे कई सारे संकल्प लेकर बैठे थे। चिंतामणि माता जी वह फर्श पर ही सोती थी शी हैव मेट्रेस उसको त्याग कर शी वाज स्लीपिंग ऑन द फ्लोर, यह कुछ वैराग्य है। और भी कुछ लोगों ने वैराग्य का प्रयास किया अभ्यास किया चतुर्मास में और आपने भी जरूर किया ही होगा यह वैसे हमको रोज ही करना है। विराग, संसार में हमारा जो राग है जो आसक्ति है संसार माया से जो हमारा लगाव है प्रेम है चाह है माया से उसको थोड़ा कम करना है और वैसे वह तभी कम होगा जब भगवान के नाम में अधिक श्रद्धा है अधिक प्रेम है। कृष्ण से जैसे हम आसक्त होंगे जैसे हरि नाम में आसक्ति बढ़ेगी, भागवत का कहना है भगवान से भगवान में, भगवान के नाम में, अनुराग तत्क्षण उसी के साथ वैराग्य विराग उत्पन्न होगा। आसक्ति है अटैचमेंट है, अनुराग-अनु मतलब पीछे पीछे जाना अवलंबन करना और राग तो कई हैं कभी वात्सल्य रस का अनुराग, सख्य रस का अनुराग, माधुर्य रस का अनुराग, या साधना हम करेंगे , उसी के साथ संसार में जो राग है वहां विराग भी मतलब उल्टा विपरीत विरोध, विराग से वैराग्य शब्द आता है तब हम वैराग्य वान बनेंगे। कैसी श्रद्धा बढ़ाएं हम ? जैसा हम आस्वादन करेंगे हरि नाम का, उससे आसक्त होंगे, प्रेम पालन करेंगे हरि नाम का पालन करेंगे, उसी के साथ, वैसे जवाब वही है कई प्रकार से समझाया जा सकता है, कृष्ण ने कहा ही है। *विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः | रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते ||* ( श्रीमद भगवद्गीता 2.59) अनुवाद- देहधारी जीव इन्द्रियभोग से भले ही निवृत्त हो जाय पर उसमें इन्द्रियभोगों की इच्छा बनी रहती है | लेकिन उत्तम रस के अनुभव होने से ऐसे कार्यों को बन्द करने पर वह भक्ति में स्थिर हो जाता है | हमारा जो हाईएर टेस्ट, ऊंचे स्वाद का जो अनुभव करेंगे तब जो निकृष्ट स्वाद है बेकार की जो संसार की बातें है वो हम आसानी से छोड़ देंगे। ज्यादा सोचेंगे नहीं इसीलिए आप यह प्रातः काल में हरी नाम जप की जो साधना है या साधना भक्ति है जो लाइफ स्टाइल है यह जीने की राह है। कृष्ण ने कहा है योगा कर्मसु कौशलम्, *बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते |तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ||* ( श्रीमद भगवद्गीता 2.50) अनुवाद- भक्ति में संलग्न मनुष्य इस जीवन में ही अच्छे तथा बुरे कार्यों से अपने को मुक्त कर लेता है अतः योग के लिए प्रयत्न करो क्योंकि सारा कार्य-कौशल यही है, यह योग का जीवन है। योगी बनो भक्ति योगी बनो, जप योगी बनो, कैसे योगी जप योगी, जप करो यही योग कर्मसु कौशलम् आर्ट ऑफ लिविंग, बाकी तो आर्ट ऑफ डाइंग ही है। शायद आपको पता नहीं होगा यह सब कुछ बातें चलती रहती हैं। स्वीडन में एक बुक प्रकाशित हुई है, उसका टाइटल है "आर्ट ऑफ कमिटिंग सुसाइड"( आत्महत्या की कला) और कितने प्रकार से आप कर सकते हो , फिर उसकी डिमांड भी है पीपल एंड ऑथर्स आर राइटिंग बुक आर्ट ऑफ डाईंग ,एक महिला बेचारी शायद वही की थी स्वीडन की आई थिंक सो, उस महिला का कुत्ता मर गया उसने सोचा कि (जीना तो क्या जीना कुत्ते के बिना) इसीलिए शी कमिटेड सुसाइड उसने आत्महत्या कर ली, कुत्ता नहीं रहा , मैं कैसे जी सकती हूं कुत्ते के बिना, एक होता है डी ओ जी डॉग, व्हाट अबाउट जि ओ डी गॉड, गॉड है कि नहीं? लाइक दिस इज़ योर लाइफस्टाइल, इसे जीवन की शैली बनाइए, उठते ही पहली चीज आपको ज्यादा सोचना नहीं है ज्यादा विचार नहीं करना चाहिए थोड़ा तैयार हो जाइए मंगला आरती वगैरा कर सकते हैं आपके पास इतना समय है या फुर्सत है यू आर जस्ट गेट अप एंड चेंट, अभ्यासेन तु कौन्तेय, “श्रीभगवानुवाच *असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् | अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ||* (श्रीमद भगवद्गीता 6.35) अनुवाद- भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – हे महाबाहो कुन्तीपुत्र! निस्सन्देह चंचल मन को वश में करना अत्यन्त कठिन है; किन्तु उपयुक्त अभ्यास द्वारा तथा विरक्ति द्वारा ऐसा सम्भव है | यह भी कहा है अभ्यास करो अभ्यास अच्छा शब्द है। अभ्यासेन तु कौन्तेय, वैराग्येण च गृह्यते, दोनों ही बातें कही हैं। अर्जुन ने जब कहा वैराग्य की बात छठे अध्याय में , यह श्लोक वचन आता है कृष्ण ने अर्जुन से कहा की मन तो बड़ा चंचल है तो क्या कर सकता हूं? कृष्ण ने कहा अभ्यास करो, अभ्यास, माइंड कंट्रोल का अभ्यास, अभ्यासेन और दूसरा कहा वैराग्येण दोनों ही शब्द तृतीय अभिव्यक्ति में हैं, यदि आप समझते हो संस्कृत की विभक्ति, वैराग्येण अभ्यासेन अभ्यास प्रैक्टिस! प्रैक्टिस! प्रैक्टिस! और प्रैक्टिस कैसे करें वैराग्य के साथ, जैसे जप के समय जो और आकर्षण हैं और कई कंफर्ट जोन की व्यवस्था है उसको ठुकरा कर गेट रीड ऑफ इट और गियर अप, गेट आउट ऑफ द बेड , हिरण्यकशिपु मत बनो ऐसा और जो मैं कोई शब्द कहता हूं तो उस पर भाष्य कहना पड़ता है निकल पड़ता है। यह विचार और फिर विचार की धारा, तो ठीक है यहीं रुक जाते हैं अब यहीं विराम देते हैं। निताई गौर प्रेमानन्दे ! हरि हरी बोल!

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