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14 जून 2019
अब तक हमारे साथ लगभग 635 भक्त जप कर रहे हैं बाकी सब भक्त कहां है जो कल 800 से 850 भक्त हमारे साथ जप कर रहे थे। यह मेरे लिए कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। कुछ मौसम के हिसाब से प्रैक्टिशनर होते हैं। आप सोच रहे होंगे कि हमारे साथ 750 से 800 भक्त जप कर रहे होंगे, लेकिन मेरी ऐसी आशा नहीं थी। मुझे प्रसन्नत्ता इस बात की है कि आप कल भी जप कर रहे थे और आज भी जप कर रहे हो, साथ में बहुत प्रसन्नता देने वाली रिपोर्ट्स आप यहां पोस्ट कर रहे हो। यह कहा जाता है कि हरे कृष्ण का जप करिए और प्रसन्न रहिए। आपने कल जो प्रसन्नता पूर्वक महामंत्र का जप किया है और अपनी रिपोर्ट हमें भेज रहे हो, आज सुबह जब आप उठे तो बहुत प्रसन्न थे और इंतजार कर रहे थे इस प्रसन्नता की सूचना को देने के लिए।
इस प्रकार से आप सभी जप में अपनी और अधिक रुचि विकसित कीजिए। रूचि आसक्ति से आप भाव, प्रेम तक पहुंचेंगे। वैष्णवों की सेवा करते रहिए और जो श्रद्धावान है उनके प्रति आप दया का भाव प्रदर्शित करके उनको कृष्ण दीजिए, उनको आप हरिनाम दीजिए, उनको प्रसाद दीजिए, उनको श्रील प्रभुपाद जी की पुस्तकें दीजिए। इस प्रकार से आप सेवा करते रहेंगे तो निश्चित रूप से आपकी सेवा द्वारा, जीव दया द्वारा, आपकी नाम में रुचि बढ़ती जाएगी।
इस प्रकार से मुझे आज के दिन स्मरण हो रहा है उस कथा का जब एक भक्त ने वैष्णव सेवा के बजाय वैष्णव अपराध किया था। आपको याद है आज ही के दिन द्वादशी के दिन जैसे में आप लोगों को पारण करते हुए देख रहा हूं कुछ भक्त जल ग्रहण कर रहे हैं जूस इत्यादि ग्रहण कर रहे हैं। इस प्रकार से वृंदावन में अम्बरीश महाराज ने अपने व्रत का द्वादशी के दिन पारण करने के लिए थोड़ा सा जल ग्रहण किया। जिसको दुर्वासा ऋषि ने अपराध के तौर पर लिया और उनको बहुत गलत गलत शब्द कहे और दुर्वासा मुनि इतने ज्यादा क्रोधित हो गए उस बात को लेकर कि उन्होंने अम्बरीश महाराज को मारने तक की योजना बना डाली। इतने क्रोधित हो गए उनकी हत्या कर देना चाहते थे। और फिर उन्होंने अपने सर से एक बाल को तोड़कर उसे एक कृत्या नामक राक्षसी उत्पन्न की, जोकि बहुत गुस्से से जल रही थी और महाराज अम्बरीष का वध कर देना चाहती थी।
यह एक लंबी कथा है अम्बरीश महाराज ने दशमी के दिन से ही व्रत प्रारंभ कर दिया था, बहुत ही सफलता पूर्वक उन्होंने एकादशी का व्रत किया और बहुत ही कठोर नियमों के साथ जब वे द्वादशी में व्रत का पारण करने जा रहे थे, उन्होंने न्याय संगत तरीके से सब ब्राह्मणों से पूछ कर कि मुझे क्या करना चाहिए, क्योंकि व्रत पारण का समय निकला जा रहा है और दुर्वासा मुनि अभी लौटकर नहीं आए। इस प्रकार से जो उनके मंत्रीगण व बुद्धिजन लोग थे उन्होंने उनको ऐसी सलाह दे डाली, कि आप थोड़ा सा जल ग्रहण कर ले इस प्रकार आप का पारण भी हो जाएगा और व्रत टूटेगा भी नहीं।
इस प्रकार से अम्बरीश महाराज का कोई दोष नहीं था, परंतु दुर्वासा ऋषि जो बहुत ही दुर्वचन बोलते हैं और हमेशा ही कमियां ढूंढते हैं, और वैष्णव के बहुत बड़े बड़े जघन्य अपराध बताते रहते हैं। इस प्रकार से उन्होंने इसमें बहुत बड़ा दोष मान लिया और अम्बरीश महाराज को मृत्यु दंड देने के लिए उन्होंने कृत्या नामक राक्षसी उत्पन्न करके महाराज अम्बरीष को मारने का प्रयास किया। इस प्रकार से अम्बरीश महाराज जो भगवान के बहुत ही बड़े भक्त हैं, वह अपने भक्ति पूर्ण कृत्यों में कभी भी कोई त्रुटि नहीं करते और पूर्ण भावना से वह भक्ति करते हैं। जब दुर्वासा ऋषि के इस अपराध को भगवान कृष्ण ने देखा तो, उन्होंने सुदर्शन को तत्काल भेज दिया।
सुदर्शन ने पहले तो उस कृत्या नामक राक्षसी का वध किया और उसके बाद वह दुर्वासा मुनि के पीछे दौड़ने लगा। आप सभी इस बात से सावधान हो जाइए किसी भी प्रकार का वैष्णव अपराध न हो, इसकी पुनरावृत्ति ना हो। अगर कोई भी भक्त वैष्णव अपराध करता है तो भगवान इसको बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करते हैं और उस भक्त को विभिन्न प्रकार की यातनाएं दी जा सकती है, उसको कष्ट दिए जा सकते हैं।
इस प्रकार से दुर्वासा मुनि जो सारे लोकों में जा रहे थे एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर जा रहे थे और चीखते चिल्लाते जा रहे थे कोई बचाओ मुझे, बचाओ मेरी रक्षा करो। इस प्रकार से वे दौड़े जा रहे थे, सुदर्शन उनका पीछा कर रहा था। सबसे पहले जब वे ब्रह्मलोक में पहुंचे तो ब्रह्माजी ने अपने लोक का दरवाजा बंद कर दिया कि आप मेरे लोक में प्रवेश नहीं कर सकते, क्योंकि सुदर्शन मेरे पूरे लोक को ही भस्म कर सकता है आप कहीं और चले जाइए। इस प्रकार दुर्वासा जी फिर शिवलोक में गए, वहां भी उन्हें किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिली, तब वह बैकुंठ लोक में भगवान विष्णु की शरण में गए। अब दुर्वासा मुनि भगवान विष्णु की शरण में थे और दुर्वासा मुनि इस प्रकार से वार्ता करने लगे और यह बताने लगे।
तब भगवान ने दुर्वासा मुनि से बहुत सुंदर श्लोक बोला- "साधुनाम मम हृदयम" भगवान यह बता रहे हैं वह वात्सल्य से भरे हैं वह कह रहे हैं कि मेरे भक्त मेरे हृदय व मेरे प्राण हैं। इस प्रकार भक्तों से उनका जो संबंध है भगवान उसको बता रहे हैं। यह कथा श्रीमद् भागवतम के नौवें स्कन्द के चौथे अध्याय का प्रसंग है। आपको वहां से इसे पढ़ना चाहिए। वहां भगवान के बहुत ही सुन्दर उदघोष हैं और अंत में भगवान यही कहते हैं कि दुर्वासा मुनि मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता हूं आप अम्बरीश महाराज की शरण में जाइए, उन्हीं के प्रति आपने अपराध किया है वही आपको क्षमा कर सकते हैं। आप उन्हीं के पास जाइए और उनसे ही प्रार्थना कीजिए।
"वांद्दा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिंधुभय एव च, पतिता नाम पावनेभयो,वैष्णवेभयो नमो नमः"
इस प्रकार आप अम्बरीश महाराज से क्षमा मांगीये, वही आप को क्षमा कर सकते हैं। इस प्रकार जब दुर्वासा मुनि अम्बरीश महाराज की शरण में गए। अम्बरीश महाराज, इतने उन्नत वैष्णव थे कि उन्होंने उनका किसी भी प्रकार का अपराध नहीं माना, और वे स्वयं हाथ जोड़कर सुदर्शन भगवान से कह रहे हैं कि हे सुदर्शन चक्र आप इन्हें क्षमा कर दीजिए। जिस प्रकार अम्बरीश महाराज सुदर्शन से प्रार्थना कर रहे हैं तो आप देख सकते हैं कि वे कितने उन्नत भक्त हैं।
इस प्रकार से उनकी प्रार्थना से दुर्वासा मुनि की रक्षा हो सकी। इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के इस संदर्भ से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि हम किस प्रकार अम्बरीश महाराज के चरित्र का अनुसरण करें न कि दुर्वासा मुनि के जो कि एक अपराधी थे। इस प्रकार हमें "जीवेर दया वैष्णव सेवा" के प्रति ध्यान देना चाहिए, वैष्णव अपराध के प्रति नहीं। वैष्णव गुणों का हमें सेवन करना तथा उनके अपराध से हमें बचना है। आज के विचारों के लिए आपका इतना ही भोजन है इस प्रकार आपको मनन करना है कि अभी ही नहीं बल्कि जीवन पर्यंत आपसे वैष्णव के प्रति अपराध ना हो।
जय श्रील प्रभुपाद की जय।