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हरे कृष्ण! जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 19 नोव्हेंबर 2020 गोर प्रेमानंदे हरि हरि बोल...! आज 742 अभिभावक उपस्थित हैं। सहस्त्रशह हजार विषय होते हैं लोगों के पास, दुनिया वालों के पास। लोगों के पास हजारों विषय होते विश्राम नहीं है। अंतर तो इतना ही होता है कोई ग्रामकथा वाले होते हैं और हम कृष्ण कथा वाले हैं। जमीन आसमान का अंतर है एक माया और एक कृष्णा अंतर है कि नहीं? दुनिया के अधिकतर लोग माया में है इसलिए माया की बात करते हैं ग्राम कथा करते हैं दूसरी सस्ती बातें करते हैं ठीक-ठाक राजनीतिक वगैरह हरि हरि! किंतु हम हरे कृष्ण वाले कीर्तनीय सदा हरी, नित्यम भागवत सेवया करते हैं। आज मैं इसलिये कह रहा हूं कि आज आप देख रहे हो मेरे अगल बगल में स्क्रीन (परदे) पे श्री द्वारकाधीश की जय...! हम उनका 20 वा स्थापना महोत्सव मना रहे हैं। वे बहुत सुंदर हैं। अनंतशेष है या अदवेदाचार्य घोषणा तो करो हरि हरि! पद्ममाली? श्रीमान पद्ममाली प्रभु जी ने कहा "जी गुरु महाराज अनंतशेष प्रभु को- होस्ट हैं। क्या आप बात करेंगे?" श्रीमान अनंत अशेष प्रभु जी ने कहा " हां" प.पू.लोकनाथ महाराज जी ने कहा "घोषणा करो।क्या हो रहा है आज अमरावती में?" श्रीमान अनंत अशेष प्रभु जी ने कहा "गुरु महाराज के चरणों में सादर दंडवत प्रणाम। अन्य भक्तों के भी चरणों में विशेष प्रणाम हैं। आज हमें आपको बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि इस्कॉन अमरावती के श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश के हम 20 वी वर्षगांठ मना रहे हैं।20 वा वर्धापन दिन जीसे कहा जाता हैं।ठीक 20 वर्ष पूर्व 19 नवंबर 2000 को श्री श्री रुक्मिणी व्दारकाधीश का अमरावती में महाराज श्री के कर कमलों से उनका प्राण प्रतिष्ठा उत्सव मनाया गया था इस वर्ष हमारा बहुत भव्य उत्सव मनाने का सोच रहे थे लेकिन वर्तमान परिस्थिति के अनुसार वह संभव नहीं हो सका लेकिन फिर भी महाराज जी के प्रसन्नता के लिए आज उत्सव मनाया जा रहा हैं। आप सभी भक्त इस कार्यक्रम में सम्मिलित हो सकते हैं। क इस्कॉन अमरावती यूट्यूब चैनल पर संध्याकालीन उत्सव रहेगा जिसमें रुक्मिणी द्वारकाधीश का पुष्पा उत्सव और दीप उत्सव रहेगा आप सब देख सकते हैं।" प.पू. लोकनाथ महाराज जी ने कहा "टाइमिंग बताओ!" श्रीमान अनंतशेष प्रभु जी ने कहा "शाम को 6: 00 से 9:00 बजे तक रहेगा महाराज इसमें श्री श्री रुक्मिणी व्दारकाधीश के छोटे विग्रह काअभिषेक रहेगा फिर पुष्प अभिषेक बाद में दिपोत्सव भी रहेगा। आप सभी भक्त अवश्य श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश कि कृपा प्राप्त करें।अच्छा होता कि गुरु महाराज हमारे साथ यहां पर होते किंतु महाराज जी के चरणों में यही निवेदन है कि अपना आशीर्वाद बनाएं रखें ताकि हम श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश कि सेवा कर सके और उन्हें प्रसन्न कर सके।" प. पू. लोकनाथ महाराज जी ने आगे कहा... हरि हरि! रुक्मिणी द्वारकाधीश कि जय...! आप जानते हो ना अमरावती कहा हैं। वैसे ये नाम तो इंद्र के राजधानी का नाम है अमरावतीऔर एक अमरावती पृथ्वी पर विदर्भ में है और विदर्भ में ही है राजा भीष्मक राज करते थे उसेकौंडीन्यपुर कहते हैं। उनकी राजधानी कौंडीन्यपुर वरदायिनी पवित्र नदी के तट पर स्थित यह कौंडीन्यपुर में ही जन्म हुआ रुक्मिणी मैया की जय...! इसके लिए कौंडीन्यपुर के बगल में ही आप समझ रहे हैं ना जस्ट लोकेशन यह पृथ्वी पर कहां है अमरावती यह भी समझना होगा। महाराष्ट्र में है फिर नागपुर जानते होंगे नागपुर से कुछ 150 किलोमीटर दूर अमरावती अमरावती भी प्रसिद्ध नगर है और अमरावती ये कौडीन्यपुर के सानिध्य में निकट है और यहां के विग्रह रुक्मिणी द्वारकाधीश का नाम रुक्मिणी द्वारकाधीश इसलिए रखा है कि व्दारका से द्वारकाधीश आए और कहां आये वे कौडीन्यपुर में आए और रुक्मणी का हरण हुआ। रुक्मणी हरण की लीला आप सब भागवत में पढ़ते हो वह स्थली कौंडीन्यपुर हैं। वहां से रुक्मिणी हरण करके वहां से जब द्वारका के लिए प्रस्थान कर रहे थे तो अमरावती होते हुए आगे बढ़े। बहुत प्रसिद्ध लीला है यह रुक्मिणी हरण लीला। हरि हरि! वृंदावन से मथुरा, मथुरा से भगवान द्वारिका आए तो सर्वप्रथम रुक्मिणी हरण की लीला का वर्णन शुकदेव गोस्वामी जी सुनाते है किंतु जब तक रुक्मिणी द्वारका नहीं पहुंच ती और वह पटरानी नहीं बनती तो नहीं वहां की लीला यदि आगे नहीं संपन्न हो सकती हो सकती थी इसलिए द्वारका की लीलाओं का वर्णन सुनाने में ही शुरुआत में रुक्मिणी हरण लीला शुकदेव गोस्वामी ने कई अध्यायों में सुनाई हैं। इस प्रकार रूक्मिणी और द्वारकाधीश का सर्वप्रथम मिलन विदर्भ में हुआ कौंडीन्यपुर में हुआ और हरि हरि! वैसे ही कुछ मान्यता तो है कौंडीन्यपुर से या रूक्मिणी आयीं अमरावती में।अमरावती में रन हुआ हैं। अमरावती में ही रुक्मणी देवी की आराधना कर रहे थे ऐसे भी कथाएँ है ऐसी भी लीलाएंँ सुनाते हैं।लेकिन हमारी समझ तो यह है कि यह सब रुक्मिणी ने पूजा वैसे कौंडीन्यपुर में ही की और भगवान श्री कृष्ण भी कौंडीन्यपुर में हि पहुंचे पीछे से बलराम भी आए और रुक्मणी हरण जहां हुआ वहां वैसे हमारा दावा है इस्कॉन वाले कहते हैं इस्कॉन का प्रोजेक्ट(परियोजना) कौंडीन्यपुर में भी हैं। कौंडीन्यपुर धाम कि..और इस्कॉन कौंडीन्यपुर कि जय...! इस्कॉन अमरावती की जय...! यह दोनों का घनिष्ठ संबंध हैं। यह दो इस्कॉन। कौंडीन्यपुर इस्कॉन का और अमरावती इस्कॉन का। जिस स्थान से हरण हुआ वह स्थान अब इस्कॉन के पास हैं। हमारी 5 एकड़ भूमि है कानपुर में। रुक्मिणी जब पूजा के उपरांत पुन्हा: अपने महल पहुंच रही थी तो प्रतीक्षा स्थल जो रुक्मिणी ने कहा था पत्र में, प्रेम पत्र जो भेजा था उसमें लिखा था कि हम कहां पर मिलेंगे। वह मिलन का स्थान कौन सा होगा? इस्कॉन की जो जमीन है कौडीन्यपुर में वहा कई सारे कदम के वृक्ष भी है यहा हमारे अक्रूर प्रभु का कहना है समझ लो उनका कोई साक्षात्कार है। भगवान ने पहने हुए कदम के पुष्प वहा कुछ गिरे तो वह भूमि में कई सारे कदम के वृक्ष भी पैदा हो गये में आज भी है। रुक्मिणी द्वारकाधीश नाम भी हुआ और इसलिए हमने इस्कान के विग्रह का नाम... हम कौन होते हैं नामकरण करने वाले लेकिन कुछ करना ही पड़ता है तो हमने यही सब लीला का स्मरण करते हुये हमने रुक्मिणी द्वारकाधीश की प्राण प्रतिष्ठा की आज के दिन हो रही थीं। आज विशेष दिन हैं। शुभ दिन है और हमारी वैदर्भी माताजी वर्मा परिवार इनके प्रयास से इस्कॉन को उन्होंने कुछ भूमि भी दिलवायी थी। पहले ही उनकी पूजा हो चुकी थी फिर आज के दिन मंदिर का निर्माण नांँट फाइनल लेकिन टेंपरेरी बन गया और फिर आज के दिन रुक्मणी द्वारकाधीश कि प्राण प्रतिष्ठा हुई।इस प्रकार विशेष उत्सव संपन्न हुआ। वह उत्सव अविस्मरणीय हैं। यह श्रील प्रभुपाद की प्रसन्नता के लिए इस्कॉन की अमरावती में स्थापना हुई प्रभुपाद की प्रसन्नता के लिए ही अमरावती में रुक्मिणी द्वारकाधीश कि प्राण प्रतिष्ठा हुई और यह मंदिर का लोकार्पण हुआ और फिर सबका कल्याण हो!भगवान के दर्शन का, सेवा का अवसर प्राप्त हो! हरि हरि! श्रील प्रभुपाद स्वयं भी कई सारे अपने जीवन में यह बालक 108 मंदिरों का निर्माण करेगा ऐसी भविष्यवाणी हुई थी जब प्रभुपाद जन्मे थे। कुंडली पडीं तो, श्रील प्रभुपाद ने संकल्प पूरा किया। सौ से भी अधिक मंदिरों का निर्माण किये। लक्ष्य तो प्रभुपाद का था पृथिवीते आछे यत नगरादि-ग्राम। सर्वत्र प्रचार हैइबे मोर नाम।। (चैतन्य भागवत अंत अध्याय 4 श्लोक 126) अनुवाद: - पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गांव है उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा। हमको भी उपदेश दिए प्रभुपाद।महाराष्ट्र में धर्म का प्रचार करो! महाराष्ट्र के लोगों का उन्हें कृष्ण भावना भावित करो! आजकल के नेता राजनेता बिगाड़ रहे हैं। यह तुकाराम का देश हैं। हरि हरि! जब हम ने महाराष्ट्र में प्रचार शुरू किया और अलग-अलग स्थानों पर इस्कॉन की स्थापना हो रही तो सर्व प्रथम उनमें से अमरावती एक हैं। अब तो कई सारे मंदिर बन रहे हैं। या प्रचार बढ़ रहा हैं। तब कम था 20 साल पूर्व प्राण प्रतिष्ठा हुई तो उसके कई साल पहले अमरावती में प्रचार शुरू किए थे।इस प्रकार अमरावती में द्वारकाधीश पधारे। सुवर्णा मंजरी जाति को मंदिर में कई सारे गौडीय वैष्णव। हिंदू तो थे ही अमरावती में अब गौडीय वैष्णव अमरावती में है और गौडीय वैष्णव बनके फिर विग्रह की आराधना करते हैं। इस्कॉन में विग्रह आराधना ही सर्वोपरि है। गौडीय वैष्णव के जो भाव है वे जैसे विग्रह को समझते हैं। श्रीविग्रहाराधन-नित्य-नाना। श्रृंगार-तन्‌-मन्दिर-मार्जनादौ। युक्तस्य भक्तांश्च नियुञ्जतोऽपि वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥ (श्री गुर्वाष्टक श्रील विश्वनाथ ठाकूर विरचित श्लोक 3) अनुवाद:-श्रीगुरुदेव मन्दिर में श्रीश्रीराधा-कृष्ण के अर्चाविग्रहों के पूजन में रत रहते हैं तथा वे अपने शिष्यों को भी ऐसी पूजा में संलग्न करते हैं। वे सुन्दर सुन्दर वस्त्र तथा आभूषणों से श्रीविग्रहों का श्रृंगार करते हैं, उनके मन्दिर का मार्जन करते हैं तथा इसी प्रकार श्रीकृष्ण की अन्य अर्चनाएँ भी करते हैं। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ। ऐसे आचार्य के चरणों की वंदना करते हैं। क्या करते हैं वैसे? युक्तस्य भक्तांश्च नियुञ्जतोऽपि वैसे विग्रह आराधना आचार्य की सेवा होती हैं। विग्रह आराधना कैसे करते है आचार्य? युक्तस्य भक्तांश्च भक्तों से शिष्यो से अनुयायियों से युक्त हो के उनके साथ या उनको दे देते है या लगा देते हैं। विग्रहों की आराधना में। श्रीविग्रहाराधन-नित्य-नाना। श्रृंगार-तन्‌-मन्दिर-मार्जनादौ। भगवान प्रकट होते हैं विग्रह के रूप में यह दर्शन का ही नहीं। मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु | मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे || (श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय18 श्लोक65) अनुवाद: -सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो | यह सब संभव होता है जब भगवान विग्रह के रूप में प्रकट होते हैं फिर हम ग्रुप में नहीं द्वारकाधीश के भक्त बनते हैं उनकी आराधना करते हैं उनकी आरती उतारते हैं तब पुजारी आरती नहीं करता जो उपस्थित है वे सभी आरती कर रहे हैं उपस्थित भक्तों की ओर से एक व्यक्ति आरती करता है आरती अधूरी रहेगी अगर साथ में कीर्तन नृत्य नहीं हो रहा है मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु | भगवान भक्तों को यह सब कहते हैं करने के लिए भगवत गीता में। सब आसान प्रैक्टिकल(व्यवहारिक) हो जाता हैं। जब भगवान विग्रह के रूप में प्रकट होते हैं। जब से प्रागट्य हुवा है श्री श्री रुक्मिणी व्दारकाधीश का तब से आराधना हो रही हैं। श्रृंगार हो रहा हैं। स्मरण कर सकते हैं हम रुक्मिणी द्वारकाधीश के भक्त बनते हैं हम उनकी आराधना करते हैं आरती उतारते हैं तो पुजारी आरती नहीं करता गुरु गुरु आरती करते हैं सब भक्तों की ओर से एक व्यक्ति आरती करता है आरती अधूरी रहेगी अगर साथ में गिरते नहीं हो रहा है मन मना भव भक्तों श्लोक जब भगवान करने के लिए कहते हैं भगवत गीता में यह सब आसान हो जाता है और प्रैक्टिकल हो जाता है जब भगवान के विग्रह प्रकट होते हैं उनका प्राकृतिक हुआ श्री द्वारकाधीश का और वे चल रहा है आराधना हो रही है श्रृंगार हो रहा हैं। मन्दिर-मार्जन भी हो रहा हैं। आवश्यक है वे भी हो रहा है और बहुत कुछ अमरावती में हो रहा है अनंतशेष के नेतृत्व में तो हम आभारी हैं। इसके कारण बने कारनीभूत हुए इसके कारण बने भूमि दान हुआ। विग्रह की स्थापना हुई। धनराशि लगाई और फिर एक प्रकार की प्रचार प्रसार और उत्सव मनाए जा रहे हैं। अमरावती कि जनता कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा । बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् । करोमि यद्यत्सकलं परस्मै । नारायणयेति समर्पयामि ॥ अनुवाद: -काया, वाचा, मनसा, इन्द्रिय, बुद्धि या आत्मा की प्रवृत्ति से अथवा स्वभाव के अनुसार जो कुछ हम किया करते हैं, वह सब परात्पर नारायण को समर्पण कर दिये जायँ। यही भक्ति की वास्तविक भूमि है। कायेन वाचा मनसा द्वारकाधीश की सेवा कर रहे हैं। ऐसे ही करते रहिए। बढ़ाइए और सेवा को और अपना जीवन बनाइए। वैसे मैं आपको कल मैंने कहा था कि बोलने के कहीं विषय हैं। उनमे से रुक्मिणी द्वारकाधीश एक विषय हैं। परिक्रमा भी एक विषय हैं। हम क्या करते हैं यह भी एक विषय हैं। परिक्रमा को आप ज्वाइन कीजिए। परिक्रमा को देखिए, सुनिए। वर्चुअल परिक्रमा। श्रील प्रभुपाद तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय...! कल हम ने श्रील प्रभुपाद तिरोभाव महोत्सव मनाया और उनमें से कई सारे भक्त श्रील प्रभुपाद की गुण गान करना चाहते थे कईयों ने किया भी कुछ बचे भी थे कंटिन्यू करो। हरे कृष्ण...!

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