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जप चर्चा ३ फरवरी २०२० हरि हरि बोल !!! गौर प्रेमानन्दे हरि हरि बोल !!! आप सभीका स्वागत है। हरि हरि !!! कल से में अबतक बीड में ही हु, कल और भी एक समारोह हुआ। “सालगिरह” राधा गोविन्द मंदिर सालगिरह समारोह १७ वा वर्धापन दिन सम्पन्न हुआ। हरि हरि यहाँ के राधा गोविन्द बहुत ही सूंदर है और उनके सौंदर्य का क्या केहना। तो आप प्रतिभागियों इस जुम कॉन्फरेंस के देखलो कभी यहाँ आकर राधा गोविन्द का भी बीड में दर्शन करो। हरि हरि !! यहाँ हरिनाम का भी काफी प्रचार है। तो जब १७ साल पहले मंदिर का उद्घाटन हुआ । मंदिर बना तो दर्शन मंड़प छोटा ही था । उस समय तो लगता था बड़ा है लेकिन जब संख्या बढ़ गई तो अब महसूस कर रहे है की बहुत छोटा है । कुछ २०० भक्त दर्शन मंडप में बैठ सकते ऐसी व्यवस्था है ।इतना ही आकर है। तो कल भूमी पूजन भी हुआ। राधा गोविन्द मंदिर कहो या राधा गोविन्द दर्शन मंड़प का नव निर्माण के हेतु भूमी पूजन भी संपर्ण हुआ और अब हॉल तो २०० भक्तो के लिए पर्याप्त होता था ।अब दो हज़ार भक्त बैठ सकते है। ऐसी व्यवस्था उपलब्ध है। इतना बड़ा हॉल बनाने का संकल्प और उसके हेतु भूमी पूजन भी हुआ है। हरि हरि!! जरूर या राधा गोविन्द के भक्त, इस्कॉन बीड के भक्त और हमारे कुछ विशेष दान दाता है वे उस संकल्प को पूरा करेंगे इतने में समाचार आया की इस्कॉन सोलापुर के १५० भक्त अभी अभी दिंडी में सोलापुर से पंढरपुर दिंडी प्रारंभ किये है और हरिनाम का प्रचार करते हुए : हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। पंढरपुर के लिए प्रस्थान कर रहे है ऐसे उनका भी वार्षिक उत्सव है दिंडी महाराष्ट्र में इसको दिंडी कहते है। हमलोग इसको पदयात्रा भी कहते है। इस्कॉन में पदयात्रा कहते है ।तो उन भक्तो का भी स्वागत है और अभिनन्दन है जो इस्कॉन सोलापुर के १५० भक्त हरिनाम प्रचार के लिए निकले है रास्ते में आने वाले कई सारे गाऊँ में नगरों में और पदयात्रा का प्रचार तो केवल नगर आदि ग्राम में ही नहीं होता नगरों में ग्रामो मंल नहीं होता ग्रामो के विच में भी एक गाऊँ और दुशरे गाऊँ के विच में भी हमारी पदयात्रा हरीनाम का प्रचार करती है , चैतन्य महाप्रभु ने तो कहा था हरिनाम का प्रचार हर नगर में होगा हर ग्राम में होगा लेकिन पदयात्रा उस भविष्यवाणी को साकार कर रही है या उस से ज्यादा पुरी कर रही है, उस भविष्यवाणी का। ये भविष्यवाणी को सच कर रही है पदयात्रा क्यूँकि पदयात्री नगरों और ग्रामो के मध्य में, वीच में भी कीर्तन कर रहें है और हरिनाम का प्रचार कर रहे है। हरि हरि!! आज विशेष तिथि भी है। आज श्रील माधवाचार्य तिरोभाव तिथि महोत्सव है। श्रील माधवाचार्य तिरोभाव तिथि महोतशाव की जये !!! आप समझते हो तिरोभाव क्या होता है ।तिरोभाव एक होता है आविर्भाव जन्मदिन और तिरोभाव ,महाराष्ट्र में पुण्य तिथि कहते है। आज का दिन भी पुण्य दिन है। आज के दिन माधवचार्य भगवद्धाम के लिए प्रस्थान किये या नित्य लीला प्रविष्ठ हुए ।भगवान के नित्य लीला में उन्होंने पुनः प्रवेश किया ऐसे माधवाचार्य वे हमारे भी आचार्य है। *धर्मं तु साक्षाद्भगवत्प्रणीतं* *न वै विदुऋर्षयो नापि देवा:* । *न सिद्धमुख्या असुरा मनुष्या:* *कुतो नु विद्याधरचारणादय:* ॥ (श्रीमद्भागवतम् ६.३.१९ ) वैसे धर्मं तो भगवान जो देते है उसको धर्मं कहते है। धर्मं भगवान देते है। धर्मं तु साक्षाद्भगवत्प्रणीतं न वै विदुऋर्षयो नापि देवा: । न सिद्धमुख्या असुरा मनुष्या: कुतो नु विद्याधरचारणादय: ॥ (श्रीमद्भागवतम् ६.३.१९) *परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |* *धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||* (भगवद्गीता ४.८) भगवान आके धर्मं कि स्थापना करते है और फिर उस धर्मं कि पुनः स्थापना कहिये या भगवान ने दिए हुए ।उस धर्मं का प्रचार और प्रसार का कार्य आचार्यवृंद करते है। भगवान कि व्यवस्था से, कृष्ण कि व्यवस्था से ४ प्रामाणिक परम्पराए है : १) ब्रह्म सम्प्रदाय २) रूद्र सम्प्रदाय ३) श्री सम्प्रदाय ४) कुमार सम्प्रदाय ये चार सम्प्रदाय है। *संप्रदाय-विहीना ये मंत्रस ते निष्फल मतः (पद्म पुराण)* जो हम मंत्र प्राप्त करते हे इस परंपरा का मंत्र होना चाहिए ।परंपरा के वहार वाला मंत्र नहीं होना चाहिए। *श्री भगवान उवाच :* *एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः ।* *स कालेनेह महता योगे नष्टः परन्तप*॥ २ ॥ (भगवद्गीता ४.२) ज्ञान या मंत्र परंपरा से प्राप्त करना चाहिए इसको संप्रदाय भी कहते हैं। आज कल तो कई सारे सम्प्रदाय तो कई सम्प्रदायिक कीर्तन, ... लेकिन उस में से कई सारे कथा कथित ही संप्रदाय होते है। फिर भगवान की मान्यता या स्वकृति तो या भगवान का आशीर्वाद ये चार प्रामाणिक परंपरा को प्राप्त है और उस में से ब्रह्म संप्रदाय और जिस संप्रदाय में माध्वाचार्य प्रकट हुए और उसी सम्प्रदाय में फिर आगे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी प्रकट हुए या उसी संप्रदाय में माधवेंद्र पूरी प्रकट हुए या श्री चैतन्य महाप्रभु और षड्गोस्वामीवृन्द और फिर हम भी , श्रील प्रभुपाद कि जय !!! श्रील प्रभुपाद भी , हम ब्रह्म मध्वगौड़ीय संप्रदाय के भक्त हैं ।तो मध्वाचार्य का बहुत बड़ा योगदान रहा वैसे भगवान आते हैं। कब आते हैं भगवान ? *यदा यदा हि धर्मस्य* जब धर्म की ग्लानि होती है ,और अधर्म का उत्थान होता है अधर्म बड़ता है और धर्म घटता है या इसका ह्रास होता है । *तदात्मानं सृजाम्यहम्* तब मैं प्रगट होता हूं - भगवान कहते है। तो केवल भगवान ही प्रकट नहीं होते। जब जब *यदा यदा ही धर्मस्य* धर्म की हानि होती है भगवान, भगवान भी प्रकट होते हैं लेकिन भगवान ही प्रकट नहीं होते कुछ विशेष आचार्यों को भी प्रकट करते हैं ।विशेष आचार्य को विशेष शक्ति प्रदान करके "पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी " देकर उनको इस संसार में भेजते हैं ।ताकि वो क्या करेंगे धर्म की पुनः स्थापना करेंगे तो यह चार वैष्णव आचार्य हुए चार संप्रदाय के चार परंपराओं में रामानुजाचार्य मध्वाचार्य विष्णुस्वामी और निंबार्काचार्य यह सभी सभी चार आचार्य दक्षिण भारत में प्रकट हुए और इन चार संप्रदायों के पहले शंकराचार्य प्रकट हुए और उन्होंने *मायावादं असत्य शास्त्रं* मायावादी सूट मूट का असत्य शास्त्र है उसका प्रचार किया, अद्वैतवाद का प्रचार किया भगवान और जीव एक ही हैं ।उसका प्रचार किया अहम् ब्रह्मास्मि ब्रह्म अलग नहीं है मैं ही ब्रह्म हूं या परब्रह्म एक जीवात्मा दूसरा ऐसा बात नहीं है। इसके कारण धर्म की ग्लानि हुई या धर्म की हानि हुई । तो मध्वाचार्य प्रगट हुए कर्नाटक में उड़पी नाम का स्थान है ।वहां के उड़पी कृष्ण भी प्रसिद्ध है। उड़पी से कुछ ही दूरी पर मध्वाचार्य की जन्म स्थली है। तो वहां जन्मे मध्वाचार्य और बाल अवस्था में है प्रकांड विद्वान थे या प्रकांड विद्वान बने *दिव्य ज्ञान ह्रदय प्रकाशित* दिव्यज्ञान भगवान ने उनके ह्रदय में प्रकाशित किया और उस ज्ञान का प्रचार प्रसार ही तो मध्वाचार्य किए बाल अवस्था में मध्वाचार्य सन्यास लिए आजकल तो लोग बूढ़े होने के उपरांत भी घर नहीं छोड़ते लेकिन माध्वाचार्य कुछ बालक ही थे और सन्यास लिया और सर्वत्र परिभ्रमण किया उन्होंने और मायावाद का खंडन किया। माध्वाचार्य ने कई सारे ग्रंथ लिखे *भागवत तात्पर्य* नाम का ग्रंथ उनका प्रसिद्ध है । *मायाबाद सत् दुश्मनी* माया बात का खंडन करते हुए उन्होंने कुछ विशेष वचन लिखें । जिसका वह प्रचार करते थे। भ्रमण करते करते मध्वाचार्य मायापुर पहुंचे थे यह कुछ 800 वर्ष पूर्व की बात है 800 साल पहले साडे सात सौ आठ सौ वर्ष पहले मध्वाचार्य थे। तो आप जानते ही हो 500 वर्ष पूर्ण चैतन्य महाप्रभु प्रगट हुए ।वैसे मुझे यह कहना था कि यह चारों वैष्णव आचार्य एक के बाद एक मायापुर जाते हैं और इन्हें दर्शन दिए , श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु सभी की मुलाकात हुई चैतन्य महाप्रभु के साथ । 500 वर्ष पूर्व चेतन महाप्रभु ने अपनी प्रकट लीला का दर्शन कराया लेकिन वहां नित्य लीला में तो नित्य विद्यमान है ,मायापुर में तो प्राकट्य के पहले भी चैतन्य महाप्रभु वहां थे और अब भी वहां है ,चैतन्य महाप्रभु अपने नित्य लीला मैं ऐसा समझना चाहिए ।तो नित्य लीला तो संपन्न हो रही थी जब माध्वाचार्य से मिले तो उन्होंने माध्वाचार्य संप्रदाय से दो विशेष बातों का, यह मध्वाचार्य संप्रदाय का वैशिष्ट्य है । उन दो वैशिष्ट्य को ,उनकी खासियत कहिए, उनकी विशेषता अपने संप्रदाय गौड़ीय संप्रदाय में चेतन महाप्रभु ने अपनाया एक तो है माया बाद का खंडन जिस से प्रभावित थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा *मायावादी भाष्य सुनीला होयिला सर्वनाश* मायावदी भाषा सुनोगे - ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या कोई रूप है तो वह मिथ्या भगवान का रूप भी मिथ्या है। भगवान का ना तो कोई नाम है ना कोई काम है। भगवान कुछ नहीं करते मतलब कोई कुछ करता हैं तो वो माया है कुछ बोलता है तो वह माया है ।ऐसा माया वाद कि समाज है तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने मध्वाचार्य से अपने संप्रदाय में मायावाद का खंडन को स्वीकार किया जैसे माध्वाचार्य इतने कट्टर विरोधी थे। शंकराचार्य तो जीव और भगवान एक है। इसी को अद्वैत कहते हैं। अद्वैत मतलब “अ" - नहीं “द्वैत” - दो नहीं है। जीव, “जीव आत्मा" परमात्मा "भगवान" दो नहीं है दोनों एक ही हैं । हरि हरि !!ऐसा उल्टा सीधा जो शंकराचार्य असत्य प्रचार किए थे तो उसका खंडन किया ।तो शंकराचार्य कहे जीव भगवान एक है अद्वित है ।तो मध्वाचार्य ने कहां और दिखाया भी नहीं दो है मध्वाचार्य का जब हम दर्शन करते हैं ।उनका दर्शन उनकी तस्वीर देखते हैं चित्र देखते हैं तो कैसे दिखते हैं दो उंगली दिखाते हुए दो है - दो है एक नहीं है। दो है- द्वेत ‘जीव भी है और भगवान भी है ’ और यह नहीं कि कुछ समय के लिए वह दो है । सदा के लिए दो है। *ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: ।* *मन:षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥ ७ ॥* ( भगवत गीता 15.7) उसको आगे हम समझाते हैं और भगवान भी कहे जीवात्मा अंश है और भगवान अंशी है ऐसी कुछ शास्त्र की भाषा है। तो भगवान को कहते हैं अंशी और जीवात्मा है अंश हम भगवान के अंश हैं और भगवान पूर्ण है। भगवान भी है भगवान पूर्ण रूप में है । ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते, पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते। भगवान पूर्ण है और हम उनके अंश है और सनातन है सदा के लिए के लिए अंश है ये नहीं कि अभी अंश और साधना करेगा जप तप करेंगे तो फिर पुनः भगवान के साथ मिल जाएगा या भगवान में लीन होगा यह लीन होने की बात है । उसको माधवाचार्य ने नहीं माना ।यह माधवाचार्य की देन रही ।मध्वाचार्य का बहुत बड़ा योगदान हे।यह मायावाद का खंडन और दूसरी बात श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को पसंद आई वह है, विग्रह आराधना मध्वाचार्य जिस पद्धति से या भावों के साथ अपने उड़पी कृष्णा, कृष्ण का नाम ही हुआ उड़पी कृष्णा उनकी आराधना करते थे। उनके आराधना की पद्धति और मायावाद का खंडन श्री कृष्ण चेतन महाप्रभु स्वीकार किए वैसे माधवाचार्य वायु देवता के अवतार ही माने जाते हैं। जैसे हनुमान थे पवन पुत्र । वैसे ही माध्वाचार्य वायु देवता के अवतार थे । इसलिए शक्तिमान भी थे । कई बार वो उड़ान भी भरते छलांग भी मारते जैसे हनुमान मारते थे वैसे ही माधवाचार्य भी पहाड़ से नीचे सीढ़ी से नहीं उतरते ऐसे ही कूद पढ़ते या छलांग मारते ।ऐसा शारीरिक बल भी था। माध्वाचार्य में एक बोट द्वारिका से उड़पी में पहुंची थी वो आंधी तूफान में फंसी थी । डामाडोल ,डूबने की संभावना थी ।तो माध्वाचार्य ने देखा उस बोट का क्या हाल हो रहा है ।डामाडोल हो रही है ।डूब सकती है। तो माध्वाचार्य जो पवन पुत्र या वायु देवता के अवतार हैं हवा बह रही है आंधी तूफान ... तो माध्वाचार्य ने उसको रोक लिया और उनके संकल्प मात्र से हवा ठंडी हो गई मंद मंद बहने लगी और वोट की रक्षा हुई वोट में जो सामान था उसकी रक्षा हुई और उस बोट के मालिक भी होंगे जो माध्वाचार्य से प्रसन्न हुए उन्होंने जो मदद की वोट को बचाया समुद्र में डूबने से समुद्र में डूबने वाली थी तो माध्वाचार्य को पुरस्कार दिया धन्यवाद !! कहकर मुख्य से आभार प्रगट ही नहीं किया कुछ दे दिया उन्होंने दो बॉक्स दे दिए ,2 पेटी दे दी सुदेव से या भगवान की कृपा से 2 पेटी में दो भगवान के विग्रह थे एक में थे कृष्ण और दूसरे में थे बलराम तो माधवाचार्य ने उन दो पेटियों को अपने सिर पर ढोते हुए उड़पी ले आए उस समय उन्होंने जो उदगार कहे स्तुति की वह प्रसिद्ध है। फिर विग्रह की स्थापना वह उड़पी मैं की। बलराम के स्थापना तो समुद्र के निकट ही हुई और श्री कृष्ण की स्थापना नगर में हुई या उड़पी शहर में ,शहर के मध्य में हुई अभी भी वहां कृष्णा स्थापित है अर्चित है। उनकी अर्चना होती है। यह एक बहुत बड़ी घटना है। जिसमें माधवाचार्य अपनी शक्ति अपनी भक्ति का भी प्रदर्शन किये मध्वाचार्य भ्रमण करते हुए बद्रिका आश्रम भी गए थे ।जहां बद्रिकाश्रम में निवास करते हैं श्रीला व्यास देव और व्यास गुफा भी है। एक गणेश गुफा भी है बद्रिका आश्रम में तो मध्वाचार्य को दर्शन हुआ मध्वाचार्य देखें ,मुलाकात हुई उनकी गले मिले हाथ मिलाए दोनों बैठे वार्तालाप हुआ। श्रीला व्यास देव माधवाचार्य को कुछ शिक्षा दिए कुछ उपदेश किए और उन उपदेशों शिक्षाओ की मदद से मध्वाचार्य ने कई सारे ग्रंथों की रचनाएं की कई सारी टिकाएं लिखी उनकी महाभारत की टीका भी प्रसिद्ध है ,मध्वाचार्य की। जिन्होंने महाभारत लिखा उन श्रील व्यास देव ने दर्शन दिया मध्वाचार्य को उन्होंने विशेष शिक्षा उपदेश दिया तो फिर मध्वाचार्य महाभारत पर टिका लिखी हैं। जो विशेष प्रसिद्ध है सुप्रसिद्ध है। हरी हरी !! हम तो नहीं देखे 1977 में या संक्षिप्त में कहूंगा हम भी बद्रिकाश्रम से लौटे मैं और मेरे साथी ब्रह्मचारी साथी मैं सन्यासी था। तो वृंदावन में आए नवंबर मास में श्रील प्रभुपाद से मिले श्रील प्रभुपाद का स्वास्थ्य ठीक नहीं था या कुछ 1 सप्ताह पहले की बात है प्रभुपाद ने 14 नवंबर 1977 के दिन उनका तिरोभाव हुआ। श्रील प्रभुपाद भागवत धाम लौटे। उसके 1 सप्ताह पहले की बात है ।बद्रिका आश्रम से लौटे तो श्रील प्रभुपाद ने कृपा की हमें दर्शन दिया तो उस समय हम अपने बद्रीका आश्रम का कुछ अनुभव सुना रहे थे। श्रीला प्रभुपाद को तो हमने ये कहा था कि हम बद्रिका आश्रम में गए थे उसमें हम एक गुफा में गए और हमने आपकी भगवत गीता श्रील व्यास देव को दिखाइए तो श्रील व्यास ने आपकी भगवद्गीता देखी। तो ऐसी बात जब हमने श्रीला प्रभुपाद को सुनाएं तो श्रीला प्रभुपाद बहुत प्रसन्न थे तो प्रभुपाद की भगवत गीता यथारूप शीला व्यास देव को हमने दिखाइए । ऐसा हमने कहा हमने तो नहीं देखा था श्रीलव्यास देव को लेकिन हमने सोचा व्यास गुफा में गए हम ,तो व्यास देव तो वहां रहते ही हैं ।हमने उनको नहीं देखा लेकिन उन्होंने हमें जरूर देखा होगा तो यह बात श्रील प्रभुपाद सुन कर बहुत प्रसन्नता थे कि हमने उनकी भगवत गीता को व्यास देव को दिखाया श्रील व्यास देव की जय!! तो उसी परंपरा में श्रील व्यास देव भी, ब्रह्मा व्यास मध्व गौड़ीय संप्रदाय हमारा है। कृष्ण ,ब्रह्मा ,नारद, व्यास , मध्वाचार्य, गाड़ीय, चैतन्य महाप्रभु ये हमारे परंपरा के आचार्य हैं। हमारा सौभाग्य है कि हमारा संबंध या रिश्ता - नाता इन आचार्य के साथ ओर मध्वाचार्य के साथ भी है ।हम मध्वाचार्य परिवार के , परंपरा के हम भी और आप भी कुछ शिक्षत दीक्षित हो श्री माधवाचार्य तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय!!! हरिनाम संकीर्तन की जय!!! हरे कृष्ण महामंत्र की जय!!! निताई गौर प्रेमानंद हरि हरि बोल!!! -- Ashit Kumar Subudhi

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