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जप चर्चा 01 मार्च 2022 श्रीमान उद्धव प्रभु हरे कृष्णा। मैं आप सभी वैष्णव भक्तों को सादर दंडवत प्रणाम करता हूँ । श्री गुरु महाराज के चरणो में सादर वंदन करता हूँ । महाशिवरात्रि के इस पर्व पर श्रीमान पदम्माली प्रभु की कृपा से मुझे भगवान शिव जी के विषय में चर्चा चिंतन करने का यह शुभ अवसर मुझे प्राप्त हुआ है उसके लिए मैं आप सब का ह्रदय पूर्वक धन्यवाद देता हूँ | आप सभी भक्तों को भी महाशिवरात्रि की बहुत-बहुत हार्दिक शुभेच्छा | जो मैंने शास्त्रों के माध्यम से पड़ा है और वैष्णव के माध्यम से सुना है उसे ही आप सभी के चरणो में गुरु महाराज की प्रसन्नता के लिए निवेदित करने का प्रयास करूंगा | भागवत में एक बड़ा ही प्रसिद्ध श्लोक हैं जिसे आप सभी भक्तों ने सुना होगा | श्रीमद्भागवत की महिमा अंत अंत में जहां गाई गई है उसी प्रसंग में बड़ा प्रसिद्ध एक श्लोक है जिसमें भगवान शिव जी के लिए स्तुति भागवत के अनुरूप की गई है । 12.13.16 निम्नगाना यथा गङ्गा देवानामच्युतो यथा वैष्णवानां यथा शम्भुः पुराणानामिदं तथा ॥१६ जिस तह गंगा समुद्र की ओर बहने वाली समस्त नदियों में सबसे बड़ी है भगवान् अच्युत देवों में सर्वोच्च हैं और भगवान् शम्भु ( शिव ) वैष्णवों सबसे बड़े हैं , उसी तरह श्रीमद्भागवत समस्त पुराणों में सर्वोपरि है । जहां कहां गया है जैसे नदियों में गंगा जी श्रेष्ठ है सर्वश्रेष्ठ है, निम्न कहते हैं जो नीचे से प्रवाहित होती है ऐसे नीचे प्रवाहित होने वाले में जिस प्रकार गंगा जी श्रेष्ठ है वैसे ही देवानाम अच्युता अर्थात ऐसा कहा जा सकता है कि देवी देवताओं मे भगवान की गिनती की गई है पर वैसा नहीं है संस्कृत में देव शब्द का अर्थ होता है देने वाले, बहुत सारे देवी देवता जब प्रकट होते हैं तो कुछ न कुछ वर देते हैं जो देता है उसे देव कहते हैं। सर्वश्रेष्ठ देने वाले देव जो हैं वह भगवान ही हैं उन से बढ़कर कोई भी किसी वस्तु का दान नहीं कर सकता और भगवान की उपलब्धि यह है कि उनका इतना मुकुंद है "मुक्ति ददाति स मुकुंद " कि संसार में भगवान के अलावा कोई मुक्ति नहीं दे सकता इसलिए सभी देने वालों में अर्थात देवो में भगवान अच्युत श्रेष्ठ है। क्योंकि वह कभी भी अपने पद से च्युत नहीं होते अर्थात गिरते नहीं है अपनी स्थिति से "देवानाम अच्युतो यथा " | उसी प्रकार से "वैष्णवानाम यथा शंभू" जितने भी महान वैष्णव है भक्त हैं विशेष है किसी भी संप्रदाय से जुड़े हुए हो, पौराणिक काल में हुए हो वैदिक काल में हुए हो मध्यकाल में हुए हो रीति काल में हुए हो या भविष्य में होने वाले हो जितने भी सभी वैष्णव में सर्व अग्रणी या शिरोमणि जिसे कहते हैं अर्थात श्रेष्ठ वैष्णव भगवान शंकर है शिवजी हैं | "वैष्णवानाम यथा शंभू पुराणानाम इदम तथा " | उसी प्रकार से पुराणों में भागवत सर्व श्रेष्ठ है महान है दिव्य ग्रंथ है, चाहे जितने भी पुराण हो पर भगवत महापुराण है और भागवत की तुलना जो है साक्षात भगवान से ही की जाती है। भगवान का यह शाब्दिक स्वरूप माना जाता है। वांग्मय वाक्यमय साक्षात मूर्ति है भगवान की" इन्हें साक्षात वाक्य मूर्ति " भागवत जो है दिव्य ग्रंथ है और भागवत की महिमा हमने काफी बार सुनी है महाराज जी के मुखारविंद से भी । जब महाराज जी प्रचार किया करते थे नारद भारत पार्टी के अंतर्गत तो प्रभुपाद जी से उन्होंने पूछा कि हम भक्त हैं भगवान को भोग लगाकर प्रसाद पाना चाहिए तो आप आदेश दे तो हम कोई छोटे विग्रह हम हमारे साथ रख सकते हैं उनको भोग लगा सकते हैं तो प्रभुपाद जी ने कुछ क्षण भी नहीं लगाते हुए जबाब दिया महाराज जी से कहा कि जब आपके साथ साक्षात भागवत है जो भगवत स्वरूप ग्रंथ है तो अन्य किसी विग्रह की क्या आवश्यकता है। हम भागवत को ही भोग लगाकर प्रसाद पा सकते हैं। भागवत जो है भगवान के अभिन्न हैं। वांग्मय मूर्ति प्रत्यक्षयाम हरी वरतते। भागवत जो है साक्षात भगवान ही है। काफी विद्वानों के द्वारा आचार्यों के द्वारा भागवत के जो अन्य अन्य सकन्ध खंड है उनके उपमा भगवान के विभिन्न अंगों से भी की जाती हैं। तो आपने सुना होगा | इसी प्रसंग में भगवान शिव जी का जहां उल्लेख आया है वहां उनको सर्वश्रेष्ठ वैष्णव कहां गया है तो शिवजी काफी विशेष हैं किसी भी संप्रदाय से जुड़े हुए भक्त हो जो भी किसी भी संप्रदाय से जुड़कर भगवान की भक्ति कर रहे हैं तो सबके लिए आदरणीय वंदनीय सबसे श्रेष्ठ आदर्श भगवान शिव जी का सबके लिए चरित्र है। और आज जो यह तिथि है महाशिवरात्रि बहुत ही विशेष तिथि है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है पर यह जो फागुन मास की कृष्ण पक्ष के अंतर्गत जो यह त्रयोदशी चतुर्दशी की जो रात्रि होती है वह बहुत ही विशेष होती है महाशिवरात्रि जिसको कहा जाता है और शिवजी के संबंध में यह तिथि है और महाशिवरात्रि का उल्लेख काफी पुराणों में आया है और जब मैं शास्त्रों को देख रहा था तो बहुत सारी लीला इस संदर्भ में हुई है लेकिन प्रमुख रूप से भगवान शिव जी का विवाह आज के दिन हुआ था इसलिए महाशिवरात्रि काफी प्रसिद्ध है। और महाशिवरात्रि के दिन भक्त प्रसन्नता पूर्वक भगवान शिव जी को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं और भगवान शिव जी की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। ताकि हमारी जो भक्ति है वह भगवान के प्रति आबादीत रहे उत्तरोत्तर इसकी प्रगति होती रहे शिव जी की कृपा से। मैं पढ़ रहा था तो हरि भक्ति विलास से उद्धृत एक श्लोक था जहां पर गोपाल भट्ट गोस्वामी सनातन गोस्वामी की दिग्दर्शन टीका ओर गौतमी तंत्र नामक ग्रन्थ से बता रहे थे कि भगवान कृष्ण की प्रसन्नता के लिए वैष्णव जो हैं आज के दिन उपवास भी रखते हैं और उसी प्रसंग में कहा गया है कि कुछ भक्त तो निर्जला तक उपवास करते हैं ताकि शिव जी की कृपा प्राप्त हो लेकिन वहां उल्लेख है कि भगवान श्री कृष्ण की प्रसन्नता के लिए। वरना हम देखते हैं कि शिवजी जो है वह भगवान की भक्ति में इतनी तीव्रता से लगे रहते हैं कि जैसे ही हम कोई भौतिक आकांक्षा करें शिव जी तुरंत ही प्रसन्न होकर उसे प्रदान करते हैं शायद इसलिए उनका नाम आशुतोष है और आप भागवत जब पढ़ते हैं तो एक विशेष अध्याय में जिसकी शुरुआत ही राजा परीक्षित शुकदेव गोस्वामी से यह प्रश्न पूछ कर करते हैं कि हे शुकदेव गोस्वामी ऐसा देखा गया है कि महालक्ष्मी के पति भगवान नारायण के भक्त होते है लक्ष्मीपति भगवान के भक्त होते हुए भी वे प्राय: निर्धन पाए जाते हैं निश्चिंकिंचन पाए जाते हैं गरीब देखे जाते हैं लेकिन उसके ठीक उसके विपरीत जो भगवान शंकर की उपासना करता है उसके पास बहुत कुछ होता है चाहे वह रावण जैसा अकराल विककराल राक्षस ही क्यों ना हो उसके पास प्रचुर मात्रा में धनराशि देखी जाती है तो ऐसा क्यों है। इसी संदर्भ में वृकासूर की कथा सुनाते हुए शुकदेव गोस्वामी इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि भगवान जब तक टटोलते नहीं, देखते नहीं, परीक्षा नहीं कर लेते कि यह व्यक्ति बली महाराज जैसे बड़े से बड़े साम्राज्य को संभालने की क्षमता रखता है तब तक उसको किसी भी प्रकार का धन प्रदान नहीं करते हैं किसी भी प्रकार का भगवान धन प्रदान नहीं करते क्योंकि भगवान हमारे परम हितेषी है लेकिन भगवान शिव जी के संदर्भ में ऐसा नहीं है भगवान शिव जी आगे पीछे का विचार किए बिना सामने वाला व्यक्ति जो भी मांगता है उसे देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं आप ऐसा कह सकते हैं कभी-कभी अपना वरदान देकर वह खुद भी संकट में पड़ते हैं। तो शुकदेव स्वामी हंसते हुए इस श्लोक को कहते हैं कि कभी-कभी शिवजी का जो वचन है वरदान है उनको भी कभी-कभी बहुत तकलीफ देता है। तो उसी प्रसंग में उन्होंने वृकासूर की कथा सुनाई, वृकासूर नाम का राक्षस था जिसको उन्होंने आशीर्वाद दिया कि वह जिसके भी सिर पर हाथ रखेगा वह जल जाएगा तो वह परीक्षा करने के लिए शिवजी के ही पीछे भागा तब भगवान एक बटु ब्राह्मण का रूप लेकर आए और उन्होंने और उसे अपनी सुमधुर वाणी में मोहित करके उस राक्षस का उन्होंने सर्वनाश किया। उसे अपने सिर पर हाथ रखने के लिए बाध्य किया और वह राक्षस जो वृकासूर था वह भस्मासुर बन गया वह भस्म हो गया। तो इस प्रकार से हम देखते हैं कि जब कोई शिवजी से भौतिक कामना करते हैं तो वह भी झट से उसे प्रदान करते हैं लेकिन भगवान शिव जी के बारे में यह देखा गया है कि जब कोई व्यक्ति प्रमाणिकता से चाहे उनकी ही भक्ति क्यों ना कर रहा हो जब देखते हैं कि वह योग्य व्यक्ति है सही कैंडिडेट है, काफी सारे उदाहरण ऐसे मिलेंगे जहां भगवान शिव जी जो है भक्तों को भगवान के चरणों में लाकर छोड़ते हैं कि ये तो मेरी नहीं भगवान की भक्ति करने योग्य हैं। बड़ी प्रसिद्ध कथा आप देखते हैं वृंदावन में सनातन गोस्वामी के संदर्भ में | चक्ररेश्वर महादेव के पास सनातन गोस्वामी की कुटीर है | वहां की एक प्रसिद्ध लीला है कि एक व्यक्ति भगवान शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था तो जब शिवजी ने देखा कि यह व्यक्ति भगवान की भक्ति बहुत अच्छी कर सकता है तो उन्होंने उस भक्त से कहा कि आप सनातन गोस्वामीजी की शरण में जाइए, उनके पास संसार की सबसे बढ़िया वस्तु है तो उन्होंने जब सनातन गोस्वामी से पूछा तो उन्होंने कहा कि ठीक है मेरे पास एक चिंतामनी है जो मैं आपको दे सकता हूँ उससे आप सोना बनाइए। तो जब उन्होंने देखा कि चिंतामणि एक कचरे के डिब्बे में पड़ी हुई थी और उसको लेकर प्रसन्न होकर भाग रहे थे तो अचानक क्लिक हुआ कि यदि यह चीज अगर इतनी महत्वपूर्ण है तो उसको कचरे के डब्बे में क्यों रखा गया था तो फिर से वापस आया बड़ा चालाक व्यक्ति था उसने कहा कि आपने मुझको फसाया है कोई भी व्यक्ति अपनी सबसे महत्वपूर्ण चीज एकदम संजोकर रखता है बढ़िया से सुरक्षित तौर पर और आपने तो इसे कचरे के डब्बे में रखा था इसका अर्थ यह है कि आपके पास इससे भी बढ़िया कोई चीज हो सकती है। तो सनातन गोस्वामी ने कहा हाँ मेरे पास इस चिंतामणि से बढ़कर भी एक चिंतामणि है। लेकिन सर्वप्रथम मानसी गंगा में आपको इसे बहाना होगा शुद्ध होकर आना पड़ेगा | तो जैसे ही मानसी गंगा में उसे प्रवाहित किया डुबकी लगाई तो मन शुद्ध होकर सनातन गोस्वामी के पास आए तो उन्होंने हरि नाम का चिंतामणि देकर उन्हें भगवान का भक्त बनाया। तो इस प्रकार से हम देखते हैं कि रामायण में भी एक कथा आती है जिसमें काग भुसुंडि नामक एक भक्त है प्रसिद्ध भक्त थे जो ब्रांच कौवे के रूप में रहते थे, निवास करते हैं और रामायण के सरस प्रवक्ता है और आप भक्तजन यह जानकर आश्चर्य चकित रह जाएंगे की उनसे कौन भागवत सुन रहा है और राम कथा सुन रहा है साक्षात यज्ञेश वाहन जो भगवान के वाहन है गरुड़ देव। वे चरणों में बैठकर उस कौवे से ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। तो उत्तर रामायण में यह कथा आती है कि पूछा गया उनसे कि आप इतने महान योगी इतने महान भक्त होते हुए भी इस शूद्र चांडाल के स्वरूप में आप क्यों रहते हैं तो काक भूसुंडी जी ने बिना संकोच किए एकदम स्पष्ट रूप से कहा मैं भगवान शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था लेकिन उनकी भक्ति करने के साथ-साथ मैं वैष्णव की बहुत निंदा किया करता था | एक दिन एक वैष्णव को शिवजी के मंदिर में ही शिवजी के समक्ष ही मैं बहुत झाड़ रहा था डांट फटकार लगा रहा था तो शिवजी को सहन नहीं हुआ और वह लिंग से स्वयं प्रकट हो गए हैं और उन्होंने मुझे श्राप दे दिया कि जा तू वैष्णव की निंदा करता है वैष्णव अपराध करता है तो तू चांडाल पक्षी कौवा बन जा और कांव कांव कांव करता रह । जब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ तो मैंने क्षमा याचना की तो शिव जी तो बड़े दयालु है उन्होंने कहा कि कोई हर्ज नहीं, यही वैष्णव कि जब तुम पर कृपा हो जाएगी तो उसी कौवे शरीर में तुम्हें राम चरित्र की अनुभूति होगी राम भक्ति का महत्व पता चलेगा और बहुत बड़े राम भक्त बनोगे। भगवान के भक्त बनोगे। जब गरुड़ जी पूछा कि अब आप यह शरीर क्यों नहीं छोड़ते तो उसका कारण उन्होंने बताया कि इसी छुद्र देह में इसी कौवे के शरीर में भगवान की भक्ति प्राप्त हो गई है तो कितने भी संकट और कितनी भी परेशानी मुझे इस शरीर से होती हो लेकिन मुझे यह शरीर अति प्रिय है इसलिए मैं इस शरीर में रहता हूँ । तो वहां आप देख सकते हैं शिवजी जो है बहुत बड़े भक्त हैं वैष्णव हैं और साथ ही साथ काफी बार शिव जी को भगवान के स्वरुप में भी देखा जाता है यदि हम शास्त्रों का सन्दर्भ लेते हैं तो हमें पता चलता है कि प्रथम चतुर् व्यूह है वासुदेव संकर्षण प्रद्युम्न अनिरुद्ध, उसी चतुरव्यू के अंतर्गत संकर्षण भगवान है उनसे ही स्वयं शंकर भगवान प्रकट होते हैं जो कि भगवत स्वरूप माने गए हैं | इन 3 देवो में से भगवान रूद्र जो है शंकर जो है हम जैसे देखते हैं कि ब्रह्मा विष्णु महेश, जैसे कहते हैं कि गुण अवतार माने जाते हैं भगवान के। उस दृष्टि से भी देखा जाए तो भगवान का वह तमो गुण का अवतार है। शिवजी में और भगवान में काफी सारे साम्य पाए जाते हैं तो भगवत स्वरूप शिव जी को भी माना जाता है भगवान की विशेष शक्ति अनिश्चित हैं और उसी तरह भगवान की भक्ति के लिए उत्तरोत्तर प्रगति के लिए उनकी शरण ग्रहण करते हैं तो भगवान शिव जी से बढ़कर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो दृढ़ता पूर्वक हमें भगवान की भक्ति में लगा सके | भगवान शिव जी की यही विशेषता है कि एक दृष्टि से देखा जाए तो ब्रह्मा जी के यह पुत्र है भागवत के तीसरे स्कंध में इसका वर्णन आता है कि भृकुटी से रोते-रोते प्रकट हुए इसलिए इनका नाम रूद्र रखा गया लेकिन जहां भक्ति का वर्णन किया गया है वहां इनका उल्लेख मिलता है कि शिवजी ब्रह्मा जी से भी बढ़कर श्रेष्ठ भक्त माने जाते हैं यदि भक्ति के प्रसंग से देखा जाए तो | क्योंकि हम देखते हैं कि ब्रह्मा जी ऐसे कामों में व्यस्त दिखाई देंगे जो व्यवहारिक है और आप देख सकते हैं कुछ राजकीय कार्य हैं ब्रह्मांड की निवृत्ति कहो या उसका व्यवस्थापन कहो उसने व्यस्त दिखाई देते हैं पर शिवजी का चरित्र यदि टटोलेंगे तो ध्यान से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि पूर्णत: वह भगवत भक्ति विहित जीवन यापन करते हैं, न केवल खुद बल्कि अपने परिवार सहित भगवान भक्ति में लगे रहते हैं और इसीलिए शिवजी को आचार्य की भी पदवी दी गई है। शिव जी बहुत बड़े आचार्य हैं भक्ति मार्ग के बहुत बड़े पथ प्रदर्शक हैं और सभी वैष्णव के आराध्य स्वरूप हैं जो हमें निष्ठावान भक्ति करने का साहस कहिए, मार्गदर्शन कहिए प्रदान करते हैं। तो जैसे मुख्य रूप से चार संप्रदाय है -ब्रह्म संप्रदाय, कुमार संप्रदाय,श्री संप्रदाय और एक रुद्र संप्रदाय भी है जहां पर भगवान ने अपने चार प्रमुख वैष्णव को निर्धारित किया कि इन के माध्यम से इस श्रृंखला भक्ति की आरंभ करूंगा तो उन चार आचार्यों में जहां ब्रह्मा जी हैं चार कुमार है महालक्ष्मी जी हैं तो वहां पर उन्होंने भगवान रुद्र के माध्यम से एक रुद्र संप्रदाय आरंभ किया जिसके मुख्य आचार्य विष्णु स्वामी जी है और इसी संप्रदाय में आगे चलकर हम देखते है कि वल्लभ आचार्य जैसे बहुत बड़े-बड़े महान भक्त बने हैं। वात्सल्य संप्रदाय माना जाता है भगवान शिव जी का भगवान विष्णु के प्रति वात्सल्य भाव भी है तो शिवजी एक रुद्र संप्रदाय जैसे महान संप्रदाय के आचार्य हैं, प्रणेता है, आरंभ कर्ता है जिनको भगवान के द्वारा ज्ञान प्राप्त हुआ है। तो काफी सारी लीलाएं हैं भगवान शिव जी के संदर्भ में लेकिन हम मुख्य रूप से शिवजी को एक आचार्य के रूप में देखते हैं इसलिए आप महान वैष्णव के सानिध्य में भगवान शिव जी की दिव्य भक्ति का उनके आचार्यत्व का या उनके वैष्णवत्व का चिंतन करना योग्य लगता है। तो हम देखते हैं कि भगवान शिव जी के बारे में कथा सुन रहा था | एक दो तीन भक्त ही ऐसे हैं जो भगवान की सेवा अलग-अलग भावों में करते हैं तो हम देखते हैं कि उन गिने-चुने भक्तों में से केवल शिव जी भी ऐसे भक्त हैं जो भगवान के विविध रूपों में वैसे तो अलग-अलग रस बताए गए हैं भगवान की उपासना के, उस संदर्भ में यह जो पांच मुख्य रस है भाव है जिसमें शांत रस है दास्य रस है साख्य रस है वात्सल्य और माधुर्य। शिवजी एक ऐसे भक्त हैं मतलब यह एक अद्वितीय उपलब्धि है कि वह पांचों रसों में अगर आप ध्यान से देखेंगे पांचों रसो में भगवान की सेवा करते हैं । शांत रस के दिव्य भक्त हैं, दास्य रस के भक्त हैं, साख्य रस के भक्त हैं,माधुर्य रस के भक्त हैं, वात्सल्य रस के भक्त है। संक्षिप्त रूप में हम कुछ विशेष उदाहरण देखेंगे जैसे भगवान शिव जी शांत रस के भक्त हैं इसका ज्वलंत प्रमाण है कि भगवान नंदेश्वर महादेव के रूप में नंद गांव में रहते हैं जैसे पर्वत के रूप में रहते हैं नंदेश्वर पर्वत जो हैं जिसके ऊपर कृष्ण बलराम जी का मंदिर आज भी आप देख सकते हैं। तो वह जो पहाड़ है वह भगवान शिव जी का स्वरुप माना गया है। आप अगर उसका आकार भी देखेंगे तो वह शिवलिंग के जैसा आकार है। अगर आप बरसाने की तरफ से जाएंगे तो लंबा वाला भाग है और बीच में चढ़ाई दोनों तरफ आप देख सकते हैं और शिवलिंग के जैसा स्वरूप है। ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों गए थे शिव जी से प्रार्थना करने कि हमें भी आपकी इस लीला में प्रवेश पाना है सेवा करनी है तो भगवान शिव जी ने कहा कि फिर व्यवस्थापन कौन देखेगा इस संसार का तो उन्होंने कहा कि हम कुछ व्यवस्था कर देंगे फिर भगवान ने बहुत सोचने के बाद कहा कि आपको किस तरह का स्वरूप दिया जाए आप क्या करेंगे इस लीला में आप फिट नहीं हो रहे हैं तो उन्होंने कहा कि ठीक है आप तीनों पहाड़ बन जाइए। और आप लीला दर्शन कर सकते हैं तो इससे बहुत प्रसन्न हो गए ब्रह्मा विष्णु महेश। तो जो ब्रह्मा जी हैं वह बरसाना के पहाड़ हैं जिसमे लाडली जी का मंदिर है उसमें चार मुख आपको दिखाई देंगे ब्रह्मा जी के। चतुर्मुख ब्रह्मा जी के। तो बरसाना में एक पर्वत है जिसमें चार मुख हैं दानगढ़ भानगढ़ मानगढ़ और विशालगढ़। आप राधा रानी के मंदिर के गैलरी में आएंगे तो आपको वह चारों के चारों पर्वत एक साथ आप देख सकते हैं। जो ब्रह्मा जी का स्वरुप है। और जो गिरिराज महाराज हैं गोवर्धन जो साक्षात भगवान विष्णु का स्वरूप है। और यह जो नंदेश्वर पर्वत है जिस पर नंद गांव का मंदिर स्थित है वह भगवान शंकर है। तो इस प्रकार पहाड़ के रूप में शांत रस से भगवान की सेवा कर रहे हैं। तो यह हो गया शांत रस में शिव जी का भगवान की सेवा करने का उदाहरण। दास्य रूप में अगर आप देखेंगे तो पता चलेगा की हनुमान जी का रूप 11 रुद्र का ही अवतार माना जाता है। हनुमान जी जो है वह प्रभु रामचंद्र की सेवा में इतने तल्लीन है कि जहां सेवा का विषय आता है जैसे हम देखते हैं कि नवधा भक्ति है उसमें से सेवा भी एक भक्ति हैं तो उस भक्ति के आचार्य हनुमान जी को ही बनाया गया है। सेवा भक्ति के आचार्य हनुमान जी ही है। जो भगवान शिव जी का ही एक अंश अवतार हैं। तो आप देख सकते हैं कि भगवान महादेव शंकर हनुमान जी के रूप में रामचंद्र की सेवा करते हैं। और तल्लीन है काफी बार यह बताया गया है कि राम दरबार का यह भाग होते हुए भी जितने भी आप देखेंगे राम जी के अगल-बगल में सीता जी लक्ष्मण जी दर्शकों की ओर मुंह करके खड़े हैं लेकिन आप देखेंगे कि विरासन में बैठे हनुमान जी का मुंह राम जी की और है | जब उनसे पूछा गया कि वह ऐसे क्यों बैठे हैं तो उसका उत्तर ऐसे दिया जाता है कि वे राम जी की सेवा ऐसे करना चाहते हैं कि उनको कुछ बोलना भी ना पड़े केवल आंखों के इशारे से समझ जाए बड़े आराम से सुखासन में नहीं बल्कि विरासन में ऐसे बैठे हुए हैं ताकि उठने में भी ज्यादा समय ना लगे। इस प्रकार से इतनी तत्परता से इतनी तल्लीनता से हनुमान जी भगवान की सेवा करते हैं तो जहां सेवा का विषय आता है हम हनुमान जी के अलावा किसी और का चिंतन कर ही नहीं सकते सर्वश्रेष्ठ सेवक हनुमान जी है जो शिवजी का ही एक अंश अवतार है। और जब आगे बढ़ते हैं सखा रस में तो इसमें तो इतने सारे उदाहरण है कि हम देखते हैं भगवान शंकर और भगवान विष्णु आपस में काफी सारे लीलाओं का आदान-प्रदान हुआ है जो एक दूसरे के प्रति अपना बहुत प्रेम व्यक्त किया है बहुत सारी लीलाओं में सहायता की है। शिव जी की लीला में भगवान ने और भगवान की लीला में शिव जी ने सहायता की। और खास करके जब हम देखते हैं आज शिव जी की विवाह का प्रसंग चल रहा था, मैं चिंतन कर रहा था तो बड़ी प्रसन्नता हो रही थी कि भगवान कितना हंसी मजाक करते हैं | ऐसा भी वर्णन रामायण में आता है कि भगवान शिव जी की जब बारात जा रही थी तो सारे देवी देवता गण खड़े थे अगल-बगल में। शिवजी नंदी के ऊपर बैठे हुए हैं बगल में भगवान विष्णु चल रहे हैं। और अचानक ही भगवान विष्णु को ऐसा सुझा कि कुछ मजा नहीं आ रहा है इस बारात में तो उन्होंने ब्रह्मा जी से कह के यह कहलवाया कि शिव जी की जो बारात है वह उनके अनुरूप नहीं लग रही है क्योंकि यह भूतनाथ है तो इनके अगल-बगल में ऐसे सभ्य देवी देवता बड़ी शांति से अच्छे वस्त्र पहन कर सेंट वेंट लगाकर चल रहे हैं। यह उतना जम नहीं रहा कुछ मजा नहीं आ रहा तो भगवान विष्णु ने मैनेजमेंट में थोड़ा हस्तांतरण करते हुए दखल देते हुए उन्होंने सारे देवी देवता से कहा कि आप शिवजी के पीछे चलीए। और जब शिवजी के पीछे मुरझाए हुए शिवजी के भूत गण जब पीछे जा रहे थे ऐसे लटका हुआ उनका मुह था स्वरूप था कि हमारे स्वामी की यात्रा चल रही है और हमारा ही कोई महत्व नहीं है तब भगवान ने सब भूतों से प्रेतों से विनायक से कहा कि आप शिव जी के बगल में चलिए तो भूत भी इतने प्रसन्न हो गए आनंदित हो गए कि वह शिवजी के आगे पीछे नाचने लगे तब शिवजी भी बड़े प्रसन्न हो गए कि मेरे गण अब सामने आ गए। और जैसे ही वह अपने ससुराल के चौखट पर पहुंचे तो मैना जी आई थी आरती करने के लिए तो भूत पिसाचो को देखा तो आरती करना रह गया बल्कि वह बेहोश होकर गिर गई और यह कैसी विचित्र बारात मैंने जिंदगी में देखी ऐसे ऐसे लोग इसमें दिखाई दे रहे हैं किसी का पेट है तो पीठ नहीं,मुंह है तो आंख नहीं,हाथ है तो पैर नहीं। तो इस तरह की लीला करते हैं भगवान बहुत बार। हरीभक्ति विलास में भी मैंने समान श्लोक एक बार देखा है जो शिवजी से द्वेष करता है वह भगवान कृष्ण को कभी भी प्रिय नहीं हो सकता और ऐसी ही चौपाई हम रामचरितमानस में देखते हैं जिसमें साक्षात राम जी के मुंह से निकली हुई जहां राम जी यह कहते हैं के "शिव द्रोही मम दास कहावा, सो जन मोहे सपनेहूं नहीं पावा " यह भगवान राम जी का वचन है जहां राम जी ये कहते है कि शिव द्रोही जो व्यक्ति शिवजी से द्वेष करता है शिवजी से द्रोह करता है और अपने आपको राम जी का बहुत बड़ा भक्त मानता है मेरा बहुत बड़ा भक्त मानता है शिव द्रोही मम दास कहावा सोजन मोहे सपने हूं ना पावा ऐसे लोग मुझे स्वप्न में भी प्राप्त नहीं कर सकते श्री राम जी कहते है। और शिवजी जो है वैष्णवा यथा शंभू, वैष्णव में अग्रणीय है तो जहां शिवजी आते हैं वहां ऑटोमेटिक वैष्णव समझना चाहिए | जो लोग यह सिद्धांत प्रतिपादित होता है जैसे ही हम वैष्णव अपराध करते हैं वैष्णव की निंदा करते हैं वह व्यक्ति भगवान को प्राप्त नहीं कर पाएगा नहीं कर सकता है बहुत कठिन है जटिल हो जाता है " हरी स्थाने अपराधे तारे हरि नाम तुम स्थाने अपराधे नाही परित्राण भगवान कहते हैं कि चाहे मेरे चरणों में एक बार अपराध कर लो हो जाएगा हरि नाम जपने से उसका भी कल्याण हो जाएगा लेकिन आचार्य कहते हैं कि जहां वैष्णव की और उसमें भी शिवजी जैसे महान वैष्णव की चरणों में अपराध किया जाता है व्यक्ति को किसी भी प्रकार का त्रान प्राप्त नहीं हो सकता उस व्यक्ति को नहीं प्राप्त हो सकता वह नहीं बच सकता उस वैष्णव अपराध से इसलिए उसको हाथी माथा अपराध कहा गया है बहुत बड़ा अपराध कहां गया वैष्णव अपराध सर्वश्रेष्ठ अपराध जो आपकी भक्ति लता बीज को समूल नष्ट करने की क्षमता रखता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि दोनों सख्य भाव है | दक्षिण भारत में जब राम जी जा रहे थे तो उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की और जब नाम रखने की बारी आई तो लोगों ने पूछा कि क्या नाम रखा जाए तो राम जी ने कहा की रामेश्वरम नाम रख दीजिए तो लोगों ने पूछा कि रामेश्वरम का क्या अर्थ है तो राम जी ने कहा कि रामेश्वरम का अर्थ है बड़ा सामान्य अर्थ है क्या आप संस्कृत नहीं जानते राम का जो ईश्वर है वो रामेश्वर है। तो यह वाला जो अर्थ है वह शिवजी को हजम नहीं हुआ और उस लिंग से शिव जी प्रकट होकर कहां की व्याकरण का जो स्रोत है पाणिनि व्याकरण, जो पाणिनि ऋषि को मैंने ही व्याकरण के माहेश्वर सूत्रों को प्रदान किया है और उस व्याकरण का मूल आचार्य मैं हूँ और प्रभु आप जो इसका अर्थ कर रहे हैं यह अर्थ सही नहीं है रामयश ईश्वरह: रामेश्वर:। तो उन्होंने कहा रामेश्वरम का सही अर्थ है राम जिसके ईश्वर है वह रामेश्वर। मतलब मैं आपका इश्वर कैसे हो सकता हूँ आप मेरे ईश्वर हैं | इसलिए इसको रामेश्वर कहा जाता है तो इस प्रकार से इसमें बहुत सारी लीला आप देख सकते हैं जहां शिव जी का भगवान के प्रति और भगवान का शिव जी के प्रति सखा भाव प्रकट हो जाता है। और जहां वात्सल्य भाव की बात की जाती है, भगवान शिव जी भगवान के बाल रूप के बहुत बड़े भक्त हैं। ये रामचरितमानस की जो प्रसिद्ध चौपाई है जहां पर वे कहते हैं कि " मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजर बिहारी" मंगल के अमंगल को नष्ट करने वाले वे बाल राम मुझ पर प्रसन्न हो जो दशरथ के अजीर अर्थात आंगन में घुटने के बल पर चलने वाले जो भगवान है बाल राम है वह मुझ पर द्रविभूत हो प्रसन्न हो यह मैं आकांक्षा करता हूं यह भगवान शिव जी के मुंह से निकली हुई चौपाई है। जहां वे कहते हैं द्रवहु सुदसरथ अजर बिहारी। दशरथ महाराज के अजीर मतलब आंगन में बिहार करने वाले जो प्रभु हैं वे बाल राम मुझ पर प्रसन्न हो। तो बाल स्वरूप के बहुत बड़े भक्त हैं। और यही प्रसंग आप कृष्णलीला में भी देख सकते हैं कि भगवान शिव जी आए थे नंद गांव में भगवान के बाल रूप का विशेष दर्शन करने के लिए लेकिन उनके अकराल विकराल स्वरूप को देखकर माता यशोदा डर गई थी। अभी कुछ समय पहले जहां पर भगवान ने पूतना राक्षसी का वध किया था और राक्षसी भगवान को उड़ा कर ले गई थी तो मैया थोड़ी ज्यादा ही सावधान थी किसी भी चित्र विचित्र व्यक्ति को पास नहीं आने देती थी तो मैया ने शिवजी को मना कर दिया था| शिव जी ने कहा कि प्रभु मैं आपके दर्शन की आशा ऐसे नहीं छोड़ने वाला वहीं पर पास में जाकर आशीश्वर महादेव जहां आज है वहां बैठकर शिवजी व्रत करने लगे ध्यान धारणा करने लग गए भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास करने लगे। तो फिर भगवान रोने लगे,भगवान ने एक बड़ी विचित्र लीला की यशोदा मैया ने देखा कि भगवान का हर प्रकार से प्रयास करने पर भी रुदन जब बंद नहीं हो रहा तो पूर्णमासी ने कहा कि किसी वैष्णव का अपराध हो गया है कोई साधु बाबा आया था क्या जिसका आपने दर्शन नहीं करने दिया तो कहा कि हां आया तो था फिर नंद बाबा ने हर जगह अपने मित्रों को भेजा कि आप ढूंढ कर लाइए और जब पता चला कि वह बाबा यहां पेड़ कदम्ब के पास आकर बैठ कर भजन कर रहे थे तो फिर नंद बाबा यशोदा मैया को लेकर उनके चरणों में गए और बालकृष्ण का दर्शन भगवान को कराया। भगवान एकदम प्रसन्न हो गए और भगवान शंकर ने उनकी स्तुति कि भगवान के चरणों को स्पर्श किया भगवान को नमन किया और तृप्त होकर के अपने कैलाश लोग लौट गए तब भगवान कृष्ण शांत हो गए। तो वहां अब देखते हैं कि भगवान शिव वात्सल्य रूप में भी भगवान की सेवा करते हैं। और जहां माधुरी रस की बात है ब्रज मंडल परिक्रमा में जब आप जाते हैं पूर्व तट की ओर जब आप जाते हैं तो मानसरोवर नामक एक ही स्थान आता है तो वहां की भी एक लीला सुनने में आती है कि जब भगवान शिव जी की इच्छा हुई कि भगवान की दिव्य रासलीला में मैं भी सहभागी हूं मानसरोवर में जब गोता लगाया तो वह भी गोपी का स्वरूप प्राप्त करके भगवान की रासलीला में भाग लिया तो यह ऐसे विचित्र आचार्य है जो हर रस में भगवान के साथ आदान प्रदान करते हैं भगवान शिव बहुत बड़े वैष्णव हैं बहुत बड़े भक्त हैं और हमें उनके चरणों में यह निवेदन करना चाहिए और जहां तक आप शिवजी की प्रसन्नता के लिए कार्य करते हैं और इस आशा से कि शिवजी जब मुझ पर द्रवीभूत हो जाए प्रसन्न हो जाए और उत्तरोत्तर मुझे भगवान की भक्ति में अग्रसर होने का लाभ प्राप्त हो तो उसमें कोई दोष नहीं है हां लेकिन सामान्य तौर पर देवी-देवताओं के तौर पर शिवजी का सामान्य रूप में भजन करते हैं या फिर किसी भौतिक वस्तु की आकांक्षा से करते हैं तो वहां पर अपराध बन जाता है। तो हम देखते हैं कि शिव जी को हमें वैष्णव के रूप में ही देखना चाहिए भगवान के जितने भी लीलाएं हैं पूरे विश्व में कहीं भी प्रसिद्ध चरित्र हो वहां आप देखेंगे कि किसी न किसी लीला में शिव जी का सानिध्य प्राप्त होगा शिवजी का उल्लेख किया यह शिव जी की कोई ना कोई लीला आपको देखने जरूर मिलेगी आप यह बड़े-बड़े चारों धाम को भी देखेंगे तो बद्रीनाथ के बगल में केदारनाथ जी हैं और जगन्नाथ पुरी के बगल में भुवनेश्वर धाम है और रामेश्वरम जहां है वहां भगवान रामनाथ के साथ शिव जी का भी स्वरूप आपको देखने मिलेगा सोमनाथ जी के रूप में है द्वारका जी के पास में । यह तो बड़े-बड़े तीर्थ स्थल हो गए। वृंदावन में भी हम देखते हैं कि भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र व्रजनाभ जी ने जब विग्रहो की मुख्य रूप से स्थापना की तो स्थापनाओं मे हम देखते हैं कि उन्होंने चार देव चार महादेव और एक देवी की स्थापना की। चार देव जो ब्रजनाभ जी के द्वारा प्रस्तावित हैं वृंदावन में गोविंद देव हैं मथुरा में केशव देव हैं गोवर्धन में हरिदेव हैं और दाऊजी में बलदेव हैं यह 4 देव है।और इन्हीं के साथ चार महादेव की भी स्थापना की गई जैसे वृंदावन में गोपेश्वर है मथुराजी में भूतेश्वर है या चक्रेश्वर महादेव जी के रूप में गिरिराज जी में बैठे हुए हैं और कामेश्वर महादेव, इन चार महादेव की स्थापना भी भगवान के प्रपौत्र ने की ताकि यह धामेश्वर प्रभु है जो धाम की सुरक्षा करते हैं जो किसी भी अनावश्यक वस्तु व्यक्ति को धाम में प्रवेश करने से रोकने का कार्य करते हैं ताकि धाम स्थित भक्तों के भक्ति में किसी भी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न ना हो। और केवल एक देवी की स्थापना की गई है वह वृंदा देवी है। तो इस प्रकार से भगवान शिव जी एक बहुत ही महान भक्त हैं और आज के इस पावन पर्व पर जो महाशिवरात्रि है शिव जी अति _प्रसन्न है तो आज हम भगवान शिव जी की प्रसन्नता के लिए कार्य कर सकते हैं उपवास कर सकते हैं और शिव जी जब_ प्रसन्न हो आशुतोष है निश्चित रूप से प्रसन्न होंगे शीघ्र अति शीघ्र प्रसन्न होंगे और उनसे भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का ही वरदान हमें प्राप्त करना चाहिए। हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे।हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। एक छोटी सी चौपाई है जो जग प्रसिद्ध चौपाई है उसको बता कर मैं रुकता हूँ । वह अपनी पत्नी से कहते हैं "उमा सुनो कहूं अनुभव अपना, सत हरि भजन जगत सब सपना" हम देखते हैं कि शंकर जो है यह जपा टॉक है क्योंकि वह जपा के बहुत बड़े जपी है और उन्होंने नाम जप का हर जगह उन्होंने समर्थन पाया आप सैकड़ों रामचरितमानस की चौपाइयां देखेंगे " जा सुमिरत नाम एकबारा उत्तरही नर भव सिंधु अपारा " यह शिव जी के मुख से निकली हुई चौपाइयां है हर हर जगह उन्होंने नाम निष्ठा के बारे में बताया है कि हे उमा हे मेरी प्रिय पत्नी सुनो यह मेरा अनुभव है साक्षातकार है इस संसार में केवल एक मात्र सत्य बात यह है कि यह राम का नाम केवल राम नाम ही सत्य है और बाकी सारा संसार सपना है। संसार में केवल भगवान का भजन ही सत्य है बाकी सब सपनत्व है जैसे सपने मैं किसी को राज्य प्राप्त हो बड़ा प्रसन्न हो और हंसते हंसते जाग जाएं और पता चले कि वह झोपड़ी में लेटा हुआ है और कोई व्यक्ति ऐसा भी हो सकता है सपने में एक शेर पीछे लग गया और जब जैसे खाने ही वाला है तब जाग जाए और देखे कि शेर नहीं है। तो सपने में प्राप्त की गई कोई वस्तु सच नहीं होती उसी प्रकार संसार भी नश्वर है अनित्य है झूठा है आज है कल नहीं है केवल भगवान का नाम ही एकमात्र ऐसी संपदा है संपत्ति है जो आपके साथ हमेशा रहेगी इसलिए हर एक व्यक्ति को भगवान के नाम में तल्लीनता से लगना चाहिए यह अपना अनुभव महान वैष्णव शिवजी हमसे साझा कर रहे हैं इसलिए आज के पवित्र अवसर पर शिव जी के चरणों में प्रणाम करते हुए प्रसन्नता की कामना करते हुए भगवद भक्ति में प्रगति करने की आशा से उनसे वरदान मांगते हुए। मैं अपने वचनों को यहां रुकता हूं।

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