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जप चर्चा 14अगस्त 2020 पंढरपुर धाम आप उत्साही हो चैतन्य भागवत आप जप कर रहे हो। कुछ भक्तों को जप करते हुए आज मैं नहीं देख पा रहा हूं। आज संख्या बहुत कम है भक्तों की। श्रील प्रभुपाद आविर्भाव तिथि महोत्सव की जय! जन्माष्टमी तक की कथाये आप लोग सुनते ही रहे। कल झुम पर जपा और जप चर्चा नहीं हुआ। सभी भक्त, आप भी, मैं भी श्रील प्रभुपाद के आविर्भाव तिथि के उपलक्ष्य में प्रभुपाद का संस्मरण किये होगे। श्रील प्रभुपाद का स्तुति गान किया होगा, पढ़ा होगा, सुना होगा। आपने किया ना ऐसा हां, ऐसा किया कि नहीं। श्रीहरी विठ्ठल ऐसा किया ना पुणे में? पंढरपुर में। पंढरपुर में होना आप। हरि हरि जय श्रील प्रभुपाद ! आपको श्रील प्रभुपाद अच्छे लगते हैं। क्या आपको अच्छे लगते हैं श्रील प्रभुपाद हां प्रेममयी? द्वारिकागोपी अच्छे लगते हैं प्रभुपाद। आप प्रेम करते हो प्रभुपादसे। श्रील प्रभुपाद ने इस दुनिया को बदल दिया और हमने में जो बदलाव है वह भी श्रील प्रभुपाद के कारण ही है। मैं जो भी अब हूं श्रील प्रभुपाद की ही कृपा है। तोमार करुणा सार सब तुम्हारी करुणा है शिष्य जो बनते हैं वह अपने गुरु की करुणा से बनते है। जैसे वह बने हैं, या बन रहे हैं। आकार ले रहे हैं। जो उनके विचारों में क्रांति हो रही है। उनके जीवन शैली में परिवर्तन हो रहा है। पहले केवल वह सुशिक्षित ही थे अब से सुसंस्कृत भी हो रहे हैं। यहां तक कि वह सुसभ्य भी हो रहे हैं। श्रील प्रभुपाद कहां करते थे, 'आपके शिष्य की क्या पहचान, या किस पहचान से, आपके शिष्य जाने जाएंगे आप क्या देखनाा चाहते हो अपने शिष्यों में" फिर हम कह सकते हैं अपने शिष्यों में, या पर शिष्यों में सभ्य व्यक्ति, सभ्य शब्द ही कितना अच्छा है। सभ्य कौन है? सज्जन आजकल कहते है देवियों और सज्जनों, सभ्य बने रहो कहते थे। कोई सभ्य नहीं रहा। सभा में प्रस्तुत करने योग्य, सभा में सम्मिलित आपको सभा कि परिभाषा समझानी होगी सभ्य पुरुषों का समूह। तो यही हमारे गुरु के कृपा का करुणा का परिणाम है। हरि हरि! इस प्रकार श्रील प्रभुपाद ने संसार भर के लोगोंं को जो जगाई मदाई जैसे थे असत्य भी थे और क्या क्या नहीं थे बदमाश भी थे। अवजानान्ति मा मूढः मूढ भी थे। प्रपद्यन्ती नराधम जो नर अधम भी थे। मायाही अपहृत ज्ञान भाव असुरीभाव माश्रुतः आसुरी भाव के थे। ऐसे थे वैसे थे, कैसे-कैसे थे बेकार थे, दुष्ट थे संतुष्ट नहीं थे या फिर कामांध थे लोभांध थे। जब दुर्गुणोंं की बात करनी है तो कई सारे दुर्गुण है। इस संसार में दुर्गुणों की खान है हम भी ऐसे ही कुछ अवगुणी थे दुर्देव हम ऐसे थे। किंतु जैसे ही हम श्रील प्रभुपाद के संपर्क में आए पूरेेे विश्वभर में 5000 से ऊपर लोग प्रभुपाद के संपर्क में आए सारे शिष्य तो नहीं बने। लेकिन जरूर उम्र में भी बदलाव आया ही होगा लेकिन 5,000 औपचारिक रूप से शिष्य बने। वह सभी सभ्य बने। वह गुणवान बने चरित्रवान बने। सब कृष्ण भक्त ही बने तो जो भी 26 गुण है कृष्ण भक्त के वह गुणों का प्रदर्शन होने लगा शिष्यों में।अनुयायियों में यह जो प्रभुपाद का है उनके शब्दों में भावनामृत में क्रांति मैं सरल नहीं कहता हूं कि मैं क्रांतिकारी हूं। लेकिन श्रील प्रभुपाद क्रांतिकारी थे। संसार ने भी कई सारी क्रांतिया देखी है फ्रेंच क्रांति या रशियन क्रांती इतिहास सारा भरा पड़ा हुआ है। कई सारे क्रांतियों से किंतुु श्रील प्रभुपाद नेे जो क्रांति की है पूरे विश्व भर में विश्व भर के लोगों में जो क्रांति लाए उसे प्रभुपाद कहां करते थे revolution in consciousness भावनामृत में क्रांति। भावों में अंतर लाया।असुरी भाव के थे हम या बाजार भाव के थे। बाजार भाव असुरी भाव के स्थान पर श्रील प्रभुपाद भक्ति भाव भक्ति भाव की स्थापना की। तो यह है क्रांति यह है क्रांति। क्रांति हो तो ऐसी क्रांति जिससे हर व्यक्ति का भी और सारे संसार का भी कल्याण हो। तो ऐसे क्रांतिकारी श्रील प्रभुपाद हमारे जीवन में मेरे जीवन में और संसार के कई सारे लोगों के जीवन में क्रांति लाएं। धीरे-धीरे वह क्रांति कहो या अभियान कहो जो प्रभुपाद छेड़े। वह अभियान वैसे अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ प्रभुपाद नेे स्थापन किया और वह पूरे विश्वभर में पहुंच गया। राघव चैतन्य जो भारत में थे अभी अमेरिका गए और रुक्मणी मोहन प्रभुपाद की क्रांति अभी आप तक पहुंच गई। आपकेे जीवन मेंं भी क्रांति हो गई। कुछ हुआ कि नहीं? कुछ परिवर्तन क्रांति आपके विचारों में आपके भाव में हां या ना। गिरिराज गोवर्धन कह रहे हैं पदयात्री भी कह रहा है हां भक्त है हां कहने के लिए अंगूठा ऊपर दिखा रहे हैं। बांग्लादेश मे इस्कॉन के इतने अनुयायी है श्रील प्रभुपाद के या गुरु गौरांग के। हजारों युवक और क्या कहना हमनेे जाकर देखा है कितने श्रील प्रभुपाद के हमारे जयपताका स्वामी महाराज थे। हमारे साथ तो ऐसे कार्य किए श्रील प्रभुपाद ने और वह कार्य आगे बढ़ ही रहा है। कल ही मेंं कह रहा था की श्रील प्रभुपाद जब प्रचार कर रहे थे 1965 में अमेरिका मेंं जैसे पहुंचे श्रील प्रभुपाद नेे प्रचार शुरू किया और प्रचार कहां कर रहे थे सर्वत्र न्यूयॉर्क में। रस्ते पर बैठकर प्रभुपाद पार्क में बेंच पर बैठकर प्रभुपाद प्रचार किया करते थे। फुटपाथ पर बैठकर कीर्तन करते थे अकेलेे ही। कोई भी उनके साथ नहीं था इस तरह के कार्य वह दृष्य कुछ विचित्र था। जब अमेरिकन सभ्य स्त्रीया पुरुष प्रभुपाद को कीर्तन किया करते थे। एक बूढ़ा व्यक्ति जिसके सर पर बाल ही नहीं थे और उस पर पेंट पहना हुआ है। कौन सा पेंट कोई अमेरिकन पेन या एशियन पेंट उनको ही पता नहीं और उनका पता नहीं था कि इसको तिलक कहते हैं। और यह देखो देखो बेडशीट पहन के बैठा है। उनको पता ही नहीं कि यह धोती है भगवान की धोती। हरि हरि! यह तो और भी विशेष है महिमा है धोती का देखो क्या बेडशीट पहन कर बैठा है। और प्रभुपाद गाते थे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। कोई परिचित नहीं था इससे पहली बार पाश्चात्य देश में कृष्ण। और यह सब सुन रहे थे रास्ते पर श्रील प्रभुपाद के सामने से ही लोग बड़ी तेजी से आते और जाते थे लेकिन उसमेंं से कुछ आकृष्ट होते थे। उस हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। महामंत्र लोग समझ तो नहीं रहे थे। लेकिन उसमें कुछ था तो वह लोग रुके रहते थे। तो प्रभुपाद वह लोग जब इकट्ठे होते थे। तो उनके सामने खड़े होते थे। और उनको कुछ कहने लगते थे या कभी कभी कहते थे। राधा कृष्ण का चित्र दिखाते थे। और उनको बताते थे यह कृष्ण है। कैसे हैं कृष्ण परम भगवान हैं। और वह जब चित्र देखते थे कृष्ण को देखते थे किए परम भगवान हैं तो प्रभुपाद को पूछते थे, 'यह अगर परम भगवान हैं तो बगल मेंं लड़की क्या कर रहि हैं"। वह लड़की कौन है आदि गोपी। अगर यह भगवान है कृष्ण है तो बगल में कोई साधारण लड़की अमेरिकन लड़की इंडियन लड़की या बांग्लादेशी लड़की तो नहीं होगी। कृष्ण है तो साथ में कौन होना चाहिए राधा। भारत का बच्चा-बच्चा जानता है। बच्चे ही नहीं जानते हैं लेकिन वहां के बूढ़े लोग भी, इतना भी नहीं जानते थे कि यह कृष्ण है तो यह राधा है। यह बात 1965 की है। लेकिन अब परसों के दिन जो श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव संपन्न हुआ, 100 देशों से भी ज्यादा देशों में श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई गई। मतलब एक सौ देशों से भी ज्यादा देशों में श्री कृष्णा और राधा को लोग समझ रहे हैं, समझे हैं, पूरी समझ के साथ वे जन्माष्टमी मना रहे हैं। जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः । त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥ ( भगवद गीता 4.9) अनुवाद - हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्मा नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है। हरि हरि! तो भगवान को तत्वतः जानना होता है, ऐसी जानकारी ऐसी बात एक भी अमेरिकन या एक भी पश्चिमी देशों के लोग ( वेस्टर्नर और ईस्टर्नर) भारत के बाहर के लोग नहीं जानते थे। और अब यह शहर में चर्चा का विषय बन गया था, यह राधा कृष्ण, हरे कृष्ण हरे कृष्ण।सिर्फ शहर की ही नहीं यह तो पूरे विश्व में कहीं जाने वाली बात बन गई। धीरे धीरे प्रभुपाद जो न्यूयार्क के सड़क पर किर्तन कर रहे थे वैसा कीर्तन, वैसे श्रील प्रभुपाद ने स्वयं ही तो 14 बार पृथ्वी का भ्रमण किया। और जहां भी गए हरिनाम का प्रचार किए और वहां के लोकल लोग उन देशों के उन्होंने हरि नाम को अपनाया अब वे हरिनाम करने लगे सर्वत्र। सर्वत्र प्रचार होइबे मोर नाम।और अपने अपने ग्रामों के नगरों के रास्तों में उन्होंने नगर संकीर्तन प्रारंभ किया। और नगर संकीर्तन जब सर्वत्र हो रहा था तो दुनिया वाले देख रहे थे और उन्होंने कहना प्रारंभ किया "ओह यह हरे कृष्ण वाले लोग हैं"। तो उन लोगों ने हम हरे कृष्ण भक्तों को नाम दिया दुनिया वाले कहने लगे ये इन लोगों का नाम है हरे कृष्ण लोग। यह हरे कृष्णा लोग हैं, क्यों हरे कृष्णा लोग हैं क्योंकि सब समय क्या करते हैं हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे करते हुए हम देखते रहते हैं। और फिर सारे पूरी समझ के साथ साधु शास्त्र आचार्य इनको प्रमाण मान के समझ के वे अब कीर्तन भी कर रहे हैं। उनके सारे जीवन शैली में परिवर्तन हो चुका है उनका खानपान भी बदल चुका है, वे 4 नियमों का पालन कर रहे हैं। हरि हरि। तो यह सब जो हो रहा है, हो चुका है, या होने वाला है यह तो सिर्फ शुरुआत है। इस सबका श्रेय का जो परिणाम है फल है उसका श्रेय श्रील प्रभुपाद को जाता है। 1965 की जो दुनिया थी, जो संसार था, साठ्वी सदी की वह दुनिया अब नहीं रही, दुनिया अब बदल गई है। यह बदल किसने किया है, श्रील प्रभुपाद ने यह बदल किया है या श्रील प्रभुपाद का जो अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत इस्कॉन यह बदल कर रहा है। इस्कॉन का जो प्रचार कार्य है जिस इस्कॉन की स्थापना श्रील प्रभुपाद ने किया जिसके कारण संसार में बहुत बदल हो रहा है। जहां तक कृष्ण का ज्ञान और भगवत तत्व का विज्ञान के जानकार जीरो(शुन्य) थे अब वे जीरो जानने वाले हीरो बन रहे हैं वे अभी अधिकारी (अथॉरिटीज) बन गए हैं । श्रील प्रभुपाद ने कई सारे देश विदेश के भक्तों को गुरु बना कर आचार्य बनाकर इस गौड़िय वैष्णव परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। चैतन्य महाप्रभु ने की हुई भविष्यवाणी को सर्वत्र फैला रहे हैं। वैसे आपका भी श्रील प्रभुपाद के साथ संबंध स्थापित हो चुका है हो रहा है परंपरा में। श्रील प्रभुपाद आपके परम गुरु है। तो आपके भी गुरु है, लेकिन श्रील प्रभुपाद यह आप सब के लिए परम गुरु है। हम तो केवल गुरु हैं, लेकिन प्रभुपाद परम गुरु( ग्रैंड स्प्रिचुअल मास्टर) हैं। ग्रैंड मतलब विशेष, बड़ा, महान। जैसे पिताजी (फादर) और दादा जी (ग्रैंडफादर)। वैसे कभी कभी देखा जाता है कि दादाजी जी (ग्रैंडफादरन) का प्रेम अपने पोतों से (ग्रैंडचिल्ड्रन) से अधिक होता है पिता (फादर) से भी अधिक होता है। तो मैं आपसे प्रेम करता हूं या आप मुझसे प्रेम करते हो मुझे लगता है श्रील प्रभुपाद आपसे ज्यादा प्रेम करते हैं। हम भी आपसे प्रेम करते हैं लेकिन श्रीला प्रभुपाद हमसे कई गुना अधिक प्रेम करते हैं। प्रभुपाद प्रेम करते हैं आपसे। हरि हरि। तो आपने भी अपनी अपनी श्रद्धांजलि श्रील प्रभुपाद के आविर्भाव तिथि के दिन कुछ प्रस्तुत किए होंगे कुछ लिखे होंगे। कुछ भक्तों ने लिखा है बंसी बदन ठाकुर प्रभु जी नासिक से उन्होंने मराठी में अपने श्रद्धांजलि लिखकर हमें भेजी है और लोक संघ में भी प्रकाशित की है। और इस तरह कुछ भक्तों ने यहां पर भी पंढरपुर में सुना रहे थे अपनी-अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे। आपको भी ऐसा अवसर मिला होगा नहीं मिला होगा (झूम पर भक्तों को संबोधित करते हुए महाराज जी ने कहा) हां मिला हरि नामाश्रय प्रभु तुमने कुछ अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। कुछ लिखा या कम से कम मन में जो भी विचार आए हैं, आपने उसको लिखा नहीं या कहां नहीं, कम से कम विचार तो आए होंगे कि नहीं प्रभुपाद के महिमा के विचार। हां सदानंदी कुछ आए थे विचार प्रभुपाद के बारे में, कुछ अच्छा सोचा कुछ स्मरण किया श्रील प्रभुपाद का कुछ आभार माने धन्यवाद श्रील प्रभुपाद इसके लिए उसके लिए और आपने कुछ संकल्प किया हम आपके लिए यह करेंगे या वह करेंगे आपकी प्रसन्नता के लिए। तो ऐसा नहीं कहा होगा, या सोचा होगा ही शायद, अगर सोचा भी नहीं है तो अब भी सोच सकते हो लिख सकते हो अपने अपने विचार और इसका प्रचार करो कहो। और यह भी ऐसे विचारों का प्रचार होना चाहिए प्रभुपाद के गौरव गाथा के विचार मन में उदित होने चाहिए। हां वीर गोविंद आप सोच रहे हो, आप प्रभुपाद को याद कर रहे हो। उन्होंने संसार के लिए इतना और हमारे लिए इतना सारा किया जैसे कल भी कुछ भक्त कह रहे थे। वैसे जयपताका महाराज ने एक अष्टक ही लिखा है उसमें कहते हैं कि यदि प्रभुपाद ना होईते तबेे की होईते अगर प्रभुपाद ना होते तो क्या होता जो कुछ हुआ है हमारे जीवन में परिवर्तन, अनुकूल परिवर्तन या सही परिवर्तन क्रांति या भक्ति भाव, बाजार भाव से अब भक्ति भाव जो उदित हो रहे हैं, माया के भाव या असुरी भाव उस स्थान पर भक्ति भाव कृष्ण भावना भावों की जो स्थापना हो रही है यह सब प्रभुपाद के कृपा का ही फल है। या फिर आपको सत्संग भी मिला या आपको गुरु मिले या यह मिले वह मिले यह भी सभी प्रभुपाद के कारण ही। या आपके शहर में इस्कॉन है, दर्शन भी है राधा कृष्ण का आपके शहर में बहुत सारे उत्सव है यह भी प्रभुपाद सारी व्यवस्था करके गए। चैतन्य महाप्रभु की और से या चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी को सच करके दिखाएं। ठीक है, मैं अपनी वाणी को यही विराम देता हूं। तो अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करो, ज्यादा देर नहीं हुई है। आज भी आप औरों को सुना सकते हो या अपने परिवार में कुछ कह सकते हो। बोधयन्ता परस्परं कर सकते हो या कोई मंच आपको मिलता है तो प्रभुपाद के कुछ गुण गाओ या कुछ लिखो। या आपको कोई विचार का फोरम आपने बना लिया है ऑनलाइन तो उसमें कुछ आप अपने विचार व्यक्त करो प्रभुपाद के गुण कल भी गए होंगे नहीं गाए थे उसको कुछ आगे बढ़ा सकते हो। ठीक है, कल एकादशी है, तो मिलते हैं।

English

14 August 2020 Lord Caitanya’s Senapati Bhakta Hare Krishna! Gaura premanande Hari Haribol! Śrila Prabhupāda Āvirbhāva tithi Mahotsava ki jai! You have all heard Janmastami kathas. You must have been busy on the occasion of the Appearance day of Śrila Prabhupāda. You must have remembered and glorified him. Jai Śrila Prabhupāda! Do you like Śrila Prabhupāda? Yes? Śrila Prabhupāda has changed this world. Whatever changes we observe in ourselves, it's all because of Śrila Prabhupāda. Whatever I am today, it's all because of the mercy of Śrila Prabhupāda. The revolution in the consciousness of disciples is the result of the mercy of their spiritual master. Earlier they were only highly educated, but now they are becoming highly cultured. They are becoming gentlemen. Someone asked Śrila Prabhupāda, "What do you want to see in your disciples?" He said, " I want them to be gentlemen." This world is so unique. We always address people as 'Ladies and Gentlemen,’ but nowadays there is no such gentleness. Gentle is one who is eligible to enter into an assembly (sabha). Only a gentleman (sabhya purush) can enter into a sabha or assembly. If we are becoming gentlemen, it's all the mercy of our spiritual master. avajānanti māṁ mūḍhā mānuṣīṁ tanum āśritam paraṁ bhāvam ajānanto mama bhūta-maheśvaram Translation Fools deride Me when I descend in the human form. They do not know My transcendental nature as the Supreme Lord of all that be. (BG.. 9.11) na māṁ duṣkṛtino mūḍhāḥ prapadyante narādhamāḥ māyayāpahṛta-jñānā āsuraṁ bhāvam āśritāḥ Translation Those miscreants who are grossly foolish, who are lowest among mankind, whose knowledge is stolen by illusion, and who partake of the atheistic nature of demons do not surrender unto Me. (BG. 7.15) This way Śrila Prabhupāda has changed the fools, miscreants, lowest among mankind, whose knowledge was stolen by illusion, who partook of the atheistic nature of demons, and who were lusty and greedy. We talk about demerits which are so many. This world is a mine of people filled with demerits. Unfortunately, we also possess many such demerits. But as soon as we got the association of Śrila Prabhupāda, we became gentlemen. Śrila Prabhupāda had 5000 disciples and they became gentlemen. Many others also came in contact with Śrila Prabhupāda. I am sure their lives also changed. There are 26 qualities of a Vaiśnava and Śrila Prabhupāda's disciples exhibit those qualities. Śrila Prabhupāda addressed this as a 'Revolution in consciousness'. Śrila Prabhupāda was a revolutionary. Just like the French revolution, Russian revolution, etc. Śrila Prabhupāda said that he brought 'Revolution in consciousness'. He changed the mood of the people from demoniac to devotional. This was a revolution. A revolution should be like this, for the welfare of the whole world. In all our lives, yours and even mine, he brought about a lot of changes. This campaign, that he inaugurated is ISKCON which is spreading worldwide. All our lives have changed because of Śrila Prabhupāda. Do you experience any revolution in consciousness? Some devotees are saying, 'Yes'. Sankirtan Gaur Prabhu from Bangladesh is saying, 'Yes'. There are so many followers of Śrila Prabhupāda, Guru and Gauranga or Jayapataka Swami Maharāja in Bangladesh. I have seen that. This is all because of Śrila Prabhupāda. Yesterday I was saying that Śrila Prabhupāda started preaching in 1965 in New York. When he reached there, he sat on the footpath or park bench and did kirtana alone. It was a strange sight. Americans would have thought that Śrila Prabhupāda, who is bald headed, is wearing paint on his head which was tilak and was wrapped in a bed sheet which was actually a saffron dhoti. A dhoti has its own importance. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare Śrila Prabhupāda was singing Hare Krishna, which people didn't really understand. There were many passers by where Śrila Prabhupāda was sitting and chanting. Some of them were attracted and gathered around him. Śrila Prabhupāda spoke about Krsna, The Supreme Personality of Godhead, showing the picture of Radha Krsna. People then asked Śrila Prabhupāda, “If He is the Supreme Personality of Godhead, then who is that girl next to Him?” These people didn't even know anything about Krsna or Radharani. In India, even a child knows about Radha Krsna. And now, Śrī Krsna Janmastami is being celebrated in more than 100 countries. That means in more than 100 countries, people now have started to know Radha and Krsna and are celebrating Janmastami. janma karma ca me divyam evaṁ yo vetti tattvataḥ tyaktvā dehaṁ punar janma naiti mām eti so ’rjuna Translation One who knows the transcendental nature of My appearance and activities does not, upon leaving the body, take his birth again in this material world, but attains My eternal abode, O Arjuna. (BG 4.9) We should know the Lord in reality. The people outside India didn't even know Krsna, but now He has become the talk of the town. People know Radha and Krsna. Śrila Prabhupāda circled the globe 14 times and introduced Krishna consciousness to everyone. People started accepting this and started doing street sankirtana. pṛthivīte āche yata nagarādi grāma sarvatra pracāra haibe mora nāma Translation In every town and village, the chanting of My name will be heard. (Caitanya Bhagwat Antya-khaṇḍa 4.126) Through street sankīrtana, people started knowing us as Hare Krishna people. Why 'Hare Krishna' People? Because all we do is always chant Hare Krishna. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare With this, our lifestyle has changed. Our eating habits have changed. We follow the 4 regulative principles. The credit for all this goes to Śrila Prabhupāda. The scenario of the world before 1965 is not the same anymore. The world is different now and who has made the difference? Śrila Prabhupāda and his ISKCON has made the difference. People had zero knowledge about Krsna, and now these people have become heroes. They are becoming knowledgeable and are becoming leaders of ISKCON. They are spreading Gaudiya Vaiśnava Parampara and the prediction of Caitanya Mahāprabhu. We need to understand Śrila Prabhupāda and establish a loving relationship with him in disciplic succession. He is our grand spiritual master. We have to establish a relationship with Krsna and for that we have to establish a relationship with Śrila Prabhupāda. Krsna Kanhaiya Lal ki jai! Hathi Godha Pal ki jai! I am just your spiritual master, but Śrila Prabhupāda is your grand spiritual master. A grand father is always more loving to his grandchildren, even more than the father. I love you all, but Śrila Prabhupāda loves you even more. Some of you must have offered your homages to Śrila Prabhupāda. Bansivadan Thakur Prabhu from Nashik has shared his offering in Marathi to me as well as on Loksanga. Some devotees were offering here in Pandharpur. Did you get a chance to speak? Or at least did you think on this? Did you take any resolution to please Śrila Prabhupāda? If not, then you can still think or write your thoughts on how we are indebted to Śrila Prabhupāda. Preach such thoughts to others. Śrila Prabhupāda has done so much for all of us. Jayapataka Maharaja has written a song - Yadi Prabhupada na hoite, tabe ki hoite. What would have happened if Śrila Prabhupāda was not there? Revolution from demoniac consciousness to Krishna consciousness is the result of the mercy of Śrila Prabhupāda. We all got his association. We got a spiritual master. We have an ISKCON centre locally. We get darsana. All these facilities are gifts of Śrila Prabhupāda on behalf of Caitanya Mahāprabhu. Okay, I will stop here. Radha Govinda ki jai! mac-cittā mad-gata-prāṇā bodhayantaḥ parasparam kathayantaś ca māṁ nityaṁ tuṣyanti ca ramanti ca Translation The thoughts of My pure devotees dwell in Me, their lives are fully devoted to My service, and they derive great satisfaction and bliss from always enlightening one another and conversing about Me. (B.G. 10.9) It's not too late. You can all write and sing the glories of Śrila Prabhupāda within your family. Share with others if possible. Some of you have prepared online preaching forums. You can use them to share these glorifications. Tomorrow is Ekadasi. Let's meet tomorrow and chant. Complete your rounds. See you tomorrow. Today we missed many of the participants. We have participants from only 760 locations today. Hare Krishna! Śrila Prabhupāda ki jai! Gaura premanande Hari Haribol!

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