Hindi
*जप चर्चा*
*वृन्दावन धाम से*
*30 अक्टूबर 2021*
हरे कृष्ण!!!
इससे आपके जप करने का विचार और पक्का होता है। हम ही जप करने वाले पागल नहीं है। 'आई एम नॉट ओनली फूल' कोई कह सकता है कि यह हरे कृष्ण वाले पागल है। अब इस पृथ्वी पर जप करने वाले असंख्य भक्त हैं। पहले ऐसा नहीं हुआ करता था, लोग पहले प्रात: काल में कहाँ जगा करते थे। जब से इस्कॉन की स्थापना हुई है और इस्कॉन का प्रचार- प्रसार अथवा इस्कॉन टेंपल की ओपनिंग हो रही है तब से लोग पुनः ब्रह्म मुहूर्त में जगने लगे हैं। यह हमारा कल्चर है, हमारी संस्कृति है। उस भूली हुई संस्कृति को यह हरे कृष्ण आंदोलन पुनः स्मरण दिला रहा है। ना केवल भारत में, पूरी दुनिया में लोग...
जैसे पंढरपुर में काकड़ आरती होती है। मंगल आरती/ काकड आरती महाराष्ट्र / पंढरपुर में होती है। वैसी ही आरती अब न्यूयॉर्क में हो रही है व डरबन, ऑस्ट्रेलिया, मेलबॉर्न, साउथ अफ्रीका, मास्को इत्यादि कई नगरों में होती है। जैसे आजकल 700 से अधिक शहरों में अथवा अराउंड द वर्ल्ड जगन्नाथ रथ यात्रा हो रही है। हमारे कुछ 1000 मंदिर हैं कई सारे गुरुकुल, कृषि फार्म है। इन स्थानों पर हमारी इंडिया से पहुंचे हुए एन आर आई भी अभ्यास कर रहे हैं। वे भी इस साधना/भक्ति के लिए प्रातः काल में उठ रहे हैं, नहीं तो लोग कहां उठते थे। देर रात तक पार्टी ही चलती रहती है। एक बार मैं ऑस्ट्रेलिया के शायद सिडनी शहर में था (अच्छे से शहर का नाम याद नहीं आ रहा) हम लोग मंगला आरती जा रहे थे अथवा मुझे एक भक्त मंदिर तक ले जा रहा था। रास्ते में मार्केटप्लेस आया। वहां कई सारे लोग जगे हुए थे और काफी संख्या में लोग तैयार थे। वे व्यस्त थे ।जो भक्त मुझे मंदिर ले जा रहे थे, मैंने उनसे पूछा कि क्या यह लोग भी मंगल आरती के लिए तैयार हुए हैं? वे लोग भी जगे हुए हैं। तब उस भक्त ने कहा- 'नहीं, नहीं'' यह लोग अभी सोए ही नहीं हैं।' प्रात: चार बजे मुझे लगा कि शायद ये लोग मंगला आरती के लिए जग गए हैं किंतु वे सोए ही नहीं थे। लोग पूरी रात भी जगते ही रहते हैं।तत्पश्चात वे 9-10 बजे उठते हैं। कलियुग में देश विदेश में सब उल्टा- पुल्टा हो रहा है। श्रील प्रभुपाद द्वारा स्थापित यह अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ अपनी प्राचीन संस्कृति और भागवत धर्म को जागृत कर रहा है अर्थात जीव जागो चल ही रहा है।
*जीव जागो, जीव जागो, गोराचाँद बोले। कत निद्रा जाओ माया-पिशाचीर कोले॥1॥*
*भजिब बलिया ऐसे संसार-भितरे। भुलिया रहिले तुमि अविद्यार भरे॥2॥*
*तोमार लइते आमि हइनु अवतार। आमि विना बन्धु आर के आछे तोमार॥3॥*
*एनेछि औषधि माया नाशिबार लागि। हरिनाम-महामंत्र लओ तुमि मागि॥4॥*
*भकतिविनोद प्रभु-चरणे पडिया। सेइ हरिनाममंत्र लइल मागिया॥5॥*
अर्थ
(1) श्रीगौर सुन्दर कह रहे हैं- अरे जीव! जाग! सुप्त आत्माओ! जाग जाओ! कितनी देर तक मायारुपी पिशाची की गोद में सोओगे?
(2) तू इस जगत में यह कहते हुए आया था, ‘हे मेरे भगवान्, मैं आपकी आराधना व भजन अवश्य करूँगा,’ लेकिन जगत में आकर अविद्या (माया)में फँसकर तू वह प्रतिज्ञा भूल गया है।
(3) अतः तुझे लेने के लिए मैं स्वयं ही इस जगत में अवतरित हुआ हूँ। अब तू स्वयं विचार कर कि मेरे अतिरिक्त तेरा बन्धु (सच्चा मित्र) अन्य कौन है?
(4) मैं माया रूपी रोग का विनाश करने वाली औषधि “हरिनाम महामंत्र” लेकर आया हूँ। अतः तू कृपया मुझसे महामंत्र मांग ले।
(5) श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जी ने भी श्रीमन्महाप्रभु के चरण कमलों में गिरकर यह हरे कृष्ण महामंत्र बहुत विनम्रता पूर्वक मांग लिया है।
हमनें आपको दिखाया, सीइंग इज बिलिविंग (देखकर विश्वास होता है)। वैसे अभी कई सारे मंदिरों में, आपने देखा ही कि केवल मंदिरो में ही नहीं अपितु आप गृहस्थ भी तो उदाहरण हो। लगभग यहां पर 900 स्थानों से प्रतिभागी हैं। उसमें से 90 मंदिर से सम्बंधित होंगे । बाकी अवशेष 800 स्थान हैं, उसमें आप गृहस्थों के हैं। आप ग्रहस्थ आश्रम के सदस्य हो। आप भी तो जगे हो और आप प्रात:काल में जप भी कर रहे हो। राधाचरण प्रभु अपने आश्रम में और राधा श्यामसुंदर और शुभांगी अपने आश्रम में, महालक्ष्मी नागपुर में और इसी तरह से थाईलैंड, वर्मा, यूक्रेन, मोरिशियस जहां जहां से ज्वाइन करते हो, आप भी तो जगे हो। जोकि जीव का धर्म है। जैव धर्म।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।* का आप जप कर रहे हो, ध्यान कर रहे हो, प्रार्थना कर रहे हो। राधा कृष्ण को प्रार्थना कर रहे हो। हरि! हरि! करते रहो, जप व प्रार्थना करते रहो। विशेषरूप से यह कार्तिक मास है, कार्तिक व्रत चल रहा है। इस कार्तिक मास में की हुई साधना, भक्ति, जप, तप का कितना सारा फल प्राप्त होता है और वैसे हम वह फल कृष्ण प्रेम के रूप में ही चाहते हैं । हम प्रेममई सेवा भगवान की करें। हम जब जप करते हैं, तब हमारी प्रार्थना ही होती है। वी आर प्रेयिंग अर्थात हम प्रार्थना कर रहे होते हैं कि हम आपके हैं। हे राधे, हे कृष्ण! हमें स्वीकार कीजिए। प्रभुपाद भी कहा करते थे, "प्लीज इंगेज" और आपको भी सिखाया समझाया है। हरे कृष्ण महामंत्र के जो भाष्य हैं- जब हम हरे कहते हैं तो क्या भाव होता है, जब हम कृष्ण कहते हैं तो क्या भाव अथवा प्रार्थना होती है।
हरे कृष्ण महामंत्र पर आचार्यों का भाष्य भी है। -'सेवा योग्यं कुरु' अर्थात मुझे सेवा योग्य अथवा समर्थ बना दो। 'मया सह रम्यस' अर्थात हे प्रभु, मेरे साथ भी रमो । हरि! हरि! मेरे चित को आकृष्ट करो। आप कृष्ण हो।
*सः कर्षति स: कृष्ण:*
मेरे चित को अपनी ओर आकृष्ट करो। यह भी प्रार्थना है। प्रार्थना है कि " हे राधे आपकी कृष्ण के साथ जो लीलाएँ संपन्न होती हैं और हे कृष्ण तुम्हारी जो राधा के साथ लीलाएँ संपन्न होती हैं उनको श्राव्य अर्थात मुझे सुनाइए। केवल सुनाइए ही नहीं अपितु मुझे उनका दर्शन कराइए।" जब हम जप करते हैं तब ऐसे विचार होने चाहिए। जप एक ध्यान है, जप एक प्रार्थना है, जप एक यज्ञ है।
*महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् |यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ||*
( श्रीमद भगवतगीता १०.२५)
अनुवाद:- मैं महर्षियों में भृगु हूँ, वाणी में दिव्य ओंकार हूँ, समस्त यज्ञों में पवित्र नाम का कीर्तन (जप) तथा समस्त अचलों में हिमालय हूँ |
जब हम जप करते हैं तब हम स्वयं को ही समर्पित करते हैं
*सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज | अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः ||*
( श्रीमद भगवतगीता १८.६६)
अनुवाद:- समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत ।
हम भगवान की शरण लेते हैं। मुझे आश्रय दीजिए और अपने चरणों की सेवा दीजिए। प्रेममयी सेवा (डिवोशनल सर्विस) केवल मुझे भक्ति ही नहीं दीजिये, मुझे प्रेम दीजिए, भक्ति दीजिए, केवल डिवोशन (भक्ति) नहीं चाहिए अपितु मुझे भक्तिमय सेवा (डिवोशनल सर्विस) चाहिए। जैसे भक्ति योग है, कई लेखक, भाष्यकार, कमेंटेटर्स भक्ति का अनुवाद तो डिवोशन कर देते हैं लेकिन हमारे गौड़ीय आचार्य और श्रील प्रभुपाद भक्ति को डिवोशनल सर्विस कहते हैं। केवल डिवोशन ( भक्ति) नहीं कहते। केवल यदि डिवोशन (भक्ति) है तो शांत रस हुआ। हमें तो सक्रिय होना है। केवल ओम शांति ओम शांति ...
केवल जीना ही नहीं, रहना ही नहीं, सिंपली लिविंग, 'वी हैव टू बी एक्टिव' सक्रिय होना यह इस जीवन का लक्षण भी है। हम भक्तिमय सेवा (डिवोशनल सर्विस) चाहते हैं। डिवोशनल सर्विस /भक्ति योग यह जीव का धर्म है। चाहे फिर उसको सनातन धर्म कहिए या भागवत धर्म कहिए या वर्णाश्रम धर्म कहिए। सेवा महत्वपूर्ण है क्योंकि हम तो दास ही हैं।
*जीवेर 'स्वरूप' हय- कृष्णेर 'नित्य दास'। कृष्णेर तटस्था- शक्ति' ' भेदाभेद - प्रकाश'।।*
( श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला श्लोक 20. 108)
अर्थ:- कृष्ण का सनातन सेवक होना जीव की वैधानिक स्थिति है, क्योंकि जीव कृष्ण की तटस्था शक्ति है और वह भगवान से एक ही समय अभिन्न और भिन्न है।
हरि! हरि! जप करते रहिए। देखिये हमार अधिक अधिक ध्यान कैसे बढ़ सकता है, हो सकता है। मोर कंसंट्रेशन, मोर फोकस। चेंट व्हाईल चैंटिंग अर्थात जप के समय जप ही करें। किसी तरह की योजना न बनाए (डोंट डू एनी प्लानिंग)। कुछ भक्त इधर उधर मिक्स कर देते हैं, जप के साथ मोबाइल पर बात भी हो रही है। जप भी हो रहा है, दोनों हाथ व्यस्त हैं। यह सही तरीका नहीं है। कहते हैं कि जप के समय बगल में ही मोबाइल रखना यह ग्यारहवां नाम अपराध है। दस नाम अपराध तो आप जानते ही हो। जब से संसार में मोबाइल ने अवतार लिया तब से हम सभी से एक और अपराध होने लगा। हम इस मोबाइल का प्रयोग करते रहते हैं और सारी दुनिया से निरन्तर संपर्क बनाए रखते हैं जिसके कारण हमारा मन विचलित हो जाता है। ध्यानपूर्वक जप करना है, जप के समय और कुछ नहीं करना है, जप ही करना है। इसको हम कहते रहते हैं। यह समय हमारा कृष्ण के साथ का समय होता है। कृष्ण के साथ मुलाकात का समय होता है 'टाइम विद कृष्ण' 'आई हेव अपॉइंटमेंट एट 5:30 ए एम' आई हैव अप्वाइंटमेंट विद कृष्ण। पहले भी हो सकती है, कृष्ण तो तैयार हैं, वे कभी भी मुलाकात कर सकते हैं। कुछ भक्त तो 3:00 बजे ही जप शुरू करते हैं। कृष्ण तैयार हैं। वे अपने भक्तों से 3:00 बजे मिलते हैं। एनी टाइम ऑफ द डे और नाईट कृष्ण इज अवेलेबल (कृष्ण हर समय उपलब्ध हैं)। श्रील प्रभुपाद कहा करते थे यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण भगवान का फोन नंबर है। क्या किसी के फ़ोन नम्बर में 16 अंक होते हैं? प्रधानमंत्री के नम्बर में भी नहीं है। ना ही अमेरिका के राष्ट्रपति का 16 डिजिट वाला नंबर है। यह कोई वी. वी. वी.वी.आइ.पी होने चाहिए। इसलिए इनका नंबर 16 डिजिट वाला है। यह हरे कृष्ण महामंत्र यह फोन नंबर है। जब हम फोन करते हैं तब हमारा फोन कृष्ण अटेंड करते हैं? कृष्ण अटेंड द फोन पर्सनली। कृष्ण हमारे फ़ोन को व्यक्तिगत रूप से अटेंड करते हैं। कृष्ण अपने सैक्रेटरी को नहीं कहते कि देख लो कौन है। हम जब कृष्ण को पुकारते हैं या राधे को पुकारते हैं अर्थात जिनको हम पुकार रहे हैं, जिनको हमने फोन किया हैं, वह स्वयं फोन उठाते हैं। यह जो लाइन है, यह हॉट लाइन है। कृष्ण हर समय तैयार रहते हैं। कृष्ण इज रेडी फॉर द कम्युनिकेशन, फॉर द डायलॉग। जब कृष्ण के साथ हम संवाद करते हैं। हम कुछ कर रहे हैं।
*ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्ममाख्यति पृच्छति। भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीति-लक्षणम्।।*
( उपदेशामृत श्लोक 4)
अनुवाद:- दान में उपहार देना, दान-स्वरूप उपहार लेना, विश्वास में आकर अपने मन की बातें प्रकट करना, गोपनीय ढंग से पूछना, प्रसाद ग्रहण करना तथा प्रसाद अर्पित करना- भक्तों के आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार के ये छह लक्षण हैं।
हम गुह्ममाख्यति पृच्छति वैष्णवों के साथ भी करते हैं। विष्णु के साथ कर सकते हैं। कृष्ण के साथ भी हम गुह्ममाख्यति पृच्छति कर सकते हैं। हम अपने दिल की बात कृष्ण को सुना सकते हैं।
हम उनसे कुछ गोपनीय बातें भी पूछ सकते हैं। 'के आमी', के एम आय, तारे ताप त्रय। जैसे सनातन गोस्वामी भी ..... हमारे अर्जुन भी कई सारे प्रश्न पूछ रहे थे। हम भी प्रश्न पूछ सकते हैं, कृष्ण को कोई रिपोर्टिंग कर सकते हैं या कृष्ण की कोई स्तुति कर सकते हैं। यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहना भी स्तुति ही है लेकिन स्तुति के अंतर्गत हम अन्य कोई स्तुति और कोई गौरव गाथा भी कर सकते हैं। नाम, रूप, गुण, लीला की बातें तो हैं ही। नाम हमें भगवान के रूप तक पहुंचा देता है और उनका रूप , भगवान के गुणों का स्मरण दिलाता है। गुणों से कृष्ण के परिकरों का एसोसिशन होता है। कृष्ण इनसे जुड़े हैं तो फिर लीला.. कृष्ण लीला माखन चोरी... वह समय मक्खन चुराने का है। यहां ब्रज में इस प्रकार का लीला का स्मरण भी होता है। इस समय कृष्ण कहां होंगे? यह दोपहर का समय है। वे राधा कुंड पर होंगे। 8:00 बजे गोचारण के लिए जाते होंगे, हो सकता है आज बद्रिकाश्रम की तरफ गाय चराने जाएं । तब वहां कृष्ण ब्रज मंडल परिक्रमा पार्टी को मिलेंगे। ब्रज मंडल परिक्रमा पार्टी कृष्ण से मिलेगी। इस तरह से यह भी एक स्मरण की पद्धति है। अष्टकालिय लीला के अनुसार इस समय कृष्ण कहां होंगे? या कौन सी लीला सख्य रस भरी लीला मित्रों के साथ या वात्सल्य रस से प्रचुर भरपूर लीला यशोदा नंद बाबा के साथ कर रहे होंगे.. यह मध्यान्ह का समय है या मध्य रात्रि का समय है।
राधा माधव कुंज बिहारी, गोपियों के साथ होंगे। राधा और गोपियों की अनलिमिटेड लीलाएँ है... कि हम चिंतन नहीं कर सकते। यह अष्टसखियां हैं, यह चंद्रावली दल है। यह राधा दल है, गोपियों के भी कितने सारे प्रकार हैं, लेफ्ट विंग गोपी, राइट विंग गोपी। कुछ सखियां हैं, कुछ गोपियाँ हैं, गोपियों में कुछ मञ्जरी नाम का प्रकार है। अगर यदि हम डिटेल में जाए हर व्यक्ति का नाम ही नहीं, सुदेवी या रंगदेवी, इंदुलेखा ऐसे नाम कहते हैं, अष्टसखियों के केवल नाम ही नहीं उन सखियों का अपना व्यक्तित्व, रूप, उनके शरीर के कांति के रंग ...किस प्रकार की कौन सी सखी, किस रंग की साड़ी पहनती है? कौन सी सखी कौन सी सेवा करती है? उसका क्या विशिष्टय है? उसका चरित्र कैसा है? उनके पति कौन हैं? उनके माता पिता कौन हैं? यह सारे डिटेल्स उपलब्ध हैं? यह कोई कल्पना तो है नहीं या कोई मनोधर्म तो नहीं है। इन सारे व्यक्तित्वों का अस्तित्व शाश्वत रूप से हैं। कृष्ण के संबंध में तो उनके संबंध की जानकारी कितनी सारी है सो मच इनफॉरमेशन। ऐसी इंफॉर्मेशन( सूचना) जो हमारे जीवन में ट्रांसफॉरमेशन( परिवर्तन) लाए। ऐसी इंफॉर्मेशन उपलब्ध है। रूप गोस्वामी प्रभुपाद ने राधाकृष्ण गणोंदेश दीपिका नामक ग्रंथ लिखा है राधाकृष्ण गणोंदेश दीपिका। वे दीपक लेकर दिखा रहे हैं जैसे हम कहते हैं कुछ थोड़ा सा इस पर प्रकाश डालें । रूप गोस्वामी राधा कृष्ण के परिकरों का परिचय देते हैं। जैसे कि राधाकृष्ण गणोंपदेश दीपिका कवि कर्णपुर की रचना है। वे गौरांग महाप्रभु के जो परिकर रहे, उनका परिचय देते हैं। यहां वृंदावन में राधाकृष्ण गणोंपदेश दीपिका और वहां गौरगण। आप आराम से जप के समय इसका स्मरण कर सकते हो। अपने माइंड को व्यस्त रख सकते हैं।
क्योंकि
*श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्।। इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्रे्चवलक्षणा। क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मयेअ्धीतमुत्तमम्।।*
( श्रीमद भागवतम ७.५.२३-२४)
अनुवाद:- प्रह्लाद महाराज ने कहा: भगवान विष्णु के दिव्य पवित्र नाम, रूप,साज-सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना, उनका स्मरण करना, भगवान के चरण कमलों की सेवा करना, षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान की सादर पूजा करना, भगवान को प्रार्थना अर्पण करना, उनका दास बनना, भगवान को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रुप में मानना और उन्हें अपना सर्वस्व न्यौछावर करना (अर्थात मनसा, वाचा, कर्मणा उनकी सेवा करना) शुद्ध भक्ति के ये 9 विधियां स्वीकार की गई हैं जिस किसी ने इन 9 विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए, क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है।
श्रवण कीर्तन का फल स्मरण है। कई सारे विषय या व्यक्तित्व या पर्सनालिटी नाम, रूप, गुण, लीला यह सब स्मरणीय है। स्मरण करने योग्य हैं। प्रातः स्मरणीय, मध्यान्ह स्मरणीय, साय:काल स्मरणीय, अष्ट काल स्मरणीय जितना हम अधिक अधिक सुनते, पढ़ते भी हैं, सत्संगों में नित्यम भागवत सेवया करते हैं।
*नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया।भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी।।*
( श्रीमद भागवतम 1.2.18)
अर्थ:- भागवत की कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा शुद्ध भक्त की सेवा करने से ह्रदय के सारे दुख लगभग पूर्णतः विनष्ट हो जाते हैं और उन पुण्यश्लोक भगवान में अटल प्रेमाभक्ति स्थापित हो जाती है, जिनकी प्रंशसा दिव्य गीतों से की जाती है।
गीता पढ़ते हैं, भागवत पढ़ते हैं,
गीता भागवत करति श्रवण अखंड चिंतन विठु... तुकाराम महाराज ने कहा आप गीता भागवत का पाठ करो । इससे अखंड चिंतन विठु बाचे.. कृष्ण का चिंतन होगा, स्मरण होगा, गीता भागवत करति श्रवण.. जो भी गीता भागवत को पढ़ेंगे, श्रवण करेंगे , भगवत गीता यथारूप पढ़ेंगे, उनको स्मरण होगा।
इसलिए परंपरा में पढ़ना चाहिए।
*एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु: |स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ||*
(श्रीमद भगवतगीता ४.२)
अर्थ:- इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा | किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है।
यदि आपने मायावाद भाष्य सुना तो सर्वनाश हो गया। इसलिए सावधान।
*जीवेर निस्तार लागि' सूत्र कैल व्यास।मायावादि भाष्य शुनिले हय सर्वनाश।।*( श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला 6.169)
अर्थ:- श्रील व्यासदेव ने बद्धजीवों के उद्धार हेतु वेदांत दर्शन प्रस्तुत किया, किन्तु यदि कोई व्यक्ति शंकराचार्य का भाष्य सुनता है, तो उसका सर्वनाश हो जाता है।
श्रील कर्मकांड, ज्ञानकाण्ड, केवल विषेर
भांड भी है। गौड़ीय आचार्यों की जो शिष्य परंपरा है, उन्होंने शास्त्र और सिद्धान्तों को संभाल कर रखा है उसकी रक्षा की है। उसकी यथावत प्रस्तुति करते आए हैं। श्रील प्रभुपाद ने वही किया। वे ग्रंथ कुछ संस्कृत भाषा में थे, बंगला भाषा में थे इसीलिए श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने कहा था- 'इन इंग्लिश लैंग्वेज', एक बार इंग्लिश लैंग्वेज में कुछ लिखा जाता है फिर उसका अनुवाद अन्य भाषाओं में भी होता है नहीं तो कैसे संसार भर में पता चलता और चैतन्य महाप्रभु का भी कैसे पता चलता? गीता भागवत का कैसे पता चलता ? कुछ पता तो चल रहा था लेकिन गीता के ४०० से अधिक संस्करण उपलब्ध हैं लेकिन उनमें से किसी एक ने किसी एक को भक्त नहीं बनाया। उनमें कुछ धार्मिकता आ गई। कुछ कुछ हुआ लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि
अर्जुन उवाच |
*नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत | स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव ||* (श्रीमद भगवतगीता १८. ७३)
अर्थ:- अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण, हे अच्युत! अब मेरा मोह दूर हो गया | आपके अनुग्रह से मुझे मेरी स्मरण शक्ति वापस मिल गई | अब मैं संशयरहित तथा दृढ़ हूँ और आपके आदेशानुसार कर्म करने के लिए उद्यत हूँ |
जैसे अर्जुन ने भगवत गीता सुनने के उपरांत कहा 'करिष्ये वचनं तव' मैं तैयार हूं मैं आपके आदेश का पालन करने के लिए तैयार हूं। योर विश इज माय कमांड। ये जैसे परिवर्तन, क्रांति हुई अर्थात जैसी अर्जुन में क्रांति हुई । 45 मिनट पहले अर्जुन डांवाडोल चल रहे थे, संभ्रमित थे किंतु जब भगवत गीता सुनी तो यह न्यू ओरिजिनल... उनकी कृष्ण भावना पुन: स्थापित हुई।
ऐसा नहीं हो रहा था, कई सारे संस्करण पढ़े तो जा रहे थे अंग्रेजी भाषा में और संसार की कई सारी भाषाओं में लेकिन जब भगवत गीता यथारूप परंपरा में भागवतम, चैतन्य चरितामृत प्रस्तुत हुई तब से यह दुनिया सत्य को जान रही है। नहीं तो सत्य को आच्छादित किया जा रहा था। हरि! हरि ।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप काल के प्रभाव से कुछ बदलाव, कुछ बिगाड़ आ जाता है। उससे बचने के लिए श्रील प्रभुपाद ने ग्रंथ भी प्रस्तुत किए हैं। उसको पढ़कर हमें जप के समय स्मरण कर सकते हैं । पढ़ने के पश्चात हमें स्मरण करने के लिए कई विषय मिलेंगे। पढ़े हुए, सुने हुए विषय का हम स्मरण चिंतन कर सकते हैं। ध्यान कर सकते हैं, यह भी मंत्र मेडिटेशन है। ठीक है।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
आप यह संदेश परंपरा में सुन रहे हो। आप परंपरा के साथ जुड़े हो, आप परंपरा के हिस्सा हो। आप का उत्तरदायित्व है- इसको खिचड़ी नहीं बनाना। शुद्धता को मेंटेन करना है। 'प्यूरिटी इज द फोर्स'
*कलि कालेर धर्म कृष्ण नाम संकीर्तन।कृष्ण शक्ति बिना नहे तार प्रवर्तन।।*
( श्रीचैतन्य चरितामृत ७.११)
अनुवाद:- कलियुग में मूलभूत धार्मिक प्रणाली कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन करने की है। कृष्ण द्वारा शक्ति प्राप्त किये बिना संकीर्तन आंदोलन का प्रसार कोई नहीं कर सकता।
आपकी भक्ति की शक्ति से फिर आपको सुनने वाले प्रभावित होंगे। फिर उनमें परिवर्तन होगा। फिर वह सही पटरी पर बैक ऑन द ट्रैक थें प्रोसीड। इस परंपरा के साथ जुड़ने से कुछ उत्तरदायित्व आपके भी बन जाते हैं। इस कृष्ण भावना को आप समझ रहे हो, इसको दूसरों को समझाना भी है व मूलरूप से कृष्ण को औरों के साथ शेयर करना है। यह करने का समय है। सब समय होता ही है लेकिन यह दामोदर मास में यह सीजन है। स्पेशल टाइम कहो। फेवरेबल टाइम। अनुकूल समय है।
इसका फायदा उठाइए। आप कृष्ण भावनामृत का अभ्यास करते हो तब भगवान प्रसन्न होते हैं। किंतु जब आप अभ्यास के साथ उसका प्रचार करते हो ( वैसे आप स्वयं भी साधक बने हो, साधना कर रहे हो) तब आप औरों से साधना करवाते हो अथवा औरों को प्रेरित करते हो और वे भक्ति करने लगते हैं। यह जब भगवान देखते हैं कि आप भी भक्ति कर रहे हो और आप औरों से करवा रहे हो। कृष्ण इज मोर पलिजड (कृष्ण आप से अधिक प्रसन्न होंगे) आप को बोनस मिलेगा। ऐसा सेल चल रहा है, दामोदर मास में महासेल चल रहा है।
शेयर कृष्ण कृष्ण कॉन्शसनेस विद अदर एंड मेक कृष्ण हैप्पी। मे कृष्ण शावर अनलिमिटेड ब्लेसिंग ऑन यू (कृष्ण भावनामृत को दूसरों के साथ बांटो इससे कृष्ण तुमसे और अधिक प्रसन्न होंगे। भगवान तुम पर अपनी असीमित कृपा बनाए रखे)।
ओके हरि बोल!