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2 May 2020
आज सीता नवमी है
जय श्री राम जय अयोध्या धाम।
जय श्री राम हो गया काम।
राम नाम से सारे काम सफल हो जाते हैं।
रामाय रामभक्तस्य रामचंद्राय वेधसे
सीतायाः पतये नमय
कल रामायण के बालकांड के प्रथम सर्ग का स्मरण हुआ। प्रथम सर्ग की कथा रामद (राम को देने वाले नारद) ने सुनाई नारायण नारायण नारायण - - -
ब्रह्मा, नारद, मध्व गौड़ीय संप्रदाय के आचार्य रहे। हमारी परंपरा नारद की है वे राम, कृष्ण, नारायण की कथा सुनाने के लिए परिभ्रमण करते हैं परिवजाचर्य एक ब्रह्मांड से दूसरे ब्रह्मांड भी जाते हैं ऐसे श्री नारद से संक्षिप्त कथा सुनाकर प्रस्थान भी किया। वाल्मीकि मुनि अपने शिष्य भरद्वाज मुनि के साथ तमस नदी पहुंचे जिसका जल इतना शुद्ध अमल (बिना कचरा) था ऋषि मुनि के मन जैसी पवित्र शुद्ध स्नान करना था। दो पक्षी की कथा - - - - श्लोक
मा निषाद प्रतिष्ठम अनुष्टम छंद 8 अक्षर
जैसे (धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र (8) समवेता युयुत्सव (8)
श्राप दिया । सोचा ठीक किया कि नहीं। आश्रम लौटे तो चतुर्मुखी ब्रह्मा अपने हंसयान पर पधारे। दर्शन, स्वागत, पाद प्रक्षालन, आसन ग्रहण हुआ ।वाल्मीकि सोच रहे थे मैंने श्लोक कैसे, क्यों कहा । ब्रह्मा से जिज्ञासा। ब्रह्मा ने कहा शांत हो जाओ इसका कारण मैं ही हूं। मैंने प्रेरणा दी सरस्वती मैया की जय । मैं चाहता हूं ऐसे हजारों श्लोक तुम कहोगे और लिखोगे। रामस्य चरितं कुरु (संपूर्ण रामायण की रचना करो) तुम श्रेष्ठ मुनि हो। चिरकाल तक लोग सुनेंगे प्रसिद्ध रहेगा । ब्रह्मा जी ने कहा जब तक संसार में पहाड़, नदियां होंगे तब तक कथा का प्रचार होता रहेगा। जब तक पृथ्वी है प्रलय नहीं होगा। जब तक सूरज चांद है (एक बदमाश मर गया लोग कह रहे थे जब तक सूरज चांद रहेगा तब तक संजय का नाम रहेगा) पर अब नहीं है वे दानव महा दानव का पक्ष लेते हैं । गधे गधों का पक्ष लेते हैं गधे को ही नेता बनाते हैं।
ब्रह्मा स्वयं आचार्य है वाल्मीकि को कहते हैं यह लीलाएं तुम्हारे ह्रदय में प्रकाशित होती रहेगी। दिव्य ज्ञान हृदय में प्रकाशित होता रहेगा।16 वर्ष की आयु में राम का विवाह हुआ था।14 साल का वनवास हुआ। सीता का परित्याग किया। वाल्मीकि के आश्रम में लव कुश का जन्म हुआ। 11000 में से 30 साल ही बीते थे जब रामायण की रचना हुई। भगवान की लीला सब समय वर्तमान काल में ही रहती है कभी नष्ट नहीं होती। भगवान शाश्वत सच्चिदानंद है।
जन्म कर्म च मे दिव्यम एवं यो वेती तत्वतः। सिद्धांत बलिया ना करो आलस ।श्रील प्रभुपाद भी सिद्धांत पुनः दोहराते थे। भगवान की उपस्थिति को कायम बनाकर रखना है। सत में सनसिद्धि, आनंद से आह्लादिनी शक्ति होती है ।सीताराम की शक्ति है, राधा कृष्ण की शक्ति है। ब्रह्मा यु वर विटनेस ऑफ लॉर्ड पास टाइम। फिर वाल्मीकि ने रामायण की रचना की। बाल्मीकि पहले रत्नाकर थे, जो बड़े डाकू थे, सब को लूटते थे। तब नारद मुनि आए -----"राम नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊं गली गली"------ नारद ने कहा तुम राम नाम का जप करो पर वह मरा मरा कह रहे थे । धीरे-धीरे सीधे हो गए, चेतो दर्पण मार्जनम हुआ।
राम ----राम---- राम ----बैठकर ध्यान अवस्था में जप किया। राम नाम, राम नाम, राम नाम एवकेवलम करते-करते रत्नाकर ,वाल्मिकी हो गए। जहां जप कर रहे थे वहां चीटियों का पहाड़ बन गया था चीटियां उनका खून पी रही थी, मांस खा रही थी केवल हड्डी बची ।वाल्मीकि ऋषियों में श्रेष्ठ थे। रामायण की रचना पूरी हुई। अब प्रश्न था कौन प्रचार करेगा ,बुक डिस्ट्रीब्यूशन कौन करेगा? इतने में लव कुश का आगमन हुआ, सीता के लाडले प्यारे सुकुमार बालको का ,जो राम का प्रतिबिंब थे वाल्मीकि ने सोचा यह प्रचार करेंगे दोनों रामायण का।उनको रामायण पढ़ाई ,सिखाई। वे श्रुति धर थे।वे तो स्वयं ही वीणा बजाते हुए संगीतमय कथा का गायन करने लगे, जैसे व्यास देव ने अपने पुत्र शुकदेव गोस्वामी को शिष्य बनाया ऐसे ही प्रथम प्रचारक लव कुश बने।
राम के वीर्य, शौर्य, माधुर्य रौद्र (विकराल), हास्य (विनोद) रस का यह महाकाव्य है रामायण ।लव कुश जहां कहां जाते ऋषि मुनियों की भीड़ वन में एकत्रित हो जाती, वह सबके प्रिय बन गए।कथा सुनते सुनते ऑडियो का वीडियो बन जाता ।कुछ उनके चरणों को छूते, तो कुछ उनको भेंट देते ---कोई कमंडलु देता, लंगोट देता पत्रं, पुष्पम, फलम देता ,जड़ी-बूटी भी देता। भ्रमण करते करते अयोध्या पहुंचकर रामायण की संगीतमय कथा सुनाने लगे, लव कुश बैठते तो लोग बैठते ,खड़े होते तो लोग खड़े होते, चलते तो लोग चलते ।यह खबर श्री राम तक पहुंची।राम ने सोचा में क्यों वंचित रहूँ?राम ने लव कुश को दरबार में बुलाया। राम ,लक्ष्मण ,भरत ,शत्रुघ्न ,माताएं, मंत्री गण सभी थे। "अयोध्या वासी राम.. राम राम... दशरथ नंदन राम... पतित पावन जानकी जीवन सीता मोहन राम "बोलो राम, जय श्री राम बोलो राम ,जय श्री राम।। बालकांड के चौथे सर्ग में हम पहुंच गए हैं ।राम ऊंचे आसन पर बैठकर अपनी ही कथा सुन रहे हैं ,लव कुश की जय।।
आज सीता नवमी (प्राकट्य) जन्मदिन है ।तिथि नवमी है,श्रीराम भी नवमी के दिन प्रकट हुए ,जैसे श्री कृष्णा अष्टमी के दिन और राधा भी अष्टमी के दिन ।स्वेच्छा से आज का दिन चयन हुआ (जनकपुर या मिथिला में )प्रभुपाद की शिष्या मैथिली ने शौर्य दिखाया, म्युनिसिपैलिटी,राधा रास बिहारी को ध्वस्त करने आए ,वह आगे आकर खड़ी हो गई उन्होंने कहा केवल मेरे मृत शरीर को पार करने के बाद ही आप गर्भ गृह में जा सकते हैं। राजा जनक की पुत्री जानकी ,वैदेही बनी । सीता सहस्त्रनाम भी है। राजा जनक यज्ञ कराना चाह रहे थे यज्ञ करके भगवान को प्रसन्न करने की विधि थी त्रेता युग में। यज्ञ स्थल को राजा हल से जोत रहे थे ।राजा कुरु ने भी कुरुक्षेत्र में हल चलाया था। अचानक हल धस गया ,अटक गया पता चला वहां कोई संदूक था। खोलकर देखने पर एक बालिका को देखा। सीता मैया की जय।।। बालिका को घर ले आए ।वृषभानु को भी राधा नदी में कमल के फूल पर मिली। राधा रानी की जय ।।
जन्म कर्म च मे दिव्यम। संसार के लोगों की तरह सीता और राधा का जन्म नहीं है। सीता की माता सुनैना महल में ही थी और पुत्री कहां जन्मी ?कीर्तिदा कहां राधा कहा जन्मी? यह दिव्य जन्म है, सीता को कौन जन्म दे सकता है? वह तो शक्ति तत्व है। जन्म हुआ भी नहीं, सीता नित्य शाश्वत हैं।अपने धाम से..... संभवामि युगे युगे ।केवल राम ही नहीं सीता भी ,राधा भी ।
आज सीता का अवतार हुआ अंतर्ध्यान भी वे पृथ्वी में हुई सीतामढ़ी में ।प्रयाग से वाराणसी जाते हुए वाल्मीकि का आश्रम है वहीं पर वे अंतर्ध्यान हुई। समा गई सीता मैया....न संशय ।सीता प्रसादेन राम कृपा प्राप्त होती है। सत्यम सत्यम पुनः पुनः राधा कृपा बिना कृष्ण कृपा नहीं ।सीता की कृपा परंपरा में हम तक पहुंच जाती है ।जय सीते।। सीता महारानी की जय। सीता नवमी महोत्सव की जय। वैसे राधा भी सीता बन जाती है ,विस्तार होता है। कृष्ण राम बन जाते हैं। राम नारायण और सीता लक्ष्मी ।गोविंदम आदिपुरुषं तम अहम भजामि ।।। हरि बोल