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जप चर्चा 25 अगस्त 2020 श्री श्री गुरू गौरांग जयत: हरे कृष्ण । 814 स्थानो से जप हो रहा है । सुना सभी ने ? हाँं , ताकेश्वरी सुना ? ठीक है , आपका पुन्हा स्वागत है । स्वागतम , सुस्वागतम ! जय राधे । वैसे हम राधा रानी के प्राकट्य के दिन , राधारानी के स्वागत की तैयारी कर रहे हैं । कर रहे हो ना ? क्या महात्मा विदुर ? हरे कृष्ण । हमको राधा चाहिए , हमको राधा चाहिए । राधा रानी की जय । राधा कृष्ण की प्रिया थी , कृष्ण भी स्वागत करेंगे । जब राधा रानी का जन्म होगा तब कृष्ण भी वहा राधा को मिलने के लिए आएंगे , हो सकता है राधा को बधाई देने के लिए आएंगे । कृष्ण भी राधा को चाहते हैं । वैसे कृष्ण तो अपने सभी भक्तों को चाहते हैं , आपको भी चाहते हैं किंतु राधा रानी को सबसे अधिक चाहते हैं । हरि हरि । कृष्ण आपको भी चाहते हैं , आनंदिनी को भी चाहते हैं , जयभद्रा को चाहते हैं किंतु राधा रानी कृष्ण के जीवन मे कुछ विशेष महत्व रखती है। राधारानी प्रथम क्रमांक पर है । हरि हरि । जय राधे । यह राधा रानी का महिमा है , जिस को केवल चाहते ही नहीं सबसे अधिक चाहते हैं तो फिर उनका कितना महिमा होगा । वह राधा सब गोपीयन में बड़ी है , और गोपियां सभी भक्तों मे बड़ी है । दास्य रस से भी , साख्य रस से भी और वात्सल्य रस से भी , माधुर्य रस से भी अधिक मधुर है । हरि हरि । उस माधुर्य का पान , मधुर रस का आस्वादन कृष्ण गोपियों के साथ और उनमें भी राधा के साथ करते हैं । सच्चिदानंद ! हम आपको बता चुके हैं , यह जो आनंद है , भगवान सत भी है , भगवान सच्चित भी है और आनंद भी भगवान है , आनंदघन भगवान है । सभी जीव भगवान को आनंद देते हैं , वह सभी से आनंद प्राप्त करके भगवान अधिक अधिक अधिक आनंदित होते हैं किंतु सबसे अधिक आनंद , आपकी भाषा में सुख , समाधान , शांति भगवान को गोपीयो से प्राप्त होता है और फिर राधा महाभावा ठाकुरानी , राधा रानी से प्राप्त होता है । जय राधे । इसीलिए उपदेशामृत में रूप गोस्वामी कहते है राधा का स्थल वह राधा कुंड भी विशेष महत्व रखता है या फिर वहा जो लीलाएं संपन्न होती है उस आनंद में कृष्ण गोते लगाते हैं । इतीदृक् स्व-लीलार्भिआनन्द-कुण्डे घोषं निमज्जन्तम् स्व-आखयापयन्त । (दामोदर अष्टकम) अनुवाद : ऐसी बाल्यकाल की लीलाओ के कारण वे गोकुल के रहिवासीओ को आध्यात्मिक प्रेम के आनंद कुंड में डुबो रहे है । इतीदृक् इस प्रकार की कृष्ण लीलाये संपन्न करके भगवान आनंद के कुंड भर देते है । आनन्द-कुण्डे घोषं निमज्जन्तम् स्व-आखयापयन्त उनकी सारी लिलाये ऐसी है । लीला संपन्न होती है तो लीला के आनंद के कुंड भर जाते हैं । ज्ञान का सागर उन आनंद के कुंडों में , आनंद के स्वरोवरो में , राधा कुंड सर्वोपरि है । रूप गोस्वामी कहते है , ऐसा प्रारंभ करते है वैकुंठ से भी श्रेष्ठ है मथुरा , क्यो ? क्योकी मथुरा में जन्म लिया है , वैकुंठ में भगवान का जन्म नहीं होता है तो जन्म लेने का आनंद लूटने के लिए भगवान मथुरा में जन्म लेते है । इसलीये मथुरा वैकुंठ से श्रेष्ठ हुआ फिर मथुरा से श्रेष्ठ है , केशी घाट, वंशि वट, द्वादश कानन । याहा सब लीला कोइलो श्रीनन्द नन्दन ।। (वैष्णव गीत , जय राधा माधव) अनुवाद : जहाँ कृष्ण ने केशी राक्षस का वध किया था , उस केशी-घाट की जय हो । जहाँ कृष्ण ने अपनी मुरली से सब गोपिकाओं को आकर्षित किया था, उस वंशी-वट की जय हो । व्रज के द्वाद्वश वनों की जय हो , जहाँ नन्दनंदन श्रीकृष्ण ने सब लीलायें कीं । द्वादश बारा वन जो है , यह बारा वन , वृंदावन जीसमे है यह मथुरा से श्रेष्ठ है क्योकी यहा भगवान लीला खेलते हैं । यह सारा वृंदावन लीला स्थल ही है ,मथुरा से भी श्रेष्ठ है । जन्म तो वहां लिया लेकिन लीला खेलने के लिए तुरंत मथुरा से प्रस्थान किया और वृंदावन पहुंचे , गोकुल पहुंचे और वहां मधुर लीला प्रारंभ हुई । और इन द्वादश वनो से भी गोवर्धन श्रेष्ठ है ऐसा रूप गोस्वामी ने उपदेशामृत में लिखा है । क्यों ? वैसे यह गोवर्धन भी एक विशेष लीलाओ का स्थळ भी है और इस गोवर्धन को भगवान ने अपनी उंगली पर धारण किया । हरि हरि । हन्तायमद्रिरबला हरिदासवर्यो यद्रामकृष्णचरणस्परशप्रमोद: । मानं तनोति सहगोगणयोस्तयोर्यत् पानीयसूयवसकन्दरकन्दमूलै: ।। (श्रीमद भागवद 10.21.18 ) यह गोवर्धन पर्वत समस्त भक्तों में सर्वश्रेष्ठ है । सखियों, यह पर्वत कृष्ण तथा बलराम के साथ ही साथ उनकी गौवों, बछडों तथा ग्वालबालों की सभी प्रकार की आवश्यकताओं-पीने का पानी, अति मुलायम घास, गुफाएँ, फल, फूल तथा तरकारियों-की पूर्ति करता है । इस तरह यह पर्वत भगवान् का आदर करता है । कृष्ण तथा बलराम के चरणकमलों का स्पर्श पाकर गोवर्धन पर्वत अत्यन्त हर्षित प्रतीत होता है । हन्तायमद्रिरबला देखो देखो , या बुलाओ ऐसा गोपिया कह रही हैं कि देखो गोवर्धन को देखो । हरिदासवर्यो हरिदासो में यह गोवर्धन श्रेष्ठ है । गोप्यः उचः गोपियों ने कहा कि गोवर्धन श्रेष्ठ है । हरिदासवर्यो यद्रामकृष्णचरणस्परशप्रमोद: जब कृष्ण बलराम यहा लीला खेलते हैं , कभी चढ़ते भी है , कभी गोवर्धन पर चलते हैं आपके चरणों के स्पर्श से यह गोवर्धन प्रमोद , आनंद का अनुभव करता है । इसलिए यह गोवर्धन श्रेष्ठ है , हरिदासवर्यो फिर यहीं पर या इसी गोवर्धन को भगवान ने धारण भी किया । गिरिराज धरण की जय । यह गोवर्धन धारण की लीला है एक विशेष लीला और विशेष अनुभव रहा है , ब्रज वासियों को ऐसा अनुभव , ऐसा आनंद और किसी लीलाओं ने नहीं प्रदान किया था । ऐसी कौन सी घटना घटी जब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को धारण किया , सारे ब्रजवासी रात और दिन 7 रात्रि और 7 दिन इकट्ठे रहे , और कृष्ण का सानिध्य उनको मिला , कृष्ण के मुख्य मंडल के सौंदर्य का पान वह कर रहे थे और कई प्रकार के आधार प्रदान अखंड हो रहा था । नहीं तो अष्टकाली लीला में , प्रात काल के कुछ घंटे नंद बाबा यशोदा को , फिर शाम को बीच-बीच में कुछ घंटे ग्वाल बालको को , फिर मध्यान के समय राधा और गोपियों को राधा कुंड में और फिर अप्राण में पुन्हा गोचर लीला इस तरह शाम को नंद बाबा यशोदा को इसलिए किसीको भी 24 घंटे सानिध्य प्राप्त नहीं होता था किंतु जब कृष्ण ने गोवर्धन धारण किया तब वृंदावन का हर जीव वहां पहुंच गया , हर जीव ने उस गोवर्धन की छत्रछाया में आराम और कृष्ण के सानिध्य में आनंद लूट रहे थे । जब सारे बृजवासी एक साथ , अखंड दर्शन और लीला , सानिध्य प्राप्त कर रहे थे , ऐसी वृंदावन की और कोई लीला है ? यही कारण है । गोवर्धन की जय । ऐसा रूप गोस्वामी कहते हैं , गोवर्धन द्वादश काननों से श्रेष्ठ है । वैसे गोवर्धन को ब्रज का तिलक भी कहा है , जैसे रघुकुल तिलक , श्री राम ! वैसे गिरिराज गोवर्धन ब्रज की तिलक है और फिर गोवर्धन से भी श्रेष्ठ एक स्थान है और वह है , राधा कुंड । राधा कुंड की जय । बस इस राधा कुंड से और कोई स्थान श्रेष्ठ नहीं है । राधा कुंड सर्वोपरि है और राधा कुंड जो राधा का कुंड है भगवान को उतना ही प्रिय है जितनी राधा प्रिय है । कृष्ण को राधा प्रिय है , कृष्ण के लिए राधा सर्वोपरि है , सर्वश्रेष्ठ है । राधा का कृष्ण की लीलाओं में , जीवन में कहो सर्वोत्तम स्थान है । वही स्थान राधा कुंड का भी है , जितना प्रेम कृष्ण का राधा कुंड से है उतना ही प्रेम में राधा से है क्योंकि यह राधा का ही कुंड है । आराधनानां सर्वेषां विष्णोराराधनं परम्। तस्मात्परतरं देवि तदीयानां समर्चनम् ॥ (चैतन्य चरितामृत , मध्यलीला 11.31) अनुवाद : "शिवजी ने दुर्गा देवी से कहा : हे देवी, यद्यपि वेदों मेंदेवताओं की पूजा की संस्तुति की गई है, लेकिन भगवान् विष्णु की पूजा स्वोपरि है। किन्तु भगवान् विष्णु की सेवा से भी बढ़कर है उन वैष्णवों की सेवा, जो भगवान् विष्णु से सम्बन्धित हैं।" तदीयानां समर्चनम् कृष्ण की राधा फिर राधा का कुंड , राधा कुंड । कृष्ण को राधा तो प्रिय हैं ही और साथ ही साथ उतना ही कृष्ण के लिए राधा कुंड प्रिय है । ब्रजमंडल की या गोलोक की , वृंदावन की सर्वोत्तम लीलाएं यहां राधा कुंड में संपन्न होती है । जय राधे और जय राधा कुंड । यह राधा कुंड शाश्वत ही है । ऐसा समय नहीं था जब राधा कुंड नहीं था । जब राधा ने कृष्ण को कहा था , हम वृंदावन को जाना है , हमें वहां प्रकट होना है तो अगर वहां जमुना नहीं है तो मैं नहीं जाऊंगी , वहां गोवर्धन नहीं है तो मैं नहीं जाऊंगी , वहां राधा कुंड नहीं है तो मैं नहीं जाऊंगी , तब कृष्ण ने कहा नहीं , नहीं , नहीं , वहां सब कुछ है । वहां भगवान ने सब उत्पन्न किया या अपना धाम प्रकट किया ऐसा भी हम सुनते हैं , पढ़ते हैं और फिर राधा-कृष्ण प्रकट हुए । लेकिन समझ तो यह है , सिद्धांत कहो या तत्व कहो धाम शाश्वत है , तभी ऐसी लीलाएं है राधा कुंड आविर्भाव तिथि भी है । बहुलाष्टमी , कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की पहली अष्टमी , बहुलाष्टमी है । दूसरी कार्तिक की अष्टमी गोपाष्टमी है । बहुलाअष्टमी के मध्य रात्रि के समय यह राधा कुंड का प्राकट्य हुआ , यह जब कहते हैं तो मुझे उस बात का भी स्मरण होता है और उसी दिन 1972 में श्रील प्रभुपाद ने हम कुछ शिष्यो को दीक्षा दि और मैं भी उसी दिन दिक्षित हो गया । हरी हरी । राधा कुंड की जय । मेरे दिव्य जन्म का संबंध राधा कुंड के प्राकट्य दिन से भी प्रभुपाद ने जोड़ दिया । जय राधे । उसी रात्रि को श्याम कुंड , राधा कुंड इन कुंडो का प्राकट्य हुआ ऐसी भी लीला है । अरीष्ठ नाम का असुर , राधा कृष्ण और गोपियां ऐसे इकट्ठा होने लगे थे , रासक्रीडा संपन्न होने की तैयारी हो रही थी इतिने में अरिष्टासुर का आगमन हुआ और फिर भगवान की रासक्रीडा में उसने विघ्न डाला । अरिष्ठासुर जिस प्रकार से आया तब हरी के और वह दौड़ता तब उसके साथ धरणी कंप हो रहा था । आप कल्पना कर सकते हो उसने वहा कितना भय उत्पन्न न किया होगा । गोपीया भी भयभीत हुई और भी जन जो वहा थे उन सभीको भय से मुक्त करने के लिए कृष्ण ने अरिष्ठासुर का वध किया और फिर विघ्नों को हटा दिया तब कृष्ण रासक्रीडा के लिए तैयार थी किंतु राधा और गोपियों ने कहा कि नहीं , नहीं , नहीं दूर रहो , दूर रहो , तुम पापी हो , तुमने बैल का वध किया ! बैल तो धर्म का प्रतीक होता है , उसका वध करके , हे कृष्णा तुमने याधार्मिक कृत्य किया हुआ है , तुम दूषित हो , तुम अपवित्र हो , अस्पृष्य हो , तुम दूर रहो । ऐसी भी लीला हुई फिर राधा और गोपियों ने कहा था अभी तुम्हे संसार की जितनी भी पवित्र नदीया है , पवित्र कुंड है उन सभी में स्नान करना होगा , और फिर जब पाप से मुक्त हो जाओगे तो फिर वापस आ जाना , फिर हम तुम्हारे साथ रासक्रीडा खेलने के बारे में सोचेंगे । तब फिर कृष्ण ने युक्ती पूर्वक यह किया , सारे संसार भर की नदिया और कुंड कृष्ण के समक्ष प्रकट हुए । गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु।। अनुवाद : हे पवित्र नदियों गंगा और यमुना, और गोदावरी और सरस्वती, हे पवित्र नदियों नर्मदा, सिंधु और कावेरी; कृपया इस जल में उपस्थित रहें (और इसे पवित्र बनाएं) नदी अब प्रकट हुई कुंड प्रकट हुए और कृष्ण ने कहा कि हम आपकी सहायता कर सकते हैं तब कृष्ण ने अपनी एड़ी से एक गड़ा बनाया और धीरे-धीरे वह गड्ढा एक विशाल कुंड बन गया बाद में भगवान ने सारी नदियों को अनुमति दे दि कि आप अभी कुंड में प्रवेश कर सकते हैं और अपने जल से इस कुंड को भर दीजिए फिर श्याम कुंड जल से भर गया या फिर शाम ने ही बनाया कुंड को फिर कुंड जल से भर गया उसके बाद उसका नाम पड़ा श्याम कुंड उसके बाद उस कुंड में भगवान श्रीकृष्ण ने स्नान किया। बाद में कहा कि हां मैं अभी हो गया पवित्र मेरे पाप सारे धूल गए कृष्ण कहते हैं तो ठीक हैं मैं भी तैयार हूं अभी तुम भी मुझे स्पर्श नहीं कर सकती क्योंकि तुम भी पापी हो तुमने झुटा दोषारोपण लगाया मुझ पर मैंने तो.... “परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।” (भगवद्गीता 4.8) अनुवाद : भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ । भक्तों की रक्षा के लिए मैंने उस दुष्ट का संहार किया उस अरिष्ठासुर का वध किया मैंने तो धार्मिक कृत्य किया मैंने तो सब के कल्याण हेतु ये कृत किया था लेकिन तुमने कहा कि मैं पापी हूं पाप किया हैं इतना सारा दोषारोपण इसलिए तुम पापी हो ऐसा सोचने वाली तुम दूर रहो मेरे पास नहीं आना रासक्रीडा तब तक नहीं होगी जब तक तुम संसार के सारे पवित्र नदियों में गुंडों में तुम स्नान करके लौट आओ मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा इस प्रकार गोपियों और राधा के समक्ष बहुत बड़ी आपत्ति खड़ी हुई। लेकिन क्यों नहीं वह सब भी तैयार थी तब उन्होंने कुंड बनाया खुदाई की अपने कंगनों से ही खुदाई कर रही थी अपने कंगनों को तोड़ा और उससे ही खुदाई करने लगी उसके बाद बहुत समय बीत गया उसके बाद कुंड तो बन गया पर जल से भरेंगे कैसे तब वो सब मानसरोवर पहुंच जाती है गोवर्धन में मानसरोवर है या उसे मानस सरोवर भी कहा जाता है उस सरोवर से जल लाना प्रारंभ किया उन्होंने मानसरोवर से अपने कुंड तक वो सब को गोपिया खड़ी हो गई 1 पंक्तियों में एक के बाद एक एक के बाद एक एक के बाद एक ऐसे एक गोपी मानसरोवर से अपना घड़ा जल से भर देती थी वह दूसरे गोपी के पास देती थी ऐसे करते वह कुंड तक जल आ पहुंचा था जो राधा कुंड के तट पर गोपिया खड़ी थी वह जल कुंड में भर रही थी कुंड इतना विशाल था कि कुंड भरने में बहुत देर लग रही थी न जाने सदीया बीत जाती इस कुंड को भरते भरते फिर कृष्ण ने प्रस्ताव रखा कि मेरा कुंड तो पवित्र नदियों के जल से भरा ही है क्योना मेरे कुंड का जल तुम्हारे कुंड में आ जाए और तुम्हारे कुंड को भर दे। शुरुआत में तो गोपियां और राधा तैयार नहीं थी लेकिन बाद में मान गई तब मध्य रात्रि के समय श्याम कुंड के जलने राधा कुंड में प्रवेश किया जल से उस कुंड को पूरी तरह से भर दिया फिर सभी ने मिलकर स्नान किया अब वो सब तैयार थे कृष्ण के साथ रासक्रीडा करने के लिए उसके बाद रासक्रीड़ा संपन्न हुई राधा कुंड के तट पर और फिर कृष्ण ने कहा कि तुम्हारा कुंड प्रसिद्ध होगा मेरा भी कुंड है श्याम कुंड किंतु मेरे कुंड से तुम्हारे कुंड की महिमा अधिक होगी। तुम्हारा कुंड अधिक प्रसिद्ध होगा ऐसे कृष्ण ने घोषणा की और हम अनुभव भी करते हैं वैसे राधाकुंड है ही सर्वोपरि जैसे श्रील रूप गोस्वामी समझाएं हैं गोलोक या गोकुल वृंदावन में सर्वोच्च स्थान कोई है राधा का कुंड जिस स्कूल में या कुंड के तट पर जो लीलाए संपन्न होती है और जो प्रतिदिन होती है मध्यान् के समय राधा कुंड के तट पर मध्यान् लीला अष्ट कालीन लीलाओ में से प्रात काल के 10:30 बजे से लेकर 3:30 बजे तक यह जो कालावधी है काफी लंबा समय है अष्टकाल में और समय है या काल है लेकिन वह कम समय वाले हैं लेकिन यह काल थोड़ा अधिक लंबा है तो इस मध्यान् काल की नित्य लीला प्रतिदिन संपन्न होती है राधा कुंड के तट पर यह राधा कुंड स्थलों में भी सर्वश्रेष्ठ है और सभी लीलाओं में भी यह माधुर्य लीला का श्रृंगार की लीलाएं राधा कृष्ण गोपियों की लीलाये जो राधा कुंड के तट पर होती है वह लीलाये भी सर्वोपरि है लीला स्थली और वहां पर संपन्न होने वाली लीला यह दोनों भी सर्वोपरि है । “मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय | मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव || (भगवद्गीता 7.7) अनुवाद : हे धनञ्जय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है | जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है । मुझे से कोई श्रेष्ठ नहीं है ऐसा भगवान ने भगवद गीता में कहा है वैसे ही राधा कुंड से और कोई स्थान श्रेष्ठ नहीं है ना राधा कुंड के तट पर जो लीलाएं संपन्न होती है उनसे अधीक श्रेष्ठा कोई लीला नहीं है इसका सर्वश्रेष्ठ कारण मतलब राधा ही है ऐसी ऐसा विशेष व्यक्तित्व है राधा रानी की जो श्रेणी है वही है सर्वोपरि राधा को अद्वितीय भी कह सकते हैं दूसरा कोई नहीं है राधा रानी जैसा मत्तः परतरं नान्य कृष्ण ने कहा है भगवद्गीता में और राधा भी कह सकती हैं मत्तः परतरं नान्य मुझसे भी कोई श्रेष्ठ नही है राधा की आराधना करते हैं इसीलिए राधा कहलाती हैं आराधिकहः अणया आराधिकहः नुनम कृष्ण कि आराधना करने वाली इसीलिए राधा राधे राधे राधे जय जय श्री राधे राधे राधे राधे जय जय श्री राधे तो ऐसी हैं राधा रानी ऐसे राधा रानी का जन्मदिन अब एक ही दिन बाकी है और यह जन्म मध्यान के समय दिन में होगा कृष्ण का जन्म मध्य रात्रि वैसे ही राधा रानी का जन्म मध्यान के समय सम्पन्न होगा राधा अष्टमी के दिन वो दिन दूर नहीं है राधा रानी आ रही है हरि हरि जप करते रहिए (केशव प्रभु जी को संबोधित करते हुए) जप करते रहो और फिर राधा अष्टमी की भी तैयारी देखो अपने-अपने मंदिरों में या अपने अपने घरों में या फिर अपने अलग-अलग समूह है जैसे भक्तिवृक्ष वैसे सब मिलकर इकट्ठे होकर जन्माष्टमी मनाई वैसे ही या फिर अभी मंदिरों में संभावना है कि ऑनलाइन सभी प्रोग्राम ऑनलाइन होंगे। (परम करुना प्रभूजी को संबोधित करते हुए) नागपुर में कैसी राधाष्टमी है ऑनलाइन है कि प्रभु जी ने उत्तर देते हुए कहा केवल ऑनलाइन या मंदिरों को अभी तक कार्यान्वित रूप से नहीं खोला गया है रावण राज चल रहा है और इस राज में सब तो खुल रहा है पर मंदिर नहीं खुल रहे हैं मंदिर अति आवश्यक नहीं है शराब की दुकानें खुल गई शराब की नदियां बह रही है शराब की होम डिलीवरी हो रही है सरकार को बहुत दया आई हमें शराब चाहिए हमें शराब चाहिए शराब जो खराब है उसको अत्यावश्यक मानकर सरकार ने खोल दिया और जहर का पान तो पिला रही है सरकार पर अमृत के पान पर प्रतिबंध लगाया है देखिए जमाना बदल गया है ऐसा सुनने में आता है पर अभी दिख भी रहा है दिख रहा है कि नहीं अब कहां है रामराज यह तो रावण राज है तो ऐसे स्तिथि में जो कुछ भी अनुकूल होगा वह हम करेंगे ज्यादातर ऑनलाइन ही हमारे इस्कॉन मंदिरों में मनाएंगे और आप भी अपने घरों में मना सकते हो राधाअष्टमी का उत्सव मंदिर के साथ भी और अपना आप अलग से भी मना सकते हो हां फिर आप करोगे (महाराज जी एक भक्त को संबोधित करते हुए) कीर्तन करिए और कल के उत्सव के लिए क्या आप तैयार हो देखिए क्या क्या कर सकते हो वो करिये सब कुछ करो राधारानी का हैप्पी बर्थडे टू यू राधे तब कौन आएंगे कन्हैया पहुंच जाएंगे जब राधा का जन्म हुआ था तब कन्हैया पहुंचे थे आप भी मनाएंगे राधाष्टमी तो मान लेना कि कृष्ण पहुंचे हैं इस उत्सव में वी वी वी आई पी आ जाते हैं आमंत्रित होते हैं कृष्ण भी आते हैं तब तो बलराम भी आए थे नंद यशोदा भी पहुंची थी और कीर्तिदा वृषभानु तो थे ही उन्हीं की ही पुत्री हैं वैसे तो सारा ब्रज पहुंचा था मैसेज जब कृष्ण जन्मे थे तब , आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की । नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥ सारे ब्रजवासी पहुंचे कृष्ण जन्माष्टमी के दिन राधा अष्टमी के दिन भी सारा व्रज रावल गांव पहुंचा था राधा को बधाई देने के लिए राधा के स्वागत के लिए और राधा की विशेष दया की दृष्टि होंगी आपके ऊपर राधा रानी अधिक प्रसन्ना कल जब जन्म होगा तब बड़ी प्रसन्न होंगे राधा रानी प्रसन्न होकर वह आप पर कृपा की दृष्टि की वृष्टि करें ऐसी राधा कृष्ण के चरणों में प्रार्थना । ठीक है , पुनः कल मिलते हैं । हरे कृष्ण । गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल बोलो श्री राधे श्याम

English

25 August 2020 Day 6 - Radha-kunda - The Supreme place in the universe. Hare Krsna! Today devotees from 934 locations are chanting with us. I welcome you all. I hope you all are busy with preparations for Radhastami Festival. Someone is preparing a garland to welcome Srimati Radharani. So tomorrow is Radhastami. Krsna loves all His devotees, but above all He loves Srimati Radharani the most. She has a special place in His heart. Srimati Radharani is serving Krsna in Madhurya Rasa, and this Rasa is higher than Dasya, Sakhya or Vatsalya. Krsna is Sac-cit- anand - Truth, eternal and blissful. He gives and gets pleasure from all the living entities, but He gets the highest bliss from the Gopis. Even among them, the highest bliss and pleasure comes from Maha bhava, Radha Thakurani. In Nectar of Instruction Rupa Goswami said that Radha-Kunda is a topmost place in the universe. itīdṛk sva-līlābhir ānanda-kuṇḍe sva-ghoṣam nimajjantam ākhyāpayantam tadīyeṣita-jñeṣu bhaktair jitatvam punaḥ prematas tam śatāvṛtti vande Translation Those super excellent pastimes of Lord Krishna's babyhood drowned the inhabitants of Gokula in pools of ecstasy. To the devotees who are attracted only to His majestic aspect of Narayana in Vaikuntha, the Lord herein reveals: “I am conquered and overwhelmed by pure loving devotion.” To the Supreme Lord, Damodara, my obeisances hundreds and hundreds of times. [Damodarastakam] Radha-kunda is a very special place because Krsna performs many pastimes with Radharani there, and by performing such pastimes He fills ponds and lakes with bliss. In such lakes filled with bliss, the highest is Radha-kunda. Mathura is higher than Vaikuntha. Why? Because Krsna is never born in Vaikuntha, but He takes birth in Mathura. Vrindavan or the 12 forests of Vrindavan are greater than Mathura. Why? Though He is born in Mathura, but to perform His sweet pastimes He left Mathura and went to Vrindavan. Greater than Vrindavan is Govardhan. Why? Srila Rupa Goswami says that Govardhan has a special importance. hantāyam adrir abalā hari-dāsa-varyo yad rāma-kṛṣṇa-caraṇa-sparaśa-pramodaḥ mānaṁ tanoti saha-go-gaṇayos tayor yat pānīya-sūyavasa-kandara-kandamūlaiḥ Translation Of all the devotees, this Govardhana Hill is the best! O my friends, this hill supplies Kṛṣṇa and Balarāma, along with Their calves, cows and cowherd friends, with all kinds of necessities — water for drinking, very soft grass, caves, fruits, flowers and vegetables. In this way the hill offers respects to the Lord. Being touched by the lotus feet of Kṛṣṇa and Balarāma, Govardhana Hill appears very jubilant. [ŚB 10.21.18] Gopis also say that among the Hari dasa (servants/devotees of Krsna), Govardhan is the highest, because He is always getting the blissful touch of Krsna and Balarama's lotus feet. rāma-kṛṣṇa-caraṇa-sparaśa-pramodaḥ Krsna also lifted this Govardhan in His special pastime which was a special experience for all the Vraja-vasis. No other pastime gave the Vraja-vasis so much bliss and pleasure because in this pastime all the Vrajavasis got an opportunity to associate with Krsna for 7 days, 7 nights without break. Otherwise during His regular /daily pastimes, He would be with Gopa sakhas for early morning pastimes, go to Radharani and sakhis for noon pastimes and Yasoda and Vraja-vasis for evening pastimes. But here they got uninterrupted association for a full 7 days and 7 nights.This is the reason why Giriraja is greater than the 12 forests. Govardhana is also called the Tilak of Vraja-mandal. Just like Lord Rama is the Tilak of the Raghu dynasty. Higher than Govardhan is Sri Radha-kunda. That's it. There's nothing higher than that. Why? mattah parataram nanyat kincid asti dhananjaya mayi sarvam idam protam sutre mani-gana iva Translation O conquerer of wealth [Arjuna], there is no Truth superior to Me. Everything rests upon Me, as pearls are strung on a thread. [BG 7.7] This Kunda is equally dear to Krsna as is Srimati Radharani. Srimati Radharani is the dearest and so is this Kunda. This Kunda belongs to Srimati Radharani, that is why it is loved by Krsna as much as He loves Srimati Radharani. The highest pastimes also happen here at Radha-kunda. Radha-kunda is eternal. There was no time when Radha-kunda was absent. Srimati Radharani said, “If We have to go to the material world than I won't go to a place where there is no Yamuna, no Govardhana, no Vrindavan or no Radha-kunda. But Krsna said, “No, no everything is there already.” The midnight of the eighth moon of the dark half of the lunar month of Kartik, is the appearance day of Sri Radha-kunda. This also reminds me that on this same day in 1972, Srila Prabhupada accepted me as his disciple by initiating me. There is a pastime of the appearance of Sri Radha-kunda. One day all the preparations for the Rasa Lila were going on and it was about to start, but suddenly the bull demon Aristhasur came and created a lot of disturbance. He was huge in size and as he moved from one place to other, the earth shook. The Gopis were all frightened and panic-stricken. Seeing this, Krsna killed the demon. But then when He returned after killing him, the Gopis denied touching Him and said that He had become contaminated as He had killed a bull which is the symbol of dharma. They said, “If You want to be with us, You first need to bathe in all the holy rivers of the world.” Therefore, Krsna decided to call all the holy rivers there instead of going to all the places. He pressed His heel in the ground and this turned into a big Kunda. He then ordered all the rivers to assemble there. gange ca yamune caiva godavari sarasvati , narmade sindho kaveri jale ‘smin sannidhim kuru Translation ‘May water from the holy rivers Ganga, Yamuna, Godavari, Sarasvati, Narmada, Sindhu, and Kaveri kindly be present.’ One by one all the holy rivers came in the kunda. Krsna took a dip in that kunda. But after coming out Krsna said, “Now you can't touch Me, because You favoured the demon, Adharma. I killed him to protect you all, and because he was adharma, the demon, buyou tried to punish me for this pious deed. Now you need to take a bath in all the holy rivers to purify yourselves.” Listening this, all the Gopis started digging with their bangles. After a very long time they finally created the kunda, but now it was the time to fill it. So they went to the Mana Sarovar, stood on the way in a chain and started filling pots from Mana sarovar passing it till Radha-kunda and filling it pot by pot. But it would take ages to fill that large kunda. They were tired, so Krsna suggested, “My Kunda is already filled with the waters of all the holy rivers, so why don't you let the water flow from my kunda to your kunda.” Then the water was allowed to flow from Krsna's Kunda to Radha's kunda. After it was filled the Gopis took bath in Radha-kunda and then the Maha Rasa Lila took place. Being extremely pleased, Krsna blessed Srimati Radharani that Her kunda will become famous by the name Radha-kunda and will be more famous than His own kunda. All the pastimes of Krsna are divided into 8 parts of the day. They are called Asta-kaliya-lila. The longest part among these is the noon part which is from 10:30 am to 3:30 pm. This pastime is eternally happening at Radha-kunda. Hence, Radha-kunda is the highest spiritual transcendental place in the universe and Radha-kunda pastimes are the highest pastimes.There is no one higher or better than Srimati Radharani. Krsna says in Bhagavad-Gita that there is no one equal or higher than Me and same can also be said about Srimati Radharani mattah parataram nanyat kincid asti dhananjaya Such is our Srimati Radharani and the birthday of such a Srimati Radharani is tomorrow. It will be celebrated at noon. Keep chanting and participate in the preparations of Radhastami in your local temples, communities, groups or homes. Maybe gatherings will be online since in many places temples have not been opened. It is the rule of Ravana. Saloons are opening, Beer shops are opening, but temples are closed. Beer is considered to be so important that it is being home-delivered. Poison is being home delivered, but places of nectar distribution are closed. But we don't stop. We can celebrate all the festivals at home. Will you celebrate at home? Perform Kirtana. Think of what all can be done. Try to do everything that you can do for Her. Then Krsna will come for the celebration of Radhastami at your home. If you are celebrating Radhastami then Krsna will come. Like the VVIPs come for the festivals, so will Krsna, Balarama and all Vraja-vasis will come to your home. Upon Krsna's appearance all the Vraja-vasis went to his home in Gokul and upon Radha's appearance they all visited Vrsabhanu Maharaja's place in Raval. Punah Milami, (We will meet again tomorrow)! Gaur Pramanande! Radhey Shyam!

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