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हरे कृष्ण जप चर्चा पंढरपुर धाम से, २२ दिसम्बर २०२०
हरे कृष्ण! आज हमारे साथ 830 स्थानों से भक्त जप कर रहे है। कौड़ीन्यपुर से भक्त जप कर रहे है। बरसाने में राधे राधे और सेवाकुंज में राधे राधे कर रहे है। म्यानमार से भी जप कर रहे है। थाईलैंड से भी भक्त जप कर रहे है। भगवान की कृपा से यह सब हो रहा है। हरि हरि। जब हरियाणा में हरि आए कुरुक्षेत्र में , हरि जहां पर आए यानी हरियाणा! और वहां पर अर्जुन को उपदेश सुनाएं। उपदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं था वैसे अर्जुन के लिए था ही नहीं! लेकिन अर्जुन को बनाए हैं निमित्त! हरि हरि। और इतना बड़ा योद्धा धनुर्धारी अर्जुन को संभ्रम में डाल दिए है भगवान। और फिर ऐसे अर्जुन को गीता का उपदेश दिए है। वैसे हम सब जीव संभ्रमित है, माया में है, काम, क्रोध, लोभ, मोह और मत्सर से वशीभूत है। ऐसा ही कुछ अर्जुन को बनाकर फिर अर्जुन को गीता का उपदेश सुनाएं! और फिर प्रत्यक्षिक दिखाएं। संभ्रमित है अर्जुन तो अब मैं उसको गीता का उपदेश सुनाता हूं! मध्य में अर्जुन प्रश्न भी पूछ रहा है, जिसके श्री कृष्ण उत्तर देते जा रहे है। पर फिर कुछ 45 मिनटों के उपरांत भगवान ने कहा है,
BG 18.66 “सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज | अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः || ६६ ||”
अनुवाद समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत । मामेकं शरणं व्रज |*
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः || भगवतगीता १८.६६
अनुवाद:- समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत ।
हे अर्जुन, तुम कई सारे कर्म लेकर बैठ गए थे या मनोधर्म कर रहे थे। तो क्या करो? सर्वधर्मान्परित्यज्य ऐसे धर्मों को, उन विचारधाराओं को, ऐसी सोच को त्याग दो! इस धर्म का क्या होगा? जाति धर्म या कुल धर्म का क्या होगा? यह सोचकर अर्जुन चिंतित थे। जैसे संसारभर के जियो चिंतित रहते हैं हमारी यह विचारधारा होती है, जत मत तत पत जितने सारे मत या विचार है उतने मार्ग भी है। इसी को तो भगवान कह रहे है कि, यह जो मत मतांतर की बातें तुम लेके बैठे हो इस को त्याग दो! अपने मन की मत सुनो, मुझे सुनो! BG 18.66 सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज मेरी शरण में आओ!
कामैस्तैस्तैर्ह्रतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः | तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया || भगवतगीता ७.२०
अनुवाद:- जिनकी बुद्धि भौतिक इच्छाओं द्वारा मारी गई है, वे देवताओं की शरण में जाते हैं और वे अपने-अपने स्वभाव के अनुसार पूजा विशेष विधि-विधानों का पालन करते हैं |
कामैस्तैस्तैर्ह्रतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः तुम संसार भर के जीव यह धर्म लेके बैठ गए हो! यह देवी देवताओं की पूजा का या अर्चना का धर्म है ही, यह भी धर्म के अंतर्गत है। मैं इस देवता का पुजारी हूं मैं उस देवता का पुजारी हूं और बंगाल में तो कालीपूजा होती है, और महाराष्ट्र में गणेश पूजा होती है, और गीता का रहस्य समझाने वह जो लोगों ने मान लिया वह लोकमान्य बने। पुणे के एक नागरिक गीता पर टीका लिखते है, भाष्य लिखते है। हरि हरि। क्या समझ में आई उन्हें गीता? स्वतंत्रता यह मेरा धर्म सिद्ध हक है और मैं उसे प्राप्त करके रहूंगा! इतने बड़े लोकमान्य है और उन्हें यह पता नहीं चल रहा है, और गीता पर भाष्य लिख रहे है। अंग्रेज जब भारत छोड़ेंगे तो हम मुक्त होंगे या स्वतंत्र होंगे ऐसा जिन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बनाया था तो, ऐसा प्रचार करने वाले कई सारे है जो राष्ट्रधर्म को लेकर बैठे है। और जब आराधना कि बात आ गई तो कृष्ण गीता में कह रहे,
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु | मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे || भगवतगीता १८.६५
अनुवाद:- सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो |
यहापर मां मतलब स्वयं भगवान श्री कृष्ण है। श्री भगवान उवाच! लेकिन लोकमान्य गणेश पूजा को बड़ा है या उसका प्रचार किए। इसी को तो भगवान कह रहे है, सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज हे लोकमान्य, मैं जिसको कह रहा हूं कि त्याग दो परित्यज्य! उसी को तुम कह रहे हो कि, स्वीकार करो! हरि हरि। और में कहता हूं कि सभी योगा में भक्ति योग श्रेष्ठ है,
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || भगवतगीता ६.४७
अनुवाद:- और समस्त योगियों में से जो योगी अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरे परायण है, अपने अन्तःकरण में मेरे विषय में सोचता है और मेरी दिव्य प्रेमाभक्ति करता है वह योग में मुझसे परम अन्तरंग रूप में युक्त रहता है और सबों में सर्वोच्च है | यही मेरा मत है |
यह मेरा मत है! भगवान ने कहा कि मेरे मत के अनुसार, कृष्ण के अनुसार, भक्ति योग श्रेष्ठ है योगी बनो! लेकिन कैसा योगी बनो? भक्तियोगी बनो! लेकिन यह गीता पर उटपटांग भाष्य लिखने वाले कहते है कि गीता का रहस्य है कर्मयोग! कोई गीता का रहस्य कर्मयोग बताता है तो कोई ज्ञानयोग बताता है। तो इसीलिए भी कृष्णा कह रहे है, सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज हरि हरि। तो अर्जुन भी कई सारे धर्म लेकर बैठा था। या कई सारे धर्म की बातें भगवान ने उसके दिमाग में डाल दी थी। और फिर इसीलिए तो संभ्रमित हुआ! मोह में आकर बोलने लगा कि कौरव मेरे चचेरे भाई है! यह मेरे है! अहंकार और ममता में आकर बोलने लगा। ऐसे अर्जुन को भगवान ने गीता का उपदेश सुनाया है। अर्जुन भी उसे श्रद्धा से सुने है और कृष्ण भी कहा है कि इसे श्रद्धा से सुनो! जो श्रद्धा से मुझे यानी गीता को सुनेगा, भगवतगीता यथारूप पड़ेगा, तो क्या होगा? वह ज्ञानवान बनेगा! केवल ज्ञानवान नहीं जो सचमुच ज्ञानवान होता है वह क्या करता है?
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते | वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः || भगवतगीता ७.१९
अनुवाद:- अनेक जन्म-जन्मान्तर के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है | ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ होता है |
तो कई तथाकथित ज्ञानी होते है, तो वह भगवान की शरण में नहीं जाते। उल्टा कहते हैं कि मैं ही भगवान हूं। अहम् ब्रह्मास्मि प्रभुपाद कहते थे कि यह तो माया की सीमा हुई! यह अद्वैतवाद या निर्गुण निराकारवाद यह अज्ञान है! ज्ञान तो कहते है, यह वेदांत आचार्य है इसे कहते है लेकिन यह अधूरा ज्ञान है! गुमराही है! तो जो सचमुच ज्ञानवान है, वह क्या करता है? भगवान गीता में कह रहे है, बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते | बहुत जन्म जन्मांतर के उपरांत व्यक्ति जब सचमुच ज्ञानवान हो जाता है, ज्ञान से पूर्ण होता है, आचार्यवान् पुरुषो वेद । (छान्दोग्य उपनिषद् ६.१४.२) जैसे वेदांता सूत्रों में कहा गया है। जो आचार्यवान है वह ज्ञानवान बने है। जो आचार्य के शरण में गया है जिसने आचार्य को अपनाया है, परंपरा में आने वाले आचार्य को अपनाया है, ऐसा पुरुष ज्ञानवान बनेगा! अधिकतर जो तथाकथित ज्ञानवान कहलाते है, जो किसी से सुनते नहीं जिनका कोई अचार्य या परंपरा से संबंध नहीं, अपने मन की सुनते है अपने ख्याल या विचार की सुनते है, और दूसरों को अपने ख्याल बताते है भगवान के विचार नहीं बताते! इसीलिए भगवत गीता यथारूप नहीं होती। लेकिन जो परंपरा में आने वाले आचार्य से श्रद्धापूर्वक सुनेंगे वह ज्ञानवान होंगे! और ज्ञानवान क्या करेंगे? मां प्रपद्यते मेरी शरण में आएंगे! कामैस्तैस्तैर्ह्रतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः जो कामवासना से भरे हुए रहते है, जो कामी होते है वे ज्ञान रहित हो जाता है! और जब ज्ञान रहित हो जाता है तो वह प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः किसी दूसरे देवता के शरण में चला जाता है। जो 33 करोड़ देवता है उनमें से किसी को पकड़ लेता है। लेकिन जो ज्ञानवान है मां प्रपद्यते कृष्ण की शरण में आता है! कौन ज्ञानवान है? जो वासुदेव सर्वम् वासुदेव ही सब कुछ है यह समझता है वह ज्ञानवान है! और फिर वही भक्तिमान बनेगा। हमें ज्ञानवान नहीं होना है हमें भक्तिवान होना है! और फिर अगर सही ज्ञान है तो सही ज्ञान क्या करेगा? हमें भगवान के चरणों में झुकाएगा! विद्या विनयेन शोभते अगर सचमुच विद्या है तो विद्या विनय देती है। अगर हम सचमुच विद्यार्थी बने हैं तो,
राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् | प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् || भगवतगीता ९.२
अनुवाद:- यह ज्ञान सब विद्याओं का राजा है, जो समस्त रहस्यों में सर्वाधिक गोपनीय है | यह परम शुद्ध है और चूँकि यह आत्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति कराने वाला है, अतः यह धर्म का सिद्धान्त है | यह अविनाशी है और अत्यन्त सुखपूर्वक सम्पन्न किया जाता है |
इस गीता के ज्ञान को कृष्ण कहे है राजविद्या! विद्याओंका राजा है यह भगवतगीता! सब विद्याओंमे श्रेष्ठ विद्या है यह भगवतगीता! राजविद्या राजगुह्यं अती गोपनीय बात कह रहे है भगवान अर्जुन को और अर्जुन को माध्यम बनाकर वैसे हमारे लिए ही कहे है भगवतगीता। तो ऐसी गोपनीय बातें आप अखबारों में नहीं पढ़ सकते। हरि हरि। संसार की खबरें तो कचरा है, अपवित्र है, बदमाशों की, ठगो की बातें है। ठग उवाच! ऐसा कहना चाहिए। या फिर गांधी उवाच! यह उवाच! वह उवाच! यह सब खबरों में चलता रहता है। राजनेता ने क्या बात बोली, या अभिनेत्री ने उल्टा क्या कहा, और फिर शास्त्रज्ञ ने क्या कहा यह सब संसार भर की बातें, यह सब ग्रामकथा की बातें या अपवित्र बातें, पाप की बातें, आहार, निद्रा, भय और मैथुन संबंधित बातें अखबारों में चलती रहती है। का वार्ता? ऐसा महाभारत में प्रश्न पूछा था, क्या समाचार है? और युधिष्ठिर महाराज को यक्ष ने पूछा था कि आश्चर्य? सबसे बड़ी आश्चर्य वाली बात क्या है? सबसे बड़ी वार्ता क्या है? आहार निद्रा भय और मैथुन की वार्ता है। कोरोना विषाणू का समय चल रहा है तो इसी की चर्चा है, और आतंकवाद भी है। तो इसी में हम तल्लीन है! इसी को देखते है इसी को सुनते है, इसी को सुनाते है, इसी से सारा सोशल मीडिया भरा पड़ा है। और इसी के उपर फिर किताबे लिखी जाती है।
इससे सारे वाचनालय भरे पड़े हुए है। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा! गीता, भागवत और वैदिक वांग्मय जो है इसे छोड़कर बाकी सब को आग लगा दो। जितने भी वाचनालय, कथा, कादंबरी, पुस्तके है इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सब को आग लगा दो ऐसा हमारे आचार्य भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर कहा करते थे। गीता भागवत को छोड़कर या जो भगवान के वचन है उसके अलावा बाकी जो है वह कचरा है! राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् गीता ऐसी है! भगवत गीता कैसी है? राजविद्या है! राजगुह्यं है, अति गोपनीय और अति सूक्ष्म बातें है। स्थूल बातें नहीं है। सारा संसार विशेषता कलयुग में सारे शुद्र होते है, यह सब पृथ्वी, आग, वायु, आकाश का अध्ययन करते है। खगोल या भूगोल है या फिर जीवशास्त्र है, भौतिक शास्त्र या रसायन शास्त्र जो है यह सब स्थूल बातें है। तत्व के संबधित है। यह संसार स्थूल है। वैसे भगवान कहे है कि, यह शरीर जो पंचमहाभूत से बना है यह स्थूल शरीर है फिर सूक्ष्म शरीर है जो मन, बुद्धि और अहंकार का अध्ययन यह थोड़ा सूक्ष्म वर्ग है।
पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश का अध्ययन स्थूल वर्ग और मन, बुद्धि और अहंकार का अध्ययन सुक्ष्म वर्ग में आता है। और उससे भी सूक्ष्म है आत्मा! सुक्ष्माती सूक्ष्म है आत्मा। अध्यात्म, आत्मा, परमात्मा इसकी चर्चा या किसका अध्ययन यह गोपनीय है। प्रत्यक्ष प्रमाण और शब्द प्रमाण, और फिर अनुमान प्रमाण भी है। ऐसे 10 प्रकार है जिसमें यह तीन प्रमानोंके मुख्य प्रकार है। तो संसार के राक्षसी प्रवृत्ति के लोग शब्द प्रमाण यानी वेदों को नहीं मानते। प्रत्यक्ष मतलब प्रति अक्ष जो हम देखते हैं वही है बाकी कुछ नहीं है। भगवान को देखते नहीं तो भगवान है ही नहीं ऐसा मानते है। जो हम देखते नहीं वह है नहीं। जिसको हम सुन नहीं सकते वह है नहीं। जिसको हम स्पर्श नहीं कर सकते या सुन नहीं सकते वह है नहीं। आपके भगवान को हम स्पर्श नहीं कर सकते तो वह है ही नहीं! यह प्रत्यक्षवाद हुआ। और यही है भौतिकवाद! और यह जो सांसारिक लोग हैं उनका ज्ञान प्राप्त करने का विधि है प्रत्यक्ष प्रमाण, उनका आंखों में विश्वास है। हरि हरि। लेकिन इसी को फिर ज्ञानेंद्रिय और कर्मेंद्रिय यानी इंद्रियों के मदद से जो ज्ञान प्राप्त करना चाहते है, और उससे प्राप्त हुआ ज्ञान है उसको प्रत्यक्षवाद कहते है। और यह जो शास्त्र क्या है उनका अपने इंद्रियों पर विश्वास है जो इंद्रिय अपूर्ण है। इसीलिए शब्द प्रमाण सर्वोपरि प्रमाण है!
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ | ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि || भगवतगीता १६.२४
अनुवाद:- अतएव मनुष्य को यह जानना चाहिए कि शास्त्रों के विधान के अनुसार क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य है । उसे विधि-विधानों को जानकर कर्म करना चाहिए जिससे वह क्रमशः ऊपर उठ सके ।
भगवान गीता में कहे हैं शास्त्र ही प्रमाण है! एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम् तो भगवत गीता या भागवत शास्त्र है! तो यह प्रमाण है। और फिर इन्हीं प्रमाणों को गीता भागवत या वेद पुराण यह जो प्रमाण है, यह शब्द प्रमाण है! शब्द परब्रह्म यह परब्रह्मा का परिचय देता है, आत्मा परमात्मा सूक्ष्म है इसका ज्ञान देते हैं यह शब्द! यह जो गीता भागवत के शब्द या वचन है इनको हम श्रद्धा से सुनेंगे यह समझेंगे तो क्या होगा? पुनर्जन्म न विद्यते पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ेगा! और यह शब्द से ही संभव है। शब्द का आश्रय लिया उसका श्रवण किया तो वही तो श्री कृष्ण है। कृष्ण कन्हैया लाल की जय! कृष्ण अर्जुन की जय! कुरुक्षेत्र की जय! श्रीमद भगवतगीता की जय!
तो यह भगवतगीता के वचन को सुनेंगे और समझेंगे तो उसको पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ेगा यह संभव है और ऐसी व्यवस्था हमारे परमपिता, परमेश्वर श्रीकृष्ण करके और यह गीता का उपदेश सुना के अपने धाम लौटे है। भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, जीवशास्त्र, खगोलशास्त्र और बोहोत कुछ यह सब शुद्र का विज्ञान है जिसे हम लेकर बैठे है। तो सारे अभियंता और शास्त्रज्ञ जो बहुत बड़ी पदवी है वह सारे शूद्र है! शुद्र स्थूल यानी मिट्टी का अध्ययन करते है। और जो ब्राह्मण होते है सूक्ष्म तत्वों का यानी आत्मा और परमात्मा का अध्ययन करते है। और औद्योगिक विकास, औद्योगिकरण यह सब सुद्रों का धंधा है। हरि हरि। तो इसीलिए भगवतगीता का हमें अध्ययन करना चाहिए। जैसे कि गीता के अंत में भगवान कहे हैं कि गीता को पढ़ो, और साथ ही साथ इस गीता के ज्ञान का वितरण करो! ठीक है। इतना ही कहेंगे और आज के लिए इतना ही पर्याप्त है। इतना भी अगर आप हजम कर सकते हो फिर भी ठीक है। तो जो कुछ कहा है उस पर विचार करो! जय श्री राम हो गया काम! गीता पढ़ो गीता का वितरण करो इसी में आपका और हम सभी का, सारे संसार का कल्याण है। कृष्ण को सुनो और को सुनोगे तो आपका काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर बढ़ेगा। हरे कृष्ण!
English
22 December 2020
Science of self realisation - True message of Bhagavad Gita
Hare Krishna! Devotees from 840 locations are chanting with us right now. There are devotees from different locations. With Krsna’s mercy all this is happening. Some are from Nashik, Kaundinyapur, Mauritius, Vrindavan, Barsana, Burma, Thailand, Haryana...
Haryana is where Krsna came, where He instructed the Bhagavad Gita to Arjuna. Although Krsna spoke to Arjuna, the message was not only for him. In fact it was not for Arjuna at all. Arjuna was to play the role of an insignificant medium. Just a big warrior Arjuna, he was put in a dilemma by the Supreme Personality of Godhead, Krsna - a dilemma of maya and mamta, Kama, Krodha, Lobh etc. In this way Arjuna became disillusioned. Arjuna was just playing a role of a disillusioned person like us. Arjuna was made to act as if he was attached and disillusioned. He spoke in such a way and in response Krsna narrated the Bhagavad Gita. It’s a demonstration by Krsna. Arjuna is crying. He is confused. Arjuna then listens, asks questions and Krsna answers. Within a 45 minute dialogue everything in Arjuna's mind changed. He spoke with support from scriptures, but with his own interpretation. The Lord says,
sarva-dharmān parityajya mām ekaṁ śaraṇaṁ vraja ahaṁ tvāṁ sarva-pāpebhyo mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ
Translation Abandon all varieties of religion and just surrender unto Me. I shall deliver you from all sinful reactions. Do not fear. (BG 18.66)
It was his Manodharma. Manodharma means that what is right according to me. Krsna cleared all his doubts, illusions and bewilderment within 45 minutes. Krsna asked Arjuna to drop all his self-professed religions, all such thoughts of what will happen of Jati dharma (caste), Kula Dharma (clan) etc. Arjuna was worried in the beginning like us. The people of the world are worried. We have many thoughts. Abandon the thoughts of your mind and listen to Krsna. “Come to Me, surrender to Me,” is what Krsna says.
Arjuna was mixing duties and relations in his argument. Krsna says, “Do not think about your own interpretation. Listen to what I say in Bhagavad Gita.” We are confused. Some say he worships someone. Others say he worships someone else. In Bengal there is Kali Puja, in Maharashtra there is Ganesh puja.
Lokmanya Tilak was a person who became popular among people due to his contribution in the freedom fight in India. He was from Pune. He said, “Independence is my birth right and I shall have it. I will be a citizen of Independent India”. He wrote his own commentary on Bhagavad Gita, but what did he understand. When the British left India, we became independent. Did we? There are so many such people who try to misinterpret Bhagavad Gita and preach their own mindset. Lokmanya Tilak promoted Ganesh Puja in Maharashtra. There are so many who are preaching nationalism as a religion. Krsna says, “Give up all and surrender only unto Me.” What Krsna says to give up, he is asking people to accept.
sarva-dharmān parityajya mām ekaṁ śaraṇaṁ vraja ahaṁ tvāṁ sarva-pāpebhyo mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ
Translation Abandon all varieties of religion and just surrender unto Me. I shall deliver you from all sinful reaction. Do not fear. (BG 18.66)
Krsna says Bhakti Yoga is the essence of Bhagavad Gita. But then such people say Karma yoga or Jnana yoga are most supreme. Such was the unclear mind of Arjuna and that is why he had developed pride and attachment for the people.
yoginām api sarveṣāṁ mad-gatenāntar-ātmanā śraddhāvān bhajate yo māṁ sa me yuktatamo mataḥ
Translation And of all yogīs, he who always abides in Me with great faith, worshiping Me in transcendental loving service, is most intimately united with Me in yoga and is the highest of all. (BG 6.47)
Krsna says become a Bhakti Yogi. Others say become Karma Yogi and Jnana Yogi.
man-manā bhava mad-bhakto mad-yājī māṁ namaskuru mām evaiṣyasi satyaṁ te pratijāne priyo 'si me
Translation Always think of Me and become My devotee. Worship Me and offer your homage unto Me. Thus you will come to Me without fail. I promise you this because you are My very dear friend. (BG 18.65)
Krsna says that one who listens to or reads Bhagavad Gita with full faith, will be enlightened with the right knowledge. If one does not learn with faith then he falls prey to Maya's strongest trick. He starts thinking himself to be great and finally God. But those who have learned with faith by surrendering to a bonafide acarya is a bonafide disciple. The actual knowledge is surrender unto Krsna. People don’t surrender to God, but people say I am Brahman. This is ajnana and the limit of Maya, Advait vadha . This is incomplete knowledge.
bahūnāṁ janmanām ante jñānavān māṁ prapadyate vāsudevaḥ sarvam iti sa mahātmā su-durlabhaḥ
Translation After many births and deaths, he who is actually in knowledge surrenders unto Me, knowing Me to be the cause of all causes and all that is. Such a great soul is very rare. (BG 7.18)
Most of these Jnanis don’t have a parampara. They listen to their mind. They share their own thoughts, not the thoughts of Krsna. Those whose mind is covered with lust cannot understand this very well. Their lust, kama eats up this knowledge. He surrenders to other gods and goddesses out of the 36 crore. But those who are actually Jnani surrender to Vasudeva. He who understands and accepts Krsna as the Supreme personality of Godhead is knowledgeable in the right sense and only he can become a pure devotee. vidya dadati vinayam || 5 || (Hitopadesha)
Bhagavad Gita is Raj vidya, the King of all knowledge.
rāja-vidyā rāja-guhyaṁ pavitram idam uttamam pratyakṣāvagamaṁ dharmyaṁ su-sukhaṁ kartum avyayam
Translation This knowledge is the king of education, the most secret of all secrets. It is the purest knowledge, and because it gives direct perception of the self by realization, it is the perfection of religion. It is everlasting, and it is joyfully performed. (BG 9.2)
This is highly confidential what He has told Arjuna, but it is meant for all. Modesty comes along with real knowledge. Bhagavad Gita is the highest, best knowledge which is most confidential. Newspaper news is not pure. It is about those who are thieves, thugs, politicians, actors, etc, Breaking news which comes in newspapers is not pure. It is trash.
Krsna is revealing this to us, making Arjuna a medium. This is the most confidential knowledge as told by Krsna, so it cannot be available in newspapers. In newspapers impure talks are mentioned. The newspaper comprises of nuisances happening all over and then articles by cheaters or gossips from the world of materialistic people. People are very interested in knowing what is going on in the lives of celebrities, politicians and businessmen.
Burn all knowledge except Vedic scripture. There will be no loss. When Yaksa asked Yudhishthira Maharaja what is the news, he replied that the news is all about eating, sleeping, mating and defending. There is news about terrorism, Corona Virus. This is the news. Trump is blowing his trumpet. We hear this and the social media is full of it. Libraries are full of it.
Everything except Bhagavad Gita and Srimad-Bhagavatam is useless. There is zero loss if all of it is burnt down. Bhagavad Gita is the highest knowledge. All the study of the macro is temporary. The study of the subtle, soul, mind, intelligence, ego is important. The study of the five elements of nature is gross. Geography, Biology, Cosmology, Physics etc, study of all this is gross. Study of the soul and spirituality is the most subtle and most confidential. Most subtle is the soul and its study is the highest and most confidential.
There are 3 main types of evidences. People with Demoniac propensities do not believe what scriptures say. They believe only in Pratyaksha praman ( Pratyaksha means what you can see, hear, smell, taste and touch) This is Bhautikvad or materialism. Krsna says in Bhagavad Gita that scriptures are the highest proofs. These scriptures are Shabda Praman. Shabda means words or sound. These scriptures tell us about the subtle, that which cannot be seen directly with the eyes. People who have a demonic attitude do not believe in anything other than that which they can see. What they can’t smell is not there. What they can’t touch, they don’t believe in. They believe in their senses.
Just by taking shelter of the scriptures we become free from the bindings of the material world. It is possible to free oneself from the cycle of birth and death.Scientists believe in their senses which are actually defective - Śabdād anavṛtti [Vedānta-sūtra 4.4.22] by sound. Vedas and Puranas are sastra. They are the proofs in word form. These are Param Brahma. If we hear these words with devotion then punar janma na vidyate (Gītā-māhātmya 5) - rebirth will not happen. We can take the support of words. Krsna is also in word form. Krsna has made all these arrangements through Bhagavad Gita. Then He left for His dhama. Krsna returned to His own abode soon after giving this supreme instruction. The human form of life is very precious. Gross knowledge is given by sudras and the subtle knowledge is given by Brahmanas and Vaisnavas. Engineers, scientists are all sudras. They study gross things while Brahmanas study subtle things.
Learn this knowledge and share this knowledge. We should be intelligent enough to identify Bhagavad Gita as the most highest of all knowledge. This is enough food for thought today. Try to think on this and learn from it.
Hare Krishna Gaura premanande Hari Haribol