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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *10 अगस्त 2021* गौरांग । निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल । 864 स्थानों से आज जप हो रहा है । हरे कृष्ण। मुझे आशा है कि आप जप करने में आनंद ले रहे हैं ! जप मैं आनंद आ रहा है ? हरि हरि । हरे कृष्ण । आप तैयार हो ? हाथ उपर जा रहे हैं , किसलिए ? क्यों ? हाथ नीचे करो । अभी मुझे कुछ बोलने तो दो (हंसते हुए) फिर देखो हाथ ऊपर करने की या विरोध करने की या समर्थन करने की आवश्यकता हो तो तब आप हाथ ऊपर नीचे कर सकते हो । 2 दिनों से हम बात कर ही रहे हैं , मैंने भी बातें की और आप भी बोल रहे थे , लिख रहे थे , कह रहे थे और मैंने कहा था कि 14000 शास्त्रज्ञों ने ऐसा कहा , हम कुछ सुधार नहीं करेंगे तो कुछ या पूरा , बहुत कुछ नहीं करेंगे तो हम सभी यह पूरा संसार धरती माता और हम सब उसके बालक विनाश की ओर आगे बढ़ रहे हैं , विनाश होगा । छोटा-मोटा प्रलय होगा आपातकालीन परिस्थिति उत्पन्न होगी ऐसी चेतावनी वह दे रहे थे और अभी अंत में जो संदेश उन्होंने दिया उस पर हम चर्चा कर रहे थे और फिर आपने भी उस चर्चा सत्र में भाग लिया । ऐसी ऐसी समस्या है तो उसका क्या समाधान है ? उसका कैसे समाधान किया जा सकता है ? आपमें से कईयों ने अपने अपने व्यक्तव्य , विचार , मत्यव्य उनके विचार व्यक्त की , उन सब का स्वागत है । कम और ज्यादा , मोर ओर लेस अंग्रेजी में कहा जाता है आप सभी ने जो जो कहा सच ही कहा , किसी ने कुछ झूठ नहीं कहा । हो सकता है किसीने थोड़ा गुड बेटर बेस्ट ऐसी बातें भी होती ही रहती है । किसी ने कुछ अच्छी बातें की , किसी ने कुछ और भी अच्छी बातें की , किसीने और भी सर्वोत्तम बातें की अपने विचार व्यक्त किये । अब देखते हैं हमने नाशिककर बसीवदन ठाकुर प्रभु को कुछ गृहपाठ भी दिया है । एक अहवाल या एक रिपोर्ट हम सबके जानकारी के लिए प्रकाशित कर सकते हैं । इस चर्चा सत्र का क्या परिणाम , क्या डिक्लेरेशन , क्या घोषणाये है । यह क्या घोषणा होगी ? फिर मैं सोचही रहा था , मैं सोचता ही रहता हूं तब मेरा ध्यान जा रहा था भगवत गीता अध्याय 2 श्लोकसंख्या 62 और 63 आपके जानकारी के लिये । ध्यायतो विषयान्पुंसः सङगस्तेषूपजायते | सङगात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते || (भगवद्गीता 2.62) अनुवाद:-इन्द्रियाविषयों का चिन्तन करते हुए मनुष्य की उनमें आसक्ति उत्पन्न हो जाति है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है | क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः | स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || (भगवद्गीता 2.63) अनुवाद:- क्रोध से पूर्ण मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरणशक्ति का विभ्रम हो जाता है | जब स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाति है, तो बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि नष्ट होने पर मनुष्य भव-कूप में पुनः गिर जाता है | मैंने सोचा यह जो भगवान के वचन है , भगवान के वचन है! और भगवान सुप्रीम अथॉरिटी है मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय | मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव || (भगवद्गीता 7.7) अनुवाद:- हे धनञ्जय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है | जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है | मुझसे और कोई ऊंचा व्यक्ति या अधिकारी या ऐसे विचार वाला और कोई है ही नहीं, भगवान ही सर्वे सर्वा है , उन्होंने कहा और यह दुनिया उन्हीं की है , यह साम्राज्य भगवान का ही है । भौतिक साम्राज्य भी भगवान का ही है , यहां के लोग , यहां के हम सब लोग कैसे ? बुद्धिनाशात्प्रणश्यति हम लोग नाश की और कैसे आगे बढ़ते हैं ? नाश को प्राप्त होते हैं । नाश ! और यहां नाश और उसको प्रणश्यति कहा गया है विशेष प्रकृश्य रूपेन विनाश , बड़ियासे विनाश , भगवान ने केवल विनाश ही नहीं कहा हैं प्रणश्यति विनाश यहां तक हर व्यक्ति या सारे व्यक्तियों का समुदाय , समाज या मानव जाति प्रणश्यति कैसे प्रणाश , विनाश होगा ? कृष्ण यहां बता रहे हैं की विनाश अगर उसका परिणाम है या दुष्परिणाम है , इसका प्रारंभ कैसे होता है ? विनाश का प्रारंभ कहां से होता है और विनाश के बाद में क्या होता है ? शुरुआत होने के बाद क्या होता है ? किस क्रम से एक-एक मनुष्य और सारे मनुष्य का समाज मिलकर हम प्रारंभ से समार्पण तक कैसे पहुच जाते हैं? क्या घटनाएं घटती है ? या कैसे विचारों से प्रभावित होता है इसको यहां कृष्ण समझा रहे हैं । अगर इसको हम समझेंगे तो इस क्रम को हम कुछ उलटा भी कर सकते हैं , शुरुआत ही नहीं होने देंगे , विनाश की शुरुआती ही नहीं होने देंगे तब और विनाश , और विनाश , और विनाश , और विनाश फिर प्रणश्यति पूरा हो गया सत्यानाश । उसको हम कैसे टाल सकते हैं ? शुरुआत ही नहीं करेंगे उस और मुड़ेंगे ही नहीं , उस विचारधारा को अपनाएंगे ही नहीं ऐसी जीवन शैली को हम धिकार होगा तब फिर विनाश के बजाय विकास हो सकता है । एक विनाश और एक है विकास , हम सबका विकास हम सब के साथ ऐसा भी कोई पार्टी कहती रहती है (हँसते हुये) लेकिन सच में उनको पता नहीं है कि विकास किसको कहते हैं ।समय अधिक नहीं है इसलिये झट से हम आपको कृष्ण का कहना सुनाते ही हैं , श्री भगवान उवाच , कौन उवाच ? किसने कहा ? तेजस्विनी गोपी किसने कहा ? श्री भगवान उवाच , भगवान ने कहा और भगवान जब बोलते हैं तब तुम अपना मुंख बंद करो केवल सुनो , तुमको बकने की आदत होती है सारा संसार बकबक बकबक ही कर रहा है , सुन तो नहीं रहा है या भगवान को नहीं सुन रहा है औरों को सुनता होगा बकबक या बड़बड़ , सारे दिन भर सारे संसार में बकबक या बड़बड़ होती है ठीक है । ध्यायतो विषयान्पुंसः, मैं अभी थोड़ी देर से जाऊंगा । ध्यायतो विषयान्पुंसः यहां से शुरुआत होती हैं । पूरा मानव समाज , पूरे संसार के लोग मुझे कहना नहीं चाहिये लेकिन विचार आ जाता है सारे संसार के लोग कहते हैं कि हम हिंदू थोड़ी है आपकी कृष्ण ने जो कहा है उसको हम नहीं मानेंगे , पर वहां कोई पर्याय नहीं है । ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् | मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः || (भगवद्गीता 4.11) अनुवाद:- जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ | हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता है | भगवान ने कहा सारे मनुष्य , भगवान ने जो नियम बनाए हैं उसका पालन हर मनुष्य को करना ही होता है ऐसा करते ही हैं वहां कोई पर्याय नहीं है । हिंदू मुसलमान का प्रश्न यहां नहीं है , अमेरिकन इंडियन या गरीब अमीर का नहीं है , सभी के लिए ऐसा है । ध्यायतो विषयान्पुंसः , पुंस: मनुष्य कहा है । मनुष्य क्या करते हैं ? ध्यायतो , ध्यान करते हैं । किसका ध्यान करते हैं? ध्यायतो विषयान्पुंसः, कह तो दिया है विषयान्पुंसः । सारा संसार विषयों का ध्यान करता है शरीर में इंद्रिय है और यह इंद्रियों के विषय है अब हम विस्तार से नहीं कहेंगे आपको इतना तो पता चला ही होगा । पांच इंद्रियां है और पांच इंद्रियों के अपने-अपने 1-1 विषय करके पांच विषय है । सारा संसार क्या करता है ? ध्यायतो विषयान्पुंसः अगर हम कहेंगे कि संसार इतना ही करता है , हर दिन जब जाग गया तो पूरा दिन भर सोने के समय तक सारे संसार के लोग क्या करते हैं ? उत्तर में क्या कहा जा सकता है ? विषयान्पुंसः ,ध्यायतो विषयान्पुंसः । हर व्यक्ति विषयों का ध्यान करता है और ध्यान से शुरुवात होती है शब्द , स्पर्श , रूप , रस , गंध यह विषय है यह मैंने कह दिया , कहना नहीं चाहता था लेकिन विस्तार हो जाता है । शब्द , स्पर्श , रूप , रस , गंध यह इंद्रियों के विषय है और इनका ध्यान करता रहता है । नासिका से सूंघता है तो ध्यान करता है , आंखों से कुछ रूपको देखता है तो ध्यान करता है और स्पर्श करता है तो ध्यान करता है इसी तरह शब्द , स्पर्श , रूप , रस , गंध समझ मे आ रहा है ? संसार में जो कुछ भी है , संक्षिप्त में यही कहा जा सकता है संसार किस से भरा पड़ा है ? इंद्रियों को विषय से भरा पड़ा है । आपके मॉल में सुपर बाजार , हायपर बाजार वहां क्या है ? कुछ शब्द है, स्पर्श हैं , रूप है, रस है, गंध हैं ।ध्यायतो विषयान्पुंसः सारा संसार ध्यान कर रहा है , ध्यान कर रहा है , ध्यान कर रहा है , ध्यान कर रहा है सभी ध्यान ही है किसका ध्यान कर रहा है ? विषयों का ध्यान कर रहा है टेलिविजन देख रहे हैं तब ध्यान कर रहे हैं । हरि हरि । ध्यायतो विषयान्पुंसः फिर क्या होता है ? सङगात्सञ्जायते जिन विषयों का वह ध्यान करेगा उन विषयों से वह आसक्त होगा । सङगस्तेषूपजायते थोड़ा संस्कृत समझ लो । संग आसक्ती तेषु उन्मे , तेषु मतलब उनमें , उन विषयों में सङगस्तेषूपजायते उत्पन्न होगी , आसक्ति उत्पन्न होगी उन विषयों में क्यों ? क्योंकि आपने ध्यान किया । विषयों का ध्यान करने से उसमें आसक्ति उत्पन्न होती है । सङगात्सञ्जायते कामः आगे क्या होता है ध्यान दो उससे कामवासना उत्पन्न होती है , कामवासना । हम कामी बनते हैं काम लालसा आशा पाश शतेर बद्धे , आशा उत्पन्न होती है कामना के विचार आ जाते हैं , हम काम ही बनते हैं ।यह शुरुवात ही है आगे होने वाला है। काम तक पहुच गये है । सारा संसार ही कामी है जो काम से पूर्ण है , जो कामवासना से पूर्ण है उसको कामी कहेंगे । दुखी सुखी कामी ऐसे सारे शब्द बन जाते हैं प्रेमी भी है जो प्रेम से भरा है । सारे संसार के लोग कामी है मुक्ति कामी , भुक्ति कामी , सिद्धिकामी शकले अशांत , सारा संसार अशांत है क्यों? कामना से पूर्ण है । याद रखिये ध्यायतो विषयान्पुंसः, विषयों का ध्यान किया , सङगस्तेषूपजायते हम आसक्त हो गए , इतने आसक्त हो गए कि उसको हमने प्राप्त कर ही लिया उसके खरीदी कर ही ली और उसको गले लगा ही लिया , उसको पी ही लिया , सूंघ ही लिया फिर कामना और प्रबल हो गई और कामात्क्रोधोऽभिजायते काम तृप्ति के प्रयासों में व्यक्ति कभी सफल नहीं होता , कभी तृप्त नहीं होता यह भी नियम है । इंद्रियों के विषय इंद्रियों को खिलाओ पिलाओ । उससे व्यक्ति कभी तृप्त नहीं होगा अधिक अतृप्त रहता है और फिर पश्चाताभी है फिर कहा है ,कामात्क्रोधोऽभिजायते उससे सुख प्राप्त करना चाहता था , सुख लूटना चाहता था या प्रसन्न होना चाहता था , संतुष्ट होना चाहता था किंतु हुआ नहीं इसीलिए वह पश्तायेगा और कामात्क्रोधोऽभिजायते व्यक्ति व्यक्ति को क्रोध आएगा वह निराश हो जाएगा । कोई व्यक्ति क्रोध में है मतलब उसकी कुछ इच्छा अपेक्षा , उसकी कुछ कामना - योजना सफल नहीं हो रही है या वह जो चाहता था वह प्राप्त नहीं हो रहा है ऐसा ही होता है पहले या बाद में पश्चाता है । इस दुनिया ने हमको दिया क्या और यह क्या और दम मारो दम फिर यह सब शुरू कर देते हैं । अमेरिका में लोग हिप्पी बन गए , संसार से अमेरिका से जो कुछ आशा थी उससे समाधान नहीं हुआ तब देश के प्रति वह क्रोधित हुए और उन्होंने घरदार ही छोड़ दिया ऐसे ही भटक रहे हैं , वह क्रोध में है । जब व्यक्ति को क्रोध आता है , तब क्रोधाद्भवति सम्मोहः , श्लोक 63 व्यक्ति मोहित हो जाता है फिर वही बात है वह भी क्रम तो है ही काम फिर क्रोध फिर लोभ फिर मोह,मद फिर मात्सर्य करें इस क्रम से भी व्यक्ति आगे बढ़ता है। यह जो षड रिपु है तो मिस्टर लस्ट काम यह लीडर है यह नायक है यह षड रिपु जो है उसके नायक कौन है काम है और फिर काम से फिर क्रोध आपको और सभी बताएंगे थोड़ा बता दिया कि काम से क्रोध कैसे होता है। क्रोध से होता है फिर लोभ फिर मोह मोह के बाद मद फिर मात्सर्य और बाद में ईर्ष्या अब पूछो ही नहीं इतना मात्सर्य होता है। औरों का उत्कर्ष जो है वह स्थानीय औरों का उत्कर्षा है उससे औरों का उत्कर्ष असहनीय होता हैं औरो की प्रगति जो हमसे सही नहीं जाती असहनीय बन जाती है तो वह मात्सर्य हो जाता है। या तो क्रोधा त भवति सम्मोहात समोह क्रोध के बाद फिर मोह व्यक्ति मोहित होता है। दुनिया मोहित होती है समाज मोहित होता है हर व्यक्ति मोहित होता है। और यहीं भावना से आगे अहम ममेति की भावना उत्पन्न होती हैं और समोहात स्मृति विब्रमात और फिर मोह से मोहित होने से हमारी देहात्म बुद्धि होती हैं। देहात्म बुद्धि कुंपैकी विधातु ते कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में कहा था ना आपको बताया था कि जब वह साधु संतों को उपदेश दे रहे थे तो देहात्म बुद्धि व्यक्ति देह को आत्मा समझता है। तो यही तो वह मोह है इल्यूजन मोह है और समोहात स्मृति विब्रमह तो भ्रमित होता है संभ्रमित होता है। या मूलतः वह कौन है उसका उसे पता ही नहीं चलता है वो यह सोचता हज नही की कृष्ण दासोस्मि या ये जीव कृष्ण दास येई विश्वास करल तो आर दुःख नाय जीव कृष्ण का दास हैं यह विश्वास इस सत्य से वह बहुत दूर चला जाता है। हम जो जीवात्मा है भगवान के अंश है भगवान के दास है भक्त है। यह जो सत्य है यह जो समझ है इससे बहुत दूर चला जाता है सम्भ्रमित हो जाता है और स्मृति विभ्रम होता है। यह जो याद है भगवान की याद और हम जीवात्मा इस बात की याद खत्म हो जाती है याद ही नहीं उस याद से उस स्मरण से दूर चला जाता है। सम्मोहात स्मृति विभ्रमा क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः | स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || ६३ || अनुवाद:- क्रोध से पूर्ण मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरणशक्ति का विभ्रम हो जाता है | जब स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाति है, तो बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि नष्ट होने पर मनुष्य भव-कूप में पुनः गिर जाता है | और फिर कहा गया हैं स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति जब स्मृति में विभ्रम उत्पन्न हुआ तो इसी के साथ हो बुद्धि का नाश हो गया। या वह बुद्धू हो गया बुद्धू कहीं का बुद्धू का मतलब हंसते हुए उसने यह सब किया हुआ है ध्यायतो विषयान्पुंसः सङगस्तेषूपजायते | सङगात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते || ६२ || अनुवाद:-इन्द्रियाविषयों का चिन्तन करते हुए मनुष्य की उनमें आसक्ति उत्पन्न हो जाति है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है | तो फिर हो गया बुद्धू कहीं का बुद्धू है ना बुद्धि नाशम यह सब एक के बाद एक एक के बाद एक एक के बाद एक इस क्रम से व्यक्ति ध्यायतो विषयान्पुंसः इंद्रियों का विषय से प्रारंभ करके फिर पहुंच गया बुद्धि नाशात बुद्धि का नाश हो गया उसका और फिर बुद्धि का नाश हो गया तो विनाश काले विपरीत बुद्धि तो अब तो अब तो विनाश होना है। विपरीत बुद्धि या बुद्धि नाश हुआ तो कृष्ण कहते हैं। बुद्धि नाशात प्रणश्यति बुद्धि का नाश हुआ तो नष्ट हुआ या गया गो टू हेल कृष्ण ने वैसे कहा भी है काम क्रोध लोभ हो यह तीन द्वार है नरकश्य द्वार हैं यह नरक के द्वार है काम क्रोध लोभ का भी नाम लिया है लेकिन और तीन को भी जोड़ सकते हैं काम क्रोध मोह मद मात्सर्य यह सब द्वार है नरक जाने के द्वार है। तो प्रणश्यति मतलब अधोगति होती हैं और आगे कृष्ण ने कहा ही है अधो गचन्ति तामसा उध्र्वम गचन्त्ति सत्वसा जो सत्वगुणी है वह ऊपर जाएंगे स्वर्ग में जाएंगे लेकिन जो तामसिक हैं वो नीचे जाएंगे नीचे क्या है नरक है नरक जाएंगे बुद्धि नाशात प्रणश्यति ठीक है इतना ही कह सकते हैं। हम संक्षिप्त में लेकिन मुझे और भी एक बात कहनी थी मैंने कहा भी था कि मैं कहूंगा अगर हम हमारा विनाश ना हो ऐसा चाहते हैं आप में से कोई चाहते हो कि आप का विनाश ना हो अच्छा कुछ माताये तो दोनों हाथ ऊपर कर रही है कुछ तो सोच ही रही है कुछ तो केवल हंस रही है तो ठीक है अभी कई सारे हाथों पर जा रहे हैं। ठीक है ठीक है थाईलैंड वाले भी हैं तो देखिए विनाश कोई नहीं चाहता विनाश कोई नहीं चाहता विनाश कोई नहीं चाहता सभी विकास ही चाहते हैं लेकिन विकास किसे कहते है दुर्दैव से ये भी नही पता लेकिन विकास मतलब हम नरक जाने के बजाय आम्ही जातो आमुच्या गावां आमचा राम राम घ्यावा आमी जातो आमच्या गावा ये क्या है ये प्रगति है। यमदूत आपको ले गए क्या बोले गए आपको पता है यमदूत कहां ले जाता है आपको पता है लेकिन यमदूत की बजाए विष्णु दूत आगए ताकि आप को ले जाने के लिए तो यमदूत आ गए तो विनाश हुआ विष्णु दूतआ गए तो विकास हुआ तो क्या करना चाहिए था कि ताकि विष्णु दूत आ जाए तो हमने थोड़ी सी हिंट दी ही थी किसको हम शुरुआत विकास या विनाश की ओर जाने के लिए अंत में हुआ विनाश ही हुआ लेकिन शुरुआत कहां से हुआ ध्यायतो विषयां पुंसां तो यही परिवर्तन करेंगे हम ध्यायतो विषयान्पुंसः करने से होने वाला हैं विनाश जो इंद्रियों के विषयों का ध्यान करेंगे उनका होगा विनाश तो क्या करना होगा ताकि हमारा विकास हो जाए सुन लो इंद्रियों के विषयों का ध्यान किया तो विनाश हो गया तो फिर किसका ध्यान करना चाहिए ताकि हमारा विकास हो जाए विनाश के बजाय विकास कठिन प्रश्न है क्या यह सच में बहुत कठिन प्रश्न है यह तो बाएं हाथ का खेल होना चाहिए किसका ध्यान करने से फिर होगा विकास या फिर कहां से हम शुरुआत करें ताकि हमारा उद्धार होगा उन्नति होगी प्रगति होगी विकास होगा और कृष्ण प्राप्ति होगी हम भगवत धाम लौटेंगे हरि बोल। तो आप कहना आते हो लेकिन आप को म्यूट मतलब आपका मुंह बंद कर दिया है मुख तो बंद नहीं है लेकिन मुझ तक आपकी आवाज नहीं आ सकती लेकिन मैं समझ रहा हूं ठीक है। मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु | मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे || ६५ || अनुवाद:- सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो | स्मरण करो याद करो या र्वेदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः । ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥१ ॥ श्रीमद्भागवत 12.13.1 अनुवाद:- सूत गोस्वामी ने कहा : ब्रह्मा , वरुण , इन्द्र , रुद्र तथा मरुत्गण दिव्य स्तुतियों का उच्चारण करके तथा वेदों को उनके अंगों , पद - क्रमों तथा उपनिषदों समेत बाँच कर जिनकी स्तुति करते हैं , सामवेद के गायक जिनका सदैव गायन करते हैं , सिद्ध योगी अपने को समाधि में स्थिर करके और अपने को उनके भीतर लीन करके जिनका दर्शन अपने मन में करते हैं तथा जिनका पार किसी देवता या असुर द्वारा कभी भी नहीं पाया जा सकता - ऐसे भगवान् को मैं सादर नमस्कार करता हूँ । भगवान का ध्यान करो ध्यायतो विषयान्पुंसः तो जो विषयांन है आपको ध्यान करना है मतलब मनुष्य को ध्यान करना चाहिए विषय के स्थान पर यह संसार के जो विषय है इंद्रियों को जो विषय है उसके स्थान पर भगवान को विषय में बनाना है। भगवान को विषय बनाना है भगवान का कृष्ण का कृष्ण कन्हैया लाल की जय सुंदर ते ध्यान सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी करकटा वरि ठेऊनिया सुंदर ते ध्यान भगवान का ध्यान करना है तो विस्तार से तो कहने के लिए कहा समय है किंतु उनके नाम का ध्यान है उनके रूप का ध्यान है लीला का ध्यान है उनके धाम का ध्यान है। उनके भक्तों का ध्यान है उनके भक्तों के चरित्रों का अध्ययन है स्मरण है ध्यान है तो हरि सम्बंधी वस्तुना: जो जिनका जिनका हरि के साथ प्रत्यक्ष संबंध है दिव्य संबंध है उनका ध्यान करें ठीक है तेजी से जाते हैं तो क्या होगा ध्यायतो विषणापुंस सँगस्तेषुपजायते मोटा मोटी कृष्ण यहा कह रहे हैं कि जिसका हम ध्यान करेंगे उससे हम आसक्त होंगे। उसमें हमारा आसक्त होगा या हमारी आसक्ति बढ़ेंगी इतना ही करते हैं। भगवान का ध्यान किया तो क्या होगा संगस्तेषूपजायते संगस्तेषू मतलब कृष्ण में हम आसक्त होंगे श्रद्धा से प्रेम तक के जो सोपान है श्रद्धा से प्रेम तक फिर श्रद्धावान होना फिर आसक्त होना आसक्ति भाव प्रेम आसक्ति हैं ना अटैचमेंट हम आसक्त होंगे हम भगवान का ध्यान करते करते हम भगवान में आसक्त होंगे संगस्तेषूपजायते और फिर आए कहते है संगात सनजायते कामः अब यहां देखिए क्या कहा है अगर आप इंद्रियों के विषयों में लिप्त है आसक्त हैं तो उत्पन्न होगा कामवासना प्रबल होगी जगेगी हम होंगे कामी किंतु हमने भगवान का ध्यान किया है। भगवान में हम आसक्त हुए है। संगात सनजायते काम: के बजाए क्या होगा कैसे इसे हम संस्कृत में कहेंगे ऐसे संगात सनजायते प्रेमाहा यह कृष्ण जिसका जिक्र कर रहे हैं इस लोक में वहां तो काम की बात कर रहे हैं या इंद्रियों के विषयों का ध्यान इत्यादि इत्यादि होने से फिर व्यक्ति आसक्त होता है। फिर ऐसे आसक्ति से उत्पन्न होता है काम लेकिन किंतु हमने ध्यान ही भगवान का इसीलिए हम भगवान में आसक्त हुए तो उसका परिणाम का फल क्या होगा प्रेम समाप्त 1 मार्ग का अवलंबन करने से आप काम प्राप्ति और दूसरा मार्ग अपना लिया दूसरी विधि विधान का स्वीकार किया आपने विषय ही बदल दिया मतलब माया के स्थान पर ऐसा भी कह सकते माया के स्थान पर माया का ध्यान करने के बजाय हमने भगवान का ध्यान किया कृष्ण का ध्यान किया है राम का ध्यान किया श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय उनका ध्यान किया तो हम उनमें आसक्त होंगे और प्रेम को प्राप्त करेंगे और फिर कामात क्रोधोभीजायते यहां तो कहा है कि काम वासना की तृप्ति नहीं होगी तो फिर व्यक्ति में क्रोध आएगा तो फिर यहां पर क्या होगा अभी वैष्णव को क्रोध आता है कि नहीं जो कामी होते हैं कामात क्रोधोभीजायते यहां तो कृष्ण कहे ही हैं प्रेमात क्रोधोभिजायते इसका क्या क्यो नही जो विष्णु या वैष्णवों के चरणों मे अपराध करते हैं। तो वह अपराध की बात सुनकर वैष्णव क्रोधित हो जाते हैं हनुमान को क्रोध आ गया था कि नहीं जब सीता का अपहरण करके वह बदमाश राक्षस रावण सीता को ले गया तो राम भी क्रोधित थे और फिर उनके संपर्क में जो जो थे तो उनको भी क्रोध आ गया हनुमान को भी क्रोध आ गया जामवान को भी क्रोध आ गया हरि हरि अर्जुन को नहीं आ रहा था तो हंसते हुए लेकिन भगवान ने गीता का उपदेश सुना के उनको क्रोधित किया उठावो युद्ध करो नरसिंह भगवान को देखो कितना क्रोध आया तो यह क्रोध दिव्य होता है। यह रजगुण से उत्पन्न होने वाला क्रोध होता है। श्री भगवानुवाच काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः | महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् || ३७ | अनुवाद:-श्रीभगवान् ने कहा – हे अर्जुन! इसका कारण रजोगुण के सम्पर्क से उत्पन्न काम है, जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है | रजोगुण से उत्पन्न होता हैं क्रोध होता हैं ये गुणातीत या शुद्ध सत्व से उत्पन्न होता है वह क्रोध दूसरे जगत का होता है तो ठीक है अभी आगे बढ़ते हैं दौड़ते हैं। क्रोधात भवति समोहात तो यहां व्यक्ति मोहित होने वाला नहीं है उसकी स्मृति विभ्रम नहीं होने वाला है क्या होने वाला है मैं दास हु दास दासानु दास पूरा पता है साक्षात्कार अनुभव उसको होने वाला है स्मृति वीभ्रम हुआ था ध्यायतो विषयान्पुंसः इत्यादि से इत्यादि से शुरुआत हुई तो स्मृति विभ्रम लेकिन भगवान का ध्यान और वह आगे बढ़े तो क्रोध भी आ गया और आ सकता है लेकिन कभी स्मृति विभ्रम नही होगा या स्मृति ही होगी। मततः स्मृतिज्ञान अपोहनोमच भगवान स्मृति देंगे भगवान कोन है जीव कोन हैं और स्मृति भ्रमशात बुद्धि नाशो तो यहां कृष्ण कहते हैं। क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः | स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || ६३ || अनुवाद:- क्रोध से पूर्ण मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरणशक्ति का विभ्रम हो जाता है | जब स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाति है, तो बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि नष्ट होने पर मनुष्य भव-कूप में पुनः गिर जाता है | द्वितीय अध्याय में श्लोक संख्या 62 और 63 में जब स्मृतिभ्रंशाद् स्मृति में भ्रंश हुआ तो बुद्धि नाश होगा लेकिन यहां बुद्धि का नाश नही होने वाला हैं। बुद्धि का विकास होने वाला है भगवान बुद्धि देने वाले हैं उसकी बुद्धि शून्य नहीं होने वाली है उसकी बुद्धि 100% विकसित होने वाली है वह 100% बुद्धिमान होगा ऐसा कृष्ण ने कहा है कि तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते || १० || अनुवाद:- जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं | बुद्धि योगम मैं बुद्धि देता हूं माययाअपरित ज्ञान माया तो हमारा ज्ञान या बुद्धि संभ्रमित करती है चोरी करती है लेकिन जो भक्त है उनको भगवान बुद्धि देते है ददामि बुद्धि योगम तम मैं देता हूं मैं बुद्धि देता हूं। वह बुद्धू नहीं जो आपको स्कूल कॉलेज में पढ़ाते हैं वह तो उनका ज्ञान या बुद्धि चोरी हुई है माया ने चोरी की है ऐसे बुद्धू से हम कुछ सीखेंगे समझेंगे तो वह बुद्धि प्राप्त नहीं होगी लेकिन भगवान बुद्धि प्राप्त करेंगे बुद्धि देंगे तो बुद्धि नाशात प्रणश्यति कृष्ण ने कहा है भगवत गीता में बुद्धि का नाश हुआ तो फिर विनाश भी हुआ तो फिर हो गया विनाश बुद्धि नाशातप्रणश्यति लेकिन यहां भगवान ने बुद्धि दी है तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते || १० || अनुवाद:- जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं | तो ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ताकि वो व्यक्ति जिसको बुद्धि प्राप्त हुईं है मामुपयान्ति ते माम यान्तिते उप मतलब पास यान्ति मतलब जाता हैं वो व्यक्ति मेरे पास आयेगा जहां मैं रहता हूं वहां आएगा मुझे प्राप्त होगा तो ऐसे ही हैं सब अभी पूर्ण बताने के लिए समय नही हैं तो ये दो अलग अलग मार्ग हैं तर्कोंप्रतिष्ठ श्रुतयो विभिन्ना नासावृषिर्य़स्य मतं न भिन्नम्। धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो ये़न गत: स पन्था:।। (श्री चैतन्य-चरितामृत,मध्य लीला, अध्याय 17 श्लोक 186) . अनुवाद: - श्री चैतन्य महाप्रभु ने आगे कहा, "शुष्क तर्क में निर्णय का अभाव होता हैं। जिस महापुरुष का मत अन्यों से भिन्न नहीं होता, उसे महान ऋषि नहीं माना जाता। केवल विभिन्न वेदों के अध्ययन से कोई सही मार्ग पर नहीं आ सकता, जिससे धार्मिक सिद्धांतों को समझा जाता हैं। धार्मिक सिद्धांतों का ठोस सत्य शुद्ध स्वरूपसिद्ध व्यक्ति के ह्रदय में छिपा रहता हैं। फलस्वरूप, जैसा कि सारे शास्त्र पुष्टि करते हैं, मनुष्य को महाजनों द्वारा बतलाए गये प्रगतिशील पद पर ही चलना चाहिए।" महाजनों ने दिखाया हुआ मार्ग ये हैं कृष्ण ने गीता भागवत का दिखाया हुआ मार्ग भक्ति मार्ग हैं और फिर दूसरा जतो मत ततो पथ वाला मार्ग दूनियावालों ने भी या राजनीति वाले और अन्य लोगो ने दिखाया हुआ मार्ग तब आपको चयन करना होगा आप कोनसा मार्ग का चयन करेंगे वैसे आपने पसंद किया ही हैं ये बातें सुन कर आपकी श्रद्धा और बढ़ नई चाहिए दृढ़ होनी चाहिए और उसी के साथ आप सारी दुनिया को बता सकते हैं तो संसार में जो भी समस्याएं हैं जिसकी हम लोग चर्चा कर रहे थे यह शास्त्र हमें सावधान तो कर रहे हैं कि कुछ सुधार करिए पर हमको कोई युक्ति नहीं है उपाय नहीं है भौतिक दुविधा है तो भौतिक उपाय उस पर कारगर नहीं हो सकती श्रीमद भगवतम में उसके उपाय यह सही दिशा मार्ग दृष्टिकोण मूल्य यह सब बताएं हैं तब इसको सारा संसार मानव जाति ऐसे अपनाएंगे तो हम टाल सकते हैं। हम सब गड्ढे में गिरने से बच सकते हैं ठीक हैं इस पर चिंतन मनन करिए भगवान के विचार यह मेरे विचार नहीं है यह कोई मनो धर्म नहीं है यदि ऐसा करते हैं तो वह जुगार हो जाता है फिर ऐसा होता है कि एक ठगता है और दूसरा ठगाता है। यहां हम आपको ठिकाने नहीं है बैठे हम अपने विचार करेंगे तो फिर आप ठग जाओगे दुनिया वाले अपने विचार बताते हैं मेरा विचार है ऐसा हो सकता है इसीलिए इस्कॉन प्रभुपाद ने हमको 4 नियम दिए हैं उसमें से एक नियम है जुगार नहीं खेलना जब व्यक्ति अपने विचार बोलता है मुझे लगता है मेरा विचार है मेरा ऐसा मत है यह और वह इस प्रकार से समस्या का कारण यही है कि दुनिया वाले अपने दिमाग से दुनिया को चलाना चाहते हैं या शायद इनको लगता है कि और कोई इसे नियंत्रित करने वाला नहीं है तो हम ही इसे नियंत्रित करते हैं। लेकिन किसने कहा था कि गीता और भागवत यह हमारे जीवन का दिशा दर्शक पुस्तिका है इस संसार के साथ कैसे डील करना है या उसको कैसे समझना है और हमको सारे व्यवहार करने हैं एक दूसरे के साथ और निसर्ग के साथ इत्यादि इत्यादि पर्यावरण के साथ और उसके लिए यह दिशा दर्शक पुस्तिका है हमें यह शास्त्र दिए गए हैं जिसको श्रील प्रभुपाद जी ने प्रस्तुत किए हैं और कई लोग कह रहे थे कि प्रभुपाद जी की पुस्तकें इस सारे प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं तो आइए सब मिलकर इसका प्रचार करें यह प्रभुपाद जी की 125 साल की जन्मदिन भी है उनके जन्म का 125 सावा वर्ष भी है तब जो प्रभुपाद जी ने हम को जो दिया है उसको भली-भांति समझ कर उसका यथासंभव उसका वितरण उसका प्रचार जितना अधिक से अधिक बड़े तौर पर कर सकते हैं उतना हमें करना चाहिए जहां जहां आप कुछ लोगों को प्रभावित कर सकते हो अपने पारिवारिक जीवन आपका शहर है आपका गांव हैं आपकी कॉलनि इतने बड़े पैमाने में आप इसे प्रचार कर सकते हैं प्रयास करिए जो बातें आप समझे हो उसे औरों को समझाओ प्रभुपाद जी के ग्रंथों का वितरण करिए यह मार्गदर्शिका है हरे कृष्ण महामंत्र का प्रचार करो लोगों को भाग्यवान बनाओ प्रसाद वितरण करो यह प्रसाद ग्रहण करने के लिए कहो अपने अपने घरों में उसमें से एक भी आइटम केवल लोग प्रसाद ही खाएंगे तो संसार में क्रांति होंगे 1 साल के लिए पूरे संसार को प्रसाद खिलाओ और उसके बात दुनिया का चेहरा हम यह निश्चिती देते हैं भगवान की और से संसार का कल्याण होगा छोड़ दो यह मांसाहार मटन चिकन और जो हॉट डॉग और क्या क्या रहता है स्नेक सुप क्या पीते हैं यदि अभक्ष्भक्षण हम साल भरके लिए छोड़ते हैं तो संसार का कल्याण होगा या तो प्रसाद ही खायेंगे और हरे कृष्ण महामंत्र का जप करेंगे कीर्तन करेंगे ग्रन्थों का अध्ययन करेंगे और साधु संग करेंगे लव मात्र साधु संग करेंगे सर्व सिद्धि होय आपके साथ भी संग करेंगे आप सब साधु हो आप का संग करेंगे तब काफी क्रांति होने वाली हैं। ठीक है हरि बोल ।

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