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*जप चर्चा* *दिनांक 19.03.22* हरे कृष्ण!!! कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन नंद महाराज ने उत्सव मनाया । श्रीकृष्ण का प्रथम प्राकट्य दिवस नवमी को मनाया गया। भगवान् अष्टमी को प्रकट हुए, नवमी पर उत्सव हुआ। भगवान् आधी रात को प्रकट हुए, अगली सुबह उत्सव हुआ। *नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की*.... ब्रज मंडल के सभी निवासी गोकुल दौड़ रहे हैं इसी तरह कृष्ण के प्राकट्य और चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य में समानता है। गौरांग भी गौर पूर्णिमा की रात में प्रकट हुए। एक और समानता है। जैसे कृष्ण के प्रकट होने पर सभी देवताओं का आगमन हुआ था, वे आकाश में एकत्रित हो कर गा रहे हैं ... सुस्वागतम कन्हैया ... *यं ब्रह्मा वरूणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै-वैदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः। ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः।।* (श्रीमद् भागवतम 12.13.1) अनुवाद:- सूत गोस्वामी ने कहा: ब्रह्मा, वरुण, इंद्र, रुद्र तथा मरुतगण दिव्य स्तुतियों का उच्चारण करके तथा वेदों को उनके अंगों, पद- क्रमों तथा उपनिषदों समेत बांचकर जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गायक जिनका सदैव गायन करते हैं, सिद्ध योगी अपने आपको समाधि में स्थिर करके और अपने आपको उनके भीतर लीन करके जिनका दर्शन अपने मन में करते हैं तथा जिनका पार किसी देवता या असुर द्वारा कभी भी नहीं पाया जा सकता- ऐसे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् को मैं सादर नमस्कार करता हूँ। (आप लोग भी सुन रहे हो? मैंने सोचा कि मैं यहां के भक्तों को सुना रहा हूँ जो मेरे समक्ष यहां उपस्थित है लेकिन आप भी सुन रहे हो। डॉ श्याम सुंदर भी सुन रहे हैं सभी सुन ही रहे हैं, मुझे पता नही था) मैं अभी मायापुर में हूं और कुछ क्षणों में मुझे नागपुर के लिए प्रस्थान करना है। जाते-जाते मैं कुछ .. मैं पिछली रात महा अभिषेक, पुष्प अभिषेक के विषय में सोच रहा था। लगभग 500 वर्ष पहले देवी देवताओं ने भी किया था। देवी देवता प्रार्थना और अभिनंदन करने में व्यस्त थे। उन्होंने फूलों की वर्षा की थी, उनके पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए हमनें भी कल रात पुष्प अभिषेक किया। नवद्वीप में 9 आइलैंड है, मध्य में अन्तरद्वीप है। यहाँ नवद्वीप के निवासी मायापुर योगपीठ में एकत्रित हुए। एक बहुत बड़ा उत्सव हुआ। गौड़ीय वैष्णव भक्त आज बहुत बड़ा उत्सव मना रहे हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! जय शची नंदन जय शचीनन्द... जय शचीनन्दन गौर हरि। जय निमाई! शची माता की जय! शची माता प्राण धन गौर हरि.. आप जो फ़ोटो देख रहे हैं यह शची माता और निमाई की कुटीर है। निमाई बाएं है और सामने जगन्नाथ मिश्र खड़े हुए है। जगन्नाथ के साथ जो छोटे बालक खड़े हैं, वह विश्वरूप है। विश्वरूप निमाई के बड़े भाई हैं। हरि हरि! गौर प्रेमनन्दे हरि हरि बोल! हरे कृष्ण जप चर्चा परम् पूज्य श्रील भक्ति आश्रय वैष्णव स्वामी महाराज द्वारा हरे कृष्ण!!! सभी भक्तों को मेरा सादर प्रणाम! अभी-अभी परम पूज्य लोकनाथ गोस्वामी महाराज आप सभी को नवद्वीप मंडल परिक्रमा के विषय में बता रहे थे और मायापुर से जगन्नाथ मिश्र का घर भी दिखा रहे थे। कल श्रीचैतन्य महाप्रभु की फाल्गुन पूर्णिमा सन्ध्या समय में सु- आविर्भाव तिथि थी। क्योंकि कल संध्या था और चंद्र ग्रहण था, दिन से ही जगन्नाथ मिश्र के घर में देव और मनुष्य दोनों की भीड़ शुरू हो गई थी। संध्याकाल था, तब उस समय नवद्वीप में इलेक्ट्रिसिटी नहीं थी। स्ट्रीट लाइट या ऐसी कोई व्यवस्था नही थी। दीप आदि प्रज्वलित करके दूसरे दिन मतलब आज के दिन अर्थात प्रतिपदा के दिन श्री जगन्नाथ मिश्र ने पुत्र प्राप्ति पर अपना उत्सव किया। उन्होंने भी आनंद उत्सव इस प्रकार से किया जैसे श्री धाम वृन्दावन में नंद महाराज ने किया था जब कृष्ण मध्यरात्रि के बाद प्रकट हुए थे, किसी को पता नहीं चला था। दूसरे दिन सुबह पुत्र प्राप्ति का पता चला तब उन्होंने फिर नवमी तिथि को नंद महोत्सव किया। वैसे ही वहीं नंद नंदन भगवान कृष्ण शचीनन्दन के रूप में श्री मायापुर धाम में प्रकट हुए और आज प्रतिपदा तिथि में उनका भी उत्सव श्री जगन्नाथ मिश्र और शची माता परम आनंद के साथ आनंद उत्सव करेंगे। उसे जगन्नाथ आनन्द उत्सव कहते हैं। श्रीमान चैतन्य महाप्रभु स्वयं भगवान हैं। वह हमारी तरह से जन्म नहीं लेते हैं। उनका जन्म तो लीला मात्र है। हम लोगों के कल्याण के लिए है, वे प्रेम वर्ष लीला करते हैं। हम कर्म वश करते हैं और वे प्रेम वश। वे प्रकट हुए, ऐसा वर्णन आता है कि प्रकट समय में उनका सौंदर्य इतना सुंदर था..., जैसे साधारणतया हम संसार में देखते हैं कि कोई भी संतान चाहे बालक हो या बालिका जब लगभग 7-8 महीने या एक साल तक का हो जाता है तब वह बहुत ही आकर्षित लगता है। वही आकर्षक चेहरा भगवान के आविर्भाव के समय में था। अंधकार में, डिलीवरी वार्ड में कोई ज्यादा देख नहीं पाया था। यद्यपि ब्रह्मा आदि देवताओं ने गर्भ स्तुतियां की थी। दूसरे दिन सुबह सभी को पता चला और सभी ने दर्शन किया। बालक का इतना सुंदर रूप था, उसको देखने के लिए आसपास की जितनी भी स्त्रियां थी, बालक को देख बहुत ही प्रसन्न व आकर्षित हो गयी। केवल इतना ही नहीं, देवता लोक से समस्त देवियां व नवद्वीप के आसपास जितनी भी स्त्रियां थी, वे सब गयी...बहुत बड़ी भीड़ लगी थी। वे भेंट ला रही थी। भगवान् का दर्शन खाली हाथों से नहीं करते हैं। सन्त व महापुरुष के पास कुछ भेंट दक्षिणा लेकर आना पड़ता है। जगन्नाथ मिश्र के घर में अनेक सामग्री आने लगी। ऐसा वर्णन आता है कि शांतिपुर से अद्वैत आचार्य ने अपनी धर्म पत्नी सीता ठकुरानी को आदेश दिया कि आप जाओ और उनके दर्शन करो। आप अनुभवी हो, उनकी सहायता करो कि उनको क्या क्या आवश्यकता है। सीता ठकुरानी ने आचार्यों की अनुमति से विभिन्न विभिन्न प्रकार के द्रव्य जो जात संस्कार के लिए आवश्यक होते हैं और जात संस्कार के बाद के उत्सव के लिए भी आवश्यक होते हैं, उन सब नाना प्रकार के द्रव्यों, अलंकारों, वस्त्रों, पूजा सामग्री, विभिन्न विभिन्न प्रकार के द्रव्य लेकर जगत पूजिता आर्या श्री सीता ठकुरानी आई अर्थात उस ज़माने में पूरे नवद्वीप की सबसे ज्यादा सम्मानित महिला, भगवती सीता देवी अनेक नाना प्रकार की सामग्रियों के साथ वहां पधारी। उनका स्वागत किया गया। वे भगवान् के दर्शन करके प्रसन्न होती हैं। श्री मालिनी देवी, आचार्य रत्न की पत्नी सीता ठकुरानी बहुत ही अनुभवी महिलाएं थी, उच्च कोटि की भक्त थी। उन लोगों ने मिलकर विधि पूर्वक मिलकर यह जात संस्कार, पूजा इत्यादि किया। दूसरे दिन जगन्नाथ मिश्र अत्यंत प्रसन्न चित्त, अत्यन्त आनंद से इस उत्सव को मनाना चाहते थे। हम जानते हैं कि उत्सव में तीन काम होते हैं। उत्सव में भोजन आवश्यक होता है। गाना, नाचना और खाना यही उत्सव होता है। जगन्नाथ मिश्र इतने उदार और आनंदित थे कि वह दान करना चाहते थे। किसी विशेष उत्सव में कल्याण कामना के लिए ब्राह्मण आदि को कुछ दान किया जाता है। जगन्नाथ मिश्र यद्यपि दरिद्र ब्राह्मण थे क्योंकि भगवान स्वयं उनके घर में प्रकट हुए थे, इसलिए लक्ष्मी देवी भी आ गयी। भगवान् आए तो लक्ष्मी आएगी ही। जब लक्ष्मी उनके घर में आ चुकी इसलिए इतनी भेंट सामग्री आदि उनके घर में आई थी कि जगन्नाथ मिश्र ब्राह्मणों को दान करने लगे। पूरे नवद्वीप में जितने गायक पार्टी, कीर्तन पार्टी थी, वे सब बिना निमंत्रण के आ गई और आकर अपना अपना परफॉर्मेंस करने लगी। यद्यपि वे बिना किसी आशा के परफॉर्मेंस करने आए थी लेकिन जगन्नाथ मिश्र ने उन सबको, उनके मन के हिसाब से विशिष्ट दान दिया। वे सभी दान लेकर, प्रसन्न होकर गए। जगन्नाथ मिश्र ने उनको प्रचूर दान दिया। यह नियम है कि दान दक्षिणा होना चाहिए। आजकल किसी के घर में पुत्र का जन्म होता है तब उसका जन्मदिन मनाया जाता है। हम उसमें देखते हैं कि दूसरे लोग उल्टी सीधी बर्थडे गिफ्ट लेकर आते हैं लेकिन उस दिन कम से कम उनके घर वालों को तो देना ही चाहिए जिस प्रकार जगन्नाथ मिश्र ने दिया। इस प्रकार बहुत बड़ा आयोजन किया गया। भगवान् में पहले हरि नाम को भेजा। महाप्रभु जब हुए , तब वे रोने लगे, किसी प्रकार से कोई भी उनको शांत नहीं कर पाया। तब भगवान् का हरिनाम सुन कर शांत हो गए। उनका रोना बंद हो गया। तब सब समझ गए कि बालक निमाई को यदि रोने से रोकना हो, प्रसन्न करना हो तो हरि नाम कीर्तन करना ही पड़ेगा। भगवान रो रो कर दूसरे के मुख से हरि नाम बुलवाते थे। सीता ठुकरानी शची नंदन के अभूतपूर्व सौंदर्य को देखकर आशा करती है कि इतनी सुंदरता, कहीं किसी का दोष नजर ना लग जाए, कोई डाकिनी-शाकिनी आकर कोई दुष्टता न कर दें। इसलिए नाना प्रकार की अलंकार विधि उसने की थी। कहीं किसी का नजर ना लगे। इसलिए उन्होंने नामकरण किया, सीता ठुकरानी ने नामकरण किया। सीता ठुकरानी ने सोचा कि किसी की नज़र न लगे इसलिए कड़वा नाम होना चाहिए। सीता ठकुरानी ने निमाई नाम दिया। यद्यपि जगन्नाथ मिश्र के ससुर नीलांबर चक्रवर्ती प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य थे और नवद्वीप में जितने बड़ें ज्योतिषाचार्य थे, सब से बात करके इतने सुंदर बालक को नाम विशम्भर दिया। पर यह नाम चला नहीं, फेमस नहीं हुआ। सीता ठकुरानी द्वारा प्रेम पूर्वक दिया गया निमाई नाम वही सबसे प्रसिद्ध है। केवल उसी समय ही नहीं, आज इतने वर्षों बाद भी निमाई नाम प्रसिद्ध है। नामकरण भी हुआ और जगन्नाथ मिश्र के घर में पूरे नवद्वीप से जितने प्रकार के कीर्तन, नर्तक, दक्ष आए थे उन सभी ने अपना अपना परफॉर्मेंस किया और जगन्नाथ मिश्र ने सभी को दक्षिणा , भेंट दान इत्यादि देकर पुत्र के जन्म के आनंद के महोत्सव के लिए बहुत बड़ें भंडारे भोज का आयोजन किया। आसपास के जितने भी ब्राह्मण वैष्णव इत्यादि लोग आए थे, सभी को विशेष भोज दिया गया। किसी भी उत्सव का अंतिम प्रयास भोजन होता है। भोजन के बिना कोई सिद्धि नहीं होगा। जगन्नाथ मिश्र ने शचीनन्दन भगवान गौर हरि के प्राकट्य उत्सव के उपलक्ष्य में उनकी प्रसन्नता के लिए, संपूर्ण जगत के कल्याण के लिए, भगवत कृपा के लिए, जिस फीस्ट का आयोजन किया था। जितने भी गौड़ीय वैष्णवगण है, सभी ने कल के दिन व्रत धारण किया था। वे आज बदला लेंगे। आज सुंदर सुंदर व्यजंन नाना प्रकार के खाद्य सामग्री, भगवान् शचीनन्दन गौर हरि को जो कि हमारे इष्टदेव भगवान् गौर हरि हैं, को अर्पित करें। हम लोगों का कर्तव्य है कि आज यथाशक्ति जितने सुंदर सुंदर पकवान लेकिन अपने पसंद से नहीं अपितु भगवान् को कौन सा सामग्री पसंद है, इस प्रकार की सामग्री तैयार करके भोग लगाए व जितने भी भक्त हो, उनमें वह प्रसाद वितरण करना चाहिए। जगन्नाथ मिश्र के महोत्सव का मुख्य अंग है- महाप्रभु जन्म उत्सव के लिए फीस्ट। शची माता, सीता ठुकरानी आदि आदि ये जितनी भी शुभ महिलाएं स्त्रियां थी, उन्होंने बंगाल में प्रसिद्ध खाद्य सामग्री हुआ करती थी अर्थात जो सबसे आकृष्ट वस्तु थी, वे उन्होंने तैयार की थी। उस जमाने में गैस चूल्हा नहीं था, हाई टेक किचेन इत्यादि नहीं था। मिट्टी के बर्तन में, लकड़ी के चूल्हे पर सामग्री तैयार करते थे। भगवान की सबसे प्रिय सामग्री है- साग! हरी पत्ते वाली सब्जी। जो आजकल हम किसी फीस्ट में मेनू करते ही नहीं है। आजकल के फीस्ट का मेनू एकदम अलग होता है। वह भगवत प्रसन्नता के लिए तो होता ही नहीं है। यह हम लोगों की प्रसन्नता के लिए होता है। यद्यपि यदि भगवान को प्रसन्न करने के लिए, भगवान के भक्तों को प्रसन्न करने के लिए श्रीजगन्नाथ मिश्र जिस प्रकार से भोजन सामग्री तैयार किए। हमें भी वैसे ही करना चाहिए। हम श्रीचैतन्य लीला में पढ़ते हैं कि श्री अद्वैत आचार्य, श्री सारभौम भट्टाचार्य, श्री राघव पंडित, मालिनी देवी, श्रीवास आचार्य जो भी भगवान के परम वैष्णव थे, वे चैतन्य महाप्रभु के लिए भोजन बनाते थे। वे जो जो भी भोजन/ आइटम सामग्री बनाते थे, वह सामग्री हमें सीखना चाहिए। वही सामग्री हमें भगवान की प्रसन्नता के लिए अर्पित करनी चाहिए। आजकल हम फास्ट फूड खाते हैं, हम साग खाना तो बिल्कुल पसंद ही नहीं करते। भगवान् चैतन्य महाप्रभु की प्रिय फीस्ट नीम के मुलायम कोमल नूतन पत्ते होते हैं। नीम के मुलायम पत्तों और फूलों से जो साग सामग्री बनती है, वह भगवान को बहुत प्रिय है। नीति शास्त्र में कहा गया है कि नाना प्रकार के विकार पित, काफ, विकार से बचने करने के लिए, कड़वा भोजन ग्रहण करना चाहिए, साथ में करेला जैसे पदार्थ लेने चाहिए। भगवान का जन्म फाल्गुन पूर्णिमा को हुआ था। उस समय नीम, परवल की कई सामग्रियां बनाई गई थी लेकिन आजकल तो लड़के लड़कियां नीम, करेले का नाम लेना ही पसंद नहीं करते । भगवान को कौन कौन सामग्री प्रिय है, वह अवश्य होना चाहिए। भगवान् उस सामग्री को अवश्य स्वीकार करते हैं। जगन्नाथ मिश्र ने महान विशेष महोत्सव किया था। प्रायः सभी मंदिरों में गौरांग महाप्रभु की प्रसन्नता के लिए विशेष भोज का आयोजन किया जाता है। श्री जगन्नाथ मिश्र के उत्सव के उपलक्ष में आज के दिन स्वयं भेंट स्वीकार करना और भेंट देना यह प्रीति का उत्सव है। बड़े आनंद का उत्सव है। प्रीति लक्षण में हमारे आचार्य गोस्वामी कहते हैं- *ददाति प्रतिगृह्णति गुह्यमाख्याति पृच्छति। भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीति-लक्षणम्।।* ( उपदेशामृत श्लोक ४) अर्थ:- दान में उपहार देना, दान- स्वरूप उपहार लेना, विश्वास में आकर अपने मन की बातें प्रकट करना, गोपनीय ढंग से पूछना, प्रसाद ग्रहण करना तथा प्रसाद अर्पित करना- भक्तों के आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार के ये छह लक्षण हैं। एक दूसरे से प्रेम करने का, एक दूसरे को प्रसन्न रखने का भाव मेंटेन करने की 6 विधियां है। षड्विधं प्रीति-लक्षणम् के विषय में आप जानते होगे? श्रील रूप गोस्वामी ने उपदेशामृत में कहा है उनमें से एक है- भुङ्क्ते भोजयते चैव आपको उन्हें कुछ देना पड़ेगा और उनसे कुछ लेना पड़ेगा। यह लेनदेन- उपहार देना और उपहार स्वीकार करना, यह प्रीति के लक्षण हैं। जगन्नाथ मिश्र के घर में जो भी आते थे, वे उनको भेंट देते थे और दान भी देते थे। जिनको हम पसंद करते हैं, जो मित्रवत है हमें उनको कुछ देना चाहिए उनको भी हमें कुछ देना चाहिए। इससे प्रेम का व्यवहार बढ़ता है। उसके पश्चात गुह्यमाख्याति पृच्छति अर्थात जब वे आते हैं, तब हम उनसे पूछेंगे कि कैसे हैं आप? वो भी कुशल प्रश्न करेंगे। हम भी उनको प्रश्न करेंगे। हमारी समस्या क्या है ? हमारे अंदर ऐसी समस्याएं हैं जिसको हम प्रायः किसी को बोल ही नहीं सकते। जो अपने अत्यंत घनिष्ठ व्यवस्था व्यक्ति हो, जिसके साथ आपका प्रेम संबंध हो, आप केवल उसी को ही बोल सकते हैं। जिस पर विश्वास होगा कि यह मुझे सहायता करने के लिए विशेष रूप से सही उपाय बताएगा। इस प्रकार से हमें अपनी सारी अंदर की गुह्यतम् समस्या उनके सामने खोल कर बतानी चाहिए और फिर पूछना चाहिए? क्या करूं, बताओ? इस प्रकार प्रेम से मिलन की यह भी विधि है। तीसरी विधि है भुङ्क्ते भोजयते चैव- उनके घर में उत्सव हो और कभी बुलाए तो जाना चाहिए। उनके घर में प्रेम से प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। यदि आपके घर में कुछ ऐसा आंनद उत्सव आदि हो तो आपको भी प्यार से आमंत्रित करना चाहिए। उन को भोजन कराना चाहिए। आजकल हम कुछ देखें या नही लेकिन एक चीज देखते हैब कि बड़े बड़े बिजनेसमैन आदि सब लोग होटल में या इधर उधर पार्टी करते हैं। यह पार्टी प्रीतिभोज ही तो है घर में खिलाते नहीं हैं, होटल में ख़िलाते हैं। लेकिन वो भोजन वास्तविक नहीं होता, डुप्लीकेट होता है। भोजन का मतलब अपने घर में भोजन बनाकर बुलाना और उनको खिलाना। वो भी आकर देखेंगे कि हमारा रहन- सहन बोली कैसी है। आप किस प्रकार बनाते हैं? क्या कमी है, क्या अच्छा है। बाहर रेंटेड जगह पर कोई और बनाए, यह नहीं, यह प्रीति के लक्षण नहीं। जगन्नाथ मिश्र ने किसी होटल में भोजन लाकर व्यवस्था नहीं की। जो भी स्त्रियां घर में थी, सीता ठकुरानी की अध्यक्षता में नाना प्रकार की सामग्री बना कर प्रस्तुत की गई। इसलिए हर स्थिति में अपने घर में, घर के सदस्यों के साथ मिलकर भोग प्रसाद रंधन कर, नैवैद्य अर्पण कर दान वितरण करना चाहिए। जिसके घर में व्यवस्था है, वहां पर भी जा सकते हैं, वह भी बहुत अच्छा है। भुङ्क्ते भोजयते चैव, जगन्नाथ मिश्र ने इस प्रकार से भोजन और बालक के जन्म पर दान दक्षिणा दिया। यही जगन्नाथ मिश्र के उत्सव का मुख्य अंग था। निश्चित ही भगवान् को देखने के लिए, प्रसाद पाने के लिए, केवल इस धरती के मनुष्य गण ही नहीं, अपितु स्वर्ग से समस्त देवगणों सबने भाग लिया क्योंकि वे जानते थे कि यह बालक कौन है? इसलिए अपने आप को धन्य मानना चाहिए क्योंकि शची नंदन गौर हरि परमेश्वर भगवान थे। उनका रूप,उनके चरण कमल सब मंगल चिन्हों को जान करके सभी परम खुश थे। लेकिन किसी को पता नहीं था कि हम इतना खुश क्यों हो रहे हैं? ऑटोमेटिक सभी खुश हो गए। सबके हृदय में आनंद, प्रसन्नता भर गया था, इसलिए सभी बढ़ चढ़ कर भाग लेने के लिए आए। जो बड़ें थे, सभी ने आशिर्वाद दिया, कीर्तन, नृत्य, फिस्टिंग और कुछ कुछ उपहार देना और उपहार स्वीकार हुआ। याद रहेगा कि हम शचीनन्दन के जन्म उत्सव में गए थे और हमें यह मिला था। इस प्रकार से जगन्नाथ मिश्र ने महोत्सव मनाया। रघुनाथ दास गोस्वामी पूरे डिटेल में उसको बधाई गान के रूप में वर्णन करते हैं कि किस प्रकार सब, कौन कौन सी सामग्री लेकर आए थे, क्या किया था। *मिश्र- वैष्णव, शांत, अलम्पट, शुद्ध, दान्त, धन- भोगे नाहि अभिमान। पुत्रेर प्रभावे य़त, धन आसि' मिले,तत, विष्णु- प्रीते द्विजे देन दान।।* ( चैतन्य चरितामृत आदि लीला १३.१२०) अर्थ:- जगन्नाथ मिश्र एक आदर्श वैष्णव थे, वे शांत, इन्द्रीयतृप्ति में संयमित, शुद्ध तथा संयमी थे। अतएव उनमें भौतिक ऐश्वर्य भोगने की कोई इच्छा नहीं थी। जो भी धन उनके दिव्य पुत्र के प्रभाव से आया, उसे उन्होंने विष्णु की तुष्टि के लिए ब्राह्मणों को दान में दे दिया। यहां जगन्नाथ मिश्र के गुण बताए हैं कि वे शांत थे, वैष्णव थे, अलम्पट थे, शुद्ध थे, इसलिए जितना भी धन सम्पति उनके पास आया, सब विष्णु की संतुष्टि के लिए ब्राह्मणों को दान में दे दिया। *लग्न- गणि' हर्षमति, नीलाम्बर चक्रवर्ती, गुप्ते किछु कहिल मिश्रेरे। महापुरुषेर चिन्ह, लग्ने अङ्गे भिन्न- भिन्न, देखि- एइ तारिबे संसारे।।* ( श्री चैतन्य चरितामृत आदि लीला १३. १२१) अर्थ:- श्रीचैतन्य महाप्रभु की जन्म घडी की गणना करके नीलांबर चक्रवर्ती ने जगन्नाथ मिश्र से एकांत में कहा कि उन्होंने बालक के शरीर तथा जन्म घड़ी दोनों में ही महान व्यक्ति के विभिन्न लक्षण देखे हैं। इस प्रकार वे समझ गए कि यह बालक भविष्य में तीनों लोकों का उद्धार करेगा। नीलांबर चक्रवर्ती ने सुबह जब आकर दर्शन किया और उनके राशि नक्षत्र के हिसाब से गणना की तो जगन्नाथ मिश्र को बुलाकर बोले, अद्भुत लक्षण वाला बालक है, उनके द्वारा संसार का उद्धार होगा। *ऐछे प्रभु शची- घरे, कृपाय कैल अवतारे, ये़इ इहा करये श्रवण। गौर- प्रभु दयामय, त़ारे हयेन सदय, सेइ पाय ताँहार चरण।।* ( श्री चैतन्य चरितामृत आदि लीला 13.122) अनुवाद:- इस तरह चैतन्य महाप्रभु अपनी अहैतु की कृपा वश शचीदेवी के घर में अवतरित हुए। चैतन्य महाप्रभु उस किसी भी व्यक्ति पर अत्यंत कृपालु होते हैं, जो उनके जन्म के इस वृतान्त को सुनता है। इस प्रकार शची और जगन्नाथ के घर में भगवान चैतन्य महाप्रभु का जन्म लीला/ अवतार हुआ। जो भक्त इसका श्रवण करता है, गौरांग महाप्रभु दया करके उसे अपने श्री चरणों की प्राप्ति कराते हैं। *पाइया मानुष जन्म, ये ना शुने गौर- गुण, हेन जन्म तार व्यर्थ हैल। पाइया अमृत धूनी , पिये विष- गर्त पानि, जन्मिया से केने नाहि मैल।।* ( श्रीचैतन्य चरितामृत आदि लीला १३.१२३) अर्थ:- जो व्यक्ति मनुष्य का शरीर पाकर भी श्री चैतन्य महाप्रभु के सम्प्रदाय को ग्रहण नहीं करता, वह अपने सुअवसर को खो देता है।अमृतधुनी भक्तिरूपी अमृत की प्रवाह मान नदी है। यदि मनुष्य शरीर पाकर कोई ऐसी नदी का जल पीने के बदले भौतिक सुख रूपी विषैले गड्ढे का जल पीता है, तो अच्छा यही होता कि वह जीवित रहने के बजाय बहुत पहले ही मर गया होता। मनुष्य जन्म पाकर जो गौरांग महाप्रभु की जन्म लीला श्रवण नहीं किया, उनका मनुष्य जन्म व्यर्थ है। *श्री चैतन्य- नित्यानंद, आचार्य अद्वैतचंद्र, स्वरूप- रूप- रघुनाथ दास। इँहा- सबार श्री चरण, शिरे वंदि निज धन, जन्म लीला गाइल कृष्णदास।।* ( श्रीचैतन्य चरितामृत आदि लीला 13.124) अर्थ:- मैनें कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने, श्री चैतन्य महाप्रभु, नित्यानंद प्रभु, आचार्य अद्वैतचंद्र, स्वरूप दामोदर, रूप गोस्वामी तथा रघुनाथ दास गोस्वामी के चरण कमलों को अपनी सम्पति समझकर अपने सिर पर धारण करके श्री चैतन्य महाप्रभु के अविर्भाव का वर्णन किया है। अमृत के धार पा कर भी ... मनुष्य जन्म को व्यर्थ गवां अथवा मर रहे है। *ऐछे शची जगन्नाथ, पुत्र पाञा लक्ष्मीनाथ, पूर्ण हइल सकल वाञ्छित। धन धान्ये भरे घर, लोकमान्य कलेवर, दिने दिने हय आनंदित।।* ( श्रीचैतन्य चरितामृत आदि लीला 13.119) अर्थ:- इस प्रकार लक्ष्मीपति को पुत्र रूप में पाकर माता शची देवी तथा जगन्नाथ मिश्र की सारी मनोकामनाएं पूरी हो गयी। उनका घर सदैव धन- धान्य से भरा रहने लगा। वे ज्यों- ज्यों श्रीचैतन्य के प्यारे शरीरको देखते, दिन प्रतिदिन उनका आनंद बढ़ता जाता था। इस प्रकार जगन्नाथ मिश्र परम आनंद से श्रीशची कुमार गौर हरि के लिए यह सब व्यवस्था करते थे और आज भगवान के साक्षात इस उत्सव को मनाते हैं उसमें कोई कंजूसी नहीं करते हैं । किसी को दान देने में , भोजन देने में, वस्त्र आदि किसी में कोई कसर नहीं छोड़ कर के यथाशक्ति धन सम्पति जुटाकर इस उत्सव को बहुत सुंदर व आकर्षक बनाते हैं। इस प्रकार से जगन्नाथ मिश्र भगवान के पिता, जिनमे राजा दशरथ, नंद महाराज, वसुदेव, कश्यप सारे ही समाहित थे तो उन्होंने अपने श्री पुत्र भगवान गौर हरि जो साक्षात भगवान हैं, जिनमें अन्य समस्त भगवत स्वरूप निहित थे। उनकी जन्म लीला के जन्म उत्सव को मनाते हैं इसलिए हम सभी जो श्रोता व भक्त गण हैं बड़ी श्रद्धा से भगवान् का दिया हुआ नाम जप करते हैं। भगवान की कथा सुनते हैं। कल महाप्रभु की प्रसन्नता के लिए अवश्य ही व्रत धारण किए होगा। भिन्न भिन्न प्रकार से आपने महाप्रभु का उत्सव अभिषेक किज होगा। एकादशी प्रसाद या फलाहार लिया होगा। आज दिल खोल कर भगवान को प्रसन्न कीजिए। सुंदर-सुंदर खाद्य सामग्री प्रस्तुत करके सभी भक्तों को भोजन कराइए , उसके बाद स्वयं भोजन कीजिए । उसके साथ साथ आनंद मंगल हरि नाम कीर्तन का नृत्य हर भक्त को अवश्य करना चाहिए । इसके साथ साथ जगन्नाथ मिश्र व शचीदेवी कितने प्रसन्न हुए , जन्म की उन सब लीलाओं को ढंग से प्रमाणिक सूत्रों से सुनना चाहिए। इस प्रकार से जगन्नाथ मिश्र ने इस प्रकार उत्सव किया था। हम इस को पढ़ सुनकर आशिर्वाद ले सकते हैं। श्री शची नंदन गौर हरि की जय। समवेत भक्त वृंद की जय! निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!

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