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जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 29 नवम्बर 2021 हरे कृष्ण..! आज जप चर्चा में 860 भक्त उपस्थित हैं। कृष्ण कन्हैया लाल कि जय..! मैने नाम सुना,क्या आप नाम सुन रहे थे?उठो! कुछ बैठे-बैठे सो रहे हैं। कहा था मैंने आपसे नाम सुनने को लेकिन आप कहां सुन रहे हैं? हरे कृष्ण..! ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय! वासुदेवाय हरि हरि..! कल भी बात तो कि किंतु पुनः विषयांतर हो गया और हम इस कथा को कुछ दिनों से सुन रहे थें। श्री शुक उवाच हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दव्रजकमारिका:। चेरुर्हविष्यं भुज्जाना: कात्यायन्यर्चनव्रतम्।। (श्रीमद्भागवत 10.22.1) अनुवाद: - सुखदेव गोस्वामी ने कहा: हेमंत ऋतु के पहले मास में गोकुल कि अविवाहिता लड़कियों ने कात्यायनी देवी की पूजा की और व्रत रखा। पुरे मास उन्होंने बिना मसाले की खिचड़ी खाई। "हेमन्ते प्रथमे मासि" वाले मार्गशीर्ष महीने में जो लीला संपन्न हुईं। कात्यायनी का व्रत हो रहा हैं और व्रत के व्रति भी होते हैं,कात्यायनी या कोई भी व्रत होता हैं, तो उसके व्रति होते हैं, व्रत करने वाला व्रति हो जाता हैं। जैसे कल एकादशी हैं, तो जो एकादशी करेंगे,वो व्रति कहलाएंगे।भागवत कथा श्रवण के भी व्रति होतें हैं। सात दिन कथा होने वाली हैं,तो सब व्रत लेंगे, कथा का श्रवण करने का व्रत, समझ गए व्रत का मतलब। यह गोपियों का कात्यायनी व्रत चल रहा हैं। पहले हम लोगों का दामोदरव्रत चल रहा था।व्रत को अपनाने वाले व्रति कहलाते हैं। क्या कहलाते हैं? आप याद कर सकते हो, व्रत करने वाला क्या कहलाता हैं? व्रति कहलाता हैं। कात्यायनी व्रत चल रहा हैं, फिर व्रत संपन्न हुआ और फिर व्रत का फल भी मिला। कृष्ण प्राप्ति हुई,पति रूप में; कृष्ण प्रगट हुए। पतिं मे कुरु ते नम:। पतिं मे कुरु ते नम:। यह चल रहा था उनका, कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:। इति मन्त्रं जपन्त्यस्ता: पूजां चक्रु: कमारिका:।। (श्रीमद्भागवत 10.22.4) अनुवाद: - प्रत्येक ओर विवाहिता लड़की ने निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए उनकी पूजा की: "हे देवी कात्यायनी, हे महामाया, हे महायोगिनी, हे अधीश्वरि,आप महाराज नंद के पुत्र को मेरा पति बना दें। मैं आपको नमस्कार करती हूंँ।" प्रार्थना भी कर रही थी और "जपन्त्यस्ता", वे जप भी कर रहीं थीं। पतिं मे कुरु ते नम:।पतिं मे कुरु ते नम:। "नन्दगोपसुतं देवि" तो हमने उस कथा को आगे तो बढ़ाया था। कृष्ण प्रकट हुएं और उन्होंने कहा भी था, भविष्य में किसी क्षतरात्रि को हम मिलेंगे, फिर गोपिया वहां से प्रस्थान करती हैं और कृष्ण भी वहां से प्रस्थान कर चुके हैं। वैसे भगवान अपने मित्रों के साथ ही वहां पहुंचे थें। चीरघाट पर गोपियों के साथ जो मिलन भेंट या दर्शन या वार्तालाप या वस्त्र और चोली का हरण हुआ, उसमें वहा अपने मित्रों को नहीं लाए थे।यह गोपनीय लीला हैं, और ये रस अलग हैं या यह भाव अलग हैं। गोपियों के साथ मिलना और मित्रों के साथ जो भगवान का संबंध हैं, वो सख्य रस हैं और यह माधुर्य रस हैं, श्रृंगार रस हैं। मित्र वहां पहुंचे तो हैं, लेकिन कृष्ण उन्हें ज्यादा इनवॉल नहीं करते इस लीला में,जब चीर हरण हुआ तो मित्र कहीं बगल में हैं, कुछ हंसी मजाक उन्होंने भी किया जब कृष्ण ने वस्त्रचोरी की, तो ऐसे थोड़ा सा उनकी उपस्थिति का उल्लेख हुआ हैं, किंतु अधिकतर मित्रों को दूर ही रखा था। यह भी हम को समझना चाहिए। हरि हरि। जब कृष्ण राधा से मिलते हैं या गोपियों से मिलते हैं तो बलराम वहा साथ मे नहीं होते। हरि हरि! वह बड़े भाई भी हैं और एक सखा के रूप में भी रहते हैं बलराम।बलराम कृष्ण के सखा और भाई दोनों हैं।गोपियों को कृष्ण ने कहा कि यहां से जाओ, अपने अपने घर लौटो और गोपियों ने वैसे ही किया, कृष्ण फिर अपने सखाओं के साथ गोचारण लीला के लिए प्रस्थान करते हैं। वह हम कह चुके हैं।कैसे वन से गुजर रहे हैं? विचरण हो रहा हैं और वन की शोभा रमणीय हैं। राम रहे हैं वहां के वृक्षावल्ली, वहां के वृक्ष- लता,पौधे, हरियाली, वहा के पुष्प, पुष्पों की सुगंध रमणीय हैं और वहां पर पक्षी चहक रहे हैं, भ्रमरों कि गुंजार हो रही हैं।हरि हरि! और वह वृक्ष क्या करते हैं? वृक्ष अपनी शाखाओं को हिलाते हैं, कृष्ण जब वहां से जाते हैं तो पुष्प वृष्टि होती हैं। पुष्पा-अभिषेक होता हैं। हम जब भी विग्रहों का अभिषेक करते हैं तो पुष्प हम कहीं से ले आते हैं और फिर हम पुष्पा-अभिषेक करते हैं, किंतु वन में तो कृष्ण अपने मित्रों के साथ गैय्या चराते हुए जा रहे हैं और वृक्ष भिन्न-भिन्न प्रकार के पुष्पो की वृषा कर रहे हैं, फिर कदम हैं, या चमेली हैं या पारिजात हैं, वृंदावन के कुछ विशिष्ट फूल जो इतरत्र मिलेंगे भी नहीं, ऐसे वृक्ष और उनके पुष्प हैं। वृक्ष भी भक्त हैं, वृक्ष भी कृष्णभावना भावित हैं। वैसे कृष्ण ने तो कहा ही था। निदघार्कातपे तिग्मे छायाभि: स्वाभिरात्मन:। आतपत्रायितान्वीक्ष्य द्रुमानाह व्रजौकस:।। (श्रीमद्भागवत10.22 30) अनुवाद: - जब सूर्य की तपन प्रखर हो गई तो कृष्ण ने देखा कि सारे वृक्ष से मानो उन पर छाया करके छाते का काम कर रहे हैं। तब वे अपनी वालों मित्रों से इस प्रकार बोले। "आतपत्रायितान्वीक्ष्य" मित्रों देखो देखो यह वृक्ष छाता बनके क्या कर रहे हैं? यह जो ग्रीष्म ऋतु कि धूप हैं, हेमंत ऋतु चल रहा हैं, फिर भी कुछ धूप तो होती हैं। हम भी अनुभव कर रहे हैं कि नहीं? यहां तो विषम क्लाइमेटिक चेंजेज चल रहे हैं, ग्लोबल वार्मिंग हो रहा हैं। इसके कारण अब कोई ऋतु(मौसम) का भरोसा नहीं हैं, कोई भी ऋतु प्रगट हो रहा हैं। हरि हरि! ठंडी के दिन में गर्मी और गर्मी के दिन में ठंडी भी आती हैं, वर्षा कभी भी होने लगती हैं, कोई भरोसा नहीं हैं। क्या भरोसा हैं, इस जिंदगी का? वह भी हैं और क्या भरोसा इस दुनिया का या क्लाइमेट का या ऋतु का?ऐसी यह दुनियादारी हैं, लेकिन ठीक हैं। कृष्ण ने कहा यह छाते के रूप में हमारी सेवा कर रहे हैं और यह अनुभव ये वृक्ष भी कैसे कृष्ण के साथ अपने तरीके से आदान प्रदान करते हैं, कृष्ण कि आराधना करते हैं,आराधना,सम्मान करते हैं। कृष्ण का स्वागत करते हैं,इसका वर्णन चैतन्य चरितामृत में जब चैतन्य महाप्रभु वृंदावन कि यात्रा कर रहे हैं,तब हैं। चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पुरी से आए और चैतन्य महाप्रभु ने ब्रजमंडल परिक्रमा की ,उस समय वहां के सभी चर-अचरो का कैसे आदान-प्रदान हो रहा था श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के साथ? उन्होंने तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को, गौर सुंदर को,मान लिया कि श्याम सुंदर ही आ गये और फिर गायों का क्या कहना? गाय ने भी अपना घास चरना छोड़ दिया और दौड़ पड़ी कृष्ण कि ओर या श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की ओर ,और गौर सुंदर को श्यामसुंदर मान के उनको चाट रही हैं और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु खुजला रहे हैं गायोँ को, वैसे कभी-कभी गाय आगे बढ़ती हैं और चैतन्य महाप्रभु के पास झुकती हैं,वह चाहती हैं कि चैतन्य महाप्रभु आगे बढ़कर कुछ खुजलाहट करें और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने वैसा ही किया, श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु आगे बढ़े तो कई सारे पक्षी आकाश में उड़ान भरे थे और पंचम गाय, चैतन्य चरितामृत में कहा गया हैं, सारेगमप... प मतलब पंचम सारेगमप...वैसे और भी हैं, यह उच्च ध्वनि तो पक्षी, पंचम गाय कर रहे हैं,उस स्वर में गा रहे हैं। ऊपर से चैतन्य महाप्रभु के समक्ष कईं सारे मोर पहुंचे हैं और वे नृत्य कर रहे हैं। फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु आगे बढ़ते हैं, तो कई सारे मोर नाच रहे हैं। वह मुड नहीं रहे हैं। उनका मुख तो संमुख ही हैं।वह चैतन्य महाप्रभु की और देखते हुए और नाचते हुए पीछे पीछे जा रहे हैं और इस प्रकार ये मोर महाप्रभु का स्वागत कर रहे हैं, मानो कह रहे हैं स्वागतम गौरांग सु स्वागतम् श्यामसुंदर, जो थे गौरसुंदर और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने वहां के जो वृक्ष थे, वहां पर वर्णन आया हैं कि श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी वर्णन करते हैं कि वृक्षों ने क्या किया? गायों ने क्या किया? उसका वर्णन भी हमने संक्षिप्त में कहा और पक्षियों ने कैसे स्वागत किया, अपने ढंग से पक्षी अपना हर्षोल्लास कैसे प्रगट कर रहे हैं ,उसका वर्णन भी हैं। अब वृक्षों कि बारी आई तो वहा कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने लिखा हैं कि वृक्ष कैसे अपनीं-अपनी शाखाओं को हिला रहे थे और पुष्पों कि वर्षा कर रहे थे और वहा लिखा हैं कि एक दोस्त जैसे दुसरे मित्र से मिलने जाता हैं, तो कुछ भेंट लेकर जाता हैं,कोई षुष्पं, पत्रं,फल, तोयं ऐसी भेट लेके जाता है तो “पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति | तदहं भक्तयुपहृतमश्र्नामि प्रयतात्मनः ||” (श्रीमद्भगवद्गीता 9.26) अनुवाद: -यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ | वृंदावन के वृक्षों ने कुछ सोंचा, वृक्ष भी सोच सकते हैं। गोलोकेर वृक्ष “भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्र्वरम् | सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ||” (श्रीमद्भगवद्गीता 5.29) अनुवाद: -मुझे समस्त यज्ञों तथा तपस्याओं का परम भोक्ता, समस्त लोकों तथा देवताओं का परमेश्र्वर एवं समस्त जीवों का उपकारी एवं हितैषी जानकर मेरे भावनामृत से पूर्ण पुरुष भौतिक दुखों से शान्ति लाभ-करता हैं। हमारे परम मित्र आ रहे हैं।"सुहृदं सर्वभूतानां"। हमारे मित्र जब पहुँचे तो उन्हें कुछ भेट देनी चाहिए, ऐसा सोचकर वृंदावन के वृक्ष जिनके पास फुल हैं, वो फुल दे रहे हैं, फुलों कि वृष्टि हो रही है, वहाँ पर यह भी लिखा हैं कि जो कुछ वृक्ष, फलों से लदे हैं वह भी अपनी शाखाओं को नीचे झुका रहे हैं। कुछ फल ले लो उनका ऐसा कुछ भाव हैं जो वो व्यक्त कर रहे हैं, इतना ही नहीं वह भी अपने शाखाओं को हिलाते हैं। वह फल दे रहे हैं, श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को अर्पित कर रहे हैं, जब वृक्षों ने महाप्रभु को पुष्प अर्पित किये, फल अर्पित किये तो फिर क्या हुआ? श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु कृतज्ञ हैं। हम लोग कृतघ्न होतें हैं, यह दुनियाँ के बदमाश लोग कृतघ्न होते हैं और किसी ने सहायता कि, उपकार किया,उसकों भुल जाते हैं, लेकिन भगवान वैसे नहीं है और ना ही भगवान के भक्त भी वैसे होतें हैं। जो वैष्णवों के 26 गुण हैं, उस में से एक यह कृतज्ञता भी हैं। यह गुण कहा से आता है? यह गुण भगवान से आता हैं। भगवान में यह गुण हैं, भगवान सर्वोत्तम हैं। हम उनके अंश हैं, तो भगवान के ही गुण हम में आते हैं। बाप जैसा बेटा ऐसा भी कहो। इस सिध्दांत के अनुसार देखों या फिर अचिंत्य भेदाभेद के दृष्टिकोण से भी कहो ।भगवान में और हम में भेद हैं, अभेद नहीं हैं और जहाँ तक गुणों कि बात है, भगवान के गुण हम में भी हैं। हम उसी गुणों के हैं, क्योंकि हम उन्हीं के अंश हैं। मात्रा के दृष्टि से भेद हैं। अगर भगवान सर्वोत्तम हैं, तो हम भी सर्वोत्तम हैं। लेकिन भगवान जितने सर्वोत्तम हैं, उतने हम सर्वोत्तम नहीं हो सकते,यह बात हैं,अचिंत्य भेदाभेद। जब हम कृष्ण भावनाभावित हो जाते हैं, तो हमारे आत्मा में जो स्वाभाविक गुण हैं, वो प्रगट होंते हैं। तो हम भी सदगुणी और कृतज्ञ होंगें। जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को वृंदावन के सारे वृक्ष,पुष्प या फल या हो सकता है कि कुछ पत्ते भी दे रहे हैं,जैसे कि तुलसी हैं या और भी पत्ते हैं या जैसे कोई जड़ी बूटी होती हैं या जब श्री कृष्ण गोवर्धन जाते हैं तो वहां लिखा हैं कि वहां की गायों को गोवर्धन घास देता हैं और स्वयं कृष्ण को गोवर्धन कंद,फूल और मूल देते हैं,जड़ी-बूटी देते हैं,यह सब गोवर्धन कृष्ण को देते रहते हैं,जब कृष्ण गोवर्धन में लीला खेलने के लिए जाते हैं। गोवर्धन में तो सभी वृक्षों का यही गुणधर्म हैं। हरि हरि।कृतज्ञ होने के कारण श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु क्या करने लगे? उन वृक्षों को आलिंगन देने लगे,जिस वृक्ष ने कुछ पुष्प प्रदान किए,छाया दी।चैतन्य महाप्रभु भाग के उन वृक्षों को आलिंगन कर रहे हैं।वृक्षों का आलिंगन कर रहे हैं, तो बगल वाले वृक्ष ने देखा कि देखो कृष्ण इस वृक्ष को गले लगा रहे हैं, तो वृक्ष बोला मुझे भी लगाओ,मुझे भी लगाओ। वह भी मांग करने लगे कि हमें भी आलिंगन कीजिए, तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु दूसरे वृक्ष की ओर दौड़ कर उन्हें स्पर्श करते हुए गले लगाते हैं, तो फिर बगल वाले वृक्ष बोलते हैं, कि अरे! हमने क्या बिगड़ा हैं तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु सारे वृक्षों को गले लगाते हैं।लेकिन एक पेड़, फिर दूसरा पेड़,ऐसे सभी वृक्षों को आलिंगन करने में सदियां बीत सकती हैं। हमारे हिसाब से हम सोच सकते हैं कि देखो कितने सारे वृक्ष हैं। अरे वृंदावन तो वन ही हैं, वृक्षों से भरा पड़ा हैं। तो सबको आलिंगन देते देते तो सदिया बीत जाएंगी, तो वह कैसे तालमेल बिठाते हैं। वह कैसे मैनेज करते हैं, यह उनको सोचना हैं, संभव हैं उन्होंने इस प्रकार से मैनेज किया होगा कि जितने वृक्ष हैं, उतने ही चैतन्य महाप्रभु बन गए। ठीक हैं और एक ही साथ सारे वृक्षों को श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने आलिंगन दिया। हरि बोल। किसी को पंक्ति में खड़ा नहीं होना पड़ा कि अब तुम आओ, फिर उसके बाद तुम आना और फिर इन सारे वृक्षो के पास तो इतना धीरज भी नहीं था,तो वह रुक नहीं सकते थे, इस प्रकार के आदान-प्रदान का वर्णन हमें श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की चैतन्य चरितामृतम में मिलता हैं, जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की चैतन्य चरित्रामृत में भेंट का वर्णन हैं, वृंदावन की भेट या वृंदावन की यात्रा, तो श्रीकृष्ण के साथ भी वैसा ही आदान-प्रदान चलता रहता हैं, वृंदावन के पेड़ वृक्ष,लता, बेली, पौधे और फिर यही जब अनुभव कर रहे थे श्री कृष्ण तो तब श्री कृष्ण ने कहा था एतावज्जन्मसाफल्यं देहिनामिह देहिषु । प्राणैरर्थैर्धिया वाचा श्रेयआचरणं सदा।। (श्रीमद्भागवतम् 10.22.35) याद हैं आपको? श्री कृष्ण एक सिद्धांत की बात अपने मित्रों से कह रहे हैं। श्री कृष्ण का जो उस प्रातः काल को अनुभव रहा,थोड़ा कनेक्शन जोड़ देते हैं।वही लीला चल रही हैं। उन्होंने चीर घाट से प्रस्थान किया हैं तस्या उपवने कामं चारयन्त: पशून् नृप । कृष्णरामावुपागम्य क्षुधार्ता इदमब्रुवन् ॥ ३८ ॥ (श्रीमद्भागवतम् 10.22.38) और एक उपवन में पहुंचे हैं और हम बता चुके हैं कि उपवन का नाम अशोक वन हैं, अक्रूर घाट के क्षेत्र में श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ पहुंचे हैं तो रास्ते में उन्होंने यह कहा था और ऐसा सदाचार का जीवन मनुष्य को जीना चाहिए- प्राणैरर्थैर्धिया वाचा श्रेयआचरणं सदा झांसी के भक्त तो कह रहे हैं कि हां उन्होंने नोट किया था। मैंने कहा था आपको कि इस पर आप प्रवचश दे सकते हो या अपने जीवन में उतार सकते हो क्योंकि ऐसा जीवन श्रेयस्कर हैन, एक श्रेय होता हैं और दूसरा प्रेय होता हैं। यह श्रेयस्कर हैं। ऐसा जीवन श्रेष्ठ हैं। इन वृक्षों का जीवन ही श्रेष्ठ हैं या इनका जीवन सफल हैं। देहिनाम देहिषु कुछ देही अन्य देहियो की मदद करते हैं या कुछ उपकार का कार्य करते हैं। तो ऐतावत जन्म साफलयम चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा है bhārata-bhūmite haila manuṣya janma yāra janma sārthaka kari' kara para-upakāra (Chaitanya charitamrit adi leela 9.41) भारत भूमि में जन्म लिया हैं, तो अपने जीवन को सार्थक करो। जीवन को सार्थक करने के लिए क्या करना होगा? परोपकार करो और उपकार करो। जैसे एक व्यक्ति सिगरेट पीने जा रहा था। उसने सिगरेट निकाली, उंगलियों के बीच रखी,लेकिन उसके पास दियासलाई या लाइटर नहीं था। देख रहा था कि कोई मेरी मदद करें उसने किसी को कुछ कहा तो नहीं कि मेरी मदद करो लेकिन देखकर ही लोग समझ जाते हैं कि इस बेचारे के पास सिगरेट तो हैं, नहीं बिचारा नहीं भाग्यवान क्योंकि इसके पास सिगरेट हैं बीडी नहीं हैं,यह विशेष व्यक्ति हैं, इसलिए भाग्यवान हैं, यह कोई वीआईपी हैं, इसलिए बीड़ी नहीं सिगरेट पी रहा हैं। लेकिन बेचारे के पास लाइटर नहीं हैं, किसी को दया आ जाती हैं, वह आगे बढ़ता हैं और उसकी सिगरेट को जलाता हैं। जिसकी सिगरेट को जलाया वह कहते हैं थैंक यू ,थैंक यू और जिसने जलाई उसको भी लगता हैं कि मैंने बहुत बड़ा उपकार किया हैं, क्योंकि बदले में थैंक्यू थैंक्यू भी चल रहा हैं या मानो जिसकी सिगरेट जलाई वह कह रहा हैं कि थैंक यू इन एडवांस। अभी तो तुमने केवल मेरी सिगरेट जलाई हैं, इसी के साथ-साथ भविष्य में मेरे फेफड़े भी जलने वाले हैं और फिर अकाल मृत्यु होगी और मेरे शरीर को भी समय से पूर्व जलाया जाएगा। तो इस सारी व्यवस्था करने के लिए धन्यवाद और उस समय पर मैं तुम्हारा धन्यवाद करने के लिए नहीं आऊंगा इसलिए पहले से ही धन्यवाद थैंक यू, चलिए अभी थैंक्यू कर देता हूं। थैंक यू सर फॉर लाइटिंग माय सिगरेट। मेरी सिगरेट जलाने के लिए शुक्रिया और हमें यह भी नही पता कि हमें किसके ऊपर कैसे उपकार करना हैं, तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कहा हैं कि भारत में जन्मे हो और जन्म को सार्थक करना चाहते हो,जन्म को तो हर कोई सार्थक करना चाहता हैं।चाहता हैं,लेकिन सभी को पता नहीं है कि किस को उपकार कहा जाता हैं। हरि हरि। आप तो जानते ही होगे कैसे हम एक दूसरे की सहायता करते हैं, परोपकार करते हैं।अगर हमने सामने वाले व्यक्ति को माया ही दे दी तो वे उपकार नहीं अपकार होता हैं। उपसर्ग बदलने से मतलब बदल जाता हैं। एक होता हैं उपकार दूसरा अपकार।अब मतलब बात बिगाड़ दी हमने,उप मतलब उपकार किया तो मतलब कुछ फायदे की बात या कल्याण की बात, या श्रेयस्कर बात इसलिए कृष्ण ने कहा श्रेय-उत्तमम्, तो औरों को कृष्ण देना, माया नहीं देना उपकार हैं। लोग हमें माया देते रहते हैं। माया को ले लो, माया को ले लो, माया कई रूपों में आती हैं। तो माया को ही देना या माया की जो विषय हैं। उसी को ही शेयर करना यह अपकार हैं और औरों को कृष्ण को देना यह उपकार हैं। कृष्णा से तोमार कृष्ण दिते परो तोमार शक्ति आच्छे। कृष्ण आपके पास हैं और आप कृष्ण को दे सकते हो तो, हम कृष्ण कई रूपों में देते हैं तो यह कहलाता हैं उपकार और उसी से जीवन सफल होगा। तो कृष्ण को दो 'जा रे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश करो' हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे दो,यह महामंत्र दो लोगों को, थोड़ा समझाओ लोगों को, प्रचार करो और और लोगों को गीता भागवत देकर हम कृष्ण को दे सकते हैं।यह बहुत बड़ा उपकार हैं।पुस्तक वितरण करो।श्रील प्रभुपाद के ग्रंथों का वितरण करके हम कृष्ण को दे देते हैं।यह बहुत बड़ा उपकार हैं। अभी 1 दिसंबर से मैराथन भी शुरू होने वाला हैं। गीता वितरण का मैराथन समझते हो क्या?होलसेल में गीता वितरण और एक-दो दिन के लिए नहीं पूरे 30 दिन के लिए उपकार , की बात कर ही रहे हैं। ताकि हमारा जीवन सफल हो। आपने सोचा था कि नहीं कि क्या संकल्प लोगे?आपको पता हैं कि नहीं कि मैराथन भी कोई चीज होती हैं। तो तैयार हो जाइए, भगवद्गीता का वितरण बड़ी क्वांटिटी में करने के लिए तैयार हो जाइए। इस्कॉन के सारे मंदिर ग्लोबली तैयारी कर रहे हैं।बीबीटी तैयारी कर चुकी हैं।उन्होंने करोड़ों भगवद्गीता छाप दी हैं और आपकी जानकारी के लिए और स्फूर्ति के लिए इस वर्ष केवल भारत में ही 2100000 भगवद्गीता का वितरण करने का संकल्प हुआ हैं और योजना बन चुकी हैं। अभी अभी पिछले हफ्ते एक इष्ट गोष्टी में इस्कॉन भारत के लीडर,फॉलोअर ,मैनेजर और कुछ कॉन्ग्रीगेशन भी था। पता नहीं आप में से किसी ने उसे अटेंड किया भी या नहीं किया।लेकिन उसमें संकल्प लिया जा चुका हैं कि इस वर्ष 2100000 भगवद्गीता का वितरण करेंगे।उसमें से बताओ आप कितना करोगे? क्या आप अकेले 21 लाख भगवद्गीता करना चाहोगे? आप भी संकल्प ले लो और अपनी कृपा का प्रदर्शन करो इस दुनिया पर। आप अपनी तैयारी शुरू करो।आप जिस मंदिर के साथ जुड़े हो, उनके साथ मिलकर संर्पक करो और उन्हें पूरा करो। वैसे मंदिर वाले भी यहां बैठे हैं। स्ट्रेटजी के साथ वर्कआउट करो कि कौन कितने भगवद्गीता का वितरण और कहां करेंगे। मुकुंद माधव ने भी संकल्प लिया हैं। इस्कॉन पुणे,हदसर वाले कहते हैं कि हमने इतने हजारों भगवद गीता का वितरण करने का संकल्प लिया हैं। मुकुंद माधव ने मुझे समाचार भेजा हैं, तो उनकी सहायता करो जो भी पुणे बेस से हैं या हडदसर बेस से हैं। जो भी हमारा वहां का कॉन्ग्रीगेशन हैं,भक्त हैं,प्रभुपाद अनुगा हैं,शिष्य हैं। इस प्रकार कोई नागपुर के साथ जुड़ा हुआ हैं, कोई कोल्हापुर, कोई सोलापुर, कोई पंढरपुर, कोई नोएडा से हैं। तो हर इस्कान कार्य में आ रहा हैं।गीता वितरण के कार्य में लगने वाले हैं। गीता वितरण महा महोत्सव की जय।इसी के साथ इस्कान गीता जयंती भी मनाने वाला हैं,ताकि तमसो मा ज्योतिर्गमय।ए दुनिया वालों!अंधेरे में मत रहो।प्रकाश की ओर आओ।मतलब माया को त्यागो और कृष्ण को अपनाओ।कृष्ण की ओर आओ। जो हर चीज के स्त्रोत हैं। तमसो मा ज्योतिर्गमय। ऐसे कुरुक्षेत्र में ज्योतिसर भी हैं, सरोवर हैं। सर मतलब स्त्रोत होता हैं, जहां कुरुक्षेत्र में कृष्ण अर्जुन का संवाद हुआ,मतलब भगवद्गीता बोली गई। श्री भगवान उवाच हुआ। उस स्थान को ज्योतिसर भी कहते हैं।ज्योति का स्त्रोत, जहां कृष्ण ने भगवद्गीता बोली वह स्थान आज भी हैं। ठीक हैं। तो अब तैयार हो जाइए। आपसे दोबारा बात करेंगे। कुछ खबर देगें और कुछ खबर लेंगे़।पूरे महीने के लिए इस उपकार के कार्य में लगना हैं। गीता जयंती मैराथन की जय। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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