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*जप चर्चा* *04 अगस्त 2021* *पंढरपुर धाम से* हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण टू यू ! आज किसी का बर्थडे भी है, उनको भी और आप सभी को भी मेरी ओर से हरे कृष्ण ! आज 1000 से भी अधिक स्थानों से भक्त जप में सम्मिलित हैं। थाउजेंड से अधिक होने से एक दूसरा भी अकाउंट प्रारंभ किया है। एनीवे आप औरों को भी सूचित कर सकते हो यदि वे हमारे साथ इस अकाउंट में नहीं हैं तो उनके लिए एक दूसरी आईडी भी उपलब्ध कराई जा रही है। हरि हरि ! अच्छा होता कि हर दिन एकादशी होती, तब हर दिन हमारी संख्या एक हजार से ऊपर जाती हरि हरि! हर दिन एकादशी अन्न की भी बचत हो जाती और कई अधिक लोगों को बचा हुआ अन्न प्राप्त होता अर्थात हमने आज जो नहीं खाया। प्रभुपाद कहते हैं दिस इज़ द सोलूशन ऑफ स्टार्वेशन, कई लोग जिन को भोजन नहीं मिलता या कुछ लोग थोड़ा ज्यादा खा लेते हैं अत्याहार चलता है। जो उपदेशामृत में कहा है *अत्याहार: प्रयासश्र्च प्रजल्पो नियमाग्रह:। जनसड्गंश्र्च लौल्यञ्च षड्भिर्भक्तिर्विनश्यति।।* अनुवाद: - जब कोई निम्नलिखित छह क्रियाओं में अत्याधिक लिप्त हो जाता है, तो उसकी भक्ति विनष्ट हो जाती है।:(1)आवश्यकता से अधिक खाना या आवश्यकता से अधिक धन-संग्रह करना (2) उन सांसारिक वस्तुओं के लिए अत्यधिक उद्यम करना, जिनको प्राप्त करना अत्यंत कठिन है। (3) सांसारिक विषयों के बारे में अनावश्यक बातें करना।(4) शास्त्रीय विधि-विधानों का आध्यात्मिक उन्नति के लिए नहीं अपितु केवल नाम के लिए अभ्यास करना या शास्त्रों के विधि-विधानों को त्याग कर स्वतंत्रता पूर्वक या मनमाना कार्य करना। (5) ऐसे सांसारिक प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों की संगति करना जो कृष्णभावनामृत में रुचि नहीं रखते। तथा, (6) सांसारिक उपलब्धियों के लिए लालायित रहना। एकादशी होने के कई फायदे हैं। एक तो हम अपना श्रवण कीर्तन बढ़ाते हैं और फिर गुह्ममाख्याति पृष्छति भी बढ़ जाता है। *ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्ममाख्याति पृष्छति ।भुड.कते भोजयते चैव षडविधम प्रीति-लक्षणम् ॥* (उपदेशामृत 4) अनुवाद- दान में उपहार देना, दान-स्वरूप उपहार स्वीकार करना, विश्वास में आकर अपने मन की बातें प्रकट करना, गोपनीय ढंग से पूछना, प्रसाद ग्रहण करना तथा प्रसाद अर्पित करना -भक्तों के आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार के ये छह लक्षण हैं। इस प्रकार हम अपनी प्रीति दर्शन या प्रैक्टिकल डेमोंसट्रेशन ,भी कर रहे हैं आपके साथ हरि हरि ! यह उपदेशामृत कथा कहो, यह गुह्ममाख्याति दिल की बात या शास्त्र की बात या भगवान की ही बात जो गुह्य होती है उसको हम समझाते हैं। *ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्ममाख्याति पृष्छति भुड.कते भोजयते चैव षडविधम प्रीति-लक्षणम्* वह होगा नहीं एकादशी में तो आप जलपान प्रसाद तो खा ही सकते हो। दुग्ध पान या कोई रसपान पत्रं पुष्पं फलं तोयं, पत्रं ठीक है पुष्प भी खा तो नहीं सकते ठीक है कुछ सब्जियों को फ्लावर्स भी कहते हैं हरि हरी ! एकादशी महोत्सव की जय ! स्वागत है इस एकादशी महोत्सव का, जिसको हम हरि वासर या माधव तिथि भी कहते हैं। *माधव - तिथि भक्ति जननी , यतने पालन करि । कृष्णवसति वसति बलि परम आदरे वरि ।।* ( एकादशी - कीर्तन , शुद्ध भक्त चरण रेणु) अनुवाद- माधव तिथि ( एकादशी ) भक्ति को भी जन्म देने वाली है तथा इसमें कृष्ण का निवास है, ऐसा जानकर परम आदरपूर्वक इसको वरणकर यत्नपूर्वक पालन करता हूँ । *वाचो वेगं मनस: क्रोधवेगं जिव्हावेगमुदरोपस्थ वेगम्। एतान्वेगान् यो विषहेत धीर: सर्वामपीमां पृथिवीं स शिष्यात्।।* (श्रीउपदेशामृत श्लोक1) अनुवाद: - वह धीर व्यक्ति जो वाणी के वेग को, मन कि मांगों को, क्रोध कि क्रियाओं को तथा जीभ, उधर एवं जननेन्द्रियों के वेगों को सहन कर सकता है, वह सारे संसार में शिष्य बनाने के लिए योग्य है। यह जो पहला ही उपदेशामृत का वचन है वह आवेग को, स्पीड को रोकना है। ६ बेग दमी, बांग्ला में व को ब कहते हैं वृंदावन कहने की बजाय बृंदावन कहते हैं। यह ६ वेग दमी दमन , दमन कौन से? ६ वेग वाचो वेगं मनस: क्रोधवेगं जिव्हावेगमुदरोपस्थ वेगम् इसका एकादशी के साथ भी संबंध है। एकादशी के दिन हम विशेष प्रयास करते हैं इन इंद्रियों का दमन करने के लिए, उसको दबाने के लिए *शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च | ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||* (श्रीमद भगवद्गीता १८. ४२) अनुवाद - शान्तिप्रियता, आत्मसंयम, तपस्या, पवित्रता, सहिष्णुता, सत्यनिष्ठा, ज्ञान,विज्ञान तथा धार्मिकता – ये सारे स्वाभाविक गुण हैं, जिनके द्वारा ब्राह्मण कर्म करते हैं | इसको कृष्ण ने गीता के १८ अध्याय के ४२ श्लोक में कहा है। यह शमो दमस्तपः शौचं , जो होता है एकादशी के दिन, मन निग्रह इंद्रिय निग्रह मतलब यह ६ वेग दमि, यहां तो यह सही कहा है, लेकिन एकादशी है तो ग्यारह वेगों का कहो या इंद्रियों का कहो दमन करना है। उनको स्थिर करना है उनको शांत करना है। उसमें जो आवेग हैं उस भोग का, भोग विलास का, तीव्र इच्छा मन में, या इंद्रियों में, इंद्रियों को लगी हुई है आग, उसको बुझाना है अर्थात यह एकादशी जो है हमारी जो पांच ज्ञानेंद्रियां हैं (हम नहीं बताएंगे कौन कौन सी है ,इतना तो पता होना ही चाहिए क्योंकि जब से जपा टॉक इतने समय से चल रहा है और आपके पास श्रील प्रभुपाद के सारे ग्रंथ भी हैं तो ये एक्सपेक्टेड है) जनता को ज्ञानेंद्रियां व्हाट इज देट , पता नहीं होता, आपको भी नहीं पता था जब आप कृष्णभावना से जुड़े नहीं थे। पांच ज्ञानेंद्रियां हैं, पांच ज्ञानेंद्रियां क्या होती हैं ,पता नहीं होती हैं 1,2,3,4,5 तो पांच ज्ञानेंद्रियां हैं पांच कर्मेंद्रियां हैं और उसमें से जिव्हा वेगम, एक कर्मेंद्रिय है और दूसरी तरफ उदर उपस्थ जननेंद्रिय हैं और गुदाद्वार है वह भी कर्मेंद्रियां हैं। पांच ज्ञानेंद्रियां हैं पांच कर्मेंद्रियां हैं और मनःषष्ठानीन्द्रियाणि और मन छठी इंद्रिय है *ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः | मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ||* (श्रीमद भगवद्गीता १५. ७) अनुवाद - इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं । बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है । इस प्रकार ५ और ५ और एक, ११ हो गए। ५ पांच ज्ञानेंद्रियां ५ कर्मेन्द्रिय और एक मन। एकादशी के दिन इन इंद्रियों का इंद्रिय निग्रह सेंस कण्ट्रोल, माइंड कंट्रोल रखने का दिन है हरि हरि ! एकादशी के दिन हमारा होमवर्क होता है और फिर कल भी आपको हमने होमवर्क दिया था उपदेशामृत का पहला या प्रथम जो चार श्लोक हैं उसको याद कीजिए, कंठस्थ कीजिए और केवल कंठस्थ ही नहीं करना है वैसे कहा तो नहीं लेकिन फिर भी आज कह रहा हूं उसको हृदयंगम भी करना है। केवल कंठस्थ ही नहीं करना है जैसे तोता केवल राम राम राम कुछ लोग सिखा देते हैं तो वह केवल कंठ से ही बोलता है और उसको पता भी नहीं होता कि वह क्या बोल रहा है? क्या बक रहा है? नकल करता रहता है। ही इज अ वेरी गुड इमिटेटर, लेकिन उससे हमारा फायदा नहीं होने वाला क्योंकि वह केवल कंठस्थ ही है। उसको हृदयंगम करना होगा, सुन तो लिया या पढ़ तो लिया, श्रवण मात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत ऐसा कहा तो है *सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा । यस्याः श्रवण मात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत।।* (श्रीमद्भागवत महात्म्य 3.25) अनुवाद - भागवत की कथा का सदा सर्वदा सेवन करना चाहिए, श्रवण करना चाहिए इसके श्रवण मात्र से भगवान श्रीहरि हृदय में आकर विराजमान हो जाते हैं | चार कुमार शास्त्रों के अध्ययन या श्रवण की महिमा सुना रहे हैं। सदा सेवया सदा सेवया सदा सेवन करो, सेवा करो, किस की सेवा करो ? कथा की सेवा करो, वहां भागवत की कथा वो कह रहे हैं किंतु यह उपदेशामृत की कथा भी भागवत की कथा ही है या भगवत गीता भी भागवत कथा ही है। श्रील प्रभुपाद ने कई बार कहा और लिखा भी इट इज़ स्पोकन बाय कृष्ण, भगवत गीता भगवान ने कही है और श्रीमद्भागवतम और चैतन्य चरित्रामृत और भी ग्रंथ है यह भगवान के संबंध में कही हुई बातें हैं स्पोकन बाय कृष्ण, स्पोकन अबाउट कृष्ण, लेकिन यह दोनों ही कथा या हरि कथा ही हैं। *हरि संबंधी वस्तुनः मोक्षहीः परित्यागो वैराग्यं फल मुकत्याते* वैराग्य इसका संबंध भी हरि के साथ है तो उपदेशामृत का भी है और भक्तिरसामृत सिंधु का भी है। यहां चार कुमार कह रहे हैं सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा यस्याः श्रवण मात्रेण इसको आप सुनोगे, यस्यः श्रवण मात्रेण, कथा के श्रवण मात्र से क्या होगा आप के चित् में हरि प्रवेश करेंगे या वहां विश्राम करेंगे या वहां स्थिर हो जाएंगे। कृष्ण ने गीता में कहा है। *मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् | कथयन्तश्र्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ||* (श्रीमद भगवद्गीता १०. ९ ) अनुवाद- मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परमसन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं | मेरे भक्तों की क्या खासियत है? व्हाट इज द स्पेशलिटी ऑफ माय डिवोटी ? मच्चित्ता उसका चित् मुझ में लगा रहता है। यही है कॉन्शसनेस, भावना और हम कृष्ण कॉन्शियस होंगे ऐसा कहा है। श्रवण मात्रेण यहां केवल श्रवण मात्र की बात कही है केवल श्रवण से हरि हमारे चित् में, मन में, ह्रदय में, बसेंगे। श्रीमद् भागवत ने भी कहा है *धर्मः प्रोज्झितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां वेद्यं वास्तवमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् । श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वरः सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्र कृतिभिः शुश्रूषुभिस्तत्क्षणात् ॥* (श्रीमद्भागवत 1.1.2) अनुवाद- यह भागवत पुराण, भौतिक कारणों से प्रेरित होने वाले समस्त धार्मिक कृत्यों को पूर्ण रूप से बहिष्कृत करते हुए , सर्वोच्च सत्य का प्रतिपादन करता है , जो पूर्ण रूप से शुद्ध हृदय वाले भक्तों के लिए बोधगम्य है । यह सर्वोच्च सत्य वास्तविकता है जो माया से पृथक् होते हुए सबों के कल्याण के लिए है । ऐसा सत्य तीनों प्रकार के संतापों को समूल नष्ट करने वाला है । महामुनि व्यासदेव द्वारा ( अपनी परिपक्वावस्था में ) संकलित यह सौंदर्यपूर्ण भागवत ईश्वर - साक्षात्कार के लिए अपने आप में पर्याप्त है । तो फिर अन्य किसी शास्त्र की क्या आवश्यकता है ? जैसे जैसे कोई ध्यानपूर्वक तथा विनीत भाव से भागवत के सन्देश को सुनता है, वैसे वैसे ज्ञान के इस संस्कार ( अनुशीलन ) से उसके हृदय में परमेश्वर स्थापित हो जाते हैं । हृद्यवरुध्यते भगवान हमारे हृदय प्रांगण में रहेंगे, यह बात कही है चार कुमारों ने पद्म पुराण में और फिर मैंने आपको जो होमवर्क दिया था , ऐसा होमवर्क क्यों दिया जाता है और इस होमवर्क की क्या महिमा है, क्या माहात्म्य है, इसको भी मैं समझाने का हल्का सा प्रयास कर रहा हूं। पद्म पुराण में श्रीमद्भागवत महिमा या माहात्म्य में जब गोकर्ण कथा सुना रहे थे और कई सारे सुन रहे थे बड़ी धर्मसभा वहां जुट गई थी लेकिन वैसे कथा धुंधकारी के लिए हो रही थी उनके भ्राता श्री धुंधकारी के लिए ,जो भूत योनि को प्राप्त कर चुके थे या भूत बने थे तो उसके उद्धार के लिए गोकर्ण भैया ने, भागवत की कथा सुनाई और सातवें दिन धुंधकारी को भगवत धाम ले जाने के लिए वैकुंठ से एक विमान आ गया हरि हरि और फिर वैमानिक और एयर होस्टेस वगैरह भी थे। उन्होंने धुंधकारी को संकेत किया (अब वो धुंधकारी भी नहीं रहा) उसने अपने स्वरुप को प्राप्त किया था कथा का श्रवण करते करते वैसे और भी कुछ किया था उन्होंने केवल कथा का श्रवण ही नहीं किया था और भी कुछ किया था इसीलिए उनको वैकुंठ ले जा रहे थे। घर वापसी हो रही थी, ही इज़ गोइंग बैक टू होम, तब विष्णु दूतों ने संकेत किया, आइए , एनीवे वह सीढ़ी चढ़ने लगे और बैठ गए अपनी सीट में , और बेल्ट वगैरह बाँध ली (ही फास्टन हिज सीट बेल्ट) और यह विमान टेकऑफ होने ही वाला था कि उससे कुछ क्षणों पहले ही , गोकर्ण ने कहा वेट ए मिनट, क्या हुआ ? कथा तो सभी ने सुनी, किंतु आप केवल एक व्यक्ति को वैकुंठ ले जा रहे हो ? इनका क्या कसूर है? श्रवणस्य विभेदें फलस्य विभेदो सुसंस्कृतः यह अभी बैठे ही रहे हैं मेरे समक्ष इनका क्या कसूर है इन्होंने भी कथा सुनी, केवल मेरे भ्राता श्री धुंधकारी ने हीं कथा नहीं सुनी, उसके उत्तर में वैकुंठ से पधारे विष्णु दूतों ने कहा, समस्या यह रही, श्रवणम तू कथं सर्वे न यथा मंयेनम कृतं , कथा श्रवण तो सभी ने किया लेकिन मनन करने वाले केवल एक ही थे। श्रवण के उपरांत होता है मनन या श्रवण के उपरांत कीर्तन भी होता है और करना भी चाहिए यह भी कर्तव्य है। हमने श्रवण किया है उसको हमको ही सुनना, खुद को ही सुनाना और खुद ही सुनना, यही है मनन , श्रीप्रह्लाद उवाच *श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥* *इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा । क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥* (श्रीमद्भागवत 7.5.23, 24) अनुवाद- प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम , रूप , साज - सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना, उनका स्मरण करना , भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना , षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना , भगवान् से प्रार्थना करना , उनका दास बनना , भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना ( अर्थात् मनसा , वाचा, कर्मणा उनकी सेवा करना ) - शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं । जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए , क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है । जो स्मरण है यह अधिक होगा, हम अधिक अधिक मनन करेंगे या सुनी हुई बातों को पुन: मन में लाकर उनकी ओर अपना ध्यान आकृष्ट करेंगे या उनसे हमारा ध्यान आकृष्ट हो और उसी में हम तल्लीन हो जाएं, इस पर विचारों का मंथन हो रहा है फिर जो सही विचार हैं जो सुने हुए शास्त्रों के वचन है या गुरु मुख् पदं वाक्य, गुरु के मुख से जो सुनी हुई बातें हैं वह सेटल हो जाएगी। वह याद आएगी, उसके फिक्स डिपाजिट होंगे वह हमारी संपत्ति बन जाएगी। यही होगा ह्रदयंगम जो सुना था या पढ़ा था उस पर पुनः या फिर पुनः पढ़ लिया या जो पढ़ा और सुना था वह याद कर लिया कुछ भूल गए तो वह अपनी नोटबुक को देखा या फिर शास्त्र को पुनः देखा सोचा और कुछ समझ में नहीं आया तो प्रश्न पूछा, *तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया |उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ||* (श्रीमद भगवद्गीता 4.34) अनुवाद- तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो | उनसे विनीत होकर जिज्ञासा करो और उनकी सेवा करो | स्वरुपसिद्ध व्यक्ति तुम्हें ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य का दर्शन किया है | या स्टडी करते समय स्टडी सर्कल होते हैं और उनके साथ स्टडी करने से उसके फायदे हैं ,स्टडी ग्रुप, स्टडी सर्कल में होती है। क्या फायदे हैं ? कि कोई बात यदि पढ़ते-पढ़ते समझ में नहीं आ रही है या कोई प्रश्न मन में उठा है तो झठ से हम पूछ सकते हैं। हमारे पल्ले नहीं पड़ रहा है लेकिन किसी को समझ में आ रहा है उस सर्कल में जो बैठे हैं वह बता सकते हैं हमारी शंका का समाधान कर सकते हैं यह हमारे प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं यह फायदा है। यह सारा श्रवण से, शुरुआत में जब पहली बार हमने पढ़ा, वहां से शुरुआत हो गई क्योंकि श्रवण इज नॉट एंड वहां से तो शुभारंभ होता है इट्स अ बिगिनिंग, हम तो शुभारंभ करते करते उसका समापन भी कर लेते हैं। हां ! कुछ इनीशिएशन हुआ या प्रारंभ हुआ कुछ इनीशिएटिव लिया हमने, वहां से शुरुआत हो गई और वह जारी रखना ही चाहिए। सदा सेवया सदा सेवया या *नित्य-सिद्ध कृष्ण-प्रेम 'साध्य" कभु नय। श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय ।।* (चैतन्य चरितामृत 22.107) अनुवाद -"कृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम जीवों के हृदयों में नित्य स्थापित रहता है। यह ऐसी वस्तु नहीं है, जिसे किसी अन्य स्रोत से प्राप्त किया जाए। जब श्रवण तथा कीर्तन से हृदय शुद्ध हो जाता है, तब यह प्रेम स्वाभाविक रूप से जाग्रत हो उठता है।" हमारा भगवान के प्रति जो प्रेम है, है कि नहीं? यह पता नहीं है? कल भी कह रहे थे जैसे आपका माता पिता के प्रति होता है और फिर यह भी कहा, केवल माता पिता का ही आप से प्रेम नहीं होता, आपका भी होता है। प्रेम पुमर्थो महान, हमारे चैतन्य महाप्रभु ने यह लक्ष्य दिया, पंचम पुरुषार्थ क्या है? पंचम पुरुषार्थ प्रेम पुमर्थो महान *श्रीमद्भागवतं पुराणममलं यद्वैष्णवानां प्रियं यस्मिन्पारमहंस्यमेकममलं ज्ञानं परं गीयते । तत्र ज्ञानविरागभक्तिसहितं नैष्कर्म्यमाविस्कृतं तच्छृण्वन्सुपठन्विचारणपरो भक्त्या विमुच्येन्नरः ॥* (श्रीमदभागवतम 12.13.18) अनुवाद -" श्रीमद्भागवत निर्मल पुराण है । यह वैष्णवों को अत्यन्त प्रिय है क्योंकि यह परमहंसों के शुद्ध तथा सर्वोच्च ज्ञान का वर्णन करने वाला है । यह भागवत समस्त भौतिक कर्म से छूटने के साधन के साथ ही दिव्य ज्ञान , वैराग्य तथा भक्ति की विधियों को प्रकाशित करता है। जो कोई भी श्रीमद्भागवत को गम्भीरतापूर्वक समझने का प्रयास करता है , जो समुचित ढंग से श्रवण करता है और भक्तिपूर्वक कीर्तन करता है , वह पूर्ण मुक्त हो जाता है । तात्पर्य : चूँकि श्रीमद्भागवत प्रकृति के गुणों द्वारा कल्मष से पूरी तरह मुक्त है, अतएव इसमें अद्वितीय आध्यात्मिक सौंदर्य पाया जाता है और इसीलिए यह भगवद्भक्तों को प्रिय है । पारमहंस्यम् शब्द सूचित करता है कि पूर्णतया मुक्तात्माएँ भी श्रीमद्भागवत को सुनने और सुनाने के लिए उत्सुक रहती हैं । जो लोग मुक्त होने के लिए प्रयासरत हैं उन्हें इस ग्रंथ को श्रद्धा तथा भक्ति सहित श्रवण करना चाहिए तथा वाचन द्वारा इसकी सेवा करनी चाहिए । यह भागवत कथा या चैतन्य चरितामृत कथा, राम कथा यह सारी कथाएं, कृष्ण कथा कह दिया, तो हो गया सारी कथाएं यह सुनेंगे हम क्या होगा ? श्रवणादि शुद्ध चित्ते भगवान से हमारा जो प्रेम है वह जगेगा। यहां केवल श्रवणादि नोट दिस *श्रवणादि* मतलब क्या? इत्यादि, मराठी में भी इत्यादि कहा है या अंग्रेजी लोग अटसेक्टरा कहते हैं। केवल श्रवण नहीं है या श्रवण से ही केवल कृष्ण प्रेम जागृत होगा, कृष्ण स्नेही या प्रेमी बनोगे ऐसा नहीं कहा है। श्रवणादि शुद्ध चित्ते विष्णु स्मरणम इत्यादि अनिवार्य है। यह दूत जो धुंधकारी को बैकुंठधाम ले जा रहे थे उन्होंने कहा समस्या यह है कि धुंधकारी ने मनन किया, श्रवण भी किया, कीर्तन भी किया, चिंतन भी किया इसीलिए यह बैकुंठ प्राप्ति के अधिकारी बने हैं। ही बिकम एलिजिबल कैंडिडेट जो बैक टू कृष्ण यह पात्र बने हैं। हरि हरि ! इनकी नम्रता भी है, उन्होंने मनन किया, धुंधकारी ने और क्या किया ? *विश्वासो गुरु वाक्येषु सस्मिन दीनत्व भावना मनो दोष ज्याश्चैव कथयं निश्चला मतिः* एक तो मनन किया नोट दिस और जो आप गोकर्ण एक आचार्य गुरु के रूप में कथा सुना रहे थे , इस धुंधकारी का उसमें विश्वास रहा। ही इज़ सो मच फेथ, विश्वासो श्रद्धावान लभते औरों का इतना विश्वास नहीं रहा लेकिन इनका विश्वास था और दीनत्व भावना और बड़े दीन भाव के साथ त्रणादपी सुनीचेन, बड़े दिन भाव के साथ, ऐसे भावों के साथ धुंधकारी ने कथा सुनी और मनो दोष ज्याश्चैव या मन में वाचो वेगम मनसः वेगम जिव्हावेगमुदरोपस्थ वेगम् इसको उन्होंने जीत लिया मन को जीता, कहो इंद्रियों पर अपना नियंत्रण रखा और कथयं निश्चला मतिः इसी के साथ उनकी मती निश्चल, वैसे मन तो चंचल होता है निश्चल, मतलब चलना नहीं, मन को निश्चल बना दिया मन को स्थित किया, इसी के साथ हरि चित्तंसमाश्रयेत उनका चित् हरि में समा गया, स्थित हो गया। मैसज और फिर *या मति सा गति कहते हैं* या मति सा गति आपको अच्छा लगा ? ऐसी बातें मुझे बहुत अच्छी लगती हैं पर्सनली, यू डोंट केयर लेकिन या मति स गति तो हमारी जैसी मति होगी वैसे ही हमारी गति होगी वैसे ही हमारा डेस्टिनेशन या गंतव्य, स्थान होगा इसको याद रखो या मति स गति, नेक्स्ट टाइम जब आपको, इसे औरों को समझाना होगा *यारे देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश । आमार आज्ञाय गुरु हञा तार ' एइ देश ॥* (चैतन्य चरितामृत 7.128) अनुवाद:- " हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे । इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो । आपको और उनको, इस प्रकार श्रवण करने से, इस प्रकार करने से मतलब क्या? श्रवण करने से, कीर्तन करने से, मनन करने से या पुन: पुन: कीर्तन या पुन: पुन: पढ़ो याद करो एक बार ही पढ़ लिया या एक ही बार पढ़ने से आप समझ गए पूरा साक्षात्कार हुआ, अनुभव हुआ, रिलाइजेशन हुआ इसीलिए कहा है सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा | *यस्याः श्रवण मात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत ||*( श्रीमदभागवतम महात्म्य 3.25) और *नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया । भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी ॥* ( श्रीमद्भागवतम १ .२ .१८ ) अनुवाद - भागवत की कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा शुद्ध भक्त की सेवा करने से हृदय के सारे दुख लगभग पूर्णतः विनष्ट हो जाते हैं और उन पुण्यश्लोक भगवान् में अटल प्रेमाभक्ति स्थापित हो जाती है , जिनकी प्रशंसा दिव्य गीतों से की जाती है । नित्यम भागवत की सेवा की बात है इसीलिए हम डेली चैटिंग डेली जपा टॉक करते हैं। डेली रीडिंग करते हैं। आपको होमवर्क दिया था आप देख लो , आप में से कोई कहना चाहते हैं क्या क्या किया आपने या कैसा होमवर्क किया या क्या समझ में आया कुछ शेयर करना चाहते हो तो आप करो या कुछ बातें समझ में नहीं आई तो यहां सारी सभा बैठी हुई है आप प्रश्न पूछ सकते हो आपका स्टडी सर्कल है जिसमें कोई भक्त आपको उत्तर भी दे सकता है। मैं भी हूं और भी हैं। ठीक है। निताई गौर प्रेमानन्दे ! हरी हरी बोल !

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