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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *दिनांक 20 नवम्बर 2021* हरे कृष्ण!!! हम अब थोड़े समय के लिए रुक जाते हैं। अपने जप को रोका जा सकता है क्योंकि अब हम जप से जपा टॉक की ओर मुड़ेंगे।आज इस जप कॉन्फ्रेंस में 708 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। यह चिंता का विषय है। (मैटर आफ कंसर्न) क्या हुआ( व्हाट हपनेड)। पिछले 2 सप्ताह में दो- ढाई सौ लोग या भक्त कम हो गए । आपको याद होगा कि कार्तिक के मध्य में हम लोग 950 की संख्या तक जा रहे थे। कार्तिक के दूसरे भाग में अर्थात कार्तिक के शुक्ल पक्ष में कुछ हुआ (समथिंग हैपन) अभी तो सारा विश्लेषण नहीं करेंगे । केवल आपको याद दिला रहे हैं, पता नहीं, आप यह सोचते हो या नहीं। देख लो, यदि आप कुछ कर सकते हो, एक तो आप इस जपा सेशन में जप करते रहिए और अपने सगे- संबंधियों, बंधु- बांधवों, पड़ोसी या कोई इष्ट मित्र जो इस जूम कॉन्फ्रेंस में जप किया करते थे और अब नहीं कर रहे हैं और यदि आपने नोट किया है, तो उनको रिमाइंडर (अनुस्मारक) दीजिए। यह भी हो सकता है कि यह कार्तिक के उत्सव, वृंदावन यात्रा, यह, वह, भ्रमण, परिभ्रमण के कारण उनकी आदत छूट गई हो। आप विचलित हो गए हो और समाप्त। वैसे आप नहीं, आप तो यहां जप कर रहे हो। मैं उनकी बात कर रहा हूं जो हमारा साथ दिया करते थे। यह पदमाली आदि सोच सकते हैं। हमनें कार्तिक में इतना समय साथ बिताया लेकिन अब मैं सोचता तो रहता हूं कि क्या हुआ, क्या इसमें हमारा कोई कसूर है? नहीं है? हरि !हरि! ठीक है, मैं तो अभी बोलूंगा ही लेकिन आप नहीं बोलते हो। यह आज अंतिम अवसर है। कार्तिक माह में आपके रिपोर्टिंग या कुछ विशेष अनुभव रहे हो और आप उसे शेयर करना चाहते हो तो आज अंतिम अवसर है। वैसे आज हमारे कुछ मंदिर, इस्कॉन टेंपल रिपोर्टिंग करने वाले हैं। हम बहुत ज़्यादा नहीं ले सकते। कुछ सीमित भक्त ही बोल सकते हैं अथवा सीमित भक्त ही अनुभव शेयर कर सकते हैं। अपना रिलाइजेशन शेयर कर सकते हैं। हम चाहते है कि संख्या कम हो लेकिन क्वालिटी और संक्षिप्त रिपोर्ट हो। पहले तो मैं भी कुछ कहूंगा तब आपकी बारी आएगी। बहुत ज्यादा नहीं कहूंगा। वैसे आप अपने अनुभव लोक संघ पर लिख भी सकते हो। वहां पर भी लिखित रिपोर्ट की जा सकती है। ठीक है। कोई कह रहा था अथवा किसी ने चैट में लिखा था लेकिन मैंने पूरा पढ़ा नहीं। बद्रीका आश्रम मंदिर आप जानते हो? शीतकाल में (विंटर सीजन) चार 6 महीने के लिए बंद होता है, वह आज बंद हो रहा है। वैसे ही आपको स्मरण दिला रहे हैं। कितना सही है या गलत है, पता नहीं। कोई चैट में लिख रहा था ऐसी कोई संभावना है। वह तो संभावना ही है लेकिन आज से एक नया व्रत प्रारंभ हो रहा है। अभी तक कार्तिक व्रत चल रहा था। कार्तिक पूर्णिमा हुई, शालिग्राम तुलसी तुलसी विवाह भी संपन्न हुआ। हरि! हरि! कल पूर्णिमा भी थी। कहा गया है कि शरद पूर्णिमा के रात्रि को त्रिभंग ललित कृष्ण केशी घाट पर मुरली बजाते हैं। *आलोलचंद्रकलसद्वनमाल्यवंशी-रत्नाङ्गदं प्रणयकेलिकलाविलासम। श्यामं त्रिभङ्गललितं नियतप्रकाशं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।।* ( ब्रह्म- संहिता श्लोक ५.३१) अनुवाद:- जिनके गले में चंद्रक से शोभित वनमाला झूम रही है, जिनके दोनों हाथ वंशी तथा रत्न - जड़ित बाजूबन्दों से सुशोभित हैं, जो सदैव प्रेम- लीलाओं में मग्न रहने हैं, जिनका ललित त्रिभंग श्यामसुंदर रूप नित्य प्रकाशमान है, उन आदिपुरुष भगवान गोविंद का में भजन करता हूँ। *बंसी विभूषित करात, नवनीरद आभात, पूर्णेन्दु सुंदर मुखात, अरविंद नेत्रात, पीताम्बरात, अरूणबिंबफल अधरोष्ठात, कृष्णात, परम किम् अपि तत्वम, अहम न जाने..."* (अज्ञात सूत्र) अर्थ:- जिन के कर कमलों में बंसी शोभायमान है जिनके सुंदर शरीर की आभा नए बादलों जैसे घनश्याम है जिनका सुंदर मुख पूर्णचंद्र जैसा है जिनके नेत्र कमल की भांति बहुत सुंदर है जिन्होंने पितांबर धारण किया हुआ है जिनके एयरोस्टर अरुणोदय जैसे माने उदित होते हुए सूर्य के लाल पल के रंग जैसा है ऐसे श्री कृष्ण भगवान के सिवा और कोई परम तत्व है यह मैं नहीं जानता *बर्हापीडं नटवरवपु: कर्णयो: कर्णिकारं बिभ्रदवास: कनककपिशं वैजयंती च मालाम । रंध्रां वेणोरधरसुधया पुर्यंगोपवृन्दै-रवृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद गीतकीर्ति:।।* ( श्रीमद भागवतम १०.२१.५) अनुवाद:- अपने सिर पर मोर-पंख का आभूषण, कानों पर नीले रंग के कर्णिकारा फूल, सोने के समान चमकीले पीले वस्त्र, और वैजयंती माला पहने हुए, भगवान कृष्ण ने वृंदावन के जंगल में प्रवेश करते हुए, सबसे महान नर्तकियों के रूप में अपने दिव्य रूप का प्रदर्शन किया। उसके पदचिन्हों के साथ। उन्होंने अपनी बांसुरी के छिद्रों को अपने होठों के अमृत से भर दिया, और चरवाहों ने उनकी महिमा गाई। ऐसे कृष्ण को नहीं देखना चाहिए। सावधान। यदि आप देखोगे तो फिर गए काम से। दिल्ली हो या नागपुर आपके सारे भव बंधन टूट जाएंगे। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है कि यदि आप उसको बनाए रखना चाहते हो तब ऐसा दर्शन फिर खतरनाक है। कृष्ण कन्हैया लाल की जय! कृष्ण हमेशा सक्रिय( एक्टिव) हैं। जहां तक मुरली बजाने की बात है या उनके विवाह की बात है। (शालिग्राम तुलसी विवाह) कृष्ण ही शालिग्राम के रूप में हैं। कृष्ण की अष्टकालिय लीला तो चलती रहती है। प्रतिदिन/ नित्य चलती है। प्रतिदिन भगवान की लीला संपन्न होती है। एवरी सिंगल डे एवरी सिंगल मोमेंट भगवान की लीला चलती है। भगवान विश्राम भी नहीं करते हैं। यशोदा दूध पिला कर कृष्ण को सुलाती तो है लेकिन सुलाकर जैसे ही कमरे से यशोदा बाहर जाती है, तब कृष्ण बिस्तर से कूद कर वन में पहुंच जाते हैं और मुरली बजाने लगते हैं। यह 10:30 की बात है। हर रात्रि 10:30 बजे बिना किसी चूक के वे किसी ना किसी वन में पहुंच जाते हैं। वहां पर उनका मुरली वादन होता है। कृष्ण का पूरा नियंत्रण होता है कि यह वादन गायों के लिए है और यह वादन मित्रों के लिए है, यह वादन गोपियों के लिए है, जिनके लिए वह संदेश है। कृष्ण मुरली के माध्यम से उनको ही अपना संदेश प्रसारित करते हैं। रात्रि 10:30 वाला संदेश तो केवल गोपियों के लिए होता है । उसे अन्य घरवाले कोई नहीं सुन पाते। ना तो पतिदेव सुन रहे हैं और ना ही बच्चे सुन रहे हैं, ना कोई सास या ननद सुन रही है। केवल गोपियां सुनती है तब वे दौड़ पड़ती हैं। पूरी रात अर्थात रात्रि की अष्टकलिय लीला सम्पन्न होती है। कहने का तात्पर्य है कि कृष्ण दिन और रात 24 घंटे व्यस्त हैं। उनका नींद (स्लीपिंग) जो है तथाकथित नींद (स्लीपिंग) है। हम नोट कर सकते हैं कि कृष्ण अब कहां होंगे, कृष्ण अब कहां होंगे? इस दिन कहां होंगे? यह गोवर्धन धारण का दिन है तो उन्होंने गोवर्धन धारण किया होगा। यह शरद पूर्णिमा है, तो वे रास नृत्य कर रहे होंगे। प्रातः काल का समय है कृष्ण की माखन चोरी की लीला जारी होगी या दिन का समय है तो अब वे गोचरण लीला हेतु काम वन में होंगे। मधुबन में राधिका नाचे रे... इस तरह से हम सब कृष्ण भावना भावित हो सकते हैं। अब कृष्ण कहां हैं? कृष्ण कैसे दिखते होंगे ? *कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण कृष्ण! कृष्ण! हे। कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! हे।।कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! रक्ष माम्।।कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! पाहि माम्।।राम! राघव!राम!राघव!राम! राघव! रक्ष माम्। कृष्ण ! केशव! कृष्ण! केशव! कृष्ण! केशव! पाहि माम्!* ( श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला श्लोक ७.९६) अनुवाद:- महाप्रभु कीर्तन कर रहे थे- हे भगवान कृष्ण!कृपया मेरी रक्षा कीजिए और मेरा पालन कीजिए।" उन्होंने यह भी उच्चारण किया- हे राजा रघु के वंशज! हे भगवान राम! मेरी रक्षा करें। हे कृष्ण, हे केशी असुर के संहारक केशव , कृपया मेरा पालन करें। कृष्ण की लीलाएं संपन्न हो रही है। उनकी कुछ प्रकट लीलाएँ हैं और कुछ नित्य। उनकी 125 वर्ष तक प्रकट लीला है लेकिन कृष्ण की नित्य लीला तो चलती ही रहती है। उसी नित्य लीला के अंतर्गत कल तक दामोदर व्रत चल रहा था। हम जानते हैं दामोदर लीला एक लीला है। उसका कार्तिक में अधिक प्रधान्य रहा किन्तु अन्य भी कई सारी लीलाएँ हुई। कल थोड़ा उल्लेख हुआ ही। माधुर्य लीला, वात्सल्यपूर्ण लीला,गोचारण लीला गोपाष्टमी उत्सव है, यह लीलाएं भी कार्तिक मास में हुई। केवल दामोदर लीला ही नहीं हुई, अन्य रसभरी लीलाएं भी हुई। अलग अलग रस हैं। अलग अलग फ्लेवर हैं, सभी विभिन्नताएं पसन्द करते हैं। यह हम कृष्ण की वैरायटी ऑफ पास्ट टाइम्स का आनंद लेते हैं। उनके कुछ माधुर्य रस वाले पास्ट टाइम्स हैं तो कोई वात्सल्य रस, माधुर्य रस, दास्य रस से भरे हुए। आपको बताया था वृन्दावन में किंचित सा दास्य रस है। दास्य रस इतना मधुर नहीं होता। वृंदावन तो माधुर्य लीला स्थली है। वैकुंठ वैभव लीला स्थली है। वैकुंठ और माधुर्य लीला वृंदावन में और औदार्य लीला नवद्वीप मायापुर में होती है। वृंदावन माधुर्य लीला के लिए प्रसिद्ध है। इस दास्य भाव में इतनी मधुरता नहीं होती। इतना रस नहीं होता। इसीलिए किंचित सा दास्य रस का प्रचार है। *जय जयोज्ज्वल-रस-सर्व रससार। परकीया भावे याहा, व्रजेते प्रचार॥* ( वैष्णव भजन) अर्थ:-समस्त रसों के सारस्वरूप माधुर्यरस की जय हो, भगवान् कृष्ण ने परकीय-भाव में जिसका प्रचार ब्रज में किया। अधिकतर प्रचार परकीय भाव का है। गोपियों के साथ, राधा के साथ भाव या संबंध है, उसको परकीय रस कहते हैं। (यह हमने बता ही दिया।) आज से कात्यायनी व्रत प्रारंभ हो रहा है। श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध 10 अध्याय 22 कात्यायनी व्रत का वर्णन करता है। आप वहां उसका वर्णन पढ़ सकते हो। यह कात्यायनी व्रत चीर घाट पर संपन्न होगा। घाट मतलब यमुना का किनारा। किनारे पर ही घाट होता है यह भी समझना चाहिए। (आपके धोबी घाट पर नही।) *हेमंते प्रथमे मासि नंद वर्जकमारिका:। चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्चनव्रतम्।।* ( श्रीमद भागवतम १०.२२.१) अनुवाद:- शुकदेव गोस्वामी ने कहा:- हेमंत ऋतु के पहले मास में गोकुल की अविवाहित लड़कियों ने कात्यायनी देवी का पूजा-व्रत रखा। पूरे मास उन्होंने बिना मसाले की खिचड़ी खाई। शुकदेव गोस्वामी ने प्रथम श्लोक में ही कात्यायनी व्रत की कथा को कहना प्रारंभ किया। कात्यायनी देवी का नाम है, उसकी आराधना अर्चना अब गोपियां करने वाली है। उन्होंने हेमंते प्रथमे मासि ... आज से नया ऋतु भी शुरू हुई। कल तक शरद ऋतु चल रही थी। अश्विन, कार्तिक यह सब आपको पता होना चाहिए। दो दो मास की एक एक ऋतु होती है। कल शरद ऋतु का समापन हुआ। आज से हेमंत ऋतु शुरू हो रही है, हेमंत ऋतु में दो महीने होते हैं- मार्घशीर्ष और पौष। यहां पर लिखा है कि हेमंते प्रथमे मासि अर्थात हेमंत ऋतु के पहले महीने में अर्थात मार्घशीर्ष में... आज से मार्घशीर्ष शुरू हो रहा है। जिस मार्घशीर्ष माह के संबंध में भगवान भगवत गीता के दसवें अध्याय में कहते हैं- *बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्। मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ||* ( श्रीमद भगवतगीता १०.३५) अनुवाद:- मैं सामवेद के गीतों में बृहत्साम हूँ और छन्दों में गायत्री हूँ | समस्त महीनों में मैं मार्गशीर्ष (अगहन) तथा समस्त ऋतुओं में फूल खिलने वाली वसन्त ऋतु हूँ | भगवान ने इन शब्दों में इस माह की महिमा वर्णन की है। यह मार्घशीर्ष महीना जो है, वह मैं हूं। आज से मार्घशीर्ष महीना प्रारंभ हो रहा है। मासानां मार्गशीर्षोऽहं । गोपियां चीर घाट जाया करती थी बाद में उसका नाम चीर घाट हुआ। जब गोपियों ने अपना व्रत प्रारंभ किया तब वहां एक घाट था। उन्होंने वहां जाकर कात्यायनी की मूर्ति बनाई। पहले तो वे वहां स्नान किया करती थी *आप्लुत्याम्भसि कालिन्द्या जलान्ते चोदितेअरुणे कृत्वा प्रतिकृतिं देवीमानर्चुर्नृप सैकतीम्। गन्धैर्माल्यै सुरभिभिर्बलिर्धूपदीपकैःउच्चावचैश्र्चोपहारैः प्रवालफलतण्डुलैः।।* ( श्रीमद भागवतम 10.22.2-3) अनुवाद:- हे राजन सूर्य उदय होते ही यमुना के जल में स्नान करके वह गोपियां नदी के तट पर देवी दुर्गा का मिट्टी का अच्छा विग्रह बनाती हूं तत्पश्चात वे चंदन लेट जैसी सुगंधित सामग्री और महंगी असाधारण वस्तुओं तथा दीपक फल सुपारी को उपलब्ध का सुगंधित मालाओं और अंगूर के द्वारा उनकी पूजा करती। कालिंदी जो यमुना का नाम है, वे यमुना में प्रवेश करके स्नान किया करती थी और वहां के यमुना की रेत/ मिट्टी से उन्होंने कात्यायनी देवी की मूर्ति बनाई। वे गन्धैर्माल्यै गंध, माला,पुष्प , धूप दीप कई अन्य कई प्रवालफलतण्डुलैः अर्थात चावल, पत्रं, पुष्पं, फलं तोयं, गंधम से आराधना कर रही थी। पुष्पम समर्पयामि। गंधम समर्पयामि। वे इन सबको समर्पित करती रही। इन द्रव्यों से वह कात्यायनी देवी की आराधना/अर्चना कर रही थी साथ में प्रार्थना भी कर रही थी- *कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः।* *इति मन्त्रं जपन्त्यस्ताः पूजां चक्रुः कमारिकाः* ( श्रीमद भागवतम 10.22.4) अनुवाद:- प्रत्येक अविवाहिता लडक़ी ने निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए उनकी पूजा की: " हे देवी कात्यायनी, हे महामाया, हे महायोगिनी, हे अधीश्र्वरी, आप महाराज नंद के पुत्र को मेरा पति बना दें। मैं आपको नमस्कार करती हूं। हे कात्यायनी, तुम महामाया हो, तुम योग माया नहीं हो, तुम महामाया हो। तुम महायोगिनी हो, तुम अधिश्वरी हो। हम भी ऐसी प्रार्थना कर सकते हैं। यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है। वैसे ऐसी प्रार्थना कुण्डनीपुर में रूक्मिणी ने भी की थी, जोकि महाराष्ट्र में अमरावती और वर्धा के बीच में है। नागपुर से ज़्यादा दूर नहीं है। रूक्मिणी मैया की जय!!! रूक्मिणी ने भी वैसी प्रार्थना की। उसने भी अंबिका की प्रार्थना थी। अंबिका, दुर्गा का एक रूप है। कात्यायनी, दुर्गा का एक रूप है। स्वरूप है, गोपियों ने प्रार्थना की। ऐसी प्रार्थना इन शब्दों में रुक्मिणी ने भी की है। ऐसे शब्दों में रुक्मिणी ने भी प्रार्थना की है। हम भी ऐसी प्रार्थना कर सकते हैं। आप याद रखिए। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः। बस यही मुख्य बात है। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः। नंद महाराज का जो पुत्र है अर्थात नंदनंदन मुझे पति रूप में प्राप्त हो। आप भी ऐसी प्रार्थना कर सकते हो। यदि दुर्गा पूजा या कात्यायनी या भद्रकाली की पूजा करनी है तो ऐसी प्रार्थना है तो आपका स्वागत है। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः। हरि! हरि! हम सबके पति तो कृष्ण हैं ही। है या नहीं? अभी हमने किसी को पति बना लिया है। यहां हम पुरुष बन गए हैं लेकिन हम वैसे पुरुष नहीं है। हम में से कोई भी पुरुष नहीं है। हम सारी स्त्रियां हैं लेकिन हम ऐसी भूमिका निभाते रहते हैं। आज की स्त्री अगले जन्म में पुरुष भी हो सकती है और इस जन्म में पुरुष अगले जन्म में स्त्री भी हो सकती है। यह सब संभव है, यह शरीर के स्तर की बात है। आत्मा के स्तर की बात क्या है। आत्मा के पति जगतपति श्रीकृष्ण है। यह तथ्य है, आत्मा के पति/ स्वामी भगवान हैं ( हम जगन्नाथ स्वामी भी कहते हैं जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी..) जीवों के स्वामी भगवान हैं। वास्तविकता में हमें निश्चित ही पता नहीं है कि वे हमारे पति हैं या वे हमारे पुत्र हैं या हमारे मित्र हैं। लेकिन एक दृष्टि से वे स्वामी तो हैं ही। नंद बाबा यशोदा के पुत्र भी हैँ लेकिन पुत्र होते हुए वे स्वामी तो हैं ही। वे ऐसी लीला भी खेलते हैं। मित्रों के स्वामी भी श्रीकृष्ण हैं लेकिन कृष्ण एक प्रकार से अपना डिमोशन करते हैं। वे अपने आपको मित्र के स्तर का स्वयं बना देते हैं। मित्र कहते हैं- *सखा शुद्ध- सख्ये करे, स्कन्धे आरोहण। तुमि कोंबड़ लोक, तुमि आमि सम* ( श्रीचैतन्य चरितामृत ४.२५) अनुवाद:- मेरे मित्र शुद्ध मैत्री के कारण मेरे कंधों पर यह कहते हुए चढ़ जाते हैं कि, तुम किस तरह के बड़े व्यक्ति हो? तुम और हम समान हैं।' लेकिन सभी जीवों के स्वामी कृष्ण ही हैं। दूसरे शब्दों में भगवान ही पुरुष हैं और हम और हम सब भगवान की प्रकृति हैं। ऐसी प्रार्थना हम भी कर सकते हैं। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः। आप भी कहिये नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः। आप कह रहे हो? हरि! हरि! वैसे हम कहते रहते हैं । जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहते हैं तब हम यही कहते हैं कि हमें सेवा दीजिए। हम आपके दास /भक्त हैं। सेवा योग्यं कुरु, सेवा योग्यं कुरु। इस शब्द में गोपियों ने प्रार्थना की। या हरे कृष्ण हरे कृष्ण कह रहे हैं। बात तो एक ही है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहने के पीछे भाव वही है, नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः। मैं सोचता हूँ कि अब हमें विराम देना चाहिए। इस विषय पर फिर कभी बात करेंगे। आज से यह व्रत प्रारंभ हो रहा है और यह व्रत एक महीने के लिए चलेगा। दामोदर मास एक महीने का था। यह कात्यायनी व्रत भी पूरे मास का है। फिर देखते हैं इस मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन क्या होता है, वैसे उसी दिन चीरहरण होगा। फिर उस घाट का नाम चीर घाट पड़ेगा। पूर्णिमा के दिन चीर हरण हुआ। आज मार्गशीर्ष की प्रथमा चल रही है। 30 दिनों के उपरांत जहां गोपियां स्नान कर रही थी, कृष्ण वहां पहुंच जाएंगे। गोपियां ने यमुना के तट पर वस्त्र रखे थे। कृष्ण आए और सारे वस्त्र ले लिए और वृक्ष के ऊपर चढ़ गए और चीर घाट पर वस्त्रों को हर लिया अर्थात वस्त्र हरण/ चीर हरण हुआ।अब मैं यहां विराम देता हूं और आपको सुनते हैं। हरे कृष्ण!!!

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