Hindi

आज की जप चचार् अत्यंत िविशष्ट थी, क्योंिक यह 'श्री गुरु करुणा िसन्धु , अधम जनार बंधू ' का अद्भुत प्रदशर्न था। गुरु महाराज इस जप कांफ्रें स को करने के िलए इतने अिधक इच्छुक थे िक कोल्हापुर से मुंबई जाते समय रेलगाड़ी में जब इंटरनेट की उपलब्धता इतनी अिधक नहीं थी िफर भी हमारे प्रित उनकी कृपा और उत्साह िकसी भी प्रकार से उन्हें हमसे दूर नहीं कर सकी। यद्यिप जब इंटरनेट उपलब्ध नहीं था तो हम में से अिधकतर भक्त कांफ्रें स को छोड़ रहे थे परन्तु िफर भी जैसे ही इंटरनेट उपलब्ध होता गुरु महाराज िफर से कांफ्रें स में सिम्मिलत होते थे , और हमें भी कांफ्रें स में बने रहने के िलए प्रेिरत कर रहे थे।

हमें अपने िप्रय गुरु महाराज से िसखने के िलए बहुत कुछ है , जैसे उनकी दृढ इच्छाशिक्त, दृढ़ता , तप , हम जैसे अधम जीवों पर अत्यंत करुणा और भी बहुत कुछ। परम आदरणीय गुरु महाराज और इस कांफ्रें स कॉल की व्यवस्था करने वाले भक्तों की जय हो , जो अनेक िवषम पिरिस्थितयों में भी इस कांफ्रें स को करने के िलए अत्यंत प्रयासरत हैं।

हम जहाँ कहीं भी भगवान के नाम का जप करते हैं , चाहे मंिदर में , घर में , या रेलगाड़ी में , जहाँ भी हम उन्हें पुकारते हैं , वे वहाँ उपिस्थत होते हैं। 'यतो यतो यािम ततो: नरिसम्ह ' (नरिसम्ह आरती )। मैं रेलगाड़ी में हूँ और यहाँ इंटरनेट बहुत अिधक अिस्थर हैं , परन्तु आप िनरन्तर जप करते रिहए , चाहे इंटरनेट उपलब्ध रहे या नहीं। मैं मुम्बई जा रहा हूँ। राधा - रासिबहारी की जय ! चौपाटी में राधा - गोपीनाथ, नवी -मुम्बई में राधा मदन मोहन , और मीरा रोड़ में राधा - िगिरधारी िवराजमान हैं। श्रील प्रभुपाद ने मुम्बई को धाम बना िदया। श्रील प्रभुपाद कहते थे , " बॉम्बे मेरा ऑिफस हैं। " यह यहीं हुआ था जहाँ मैंने प्रथम बार श्रील प्रभुपाद के दशर्न िकये थे और उनसे श्रवण िकया था। मैंने अमेिरकी साधुओं के बारे में िवज्ञापन देखा। मैंने उन्हें देखा और सुना भी। यह मेरा हरे कृष्ण आंदोलन के बारे में प्रथम और सबसे सुन्दर अनुभव था। १९७१ में जब हरे कृष्ण आंदोलन से मेरा संपकर् हुआ था तो मुझे सबसे अिधक सुन्दर उनका कीतर्न लगा था। वे पूणर् रूप से तन्मय होकर , आसपास के वातावरण से अिभन्न होकर कीतर्न और नृत्य कर रहे थे, वह मेरा उनके प्रित प्रथम और सबसे श्रेष्ठ अनुभव था। मैंने उनसे एक जप माला और कुछ पुस्तकें खरीदी और इसे जारी रखा। मैं मेरे गाँव के कुछ िवद्यािथर् यों के साथ कमरे में साझा रह रहा था। मैं उनके बाहर जाने का इंतज़ार करता , और जब अकेला होता तो कमरे के परदे ढँककर , कमरे की िचटकनी लगाकर , कीतर्न और नृत्य करता।इस प्रकार मैं उस शहर में प्रवेश करने जा रहा हूँ , जहाँ से मैंने कृष्णभावनामृत को प्रारम्भ िकया था।

मैं श्रील प्रभुपाद और उनके िशष्यों का आभारी हूँ , िजन्होंने मुझे कृष्णभावनामृत से पिरिचत करवाया , और मुझे ' हरे कृष्ण ' का जप और कीतर्न करने के िलए प्रेिरत िकया। तब मैं जुहू में ' हरे कृष्ण ' भूिम पर गया, जो उनका ऑिफस था। श्रील प्रभुपाद बहुधा मुंबई आते थे और अपने ऑिफस के कमर्चािरयों के साथ समय व्यतीत करते। अब आप लोग भी जप कर रहे हैं। िजस प्रकार श्रील प्रभुपाद पुरे िवश्व में भ्रमण करते थे उसी प्रकार हिरनाम भी आज पुरे िवश्व में फ़ैल रहा हैं। हम श्रील प्रभुपाद को पुरे िवश्व में ' हिरनाम के दूत ' के रूप में याद करते हैं । मैं िवश्व हिरनाम सप्ताह दल का अध्यक्ष हूँ। िवश्व हिरनाम सप्ताह जीबीसी का एक अद्भुत पहल हैं। गौरांग महाप्रभु ने भिवष्यवाणी की थी िक िवश्व के प्रत्येक गाँव और शहर में यह हिरनाम पहुंचेगा। श्रील प्रभुपाद ने महाप्रभु की इस भिवष्यवाणी को सत्य करने के िलए बहुत अिधक प्रयास िकया। मैं यहाँ स्क्रीन पर देख सकता हूँ िक इस कांफ्रें स में दिक्षण - अफ्रीका , रूस , मॉिरिशयस , ऑस्ट्रेिलया , बांग्लादेश , यूक्रैन , टोरंटो ,मेिक्सको , मध्य पूवर् और सम्पूणर् भारत से भक्त सिम्मिलत हो रहे हैं। मैं इस कांफ्रेंस पर इसका साक्षी हूँ। मैं भी जप कर रहा हूँ , और हमें यह भी समझना चािहए की मैं इस भौितक जगत से नहीं हूँ।

मैं कुम्भ मेले में सिम्मिलत होने के िलए जा रहा हूँ। कुम्भ मेले में हमारा बहुत बड़ा ' हरे कृष्ण ' िशिवर हैं। ४ फरवरी को शाही स्नान हैं। चूँिक मैं इस्कॉन का प्रितिनिध हूँ , मैं वहां इस्कॉन के भक्तों का नेतृत्व करने के िलए जा रहा हूँ। १९७१ और १९७७ में श्रील प्रभुपाद भी कुम्भ मेले में उपिस्थत थे।

१९७७ में १०० अन्य भक्तों के साथ मुझे भी कुम्भ मेले में उनका संग करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उस समय उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था , परन्तु िफर भी श्रील प्रभुपाद कुम्भ मेले की महत्वता बताने के िलए स्वयं कुम्भ मेले में पधारे थे। श्रील प्रभुपाद ने कहा , " हम यहाँ केवल स्नान करने ही नहीं , अिपतु कीतर्न , और नृत्य करने तथा इस हिरनाम का प्रचार करने के िलए आते हैं। " आज मैं प्रयाग के िलए प्रस्थान कर रहा हूँ और अगले ४ िदन वहाँ रहूँगा। आप इस जप को िनरंतर करते रिहये। मुझे १९७७ के कुम्भ मेले की श्रील प्रभुपाद के साथ कुछ स्मृितयाँ हैं। मैं कल से आपसे कुम्भ मेले की उन स्मृितयों के बारे में चचार् करूँगा। मैंने एक पुस्तक भी िलखी हैं , जो िहंदी और अंग्रेजी दोनों में उपलब्ध हैं। आप भी उसकी प्रित ले सकते हैं।

कुम्भ मेले में भक्त भगवद गीता के साथ इस पुस्तक का भी िवतरण कर रहे हैं। इसप्रकार आज भी हम िकसी तरह से इस कांफ्रें स का संचालन करने में सक्षम हो सके। कल सुबह आप सभी को जप करते समय िफर से भेंट करूँगा।

हरे कृष्ण.....

English

Todays japa-talk was very very special , as it was the glorious exhibition of sri guru karuna Sindhu , adham janar bandhu. Guru Maharaja was so keen to conduct ZOOM Japa-conference that even while in the train from Kolhapur to Mumbai even when internet connectivity gave way intermittently his enthusiasm and mercy for us was not affected in any way. Although many of us left the meeting when internet connectivity was not there, he persisted and continued when again internet connectivity was established. There is lot to learn from our beloved Guru Maharaja- determination, persistence, perseverance, unimaginable mercy for fallen souls like us and much more. All glories to beloved Guru Maharaja and to team of devotees who make this Zoom conference possible in all odd circumstances also.

Where ever we chant the holy names of the Lord, whether in the temple, or home or in the train , where ever you call out to His names He is present there. yato yato yami tato Narsingha (Narasingha aarti). I am in the train and internet connectivity is unstable, but ‘keep chanting’, in spite of whatever happens to the connectivity.

I am approaching Mumbai. Radha-Rasbihari ki jay! There is also Radh-Gopinath in Chowpaty, Radha-Madan Mohan in Navi Mumbai and Radha-Giridhari in Mira Road. Srila Prabhupada has made Mumbai into Dham. Srila Prabhupada would say, ‘Bombay is my office.’ It is here only , that I met and heard Prabhupada for first time . I had seen the advertisement about American sadhus. I saw them and heard them. That was my first and best impression about the Hare Krishna movement. As I was exposed to Hare Krishna Festival in 1971, I was very impressed by their kirtanas. The way they were chanting and singing and dancing completely absorbed, completely oblivious of the surrounding. That was my first and best impression about them. I purchased a japa mala and some books and I continued. I was staying with some of the room mates from my village. I would wait for them to leave the room, and then when alone, I would close the curtains , bolt the door and then chant and dance alone.

That’s how my life in Krishna consciousness began in this town where I am entering now. I am grateful to Prabhupada and his disciples who introduced Krishna consciousness to me. For inspiring me to chant - Hare Krishna. Then I went to ‘Hare Krishna’ land in Juhu. That was his office. Srila Prabhupad would very often come to Bombay, and spend time with staff members of his office. Now you have taken up to this chanting. So like that chanting has spread globally, when Srila Prabhupad travelled around globe. We call Prabhupad the ‘ambassador of the holy name’ . I am the chairman of the World Holy Name team. World Holy Name Week is one of the initiatives of the GBC. Gauranga Mahaprabhu predicted that the holy name will reach every town and every village. Srila Prabhupad worked hard, to make this prediction of Mahaprabhu come true. I could see on the screen here , there are devotees from South Africa, from Russia , from Mauritius , from Australia, from Bangladesh, from Ukraine , from Toronto , from Mexico , from Middle East and from all over India. So I am witnessing on this conference. I am also chanting. I am not from this world.

I am on the way to Kumbha Mela. We have big Hare Krishna camp at Kumbha Mela. Shahi snan is on 4 February. I am ISKCON representative over there, so I have to be there, leading the ISKCON devotees. In 1971 and 1977 Srila Prabhupad attended Kumbha Mela. I had the good fortune to attend Kumbha Mela with him and along with around 100 other devotees in 1977. That time his health was not good, but still he did go to Kumbha Mela and he established the importance of attending Kumbha by his personal participation. Srila Prabhupada said , “We don’t come to Kumbha Mela only to take Bath, but we come here to chant and dance and to propagate the holy name.

I am leaving for Prayag today and will be there for 4 days. You could to continue to chant Japa.. I have some memories of Prabhupada of 1977 Kumbha Mela. I will speak to you about the memories of Kumbha Mela from tomorrow. I have published a book , which is available in Hindi and English. You can take the copy of it. Devotees at Kumbha Mela are distributing this book along with Bhagavad-Gita. So today also we managed something at least to conduct the conference. See you all chanting tomorrow morning.

Hare Krishna!

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