Hindi

माधव तिथी : भक्ति का उत्सव हरे कृष्ण मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ क्योंकि आप हमारे साथ जप कर रहे हैं। आज इस जप सत्र में ३४४ प्रतियोगी सम्मिलित हुए हैं। आज एकादशी हैं। बहुत से देशों में एकादशी या तो एक दिन पहले या एक दिन बाद आती हैं , सभी स्थानों पर यह एक ही दिन नहीं होती हैं। इस दिन हमें और अधिक जप करना चाहिए। नॉएडा में एकादशी के दिन २४ घंटे कीर्तन होता हैं जहाँ हम पुरे दिन और रात केवल हरिनाम लेते है। आप भी अपने मंदिरों में इसी प्रकार का आयोजन कर सकते हैं। कई स्थानों में यथा वृन्दावन , लातुर , पंढरपुर तथा अन्य स्थानों में वे इस प्रकार से जप और कीर्तन करते हैं। अतः जो सक्षम हैं वे एकादशी के दिन २४ घंटे कीर्तन का आयोजन कर सकते हैं। महाराष्ट्र में वे सम्पूर्ण रात्री तुकाराम महाराज के भजन गाते हैं। वे हरे कृष्ण महामंत्र भी गाते हैं तथा इसे साथ ही साथ जय जय राम कृष्ण हरी का कीर्तन भी करते हैं। संत तुकाराम भी इसी मन्त्र का जप करते थे। अब वे सम्पूर्ण रात्री केवल तुकाराम महाराज के भजन गाते हैं। मुझे याद हैं जब मैं छोटा था तब हमारे गांव में तुकाराम महाराज के भजन गाए जाते थे। उसमें कभी कभी हमारे घर पर भी कीर्तन होता था। इस प्रकार से हम एकादशी का उत्सव मनाते हैं। पंढरपुर में आज के दिन कई यात्री आते हैं। एकादशी एक महत्वपूर्ण दिन हैं यह एक महत्वपूर्ण उत्सव हैं। यह विट्ठल के दर्शन का दिन हैं। प्रत्येक माह में दो एकादशी आती हैं - शुक्ल पक्ष में तथा कृष्ण पक्ष में। शुक्ल पक्ष की एकादशी को शुद्ध एकादशी कहते हैं , इस दिन भक्त सभी स्थानों से पैदल चलकर अथवा वाहनों में पांडुरंग के दर्शन करने आते हैं। शुद्ध भकत चरण रेणु , भजन अनुकूल। भकत सेवा परम सिद्धि , प्रेम लातिकार मूल। माधव तिथि भक्ति जननी , यतने पालन करी। कृष्ण बसती बसती बोली , परम आनंदे भरी। (भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा रचित भजन) भक्ति विनोद ठाकुर ने यह भजन गाया हैं - कब मुझे भक्तों की चरण रेणु (संग) मिलेगी ? भक्तों का संग जप करने के लिए अनुकूल हैं। वे आगे कहते हैं - माधव तिथि भक्ति जननी। एकादशी को माधव - तिथि कहते हैं। क्या आप तिथि का अर्थ समझते हैं ?एकादशी माधव तिथि कहलाती हैं। भक्तिविनोद ठाकुर के अनुसार यह भक्ति जननी अर्थात भक्ति को जन्म देने वाली माँ हैं। यह आपको भक्ति प्रदान करती हैं। यह अत्यन्त विशेष दिन हैं। भगवान इस दिन और रात्रि को विशेष रूप से शक्ति प्रदान करते हैं। भगवान ने इस दिन को अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा कृपा प्रदान करने वाला दिन बनाया हैं। पिछली एकादशी मैं मायापुर में जप कर रहा था। मैं आप सभी को यह भी बता रहा था कि क्यों हम एकादशी को उपवास का दिन भी कहते हैं। उपवास क्या होता हैं ? उप अर्थात पास में तथा वास का अर्थ हैं रहना। अतः यह वह दिन हैं जब हम भगवान के समीप रहते हैं। किस प्रकार हम भगवान के समीप रह सकते हैं ? हमे निरंतर महामन्त्र का जप करना चाहिए : हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। अथवा नित्यम भागवत सेवया। भागवतम का श्रवण तथा अध्ययन भी इसका एक अंग हैं। श्रवणं कीर्तनं , अतः मूल रूप से हमें आज के दिन श्रवण तथा कीर्तन करना चाहिए। शृण्वन्ति , गायन्ति गृणन्ति साधवः (श्रीमद भागवतम १.५.११) साधु ऐसा करते हैं। साधुओं के क्या कार्यकलाप होते हैं ? शृण्वन्ति , गायन्ति गृणन्ति। इस प्रकार हम कृष्ण के समीप अथवा कृष्ण के साथ रह सकते हैं। यह उपवास करने का उचित माध्यम हैं। निरन्तर जप करते हुए हमें भगवान की उपस्थिति का आभास करना चाहिए। ओह ! वे यहाँ हैं , वे यहाँ हैं। चैतन्य महाप्रभु की जय ! ,मैं कवी कर्णपुर ने ' महाकाव्य ' में जो लिखा हैं उसका चिंतन कर रहा था , जैसे ही चैतन्य महाप्रभु जप करना प्रारम्भ करते, उसमें ऐसा लिखा हुआ हैं कि मात्र एक शब्द बोलने से महाप्रभु भगवान के साथ सम्बन्ध स्थापित कर लेते तथा पूर्णरूपेण भगवान में संलग्न हो जाते। यहाँ तक कि केवल हरे का उच्चारण करने मात्र से वे भगवान के साथ जुड़ जाते। वे जब एक मन्त्र बोलते तो उनके लिए दूसरे महामंत्र का जप करना कठिन हो जाता , ऐसा नींद के कारण नहीं होता था। हमारा जप भी कई बार बीच में रुक जाता हैं तथा इसका कारण हैं कि हम निंद्रा ग्रस्त हो जाते हैं। परन्तु चैतन्य महाप्रभु तथा उनके जैसे भक्त जब एक बार महामंत्र का जप करते तो उनके लिए दूसरी बार नाम लेना कठिन हो जाता क्योंकि उनका गला रुँध जाता था तथा वे बोल नहीं पाते थे। उनमें सभी सात्विक विकार उत्पन्न हो जाते थे। इव शिव शुक नारद प्रेमे गदगद। (गौर आरती पद ७) यहाँ 'गदगद ' शब्द का वर्णन आया हैं। परन्तु जब हम यह कहते हैं तो ' गदगद ' शब्द का वास्तविक अर्थ नहीं समझ पाते हैं , चैतन्य महाप्रभु का गला रुँध जाता था। गम्भीरा में जब महाप्रभु रामानन्द राय तथा स्वरुप दामोदर से कृष्ण कथा सुनते अथवा जब वे जप करते तो उन्हें कुछ ही दुरी पर भगवान कृष्ण के मुरली की आवाज़ सुनाई देती , ऐसा सुनते ही महाप्रभु सब कुछ बीच में छोड़कर उस दिशा में तीव्र गति से भागते , उन्हें ऐसा लगता कि उनके कृष्ण ही उधर बाँसुरी बजा रहे हैं। वे उनको यहाँ , वहां तथा सर्वत्र खोजने लग जाते। इस प्रकार जप का प्रतिफल उन्हें यह मिला कि भगवान कृष्ण के साथ उनका विरह और अधिक बढ़ गया , इसे ही ' भाव-भक्ति ' कहते हैं। युगायितम निमे क्षेण , चाक्षुषाम प्रावरसायितं। शुन्यायितं जगत सर्वं , गोविन्द विरहेण मे।। " हे गोविन्द ! आपके विरह में मुझे एक निमेष काल (पलक झपकने तक का समय ) एक युग के बराबर प्रतीत होता हैं। नेत्रों से मूसलाधार वर्षा के समान निरन्तर अश्रु प्रवाह हो रहा हैं तथा आपके विरह में मुझे समस्त जगत शून्य ही दिख पड़ता हैं। " यद्यपि यह जगत विशाल पुलों , बड़े बड़े मॉल तथा असंख्य गाड़ियों से भरा पड़ा हैं परन्तु फिर भी उन्हें यह जगत खाली तथा शुन्य ही दिखाई पड़ता था। इसमें से मुझे किसी में भी रूचि नहीं हैं , यही वास्तव में विचारणीय हैं। अन्यथा यह जगत रूप , सुगन्ध तथा स्वर से भरा हुआ हैं , परन्तु चैतन्य महाप्रभु को अनुभव होता था कि सम्पूर्ण जगत रिक्त हैं। गोविन्द विरहेण मे..... अर्थात यदि गोविन्द नहीं हैं तो इस जगत से मुझे क्या प्रयोजन ? मुझे इसमें कोई रूचि नहीं हैं। कृष्ण नाम सुधा कोरिया पान , जुड़ाओ भक्तिविनोद प्राण। नाम बिना किछु नाहिक आर , चौदह भुवन माझे। इस दिव्य हरिनामामृत का आस्वादन कीजिए। इन चौदह भुवनों में हरिनाम के समान और कुछ भी नहीं हैं। (भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा रचित अरुणोदय कीर्तन , गीतावली के ८ से) भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं कि इन सभी चौदह लोकों में - नाम बिना किछु नाहिक। चैतन्य महाप्रभु कहते हैं यहाँ वहां कुछ भी नहीं हैं , सभी स्थान रिक्त हैं। तब भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं , ओह ! मुझे यहाँ केवल एक ही वस्तु हैं जो उपयोगी दिख रही हैं तथा जो मुल्यवान हैं - नाम बिना किछु नाहीको। हरिनाम के अलावा इस जगत में सोचने , चिन्तन करने तथा बात करने के लिए और कुछ भी अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं। अतः चैतन्य महाप्रभु तथा उनके पार्षद इसी प्रकार का अनुभव करते थे। अब ५०० वर्षों के पश्चात हमारी पीढ़ी का समय आया हैं जब हमें इन अनुभवों को प्राप्त करना चाहिए। हमसे पिछली पीढ़ियों के साधुओं , भक्तों तथा स्वयं चैतन्य महाप्रभु ने हमारे समक्ष यह उदाहरण प्रस्तुत किया हैं। उन्होंने हमारे लिए लक्ष्य को भी निर्धारित किया हैं। मन की इस अवस्था में व्यक्ति निरन्तर हरिनाम का जप कर सकता हैं। शिक्षाष्टकं के पहले ५ श्लोक साधन भक्ति के बारे में बताते हैं, ६ तथा ७ वां श्लोक भाव भक्ति के विषय में बताता हैं तथा ८ वां श्लोक प्रेम भक्ति का वर्णन करता हैं। भक्ति के भी तीन प्रकार होते हैं - साधन भक्ति , भाव भक्ति तथा प्रेम भक्ति। हम सभी साधक हैं। भाव तथा प्रेम हमारे लक्ष्य हैं। परन्तु हम वहाँ कैसे पहुँच सकते हैं ? साधना का अर्थ होता हैं मन की उस अवस्था में। मन की वह कौनसी अवस्था हैं जिसमे हम निरन्तर हरिनाम का जप कर सकते हैं ? तृणादपि सुनीचेन तरोरपी सहिष्णुनाम। अमानिना मानदेन कीर्तनीय सदा हरी।। (शिक्षाष्टकं श्लोक ३) तृणादपि - घास के तिनके से भी दीन , हमें घास के तिनके से भी निम्न बनने का अभ्यास करना चाहिए। तरोरपी सहिष्णुना - वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु बनना चाहिए। अमानिना मानदेन - स्वयं के लिए मान की इच्छा नहीं करना परन्तु दूसरों को हमेशा सम्मान देना। हमे उस स्थिति पर कार्य करना चाहिए। जिससे हमें मन की वह अवस्था प्राप्त हो सके - तृणादपि सुनीचेन। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो हमारा जप अपराध युक्त जप हो जाता हैं। सभी प्रकार के वैष्णव अपराध हमसे होने लगते हैं तथा इस प्रकार धीरे धीरे हम मानसिक , शाब्दिक तथा शारीरिक रूप से अपराध करने लगते हैं। अतः हमें हमारे व्यवहार के प्रति अत्यन्त सचेत रहना चाहिए विशेष रूप से जब हम वैष्णवों के साथ व्यवहार करते हैं तब। नामे रूचि , जीवे दया , वैष्णव सेवन। जप करते समय मैं सोच रहा था , हमे हरिनाम से प्रार्थना करनी चाहिए , " मेरे प्रिय भगवान , ये मेरी कमियाँ तथा दोष हैं। कृपया मुझे इन क्षेत्रों में आप सक्षम बनाइये। मैं आपके चरण कमलों में प्रार्थना करता हूँ , कृपया मुझ पर दया कीजिए। " जैसा कि हमने पिछली बार चर्चा की थी भक्तिविनोद ठाकुर के अनुसार एकादशी वह दिन हैं जिस दिन हमें हमारे पिछले सप्ताहों का अवलोकन करना चाहिए। पिछले दो सप्ताहों के प्रत्येक दिन का अवलोकन करो तथा उससे कुछ निष्कर्ष निकालो। मैंने इन क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया हैं परन्तु ये क्षेत्र अभी भी हैं जिनमें मैं कमज़ोर हूँ। ये मेरे सुदृढ़ क्षेत्र हैं तथा इन क्षेत्रों में मैं उतना अधिक दृढ नहीं हूँ। आपको वैष्णवों तथा विष्णु से सहायता लेनी चाहिए। वैष्णव वे वरिष्ठ भक्त , तथा हमारे सलाहकार हैं जो नियमित रूप से हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तथा विष्णु अथवा कृष्ण के उपासक हैं। वे सदैव हमारी सहायता करने के लिए तत्पर रहते हैं। जब हम हरिनाम प्रभु के चरण कमलों में प्रार्थना करते हैं तब वे हम पर कृपा करके हमे उसके योग्य बनाते हैं। हरे कृष्ण !

English

‘MADHAV-TITHI’ FESTIVAL OF DEVOTION Hare Krishna I am happy that you are chanting with us. 344 participants today for the japa session. Today is Ekadasi again. Lot of times in other countries Ekadasi falls on before or day after, not the same day everywhere. It's a day for more chanting. In Noida we have 24 hours Kirtana on Ekadasi, chanting whole day and whole night. You could also similarly do in your temples. At many places, Vrndavana, Pandharpur, Latur and various places they chant that way. So those who are able to manage, can do 24 hours kirtana on Ekadasi. In Maharashtra there are Tukarama bhajans all night. They sing Hare Krishna mahamantra also and chant the mantra Jay Jay Rama Krishna Hari. Saint Tukarama used to chant this mantra. Nowadays they sing Tukarama bhajans all night long. I remember when I was a small boy in my village also such singing of Tukarama bhajans used to go on. There used to be kirtana sometimes at my house. That's how Ekadasi is celebrated. In Pandharpur pilgrims come. Ekadasi is the special day, a special festival. The day to take darsana of Vitthal. Out of two Ekadasis, one is in Shukla paksha and other is in Krishna paksha , - Shukla paksha Ekadasi ( bright fortnight) is called Suddha Ekadasi , pilligrims come walking or driving from all over to take darsana of Panduranga. śuddha-bhakata-caraṇa-reṇu, bhajana-anukūla bhakata-sevā, parama-siddhi, prema-latikāra mūla mādhava-tithi, bhakti-jananī, jetane pālana kori kṛṣṇa-basati, basati boli’, parama ādare bori ( Bhajan by Sril Bhaktivinod Thakur) Bhaktivinod Thakur has sung this bhajan - when would I get renu (association) of devotees? Association of devotees is anukul ( favourable) for chanting. He sings - madhav tithi bhakti janani. Ekadasi is called Madhav-tithi. Do you understand 'tithi'? Ekadasi is called Madhav-tithi .According to Bhaktivinod Thakur it's bhakti janani. Mother of Devotion. It gives you devotion. It's a very special day. The Lord empowers the day before and the night. The Lord makes it a very special, empowered day. Last Ekadasi I was chanting in Mayapur. I was also explaining how Ekadasi is called Upvasa day. What is Upvasa? ‘Up’ means near and ‘vas’ means residence, to stay. It is a day to stay near the Lord. How we stay near the Lord? By chanting HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE Or nityam bhagvat sevaya. Hearing Bhagvatam, reciting Bhagvatam is also there. Sravanam kirtanam. Basically to do sravan , kirtana srunvanti, gayanti grainanti sadhavaha. (SB. 1.5.11) That is what sadhus do. What are the activities of a sadhu? Srunvanti gayanti, grinanti. Doing this is the way to stay near Krsna or with Krsna. That is how we observe this upvasa day. By chanting and chanting we want to feel the presence of the Lord. Oh! He is here! He is here! Caitanya Mahaprabhu ki Jay! So as soon as he used to start chanting, I was reading about this in ‘Mahakavya’ of Kavi Karnapura. It is written there that one utterance of the holy name was enough for Caitanya Mahaprabhu to get linked with the Lord and be absorbed in the Lord. Even if he just chanted Hare it was more than enough to get connected with the Lord. He will just chant once and then the next mantra will be difficult to chant and not because he was sleeping. Our chanting stops some times in middle of mantra also, we do not even manage to complete the whole mantra because of sleep. But for Caitanya Mahaprabhu and devotees like him , they chant for a while , or just chant once it would be difficult for them to chant as the voice would get choked up. All emotions would get aroused. siva-suka-narada preme gada-gada ( Gaur aarti verse 7) The word is ‘gadgad’. But the way we say , we don't understand fully what it means. 'gadgad’ implies , Voice getting choked up for Caitanya Mahaprabhu. Or he would be Chanting at gambira or hearing about Krishna from Ramanand Ray and Swaroop Damodar ,he would remember about Krishna and hear flute playing of Krishna at some distance and in middle of that hearing program he would drop everything and used to run in that direction where he thought his Krishna was playing his flute. He will begin looking for him here and there and everywhere. Outcome or result of Chanting was his feeling of separation from Krishna, that is why that is bhava-bhakti. yugāyitaṁ nimeṣeṇa cakṣuṣā prāvṛṣāyitam śūnyāyitaṁ jagat sarvaṁ govinda-viraheṇa me "O Govinda! Feeling Your separation, I am considering a moment to be like twelve years or more. Tears are flowing from my eyes like torrents of rain, and I am feeling all vacant in the world in Your absence." (Siksastakam verse 7) Although world is filled with overbridges and cars, malls , full of this and that, He was feeling vacant, there is nothing. Nothing of that interests me , that's the idea. Otherwise whole world is filled with forms and sounds and smells. But Caitanya Mahaprabhu used to feel that the whole world is vacant. govinda-viraheṇa me… If there is no Govinda then what good is world around me? I have no interest. krsna-nama-sudha koriya pan, jurao bhakativinoda-pran, nama bina kichu nahiko aro, caudda-bhuvana-majhe Drink the pure nectar of the holy name. There is nothing but the name to be had in the fourteen worlds. (Bhaktivinoda Thakura Arunodaya-kirtana Verse 8 from Gltavali) Bhaktivinoda Thakura said this fourteen planetary systems, nama bina kichu nahiko. Caitanya Mahaprabhu is saying there is nothing here , nothing there, all vacant. Then Bhaktivinoda Thakura said oh! there is only one thing that interests me or is of value. - nama bina kichu nahiko. Apart from the holy name there is nothing worth remembering , or thinking of or talking about. So all these things would happen to Caitanya Mahaprabhu and His associates also went through similar kind of experiences. Now after 500 years it's our turn, our generations turn to experience. All the previous generations of sadhus and devotees and Caitanya Mahaprabhu has set this example. He has set the goal. In such a state of mind one could chant the holy name constantly, that is also there. First 5 verses of Siksastakam talks about sadhana bhakti. 6th and 7th verses talk about bhava bhakti and the 8th verse talks about Prema-bhakti. Bhakti has three divisions - Sadhana bhakti, Bhava bhakti and Prema bhakti. We are sadhakas. Bhava is our goal . Prema is our goal. But how to reach there? Sadhana means in such a state of mind. What is that state of mind in which we can chant the holy name constantly? trinadapi sunicena tarorapi sahishnuna amanina manden kirtaniya sada hari (Siksastakam verse 3) Trinadapi - lower than the straw in the street. We have to practice this. To become lower than a blade of grass. Tarorapi sahishnuna - more tolerant than tree. amanina manaden - Not expecting respect for ourselves, but instead respect others. We should be working at that level. To attain that state of mind, -trinadapi sunicena . If we are not doing that , then our chanting becomes offensive chanting. All vaisnava aparadh taking place then we will be offending others mentally, vocally or physically. So we have to be very, very careful and cautious in our dealings and behaviour especially with Vaisnavas, jivas . Name ruci jive daya vaisnava sevan. While chanting I was thinking we should pray to the holy name, “ My dear Lord, this is my weakness. These are my shortcomings. Please make me stronger in this and that area. I beg at your lotus Feet. Be kind to me.” We were also saying at last Ekadasi that according to Bhaktivinoda Thakur it is also the day to review the past two weeks performance. Review the day and come to some conclusion. I did better in this area but these areas are still weak. This is my weakness. These are good points. You should take help from Vaisnavas and Visnu. Vaisnavas around us or senior devotees, counsellors who chant Hare Krishna and are devotees of Visnu or Krsna. He is ready to help us. We beg at the lotus Feet of holy name - Harinama Prabhu then He may bless you empower you Hare Krishna!

Russian

Джапа сессия 17.03.2019 МАДХАВА -ТИТХИ - ФЕСТИВАЛЬ ПРЕДАННОСТИ Харе Кришна Я счастлив, что вы воспеваете с нами. 344 участника сегодня на джапа сессии. Сегодня снова экадаши. Часто в других странах экадаши выпадают на день раньше или на день позже, не везде в один и тот же день. Это день когда нужно воспевать больше. В Нойде, в экадаши, у нас проходит 24-ти часовой киртан, преданные воспевают весь день и всю ночь. Вы можете сделать так же в своих храмах. Во многих местах, во Вриндаване, Пандхарпуре, Латуре и других местах, преданные воспевают таким образом. Руководители храмов могут сделать 24 часовой киртан на экадаши. В Махараштре поют бхаджаны Тукарама всю ночь. Они также поют Харе Кришна Махамантру и повторяют мантру Джэй Джей Рама Кришна Хари. Святой Тукарама повторял эту мантру. В наше время они поют бхаджаны Тукарама всю ночь напролет. Я помню, когда я был маленьким мальчиком в моей деревне, тоже пели бхаджаны Тукарамы. Иногда, киртаны проводили в моем доме. Так отмечают экадаши. В Пандхарпур приезжают паломники. Экадаши это особый день, особый праздник. День, когда можно получить даршан Витталы. Из двух экадаши один находится в Шукла-пакше, а другой - в Кришна-пакше, - Шукла-пакша экадаши (светлые две недели) зовется Шуддха-экадаши, и паломники приходят или едут со всех концов, чтобы получить даршан Пандуранги. śuddha-bhakata-caraṇa-reṇu, bhajana-anukūla bhakata-sevā, parama-siddhi, prema-latikāra mūla mādhava-tithi, bhakti-jananī, jetane pālana kori kṛṣṇa-basati, basati boli’, parama ādare bori (бхаджан Шрила Бхактивинода Тхакура) Бхактивинода Тхакур пел этот бхаджан - когда я получу рену (общение) с преданными? Общество преданных - анукул (благоприятно) для воспевания. Он поет - мадхава титхи бхакти джанани. Экадаши называют Мадхава-титхи. Вы понимаете значение «Титхи»? Экадаши называют Мадхава-титхи. Согласно Бхактивиноду Тхакуру, это бхакти джанани. Мать Преданности. Она дает вам преданность. Это очень особенный день. Господь наделяет силой день и ночь. Господь делает этот день особенным, день дающий возможности. Последний экадаши я воспевал в Маяпуре. Я объяснял, что экадаши называют днем Упваса. Что такое Упваса? «Уп» означает возле, а «вас» означает местопребывание. Это день, чтобы оставаться рядом с Господом. Как мы остаемся рядом с Господом? Воспевая: HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE Или nityam bhagvat sevaya. Слушая Бхагаватам, читая Бхагаватам. Шраванам киртанам. В основном шраванам и киртанам srunvanti, gayanti grainanti sadhavaha (SB. 1.5.11) Это то, что делают садху. Каковы действия садху? Шрунванти гаянти, гринанти. Это способ оставаться возле Кришны или с Кришной. Вот как мы соблюдаем этот день упваса. Воспевая и повторяя, мы хотим чувствовать присутствие Господа. О! Он здесь! Он здесь! Чайтанья Махапрабху Ки Джай! Как только он начинал воспевать…. я читал об этом в «Махакавье» Кави Карнапуры…. там написано, что Ему достаточно было один раз произнести Святое Имя, чтобы Чайтанья Махапрабху был связан с Господом и был поглощен Господом. Даже если он просто повторял Харе, этого было более чем достаточно, чтобы связаться с Господом. Он повторял одну мантру и ему было трудно повторить следующую, не потому, что он спал. Наше воспевание останавливается несколько раз и в середине мантры, нам даже не удается завершить всю мантру из-за сна. Но для Чайтаньи Махапрабху и преданных, подобных Ему, было трудно повторять, Они воспевали какое-то время или просто повторяли одну мантру и Их голос срывался.. Все эмоции пробуждались. шива-шука-нарада преме гада-гада (стих 7 Гаур аарти) Здесь и Господь Шива, и Шукадева Госвами, и Нарада Муни. Их голоса дрожат в экстазе трасцендентной любви. Слово "гада-гада ". Но, когда мы произносим, мы не до конца понимаем, что это значит. «гада-гада» значит что голос дрожит у Чайтаньи Махапрабху. Когда он воспевал в Гамбире или слышал о Кришне от Рамананды Рая и Сварупы Дамодара, он вспоминал о Кришне, слышал как где-то, Кришна играет на флейте, Он бросал все, прямо посреди слушания, и бежал в том направлении, где как ему казалось, Кришна играл на своей флейте. Он мог начать искать Его и здесь и там, везде. Результатом воспевания было Его чувство разлуки с Кришной, вот почему это бхава-бхакти. йугаитам нимешена чакшуша правришайитам шунйаитам джагат сарвам говинда вирахена ме "О Говинда! Каждое мгновение разлуки с Тобой для меня длится дольше двенадцати лет. Слезы льются из глаз моих, как потоки дождя, и без Тебя весь мир кажется мне пустым. ". (Шикшаштака, стих 7) Хотя мир полон мостов и машин, торговых центров, наполненных всякими вещами, Он чувствовал себя опустошенным, здесь ничего нет. Ничего из этого меня не интересует, в этом смысл. Весь мир наполнен формами, звуками и запахами. Но Чайтанья Махапрабху чувствовал, что весь мир пуст. говинда вирахена ме... если здесь нет Говинды, тогда что хорошего в мире, окружающем меня? Он мне не интересен.. krsna-nama-sudha koriya pan, jurao bhakativinoda-pran, nama bina kichu nahiko aro, caudda-bhuvana-majhe Пей чистый нектар Святого Имени. В четырнадцати мирах нет ничего, кроме Имени. (Бхактивинода Тхакур Арунодая-киртана, стих 8 из Гитавали) Бхактивинода Тхакур сказал, здесь четырнадцать планетных систем, нама бина кичу нахико. Чайтанья Махапрабху говорит, что здесь ничего нет, ничего нет, только пустота. Тогда Бхактивинода Тхакур сказал, "О! здесь есть только одна вещь, которая интересует меня и имеет ценность - нама бина кичу нахико. Кроме Святого Имени здесь нет ничего, о чем стоит помнить, думать или говорить". Все это произошло с Чайтаньей Махапрабху, Его спутники так же прошли через подобный опыт. Теперь, через 500 лет, наша очередь, наши поколения возвращаются к Их опыту. Все предыдущие поколения садху, преданных и Чайтанья Махапрабху оставили нам пример. Они показали нам цель. В таком состоянии ума можно постоянно повторять Святое Имя, то есть Первые 5 стихов Шикшаштаки рассказывают о садхана бхакти, 6-й и 7-й стихи говорят о Бхава-бхакти, а 8-й стих говорит о Према-бхакти. Бхакти делится на три части: садхана бхакти, бхава бхакти и према бхакти. Мы садхаки. Бхава - наша цель. Према - наша цель. Но как туда добраться? Садхана означает в определенном состоянии ума…. Что это за состояние ума, в котором мы можем повторять Святое Имя постоянно? тринад апи суничена тарор ива сахишнуна аманина манадена киртанийах сада харих (Шикшастака стих 3) тринад апи - ниже соломы на улице. Мы должны практиковать это. Стать ниже травинки. тарор ива сахишнуна - более терпимый, чем дерево. аманина манадена- не ожидая уважения к себе, но при этом уважая других. Мы должны работать на этом уровне. Чтобы достичь такого состояния ума, - тринад апи суничена. Если мы этого не делаем, тогда наше воспевание становится оскорбительным. Все вайшнава-апарадхи будут иметь место, тогда мы будем оскорблять других умственно, с помощью речи или физически. Поэтому мы должны быть очень, очень осторожны и внимательны в наших отношениях и поведении, особенно с Вайшнавами.. Нама ручи джива дойа вайшнава сева. Когда я повторял, я думал, что мы должны молиться святому имени: «Мой дорогой Господь, это моя слабость. Это мои недостатки. Пожалуйста, сделай меня сильнее. Молю у твоих лотосных стоп. Будь добр ко мне».. Мы также говорили, в предыдущий экадаши, что, согласно Бхактивиноде Тхакуру, это также день, чтобы подвести итоги за последние две недели. Просмотрите день и придите к какому-то выводу. В этой области я что-то сделал лучше , но эти области все еще слабы. Это моя слабость. Это хорошие моменты. Вам следует обратиться за помощью к Вайшнавам и Вишну. Вайшнавы вокруг нас или старшие преданные, наставники, которые повторяют Харе Кришна и являются преданными Вишну или Кришны. Они готовы помочь нам. Мы молимся у Лотосных Стоп Святого Имени - Харинамы Прабху, тогда Он может благословить нас, наделить нас силой! Харе Кришна!