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जप चर्चा, 29 अक्टूबर 2021, वृंदावन धाम. श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद। श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गौर भक्तवृंद।। 925 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। बहुलाष्टमी महोत्सव की जय! वैसे गौडिया वैष्णव यह महोत्सव आज का जो महोत्सव है, उसका नाम राधाकुंड आविर्भाव महोत्सव। गौडिया वैष्णव वह महोत्सव आज मना रहे हैं, हमारे वैष्णव कैलेंडर अनुसार। किंतु राधाकुंड के निवासी ब्रजवासी तो कल ही मनाएं। मैं गया था ब्रजमंडल परिक्रमा में। गुरुमहाराज कांफ्रेंस में एक भक्त को संबोधित करते हुए, आप तो नहीं गए, अमेरिका में जा कर बैठे हो। हरि हरि, यथा राधाप्रिया विष्णुः तस्य कुंडम प्रियं ततः चैतन्य चरितामृत में उल्लेख आता है विष्णु को, कृष्ण को, यथा राधा प्रिया जितनी राधा प्रिया है, कृष्ण को उतना ही प्रिय है तस्य कुंडम। तथा वैसा ही उतना ही प्रिय है कृष्ण को राधाकुंड। राधा भी प्रिय है और राधा का कुंडा भी प्रिय है। राधाकुंड कितना प्रिय है, कृष्ण को जितनी राधा प्रिय है, यथा राधा प्रियः विष्णु ततः कुंडम प्रियम। राधाकुंड के तट पर ब्रज मंडल परिक्रमा के भक्तों का पड़ाव पिछले 3 दिनों से वह भाग्यवान जीव वहां बड़े आनंद के साथ परिक्रमा कर रहे हैं। वह आनंद ले रहे हैं। हरि हरि, उनसे जब मिल रहा था तो तब या वह मुझसे मिल रहे थे या परिक्रमा के व्यवस्थापक कुछ परिक्रमा के भक्तों का परिचय भी दे रहे थे। तो हमने उस बात का स्मरण किया। कैसे 500 वर्ष पूर्व वह परिक्रमा हुई थी या अनेक हुई थी। उसमें से एक परिक्रमा का मैं स्मरण कर रहा था। जिसका उल्लेख भक्तिरत्नाकर में हुआ है। जिस के संबंध में कुछ दिन पहले हमने बताया भी था। राघव गोस्वामी परिक्रमा में ले गए श्रीनिवासाचार्य और नरोत्तम दास ठाकुर को। तो वह वह राघव गोस्वामी परिक्रमा करते करते मधुबनसे, तालवनसे, बहुला वन से, कुमोद वनसे, वृंदावन में प्रवेश किए और राधाकुंड के तट पर आए। राघव गोस्वामी ने उनके पदयात्रियों का, उनके परिक्रमा में जो जुड़े थे उनका परिचय रघुनाथ दास गोस्वामी जी से कराया। हरि हरि, कल तो कुछ परिक्रमा के भक्तों का मेरे साथ मुझे परिचय करा रहे थे इष्टदेव प्रभु ब्रजभूमि प्रभु। और मुझे स्मरण आया कि कैसे हैं 500 वर्ष पूर्व ऐसा ही प्रसंग थोड़ा भिन्न होगा वैसा ही नहीं कह सकते, लेकिन कुछ तो साम्य है। रघुनाथ दास गोस्वामी उस समय विद्यमान थे राधाकुंड के तट पर ही रहते थे। रघुनाथ दास गोस्वामी की जय! इन सभी ने वैसे रघुनाथ दास गोस्वामी को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया। रघुनाथ दास गोस्वामी वृद्ध थे। तो भी वहां उठकर खड़े हुए और इन परिक्रमा के भक्तों को आलिंगन दिए। उनका स्वागत किया और आलिंगन दिया। इतने में कृष्णदास कविराज गोस्वामी वहां पहुंच गए। उन दिनों में हमारे कई सारे गौड़िय वैष्णव आचार्य षड गोस्वामी वृंद राधाकुंड के तट पर निवास, अपनी साधना अपनी भक्तिभजन राधाकृष्ण पदारविंदा भजनेन मत्तालिको आनंद मस्त थे राधाकृष्ण के भजन में। हरि हरि, संख्यापूर्वक नाम गान नतीहीइ और संख्या पूर्वक हम सभी के समक्ष आदर्श रखने हेतु संख्यापूर्वक नाम गान, नाम गान जप तप परिक्रमा, गोवर्धन की परिक्रमा में प्रतिदिन करते। और ग्रंथों की रचना हो रही थी, कृष्णदास कविराज गोस्वामी चैतन्य चरितामृत लिख रहे थे। राधाकुंड के तट पर वैसे हमारे इस्कॉन ब्रजमंडल परिक्रमा के भक्त सारे स्थान देख कर आए ही थे। रघुनाथ दास गोस्वामी के समाधि पर पहुंचे थे। और कृष्ण दास कविराज गोस्वामी जी कुटिया में चैतन्य चरितामृत लिखे उसको भी देखे देखे थे। हरि हरि, और जहां पर राधाकुंड के तट पर श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर और भक्तिविनोद ठाकुर की भी पुष्प समाधिया है। और वह दोनों रहे हैं जब वे आए थे राधा कुंड राधाकुंड आए थे, श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर में उनके 64 मठों में से 1 मठ की स्थापना राधाकुंड में किए थे। और राधा कुंड के तट पर ही श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर अभय बाबू को भविष्य में होने वाले, अभयचरणरविंद भक्तिवेदांत श्रील प्रभुपाद को आदेश दिए थे, "अगर आपको कभी धनराशि प्राप्त होती है उस धन का उपयोग करो ग्रंथ को छापने में ग्रंथ छपने के लिए धनराशि का उपयोग करो" यह महत्वपूर्ण आदेश दीया राधाकुंड के तट पर ही। हरि हरि, यह सब कई सारी बातें मैं कल भी याद कर रहा था। आज कुछ और बातें याद आ रही है। खासकर उस समय के जो पदयात्री राघव गोस्वामी के पदयात्रा के जो उस समय परिचय दिए, वह स्वयं राघव गोस्वामी परिचय दिए रघुनाथ दास गोस्वामी को। और कैसे स्वागत किया रघुनाथ दास गोस्वामी ने पदयात्रियों का। उनकी सराहना की।शाब्बास आप बहुत अच्छा कर रहे हो परिक्रमा कर रहे हो। हम भी सोच रहे थे, यह जो परिक्रमा में परिक्रमा कर रहे हैं भक्तों उनका स्वागत हमारे पूर्वआचार्य वृंदा श्रील प्रभुपाद उनके ओर से हमने भी शाबासकी दी, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा ऐसे ही करते रहो। ऐसा कुछ प्रोत्साहन हम भी देखकर आए। आने के पहले वृंदावन लौटने के पहले राधाकुंड गए। और राधाकुंड आविर्भाव का समय तो मध्यरात्रि का है। लगभग 6:00 बजे ही वहां पर इतनी भीड़ थी, पचास हजार से एक लाख लोग तो अपना अपना स्थान ग्रहण कर कर वहां पर बैठे थे, राधाकुंड के तट पर। राधाकुंड और श्यामकुंड के तट पर दीपमाला हजारों लाखों दीप जलाए थे। हरि हरि, राधे राधे राधे राधे का जयघोष हो रहा था। सर्वत्र राधे का नाम गूंज रहा था। इतने में एक महाराज राधाकुंड के आविर्भाव की कथा भी सुनाने लगे सबको। हरि हरि, अनुभव कुछ विशेष रहा। इस लोक से परे जिसको कहते है। इस जगत का अनुभव नहीं था क्योंकि, राधाकुंड इस जगत में नहीं है। हरि हरि, ऐसा ही कुछ अनुभव इस जगत का नहीं, दूसरे जगत का, वृंदावन का अनुभव। पर तस्मातू भाव अन्य, इस संसार के परे जो जगत हैं वहां की शोभा और वहां का सारा माहौल और फिर उस जल का दर्शन दर्शन ही नहीं स्पर्श भी किए। प्रणाम भी किया। कुछ संकल्प के मंत्र भी, हमारे पुरोहित है वह भी राधारानी के व्यवस्था से 100000 भक्त वहां होंगे लेकिन, हम वहां पहुंचते ही एक विशेष राधाकुंड के ही पुरोहित है। जब भी हम जाते हैं ऐसे ही कुछ अद्भुत घटना घटती आई या योजना बन जाती हैं, हमको वह मिल ही जाते हैं। तो कल भी मिले और फिर उन्होंने सरा विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ संकल्प और प्रार्थनाएं करवाई। राधाकुंड के चरणों में और फिर श्यामकुंड गए। हरि हरि, यह राधा कुंड श्यामकुंड का जल यह राधा और कृष्ण का प्रेम ही है। हरि हरि, यह साधारण जल नहीं है। कल वैसे मैं कह भी रहा थें यह साधारण h2o नहीं है। गुरु महाराज कांफ्रेंस में एक भक्त को संबोधित हुए, "आप जानते हो h2o किसको कहते हैं हाइड्रोजन के दो भाग एक भाग ऑक्सीजन का और पोटैशियम परमैंगनेट के एल एम और इनका सहयोग होता है और फिर बन जाता है जल h2o तो वह जल यह जल नहीं है।" राधाकुंड श्यामकुंड का जल संसार के जल जैसा नहीं है। राधाकुंड श्यामकुंड का जल स्वयं राधाकृष्ण ही है। राधा और कृष्ण के एक दूसरे से जो प्रेम है, प्रेम क्या हम बता रहे थे स्नेह हैं। केवल स्नेह ही नहीं है मान है। केवल मान ही नहीं है राग अनुराग है। अनुराग ही नहीं भाव महाभाव है। यह प्रेम के अलग-अलग स्तर है। उनका एक दूसरे के प्रति जो भाव है राधाभावों महाभाव राधा ठकुरानी वह भाव ही उनका प्रेमभाव ही उस राधाकुंड श्याम कुंड के रूप में विद्यमान है। प्रकट है। जो कल रात्रि को मध्य रात्रि को राधाकुंड और श्यामकुंड का प्राकट्य हुआ। और उसका दर्शन और स्पर्श और प्रणाम करने का सौभाग्य उन्हीं की कृपा से या फिर हम ऐसे वहां स्मरण कर रहे थे श्रील प्रभुपाद के कृपा से संभव हुआ। हरि हरि आज के दिन बहुलाष्टमी जो 49 वर्षों पूर्व वैसे उस समय तो यह राधाकुंड आविर्भाव का महात्म्य हम जानते भी नहीं थे। हम कुछ बच्चे ही थे कच्चे ही थे। और मुंबई से वृंदावन पहुंचे थे। प्रभुपादने उनके कुछ शिष्य को आमंत्रित किया हुआ था। इस्कॉन के पहले कार्तिक व्रत महोत्सव में सम्मिलित होने के लिए। हम भी पहुंचे थे मुंबई से कुछ 10-12 भक्त। हम रेल से मथुरा आए और मथुरा से टांगे में बैठकर, पहला मंदिर हमने जो देखा वृंदावन का पहला मंदिर और वह था राधादामोदर की जय! पहले तो हमने राधादामोदर के दर्शन किए और हमको बताया गया था श्रील प्रभुपाद वह इस क्वार्टर में रहते हैं। हम प्रभुपाद के क्वार्टर में गए वह प्रातकाल का समय था हम सभी ने प्रणाम किया। नमो विष्णु पादाय कृष्ण प्रेष्ठाय भूतले, श्रीमते भक्तिवेदांता स्वामिनीइति नामिने। नमस्ते सरस्वती देवी गौरवाणी प्रचारिणे निर्विशेष शून्यवादी पाश्चात्य देश तारिणे।। इस मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रणाम करके बैठे। हरि हरि और वैसे यह मेरी पहली मुलाकात या मिलन। इतने निकट से पहली बार प्रभुपाद को मिलने मैं जा रहा था। प्रभुपाद को मिला में हमारा मिलन भी प्रभुपाद को मिला वृंदावन में। उस समय मैं वृंदावन मेरे दीक्षा का पत्र और रिकमेंडेशन लेटर जब दीक्षा होती है तो रिकमेंडेशन लेटर चाहिए यह परंपरा उस समय से ही चल रही है। प्रभुपाद ही ऐसी व्यवस्था किए थे। हमारे मुंबई के अध्यक्ष गिरिराज दास ब्रह्मचारी ने हमको रिकमेंडेशन लेटर दिया था। हमने श्रील प्रभुपाद को लेटर भी दिया। हरि हरि, और भी बहुत कुछ रहे श्रीला प्रभुपाद के साथ। श्रील प्रभुपाद के साथ पूरे 1 महीने के लिए। शरद पूर्णिमा के दिन श्रील प्रभुपाद मॉर्निंग वॉक पर गए। राधा दामोदर मंदिर के पास ही जो सेवा कुंज है। सेवा कुंज जिस सेवा कुंज में ऐसे समझ है कि, हर रोज रात्रि को वहां रास क्रीडा होती है या राधा कृष्ण का मिलन होता है। सेवा कुंज में प्रभुपाद वहां अपने शिष्यों को लेकर गए। मॉर्निंग वॉक पर शरद पूर्णिमा के दिन की बात है। हरि हरि, ठीक है, अभी तो सब कुछ नहीं बताएंगे। हम तो प्रभुपाद के सानिध्य लाभ के लिए वृंदावन आए थे किंतु, श्रील प्रभुपाद ने मुझे और एक द्रविड़दास ब्रह्मचारी अमेरिकन भक्त हम दोनों को आगरा भेजे थे, क्योंकि कार्तिक में श्रील प्रभुपाद गोवर्धन पूजा उत्सव मनाना चाहते थे। गोवर्धन पूजा मतलब अन्नकूट अन्न का पहाड़। श्रील प्रभुपाद हम दोनों का आदेश दिए जाओ आगरा के धान बाजार में और वहां से सामग्री लेकर आओ। तो ऐसा ही किया हमने और एक टेंपो भरकर हमने चावल और सूजी और चक्कर गुण गुड तेल और कुछ भी वगैरह भी हो सकता है इत्यादि इत्यादि सामग्री लेकर आए थे।श्रील प्रभुपाद ने पहला आदेश या सेवा हमको दिया। और उनके वाणी का सेवा हुई हम वपु सेवा चाहते थे। प्रभुपाद का नीजी सानिध्य चाहते थे लेकिन प्रभुपाद ने कहा आगरा जाओ तो आदेश का पालन हुआ। और फिर हम लौटे बहुलाष्टमी के पहले ही पहुंच गए। वहां कुछ ही दिन थे चार-पांच दिन। फिर आज के दिन हमारे भाग्य का उदय हुआ या प्रभुपाद कराएं। हरि हरि, प्रभुपाद हररोज प्रवचन दे रहे थे। भक्तिरसामृत सिंधु पर क्लासेस चल रही थी। कहां क्लासेस होती थी, रूपगोस्वामी प्रभुपाद के समाधि और भजन कुटीर के पास। रूपगोस्वामी जिन्होंने भक्तिरसामृत सिंधु की रचना की है वृंदावन में ही। उसी भक्तिरसामृत सिंधु पर प्रभुपाद कथा करने जा रहे थे। प्रतिदिन कर रहे थे। प्रातकाल में भागवत हम और संध्या के समय भक्तिरसामृत सिंधू भक्तिरसामृत सिंधु वर्ग हररोज। 30 क्लासेस भक्तिरसामृत सिंधुके 30 श्रीमद् भागवत इस प्रकार भी हमें अपना संग भी प्रदान किए श्रील प्रभुपाद। श्रील प्रभुपाद वही रहते थे राधा दामोदर मंदिर में। वह देखकर भी हमको बड़ा अचरज हुआ। प्रभुपाद जिस कमरे में 1965 अमेरिका जाने के पहले ही, इस्कॉन की स्थापना के पहले जिस कमरे में रहते थे। और जिस कमरे का किराया कुछ अभी मुझे ठीक से याद नहीं दो चार रूपये मुझे ठीक से याद नहीं पांच रूपये हर महीने के होते थे। फर्नीचर नहीं था। श्रील प्रभुपाद अब अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ के संस्थापक आचार्य और उनके फॉलोअर्स, जॉर्ज हैरिसन उन्होंने बहुत बड़ी संपत्ति दान में दी थी लंदन में। अंबरीश प्रभु अल्फेट फोर्ड वे शिष्य बने थे। ऐसे धनाढ्य व्यक्ति शिष्य थे। हरि हरि, और अभी इनके कई हजारों शिष्य थे संसार भर में। वह श्रील प्रभुपाद जब वृंदावन 72 में लौटे कहां रहे, उसी कमरे में रहे जिस कमरे में प्रभुपाद लगभग निर्धन जब थे। विदेश जाने के पहले कुछ ही रुपए का किराया देकर उस कमरे में रहा करते थे। उसी कमरे में श्रील प्रभुपाद फिर से वापस आए। वह देख कर भी मुझे थोड़ा अचरज हुआ लगा और साथ में प्रभावित भी हुआ। प्रभुपाद का जो मूड और मिशन कहो, त्व्यत्वा पु्र्णम अशेष मंडलपति षड गोस्वामी ऐसे थे। त्व्यत्वा पु्र्णम अशेष मंडलपति जय श्री रघुनाथ दास गोस्वामी और कितने धनाढ्य थे। रघुनाथ गोस्वामी सनातन गोस्वामी रूप गोस्वामी इनकी बड़ी बड़ी पदवीया थी वह षड गोस्वामी सब कुछ त्याग कर वृंदावन आए थे। और संसार के वैभव को तुच्छ समझते थे, तुच्छवत। कोपीनवास्थितो षड गोस्वामी वृंद गोस्वामी तो केवल कोपीन पहनते थे और कंधा पर केवल एक कंबल है। और पेड़ के नीचे ही रात्रि का उनका पड़ाव रहता। तो यह षड गोस्वामी जैसे वैराग्य की मूर्ति रहे. वैराग्यवान मैंने प्रभुपाद को देखा उस बैठक में। राधा दामोदर मंदिर में। मैं प्रभावित हुआ था प्रभुपाद के उस आवास निवास की जो इतनी कमियां लगभग सुविधा थी नहीं लेकिन, प्रभुपाद बड़े आनंद के साथ वहां अपना समय बिता रहे थे। उनका आनंद दो इस सुख सुविधा पर निर्भर नहीं रहता। राधा कृष्ण भजन आनंद, राधा कृष्ण के भजन में आनंद श्रीला प्रभुपाद की जय! और हमारे आचार्य वृंद ऐसे हैं। यह उनका वैशिष्ट्य है। ज्ञानवान, वैराग्यवान भक्तिवान पुनः अपने विषय पर आ जाते हैं। आज गोपाष्टमी है। गोपाष्टमी के दिन रूपगोस्वामी के समाधि और उनके भजन कुटीर राधा दामोदर मंदिर के प्रांगण में दीक्षा समारोह संपन्न हुआ। और श्रील प्रभुपाद संख्या तो ज्यादा नहीं थी। हम लोग कुछ 810 भक्त होंगे। कोई मुंबई से कोई कोलकाता से कोई विदेश के। द्रविड़ दास ब्रह्मचारी मेरे गुरु भ्राता जो मुंबई से मेरे साथ गए थे। उनकी संन्यास दीक्षा भी हुई। द्रविड़ दास ब्रह्मचारी थे तो श्रील प्रभुपाद ने कहा आपका नाम है पंचद्रविड़ स्वामी। द्रविड़ के स्थान उन्हें पंचद्रविड़ और ब्रह्मचारी के स्थान पर स्वामी ऐसा उनका भी नामकरण हुआ। और फिर जिनकी दीक्षा हो रही थी। प्रभुपाद हमारे सामने ही हमारी माला पर जप किया करते थे। आज यहां पर भी दीक्षा होने वाली है कुछ शिष्यों की। तो हम भी उनके माला पर जप कर रहे हैं पहले ही कर रहे हैं 1 सप्ताह पहले या 10 दिन पहले ही, लेकिन प्रभुपाद हमारे सामने मेरी माला पर जप कर रहे थे और मैं बैठा रहा। और जब मेरी माला पर प्रभुपाद जप पूरा किए तो मुझे बुलाए आगे, भक्त रघुनाथ आगे आ जाओ तब मैं भक्त रघुनाथ था। तो साष्टांग दंडवत प्रणाम करके मैं बैठ गया। उसके बाद प्रभुपाद में मेरे हाथ में जप माला दी। उसके पहले मुझसे चार नियम बोलने के लिए कहा। 4 नियम तो हमने कह दिए। मांस भक्षण नहीं, नशा पान नहीं, अवैध स्त्री पुरुष संग नहीं और जुगार नहीं। सारे कार्यक्रम वैसे अंग्रेजी में हुआ करते थे। बहुत सारे प्रोग्राम इंटरनेशनल सोसायटी है तो अधिकतर शब्द नॉन इंडियन हुआ करते थे। 4 नियमों का उल्लेख यह संकल्प मैंने किया। तो फिर श्रील प्रभुपाद मुझे जपमाला दी और कहां 4 नियमों का पालन करना और हर रोज 16 माला का जप करें। और आपका नाम है लोकनाथ। हरि हरि धन्य हुआ में। मेरा जन्म सार्थक हुआ कि मुझे श्रील प्रभुपादने स्वीकार किया। कृष्णसे तोमार कृष्ण दिते पार, तोमार शकती आंछे। मुझे कृष्णा देने में श्रील प्रभुपाद समर्थ है। और हम चाहते थे श्रील प्रभुपाद हमें कृष्ण दे दे। आमितो कंगाल कृष्ण कृष्ण बोले धाई तब पाछे पाछे ऐसे आचार्य ने इन शब्दों में अपने भाव व्यक्त किए हैं। आपके पीछे पीछे हम दौड़ रहे हैं। हम हैं तो कंगाल। हम तो गरीब हैं। प्रेमधन बिना दरिद्र जीवन चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा। प्रेम धन के बिना जीवन वह दरिद्र जीवन है। हम गरीब बेचारे थे। कंगाल थे। प्रभुपाद दिए यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इसी के साथ हो गए धन्य धन्य हो गए। गोलोकेर प्रेमधन हरिनाम संकीर्तन प्राप्त किए। हरि हरि श्रील प्रभुपाद की जय! बहुलाष्टमी महोत्सव की जय! राधा दामोदर की जय! रूप गोस्वामी प्रभुपाद की जय! कार्तिक महोत्सव की जय! तो इस प्रकार हमारा वृंदावन के साथ हमारा परिचय हुआ 1972 में। और फिर आज के दिन जैसे मैंने पहले भी कहा हमेशा कहते भी रहता हूं। हमारा जन्म हुआ वृंदावन में। या कल ही कह रहे थे इसका संस्मरण हो रहा था। तो आरवडे में तो जन्म कुछ 1949 में हुआ। सांगली जिला महाराष्ट्र इंडिया लेकिन, आज के दिन वह आरवडे का जन्म स्थान था 5 जुलाई 1949। संस्कारात भवेत् द्विज द्विज मतलब दूसरा जन्म। संस्कारों से दूसरा जन्म। वह मेरे लिए आज। यह दीक्षा संस्कार आज संपन्न हुआ और प्रभुपाद ने मुझे आज के दिन वृंदावन में जन्म दीया। तो 49 वर्षों पहले मेरा जन्म हुआ वृंदावन में। मैं उन 49 वर्षों का हूं। 49 वर्षों का हुआ। ओल्ड होना अच्छा है। पता नहीं ओल्ड हुआ कि नहीं एक तो आयु की दृष्टि से ओल्ड होना अच्छा है। लेकिन ज्ञान और भक्ति की प्राप्ति से वैसे ज्ञानवृद्धि वयोवृद्ध ऐसे दो प्रकार से हमारे आयु की गणना होती हैं। साधारणतः हमें जब पूछा जाता है तुम्हारी आयु क्या है, हम लोग अपनी आयु की गणना के हिसाब से कहते हैं मैं 72 वर्षों का हूं मैं 15 वर्षों का हूं 58 वर्षों का हूं तो यह आयु की दृष्टि से वयोवृद्ध कहते हैं वह मतलब आयु। ज्ञानवृद्ध होना चाहिए। ज्ञानवृध्द श्री शकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को जाने दो बताऊंगा नहीं हमारे पास समय कम है। हर रोज कुछ प्रयास तो चल रहे हैं ज्ञानार्जन भक्तिआर्जन ज्ञानार्जन धनार्जन हरे कृष्ण हरे कृष्ण के का जो धन है उसका अर्जन कर रहे हैं। कितने बुढे हैं या अभी भी कच्चे है या बच्चे हैं। यह आप ही जाने। हमारा प्रयास तो चल रहा है कि हम वृद्ध हो ज्ञानवृद्ध भक्ति वृद्ध या धनवान भी हो। हरिनाम का धन कमाने का प्रयास हम कह सकते हैं कि प्रभुपाद को जो वचन दिया। यह संकल्प किया हम हर रोज 16 माला का जाप करेंगे। इस आदेश का पालन हमने प्रतिदिन हर वर्ष के 365 दिन और पिछले 49 वर्षों से प्रतिदिन हमने यहां धनार्जन यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।ऋ इस संकल्प को पूरा किए हैं। हम प्रभुपाद को अर्पित कर रहे हैं। उनके प्रसन्नता के लिए। और फिर यस्य प्रसादात भगवत प्रसादो हरि हरि तो हम आज के दिन अपनी कृतज्ञता को व्यक्त करते हैं। प्रभुपाद ने जो उपकार किए हैं मैं ऋणी हूं और रहूंगा। और उनसे इस ऋण से मुक्त होने के लिए क्या किया जाए तो कुछ नहीं किया जा सकता। ऋन से मुक्त होना संभव नहीं है। ऐसे ही श्रील प्रभुपाद कहे एक समय किंतु थोड़ा रुक कर कहे। हां एक बात आप कर सकते हैं। इस ऋण से मुक्त होने के लिए आप एक बात कर सकते हैं। सब ने कहा वह क्या है तो प्रभुपाद ने कहा आप वही करो जैसे मैंने किया है यह बात प्रसिद्ध है श्रील प्रभुपाद कि तुम वैसे ही करो जैसे मैंने किया। इस अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ का जो कार्य है। प्रचार प्रसार का जो कार्य है। श्रीला प्रभुपादने शुरू किया। उसको आगे बढ़ाया। ऐसे करो जैसे मैंने किया। फिर हमारा फर्ज बनता है कि उस कार्य को हम और आगे बढ़ाएं। उसको फैलाए हम कृष्णभावना की स्थापना करें। और यह प्रयास करने से कुछ राहत मिलेगी। कुछ ऋण से मुक्त होंगे तो यह प्रयास हमारी ओर से जारी है। और जारी रहे ऐसे प्रार्थना श्रील प्रभुपाद के चरणों में। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! श्रील प्रभुपाद की जय! बहुलाष्टमी महोत्सव की जय!

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