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जप चर्चा, गोविंद धाम, नोएडा से 23 अगस्त 2021 हरे कृष्ण!!! हरे कृष्णा।क्या आप तैयार हैं?777 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। दाऊजी के भैया कृष्ण कन्हैंया।गोविंदा आला रे आला,कल यहां यह चल रहा था। कल रात्रि में हमनें उत्सव मनाया। भक्तों ने दही हांडी लूट लिया और हम गा भी रहे थे, गोपाला गोपाला देवकीनंदन गोपाला, देवकीनंदन गोपाला। कल दिन भर हमने कृष्ण बलराम की याद में बिताया,हमने मतलब आप सब ने ही या फिर कम से कम यहां जहां मैं था यहां तो बलराम पूर्णिमा के उत्सव के दिन ऐसा ही मूड था।बलराम आविर्भाव महोत्सव संस्मरण के समय कृष्ण याद आते ही हैं, यह दोनों भगवान भी हैं और भाई भी हैं। इन दोनों का साथ में संस्मरण होता हैं, क्योंकि कल बलराम पूर्णिमा हो चुकी हैं, तो श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारी भी अब से शुरू हो गई हैं। वैसे इन दोनों को यानी कृष्ण और बलराम को अलग किया ही नहीं जा सकता।हरि हरि। तो जब अक्रूर मथुरा से वृंदावन जा रहे थे, कृष्ण और बलराम दोनों को ही लेकर जा रहे थे। वैसे जब अक्रूर मथुरा से वृंदावन जा रहे थे तो कंस ने उन्हें बताया भी था कि कृष्ण और बलराम दोनों को ले आना। उस दुष्ट की तो कुछ और ही योजना थी। दुष्ट लोग सोचते हैं कि भगवान को मारा जा सकता हैं, कि भगवान की हत्या संभव हैं, इसीलिए इस योजना से कल उन दोनों को मथुरा में बुला रहा था। कंस ने अक्रूर को भेजते हुए कहा था कि कृष्ण और बलराम दोनों को ले आना। जब अक्रूर जा रहे थे तो रास्ते में कृष्ण और बलराम को याद कर रहे थे। कृष्ण और बलराम को याद करते करते और उनके गुण गाते गाते ही आगे बढ़ रहे थे और रथ को हॉक रहे थे। उनका जो इस यात्रा में मूड रहा या उनका इस यात्रा का लक्ष्य यह रहा कि मैं नंदग्राम जाऊंगा,जो कि वृंदावन में ही हैं। वह केवल नंद ग्राम का ही नहीं सोच रहे थे बल्कि यह सोच रहे थे कि नंद ग्राम में मैं कृष्ण बलराम से मिलूंगा।श्रील प्रभुपाद ने भी ऐसा लिखा हैं कि अगर कोई वृंदावन की यात्रा करना चाहता हैं तो अक्रूर जी का आदर्श हमें अपने समक्ष रखना चाहिए,जिस प्रकार से अक्रूर कृष्ण को याद करते हुए गए या इस भावना से गयें कि मैं उनसे मिलूंगा और कृष्ण बलराम से मिलने पर यह होगा, यह करूंगा, कृष्ण बलराम ऐसे दिखते होंगे,वह दोनों मुझे जरूर दर्शन देंगे, मैं उनसे जरूर मिलूंगा, वह दोनों भी खुशी से कहेंगे कि चाचा आ गए, मुझे चाचा चाचा कह कर पुकारेंगे और ऐसा हुआ भी, खैर अभी तो मैं नोएडा में बैठा हूं। लेकिन इस जप चर्चा के बाद मुझे भी वृंदावन के लिए प्रस्थान करना हैं, इसलिए मैं अक्रूर की वृंदावन की यात्रा के बारे में सोच रहा था। श्रीमद्भागवतम् -10.38.28 ददर्श कृष्णं रामं च व्रजे गोदोहनं गतौ । पीतनीलाम्बरधरौ शरदम्बुरहेक्षणौ ॥२८ ॥ तत्पश्चात् अक्रूर ने व्रज - ग्राम में कृष्ण तथा बलराम को गौवें दुहने के लिए जाते देखा । कृष्ण पीले वस्त्र पहने थे और बलराम नीले वस्त्र पहने थे । उनकी आँखें शरदकालीन कमलों के समान थीं । पूरे दिन भर के प्रयास के बाद जब वह वृंदावन पहुंचे तो उन्होंने देखा ददर्शन मतलब देखा किसे देखा? कृष्ण बलराम को देखा। अभी तक वह रथ में ही विराजमान हैं, रथ अभी-अभी नंद ग्राम के प्रांगण में पहुंचा हैं। नंद ग्राम,ग्राम हैं लेकिन वहां पर भी भवन है नंद भवन। क्या आप नंदग्राम गए हो?एक नंद भवन तो गोकुल में हैं, दूसरा नंद भवन नंद ग्राम में हैं। ग्राम का नाम भी नंद ग्राम हैं, किसका ग्राम हैं? नंद का ग्राम,गोकुल भी हैं, नंदगोकुल।ददर्श कृष्णं रामं मतलब अक्रूर जी ने कृष्ण और बलराम को देखा। अभी-अभी वह दिन भर की गोचरण लीला के बाद लौटे थे, अभी-अभी गाय चरा कर वृंदावन में लौटे हैं और अब गो दोहन के लिए गौशाला में गए थे और वहां पर देखा कि एक ने पीतांबर वस्त्र पहना हैं और एक ने नीलांबर नील मतलब नीला, अंबर मतलब वस्त्र। जिसने पीले वस्त्र पहने हैं, वह कौन हैं? वह कृष्ण हैं।उन्होंने ऐसे वस्त्र पहने हुए कृष्ण बलराम को देखा और जब उन्होंने उनकी आंखों की तरफ देखा तो शरदम्बुरहेक्षणौ ऐसा लगा जैसे शरद ऋतु में कमल खिले हैं, वह दोनों इतनी सुंदर आंखों वाले थे,ऐसा लग रहा था जैसे शरद ऋतु में कमल खिले हो।इस प्रकार अक्रूंर ने उनको देखा तो आप भी दर्शन कीजिए। अक्रूर जी को दर्शन हो रहे हैं। वैसे मैंने तो नहीं देखा, मैंने सुना हैं कि कृष्ण बलराम कैसे दिखते हैं।किन से सुना हैं? जिन्होंने उन्हें स्वयं देखा हैं। तो अक्रूर ने उन्हें देखा और अक्रूर ने क्या देखा? उसका वर्णन शुकखदेव गोस्वामी सुना रहे हैं। वास्तव में वह कैसे दिखते हैं, हम लोग सुनते जाएंगे,सुनते जाएंगे यानी श्रवण करेंगे और फिर कीर्तन करेंगे और फिर 1 दिन हम भी भगवद्धाम लौटेंगे और वहां जब हम कृष्ण और बलराम को देखेंगे तो पाएंगे कि कृष्ण- बलराम कैसे दिखते हैं। वैसे ही जैसे हम सुन रहे हैं। जैसे वह दोनों अक्रूर को दिखे।तब आपको याद आएगा कि एक दिन मैंने जब चर्चा में कृष्ण बलराम के बारे में अक्रूरजी से सुना था, तब आप सोचोगे अरे! यह तो वैसे ही हैं, जैसे मैंने सुना था। तो इस प्रकार सुनने से हमें भगवद्धाम लौटने से पहले ही कृष्ण बलराम दिखने लगते हैं और उन्हें कौन दिखाता हैं? हम कह सकते हैं कि भागवतम हमें दिखाता हैं। भागवतम् हमें उनका दर्शन देता हैं, इसे शास्त्र चक्षुक्ष: कहा हैं।शास्त्र क्या हैं? शास्त्र चश्मा हैं और बिना चश्मे के कुछ भी नहीं दिखता।जब हम चश्मा पहनते हैं,तब सब कुछ स्पष्ट दिखता हैं। शास्त्र का चश्मा पहनो, शास्त्र पढ़ो और सुनो आपको सब स्पष्ट दिखने लगेगा और इसको ही कहा गया है ओम अज्ञान तिमिरंधास्ञ क्योंकि हम अज्ञानी हैं। प्रतिदिन इस प्रकार का ज्ञान का अंजन हम अपनी आंखों में डालते हैं और फिर इस प्रकार ज्ञानांजन से प्रेमांजन तक पहुंच जाते हैं।प्रेम सुन सुनकर उदित होता हैं। M 22.107 नित्य-सिद्ध कृष्ण-प्रेम 'साध्य" कभु नय। श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय ।107॥ अनुवाद "कृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम जीवों के हृदयों में नित्य स्थापित रहता है। यह ऐसी वस्तु नहीं हैं, जिसे किसी अन्य स्रोत से प्राप्त किया जाए। जब श्रवण तथा कीर्तन से हृदय शुद्ध हो जाता हैं, तब यह प्रेम स्वाभाविक रूप से जाग्रत हो उठता है।" श्रवण कीर्तन से ही हमारी चेतना शुद्ध होती हैं, या फिर हमें स्पष्ट दिखने लगता हैं, हमें दर्शन होता हैं।कैंसे?जब हम गुरुजनों के चरणों में अपनी वंदना करते हैं।कृष्ण बलराम जिनको अक्रूर ने देखा उनको किशोरों कह रहे हैं, क्योंकि दो है इसलिए किशोरों कह रहे हैं। दोनों भी किशोर हैं।किशोर समझते हो? किशोरावस्था, 10 से 15 साल की आयु के बीच को किशोरावस्था कहते हैं।10 साल के तो यह हो गए हैं इसलिए इन्हें किशोर कहा गया हैं। 10.38.29 किशोरौ श्यामलश्वेतौ श्रीनिकेतौ बृहद्भुजौ । सुमुखौ सुन्दरवरौ बलद्विरदविक्रमौ ॥ २ ९ ॥ इन दोनों बलशाली भुजाओं वाले , लक्ष्मी के आश्रयों में से एक का रंग गहरा नीला था और दूसरे का श्वेत था । ये दोनों ही समस्त व्यक्तियों में सर्वाधिक सुन्दर थे । श्यामलश्वेतौ- यह जो पितांबर पहने हैं, इनके अंग की कांति श्यामल हैं, वस्त्र तो पीला पहना हैं, किंतु उनके अंग की कांति श्यामल हैं। श्याम रंग की हैं और दूसरे यह बलराम हैं, उनके अंग की कांति श्वेत हैं। उनका अंग श्वेत था, हैं और सदा के लिए रहेगा।कोई भी बदलाव नहीं होगा।श्रीनिकेतौ लक्ष्मी के यह निकेतन हैं या स्वामी हैं या निवास हैं।बृहद्भुजौ-इनकी बड़ी बड़ी महान या शक्तिमान भुजाएं हैं । एक एक बात को नोट करो। आपको बता देते हैं कि आपको कहां से पढ़ना हैं, यह दसवां स्कंध हैं, अध्याय 38।यह कुछ श्लोक मुझे बहुत प्रिय हैं। दसवां स्कंध अध्याय 38 और चार पांच श्लोक हैं। 28 से 33 नोट करो और अभी भी अगर आपके पास ग्रंथ हैं, तो खोलो,देखो और पढ़ो या बाद में पढ़ना।सुमुखौ अर्थात सुंदर मुख वाले कृष्ण।ब्यूटीफुल लाइक वूमेन एंड हैंडसम लाइक मैंन।अंग्रेजी में स्त्री के सौंदर्य को ब्यूटीफुल कहते हैं और पुरुष के सौंदर्य को हैंडसम कहते हैं।कृष्णा इन दोनों का कॉन्बिनेशन हैं, दोनों का ही मिलाजुला संगम हैं।सुमुखौ मुख तो मुह हुआ और सु मतलब सुंदर और दो हैं, इसलिए सुमुखो सुंदर वरो,वर मतलब नटवर, श्रेष्ठ हैं, इसलिए वर हैं या फिर वर हैं, तो वधू भी होगी ही। वर और वधु दोनों साथ में होते हैं,इसीलिए यहां लक्ष्मी वधू हैं और कितनी लक्ष्मीया हैं? 5.29 ब्रह्म संहिता चिन्तामणिप्रकरसद्यसु कल्पवृक्ष- लक्षावृतेषु सुरभीरभिपालयन्तम् । लक्ष्मीसहस्रशतसम्भ्रमसेव्यमानं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥२९॥ अनुवाद-जहाँ लक्ष-लक्ष कल्पवृक्ष तथा मणिमय भवनसमूह विद्यमान हैं, जहाँ असंख्य कामधेनु गौएँ हैं, शत-सहस्त्र अर्थात् हजारों-हजारों लक्ष्मियाँ-गोपियाँ प्रीतिपूर्वक जिस परम पुरुषकी सेवा कर रही हैं, ऐसे आदिपुरुष श्रीगोविन्दका मैं भजन करता हूँ।२९॥ सुंदर वरो और दोनों दो हैं, इसीलिए सुंदर वरो और जब कृष्ण बलराम दोनों चल रहे थे, तो ऐसे लग रहा था कि हाथी के दो बच्चे ,हाथी के दो युवा बच्चे चल रहे हैं,उनकी चाल से ऐसा लग रहा था कि हाथी जा रहे हैं, क्योंकि यह दोनों नवयुवक हैं, इसलिए इनकी बूढ़े हाथियों के साथ तुलना नहीं हो सकती हैं, इसीलिए ऐसा कहा गया हैं कि जैसे बाल हाथी चल रहे हैं और जब वह चलते हैं तो शाम्भोजैश्चिह्नितैरधिभिर्वजम् भागवतम् 10.38.30 ध्वजवजाङ्क शाम्भोजैश्चिह्नितैरधिभिर्वजम् । शोभयन्तौ महात्मानौ सानुक्रोशस्मितेक्हैं। ॥३० ॥ ये दोनों ही समस्त व्यक्तियों में सर्वाधिक सुन्दर थे। जब वे युवक हाथियों की - सी चाल से अपनी दयामय मुस्कानों से निहारते चलते तो ये दोनों महापुरुष अपने पदचिन्हों से चरागाह को सुशोभित बनाते जाते । ये पदचिन्ह पताका , वज्र , अंकुश तथा कमल चिन्हों से युक्त थे । वह अपने चरण चिन्नो से उस ब्रजमंडल के स्थान को अंकित या सुशोभित करते हैं। जहां भी वह दोनों चलते हैं वहां उनके चरण कमलों के चिन्ह बने रहते हैं और वहां की भूमि उसको संभाल कर रखती हैं। वैसे अभी भी कुछ चरण चिन्ह चरण पहाड़ी पर कामवन में और भी अनेक जगहों पर आज भी मौजूद हैं। आज भी हम उन चरण कमलों के दर्शन कर सकते हैं और आप भगवान के चरण कमल में देखोगे कि चरण कमल में अलग अलग चिन्ह हैं। पैरों के तलवों में लालिमा हैं।भगवान का तलवा और हथेली लाल रंग की हैं। उनके नाखून भी लाल हैं,इसलिए आप लोग पॉलिश कर के लाल बनाते हो, क्योंकि आप नकल करते हो।कृष्ण की सुंदरता एक मानक हैं जिस पर सब उतरना चाहते हैं।यहां के लोग कृष्ण के साथ प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं।शोभयन्तौ महात्मानौ- वह ऐसे शोभायमान हैं और महात्मानो,महान आत्माएं हैं, परमात्मा हैं या भगवान हैं।सानुक्रोशस्मितेक्हैं-और उनके मुख पर सदैव ही एक मुस्कान बनी रहती हैं, वे हंसते नहीं बल्कि मुस्कुराते हैं। एक हंसना होता हैं, एक मुस्कुराना होता हैं। तो भगवान के मुख पर सदैव मुस्कान बनी रहती हैं।उदाररुचिरक्रीडौं- वह उदार हैं उदाररुचिरक्रीडौं स्रग्विणी वनमालिनी । पुण्यगन्धानुलिप्ताङ्गी स्नातौ विरजवाससौ ॥३१ ॥ यह अत्यन्त उदार तथा आकर्षक लीलाओं वाले दोनों प्रभु मणिजटित हार तथा फूल - मालाएँ पहने थे , इनके अंग शुभ सुगन्धित द्रव्यों से लेपित थे । ये अभी अभी स्नान करके आये थे और निर्मल वस्त्र पहने हुए थे और कई सारी लीलाए खेलते हैं,दिल खोलकर और जी भर कर लीलाएं खेलते हैं।वह लीला खेलते हैं तो फिर उस नीला का प्रचार प्रसार होता हैं और यह प्रचार प्रसार भी कृष्ण और बलराम की उदारता का लक्षण हैं। अक्रूर ने देखा कि दोनों ने मालाएं पहनी हुई हैं,दोनों ही के गले में माला हैं, कैसी माला हैं? वनमालीनो। दोनों वन के पुष्पों की माला पहने हैं, कृष्णा अलग-अलग पुष्पों की अलग-अलग मालाएं अलग-अलग समय पर पहनते हैं,इसीलिए पद्ममाली भी कहलाते हैं।कदम की पुष्पों की माला पहने हुए उस बालक का दर्शन कब होगा? कई प्रकार की मालाएं पहनते हैं, उसमें से वैजयंती माला भी एक हैं। यह वैजयंती उस नटी की बात नहीं हैं, जो एक्ट्रेस अब नहीं रही। यह तो वैजयंती के फूलों की बात हो रही हैं। यह एक विशेष माला हैं। पर यहां तो वनमालिनो कहा हैं। अक्रूर ने देखा कि ऐसा लगता हैं कि इन्होंने अभी अभी स्नान किया हैं, गोचारण लीला से आने के बाद पहला काम तो स्नान का ही होता हैं। भगवान के स्नान को अभिषेक कहते हैं। जैसे हम सब ने कल बलराम का अभिषेक किया, साथ में कृष्ण भी थे।वैसे मैं कल अभिषेक करते समय सोच रहा था, कि क्या किसी का ऐसा अभिषेक स्नान होता हैं? कल महा स्नान, महा अभिषेक, नोएडा मंदिर में था। हम लोग तो मुश्किल से एक बाल्टी भरकर स्नान कर लेते हैं, लेकिन भगवान के स्नान को अभिषेक कहते हैं। उसकी शोभा के बारे में तो क्या कहा जाए, अलग-अलग तरह के द्रव्य, जल और फलों का रस और ना जाने क्या-क्या, इन सब चीजों से भगवान का अभिषेक होता हैं। कई सारे उबटन और सुगंधित तेलों से और चंदन के लेपो से भगवान का अभिषेक होता हैं। भगवान का स्नान, अभिषेक कोई छोटी मामूली बात नहीं हैं। यह एक बड़ी चीज हैं। संसार में ऐसा नहीं होता। जब हम भगवान का अभिषेक देखते हैं तो हमें कुछ मात्रा में पता चलता हैं कि भगवद्धाम में किस प्रकार से भगवान का अभिषेक होता होगा। उस कृत्य को दर्शाने के लिए अभिषेक का आयोजन यहां होता हैं।विरजवाससौ-दोनों ने स्नान किया हैं और स्वच्छ वस्त्र पहने हुए हैं। वास मतलब वस्त्र, रज मतलब फूल और बिरज मतलब धूल से मुक्त अर्थात स्वच्छ वस्त्र पहने हुए हैं प्रधानपुरुषावाद्यौ जगद्धेतू जगत्पती । अवतीणों जगत्यरहैं। स्वांशेन बलकेशवौ ॥ ३२ ॥ प्रधानपुरुषावाद्य- और यह दोनों कृष्ण और बलराम प्रधान पुरुष हैं। प्रधान से आप क्या समझते हैं?जैसे कहते हैं कि यह गांव के प्रधान हैं और फिर प्रधानमंत्री भी होते हैं, तो प्रधान मतलब मुख्य। सारे पुरुषों के यह मुखिया हैं, सबसे मुख्य पुरुष हैं और आदो मतलब आदि पुरुष हैं और जब कोई भी नहीं था तब से यह मौजूद हैं।जगद्धेतू जगत्पती-वह इस जगत के कारण भी हैं और इस जगत के पति भी हैं।अवतीणों जगत्यर्थे-और यह दोनों ही प्रकट होते हैं। बलराम जी तो कल प्रकट हुए और कृष्ण भी अपने प्राकट्य की तैयारी कर रहे हैं।जगत्यर्थे- इस जगत के कल्याण के लिए भगवान प्रकट होते हैं। BG 4.8 “परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || ८ ||” अनुवाद भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | यह तो भगवान ने गीता में कहा ही हैं, लेकिन भागवत में भगवान ने कहा हैं, कि अनुग्रहाय भूतानां- 8.24.27 नूनं त्वं भगवान्साक्षाद्धरिनारायणोऽव्ययः अनुग्रहाय भूतानां धत्से रूपं जलौकसाम् ॥२७ ॥ हे प्रभु ! आप निश्चय ही अव्यय भगवान् नारायण श्री हरि हैं । आपने जीवों पर अपनी कृप प्रदर्शित करने के लिए ही अब जलचर का स्वरूप धारण किया है । अनुग्रहाय भूतानां-इस संसार के जीवो पर विशेष अनुग्रह करने के लिए कृष्ण और बलराम प्रकट होते हैं।स्वांशेन बलकेशवौ-यह दोनों स्वयं भगवान हैं। 1.3.28 एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥ २८ ॥ उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं ) हैं , लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं । वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं । भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं ।बल केशवो-बल अर्थात बलराम और केशव अर्थात केशव प्रकट हुए। दिशो वितिमिरा राजन्कुर्वाणी प्रभया स्वया । यथा मारकतः शैलो रौप्यश्च कनकाचिती ॥३३ ॥ शुकदेव गोस्वामी कह रहे हैं, हे राजन! क्योंकि शुकदेव गोस्वामी परीक्षित महाराज को यह सब सुना रहे हैं,इसलिए उन्हें संबोधित कर रहे हैं कि हे राजन! कृष्ण जहां भी होते हैं, वहां का जो तिमिर हैं यानी कि अंधकार हैं, वह प्रकाश में बदल जाता हैं।वितिमिरा- अंधकार रहित। Cc, M22. 31 *कृष्ण-सू़र्य़-सम;माया हय अन्धकार।* *य़ाहाँ कृष्ण, ताहाँ नाहि मायार अधिकार।।* (श्रीचैतन्य-चरितामृत, मध्य लीला, 22.31) अनुवाद:-कृष्ण सूर्य के समान हैं और माया अंधकार के समान हैं। जहांँ कहीं सूर्यप्रकाश है वहांँ अंधकार नहीं हो सकता। ज्योंही भक्त कृष्णभावनामृत नाता है, त्योंही माया का अंधकार (बहिरंगा शक्ति का प्रभाव) तुरंत नष्ट हो जाता हैं। यह लिखा हैं, कि सारी दिशाएं अंधकार से मुक्त हुई।कुर्वाणी प्रभया स्वया- अपनी प्रभा से सभी दिशाओं के अंधकार को दूर कर देते हैं और भगवद्गीता में कृष्ण ने कहा हैं कि सूर्य का प्रकाश भी मैं ही हूं या कृष्ण कहते हैं कि सूर्य मेरी एक आंख हैं और चंद्रमा मेरी दूसरी आंख हैं। मैं जब आंख खोलता हूं, तो दिन में मेरी सूर्य के रूप में आंख खुलती हैं और रात में चंद्रमा के रूप में। इसीलिए सूर्य और चंद्रमा के रूप में प्रकाश भी भगवान ही देते हैं।प्रभया मतलब- स्वयं प्रकाशित हैं।कृष्ण और बलराम स्वयं प्रकाशित हैं।उनको प्रकाशित होने के लिए किसी और प्रकार स्त्रोत पर निर्भर नहीं होना पड़ता। अगर आपके घर पर कृष्ण माखन चोरी करता हैं, तो आप ऐसे स्थान पर माखन को रखो जहां अंधेरा हो। आप को अंधेरे में रखना चाहिए ना। आपमें इतना दिमाग नहीं हैं, कि अंधेरे में रखेंगे तो कृष्ण बलराम वहां नहीं पहुंच जाएंगे, तो एक गोपी को ऐसा सुझाव दिया गया था। तो उन्होंने कहा कि हां हां ऐसा ही कर रहे हैं,किंतु जब यहा कृष्ण आता हैं, तो जहां जहां यह जाता हैं, वहां वहां प्रकाश हो जाता हैं। यह कोई अलग से मोमबत्ती लेकर नहीं आता, लेकिन स्वयं हर दिशा प्रकाशित हो जाती हैं। हमने माखन रखा तो अंधेरे में ही था लेकिन जैसे ही यह आ गया वहा प्रकाश हो गया।यह जहां भी जाता हैं, वहां इसे दिख जाता हैं, क्योंकि यह स्वयं प्रकाशित हैं।यथा मारकतः शैलो रौप्यश्च कनकाचिती- और श्रीकृष्ण मरकत मणि का बना हुआ एक पहाड़ हैं। मरकत मणि का श्याम वर्ण होता हैं, तो वैसे ही कृष्ण हैं और बलराम क्योंकि वह श्वेत वर्ण के हैं,तो वह दूसरा पहाड़ हैं। कैसा पहाड़? चांदी का पहाड़। यह हमारा प्रातः स्मरणीय ध्यान था। हमने कृष्ण बलराम के बारे में श्रवण किया। अब हम स्मरण कर सकते हैं। श्री कृष्ण बलराम की जय। आज एक विशेष दिन भी हैं,आज इस्कॉन के लिए एक विशेष दिन हैं। आज ही के दिन प्रभुपाद ने कोलकाता से अमेरिका के लिए यात्रा प्रारंभ की। 23 अगस्त 1965 को प्रभुपाद ने वह यात्रा प्रारंभ की। 1965 के 23 अगस्त को श्रील प्रभुपाद कोलकाता के बंदरगाह गए, वहां जलदूत उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। वह बोट सिंडिया नेवीगेशन कंपनी की थी। कोलकाता से कोलंबो, कोलंबो से केरल और केरल से अमेरिका के लिए प्रस्थान किया।प्रभुपाद 1 महीने से अधिक उस बोट में रहे, किंतु उस यात्रा की शुरुआत आज हुई। आप उस समय की तस्वीर भी देख सकते हैं। प्रभुपाद के एक हाथ में एक अटैची हैं और दूसरे हाथ में छाता हैं। और वह बोट में बैठने के लिए ऊपर चढ रहे हैं। कृष्ण बलराम मंदिर में भी ऐसा एक दृश्य आप देख सकते हैं। आपने तस्वीरों में भी यह दृश्य देखा होगा। यह जो तस्वीरें हैं,यह आज ही के दिन की हैं। इस्कॉन कोलकाता के भक्त आज उस स्थान पर जाएंगे जहां यह जलदूत बोट खड़ी थी।उस बंदरगाह का नाम हैं, खिदिरपुर। वहां कोलकाता के भक्त आज पहुंचने वाले हैं और वहां जाकर इस दिन को और श्रील प्रभुपाद की यात्रा को याद करेंगे और वैसे भी यह वर्ष कुछ विशेष हैं, क्योंकि यह श्रील प्रभुपाद के 125 वी वर्षगांठ का साल हैं और उस उपलक्ष्य में उत्सव भी मनाये जा रहे हैं।आप इस लीला को प्रभुपाद लीलामृत में पढ़ सकते हैं। पढ़ोगे ना? इस बात का ध्यान रखें कि आप सबके पास प्रभुपाद लीलामृत होनी ही चाहिए, नहीं हैं, तो इसे खरीदो। वैसे आप में से कई भक्तों ने प्रभुपाद लीलामृत का वितरण करने का भी संकल्प लिया हैं कि हम 5,10 या 125 लीलामृत का वितरण करेंगे। ऐसा आप लोगों का प्लान हैं।आप यह संकल्प ही लेकर बैठे हो। कब तक बैठे रहोगे?उठो और इसका वितरण प्रारंभ करो,ताकि प्रभुपाद भावना पूरे संसार में फैल सके। श्रील प्रभुपाद की जय।1922 में आज के दिन जो श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती प्रभुपाद जी ने कोलकाता में प्रभुपाद को आदेश दिया था,1965 में उस पर आज के दिन अमल हो रहा हैं। इसी को इस पुस्तक में बताया गया हैं, लाइफ टाइम इन प्रिपरेशन। 1922 से 1965। प्रभुपाद अपने गुरु महाराज के आदेश को कभी भी नहीं भूले थे।वह तो बस तैयारी कर रहे थे। यह आप लीलामृत में पढ़ सकते हैं और फिर जब तैयारी पूरी हो गई तो आज ही के दिन उन्होंने वह जलदूत को लिया। देवदूत श्रील प्रभुपाद ने उस जलदूत को बोर्ड किया। कहां गए?न्यूयॉर्क गए।ठीक हैं।अब आप पर हैं, कि आप इसे पढ़ो,ध्यान करो या लीलामृत का वितरण करो। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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