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11-2-2020 हरे कृष्ण ! गौरंग! गौरंग ! मैं आज मायापुर पहुंचा हूं। आज 462 स्थानों से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। यह 48 वर्ष है जब मैं मायापुर महोत्सव में सम्मिलित हो रहा हूं। इतने वर्षों से मैं प्रत्येक वर्ष यहां आ रहा हूं। 1972 में मैं इस उत्सव में सम्मिलित नहीं हो पाया था। 1973 से 2020 तक प्रत्येक वर्ष मुझे यहां आने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। आप भी यहां आ सकते हैं। मायापुर को प्रारंभ में कोई नहीं जानता था। बंगाल तथा उड़ीसा के बाहर शायद ही किसी ने मायापुर का नाम सुना था, विदेश की तो बात ही छोड़ दीजिए। श्रीला प्रभुपाद ने मायापुर को प्रकट किया। मायापुर धाम के संदेश को विश्व भर में फैलाने का कार्य श्रील प्रभुपाद ने किया। विशेष रूप से पाश्चात्य देशों में मायापुर का संदेश प्रभुपाद ने पहुंचाया। यह कार्य करने के लिए प्रभुपाद को 1922 में उनके गुरु महाराज श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर द्वारा आदेश मिला था। जीवन भर तैयारी करने के पश्चात प्रभुपाद ने 1965 में अमेरिका में इसका शुभारंभ किया। उसके पश्चात मात्र 10 वर्ष में श्रील प्रभुपाद ने कई बार संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा की। श्रील प्रभुपाद संपूर्ण विश्व में जहां पर भी गए वहां उन्होंने गौरांग तथा मायापुर धाम का गुणगान किया। श्रील प्रभुपाद जेट एज परिवराजकाचार्य है। प्रभुपाद ने हमें पदयात्रा करने का आदेश दिया। गौरांग महाप्रभु ने कहा है सर्वत्र प्रचार होईबे मोर नाम। यह चैतन्य महाप्रभु का आदेश है : प्रती गृहे गिया करो आमार प्रकाश अर्थात प्रत्येक घर में जाओ और वहां मेरा अर्थात कृष्ण नाम का प्रचार करो। चैतन्य महाप्रभु ने यह आदेश नित्यानंद प्रभु तथा हरिदास ठाकुर को दिया। ऐसा ही आदेश श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने श्रील प्रभुपाद को दिया। नमस्ते सरस्वती देवे गौरवाणी प्रचारिणे । निर्विशेष शून्यवादी पाश्चात्य देश तारीणे।। श्रील प्रभुपाद ने सर्वत्र इसका प्रचार किया। कई स्थानों पर मायावाद फैला हुआ था। मायावाद तथा शून्यवाद का श्रील प्रभुपाद ने खंडन किया तथा गौरवाणी का सर्वत्र प्रचार किया। श्रीला प्रभुपाद ने अंग्रेजी में एक ग्रंथ की रचना की : द टीचिंग्स ऑफ़ लॉर्ड चैतन्य। इसमें श्रील प्रभुपाद ने चैतन्य महाप्रभु द्वारा रूप गोस्वामी तथा सनातन गोस्वामी को दी गई शिक्षाओं का वर्णन किया। चैतन्य चरितामृत का भी श्रील प्रभुपाद ने अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया। श्रील प्रभुपाद सभी ग्रंथों की रचना अंग्रेजी भाषा में करते थे क्योंकि यदि कोई ग्रंथ एक बार अंग्रेजी भाषा में लिखा जाए तो अन्य भाषाओं में उसका अनुवाद होता रहता है परंतु यदि कोई ग्रंथ किसी अन्य भाषा में लिखा जाए तो उसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद होने की संभावना अत्यंत कम होती है। इस प्रकार इन ग्रंथों के माध्यम से गौरांग महाप्रभु तथा उनके परिकरों का प्रचार संपूर्ण विश्व में हुआ। चैतन्य महाप्रभु के जन्म, लीलाएं तथा उनकी शिक्षाओं का प्रचार हुआ और इस प्रकार संपूर्ण विश्व मायापुर को जान गया। मायापुर सुनने में कोई दिव्य नाम नहीं लगता है। जब हम पदयात्रा करते हुए मायापुर आ रहे थे तब रास्ते में कई लोग हमसे पूछते स्वामी जी आप कहां जा रहे हो? जब हम कहते कि हम मायापुर जा रहे हैं तो वे लोग सोचने लगते की माया के वश में तो सारा संसार है यह स्वामी भी इससे परे नहीं है यह भी माया के पुर अर्थात मायापुर जा रहा है। मायापुर के प्रचार का श्रेय श्रील भक्तिविनोद ठाकुर को भी जाता है। श्री जगन्नाथ दास बाबाजी ने इसका प्रस्तुतीकरण गौर आविर्भाव स्थली के रूप में किया इसीलिए उनके प्रणाम मंत्र में भी इसका उल्लेख आता है। गौर आविर्भाव भूमेष्तवाम निर्देष्ठ सज्जन प्रिय:। वैष्णव सार्वभौम श्री जगन्नाथाय ते नमः।। मैं उन जगन्नाथ दास बाबा जी को प्रणाम करता हूं जिनका सभी वैष्णव अत्यंत सम्मान करते हैं तथा जिन्होंने भगवान चैतन्य महाप्रभु के जन्म स्थान को प्रकट करवाया। जगन्नाथ दास बाबाजी , भक्ति विनोद ठाकुर , भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर और श्रील प्रभुपाद सभी ने इस धाम को प्रकाशित किया। और इस प्रकार संपूर्ण विश्व को मायापुर की महिमा का ज्ञान हुआ। इस प्रकार हमारे आचार्य वृंद इस धाम के प्रकाश को प्रकाशित करते हैं। श्रील प्रभुपाद ने इस धाम की महिमा को भारत भूमि की सीमाओं से भी बाहर विदेश में प्रचार किया। श्रील प्रभुपाद ने अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ की स्थापना की तथा वे हरिनाम की शिक्षा एवं दीक्षा दे रहे थे। श्रीला प्रभुपाद ने मात्र 10 वर्ष में अपने साक्षात्कार के साथ संपूर्ण विश्व में गौरवाणी का प्रचार किया, 100 से भी अधिक मंदिरों की स्थापना की तथा 5000 से भी अधिक शिष्यों को शिक्षा दीक्षा दी। जीवो को जब हरी नाम प्राप्त हुआ तब वे नाचने लगे। नाम नाचे जीव नाचे नाचे प्रेम धन। आपको यह पयार याद करना चाहिए। यदि किसी की लॉटरी लग जाती है तो वह नाचेगा या नहीं। संपूर्ण विश्व में जीव इस प्रकार धन प्राप्त करके नाचते हैं। इस हरिनाम का उद्गम स्थान यह मायापुर धाम है। संकीर्तन यहीं से प्रारंभ हुआ। योगपीठ के समीप श्रीवास ठाकुर के आंगन में यह संकीर्तन प्रारंभ हुआ। जो भी प्रारंभ में हरी नाम को स्वीकार करता है उसे अंततः मायापुर धाम की प्राप्ति होती है। यह नाम से धाम तक की यात्रा है। यदि आप गंभीरतापूर्वक नाम लेंगे तो यह नाम आपको धाम तक लेकर जाएगा। श्रीला प्रभुपाद कहते थे कि मायापुर मेरे आराधना करने का स्थान है। अर्थात यह मायापुर तीर्थ यात्रा का स्थान है। 1972 में श्रील प्रभुपाद ने मायापुर उत्सव की शुरुआत की थी। आप सब भी इस वर्ष मायापुर उत्सव में सम्मिलित हुई है। यदि आप व्यक्तिगत रूप से नहीं आ सकते हैं तो इंटरनेट तथा मायापुर टीवी तथा अन्य साधनों से स्वयं को मायापुर के साथ जोड़ कर रखिए। मैं अगले 20 22 दिन यहां मायापुर में ही रहूंगा। मैं यहां केवल रहूंगा नहीं मैं यहां व्यस्त रहूंगा। आप सभी के साथ पुनः जप करेंगे तथा पुनः भेंट करेंगे। गौरांग ! गौरांग ! हरि हरि बोल

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