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जप चर्चा पंढरपुर धाम से 9 फरवरी 2021 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। जय श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानन्द । श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि-गौरभक्तवृन्द ॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल । 806 स्थानों से आज जप हो रहा है । हरे कृष्ण । फूड फॉर थॉट । आपके मस्तिष्क के लिए थोड़ा , हरि हरि या ददामि बुद्धियोगं भगवान हमें कुछ बुद्धि दो और आप तैयार हो ? हां आप तैयार हो। (हंसते हुये) हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। आपको कुछ पढकर सुनाना चाहता था। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। 1976 में , जब श्रील प्रभुपाद हमारे मध्य में थे और उनकी एक टीम थी , लाइब्रेरी पार्टी। विश्वभर की लाइब्रेरी में श्रील प्रभुपाद के ग्रंथों की स्थापना करना तो हो गया , प्रभूपाद के ग्रंथो का सेट वह लाइब्रेरी को दे रहे थे , उसी समय श्रील प्रभुपाद के ग्रंथ भगवत गीता ,श्रीमद् भागवत , चैतन्य चरितामृत भी तैयार हो चुका था उसके लिए बुक रिविव दिये जा रहे थे । जगत भर के बड़े-बड़े विद्वान पूरे जगत भर में से उनका क्या कहना था ? उनका क्या मत था ? उनका स्टेटमेंट क्या था ? प्रभुपाद के ग्रंथों के बारे में उनकी राय कहो , उनका व्यक्तव्य , उनका मंथन कहो । ऐसे फिर कईयों ने अपने अपने रिविव स्टेटमेंट दिए उसे मैं पढ़ रहा था , उसमें एक स्टेटमेंट मिला , उसी पर मैं चर्चा करना चाहता हूं । प्रोफेसर इवानक्यू उनका नाम है म्यूजियम, डायरेक्टर, इलेक्ट्रिआर्ट असोसिएशन न्यूयोर्क ऐसी उनकी पदविया दी हुई है । बड़े आदमी हैं उन्होंने लिखा है , "आपके कुछ ग्रंथ मुझे प्राप्त हुए हैं और मैंने पढे भी हैं और आपके ग्रंथों से मैं बहुत प्रभावीत हूं ।" मिस्टर इवानक्यू कह रहे हैं की , "मुझे आपके ग्रंथ पढ़ने के बाद इस बात का पता चला कि यह बिब्लिकल मतलब बाईबल , और वैसे उसी से फिर आगे कुरान भी बनता है , कुरान का आधार भी या बिब्लिकल रायटिंगस बाइबल या मोजेेस। भगवान ने रिलेशंस में और मोजेस ने दिव्य ज्ञान , ह्रदय प्रकाश ऐसा ज्ञान दिया । एक पहाड़ पर उन्होंने मॉर्निंग बुश देखा और भगवान को देखा , उनकी पीठ भी देखी तो मुझे यह पता चला कि बाइबल में या कुरान में भी जो बाते हैं उसका स्रोत क्या है ? बाइबल के ऑथर्स , कुरान के ऑथर्स (लेखक) या वक्ता कहो मोजेस थे , अब्राहम भी थे और फिर मोजेस हुये फिर जीसस क्राईस्ट हुये फिर हजरत मुहम्मद हुये , उन्होंने जो भी कहा या लिखा उसका स्रोत क्या है ? उन्होंने यह ज्ञान कहां से प्राप्त किया ? उसके पहले भी यह ज्ञान था और वह कहाँ था ? उन्होंने कहाँ से प्राप्त किया? हरी हरी वैसा ही ज्ञान जो पहले था, आपके ग्रंथों से पता चल रहा है और वैसा ही ज्ञान फिर उनको भी प्राप्त हुआ, यह बात मैं समझ रहा हूं जब आपके ग्रंथों को मैंने पढ़ा ।" फिर आगे वह लिखते हैं , " कृष्ण मोजेस के 500 वर्ष पूर्व थे । यह उन्होंने थोड़ा गलत लिखा है । मोजेस नाम के बहुत बड़े संत हुए थे, प्रभुपाद उनको महाजन भी कहते थे। पाश्चात्य देश के महाजन, मोजेस महाजन। जीसस क्राईस महाजन और हजरत मोहम्मद महाजन । वह लिखते हैं , "मोजेस 3500 वर्ष पूर्व हुए , जीसस क्राइस्ट 2000 वर्ष पूर्व हुए तो जीसस क्राइस्ट के 1500 साल पहले मोजेस थे और मोजेस के डेढ़ हजार साल पहले कृष्ण थे , यहां गलती से 500 वर्ष पहले कह रहे हैं लेकिन 1500 वर्ष मोजेस के पहले कृष्ण थे । हरि हरि। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। मोजेस के 2000 साल पूर्व , क्राईस्ट के 3000 वर्ष पहले कृष्ण हुये, मतलब 5000 वर्ष पूर्व । उनका कहना है कि 2000 साल पहले जीसस हुए, 3500 वर्ष पूर्व मोजेस हुये और 5000 वर्ष पूर्व कृष्ण हुये, आपका जो लिटरेचर है , वाङ्गमय है , ग्रंथ है, जो मैं पढ रहा हूं जिससे मै प्रभावीत हूँ यह 5000 वर्ष पूर्व का है और उसके बाद हुए मोजेस , जीसस क्राइस्ट, मोहम्मद उनके सारे ज्ञान का स्रोत तो कृष्ण से है । इस बात से मैं अवगत हुआ हूं , प्रभावित हुआ हूं , ऐसा यह इवानक्यु ने लिखा है । बात तो सत्य ही है , कृष्ण कहते ही हैं , अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते |इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः || (भगवद्गीता 10.8) अनुवाद मैं समस्त आध्यात्मिक तथा भौतिक जगतों का कारण हूँ, प्रत्येक वस्तु मुझ ही से उद्भूत है | जो बुद्धिमान यह भलीभाँति जानते हैं, वे मेरी प्रेमाभक्ति में लगते हैं तथा हृदय से पूरी तरह मेरी पूजा में तत्पर होते हैं | अहं सर्वस्य प्रभवो मैं ही स्रोत हूं । मत्तः सर्वं प्रवर्तते | मुझसे ही सब कुछ निकलता है । जो सत्य है उसका स्रोत भी भगवान हैं, कृष्ण भगवान हैं । वह प्रकट हुए 5000 वर्ष पूर्व और उन्होंने श्री भगवान उवाच कहकर यह कहा और कुछ बातें कही कृष्ण ने अर्जुन सेऔर फिर कई सारी बातें और सत्य की श्रील व्यासदेव ने रचना की, ठीक है । सत्य वैसे ही 5000 साल पुराना नहीं हो सकता और भगवत गीता कितनी पुरानी है आप आख बंद करके कहोगे 5000 साल पूर्व है । भगवत गीता 5000 साल पुरानी है , झूठ , यह सही नहीं है । भगवान ने जो गीता में कहा है या जो भागवत में जो वचन हैं जो सत्य है , या जो वेदों में वाणी है , जो सत्य है ऐसा समय नहीं था कि जब वह सत्य नहीं था तो वही सत्य और भी कई सत्य हैं । बाइबिल में , कुरान में सत्य बातें हैं तो वह सत्य तो सत्य ही होता है , त्रीकालाबाधी सत्य होता है । 2 जमा 2 कितना होता है ? चार होता है । यह सत्य है कि नहीं ? यह सत्य है आज भी सत्य है, 5000 साल पूर्व भी सत्य था, भविष्य में भी रहेगा । 2 जमा 2 ,4 होता है यह भारतीय सत्य है या अमेरिकन सत्य है, या सभी के लिए सत्य है ? या केवल हिंदू के लिए सत्य हैं यह 2 जमा 2 , 4 या ईसाइयों के लिए भी सत्य है ? सत्य तो सत्य ही होता है । सत्य का बस अस्तित्व होता है । सत्य होता है , सत्य रहता है । भगवान के संबंध में जो सत्य है , भगवान के पहले भी सत्य था । कुछ उसके पहले था और कुछ उसके बाद आया । सत्य पहले था कि भगवान पहले थे ? हम लोग कहते रहते हैं भगवान सत्य है । ऐसा कहते समय फिर हमारा यह विचार हो सकता है या हम कहते हैं कि भगवान ही प्रेम है , भगवान प्रेमी हैं यह नहीं कि भगवान केवल प्रेम हैं और भगवान नहीं हैं या उनका नाम, रूप , गुण , लीला , धाम नहीं है , उनका अस्तित्व नही है ? यह सत्य है। ऐसे हम बोलते रहते हैं गॉड इज लव , गॉड इज ट्रुथ, गॉड इज पीस , भगवान शांत है , भगवान सत्य है । भगवान के संबंध में ही सत्य होता है , भगवान के संबंधित कही हुई बातें सत्य हैं, जैसे आत्मा सत्य है कि नहीं ? कि केवल भगवान ही सत्य है आत्मा सत्य नहीं है ? ऐसा समय नही था कि आत्मा नहीं था ? श्रीकृष्ण कहते हैं दूसरे अध्याय के प्रारंभ मे, अब तुम हो , मैं हू , यह राजा है और भविष्य में हम रहेंगे , तो भगवान भी सत्य है और आत्मा भी सत्य है , सारे जीव सत्य है , सनातन है । ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः | मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति || (भगवद्गीता 15.7) अनुवाद इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं । बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है । जो भी सत्य है और रहेगा , फिर हम लोग कहते भी हैं सत्यमेव जयते । सत्यमेव जयते । सत्य का क्या होगा ? विजय होगा । सत्यमेव जयते । सत्य की जय होती है । सत्य की स्थापना होती है अंततोगत्वा। सत्य शाश्वत है, भगवान सत्य है, जीव भी सत्य है और कई सारे सत्य बातें हैं , भगवान का धाम भी सत्य है, वैकुंठ भी सत्य है और भगवान का रूप भी सत्य है, भगवान के भक्त सत्य हैं और भक्ति भी सत्य है, भक्ति! भगवान और भक्त का जो संबंध है, भक्ति ही संबंध जोड़ती है। जीव भक्ति करता है तो भगवान की सेवा करता है तो ऐसी सेवा भी सत्य है। श्रीमद भगवतगीता के पांच विषय हैं। एक है ईश्वर, दूसरा है जीव, तीसरी है प्रकृति, चौथा है काल यह चार सत्य हैं। यह शाश्वत सत्य है! और पांचवा भगवत गीता का विषय है जिसे बलदेव विद्याभूषण समझाते हैं, कि भगवत गीता के पांच विषय हैं और पांचवा हैं कर्म! कर्म शाश्वत नहीं है। कर्म और विकर्म यह परिवर्तन होता ही रहता है, यह सब सत्य है और फिर ऐसा भी एक समय था यह सारा सत्य, इस सारे सत्य को या इस सारे सत्य का प्रचार सारे पृथ्वी पर था और एक ही धर्म था सनातन धर्म! जो धर्म को अगर नाम दे सकते है, तो यह सनातन नाम सही है। सनातन धर्म! धर्म मतलब सनातन है। शाश्वत! तो जीव का धर्म सनातन है और यह जीव का धर्म सनातन है यह कह रहे हैं, यह भारतीय जीव और अमेरिकन जीव अलग नहीं होते या मिडल ईस्ट के या पूर्व भारत के, रशियन जीव यह सब अलग नहीं होते। रशियन जीव तो नहीं होता, जीव तो जीव होता है और जीव तो भगवान का होता है। भगवान का धर्म जो जीव यहां भी है या जिस देश में है, उन सभी का धर्म सनातन धर्म है। हर जीव का धर्म सनातन धर्म है और वैसे हम मान के बैठे हैं या मान रहे हैं कुछ अहंकार के कारण, हम हिंदू हैं या हम इसाई हैं या हम मुसलमान हैं। हम यह हैं, हम वह हैं, ऐसे नाम नहीं दिया जा सकता क्योंकि, यह धर्म शाश्वत नहीं है। यह सत्य नहीं है। इस धर्म में परिवर्तन हो जाते हैं, घर वापसी होती रहती है। आज का हिंदू कल क्रिश्चियन भी हो सकता है, केरल में फिर बिहार में जो गरीब लोग हैं उनके लिए कुछ करेंगे और धीरे-धीरे उसके गले में क्रॉस डाल देंगे और गाड़ी कहीं फस गई है तो धकेल देते हैं और नाम लेकर धक्के देते हैं, लेकिन गाड़ी आगे बढ़ने लगी तो जीसस की जय तो फिर दौड़ के गाड़ी वहां से निकलती है, दौड़ने लगती है। जीसस की जय ऐसे बोलने लगते हैं। जीसस सत्य है ऐसे मान सकते हैं भोली भाली जनता या जो लोग हैं। हरि हरि। या फिर संघटन है, वो कहते हैं कि, हे भगवान हम पर दया करो हमे ये दे दो! लोग जब चर्च में जाया करते थे, रसिया जैसे कम्युनिस्ट देश में तो, जैसे ही वे चर्च से प्रार्थना करके बाहर निकलते, जो कम्युनिस्ट सरकार था या लोगों को कम्युनिस्ट बनाने का प्रयत्न चल रहा था, तब वह कम्युनिस्ट अधिकारी पूछते थे कि आपने प्रार्थना कि? आप को ब्रेड मिला? तब वह कहते थे कि, नहीं! हमें नहीं मिला! तो फिर वह क्या करते? वह बड़े-बड़े लोरी भरकर ब्रेड वहां पर लाते थे और लोगों को बताते थे कि, यह कम्युनिस्ट सरकार आपको ब्रेड देगी आपको भगवान ब्रेड नहीं देंगे, प्रार्थना करने के बाद भी! लेकिन ब्रेड देने वाले तो कम्युनिस्ट सरकार है, तो तुम भगवान को भूल जाओ, भगवान हैं ही नहीं! भगवान तो अफीम हैं! ऐसा उनका प्रचार था, इस प्रकार वे उनको परिवर्तित करते और उनको कम्युनिस्ट बनाते। हरि हरि। वैसे एक समय था जब 5000 साल पहले एक ही धर्म था, सारे पृथ्वी पर एक धर्म था। वैसे सारे पृथ्वी पर एक सम्राट का राज हुआ करता था और उनकी राजधानी हुआ करती थी हस्तिनापुर! राजा परीक्षित! परीक्षित केवल राजा ही नहीं थे, वह राजाओं के राजा सम्राट थे! उस समय सारे पृथ्वी पर केवल सनातन धर्म था या गीता भागवत पुराण इसका ही प्रचार था। किंतु फिर कलि काल आया और इसको याद रख सकते हो कि, 18 फरवरी को कलयुग शुरू हुआ। कौन सी तारीख थी? 18 फरवरी 3102 बिफोर क्रिस्ट (बीसी ) यह पाश्चात्य देश का गणना है। जीसस क्राइस्ट के 3102 साल पहले और वह तारीख थी 18 फरवरी उस दिन भगवान स्व पदम् गतः उस तारीख को भगवान पृथ्वी को त्याग कर, अपने धाम लौट गए और फिर शास्त्रों में लिखा है तदधिनाथ कलिधायतः उस दिन से कलयुग का प्रारंभ हुआ! सर्व साधन बाधकः और यह कलयुग क्या करता है? सर्व साधना में बाधा उत्पन्न करता है हम एक हैं, वसुदेव कुटुंबकम इस पृथ्वी पर जितने भी लोग हैं, उन सब का मिलकर एक ही परिवार हुआ करता था। लेकिन कलयुग ने सब का सत्यानाश कर दिया और इसी का परिणाम हुआ है कि, इतने सारे संसार के टुकड़े हो गए, इतने सारे देश हो गए और उसी के साथ इतने सारे धर्म भी हो गए, जो अब आपस में लड़ने लगे हैं। यह कलि का मुख्य लक्षण है जो की आपस में लड़ाई झगड़ा करना है, लोग झगड़ालू बन गए हैं। वह कुछ बांटना नहीं चाहते हैं, भगवान को भी बांटना नहीं चाहते! वह कहते हैं हमारे यह भगवान तुम्हारे वह भगवान! हमारा यह धर्म तुम्हारा वह धर्म! धर्म भी बांटना नहीं चाहते 5000 साल पहले केवल सनातन धर्म था। लेकिन इस कलि के कारण जो एक्य था उसको तोड़ दिया गया, उसके कई सारे टुकड़े या विभाजन हो गए। कोई इसाई बना, कोई क्रिश्चियन बना, कोई मुस्लिम बना! और फिर आप लोग क्रिश्चियन, क्रिश्चियन नाम लेते हो लेकिन उनके भी आपस में कई सारे झगड़े हैं। कोई कैथोलिक बन जाता है तो कोई नार्मल बन जाता है। जो मूल परंपरा है उसको भूल गए भारत का भी यही हाल है। फिर यत मत तत पथ हो गया तो जितने मत है उतने पद बन गए और कई सारी उटपटांग धर्म के प्रचारक हो गए और अपनी मनमानी कर रहे हैं और उपदेश कर रहे हैं। हरि हरि। किंतु समय तो बलवान है, वह रुकता नहीं है, मैं एक टिप्पणी के साथ रुकूंगा कि, अब यह अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ यह कोशिश कर रहा है कि, जिसमें श्रील प्रभुपाद श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की ओर से पुनः वह जागृत कर रहे हैं। जो शाश्वत सत्य है जो कि गीता भागवत का सत्य है, जो पूर्ण सत्य है। एक बार प्रभुपाद कह रहे थे कि, दूसरे जो धर्म हैं या तथाकथित धर्म है, उसमें जो ज्ञान है वह कैसा ज्ञान है? वह पॉकेट डिक्शनरी जैसा ज्ञान है! एक होता है बड़ी वाली ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी और दूसरा होता है पॉकेट डिक्शनरी। यह अन्य धर्म जो है वह, पॉकेट डिक्शनरी जैसे है और हमारे गीता भागवत विस्तारपूर्वक ज्ञान होता है। वैदिक वाङ्गमय में गीता और भागवत का ज्ञान है। लेकिन जो पॉकेट डिक्शनरी का ज्ञान है वह सारा का सारा ज्ञान बड़ी डिक्शनरी में है! लेकिन ऐसी कई सारी बातें हैं जो बड़ी डिक्शनरी में हैं वह पॉकेट डिक्शनरी में नहीं होती है! ऐसा ही यहां पर होता है। हम जो अन्य धर्म बने हैं या उनके धर्मधिकारियों ने जो धर्म बनाए हैं, उसमें जो सत्य है वह तो सत्य है। लेकिन वह सत्य सारा का सारा वेदों में या पुराणों में है! क्या इस बात को आप समझ पा रहे हो? बाइबल या कुरान यह जो अन्य धर्मों के ग्रंथ हैं उसमें जो भी सत्य है या जितना भी सत्य है वह सारा का सारा सत्य वेदों में और पुराणों में या गीता, भागवत में लिखा हुआ है। लेकिन कुछ ऐसी बातें है जो वेदों पुराणों और गीता और भागवत में ही है और कहीं नहीं है और किसी ग्रंथ में नहीं है! हरि हरि। ठीक है तो इतना ही कह कर अपनी वाणी को विराम देते हैं। आप इतने पर ही चिंतन करो! विचारों का मंथन करो! हरि हरि। हरे कृष्ण!

English

9 February 2021 The truth is always victorious Hare Krsna! Devotees from over 806 locations are chanting with us right now. All the devotees are welcome. After congregational chanting it is time for some food for thought, food for your mind. Krsna is the giver of intelligence, so we pray to Him for the right intelligence. I wish to read out something. A few disciples of Srila Prabhupada have come together and we are trying to get Srila Prabhupada’s books placed in the big and popular libraries across the world. In 1976, when Srila Prabhupada was still physically present with us they were acquiring reviews from popular scholars for these books. What they wanted to say, what was their stand, review statements. Many gave their opinions. I was reading that. I want to discuss these. One of the popular persons was Professor Ivan Chubha of New Zealand. He says, “I am very impressed with the books by you that I have received. I have studied books by several leaders of different religions. I have read your books also. From it I can see, from where the Biblical writers obtained their philosophy. In this we have the Old Testament, New Testament, in it the Koran is also there, and from where they get their inspiration”. He writes that Krsna appeared 500 years before Moses. Moses actually appeared 3500 years ago. Actually, Krsna appeared 1500 years before Moses. Srila Prabhupada would say that Jesus Christ, Moses, Mohammad were all Mahajans. He writes that this book of knowledge that he read is 5000 years old. All the knowledge is sourced from Krsna who was born before any other religious leaders. 3000 years before Christ. He said he was influenced by this literature of Bhagavad Gita which is 5000 years old and the knowledge of the others Mahajans is knowledge from Krsna. Such were his words, and this is true. Krsna says in Bhagavad Gita, “I am the source of all and everything emanates from Me.” ahaṁ sarvasya prabhavo mattaḥ sarvaṁ pravartate iti matvā bhajante māṁ budhā bhāva-samanvitāḥ Translation I am the source of all spiritual and material worlds. Everything emanates from Me. The wise who perfectly know this engage in My devotional service and worship Me with all their hearts.(BG 10.8) Many such truths were revealed by Krsna which was compiled by Srila Vyasa Dev. Lord Krsna said many things under bhagavan uvaca. However, the truth is not 5000 years old. If asked, How old is Bhagavad Gita most of you may say 5000 years old. It is not so. The truth is that which remains the same at all time. 2+2 is always 4. It cannot be different under any circumstances. It is true now, it was true in the past and it will be true in the future. It is not Indian or American truth. It is true for all religions and for all countries. Such is the truth. We can say that truth is eternal. Who existed first? Truth or God? We often say God is truth. God is love. God is peace, etc. We, may sound impersonal when we say God is truth, but it is true. The soul is also true and eternal like God. Whatever is truth has existed since time immemorial and will prevail. We may say let truth be victorious! The eternal abode of the Lord is truth, His form is truth, His devotion and devotees are truth. Truth is forever. Whatever is the truth will remain the truth. Devotion is the relationship between the Lord and his devotees. There was a time when there was only one religion in the world which is Sanatana Dharma. Sanatana Dharma is the eternal dharma for the jiva. We keep on saying Satya Mai Jayatai. Let Victory of Truth prevail. Truth is always victorious. Truth is always established. The Lord is truth, the Jiva is truth and there are many other truths. vidyā-vinaya-sampanne brāhmaṇe gavi hastini śuni caiva śva-pāke ca paṇḍitāḥ sama-darśinaḥ Translation The humble sages, by virtue of true knowledge, see with equal vision a learned and gentle brahmana, a cow, an elephant, a dog and a dog-eater [outcaste].BG 5.18 The Dhama or residence of the Lord is also the truth. Vaikuntha is true , the form of the Lord is true. Devotees are true, Bhakti is true. The relationship between the Lord and the devotee is also true. Bhakti is something which establishes the relationship. When the devotee does service to the Lord, it is also truth. Bhagavad Gita has 5 topics. Four are Lord (Isvara), Soul (Jiva), Nature (Prakrati) and time (Kala) and all are true and eternal. The fifth is action which is not eternal. mamaivāṁśo jīva-loke jīva-bhūtaḥ sanātanaḥ manaḥ-ṣaṣṭhānīndriyāṇi prakṛti-sthāni karṣati Translation The living entities in this conditioned world are My eternal fragmental parts. Due to conditioned life, they are struggling very hard with the six senses, which include the mind. (BG 15.7) There was a time when this entire truth was prevalent on Earth. There was only one religion, Sanatana Dharma. Sanatana is an appropriate name. Dharma itself means Sanatana (forever). The Dharma of the Jiva is Sanatana. Jiva is the same wherever he is born and whatever nationality he may have. An Indian or an American Jiva are not separate. Or a Jiva from Russia, Middle East are not different. It sounds very strange. A Jiva is a Jiva. There cannot be a Russian Jiva. A Jiva is of the Lord. The dharma of the Jiva, wherever he is, is Sanatana Dharma. Out of ego some may say, they are Hindu, or Christian or Muslim or Jews or this or that. But giving these names is not right. Just by believing and identifying oneself falsely as a Hindu, Muslim, Christian etc. is not the truth. There is a change in these religions. They are not the same forever. A Hindu may go to Christian missionaries and in greed of some benefits may accept Christianity. Some welfare will be done, like the missionaries from Kerala in Meghalya and slowly, they will put a cross around his neck. There are Communist countries which say that there is no religion and no God. God does not exist. The Christians would pray in the church , “Oh God, give us our daily bread.” While coming out of the church, they would be questioned by the communists that they had prayed in the church, so did they get their bread. Then the communists would keep big trucks filled with bread. The people would say, that the Communist Government has given us our daily bread. They would give them the bread and make them feel that the Communist government is the giver of the bread. God is just opium, they would say. Then they would convert them into communists and make them into Godless. 5000 years ago there was only one religion on Earth with only one Emperor to rule. The capital was Hastinapur and the Emperor of Hastinapur was King Pariksit Maharaja. He was not just a king, but the king of kings, Emperor. Sanatana Dharma was on the whole planet. Gita, Bhagavat, Purana were the scriptures from which preaching was done. If you can remember, it was on 18 February 3102 Before Christ that Kaliyuga began. On this date Lord Krsna departed to His eternal abode. The scriptures say that Kaliyuga began from that day to make hindrances in the process of practicing Bhakti-Sarva Sadhana Badha. We are one, Vasudhaiva Kutumbakam, the world is one family. The breaking and dividing of the world into so many geographical and religious divisions and so many quarrels and wars among them is a result of Kaliyuga. This Kaliyuga destroyed everything. As a consequence, lot of countries were created. In Kaliyuga people become quarrelsome. Earlier there was one Sanatana Dharma and then it all broke up. People are not willing to share anything with each other. They don't even wish to share God. Everyone developed different faiths. We usually say Christian, but within Christianity there are so many hundreds of different parts. Such is the case in India. There are so many people in India who are preaching concocted knowledge, their own interpretation and speculation. People are practicing concocted religions. Now an effort has commenced again. ISKCON is making an effort to bring the world under one roof of the original, eternal, complete truth. On behalf of Caitanya Mahaprabhu, the complete truth is being established. Srila Prabhupada said that all other religions are like pocket dictionaries with limited introductory knowledge, whereas Sanatana Dharma is the big encyclopaedia. Whatever is there in a pocket dictionary is all there in the big dictionary, but it is not the same the other way round. There is truth in other religions' scriptures and books, but all that truth is already in our scriptures. There is additional information which is only in Bhagavad Gita, Srimad Bhagavatam, Vedas and Puranas. I shall stop here now. If anyone has any short questions or comments then you may share those. Gaura premanande. Hari Haribol

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