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जप चर्चा
परमपूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज द्वारा
10 मई 2022
वंदे वाल्मीकि कोकिलम
सीताया पतये नमः
सीता के राम को नमस्कार।
राम किसके है?
सभी के है |
लेकिन सर्वप्रथम और सबसे पहले वे सीता के है | समझ में आ रहा है? तो आज के दिन का क्या कहना?
एक तो आज हम पंढरपुर पहुंच गए |
पंढरपुर धाम की जय |
वैसे पंढरपुर दंडकारण्य में है, यहाँ सीताराम की लीलाएं संपन्न हुई | पंढरपुर वैसे पंचवटी गोदावरी का तट और नासिक से दूर नहीं है | यह कथा नहीं है, जपा टॉक है | अच्छा होता कि कथा होती या कथा का समय होता |
सीता नवमी महोत्सव की जय |
जैसे राम का जन्म नवमी को हुआ और सीता का जन्म भी नवमी का ही है | आज के दिन नवमी के दिन दस लाख वर्ष पूर्व भी वह दिन नवमी का ही था जिस दिन जब राजा जनक खेत में (जैसे कुरुक्षेत्र कुरू का क्षेत्र ), जनक के क्षेत्र में, अपने क्षेत्र में हल जोत रहे थे, हल चला रहे थे तो उनका हल अटक गया उन्होंने कोशिश तो की होगी बैलो को और आगे बढ़ाने के लिए, हल को खींचने के लिए लेकिन यह संभव नहीं हुआ तो उनको पता चला कि उनका हल अटक गया है, एक संदूक बॉक्स था तो उसको जब वे निकाले और खोल कर देखें तो जय सीते |
इसी प्रकार सीता का प्राकट्य जन्म हुआ और राजा जनक को सीता प्राप्त हुई | पृथ्वी से प्रकट हुई या पृथ्वी से प्राप्त हुई तो सीता को अवनी या धरती पुत्री भी कहते है | इसीलिए ही जब कहना नहीं चाहिए आज तो प्राकट्य का दिन है लेकिन जब अंतर्ध्यान हुई सीता तो पुनः पृथ्वी ही प्रकट होती है सीतामढ़ी नामक एक स्थान है जहां हम गए थे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम जो है आप अगर राम को श्री राम समझना चाहते हो तो कोई दिक्कत नहीं है ऐसा श्रील प्रभुपाद कहा करते थे तो फिर हरे राम हरे राम में से जो राम है श्री राम है तो फिर हरे कौन हुई? सीतामैया की जय । तो जब हम
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
का जब कीर्तन करते है जप करते है तो हम सीता राम का भी जप करते है सीता राम को भी सम्बोधित करते है सीता राम को भी पुकारते है इसको याद रखीएगा । राम की राधा है तो क्या कहोगे? राम की राधा कौन है ? राम की राधा है सीता और कृष्ण की सीता है राधा । जब राम ही है कृष्ण तो सीता भी है राधा रानी।
parasya śaktir vividhaiva śrūyate
[Śvetāśvatara Upaniṣad 6.8]
परा भगवान परम परमेश्वर या परमात्मा की शक्ति विभिन्न प्रकार की है और सीता भी राम की शक्ति है, यह राम की आल्हदिनी शक्ति है, आल्हाद देने वाली शक्ति है | मैं सोच रहा था हममें और सीता में कुछ तो साम्य है कुछ तो समानता है सीता में और हममें। यह कैसे संभव है सीता में और हममें साम्य कैसे संभव है? तो सीता शक्ति है तो हम भी शक्ति है तो साम्य हुआ की नहीं।
धनुष शिव का धनुष जब जनक के दरबार में या महल में हुआ करता था उसके साथ सीता खेलती थी | जब सीता स्वयंबर का समय आया, उस समय राम भी कहीं दूर नहीं थे, वन में ही थे लक्ष्मण के साथ | विश्वामित्र उनको दर्शन करा रहे थे तो जनकपुरी भी गए, स्वयंबर का समय था तब उस धनुष को प्रत्यंचा चढ़ाने में श्री राम को यश मिला और उसी के साथ सीता हो गई राम की सीता। और उस समय ओर भी स्त्रियां उपस्थित थी वे भी मन में सोच रही थी, इच्छा जग रही थी कि क्या सीता को तो स्वीकार कर रहे हैं क्या कभी हमें भी स्वीकार करेंगे राम? लेकिन यह संभव नहीं था क्योंकि वे राम थे | एक पत्नी और एक वाणी श्री राम | तो भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम तो अपनी मर्यादा का प्रदर्शन किए है लेकिन जो जो महिलाएं स्त्रियां यह चाहती थी कि हमें भी श्री राम मिले पति के रूप में उनको फिर भविष्य में जब-जब भविष्य में श्री राम श्री कृष्ण के रूप में प्रकट हुए तो फिर जो वृंदावन में गोपीयों का प्रकार है -- मिथिला वासिनी गोपियाँ।
राम लक्ष्मण और सीता नवदीप पहुंचे | जब नवदीप में हम जाते है एक द्वीप है मोदरूम द्वीप। मोदरूम आनंद देने वाला | इस द्वीप में दास भक्ति का प्राधान्य है तो सबसे श्रेष्ठ दास कौन है हनुमान।
राम भक्त हनुमान की जय |
तो हनुमान भी वहां थे एक समय जब वहां राम लक्ष्मण और हनुमान भी थे तो राम हंसने लगे तो सीता पूछी क्या हुआ क्या हुआ अब हंस क्यों रहे हैं? ऐसा तो कोई दृश्य नहीं है कोई घटना घटी नहीं है जिसके कारण आप हंस सकते थे, हंस रहे हो तो उस समय राम कहे | भविष्य में मैं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट होऊंगा और मैं संन्यास लूंगा और उस समय तुम सीते तुम बनोगी विष्णु प्रिया। और मैं संन्यास लूंगा तो फिर यह कोई हर्ष की बात तो नहीं है इसमें तो विरह की बात है इसमें विरह की व्यथा ही मुझे उस लीला में प्राप्त होगी | तो वहां पर श्री राम बताते हैं कि वैसे एक मिलन का आनंद होता है, जिसे संभोग कहते हैं और दूसरा होता है विप्रलम्भ। विप्रलम्भ वैसे लगता तो विरह और व्यथा है यह विरह की व्यथा जला रही है | लेकिन विप्रलंभ अवस्था में अधिक आनंद का अनुभव होता है ऐसा श्री राम समझा रहे थे | तो होता यह है कि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु सन्यास लिए और फिर भविष्य में अंतर्ध्यान भी हुए | विष्णुप्रिया ने महाप्रभु के विग्रह की आराधना या महाप्रभु के विग्रह का अंग संग दर्शन प्राप्त किया और वे धामेश्वर महाप्रभु कहलाये । यहां विष्णु प्रिया महाप्रभु की आराधना, विग्रह की आराधना कर रही है।
राम का वनवास तो एक ही बार हुआ लेकिन सीता का वनवास दो बार हुआ और फिर सीता ने लव और कुश को जन्म दिया | बाल्मीकि मुनि के आश्रम में उन दिनों वह रहती थी | बाल्मीकि मुनि ने रामायण की रचना की | फिर सीता अंतर्ध्यान भी हो जाती है | तब राम को जब जब यज्ञ वगैरह करना होता था तो यज्ञ में भी अकेले नहीं रह सकते थे तो सीता की मूर्ति बनाकर अपने साथ वे रखते थे। जैसे विष्णुप्रिया श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के विग्रह की आराधना करती थी तो राम अपनी लीला में सीता के अंतर्धान होने के उपरांत सीता के मूर्ति की आराधना कहो या उस मूर्ति से प्रेम करते थे, आराधना करते थे, उसको साथ में रखते थे यह भी कुछ साम्य है। जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु दक्षिण भारत की यात्रा में गए तो मदुरई के पास एक आश्रम है सानिध्यमय वे भक्त अनुभव कर रहे थे कि यह श्रीराम ही है तो राम के भाव और राम की लीलाओं का स्मरण करने लगे तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने पूछा 12:00 बज गए कुछ राजभोग कुछ भोजन की तैयारी करो भोजन कहाँ है? तो राम भक्त कहने लगे लक्ष्मण जब कंदमूल फल ले आएगे और सीता रानी जब बनाएगी भोजन तब भोग लगाएंगे आपको या आपको प्रसाद खिलाएंगे |
तो उनके लिए यह जो राम भक्त थे उनके लिए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ही बन गए राम। और वह भक्त इस बात से बहुत चिंतित ही नहीं दुखी भी थे, इस बात से कि उस रावण ने सीता का अपहरण किया | इस बात को मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता, मैं तो जीवित भी नहीं रह सकता, मैं तो स्वयं को अग्नि में प्रवेश करके जलाना चाहूंगा। तो उस समय स्वयं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु समझा रहे थे नहीं-नहीं वह तो असली सीता को, आदी सीता को नहीं ले गया, वह छाया सीता को ले गया ऐसा समझाएं बुझाए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु, राम भक्त को फिर सांत्वना हुई और भी कुछ आगे हुआ।
सीता का जब अपहरण हुआ और उस समय राम और लक्ष्मण कुटिया पर लौट आए, देखे तो सीता नहीं है तो उस समय राम ने जो विरह का अनुभव किया है वह विरह वैसा ही रहा जैसा जब वृंदावन मे कृष्ण दूर चले गए या दिख नहीं रहे थे या मिल नहीं रहे थे जैसे गोपियां और राधा रानी खोज रही थी कृष्ण को खोज रही थी | पुकार रही थी
कृष्णा.........
कृष्णा.......
गोपियाँ पुकार रही थी या सभी से पूछ रही थी वृक्षों को पूछ रही थी आपने देखा है क्या? आपने देखा होगा तो जैसे यह गोपियां और राधा रानी कृष्ण की खोज कर रही थी वन में, वृंदावन में, वैसे ही खोज यहां रामलीला में राम करते है सीता की खोज। और वे पुकारते हैं
सीते......
सीते......
और पूछ रहे थे सभी से क्या आपने देखा है? आपने देखा होगा। तो यहां पर विप्रलम्भ स्वयं श्रीराम ही विप्रलम्भ अवस्था में सीता की खोज में | तभी रामायण के नायक राम और नायिका सीता है |
सीता महारानी की जय |
फिर वहां से अरण्यकांड से किष्किंधा कांड किष्कीँधा में जाना सीता को खोजते खोजते है और फिर हनुमान और सबको भेजना सीता की खोज में और जब समाचार हनुमान लेकर आए मेरी सीता कहाँ है समाचार the best news of श्रीराम for his life तब उनकी जान में जान आ गई | जब हनुमान ने बताया कि हां हां मैं जानता हूँ और यह समाचार सुनकर जब राम बेहद खुश हुए थे उस खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था | इसका संबंध राम का सीता से जो प्रेम है, सीता का महिमा भी है, सीता महात्मय भी है इसका कुछ अंदाजा भी हम लगा सकते हैं | राम प्रसन्न हुए इस बात से जब उस बात का पता चला कि सीता है और वह जीवित है और वह कहाँ है तो हनुमान को गले लगाया, आलिंगन दिया और वहां से फिर सुंदरकांड के बाद फिर अयोध्या कांड जो लंका में होना था जय श्री राम जय श्री राम असंख्य वानरों और भालू के साथ प्रस्थान कर रहे थे और बीच में आ गया सागर हिंद महासागर और उसको पार करना था तो उसे पार करने के लिए सारे जो प्रयास हो रहे हैं यह सारे प्रयास किस लिए कि पुन: राम का सीता के साथ या सीता प्राप्त हो, सीता के साथ मिलन हो, यह दर्शाता है यह संकेत मिलते हैं यह सारे जो प्रयास हो रहे हैं अरण्यकांड में किष्किंधा कांड में और युद्ध कांड तक लंका की ओर जा रहे हैं और रावण का वध हुआ है |
विजय दशमी महोत्सव की जय| राम की विजय
सीता को उस दिन पुनः प्राप्त किए और पुनः जो मिलन और उस मिलन का जो आनंद उसका वर्णन हम सुनते है पढ़ते है रामायण में और पुनः फिर जब अयोध्या की ओर जा रहे थे हनुमान, लक्ष्मण, विभीषण और बहुत से लोग जा रहे थे तो जब हिंद महासागर के ऊपर से भगवान उड़ान भर रहे थे तो राम बता रहे थे देखो देखो नीचे देखो उसने पुल देखा उसी के साथ श्रीराम समझा रहे थे, तुम को खोजने में तुम को प्राप्त करने में कितने सारे विघ्न आए और कितने सारे प्रयास हम को करना पड़ा उसमें से यह पुल बनाना भी हमारा एक प्रयास रहा।
तो पुनः अयोध्या लौटे श्री राम, यहां वैसे राम और सीता की प्रतीक्षा में सारी अयोध्या थी और जब वे श्री राम और सीता पहुचे अयोध्या में स्वागत हुआ, हमें यहां यह भी याद रखना चाहिए कि केवल राम का स्वागत नहीं हो रहा है साथ में सीता का भी स्वागत हो रहा है।
सीताराम की जय |
सीता को राम से अलग किया ही नहीं जा सकता | राम और सीता एक ही आत्मा है |
ekātmānāv api bhuvi purā deha-bhedaṁ gatau tau
CC Adi 1.5
लीला के लिए वे एक से दो हो जाते हैं | एक शक्तिमान और उनकी शक्ति
Śakti-śaktimator abhedaḥ [Brahma-sūtra]
ऐसा भी सिद्धांत है शक्तिमान से शक्ति को अलग नहीं किया जा सकता तब अयोध्या में पुनः सीताराम का स्वागत हुआ है और फिर अभिषेक हुआ राज्याभिषेक हुआ और वहां भी सीता और राम की स्थापना हुई है।
पुनः सीता अलग हो जाती है | राम अपने एक चर्चा सुनते हैं कि धोबी बात कर रहा है अपनी पत्नी से बात कर रहा है उसने स्वीकार किया होगा राम ने, रावण की लंका में इतने दिन रही राम से दूर थी राम ने तो स्वीकार कर लिया लेकिन मैं तुम्हें स्वीकार नहीं करूंगा | राम ने यह बात जब सुनी, राम जब ऐसी बातें सुनने के लिए रात में जाया करते थे भेष बदलकर। किसी के मन में कोई शंका नहीं होनी चाहिए इस प्रकार की शंका एक नागरीक के मन में ऐसी शंका थी उसका भी समाधान करने हेतु कहो राम ने फिर कहा लक्ष्मण को कहा ले जाओ इसको सीता को नहीं पता क्या हो रहा है और लक्ष्मण को ऐसा कार्य करना पड़ा सीता को रथ में बैठाया और उन दिनों सीता गर्भवती थी | वैसे लक्ष्मण नहीं चाहते थे ऐसा कार्य नहीं करना चाहते थे | जैसा राम कह रहे थे ऐसा नहीं करना चाहते थे लक्ष्मण और वैसे सीता ने लक्ष्मण से जो कहा था गोदावरी के तट पर पंचवटी में जाओ जाओ राम को तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है जाओ क्यों देरी कर रहे हो तुम्हारे मन में कोई और विचार या वासना है इसीलिए तुम नहीं जा रहे हो मैं कहती हूँ जाओ तो फिर बेचारे लक्ष्मण को जाना पड़ा।
Shlok anischamapi
नहीं चाहते हुए भी तो ऐसे कुछ कार्य लक्ष्मण को करने पड़े इस रामलीला में क्योंकि वे अनुज थे छोटे थे छोटे भाई थे | उन्होंने संकल्प लिया कि अगली बार जब मैं प्रकट होऊंगा छोटा भाई नहीं बनूंगा मैं दादा बनूंगा,, मैं बड़ा भैया बनूंगा, मैं अग्रज बनूंगा, अनुज नहीं बनूंगा तो कृष्ण की लीला में लक्ष्मण बन गए बलराम। और राम हो जाते हैं श्री कृष्ण।
तो लक्ष्मण सीता को दूसरी बार ले जाते हैं पहली बार राम और लक्ष्मण के साथ सीता गई और अब लक्ष्मण उसको ले जा रहे हैं तो बाल्मीकि मुनि के आश्रम के पास छोड़कर आए और वहीं पर सीता ने जन्म दिया लव और कुश को और वहीं पर अपने पिताश्री की लीलाएं कथाएं और नाम रूप गुण लीलाओं का श्रवण किया और शिक्षा प्राप्त किए बाल्मीकि मुनि से। और ग्रंथ की रचना की लेकिन इसका प्रचार-प्रसार कौन करेगा ऐसा बाल्मीकि सोच ही रहे थे इतने भी पिता के दो पुत्र बालक द्वार पर आए और bell बजाएं May I come in Sir? क्या हम आ सकते हैं? तो बाल्मीकि समझ गए मैं जो सोच रहा था कौन कौन करेगा प्रचार रामलीला का, यही तो बालक करेंगे राम ने ही भेजा उनको या भगवान ने ही भेजा उनको। तो यह विद्यार्थी बन जाते हैं बाल्मीकि जी के और इस कथा के पारंगत या निपुण हो जाते हैं और यह राम की कथा नहीं है यह रामायण, सीता की भी कथा है। सीता राम की कथा का प्रचार और प्रसार लव-कुश ने किया हुआ है कथा सुनाते सुनाते यह अयोध्या तक पहुंच जाते हैं और सीता राम की लीला कथा को श्रीराम सुनना चाहते हैं |
लव और कुश को दरबार में बुलाया जाता है दरबार खचाखच भर चुका है सारी रानियां है और सारी माताएं और मंत्री भी वहां पहुंच चुके हैं सीता राम की कथा इतनी अद्भुत मधुर है तो राम ने भी इस कथा को सुना और जो सुना रहे थे लव और कुश तो राम ने देखा कि इस कथा के जो वक्ता है और उनका जो आसन है मेरे आसन से कुछ नीचे ही है मेरा आसन और ऊंचा है तो राम काफी सावधानी से नीचे उतरे राम भी सोच रहे थे कि मैं अपराध कर रहा हूँ |
वे बड़े ध्यान से सुन रहे थे, आप कभी सोके सुनते हो |
सीता राम की कथा तो सर्वोपरि है और इस कथा के वक्ता का स्थान भी ऊंचा होना चाहिए तो फिर राम बड़े सावधानी से उठते हैं और नीचे उतर कर ऐसा स्थान ग्रहण करते हैं जो लव और कुश के स्थान से कुछ नीचे था निम्न था और फिर सभी सुनते रहे और रामायण की सीताराम की कथा उसके श्रोता भी राम ही हो गए, उसके श्रोता भी लक्ष्मण भी हो गए, उस कथा के श्रोता भरत और शत्रुघ्न भी हुए और माताएं भी हुई और यह राम की कथा सीता राम की कथा कहना होगा आज सीता नवमी है। यह कथा तब तक सुनाई जाएगी जब तक यह सूरज है और चांद है ऐसी नदियां जब तक बहती रहेगी |
चंद्रभागा मैया की जय |
और यहां जब तक पहाड़ रहेंगे तब तक इस लीला कथा का प्रचार प्रसार होता रहेगा। अमर रहे सीताराम और उनकी लीला कथा। सीता दयालु है, सीता की कृपा के बिना राम प्राप्त नहीं होते | अभी प्रार्थना करनी चाहिए सीता के चरणों में। ताकि हमें भी राम मिले या राम की कृपा मिलें बिना सीता कृपा के राम नहीं मिलते जैसे राधा की कृपा के बिना कृष्ण नहीं मिलते तो सीता की कृपा के बिना राम भी नहीं मिलते।
satyam satyam punah, satyam Satya evam puna puna,
Vina Radhiko Praade, mata Prasade Na Vidyte
- Narada Purana ( note - Guru Maharaj used sita at the place of Radhika)
सीता नवमी महोत्सव की जय
जनकपुर धाम की जय |
जनक जी की जय |
जनक जिनके कारण वह जानकी बनी और फिर श्रीराम की भार्या अर्धांगिनी बनी।
श्रील प्रभुपाद की जय |
उनकी कृपा के बिना भी कुछ संभव नहीं है।
यस्य प्रसादाद् भगवत्-प्रसादो
यस्याप्रसादान् न गतिः कुतोऽपि
ध्यायन् स्तुवंस् तस्य यशस् त्रि-सन्ध्यं
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
सीता की कृपा भी हमें गुरुजनों से मिलती है, गुरु की कृपा ही सीता की कृपा है।
उनकी कृपा से सीताराम हमें मिलेंगे