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*जप चर्चा* *17 दिसंबर 2021* *सोलापुर से* 1042 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय। आप तैयार हो? हमारे साथ अब मंगोलिया के भक्त भी है, मोरिशियस के तो है ही और एक देश मंगोलिया। हरि हरि। इस प्रकार इस हरे कृष्ण फैमिली का विस्तार हो रहा है। चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच हो रही है। इसका सबूत क्या है? वैराजगिरी यह जो मंगोलिया की माताजी है इनका नाम भी कठिन है। संस्कृत से भी कठिन है संस्कृत आसान है वैसे। लेकिन उसी का फिर आगे बिगाड़ होता है तो फिर कठिन हो जाता है। वैसे मूल रूप से यह संस्कृत के ही नाम है, बट्टूक मंगोलिया से। देखिए कहां कहां तक फैल रहा है भगवान का नाम। वैसे कुछ ज्यादा दूर तो नहीं है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु तो कहे ही है पृथ्वीते आछे जत नगरादी ग्राम.. मेरे नाम का प्रचार कहां होगा पृथ्वी पर होगा। हमारे भक्ति वैभव स्वामी महाराज मंगोलिया के जीबीसी (GBC) है। तो उनके प्रयासों से मंगोलिया में भी हरिनाम का प्रचार हो रहा है। वैसे कई सालों से हो रहा है। और हमारे एकनाथ गौर प्रभु मेरे शिष्य है वह अभी नोएडा में रहते हैं। एकनाथ गौर दास ब्रह्मचारी अभी प्रशिक्षित हो रहे हैं। अभी तो ब्राह्मण भी बन गए ब्राह्मण दीक्षा भी हो गई। तो वे भी प्रचार कर रहे हैं ऑनलाइन। मंगोलिया के भक्तों को जोड़ रहे हैं इस परंपरा के साथ और वृंदावन के साथ या वृंदावन के श्री कृष्ण के साथ। इस प्रकार यह भक्ति का प्रचार होता है। यह भक्ति भगवान ने भगवद्गीता में दी है, सिखाई है। भगवद्गीता क्या सिखाती है? भक्ति योग सिखाती है। और भी योगों का उल्लेख तो करते हैं लेकिन फिर सार में कहते हैं, निष्कर्ष निकालते हैं भगवान और कहते हैं...। “योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || ४७ ||” और यह भगवद्गीता एकम शास्त्र देवकी पुत्र गीतम। यह भक्ति का शास्त्र है, भक्ति सिखाता है, यह आत्म तत्व का विज्ञान है। भगवत साक्षात्कार का भी विज्ञान है। तो इस विज्ञान का ही प्रचार हो रहा है। वैसे जहां जहां हरि नाम पहुंच रहा है, वहां वहां भगवदगीता निश्चित रूप से पहुंच रही है। और संभावना है कि मंगोलियन भाषा में भी भगवदगीता का अनुवाद हुआ है। आई एम कॉन्फिडेंट। मंगोलिया जानते हो क्या आप? मंगोलिया रशिया से भी ऊपर या बगल में चीन ऑलमोस्ट नियर नॉर्थ पोल के पास मंगोलिया है। तो वहां तक नाम पहुंच गया तो वहां पर गीता भी पहुंचती है और सारी संस्कृति भी पहुंचती है। कृष्ण भावनामृत या धर्म और संस्कृति जिसको हम कहते हैं। यह दो बातें होती हैं, यह धर्म और संस्कृति का भी प्रचार और प्रसार होता है सर्वत्र। और वहां की फिर.. वैसे आप जानते हो। आप जो जानते हो बातें उन्हीं को हमें कभी कभी याद भी दिलाई जाती हैं। फिर उसी प्रकार की भी जीवन शैली यह भी याद दिला रहे हैं, जीवनशली भी बन जाती है। साइंस ऑफ बिंग एंड आर्ट ऑफ लिविंग ऐसे भी कहां जाता है। हमारा जो अस्तित्व है उस अस्तित्व का विज्ञान और जीने की कला। या आर्ट्स एंड साइंस आप सुनते हो ना, कई कई कॉलेज होते हैं आर्ट्स एंड साइंस। तो सायंस ऑफ बिंग मतलब होना मैं हूं इसका विज्ञान, आत्म साक्षात्कार का विज्ञान। तो साइंस ऑफ बिंग एंड आर्ट ऑफ लिविंग और जीने की कला या जीने की शैली। तो गीता का प्रचार जहां पहुंचता है, फिर वहां की जीने की पद्धति भी जिसको संस्कृति भी कह सकते है, उसमें परिवर्तन आता है। वहां के खानपान में अंतर आता है फिर वहां महाप्रसादे गोविंदे शुरू हो जाता है। कृष्ण गीता में कहे हैं डाइट कैसा होना चाहिए..पत्रं पुष्पं फलं तोयं। फिर वेशभूषा में परिवर्तन आ जाता है पुरुष धोती पहनते हैं स्त्रियां साड़ी पहनती है। यह क्यों? क्योंकि कृष्ण धोती पहनते हैं राधा रानी साड़ी पहनती है। देखिए यह कहां की संस्कृति। यह गोलोक की संस्कृति या वृंदावन की संस्कृति या वृंदावन की वेशभूषा श्री कृष्ण की, राधा की, ब्रज वासियों की तो वैसे वेशभूषा वाले फिर हम बन जाते हैं। उसी के साथ वैसे कृष्ण भावना भावित भी होना पड़ता है। तभी तो हमारे वेशभूषा में अंतर आता है। कृष्ण कैसे वस्त्र पहनते हैं, राधा रानी कैसे पहनती हैं। वह जींस पहनती है क्या राधा रानी। तो यही फिर मदद करता है कृष्णभावना भावित होने के लिए। हम वैसी ही वेशभूषा करते हैं, जैसे वृंदावन में राधा रानी और कृष्ण करते हैं। फिर वाद्य भी वैसे ही होते हैं। रास क्रीडा होती है तो जो वाद्य बचते हैं, वैसे भी रास क्रीडा नहीं है तो भी कई सारे वाद्य तो बचते ही है। वैसे भगवत धाम हे भी किसको पता है, किसी को पता नहीं है। भगवान है कि नहीं इसीका पता नहीं है तो भगवत धाम कैसे पता होगा। कई सारे हिंदुओं को भी पता नहीं है की भगवत धाम है। यही तो मुसीबत है। क्योंकि हम यह निराकार निर्गुण के प्रचार से इतने प्रभावित हो चुके हैं। बस ज्योत मे ज्योत मिलानी है, मुक्त होना है खतम। यह अधूरा ज्ञान बड़ा भयानक, खतरनाक होता है। इसीलिए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कहां ही है सावधान मायावाद भाष्य सुनिले हय सर्वनाश। मायावाद भाष्य सुनोगे.. उसी का नाम है निर्गुण, निराकार या अद्वैतवाद। वह भी तो हिंदू है, वह भी तो भारतीय है। या फिर शास्त्र को अधूरा जानते हैं अद्वैत। अच्छा किया कि प्रभुपाद ने कुछ समझोता नहीं किया। अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ कृष्ण भावना भावित होना सर्वोच्च बात है, सर्वोपरि बात है कृष्ण भावना भावित होना। कई लोग कह रहे थे स्वामी जी स्वामी जी आप यह कृष्ण कॉन्शियस क्यों कहते हैं गॉड कॉन्शियस कहो ना। अपने सोसाइटी का नाम दे दो इंटरनेशनल सोसायटी फॉर गॉड कॉन्शसनेस। उनका नाम कृष्ण है तो हम उनको गॉड क्यों कहेंगे, हम उनको कृष्णा कहेंगे। और गॉड कहना कृष्ण कहना बहुत उस में जमीन आसमान का अंतर है। गॉड जो शब्द है उससे कुछ ज्यादा समझ में नहीं आता है गॉड। कृष्ण जब कहते हैं तो आपको सब कुछ समझ में आ जाएगा। गॉड तो ऐसे ही क्रिएशन है। यह मल भाषा, यह म्लेच्छ भाषा, नीच भाषा, नीच लोगों की भाषा। अंग्रेजी भाषा को कई विद्वान कहते हैं यह म्लेच्छों की भाषा है। लेकिन संस्कृत भाषा तो देव भाषा है। देवता बोलते हैं, देवीयाँ बोलते हैं इस भाषा में। कृष्ण भी यह भाषा बोलते हैं भगवद्गीता को वे संस्कृत में बोलते हैं। संस्कृत रिफाइंड पॉलिश लैंग्वेज।.... जैसे रिलीजन कहना और धर्म कहने में बहुत बड़ा अंतर है। धर्म कहने से पूरा वर्णन हुआ धर्म। रिलीजन क्या होता है? रिलिजन से ज्यादा कुछ समझ में नहीं आता। लेकिन धर्म कहेंगे तो उसमें सब कुछ आता है..........। अधिकतर इस कलयुग के जो लोग हैं वे शुद्र संस्कृति के हैं। जब हम संस्कृति कहते हैं तो उसमें वेशभूषा भी आ गई, खान-पान भी आ गया, उत्सव आ गए या वाद्य है वह आ गए, पूरी जीवन शैली भी आ गई जब हम संस्कृति कहते हैं। तो मॉडर्न संस्कृति और आधुनिक भारत, भारत नहीं रहा। जब हमने भारत को आधुनिक बनाया। जैसे भारत का हो गया इंडिया। और फिर मॉडर्न इंडिया की संस्कृति यह वेस्टर्न संस्कृति, अमेरिकन संस्कृति या शुद्रों की संस्कृति कहो या कुछ व्यापारियों की संस्कृति कहो, फिर शास्त्रज्ञो का कहो उनके समान ही है। उनकी क्या संस्कृति है? उनके पास कोई संस्कृति नहीं है वे असंस्कृत है। हरि हरि। मैं सोच रहा था कि आपको भगवद्गीता समझनी है और पढ़नी है तो आपके सारे हाव भाव में, संस्कृति में परिवर्तन करना होता है। हमको जल्दी उठना होगा भगवद्गीता को समझना चाहते हो तो आपको जल्दी उठना होगा। यह एक बात है, संस्कृति का एक भाग है। वेस्टर्न संस्कृति क्या है? वह तो पार्टी कल्चर है, फाइन वाइन पीना ही कल्चर हुआ। पार्टियों में जाना कल्चर हुआ। मॉडर्न कल्चर.. आपको साइंटिस्ट बनना है या पीएचडी करनी है कोई भी टॉपिक ले लो और पीएचडी करना चाहते हो, तो आप कुछ भी बकवास कर रहे हो, आपके खान पानी या आपकी जीवनशैली। आप वुमन हंटर भी हो सकते हो और पीएचडी भी हो सकते हो। आप कामी हो सकते हो, आप क्रोधी हो सकते हो, आप लोभी हो सकते हो और पीएचडी भी हो रहे हो, साइंटिस्ट भी हो रहे हैं। इस प्रकार की जो अविद्या है उसको ग्रहण कर रहे हैं, पढ़ रहे हैं, उसमें निपुण हो रहे हैं। ऐसा करने के लिए आप मांसाहार नहीं कर सकते, नशापान नहीं कर सकते, गेम्बलिंग नहीं कर सकते। भगवद् गीता पढ़ना चाहते हो या समझना चाहते हो तो यह आप नहीं कर सकते। तुरंत ही शुरुआत में यम नियम, यह यम है यह नियम है, यह विधि है यह निषेध है। ऐसे विधि निषेध संसार भर के लोगों के लिए नहीं है। न तो वह जानते हैं न तो पालन करते हैं। जिसका वर्णन भगवद् गीता में कृष्ण करते हैं किं कर्तव्यं विमुढता क्या करना चाहिए। भगवद् गीता को हम पढ़ना और जानना चाहते हैं या फिर भागवत भी हैं, चैतन्य चरितामृत भी है। इसका हम साक्षात्कार करना चाहते हैं उसका हम दर्शन करना चाहते हैं। हमारे शास्त्र को वैसे दर्शन कहा है दर्शनशास्त्र। अंततोगत्वा हमें कृष्ण का दर्शन ही करना है। तो यह करने के लिए हमारे भावनाओं में क्रांति, विचारों में क्रांति, हमारी संस्कृति, हमारी जीवन शैली में क्रांति, हमारे खान पान, यह वह, जिनका संग करते हैं उसमें क्रांति, हम कब उठते हैं, कब सोते हैं, कितना सोते हैं, खाना है, सोना है, मैथुन है, फिर डिफेन्स है। यह सारा नियंत्रण होगा, इसकी सारी नियमावली है। यह नहीं कि आप खा नहीं सकते, लेकिन आप क्या खाओगे, क्या नहीं खा सकते यह सारे नियम है। लेकिन ऐसे नियम दुनिया वालों के लिए नहीं है। जो फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी, ज्योग्राफी हो सकता है, फिर एस्ट्रोनॉट्स बन रहे हैं, नासा के साइंटिस्ट बन रहे हैं। उसमें कोई नियम का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। तो भी आप नासा साइंटिस्ट बनेंगे। सारा सत्यानाश कर दिया पृथ्वी का अपनी जीवनशैली से। और अब कह रहे हैं चलो चलो चलते हैं, इस लोक को छोड़ो। हमको मंगल दिखा रहे हैं, हमको चंद्रमा दिखा रहे हैं। हम पहले जाकर देखते हैं वहां कैसा है, क्या व्यवस्था है, क्या वहां लाइट है या लाइफ सरवाइव कर भी सकते हैं। तो यह सब बकवास चल रहा है संसार में। संसार के तथाकथित सुपर पावर्स ऐसे रास्ता दिखा रहे हैं। पृथ्वी का सारा किया बिगाड़ उन्होंने, यहां का सारा पर्यावरण, वातावरण को बदल दिए। फिर ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी का टेंपरेचर बढ़ गया। फिर बुखार आ गया पृथ्वी को। जिसके गोद में हमें रहना है उसी को बुखार आ गया फिर हम कैसे स्वस्थ रहेंगे। तो संसार भर के लोगों की जीवन शैली, विचारधारा और उसी का यह दुष्परिणाम है। इसमें से चयन करिए। तो राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् यह कुछ भिन्न ही बात है। यह राज विद्या है और संसार में जो पढ़ाया जाता है, पढ़ते हैं वह अविद्या है। विद्या और अविद्या परा विद्या इस विद्या के दो प्रकार है। तो संसार जिसको पढता है वह अविद्या है मैटर का स्टडी है। आत्मा का स्टडी प्रारंभ करते हैं तो फिर वह विद्या हो गई। और वह विद्या भगवान गीता मे सिखाए हैं, जिसको किंग ऑफ नॉलेज कहां है। राजगुह्यं सबसे गोपनीय है। पवित्रम पवित्र है और उत्तम है मतलब तमो गुण से परे है। तमो, रजो, सतोगुण से परे का यह ज्ञान है भगवदगीता का। ऐसे ज्ञान को हम प्राप्त करेंगे तो हम गुणातीत हो जाएंगे, कृष्ण भावना भावित हो जाएंगे। हरि हरि। तो इस पर और विचार कीजिए। आप को विचार करना होगा, चिंतन, मनन करना होगा। जब हम कुछ कहते हैं इसको भी आप और सोचिए, चिंतन कीजिए, मनन कीजिए और अध्ययन कीजिए। पता लगवाइए अधिक अधिक जिन बातों को हम थोड़ा संक्षिप्त में कहते हैं, कुछ संकेत ही करते हैं। तो देखिए गीता में, भागवत में इसके संबंध में और कुछ कहा है या प्रभुपाद के तात्पर्य में, उनकी कन्वर्सेशन मे। हमारे आचार्यों के जो विचार है उसे भी पढ़िए, सुनिए। विशेष रूप से यह गीता का जमाना है। गीता जयंती, गीता वितरण के कार्यक्रम को हम मना रहे हैं। तो गीता को पढ़िए, गीता का वितरण कीजिए। धन्यवाद। हरे कृष्ण।

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