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जप चर्चा
दिनांक 31 October 2020
हरे कृष्ण!
आज 851 स्थानों से प्रतिभागी सम्मिलित हैं। हल्की सी वृद्धि हो चुकी है। इसीलिए इस बात का स्वागत है। अभिनंदन है। हरि! हरि!
'हैप्पी कार्तिक टू ऑल' आप सभी को कार्तिक महोत्सव की शुभकामनाएं! कार्तिक मास में आपके सारे कार्यकलाप मंगलमय हो।आपके सारे कार्यकलाप सुसम्पन्न हो और विशेषतया साधना भक्ति। आप अध्यात्मिक समृद्ध हो। जब हम समृद्धि शब्द के विषय में सोचते अथवा कहते हैं तब तुरंत हम धन प्राप्ति, संपत्ति प्राप्ति या धनाढ्य होने के सम्बंध में सोचते हैं किन्तु हम चाहेंगे कि आप दिव्य दृष्टि से धनी हो। वैसे भी संत महात्मा कहते रहते हैं, 'धन्य हो! धन्य हो!' अर्थात आप धनी हो या आप धन्य होइए अथवा धनी बनिए।
वैसे धनी शब्द का सरल सा अर्थ कहा जाए तो जिसके पास धन है, उसको धनी कहते हैं। धन का मालिक धनी। जैसे सुख का मालिक सुखी और जिसके जीवन में दुख ही दुख है वह दुखी कहलाता है। ऐसे ही शब्द बन जाते हैं। ऐसे कई सारे असंख्य शब्द है। जिसके पास धन है, उसको धनी कहते हैं अर्थात 'धनवान ।' ऐसी भी एक कहावत है जिसके पास अधिक धन धान्य है, वह धनी है। जिसके पास अधिक गाय हैं अर्थात अधिक से अधिक गायों का मालिक है उसको भी धनी कहते हैं। वे भी धनी होंगे। किन्तु हम धन को भी दिव्य बना सकते हैं। हरि! हरि!
वैसे भी गाय तो दिव्य ही होती हैं। गायों का होना ही दिव्य है। नंद महाराज भी धनी थे , वह वैश्य थे। उनका कार्य अथवा उनका जॉब डिस्क्रिप्शन(विवरण) कृषि, गोरक्षा, वाणिज्य था। नंद महाराज नौ लाख गायों के मालिक थे। वह निश्चित ही धनी थे। वह धनवान थे।
ब्रज-जन-पालन, असूर-कुल-नाशन,
नन्द-गोधन-रखवाला।
गोविन्द माधव, नवनीत-तस्कर,
सुन्दर नन्द-गोपाला॥3॥ ( श्रील भक्ति विनोद ठाकुर द्वारा रचित वैष्णव गीत)
अर्थ:- कृष्ण व्रजवासियों के पालन कर्त्ता तथा सम्पूर्ण असुर वंश का नाश करने वाले हैं, कृष्ण नन्द महाराज की गायों की रखवाली करने वाले तथा लक्ष्मी-पति हैं, माखन-चोर हैं, तथा नन्द महाराज के सुन्दर, आकर्षक गोपाल हैं।
यह सारी नौ लाख गाय तो कृष्ण के बाप की थी, कृष्ण की नहीं थी। कृष्ण केवल उनकी रखवाली करते थे। गाय तो नंद महाराज की थी और धान्य भी था। जब कृष्ण का पहला जन्मोत्सव अर्थात जिसको हम नंदोत्सव भी कहते हैं, जब वह मनाया जा रहा था तब नंद महाराज अपने खेतों में जो उत्पन्न धान है (जैसे तिल एक धान है। तिल से तेल बनता है।) उन्होंने तेल के कई सारे पहाड़ खड़े किए थे। और वह ब्राह्मणों को तिल का दान दे रहे थे। वह ब्राह्मणों को भी गायों का भी दान दे रहे थे। उनके पास गाय के रूप में धन था। 'हे ब्राह्मण!' 'गाय ले लो,' 'गाय ले लो' और साथ ही साथ वह ब्राह्मणों को धान्य तिल का भी दान दे रहे थे। ब्राह्मणों द्वारा तिल का बहुत प्रयोग होता है। जब यज्ञ होता है तो उसमें भी 'स्वाहा', 'स्वाहा' 'स्वाहा' तिल का उपयोग होता है। ब्राह्मण यज्ञ करते रहते हैं। तिल से तेल बनता है। ब्राह्मणों, सभी गृहस्थों .. जिसके पास अधिक धान है अथवा जिसके पास अधिक गाय हैं, वे भी धनी है। हरि! हरि! लेकिन मैं जो सोच रहा था कि आप धन्य हो, समृद्ध हो, क्योंकि आप अधिक से अधिक
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
इस मास में करोगे। इस हरे कृष्ण महामंत्र को अपनी बैंक में डिपाजिट करो। 'हरिनाम महामंत्र का डिपाजिट।' ' हरिनाम को कमाओ', इसको कमाओ। उच्चारण करो, श्रवण करो, हरि नाम को प्राप्त करो, हरि नाम का संग्रह करो। अपने फिक्स्ड डिपॉजिट बढ़ा दो। फिर आप धनी हो गए। आप समृद्ध हो गए। वैसे भी हरि नाम को धन ही तो कहा है।
गोलोकेर प्रेमधन, हरिनाम संकीर्तन,
रति ना जन्मिल केने ताय।
संसार-विषानले, दिवानिशि हिया ज्वले,
जुडाइते ना कैनु उपाय॥2॥ ( श्रील नरोत्तम दास ठाकुर - वैष्णव गीत)
अर्थ:- गोलोकधाम का ‘प्रेमधन’हरिनाम संकीर्तन के रूप में इस संसार में उतरा है, किन्तु फिर भी मुझमें इसके प्रति रति उत्पन्न क्यों नहीं हुई? मेरा हृदय दिन-रात संसाराग्नि में जलता है, और इससे मुक्त होने का कोई उपाय मुझे नहीं सूझता।
यह हरि नाम धन है। इस कार्तिक मास में इस हरि नाम को अधिक से अधिक कमाइए, प्राप्त कीजिए, श्रवण कीजिए। हरि! हरि!
अपराध रहित जप करने का या .. मैं सोच रहा था कि अपराधों में भी सतत निंदा करने वाला जो वैष्णव अपराध है, उसमें हम इतने अधिक एक्सपर्ट होते हैं अर्थात यह हम अपराध करने में इतने अधिक कुशल होते हैं कि वैष्णव अपराध तो हमारे लिए बाएं हाथ का खेल होता है। कितना आसान काम है। वैष्णव अपराध करना ही हमारा स्वभाव है। अंग्रेजी में कहते हैं- 'इट्स आवर सेकंड नेचर'। हम बड़े आराम के साथ वैष्णव अपराध करते रहते हैं। हरि! हरि! इससे हरि नाम हमसे नाराज होगा। हरिनाम हरि है। हरि नाम भगवान है। भगवान् को अपने जीव, अपने अंश अर्थात जो अपने दास व भक्त बहुत प्रिय हैं। चाहे वे कैसे भी हो। जैसे माता को अपने सभी बालक/ बालिकाएं प्रिय होते हैं। हो सकता है कि कोई एकाध बालक अधिक बुद्धिमान हो और दूसरा बुद्धू भी हो लेकिन माता दोनों से प्रेम करती है। यदि कोई बदमाश भी बन जाता है तब भी माता का प्रेम उस बदमाश बच्चे के प्रति बना ही रहता है। यही तो माता है। इसलिए उसे माता कहा है। 'मदर।' मदर से प्यार। जैसे इस संसार की माताओं का अपने सभी बच्चों के प्रति प्रेम रहता है, थोड़ा सा कम या अधिक हो सकता है लेकिन माताएं सभी से प्रेम करती रहती हैं। तब फिर भगवान का क्या कहना...
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव,
त्वमेव सर्वमम देव देवः।।
अर्थ - तुम ही माता हो, तुम ही पिता हो, तुम ही बन्धु हो, तुम ही सखा हो, तुम ही विद्या हो, तुम ही धन हो। हे देवताओं के देव! तुम ही मेरा सब कुछ हो।
भगवान आप माता हो, आप ही पिता हो।हम महाराष्ट्र या पंढरपुर में ऐसा भी गाते हैं।
विठू माझा लेकुरवाला संगे गोपालांचा मेला ( महाराष्ट्रीयन गीत)
विठू माझा लेकुरवाला.. विठू को माउली भी कहते है। माउली मतलब आई। बंगाल में आई (मदर, माँ) चलता है। विठू माऊली है। विठू माझा लेकुरवाला लेकुरवाला मतलब विट्ठल भगवान के कई सारे बाल बच्चे हैं। वह हम सभी से प्रेम करते हैं। भगवान का प्रेम तो सभी से है। सभी जीव भगवान के हैं। भगवान का उनसे प्रेम है। भगवान उनसे प्रेम करते हैं और हम उनसे नफरत, ईर्ष्या, द्वेष करते हैं या गाली गलौच अथवा मारपीट करते हैं। हरि! हरि!
यदि हमें सचमुच धनी होना है तो हमें
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
का श्रवण, कीर्तन करते रहना चाहिए जिससे भगवान का स्मरण हो।
भक्ति विनोद ठाकुर ने कहा है -
अपराध-शून्य ह’ये लह कृष्ण-नाम
कृष्ण माता, कृष्ण पिता, कृष्ण धन-प्राण॥
अर्थ:-“पवित्र नाम के प्रति अपराध किए बिना, कृष्ण के पवित्र नाम का जप कीजिए। कृष्ण ही आपकी माता है, कृष्ण ही आपके पिता हैं, और कृष्ण ही आपके प्राण-आधार हैं। ”
हमें इस अपराध और सभी अपराधों से बचना चाहिए।
यह भक्ति विनोद ठाकुर का हमारे लिए आदेश है, हमारा लक्ष्य क्या है, अपराध-शून्य ह’ये लह कृष्ण-नाम, अर्थात अपराधों से मुक्त होने का सारा प्रयास ही साधना है। जो दस नाम अपराध है, उसमें वैष्णव अपराध नंबर वन अपराध है। यह हमारी साधना / हमारे नाम जप में व्यवधान उत्पन्न करता है। हमें इससे बचना चाहिए। हम इस चतुर्मास में ऐसा भी कुछ संकल्प ले सकते है जैसे कल व्रज मंडल परिक्रमा का आदिवास हुआ। इस आदिवास में भी संकल्प हुआ कि मैं कार्तिक मास में परिक्रमा करूंगा। आशा है कि आप भी उस आदिवास में थे और आपने भी परिक्रमा करने का संकल्प लिया होगा। इस कार्तिक मास में एक ऐसा संकल्प लो कि मैं वैष्णव अपराध को टालने का हर सम्भव प्रयास करूंगा। यदि मैं वैष्णव अपराध नहीं करूंगा, तो क्या करूंगा? वैष्णव सेवा करूंगा। नामे रुचि, जीवे दया, वैष्णव सेवा। मैं वैष्णवों की सेवा करूंगा, वैष्णव अपराध नहीं करूंगा और जीवेदया भी करूंगा अर्थात जीवों के प्रति दया करूंगा। हरि! हरि!
इस कार्तिक मास में अपनी साधना को बढ़ाने का संकल्प या अधिक जप करने का संकल्प या परिक्रमा करने का संकल्प जो हर सायं काल को 7:00 बजे प्रारंभ होने वाली है और प्रतिदिन यशोदा दामोदर को दीपदान करने का संकल्प- यह सारी विधि हुई। यह करो, यह विधि हुई। कुछ निषेध भी हैं कि यह मत करो। निषेधों के अंतर्गत मैं यह अपराध नहीं करूंगा, मैं वह अपराध नहीं करूंगा, मैं देरी से नहीं उठूंगा। अब यह जप सेशन भी थोड़ा सा जल्द होने लगा है। हम लोग 5:45 बजे से प्रारंभ कर रहे हैं और आप में से कई सारे भक्त शामिल होते हैं।
मैं जल्दी उठूंगा, पहले नहीं उठता था। कार्तिक मास में ब्रह्म मुर्हत में उठूँगा। नहीं उठता था, तो यह निषेध की बात है। देरी से नहीं उठना चाहिए, जल्दी उठना चाहिए या फिर मुझसे यह वैष्णव अपराध होता था कि मैं यह नहीं करूंगा, मुझसे जो भी कुछ गलतियां होती रहती थी, अपराध होते रहते थे, अब उन अपराधों से भी बचने का अभ्यास अथवा प्रयास करने का भी संकल्प इस कार्तिक मास में लीजिए।
आप समृद्ध होइए, आप कार्तिक मास में सुखी रहिए, हैप्पी रहिए। कार्तिक मास में समृद्ध होइए या मंगलमय होइए। समृद्ध होना कौन नहीं चाहता , आप भी चाहते हो लेकिन चाहने से क्या होता है, कुछ करना होगा ताकि हम सचमुच समृद्ध हो सकें, सचमुच धनी हो सकें और इस हरिनाम धन को प्राप्त करें।
हमारी चेतना व भावना में इस हरिनाम का प्रवेश हो। हमारे विचारों, अंतःकरण में हरि नाम का प्रवेश, हरे का प्रवेश, कृष्ण का प्रवेश, हरे राम का प्रवेश हो।16 नाम वाला महामंत्र का प्रवेश, हर नाम के साथ जो भाव जुड़े हैं, विचार जुड़े हुए हैं इस हरि नाम का प्रवेश हो।
कृष्ण त्वदीयपदपंङ्कजपञ्जारान्तम्
अद्यैव मे विशतु मानसराजहंसः।
प्राणप्रयाणसमये कफवातपित्तैः
कण्ठावरोधनविधौ समरणं कुतस्ते।। ( मुकंद माला स्तोत्र श्लोक 33)
अर्थ:- हे भगवान कृष्ण, इस समय मेरे मनरूपी राजहंस को अपने चरणकमल के डंठल के जाल में प्रवेश करने दें मृत्यु के समय जब मेरा गला कफ वात स्थापित से अवरुद्ध हो जाएगा तब मेरे लिए आपका स्मरण करना कैसे संभव हो सकेगा।
राजा कुलशेखर प्रार्थना कर रहे हैं- हे भगवान, अद्यैव अर्थात आज ही, क्या हो? मानसराजहंसः- मन को हंस कहा है। वह राजहंस है अर्थात विशेष हंस है। मेरा मन हंसों में राजा है। उसका प्रवेश हो। किस में प्रवेश हो?
त्वदीयपदपंङ्कजपञ्जारान्तम् आपके जो चरण कमल हैं, चरण कमल में प्रवेश हो या वो चरण कमल मेरे अंतःकरण अथवा मेरे हृदय में प्रवेश हो। जहां कमल खिलते है, वहाँ हंस जरूर विचरण करते रहते हैं। जहां भी कमल हैं, वहाँ हंस आ जाते हैं। जैसे हिमालय में मानसरोवर है, वहां कमल खिलते हैं तब सारे हंस वहां पहुंच जाते हैं और जहाँ कूड़ा करकट फेंका जाता है, वहां कौवे आ जाते हैं। हरि! हरि!
राजा कुलशेखर ने भगवान से प्रार्थना की और भगवान ने उनकी प्रार्थना सुनी भी और वे भगवान को प्राप्त भी हुए। अब हमारी बारी है। उन्होंने हमें सिखाया है कि हमें कैसी प्रार्थना करनी है। हमें भी वैसी प्रार्थना करनी है। श्रील प्रभुपाद इस प्रार्थना को समझाते थे। हां, आज ऐसा है, अब वैसा है। इसका मैं आगे धकेलना नहीं चाहता। पोस्टपोन नहीं करना चाहता।
प्राणप्रयाणसमये कफवातपित्तैः
कण्ठावरोधनविधौ समरणं कुतस्ते
मैं बूढ़ा हो जाऊंगा, और कंठ में घुर घुर की आवाज आने लगेगी। तब मेरे द्वारा आपका नाम लेना भी मुश्किल होगा। प्रभु! उस स्थिति में, उस मन की स्थिति में फिर कहां से स्मरण होगा, कहां से इस हरि नाम का उच्चारण होगा। इसीलिए 'अद्यैव मे विशतु' अर्थात मैं इसी कार्तिक मास के प्रथम दिन से ही प्रारंभ करना चाहता हूं। इस कार्तिक मास में मैं साधना, भक्ति, विधि विधानों का पालन और निषेधों को भी ध्यान रखते हुए अपनी साधना को संपन्न करूंगा। ऐसा संकल्प भी हर व्यक्ति ले सकता है। कुछ अलग अलग आइटम की भिन्नता हो सकती है - मुझसे यह अपराध हो होता था या मुझसे वह अपराध होता था अथवा मुझसे यह पाप होता था। अब मैं इनसे बचूंगा। ऐसा नहीं करूंगा। हरि! हरि! इस तरह से आप निश्चित ही संकल्प लो कि मैं इन विधानों का पालन करूंगा और इन निषिद्ध कार्यों से बचूंगा।
तत्पश्चात कार्तिक मास के अंत में आप देख सकते हो, अपना रिव्यू कर सकते हो, परीक्षण- निरीक्षण हो सकता है कि कार्तिक मास में मेरी साधना भक्ति कैसी रही? कुछ लक्ष्य बनाइए, संकल्प लीजिए। हरि! हरि! हमारा यह सब करने का उद्देश्य कार्तिक मास में वृंदावन में भी रहना है। अपने मन को वृंदावन पहुंचाना है। वृंदावन में ही रहना है। हमारे शरीर जहां भी हो, नागपुर में हो या बेंगलुरु में है या कानपुर में है या उदयपुर में है - हमारा शरीर वहाँ हो लेकिन हमारा मन, हमारी आत्मा, हमारा ध्यान, हमारा स्मरण वृंदावन का स्मरण हो वृंदावन में रहना है तो वृंदावन का स्मरण मतलब राधा कृष्ण का स्मरण, कृष्ण बलराम का स्मरण, उनकी लीलाओं का स्मरण है।
आज जब मैं मंगला आरती के लिए जा रहा था तब विचार तो आ ही गया कि कार्तिक के पहले दिन जो कि शरद पूर्णिमा का भी दिन है। मैं पिछले 33 वर्षों से प्रतिवर्ष वृंदावन में ही रहा करता था परंतु इस वर्ष अभागा मैं इस समय वृंदावन में नहीं हूं। मैं थोड़ा शोक करते हुए राधा पंढरीनाथ मंदिर की ओर जा रहा था। फिर जब मैनें वहाँ राधा पंढरीनाथ की आरती उतारी । वहां आल्टर पर राधा पंढरीनाथ के साथ-साथ गोवर्धन शिला भी है। गोवर्धन भी है। जब मैं गोवर्धन की आरती उतार रहा था तब ऐसा विचार मन में आया कि क्या मैं वृंदावन में नहीं हूं।
अगर मैं गोवर्धन का दर्शन कर रहा हूं या गोवर्धन की आराधना कर रहा हूं। मेरे और गोवर्धन के मध्य में और कुछ भी नहीं है। जो 1000 मील की दूरी है, वह दूरी नहीं है। मैं गोवर्धन के सानिध्य में पास में हूं, सामने हूं और गोवर्धन को देख रहा हूं। गोवर्धन शिला जहां भी हो लेकिन गोवर्धन तो वृंदावन में ही रहते हैं। गोवर्धन वृंदावन में ही हैं। मुझे स्ट्रांग फीलिंग हुई कि मैं वृंदावन में ही हूं। क्यों शोक कर रहे हो? जहां गोवर्धन है, वहां निश्चित ही वृंदावन है। फिर जहां- जहां राधा कृष्ण हैं, वहां वृंदावन है। जहाँ
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
है, वह वृंदावन है। वैसे भागवतम में वर्णन है-
भवद्विधा भागवतास्तीर्थभूताः स्वयं विभो।
तीर्थीकुर्वन्ति तीर्थानि स्वान्तः स्थेन गदाभृता।। ( श्री मद् भागवतं १.१३.१०)
अनुवाद:- हे प्रभु,आप जैसे भक्त, निश्चय ही साक्षात पवित्र स्थान होते हैं क्योंकि आप भगवान को अपने हृदय में धारण किए रहते हैं। अतएव आप समस्त स्थानों को तीर्थ स्थानों में परिणत कर देते हैं।
संत महात्मा भी कई स्थानों को अपना निवास बनाकर तीर्थ स्थान बनाते हैं। वैसे जहाँ वे अपना निवास बनाते हैं, भगवान को वहां ले आते हैं। भगवान की स्थापना करते हैं। भगवान की आराधना करते हैं। भगवान की सेवा करते हैं, हो गया वृंदावन। इस प्रकार हम अपने घर को भी वृंदावन बना सकते हैं और वृंदावन में रह सकते हैं। 'होम अवे फ्रॉम होम' या 'बैक टू होम' थोड़ा दूर लगता है लेकिन दूर नहीं है। उसको अलग नहीं किया जा सकता। वृंदावन का अविभाज्य अंग है। हम जहां भी साधना कर रहे हैं, वहाँ राधा कृष्ण की आराधना कर रहे हैं। जब हम गोवर्धन की आराधना/ पूजा विशेषतया हरे कृष्ण महामंत्र का जप या कीर्तन करते हैं तब हम वृंदावन में ही रहते है। हरि! हरि! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
९०० प्रतिभागी हो गए। आप अपने कुछ गुरु भाई या गुरु बहनों पर दया करो। उनको भी जोड़ दो। इस ज़ूम कॉन्फ्रेंस में उनको बुलाओ। उन पर दया करो।
वाछां – कल्पतरुभ्यश्च कृपा – सिन्धुभ्य एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः।।
कर उनको भी ले आओ ताकि यह जो थोड़ा रिक्त स्थान है। भर जाए। पदमाली प्रभु कह रहे थे कि जूम कॉन्फ्रेंस में 1000 लोगों की क्षमता है अर्थात 1000 भक्तों की सिटींग संभव है परंतु 100 सीट अभी भी खाली हैं। आप सब मिलकर प्रयास करोगे तो उदयपुर/ बेंगलुरु या नागपुर या कानपुर के जहां जहाँ के भी भक्त जो हमारे साथ जप नहीं करते पर अपनी अपनी आराधना कर रहे हैं या हो सकता है कि पंढरपुर या मायापुर के भक्त या हमारी शिष्य मंडली या फिर नए कुछ भी हो सकते हैं या आपके परिवार के सदस्य जो जॉइन नहीं करते, उनको याद कीजिए, देख लीजिए। ऐसा करने से कुछ वैष्णव सेवा भी हो जाएगी और जीवे दया भी हो जाएगी। ओके।
हरे कृष्ण!