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जप चर्चा वृंदावन धाम से 28 अक्टूबर 2021 940 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । हरि ! जय राधे , जय कृष्ण , जय वृन्दावन श्रीगोविन्द , गोपीनाथ , मदन मोहन ॥ 1 ॥ श्यामकुण्ड , राधाकुण्ड , गिरि - गोवर्धन कालिन्दी यमुना जय , जय महावन ॥ 2 ॥ केशी घाट , वंशीवट , द्वादश कानन याहा सब लीला कोइलो श्रीनन्दनन्दन ॥ 3 ॥ जय राधे ! जय कृष्ण ! जय पदरेणु ! हरि हरि !! जय राधे, जय कृष्ण, जय वृंदावन । यह गीत है जिसके रचना भी, इसके रचयिता है कृष्ण दास कविराज गोस्वामी । कविराज कवियों में श्रेष्ठ । कृष्ण दास कविराज गोस्वामी । गीत लिखे हैं प्रसिद्ध है । मैं भी गाते रहता हूं । पूरा तो नहीं गाता । आप भी गाया करो । यह राधा कुंड के तट पर यह लिखें यह गीत कृष्ण दास कविराज गोस्वामी । वैसे राधा कुंड के तट पर ही इन्होंने चैतन्य चरितामृत की रचना की । हरि हरि !! "श्याम कुंड राधा कुंड गिरी गोवर्धन", "कालिन्दी यमुना जय , जय महावन" । इस गीत में श्याम कुंड राधा कुंड, जय गोवर्धन ! तीनों का उल्लेख कर रहे हैं । श्याम कुंड, राधा कुंड, गिरी गोवर्धन । हरि हरि !! जब ये निवास करते थे, तो उस निवास स्थान का भी गुणगान गा रहे हैं । श्याम कुंड की जय ! राधा कुंड की जय ! गिरिराज गोवर्धन की जय ! और फिर उस गीत में, हरि हरि !! केशी घाट , वंशीवट , द्वादश कानन । द्वादश कानोंनो की जय । 12 वनों की जय । जिस 12 वनों , इस कार्तिक मास में इस्कॉन के कुछ भाग्यवंत भक्त परिक्रमा कर रहे हैं उस द्वादश कानन की जहां जय राधे जय कृष्ण जय वृंदावन, तो जय-जय तो कहा जा रहा है । यह जय-जय जोड़ना होगा सभी के साथ । क्योंकि इसमें अलग-अलग स्थानों का या लीलाओं का उल्लेख करते हैं, तो हर एक के साथ फिर जय जोड़ना होगा । द्वादश कानन की जय ! या फिर जय राधे जय कृष्ण जय वृंदावन या कम से कम जय तो कह ही सकते हैं । जब हम सुनेंगे कि किसी धाम का या लीला का तो या कम से कम जय हो, अति प्रशंसनीय । सभी गौरवशाली ऐसे भाव तो उठने चाहिए ही । जय राधे, जय कृष्ण, जय वृंदावन । श्री गोविंद गोपीनाथ मदन मोहन तो राधा कुंड में कृष्ण दास कविराज गोस्वामी रहते थे तो वहां यह गुड़ियों के विग्रह वहां है राधा कुंड में राधा गोविंद देव मंदिर है, राधा मदन मोहन है, राधा गोपीनाथ है । हरि हरि !! हमारे परिक्रमा के भक्त इस समय राधा कुंड में है । ब्रह्मा को भी यह दुर्लभ स्थान या जहां ब्रह्मा भी नहीं पहुंच पाते उनके लिए दुर्लभ है । उसी स्थान पर कुछ भक्त पहुंचे हैं शारीरिक रूप से । हम वहां कुछ मानसिक रूप से पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं उस स्थान का नाम लेके या स्मरण करके मानसिक रूप से । मानसिक रूप से हम अपने आप को पहुंचा सकते हैं अगर हम सुन ही रहे हैं इसी स्थान के संबंध में तो भगवान क लीला या श्रवण कर रहे हैं । हमारे आत्मा भी वहां पहुंच ही जाती है तो हम कहते तो हैं मानसिक परिक्रमा या मानसिक सेवा लेकिन इस आत्मा से ही सेवा होती है । हम तल्लीन होके, उसने लीन होके राधा कुंड में लीन, राधा कुंड के लीला या धाम के संबंध में जब या सुनने में हम लीन हैं तो फिर हमारी आत्मा और कहीं नहीं होती । आपकी आत्मा अगर सुन रही है राधा कुंड के संबंध में, जय राधे ! तो आपकी आत्मा कहीं नहीं होती फिर और किसी देश में और किसी नगर में ग्राम में । नहीं रहती हमारी आत्मा । योग होता है भक्ति योग संबंध स्थापित होता है । उस स्थान के साथ, उस लीला के साथ, उस व्यक्तित्व के साथ जिनके बारे में हम सुन रहे हैं, श्रवणं, कीर्तनं हो रहा है तो फिर स्मरण होता है श्रवण कीर्तन से और फिर हमारी आत्मा, हमारे शरीर जहां भी हो उसी को यह चिंता नहीं है शरीर तो मृत है ही कुछ दिन पहले ही हम कह रहे थे । शरीर हमेशा मृत रहता है या जब आत्मा छोड़ता है शरीर को तब हम कहते हैं यह मृत शरीर है । लेकिन शरीर हमेशा मृत रहता है । शरीर कभी जीवंत नहीं होता है । जीवित आत्मा होता है । हरे कृष्ण ! यह दुर्लभ स्थान, वैसे वृंदावन ही दुर्लभ है । उसमें राधा कुंड प्राप्ति और भी दुर्लभ है । फिर से रूप गोस्वामी उपदेशामृत में यह 90 उपदेश में या श्लोक में कहे हैं कौन सा स्थान कौन से अधिक बेहतर है श्रेष्ठ है तो वे कहते हैं ... वैकुण्ठाज्जनितो वरा मधुपुरी तत्रापि रासोत्सवाद् वृन्दारण्यमुदारपाणिरमणात्तत्रापि गोवर्धनः । राधाकुण्डमिहापि गोकुलपतेः प्रेमामृताप्लावनात् कुर्यादस्य विराजतो गिरितटे सेवां विवेकी न कः ॥ ( उपदेशामृत श्लोक 9 ) अनुवाद:- मथुरा नामक पवित्र स्थान आध्यात्मिक दृष्टि से वैकुण्ठ से श्रेष्ठ है , क्योंकि भगवान वहाँ प्रकट हुए थे । मथुरा पुरी से श्रेष्ठ वृन्दावन का दिव्य वन है , क्योंकि वहाँ कृष्ण ने रासलीला रचाई थी । वृन्दावन के वन से भी श्रेष्ठ गोवर्धन पर्वत है , क्योंकि इसे श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य हाथ से उठाया था और यह उनकी विविध प्रेममयी लीलाओं का स्थल रहा और इन सबों में परम श्रेष्ठ श्री राधाकुण्ड है , क्योंकि यह गोकुल के स्वामी श्री कृष्ण के अमृतमय प्रेम से आप्लावित रहता है । तब भला ऐसा कौन बुद्धिमान व्यक्ति होगा , जो गोवर्धन पर्वत की तलहटी पर स्थित इस दिव्य राधाकुण्ड की सेवा करना नहीं चाहेगा ? वैकुंठ से श्रेष्ठ है मधुपुरी । मथुरा को मधुपुरी भी कहते हैं । मधुपुरि या मथुरा वैकुंठ से क्यों श्रेष्ठ है ? "जनितो" वहां जन्म लिए । मथुरा श्री कृष्ण का जन्म स्थान है । यह बैकुंठ से भी श्रेष्ठ है जहां जन्म लिए । "वैकुण्ठाज्जनितो वरा मधुपुरी" "रासोत्सवाद् वृन्दारण्य" "वृन्दारण्य" मतलब वृंदावन । अरण्य कहो या वन कहो एक ही बात है । "वृन्दारण्य" मतलब वृंदावन । वृंदावन मथुरा से श्रेष्ठ है । क्यों ? "रासोत्सवाद्" वहां रासक्रीडाएं और अन्य क्रीडाएं लीलाएं पूरे द्वादश कानोनो में संपन्न हुई है । इसीलिए मथुरा से श्रेष्ठ है वृंदावन धाम, की जय ! तो यह द्वादश कानन 12 वन मथुरा से श्रेष्ठ है । हरि हरि !! आगे रूप गोस्वामी प्रभुपाद लिखते हैं "मुदारपाणिरमणात्तत्रापि गोवर्धनः" और इन द्वादश कानोनों से 12 वनों में से श्रेष्ठ है, गिरिराज गोवर्धन की जय ! क्यों ? "मुदारपाणिरमणात्त" अपने हाथों से अपने स्वयं के हाथों से इस गोवर्धन को उठाए हैं । इसी के साथ गोवर्धन का सत्कार सम्मान किए हैं और सारे व्रज वासियों को आश्रय दिए हैं । अपना संग दिए हैं एक ही साथ सारे व्रजवासी किसी समय या किसी लीला में सम्मिलित हुए थे तो यह गोवर्धन लीला है, तो 12 वनों में से श्रेष्ठ हुआ है ये गोवर्धन । "राधाकुण्डमिहापि गोकुलपतेः प्रेमामृताप्लावनात्" और गोवर्धन से भी श्रेष्ठ है, राधा कुंड की जय ! जय श्री राधे ...श्याम ! उर्वशी राधा का राधा कुंड गोवर्धन से भी श्रेष्ठ है "गोकुलपतेः प्रेमामृताप्लावनात्" वहां यह माधुर्यलीला "परकीया भावे याहा, व्रजेते प्रचार" तो व्रज का क्या वैशिष्ट्य है ? यहां प्रचार है प्राधन्य है "परकीया भाव" । द्वारिका में कृष्ण के विवाह हुए हैं 16,108 और उनके अपनी धर्मपत्नी या है उतनी सारी । लेकिन यहां जो गोपियां हैं राधा रानी के सहित इनके साथ जो भाव है संबंध है वो "परकीया भाव" । उपपति है, तो परकीया भाव का श्रेष्ठत्व है । ऐसे लीला खेले हैं भगवान । हरि हरि !! ऐसे हैं कृष्ण राधा पति हैं, गोपी पति हैं', राधा वल्लभ । राधा के वल्लभ तो कृष्ण ही हो सकते हैं । गोपियों के वल्लभ कृष्ण ही और अन्य कोई हो ही नहीं सकता । किंतु भगवान यहां ये परकिया भाव का संबंध स्थापित किए हैं । राधा रानी का विवाह और किसी से हुआ है । हरि हरि !! अभिमन्यु के साथ । फिर जावट राधा रानी का ससुराल है और बर्षाणा माईके है और रावल गांव जन्मभूमि है । सूर्योपासना के लिए सूर्य कुंड पहुंच जाती है, तो राधा कुंड पहुंच जाती है मध्यान्ह के समय । यह परकीया भाव लीला खेलने के लिए । "प्रेमामृताप्लावनात्" राधा कुंड प्रेम से भरपूर है यह । वहां प्रेम की बाढ़ आती है और उसी में राधा कृष्ण गोते लगाते हैं या उस राधा कुंड में जल क्रीड़ा भी होती है सचमुच में । अक्सर वहां स्नान करते हैं । राधा कुंड का जो जल है वह प्रेम ही है तो प्रेम के लीला में नहाते हैं राधा कृष्ण और अन्य सारी लीलाएं राधा कुंड के तट पर प्रतिदिन मध्यान्ह के समय आप कृष्ण से मिलना चाहते हो तो मधुवन नहीं जा सकते आप कृष्ण को मिलने के लिए । मधुवन में नहीं मिलेंगे और कहीं नहीं मिलेंगे । कामवन में नहीं मिलेंगे वहां बद्रिकाश्रम है । वृंदावन में वहां नहीं मिलेंगे । केवल राधाकुंड में कृष्ण मिलते हैं मध्यान्ह के समय । अभी-अभी गोचरण लीला खेल रहे थे अपने मित्रों के साथ जैसे ही कुछ ठीक सुबह 10:30 बजे कृष्ण कुछ बहाने बनाते हैं ए! ये गाय कहां है ? दिख नहीं रही है । मैं ढूंढ कर लाता हूं । मित्रों तुम खेलते रहो और कृष्ण, गाय को थोड़े ढूंढना है उनको तो राधा रानी को ढूंढना है, राधा रानी को मिलना है । मित्र जहां भी है गुरचरण लीला वो खेलते हैं, खेलेंगे । वहां कृष्ण पहुंच जाते हैं राधाकुंड के तट पर । 10:30 से लेकर 3:30 बजे तक इसको मध्यान्ह लीला कहते हैं । अष्ट कालीय लीला में से यह जो लीला है मध्यान्ह लीला उसके पहले अपरान्ह । पूर्वरान्ह और अपरान्ह लीला । 10:30 बजे से पहले पूर्वरान्ह और 3:30 बजे के बाद अपरान्ह दो मित्रों के साथ गोचरण लीला का ही यह काल है या यह लीला है पूर्वरान्ह और अपरान्ह वाली, तो कई घंटों का अवधी है । इस समय कृष्ण प्रतिदिन राधा के साथ और फिर असंख्य गोपियों के साथ ..."राधा माधव कुंज बिहारी" कुंजू में बिहार करते हैं । राधाकुंड के तट पर और कई सारे कुंज हैं वहां । कुंज है और कुंड है एक तो राधा कुंड है तो अष्ट सखियों के अपने-अपने कुंड है । सुदेवी, रंग देवी, चंपक लता, ललिता, विशाखा, टुंग विद्या इस तरह से । उनके कुंड भी है उनके नाम से कुंज भी है । इन कुंडों में जल क्रीड़ाएं, नौका विहार कुंडों में और कुंजो में कई सारे झूलन यात्रा होती है या यहां तक की रासक्रीडाएं होती हैं । हरि हरि !! एक ही रात यहां सभी ऋतु रहते हैं एक साथ । यह नहीं कि एक के बाद केवल अभी वसंत ऋतु ही । वर्षा ऋतु का अनुभव करने के लिए अब कुछ महीने रुको, नहीं कुछ प्रतीक्षा नहीं । कृष्ण जिस मूड में है तो उस मूड की उस भाव के पुष्टि के लिए सारे ऋतु सब तैयार रहते हैं । कुंज में ही या कहो यह ऋतु है वह ऋतु है उसके अनुसार लीलाएं प्रतिदिन यहां संपन्न होती है । हरि हरि !! और जो माधुर्यलीला सर्वोपरि है । सभी लीलाओं में या सभी रसों में द्वादश रस 7 गोण और 5 प्रधान रसों में फिर शांत से श्रेष्ठ है दास्य, दास्य से श्रेष्ठ है सख्य, सख्य श्रेष्ठ है वात्सल्य, वात्सल्य से श्रेष्ठ है माधुर्य । माधुर्य के ऊपर और कुछ नहीं है । माधुर्य लीला, मधुर लीला, श्रृंगार लीला, रासक्रीडा इत्यादि लीला सर्वोपरि है । हरि हरि !! क्योंकि भक्तों में वैसे राधा रानी ही सर्वोपरि है और उनकी सखियां । यह लीला वैसे राधा कुंड में या राधा कुंड के तट पर कुंडों में कुंजो में प्रतिदिन संपन्न होती है । इसीलिए राधा कुंड की जय और इसीलिए यहां रूप गोस्वामीपाद कह रहे हैं यह राधा कुंड सर्वोपरि है । वैकुंठ से श्रेष्ठ है मथुरा, मथुरा से श्रेष्ठ क्या है ? अभी कागज में देख रही हो, कहां लिखा है ! भूल गई । मथुरा से श्रेष्ठ है 12 वन । 12 वनों में से क्या श्रेष्ठ है अनंग मंजरी ? हां ? मुंडी तो हिला रही हो कुछ बोलो ! ठीक है गोवर्धन, श्रेष्ठ है और गोवर्धन से श्रेष्ठ है कौन सा स्थान ? मनुप्रिया बता सकती है ? गोवर्धन से श्रेष्ठ है, गायत्री कौन ? राधाकुंड की जय ! और फिर राधाकुंड से कोई श्रेष्ठ है तो बोलो । मुंह खोलो । मुंह खोल ही नहीं सकते क्योंकि राधा खून से कोई श्रेष्ठ है नहीं । क्योंकि राधा से कोई श्रेष्ठ नहीं है । मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय । मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥ ( भगवद् गीता 7.7 ) अनुवाद:- हे धनञ्जय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है । जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है । ये कृष्ण कहे हैं । मुझसे श्रेष्ठ या मेरे बराबर का या मुझसे श्रेष्ठ और है नहीं इसी प्रकार जब भक्तों की बात आती है या फिर शक्ति की बात आती है ठीक है भगवान शक्तिमान है या भगवान पुरुष है, तो पुरुष की होती है प्रकृति या पुरुष की होती है शक्ति हम भी शक्ति है । कई प्रकार के शक्तियां हैं और राधा रानी भी शक्ति है । आह्लादिनी, आह्लाद देने वाली शक्ति तो राधा रानी पुरुषोत्तम श्री कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति है । प्रकृति है, तो जैसे कृष्ण के साथ ! कृष्ण पुरुष के साथ और किसी पुरुष की साथ तुलना संभव नहीं है । वैसे और भी पुरुष हैं । अद्वैतमच्युतमनादिमनन्तरूप माद्यं पुराणपुरुषं नवयौवनञ्च । वेदेषु दुर्लभमदुर्लभमात्मभक्ती गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥ ( ब्रह्म संहिता 5.33 ) अनुवाद:- जो अद्वैत , अच्युत , अनादि , अनन्तरूप , आद्य , पुराण - पुरुष होकर भी सदैव नवयौवन - सम्पन्न सुन्दर पुरुष हैं , जो वेदोंके भी अगम्य हैं , परन्तु शुद्धप्रेमरूप आत्म - भक्तिके द्वारा सुलभ हैं , ऐसे आदिपुरुष गोविन्दका मैं भजन करता हूँ । कृष्ण के और कई सारे स्वरूप है, रूप है या अवतार है या विस्तार है । एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥ ( श्रीमद् भगवतम् 1.3.28 ) अनुवाद:- उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं ) हैं , लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं । वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं । भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं । अंश हे भगवान के अंशाश है कृष्ण के । लेकिन "कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्" वैसे ही प्रकृति की दृष्टि से देखा जाए या भक्त की दृष्टि से देखा जाए फिर शक्ति के दृष्टि से देखा जाए तो राधा रानी सर्वोपरि है अतुलनीय तो यह जोड़ी है फिर । इसीलिए जय राधे ! जय कृष्ण ! जय वृंदावन ! कृष्ण के स्तर पर राधा रानी आ सकती है तो राधा रानी अतुलनीय है या फिर यह दोनों जब ... राधा कृष्ण प्रणय - विकृतिह्णदिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह भेदं गतौ तौ । चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं राधा भाव द्युति सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम् ॥ ( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 1.5 ) अनुवाद:- श्री राधा और कृष्ण के प्रेम - व्यापार भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अपने स्वरूपों में एक हैं , किन्तु उन्होंने अपने आपको शाश्वत रूप से पृथक् कर लिया है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में संयुक्त हुए हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , क्योंकि वे स्वयं कृष्ण होकर भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट हुए हैं । तो फिर उनके प्रणय की "प्रणय - विकृति" प्रणय मतलब प्रेम का एक प्रकार है या फिर शायद आप सुने होंगे नहीं तो प्रेम प्रेम कहते हैं "प्रेमा पुमार्थो महान" जीवन का लक्ष्य है प्रेम प्राप्त करना । पंचम पुरुषार्थ है प्रेम । लेकिन प्रेम से भी और ऊंचे प्रेम गाढतर प्रेम की अवस्थाएं है, प्रेम से भी ऊंचा होता है स्नेह । स्नेह से ऊंचा होता है मान । मान से भी ऊंचा होता है प्रणय । प्रणय से भी ऊंचा होता है भाव और महाभाव और फिर राधा रानी के संबंध में कहा है ... महाभाव-स्वरूपा श्री-राधा-ठाकुराणी । सर्व-गुण-खनि कृष्ण-कान्ता-शिरोमणि ॥ ( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 4.69 ) अनुवाद:- श्री राधा ठाकुराणी महाभाव की मूर्त रूप हैं । वे समस्त सदृणों की खान हैं और भगवान् कृष्ण की सारी प्रियतमाओं में शिरोमणि हैं । हमारे जो भाव है उसको कहते हैं भक्ति भाव । लेकिन राधारानी का भाव महाभाव । हरि हरि !! या श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर पहुंचे और वहां भावविभोर हुए और फिर सार्वभौम भट्टाचार्य उनको अपने घर ले गए और सब परीक्षा किए, उन्होंने वे समझे कि यह कोई असलि भाव, कोई नाटक या ढोंग करने वाले नहीं थे यह श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु । औरों ने तो पूछा ऐसे कईयों को हमने देखा है । लेकिन सार्वभौम भट्टाचार्य स्वयं पता लगाएं चैतन्य महाप्रभु को अपने घर में लेकर गए और यह असलि भाव उदित हुए हैं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु में और उन्होंने यह भी एक निष्कर्ष निकाला कि यह भाव वैसे जीवात्मा जब भावभक्ति को प्राप्त करता है तो वैसा वाला ही यह भाग नहीं है चैतन्य महाप्रभु में जो भाव है । यह तो महाभाव है या यह राधारानी का ही भाव है । राधारानी में ही ऐसे भाव संभव है, तो वैसे सार्वभौम भट्टाचार्य विद्वान थे यह सब भावों के लक्षण और प्रकार यह सब जानते थे तो उन्होंने मूल्यांकन किया कहो या परीक्षा की और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु उस परीक्षा में उत्तीर्ण हुए और इनके भाव ये तो जीव में जैसा भाव होता हैं, जीवात्मा इन भाव भक्ति को प्राप्त करता है और उसका दर्शन होता है । लेकिन यह भाव तो महाभाव है तो उसी के साथ उन्होंने यह भी वैसे सिद्ध करके दिखाया सुनाया की "श्रीकृष्ण चैतन्य राधा-कृष्ण नाहीं अन्य" चैतन्य महाप्रभु कृष्ण और राधा है । "राधा भाव द्युति सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम्" मैं नमस्कार करता हूं उस स्वरूप का उस रूप का "राधा भाव द्युति सुवलितं" जिस रूप में, चैतन्य महाप्रभु के रूप में उसमें राधा भी है, राधा का भाव है "राधा भाव द्युति" भाव है और द्युति है । द्युति मतलब कांति । इसीलिए श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु गौरांग है क्योंकि राधारानी का रंग को अपनाएं हैं और राधारानी के भाव भी है इनमें । राधा रानी ही है । राधा और कृष्ण, "श्रीकृष्ण चैतन्य राधा-कृष्ण नाहीं अन्य" और "राधा कृष्ण प्रणय - विकृतिह्णदिनी शक्तिरस्माद्" तो राधा और कृष्ण के बीच में मध्य में परस्पर जो भावों का मिलन और हरि हरि !! और जो प्रदर्शन होता है वे भाव उसको प्रेम कहा है ये प्रेम है । यह राधा कृष्ण प्रेम है । राधा का प्रेम कृष्ण से, कृष्ण का प्रेम राधा से है । वैसे हमारा भी है कृष्ण से प्रेम और हमारे साथ भी । हमसे भी कृष्ण प्रेम करते हैं किंतु राधा और कृष्ण के मध्य का जो प्रेम है एक ही सेट है वैसा । एक ही जोड़ी है कृष्ण और राधा और फिर गोपियां कुछ पास में आ जाती है । यह सब "राधा कृष्ण प्रणय - विकृतिह्णदिनी शक्तिरस्माद्" यह सब राधाकुंड में होता है और वनों में भी इतना संभव नहीं है तो और वनों में फिर सख्य रस है मित्रों के साथ । मैत्री और भाव और प्रेम दोस्ती है या नगरों में ग्रामों में या यशोदा और नंद बाबा या उनके वात्सल्य रस है । लेकिन "परकीया भावे याहा व्रजेते प्रचार" वृंदावन में कृष्ण का शृंगार रस, माधुर्य रस और उसमें भी परकीय रस तो परकिय रस की पराकाष्ठा इस राधाकुंड में होती है ऐसा यह स्थान है । बहुत ही अनोखी सेटिंग है और वहां के सारे व्यवस्था जो वहां है मंच ही है कहो जैसा कि कोई फॉर्म है । जैसा नट उनके लिए मंच की जरूरत होती है ताकि वो अपने कला का प्रदर्शन करें तो उसी प्रकार यह राधाकुंड एक सेट बन जाता है या जब मूवी बनती है तो कोई सेट बनाते हैं । सीन या दृश्य या स्थान तो राधा कुंड ऐसा स्थान है तो वहां ऐसी सारी व्यवस्था है । वहां सारा का वातावरण माहौल कहिए और कहीं नहीं है । मतलब गोलक में भी नहीं है । बैकुंठ में तो है ही नहीं । आपके वोंवेई, बॉलीवुड या कैलिफोर्निया के हॉलीवुड में भी उसको तो भूल ही जाओ और आध्यात्मिक जगत में भी नहीं । वृंदावन में भी स्थान नहीं है । एक ही स्थान है ऐसा और वो है, राधाकुंड की जय ! और साथ में श्यामकुंड भी है । ऐसे स्थान पहुंचना और हम वहां रह भी सकते हैं 1-2 दिन रात बिता सकते हैं तो फिर क्या कहना । हमारे भाग्य का उदय वहां के जो कंपन है वो हमको हिलाता है फिर डुलाता है फिर नचाता है कुछ जागृत करता है हमारे भाव या हमारे कृष्ण भावना । जय राधे , जय कृष्ण , जय वृन्दावन श्रीगोविन्द , गोपीनाथ , मदन मोहन ॥ 1 ॥ श्यामकुण्ड , राधाकुण्ड , गिरि - गोवर्धन कालिन्दी यमुना जय , जय महावन ॥ 2 ॥ केशी घाट , वंशीवट , द्वादश कानन याहा सब लीला कोइलो श्रीनन्दनन्दन ॥ 3 ॥ हरि ! ठीक है । तो परिक्रमा के भक्त राधा कुंड में है ही । कल उन्होंने गोवर्धन परिक्रमा की । आपने भी कि कि नहीं ? ऑनलाइन हां ! ठीक है अच्छा है और अब विषय तो नहीं खोलेंगे लेकिन वैसे राधाकुंड के पंचांग या कैलेंडर के अनुसार राधा कुंड का आविर्भाव आज रात्रि को ही है । हमारे परिक्रमा के भक्तगण वहां पहुंच जाएंगे और आप की ओर से हमारी ओर से वे स्नान करेंगे । वैसे दिन में मैं भी राधा कुंड जा रहा हूं और परिक्रमा के भक्तों को मैं भी मिलके और फिर राधाकुंड, आचमन तो जरूर होगा । दर्शन और प्रणाम करके हम भी आएंगे । वैसे आज का दिन महान है । मतलब कि आज राधाकुंड का आविर्भाव दिवस है । राधाकुंड प्रकट हुआ आज मध्य रात्रि को लेकिन उसके साथ या लीलाएं जुड़ी हुई है दिन में भी पढ़ सकते हो । अरिष्ठा सुर का वध हुआ । हरि हरि !! गौरंग ! तो आपके पास व्रजमंडल दर्शन ग्रंथ होना चाहिए । उसमें भी कुछ तो, पूरे विस्तार में नहीं तो कुछ संक्षिप्त में वर्णन वहां पढ़ ही सकते हो । ये हिंदी में अंग्रेजी में दोनों भाषाओं में । धर्मराज सुन रहे हो ! ठीक है । समय हो चुका है । गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ! राधाकुंड श्यामकुंड की जय ! श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय ! श्रील प्रभुपाद की जय ! ॥ हरे कृष्ण ॥

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