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हरे कृष्ण
जप चर्चा,
पंढरपुर धाम से,
25 अक्टूबर 2020
हरी हरी।
अयोध्या वासी राम
दशरथ नंदन राम पतित पावन राम
जानकी जीवन सीता मोहन राम राम
जय श्री राम! आज तो याद करना ही होगा श्रीराम को और साथ ही साथ आज याद करेंगे यशोमती नंदन प्रभु को भी! रामविजय उत्सव का दिन है और यशोमती नंदन प्रभु का तिरोभाव तिथि उत्सव हम मनाना चाहते है। हरि हरि। जैसे एक नवमी प्रसिद्ध है, राम के नाम से रामनवमी! तो एक दशमी भी प्रसिद्ध है विजयादशमी! वह आज का दिन है। राम का विजय हुआ, राम का विजय ही होता है और कुछ नहीं होता! और आज ही लंका में श्रीराम का विजय हुआ।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||
भगवतगीता ४.८
अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |
येसा कहने वाले श्री कृष्ण राम के रूप में प्रकट हुए तो यही उन्होंने भी किया विनाशाय च दुष्कृताम् दुष्ट का या अग्रगण्य दुष्ट का या अग्रगण्य चूड़ामणि का रावण का आज के दिन वध किए भगवान! हरि बोल! हरि हरि। और इनके वध की योजना तो वैसे राम के जन्म के पहले ही या जिस दिन राजा दशरथ पुत्रेश्ठि यज्ञ संपन्न कर रहे थे और इसी में सारे देवी देवता भी सम्मिलित थे और उस पुत्रेश्ठि यज्ञ में उनका गुह्यम आख्यति पृछ्चती भी चल रहा था तो चर्चा करते समय वे अपने अनुभव एक दूसरे को सुना रहे थे कि, कैसे अधर्म फैल रहा है। कौन फैला रहा है? रावण फैला रहा है! उस रावण के कारण हम देवता भी परेशान है, डरे हुए है तो इनके वध की योजना बननी चाहिए। उनको यह पता है कि ब्रह्मा वरदान दे चुके है, रावण का वध और कोई नहीं कर पाएगा जैसे हिरण्यकश्यपु को वरदान दिए थे कि, कोई पशु पक्षी नहीं मारेगा या यह नहीं वह नहीं मारेगा, किसी योनि का जीव जंतु कोई नहीं मारेगा तो ऐसे ही वरदान ब्रह्मा रावण को भी दे चुके थे! लेकिन ब्रह्मा जी को याद आया कि, उसने एक वरदान नहीं मांगा! वह कौन सा? वह मनुष्य से मारे ना ही जाएंगे मनुष्यों में नहीं मारेगा ऐसा वरदान उसने मांगा ही नहीं था! मनुष्य को कोई कीमत ही नहीं थी, रावण इसे सोचता था कि मनुष्य को नगण्य है उसे मनुष्य की चिंता नहीं थी। तो ऐसा वरदान नहीं मांगे तो फिर सभी ने विचार-विमर्श किया और क्यों ना हम भगवान से प्रार्थना या निवेदन करते है कि, वह मनुष्य रूप में मनुष्य आकृति नरआकृति धारण करके अगर वे प्रगट हो जाए तो वह इस रावण का वध करेंगे और फिर ऐसा ही हुआ! और सभी ने यज्ञ के समय जिसको दशरथ महाराज पुत्र प्राप्ति के लिए कर रहे थे तो सभी देवताओं ने भगवान से निवेदन किया कि आप दशरथ के पुत्र बनिए, जो मनुष्य रूप में ही होंगे, और फिर ऐसा ही हुआ! और रामायण तो बड़ा विस्तृत है और उसकी चर्चा भी बड़ी विस्तृत है। और यह सब एक इतिहास भी है, इसको पढ़ते समय याद रखना होगा या समझना होगा कि यह कल्पना नहीं है! राम कोई काल्पनिक नहीं थे यह सच्चाई थी। यह भी एक समस्या है कि, संसार में भगवान की लीला को काल्पनिक कहते है! लोग कहते है त्रेतायुग सतयुग कौन जानता है? तो यहां के डॉक्टर फ्रोग जिनको प्रभुपाद कहते थे संसार के बद्ध जिवोंकी यह सोच नहीं है और पाश्चात्य लोगों की।
तो 1000000 वर्ष पूर्व प्रभु श्रीराम इस पृथ्वी पर थे। जब मैं कैलिफोर्निया लॉस एंजलिस में कुछ साल पहले था, तो वहां कैलिफोर्निया शहर की बर्थ एनिवर्सरी वे मना रहे थे तो जब मैं वहां था तो मैंने अमेरिकन से पूछा कि, कहा क्या हो रहा है? वहां पर उसने बताया कि, लॉस एंजेलिस का वर्धापन दिन मनाया जा रहा है, जन्मोत्सव मना रहे है! तो मैने पूछा कि, कब जन्म हुआ, कितना पुराना है यह लॉस एंजलिस? तो उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि, लॉस एंजिलिस तो बहुत पुराना है! तो मैंने पूछा कि, कितना पुराना है? उन्होंने कहा 200 साल पुराना है! तो यह हुए डॉक्टर फ्रॉग! मेंढक! कूप मंडुक वृत्ति है इन कलयुग के जीवो कि! जो लोग 200 साल को भी बहुत पुराना मानते है बोहोत पुराना इतिहास मानते है और वे कहां से समझेंगे कि, 1000000 वर्ष पूर्व श्रीराम आज के दिन लंका में थे और आज के दिन उन्होंने रावण का वध किया। तो 5000 वर्ष भी पूर्व एक युद्ध हुआ वैसे तो वह वर्ल्ड वॉर था। जैसे वर्ल्ड वॉर की गणना होती है, तो पहला वर्ल्ड वॉर 1920 के लगभग और दूसरा वर्ल्ड वॉर 1940 में और महाभारत का जो युद्ध हुआ उसकी तो गनाना ही नही है। लेकिन लोग महाभारत के युद्ध को कल्पना समझते है, इतिहास नहीं समझते। वह समझते है कि, महाभारत का युद्ध संभव ही नहीं या हुआ ही नहीं!अगर वह महाभारत के युद्ध को स्वीकार नहीं करते, तो फिर आज के दिन जो श्रीराम 1000000 वर्ष पूर्व अयोध्या में थे, और स्वयं कुरुक्षेत्र में स्वयं पार्थसारथी बने थे। वहां पर तो युद्ध नहीं खेले किंतु, लंका के रनांगन में राम स्वयं युद्ध किए और अग्रगण्य थे सबसे आगे थे! हरि हरि। तो आज के दिन दशहरा के दिन, विजयादशमी की तिथि भी है और दशहरा भी है! जिसमें दशानन, रावण के 10 मूखो को भगवान श्रीराम हर लिए! हरि हरि। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
तो फिर सुखदेव गोस्वामी भी राम की कथा राजा परीक्षित को सुनाएं नौवें स्कंध में जहां सूर्यवंशम का वर्णन है, तो वहां सूर्यवंश के राम की लीला कथा का वर्णन की है। और फिर आज के दिन वध के उपरांत भगवान सीधे अशोकवन पहुंचे है। और सुखदेव गोस्वामी कहे,
ततो ददर्श भगवानशोकवनिकाश्रमे ।
क्षामां स्वविरहव्याधि शिशपामूलमाश्रिताम् ॥
श्रीमद भागवत स्कंद ९ अध्याय १० श्लोक ३०
अनुवाद:- तत्पश्चात् भगवान् रामचन्द्र ने सीतादेवी को अशोकवन में शिशपा नामक वृक्ष के नीचे एक छोटी
सी कुटिया में बैठी पाया। वे राम के वियोग के कारण दुखी होने से अत्यन्त दुयली-पताली हो गई
थीं।
तो अशोक वन में, सीशम वृक्ष के नीचे एक साधारण झोपड़ी में सीता निवास कर रही थी। जब वहां श्रीराम पहुंचे है,
रामः प्रियतमां भार्यां दीनां वीक्ष्यान्वकध्पत ।
आत्मसन्दर्शनाहादविकसन्मुखपङ्कजाम् ॥
श्रीमद भागवत स्कंद ९ अध्याय १० श्लोक ३१
अनुवाद:- अपनी पनी को उस दशा में देखकर भगवान् रामचन्द्र अत्यधिक दयार््र हो उठे। जब वे पत्नी के
समक्ष आये तो वे भी अपने प्रियतम को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई और उनके कमल सदृश मुख
से आह्वाद झलकने लगा।
और श्रीराम जब वह पोहोचे और सीता को जब वे देखें प्रियतमां भार्यां प्रिय पत्नी दीनां गरीब बिचारी, दीन सीता को देखकर राम को दया आई और राम के ह्रदय में कंपन हुआ। सीता को उस स्थिति में देखकर राम की ऐसी स्थिति हुई। और सिता ने जब राम को देखा तो सुखदेव गोस्वामी कहते है,
आत्मसन्दर्शनाहादविकसन्मुखपङ्कजाम् तो जब सीता ने राम को देखा, आत्मसन्दर्शनाहाद तो आत्मदर्शन या राम दर्शन जब सीता ने किया है तो सीता अल्लादित हुई है और उनका मुरझाया हुआ मुख मंडल हर्ष के साथ खिल गया है । हरि हरि। तो बहुत समय के उपरांत आज के दिन दोनों का पुनः मिलन हुआ। और अब श्रीराम सीता और लक्ष्मण के साथ और हनुमान के साथ, विभीषण के साथ, और भी कईयों के साथ अयोध्या लौटने की तैयारी कर रहे है। उससे पहले राम ने लंकेश बनाया, किए बनाए? विभीषण को लंकेश बनाया और रावण पर कुछ दया दिखाते हुए कहा कि, उनके अंतिम संस्कार करो तो विभीषण ने उनके अंतिम संस्कार किए है। 10 संस्कारों में एक संस्कार होता है अंतिमसंस्कार! तो ऐसे आदेश उपदेश किए है। एक भाई सूर तो दूसरा भाई असुर! विभीषण सूर और रावण असुर! विभीषण सदैव हनुमान की तरह राम नाम का भजन कीर्तन किया करते थे।
राम नाम राम नाम राम नामैव केवलम।
रामायण के महात्म में ऐसे राम के नाम का महिमा भी है। तो विभीषण तो सदैव लंका में रहते हुए करते थे। तो जब हनुमान लंका में पहुंचे तो तो उनकी सहायता करने वाले विभीषण ही थे। और हनुमान को कैसे पता चला कि यहां पर कोई राम भक्त है? जब हनुमान आकाश मार्ग से बिहार कर रहे थे तो दूर से उन्हें राम नाम की ध्वनि सुनाई दी,
राम राम राम सीता राम राम राम
तो हनुमान यह सुनकर वहां पर पहुंच गए। तो उसी निवास स्थान पर एक बार रावण पहुंचे थे तो विभीषण के अंदर बाहर सर्वत्र राम ही राम थे। अपने घर की दीवारों पर विभीषण राम राम राम लिखवाए थे! रावण नहीं है जब देखा तो उसने पूछा, है तुम राम का नाम सर्वत्र लिखे हो? यह क्या है? तो विभीषण उस वक्त युक्ति पूर्वक कहते है, नहीं नहीं! वह राम का नाम थोड़ी है! इसमें जो रा है वह आपका नाम है और मा है वह मंदोदरी है! यह रावण और मंदोदरी संक्षिप्त में है! तो यह सुन के रावण प्रसन्न हो गए और बोले शाबाश विभीषण भैया, तुम्हारी जय हो! फिर कहते है कि, रावण ने क्या किया? अपने नगरी में सर्वत्र लिखवाया! क्या लिखवाया? राम राम राम राम जय श्रीराम!
तो पुष्पक विमान में विराजमान होकर आज के दिन श्री राम प्रस्थान किए जो कि, 14 साल का वनवास अब समाप्त हो रहा था और वहां अयोध्या में भरत अपने घड़ी की ओर देख रहे थे। और भरत ने कहा था कि, भैया अब तो तुम आ नहीं रहे हो ठीक है! तुम्हारी मर्जी! तो उस समय वैसे चित्रकूट में राम भरत मिलन के अंतर्गत राम ने अपनी पादुका दी थी और कहा था कि, मैं नहीं आऊंगा तो मेरी पादुका ले लो! तो राम की पादुका राम से भिन्न नहीं है। पादुका ही राम है! तो यह भरत स्वीकार किए थे और कहे थे कि जिस क्षण 14 साल के वनवास का काल समाप्त होगा उस क्षण या उसके पहले आपको पहुंचना होगा! एक क्षन भी देरी से पहुंचेंगे तो आपका नहीं आना ठीक होगा और आप आ भी जाओगे तो मुझे जीवित नहीं पाओगे! ऐसी सूचना या वार्निंग भरत दिए थे, तो राम भी अपनी घड़ी की ओर देख रहे थे। तो राम आते समय तो चलकर आए थे अयोध्या से लंका तक पैदल यात्रा करते हुए थे और पैदल यात्रा करते हुए जाने का सोचते तो उस समय पहुंचने का प्रश्न ही नहीं था, तो इसलिए भी श्रीराम पुष्पक विमान में आरूढ़ होकर, अपने कई सारे परी करो के साथ उन्हें भी अरुढ कराकर अयोध्या के लिए प्रस्थान किए। अयोध्या धाम की जय! और फिर वहां पहुंचकर उनका बड़ा स्वागत हुआ सभी ने और फिर अयोध्या में विजयादशमी का उत्सव या राम का स्वागत का उत्सव अयोध्या में मनाया गया। अयोध्या का श्रंगार हुआ, अयोध्या को सजाया गया, अयोध्या में सर्वत्र दीप ही दीप जलाए गए, मिठाई बाटी गई, सभी के मुंह मीठे किए और सभी सज धज के राम के स्वागत के लिए खड़े थे। तो राम का स्वागत ऐसे अयोध्या में हुआ, और उसी के साथ अयोध्या में यह दीपावली का उत्सव मनाया गया!
यह दोनों उत्सव बड़े महत्वपूर्ण उत्सव है। जेसे पाश्चात्य जगत में क्रिसमस प्रसिद्ध है, तो वैसे ही हम हिंदू या सनातन धर्म के लिए दशहरा और दिपावली महत्वपूर्ण है! वैसे दशहरे के दिन दिवाली प्रारंभ होती है। हरि हरि। तो इन दोनों उत्सव के साथ हमारा घनिष्ठ संबंध है क्योंकि, राम के कारण ही यह दोनों उत्सव मनाया जाते है। विजयादशमी उत्सव और दीपावली महोत्सव! तो जेसे अयोध्या में राम ने प्रवेश किया और उनका अयोध्या मे स्वागत हुआ और आलिंगन हुआ, तो ऐसे ही हम भी अपने जीवन में राम का स्वागत करते है और उनके चरणों का स्पर्श करते है! अगर वह हमें गले लगाना चाहे तो कौन रोक सकता है? तो हम भी अयोध्यावासी बन कर हम उन्हें गले लगा सकते है, वे भी हमें गले लगाएंगे। राजा कुलशेखर एक प्रसिद्ध राजा हुए दक्षिण भारत के श्रीरंगम के, तो वे जब राम की लीलाओं का श्रवण करते या पढ़ते या सुनते तो वे राम की लीला में प्रवेश करते। राम की लीला मानो संपन्न हो रही है ऐसा अनुभव करते। तो भगवान जब वहां पर युद्ध किए थे पंचवटी के पास, तो राम जब युद्ध के लिए गए है ऐसा जो वर्णन कुलशेकर ने सुना, तो वह तुरंत ही कहे चलो चलो! तैयार हो जाओ! तैयार हो जाओ! कहां है घोड़े हाथी? कहा है सेना? धनुष बाण कहा है? तैयार हो जाओ! तो जब सब दौड़ के आते है और उन्हें पूछते है की, क्या हुआ? क्या हो रहा है? कहां जाना है? तो वे बोलते है कि, चलो! पंचवटी जाते है! तो फिर सभी को समझ में आता है कि यह राम भावनाभावित है, जब राजा कुलशेकर रामायण का अध्ययन करते या फिर भगवान की लीलाओं का श्रवण करते तो वह देखते और फिर वह भी उस लीला में प्रवेश करके राम की सहायता करना चाहते है। तो ऐसे ही राम का अयोध्या में स्वागत हो रहा है, तो ऐसा जब हम सुनते है या सुन ही रहे है तो हमारे मन में भी विचार आता है कि, चलो हम भी स्वागत करते है!राम का अयोध्या में स्वागत हो रहा है, तो अच्छा होता हम भी वहां पर होते! तो चलो राम का स्वागत करते है। जय श्रीराम! जय श्रीराम! हरि हरि।
तो इस्कॉन के अधिकतर मंदिर मैं राधा कृष्ण के विग्रह है, और गौर निताई तो होते ही है! लेकिन कुछ ही मंदिरों में या इस्कॉन के कुछ ही मंदिर राम मंदिर भी है। जहां पर सीता राम लक्ष्मण हनुमान है। और उन मंदिरों में इस्कॉन अहमदाबाद एक राम मंदिर है। तो इस्कॉन अहमदाबाद में जब स्थापना हो रही थी, प्राणप्रतिष्ठा हो रही थी तो उन प्राणप्रतिष्ठित विग्रह में श्री राम लक्ष्मण सीता हनुमान जी की भी स्थापना हुई और जिन्होंने की वै थे हमारे यशोमती नंदन प्रभु। यशोमती नंदन प्रभु की जय! तो वह भी राम भक्त रहे, वैसे कृष्ण भक्त राम भक्त तो होता ही है। और राम भक्त कृष्ण भक्त होता है। राम ही कृष्ण है! तो वे राम भक्त यशोमतीनंदन प्रभु या कृष्ण भक्त यशोमतीनंदन प्रभु! हमारे लिए दुर्देव उनके लिए सुदैव कहो वे राम कृष्ण को प्राप्त किये और हम विरह की व्यथा से व्यथित है। वैष्णव का तीरोभाव उत्सव हर्ष कि बात है, हर्ष इस बात का वे वैष्णव भगवान को प्राप्त किये तो निश्चित ही ये हर्ष का कारण बनता है। जिनका संग हमे या मुझे कहो ४० वर्षो से प्राप्त था,पुनः पुनः मिले और पुनः पुनः दधाति प्रति गृन्हाती गुह्यम आख्यति पृछ्चती। किया और साथ ही भुन्कते भोजयते चैव षडविथम् प्रीति लक्षणम् भोजन प्रसाद खाये और खिलाये हम जब अहमदाबाद जाते तो उनको प्रसाद खिलाते। वे जब नॉएडा आते तो हम उनको प्रसाद खिलाते या अन्य स्थानों पर भेज देते तो वो प्रीति लक्षण का जो हमने अनुभव किया इनके कारण हमको प्रीति मिली उनका प्रेम मिला। यशोमतीनन्दन प्रभु हमारे मध्य नहीं रहे तो ये हमारे दुःख और शोक का कारण भी है। हरी हरी। तो मैं आपको कुछ शेयर करना चाहता हूँ उनके कुछ चित्र हमारे साथ है, कुछ चित्र आप देख रहे हो, यशोमतीनन्दन प्रभु और उनकी महिमा का जितना भखान कर सकते है उतना कम ही है! हरी हरी।
हम मुंबई में थे साथ,वैसे यशोमतीनन्दन प्रभु अमेरिका में थे तो श्रील प्रभुपाद अमेरिका पहुंचे तो उसके पहले ही संभावना है यशोमतीनन्दन प्रभु पहुंचे थे वहाँ इंजीनियर बनने, उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु, इंजीनियर बन के जॉब भी कर रहे थे। श्रील प्रभुपाद के सम्पर्क में आये, श्रील प्रभुपाद ने उन्हें आदेश भी दिया, यहाँ क्या कर रहे हो ? भारत लौटो! गुजरात जाओ, गुजरात में कृष्णभावनामृत का प्रचार करो! तो बड़ी तपस्या है ये सब छोड़ दिया, जो भी उनका स्वप्न था, लक्ष्य थासब समर्पित किया। तो फिर मुंबई आये १९७५ साल की बात होगी तो श्रील प्रभुपाद ने उन दिनों मुंबई को अपना दफ्तर बनाये थे। तो जहाँ मैं भी था और भी कर्मचारी थे श्रील प्रभुपाद के उस दफ्तर में और फिर यशोमतीनन्दन प्रभु जो अब गृहस्थ बन गए, अमेरिकन स्त्री से उन्होंने विवाह किया, अच्छी भक्त श्रील प्रभुपाद की शिष्या, राधा कुंड माताजी। जब दोनों मुंबई आये तो मुंबई में ही कुछ सालो तक रहे क्यूंकि प्रभुपाद वहां रहते थे और प्रभुपाद का बहुत बड़ा प्रोजेक्ट वहां हरे कृष्ण लैंड में बन रहा था, राधा रासबिहारी को कहा आपके लिए मैं महल बनाऊंगा! यशोमतीनन्दन प्रभु वैसे इंजीनियर भी थे, उनके पास कई कला, कौशल्य थे तो वही रहे और श्रील प्रभुपाद की उस प्रोजेक्ट में सहायता भी किये। तो आप देख रहे थे उस स्लाइड में यशोमतीनन्दन प्रभु गुरु पूजा कर रहे थे सुबह राधा रासबिहारी मंदिर में। और यहाँ सुबह की सैर में जो कृष्ण किताब पढ़ रहे हैं वो है यशोमतीनन्दन प्रभू। सुबह की सैर में उन्हें पुनः पुनः जाने का अवसर मिलता था, मैं तो राधा रासबिहारी का पुजारी था तो मैं तो नहीं जा सकता था।
लेकिन यशोमतीनन्दन प्रभु और अन्य भक्त पुनः पुनः श्रील प्रभुपाद के साथ जाया करते थे। वैसे यशोमतीनन्दन प्रभु बड़े विद्वान भी थे, जन्म इनका ब्रह्मिण परिवार का था, वे गुजरात के जोशी थे। तो कभी कभी डॉक्टर पटेल जो श्रील प्रभुपाद के साथ बहस किया करते थे या कभी संवाद तो कभी वाद विवाद भी चलता था। तो कभी कभी यशोमतीनन्दन प्रभु भी डॉक्टर पटेल के कूउतर का जवाब दिया करते थे। उन्होंने कहना शुरू किया जोशी महाराज ,जोशी महाराज! श्रील प्रभुपाद भी कभी कभी उन्हें जोशी महाराज कहा करते थे। मतलब विद्वान! प्रभु जी को भगवद गीता के सारे श्लोक कंठस्थ थे और उनके कक्षाओं में उनके पांडित्य का और उनके विद्व्त्ता का प्रदर्शन का हम उनके पांडित्य और विद्वत्तापूर्ण भागवत, भगवद गीता की कक्षा में। तो यहाँ देख रहे हो, ये जुहू समुन्द्र तट है , इसमें डॉक्टर पटेल भी है जो तिरछी नज़र से देख रहे है। प्रभुपाद के दाहिने हाथ - यशोमतीनन्दन प्रभु चल रहे है। दूसरे चित्र में सुबह की सैर ही है और मैं भी हूँ और यशोमतीनन्दन प्रभु एक परिवार की तरह, वो मेरे भाई थे! श्रील प्रभुपाद ने हमे यशोमतीनन्दन प्रभु जैसे भाई दिए इसलिए हम प्रभुपाद के आभारी है। यहाँ देख रहे हो, श्रील प्रभुपाद सायंकाल को दर्शन दिया करते थे और यहाँ देख रहे है यशोमतीनन्दन प्रभु बैठे हैं। तो यशोमतीनन्दन प्रभु को श्रील प्रभुपाद की वपु सेवा का अवसर प्राप्त हुआ करता था। श्रील प्रभुपाद के क्वार्टर में वह समय बिताया करते थ।
श्रील प्रभुपाद की मालिश करने की सेवा भी उनको बारम्बार दिया करते थे। यशोमतीनन्दन प्रभु बताया करते थे श्रील प्रभुपाद ने ये किया वो किया। यहाँ देख रहे हो, श्रील प्रभुपाद किसी पार्क में बैठे हुए है यशोमतीनन्दन प्रभु उनके चरणों में बैठे हुए है। फिर से यह भी सुबह की सैर की प्रसिद्ध तस्वीर है जिसमे यशोमतीनन्दन प्रभु जवान है। श्रील प्रभुपाद के समय की तस्वीर है। इस वीडियो में देख रहे हो वो की, वे प्रभुपाद के सानिध्य को नहीं छोड़ते। वे काफी जिज्ञासु थे और श्रील प्रभुपाद से वार्तालाप किया करते थे। और उसमे यशोमतीनन्दन प्रभु काफी रूचि भी लिया करते थे। हम वीडियो नहीं सुन पा रहे है। थिक है तो।
एक समय प्रभुपाद गुजरात गए थे वह के राजा ने उन्हें आमंत्रित किया था। प्रभुपाद का स्वागत और प्रचार कार्यक्रम हुआ था, यशोमतीनन्दन प्रभु वहां थे तो उन्होंने यशोमतीनन्दन प्रभु से पूछा था, प्रभुपाद क्या कहे उस समय? कई बात कही थी उसमे से एक यशोमतीनन्दन प्रभु ने कही प्रभुपाद एक गांव आनंद में गए थे और आस पास के गावों में भी गए और हम भारत को बदल सकते हैं इन गावों में जा कर, हरे कृष्ण का प्रचार कर के क्रांति ला सकते है! गांववासी कैसे भक्त बन सकते है वो उन्हें सीखा सकते है! पदयात्रा व्यावहारिक प्रदर्शन है कि हम ग्रामीण क्षेत्रो, नगरों और ग्रामो को भी कैसे सुधार सकते है! और यह भी लोगो को सीखा सकते है साधा जीवन और भगवान पर निर्भरता तो ऐसे विचार श्रील प्रभुपाद ने व्यक्त किये थे यह बात यशोमतीनन्दन प्रभु ने हमे सुनाई थी तब श्रील प्रभुपाद आनंद में थे। यह बात १९८४ कि है जब हम श्रील प्रभुपाद के आदेशानुसार जब हम पदयात्रा कर रहे थे।
बैलगाडी संकीर्तन पार्टी कार्यकर्म कर रहे थे तो फिर हमने एक योजना बनाई। जीबीसी की योजना थी कि हम पदयात्रा करेंगे कहाँ से कहाँ तक? द्वारका से मायापुर जायेंगे, कन्याकुमारी होते हुए! तो हम कुछ ८-९ राज्यो में से पदयात्रा करते हुए आगे बढ़ने वाले थे। प्रथम क्रमांक में गुजरात था, तब गुजराती थे और वो बोला करते थे कृष्ण गुजराती थे। १०० साल रहे द्वारका में गुजरात में। इस चित्र में यशोमतीनन्दन प्रभु को अहमदाबाद में देख रहे हो, मुख्यालय था वहाँ पे। और वैसे जो आदेश दिया था कि, गुजरात में प्रचार करो! यशोमतीनन्दन प्रभु इतना यशस्वी प्रचार करा गुजरात में और वहाँ १०-१५ इस्कॉन के मंदिर और प्रोजेक्ट्स बनाए। अहमदाबाद , बड़ोदा , सूरत , विद्यानगर , द्वारका में मंदिर , तो उनकी देख-रेख में ये सारे मंदिर बन चुके है। जब हम पदयात्रा कर रहे थे तो यशोमतीनन्दन प्रभु ने बहुत बड़ा योगदान दिया और गुजरात में जब तक पदयात्रा थी तो वहाँ की सारी व्वयस्था उन्होंने की। यहाँ अहमदाबाद में कार्यकर्ताओ को सम्भोदित कर रहे है, सूचना दे रहे है कि पदयात्रा संपन्न होने जा रही है, तैयार हो जाओ! मैं उनकी बगल में बैठा हूँ और इस्कॉन के भक्त बैठे है। तो यहाँ पदयात्रा शुरू हुई द्वारका से आगे बढ़ रही है , कुछ नेताओ के साथ को प्रचार कर रहे है। दूसरे चित्र में हाथी पर सवार है यशोमतीनन्दन प्रभु। नगाड़े बजाते हुए पदयात्रा और यशोमतीनन्दन प्रभु का स्वागत हो रहा है। कानपूर मंदिर का उदघाटन हुआ उसका चित्र है जिसमें यशोमतीनन्दन प्रभु ने निर्माण और उद्घाटन किया उस समारोह में, इस्कॉन के भक्तो को देख रहे हो। यशोमतीनन्दन प्रभु बी बी टी इंडिया ट्रस्ट के ट्रस्टी भी रहे। और वैसे गुजरात के आंचलिक सचिव भी रहे। और पूरे भारत ब्यूरो के सदस्य भी रहे 40 साल तक पूरे भारत ब्यूरो के अध्यक्ष रहे। यशोमती नंदन प्रभु एक विशेष नेता रहे। प्रभु पुरे भारत के संचालक रहे। अहमदाबाद में कई बार कई मुलाकात होती थी, मंदिर अध्क्षय, ब्यूरो या आई आई ऐ सी मुलाकात होती थी। उसकी मेज़बानी यशोमतीनन्दन प्रभु अहमदाबाद , बड़ोदा में कई बार किये तो यहाँ इनको व्हील चेयर पे बैठे हुए देख रहे हो। पिछले कुछ सालो से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहा फिर भी वह सक्रिय रहे। इस्कॉन नॉएडा ने २०१८ में ब्यूरो मुलाकात का आयोजन किया था।
उस मुलाक़ात में आप देख रहे हो यशोमतीनन्दन प्रभु सम्भोदित कर रहे है उपस्थ्तित ब्यूरो सदस्यों को । काफी अच्छे भागवत और गीता के वक्ता तो थे ही और साथ ही साथ बुद्धिमान प्रबंधक थे। उनकी बातो को सभी सदस्य बड़ी गंभीरता से सुना और स्वीकार किया करते थे। जैसा की आप यहाँ देख रहे है। यहाँ नॉएडा में मेरे आलिंगन को स्वीकार कर रहे है यशोमतीनन्दन प्रभु। सुबह का कार्यकर्म नॉएडा में ,यशोमतीनन्दन प्रभु व्हील चेयर पर बैठे हुए है। हरी हरी। कितनी सारी हमारी मुलाकाते पिछले ४० वर्षो में हुई है। भाई, परिवार के सदस्य तो परिवार के साथ ही रहते है, मिलते है साथ में , प्रसाद ग्रहण करते है साथ में और व्यवस्था साथ में सँभालते थे। हरी हरी। दामोदर महीने में नॉएडा मुलाकात में दीप दान हो रहा है यशोमतीनन्दन प्रभु यशोदा दामोदर को दीप दान कर रहे है। अर्जुन कृष्ण भी वहाँ पर है। पिछले वर्ष जो आषाढ़ी एकादशी महोत्सव हुआ, व्यास पुजा भी हुई तो कुछ ही गुरु भाई वहाँ थे उस में से मुख्य थे यशोमतीनन्दन प्रभु। मुझे सानिध्य और संग देने के लिए वे पधारे थे। यहाँ देख रहे हो प्रह्लाद प्रभु इस्कॉन पंढरपुर के अध्यक्ष कृष्ण भक्त प्रभु के साथ यशोमतीनन्दन प्रभु अतिथि ग्रह के पास ही। बाकी सारे शिष्यगण और सदस्य आये और चले भी गए परन्तु यशोमतीनन्दन प्रभु उत्सव के उपरांत काफी दिनों तक यहां रुके, पंढरपुर धाम में और विट्ठल दर्शन भी किया। हरी हरी। अब देख रहे हो हम उनको कुछ भेंट दे रहे है। पंढरपुर जरूर आना है ये उनका संकल्प था। मैंने उनको कई बार निवेदन किया था किन्तु वह नहीं आ पाए थे, फिर आ ही गए पिछले वर्ष हम उनके आभारी है। हरी हरी। पिछले वर्ष प्रभुपाद घाट का उद्धघाटन हुआ तो उनके कर कमलों से ही कहो या और भी कई सारे इस्कॉन नेता थे। यशोमतीनन्दन प्रभु ने फीता काटा था! साथ में नित्यानंद पादुकाएं भी है। यह घाट का उद्घाटन यशोमती नंदन प्रभु के कर कमलों से हुआ। तो अहमदाबाद रथ यात्रा में प्रसाद वितरण कर रहे है, इनका बहुत बड़ा परिवार था उनकी धर्मपत्नी श्रिल प्रभुपाद की बहुत बड़ी शिष्या है। उन्होंने अपने बच्चो की भक्ति वेदांत स्वामी गुरुकुल वृन्दावन में उनकी शिक्षा कराई। वह बड़े ही आदर्श गृहस्थ रहे। हरी हरी। अच्छे कथाकार और कीर्तनकार भी थे। वन्दे कृष्ण नन्द कुमार ऐसा उनका एक भजन है, उसको भी पुनः पुनः गाया करते थे।
अहमदाबाद मुलाकात में यशोमतीनन्दन प्रभु। प्रभुपाद के ग्रंथो का वितरण , गुजराती में अनुवाद! जैसे भक्ति चारु महाराज ने प्रभुपाद के ग्रंथो का बंगाली में अनुवाद करा तो ऐसे ही यशोमती नंदन प्रभु गुजराती अनुवाद किए। साथ ही साथ प्रभुपाद के ग्रंथो का वितरण करने में बहुत रूचि रखते थे, आगे रहा करते थे और एक समय उनकी संकीर्तन किताब वितरण गुजराती में काफी प्रसिद्ध थी। कई सारे मैराथन को वे जीतते थे! हर साल गीता जयंती पर गोपाल कृष्ण महाराज भी जा कर या गुजरात के भक्तो और प्रचारकों को प्रेरित किया करते थे। वो दोनों सबको ग्रंथ वितरण की प्रेरणा देते तो एक लाख से अधिक एक महीने में अहमदाबाद में वितरण हुआ करता था। ये करते रहना है! यशोमतीनन्दन प्रभु ने मंदिरो की स्थापना , गौशाला की स्थापना , गुरुकुल भी बने है गुजरात में उसका रखरखाव, उसको आगे बढ़ाना है। या फिर ग्रंथ वितरण जो इतने बड़े स्तर पर होता था तो यह सब हमे करते रहना है! यह सब सेवायें यशोमतीनन्दन प्रभु जो भारत में प्रारम्भ किये जिसके लिए वह प्रसिद्ध है वह सेवा होती रहे , चलती रहे। और इसे चलने के लिए हमे योगदान देना होगा और वही होगी श्रद्धांजलि यशोमतीनन्दन प्रभु के चरणों में। और यह बात भी भक्ति विनोद ठाकुर लिखे है कि कौन कहता है कि वैष्णव कि मृत्यु होती है, नहीं नहीं वैष्णव कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं करते वे जीते रहते है , कैसे जीते रहते है ?अपने चरित्र के रूप में जीते रहते है, अपने वाणी के रूप में जीते रहते है यह बात यशोमती नंदन प्रभु को लागू होती है। अपने प्रकट की हुई जो इच्छाएं है उनके रूप में जीते रहते है। वैष्णव जीने के लिए ही मरते है। वह तथाकथित मरन है। जो कीर्तिमान है वही जीवित है बाकी सब मेरे हुए है। मराठी में भी कहावत है, मरावे परी कीर्ति रूपी उरावे मरना तो एक बार होता ही है, वैष्णव है तो उनके शरीर का मृत्यु होगा लेकिन हमको कीर्ति के रूप में जीवित रहना चाहिए। हमारे यशोमतीनन्दन प्रभु कीर्ति के रूप में जीवित है और जीवित रहेंगे और जीवित रह कर कृष्णभावना प्रचार प्रसार करेंगे। हमे प्रेरित करेंगे और हरीनाम का प्रचार भी होगा।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे। हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। और अधिक अधिक नगरों में ग्रामो में यह पहुंचेगा। जिसे यशोमतीनन्दन प्रभु प्रारम्भ किये, शुभ आरम्भ किये। चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन के स्थापना किये गुजरात में। इस कार्य को आगे बढ़ाना है ताकि चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच हो। क्या है उनकी भविष्यवाणी ? सर्वत्र प्रचार सभी नगरों सभी गावों में, अभी हम सभी जगह नहीं पहुंचे है। यशोमतीनन्दन प्रभु हमसे तभी प्रसन्न होंगे जब हम इस प्रयास को जारी रखेंगे। कोनसा प्रसाय? हरिनाम गौर वाणी प्रचारीने का प्रचार गुजरात के हर नगर में , हर गांव में पहुंचे। तब उनकी आत्मा शांत और प्रसन्न रहेगी। ये हमारे लिए घर का पाठ है। हमारे लिए ये कार्य है और इस कार्य को करते रहना है। इस कार्य को आगे बढ़ाता रहना है! हरी हरी। उनकी कृपा हम सब पर रहे।
यशोमतीनन्दन प्रभु की जय!
श्रील प्रभुपाद की जय!
राधा गोविन्द देव की जय!
परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय!
वाञ्छाकल्पतरुभ्यंछ्य कृपासिंधुभ्य एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नम: ।।