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जप चर्चा 14 दिसंबर 2021 पंढरपुर से 1105 भक्त 1100 स्थानो से भक्त आपके साथ और मेरे साथ भी जप कर रहे थे | हरि बोल | यही समय है 5200 से भी कुछ साल पहले आज के दिन कृष्ण (कन्हैया लाल तो नहीं कह सकते), पार्थ सारथी ने भागवत गीता सुनाई | श्री कृष्ण अर्जुन की जय | श्री कुरुक्षेत्र धाम की जय | उस दिन की जय | गीता जयंती की जय | विजय होने ही वाली है | BG 18.78 “यत्र योगेश्र्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः | तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवो नीतिर्मतिर्मम || ७८ ||” अनुवाद जहाँ योगेश्र्वर कृष्ण है और जहाँ परम धनुर्धर अर्जुन हैं, वहीँ ऐश्र्वर्य, विजय, अलौकिक शक्ति तथा नीति भी निश्चित रूप से रहती है | ऐसा मेरा मत है | अर्जुन की विजय होने ही वाली है और ये विजय किस लिए होने वाली है? BG 1.14 “ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ | माधवः पाण्डवश्र्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः || १४ ||” अनुवाद दूसरी ओर से श्र्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये | अर्जुन किनके पक्ष में है? जनार्दन के, कृष्ण के पक्ष में है | आप भी विजयी होना चाहते हो तो किस पक्ष में जाना होगा ? माया के या कृष्ण के? कृष्ण के | आप सभी इस बात को समझ लो | महाभारत काल्पनिक कथा है या ग्रंथ है या हकीकत है या इतिहास है? ये इतिहास है | तथ्य है काल्पनिक कथा नहीं है | सत्य है कल्पना नहीं है | यह स्वयं अनुभव करना चाहते हो तो कुरुक्षेत्र धाम कभी जाइए | कुरुक्षेत्र धाम की जय | कुरुक्षेत्र धाम का वट वृक्ष भी साक्षी था | किसका साक्षी था? भगवत गीता का | वटवृक्ष ने कृष्ण और अर्जुन को देखा | वटवृक्ष ने भगवत गीता सुनी , वटवृक्ष अमर हो गया | जब वट वृक्ष अमर हो सकता है, अक्षय हो सकता है तो क्या हम होंगे या नहीं? इस स्थान पर मेने आर्टिकल भी लिखा है, बैक टू गॉड हेड मे 9 साल पहले कुरुक्षेत्र के संबंध में मैंने लेख भी लिखा है, ऐसा स्मरण हो रहा है | आप उसे पढ़ सकते हैं | मैंने कुरुक्षेत्र की महिमा इस लेख में लिखी है | आज एकादशी है | उस दिन भी क्या थी? एकादशी ही थी | एकादशी कोई नई बात नहीं है जब से सृष्टि हुई है तब से एकादशी चल ही रही है उस दिन भी एकादशी थी जिस दिन महाभारत का धर्म युद्ध था | आजकल जो युद्ध होते हैं वो धार्मिक नहीं होते है | महाभारत मे तो धर्म की स्थापना करना ही उद्देश्य होता है | आजकल के युद्ध के पीछे तो कुछ और उद्देश्य रहता है | लेकिन वह युद्ध कैसा था? धर्म युद्ध था और धर्म के संस्थापक धर्म संस्थापनार्थाय प्रकट होते है| क्यों? धर्म संस्थापनार्थाय मैं धर्म की स्थापना हेतु प्रकट होता हूं | श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र पहुंचकर आज जब गीता का उपदेश सुनाएंगे उसी के साथ ही वे धर्म की स्थापना करेंगे | पहला शब्द कौन सा है गीता का -- धर्म, गीता का अंतिम शब्द कौन सा है -- मम | गीता खोल के देखिए 18 अध्याय का पहला श्लोक है पहला शब्द है धर्म अंतिम शब्द है मम | साथ में कहेंगे तो क्या होगा -- मम धर्म | भगवत गीता क्या है? मम धर्म | मेरा धर्म, मेरे द्वारा दिया हुआ धर्म | श्रील प्रभुपाद अंग्रेजी मे धर्म की व्याख्या करते हैं -- लॉ ऑफ द लॉर्ड | धर्म क्या है? भगवान के दिए गए नियम | भगवत गीता में जो भगवान ने नियम दिए हुए हैं ,जो यम दिए हैं फिर कहना होगा विधि दी हुई है निषेध दिए हुए हैं यम भी दिए हैं यही है धर्म | भगवत धर्म शास्त्र गीता है | और शस्त्र शास्त्र के अनुसार चलाने होते हैं | क्या करने के लिए? युधिष्ठिर महाराज जैसे धर्मराज राज करेंगे, सम्राट होंगे और धर्म की स्थापना करेंगे | हरि हरि आज कृष्ण कुरुक्षेत्र में पहुंचे हैं | हमको तो उन्होंने पहले ही पहुंचाया था जब हम कल जप चर्चा कर रहे थे | आगमन तो सब का पहले ही हो गया है| BG 1.14 “ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ | माधवः पाण्डवश्र्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः || १४ ||” अनुवाद दूसरी ओर से श्र्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये | शंख ध्वनि इसी समय हो रही थी| सुनाई दे रही है आपको? BG 1.15 “पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः| पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः || १५ ||” अनुवाद भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अतिभोजी एवं अतिमानवीय कार्य करने वाले भीम ने पौण्ड्र नामक शंख बजाया | और यही घड़ी है जब कृष्ण वहां अर्जुन को लेके पहुंच रहे है | BG 1.14 “ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ | माधवः पाण्डवश्र्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः || १४ ||” अनुवाद दूसरी ओर से श्र्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये | कृष्ण घोड़े हाँक रहे हैं, रथ के चालक बने हैं | तो फिर वह समय आ चुका | भगवान ने किसी को बताया नहीं था कि आज प्रात काल में मैं प्रवचन सुनाने वाला हूं | किसी को कोई संकेत नहीं था | संसार में कोई नहीं जानता था कि ये भगवत गीता का प्रवचन भगवान सुनाएंगे और कँहा सुनाएंगे | तो आज के दिन प्रात काल की बात है | धर्म युद्ध प्रातः काल में शुरू होते थे और सांय काल तक चलते थे | सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः । पार्थो वत्सः सुधिभोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ।। “यह गीतोपनीषद, भगवद्गीता, जो समस्त उपनिषदों का सार है, गाय के तुल्य है और ग्वालबाल के रूप में विख्यात भगवान् कृष्ण इस गाय को दुह रहे है । अर्जुन बछड़े के समान है, और सारे विद्वान् तथा शुद्ध भक्त भगवद्गीताके अमृतमय दूध का पान करने वाले हैं ।” (गीता महात्म्य ६) तो यह जो गीता है यह भगवत गीता है | भगवान का गीत --अंग्रेजी मे इसे "सॉन्ग ऑफ गॉड" कहते हैं | गीता सुगीताकर्तव्या किमन्यौ: शास्त्रविस्तरैः । या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिः सृता ॥ चूँकि भगवद्गीता भगवान् के मुख से निकली है, अतएव किसी अन्य वैदिक साहित्य को पढ़ने की आवश्कता नहीं रहती । केवल भगवद्गीता का ही ध्यानपूर्वक तथा मनोयोग से श्रवण तथा पठन करना चाहिए । केवल एक पुस्तक, भगवद्गीता, ही पर्याप्त है क्योंकि यह समस्त वैदिक ग्रंथो का सार है और इसका प्रवचन भगवान् ने किया है।”(गीता महात्मय ४) भगवान के मुखारविंद से यह भगवत गीता जन्म लेने वाली है | इसी समय जन्म लेना प्रारंभ हुआ था | हम इतिहास 5000 और कुछ वर्ष पूर्व पीछे जा रहे है | उसे भूल जाओ या कल्पना करो आप वहां हो या पहुंचे हो | उस दिन मोक्षदा एकादशी भी व्रत करने वाली है वह भी पहुंची है और श्री कृष्ण ने समभ्रमित मोहित अर्जुन को देखा | भगवान को दया आई हम पर कब दया आएगी? आ रही है या नहीं? भगवान की दया हो रही है या नहीं? हरि हरि आज के दिन मैं तो समझूंगा जरूर कहूंगा भगवत गीता यथारूप को हम प्राप्त किए हैं उसको पढ़ रहे हैं समझ रहे हैं मैं तो कहूंगा यही भगवान की हम सभी के ऊपर कृपा है किनके ऊपर ऐसी कृपा हुई है? आप में से किसके ऊपर कृपा हुई है? यहाँ तो कई सारे है, बैठे है| किनको भगवत गीता प्राप्त हुई है और पढ़ते हैं| लोग सोच रहे हैं मेरे पास है कि नहीं है, गीता है या भागवत है | लोग गीता भागवत मे अंतर नहीं जानते | भगवान ने (श्री भगवान उवाच) गीता का उपदेश संदेश अर्जुन को सुनाया लेकिन वह संदेश किनके लिए था? मेरे लिए, हमारे लिए तो भगवान का उद्देश्य सफल हुआ | अगर हम तक उस दिन का कहा हुआ संदेश उपदेश अगर पहुंचा है तो BG 18.73 “अर्जुन उवाच | नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत | स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव || ७३ ||” अनुवाद अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण, हे अच्युत! अब मेरा मोह दूर हो गया | आपके अनुग्रह से मुझे मेरी स्मरण शक्ति वापस मिल गई | अब मैं संशयरहित तथा दृढ़ हूँ और आपके आदेशानुसार कर्म करने के लिए उद्यत हूँ | भगवत गीता को अर्जुन ने कहा है -- यह क्या है? प्रसाद है आप तो दूसरे प्रसाद को जानते हो | महाप्रसाद मुँह मे आ रहा है | लेकिन अर्जुन ने गीता को कहा ये प्रसाद है | श्रील प्रभुपाद की जय श्री कृष्ण ने श्रील प्रभुपाद को निमित्त बनाया | युद्ध खेलने के लिए अर्जुन को निमित्त बनाने जा रहे थे| उन्होंने 11 वे अध्याय में कहा भी BG 11.33 “तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् | मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भाव सव्यसाचिन् || ३३ ||” अनुवाद अतःउठो! लड़ने के लिएतैयार होओ और यश अर्जित करो | अपने शत्रुओं को जीतकरसम्पन्न राज्य का भोग करो |ये सब मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं औरहे सव्यसाची! तुम तो युद्ध मेंकेवल निमित्तमात्र हो सकते हो | हे अर्जुन निमित्त मात्र बनो | अर्जुन को सब्यसाची कहे अर्जुन तुम सब्यसाची हो हे अर्जुन निमित्त बनो मैं चाहता हूँ की तुम मेरी और से युद्ध करो |इसी के साथ यशस्वी बनो | BG 11.33 “तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् | मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भाव सव्यसाचिन् || ३३ ||” अनुवाद अतःउठो! लड़ने के लिएतैयार होओ और यश अर्जित करो | अपने शत्रुओं को जीतकरसम्पन्न राज्य का भोग करो |ये सब मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं औरहे सव्यसाची! तुम तो युद्ध मेंकेवल निमित्तमात्र हो सकते हो | तो हम कह सकते हैं वह कुरुक्षेत्र में अर्जुन को निमित्त बनाये | तो उसी प्रकार श्रील प्रभुपाद को भगवान निमित्त बनाएं और भगवत गीता का प्रचार प्रसार यथारूप प्रचार प्रसार और फिर प्रभुपाद उस ग्रंथ की रचना भी किये | गीता तो भगवान की है -- भगवत गीता | प्रभुपाद की नहीं है |भगवत गीता है |भगवान की गीता है |लेकिन उसको यथारूप के रूप में पहुंचाने का श्रेय श्रील प्रभुपाद को जाता है तब उस दिन तो गीता का संदेश सुनके एक व्यक्ति भ्रम से मुक्त हुआ --अर्जुन| इसीलिए आज की एकादशी का नाम है मोक्षदा | शब्दों में ध्यान देना चाहिए, शब्दों की और ही नहीं हर अक्षर की और, मोक्षदा मोक्ष देने वाली एकादशी | उस दिन किसको मोक्ष मिला ? BG 18.73 “अर्जुन उवाच | नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत | स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव || ७३ ||” अनुवाद अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण, हे अच्युत! अब मेरा मोह दूर हो गया | आपके अनुग्रह से मुझे मेरी स्मरण शक्ति वापस मिल गई | अब मैं संशयरहित तथा दृढ़ हूँ और आपके आदेशानुसार कर्म करने के लिए उद्यत हूँ | उस दिन तो अर्जुन भ्रम से मुक्त हुए और फिर श्रील प्रभुपाद ने जो भगवत गीता का प्रकाशन किया और उसके वितरण की योजना बनाई | सबसे अधिक प्रिय बात उन्हें कौन सी होगी -- ग्रंथ वितरण | श्रील प्रभुपाद ने यह भी कहा है कि ग्रंथ ही आधार है और इस प्रकार यह योजना बनाई | आज के दिन उच्चारण और प्रचार हुआ था | वही प्रचार भगवत गीता का अब संचार के कोने कोने में पहुंचाने वाले श्रील प्रभुपाद की जय अब तो जानते ही हो आप हरे कृष्णा दल के सदस्य हो भगवत गीता यथारूप कितनी भाषाओं में प्रकाशित हुई है और कितने देशों में पहुंची है और कितने भक्त बन रहे हैं इन सब का श्रेय प्रभुपाद को जाता है श्रील प्रभुपाद की प्रसन्नता के लिए भगवत गीता का हमें अध्ययन करना चाहिए और क्या करना चाहिए भगवत गीता का वितरण भी करना चाहिए तो फिर कौन कौन प्रसन्न होंगे? श्रील प्रभुपाद प्रसन्न होंगे | और कौन प्रसन्न होंगे? श्री कृष्ण भी प्रसन्न होंगे | श्री कृष्ण कहे हैं गीता जयंती महोत्सव की जय श्रीमद भगवत गीता की जय श्री कृष्ण अर्जुन की जय श्रील प्रभुपाद की जय गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल

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