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जप चर्चा दिनांक 13 जुलाई 2021 870 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । हरि हरि । गौरांग , गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल । आप प्रसन्न होना ? क्यों ,क्या हुआ ? क्यों प्रसन्न हो ? कृष्णा वृंदावन लौट आए । आज कृष्ण कहां है? वृंदावन धाम की जय । आप भी बृजवासी ही हो । वृंदावन वासी ही हो । आप भी वृंदावन में हो । आप वृंदावन के ही हो और वृंदावन के कृष्ण लौट आए । कल सोलापुर में रथयात्रा हुई , वैसे जगन्नाथपुरी में हो ही रही थी , संख्या कुछ कम थी । दूरदर्शन में हम देख रहे थे , जगन्नाथ का दर्शन कर रहे थे । रथ यात्रा , कृष्ण गुंडेचा मंदिर पहुंच गए । सुंदर आंचल , यहां पर सोलापुर में भी हैं । मैंने उसमें सब भाग लिया , भक्तों से पूछ रहे थे अब रथ यात्रा कहा है ? अब रथ यात्रा कहा है? जब रथ यात्रा प्रारंभ हुई तब पूछा या मन में ही पूछा , ऐसा विचार आ रहा था अब रथ कहां है ? अब कृष्ण कहां है ? उत्तर था अब कुरुक्षेत्र मे है । या अब द्वारका में है । अब रथ कहां जा रहा है ? अब रथ वृंदावन की ओर जा रहा है । रथ को कौन खींच रहे हैं ? निश्चित ही ब्रजवासी खींच रहे हैं । राधा रानी है , गोपियां है । नंद बाबा , यशोदा मैया की जय । सारे सुदामा , श्रीदामा , अर्जुन , एक सखा अर्जुन भी है , भक्त हैं और कई सारे हैं । अष्ट सखा भी है , विशेष अष्ट सखा , अष्ट सखिया भी है और गाय , बैल ,बछड़े भी है वह भी कुरुक्षेत्र आए थे कृष्ण को मिलने के लिए , कृष्ण को वृंदावन ले जाने के लिए । सभी मिलकर वृंदावन जा रहे थे तब अंततोगत्वा जब रथ यात्रा का समर्पण हुआ तब पुनः प्रश्न हुआ कि अब रथ कहां है ? या अब कृष्ण कहां पहुंच गए ? उत्तर यह मिला कि वृंदावन धाम की जय । कृष्ण वृंदावन पहुंच गए । हरि हरि । बहुत समय के उपरांत , लगभग 100 वर्षों के उपरांत कृष्ण वृंदावन आ गए । हम जगन्नाथ रथ यात्रा में ऐसा अनुभव करते हैं । हम ब्रजवासीयो को जो कृष्ण के प्रकट लिला में संभव नहीं हुआ था , ब्रजवासी आए थे की अब हम हम कृष्ण को द्वारका नहीं लोटने देंगे , हमें कृष्ण कहां चाहिए ? हमें वृंदावन में कृष्ण चाहिए , गोकुल में हमको कृष्ण चाहिए , हमको नंदग्राम में कृष्ण चाहिए । केशी घाट बंसीवट द्वादश कानन जहाँ सब लीला खेला नंदनंदन । द्वादश काननो में , 12 वनों में हम कृष्ण को देखना चाहते हैं , चाहती हैं । ऐसे संकल्प लेकर बृजवासी वृंदावन से कुरुक्षेत्र आये । वैसे द्वारिका से कृष्ण प्रस्थान करने के पहले यह सब उसका इतिहास हम सुन रहे हैं या मेरे मन में आ रहा है । जो लीला प्रकाशित हो रही है , द्वारकाधीश कहना उचित होगा जब वह कुरुक्षेत्र जाने वाले थे , सूर्य ग्रहण के समय उनको कुरुक्षेत्र के सूर्यकुंड में स्नान करना था तब सभी द्वारका वासियों के साथ आये । कुछ ही द्वारका में रहेंगे , राधा कृष्ण का कारोबार व्यवस्था संभालने के लिए । कुछ द्वारका वासी द्वारका में रहेंगे अधिकतर कुरुक्षेत्र जाने वाले थे , आपने पहले कभी मुझसे सुना होगा या कहीं पढ़ा होगा कृष्ण ने एक पत्र लिखा था , "आप वृंदावन वासी आजाओ , हे राधे , हे गोपियां , हे मेरे प्रिय नंदबाबा" वसुदेव उनके साथ ही थे आप जानते हो । वसुदेव देवकी द्वारिका में ही थे और नंदबाबा बेचारे वृंदावन में रह गए , वृंदावन को कभी छोडा नहीं । द्वारकाधीश ने एक एक के नाम से पत्र लिखे थे और उन्होंने पोस्टमैन के साथ पत्र भेजे थे । एक समय पोस्टमन ठीक है , यह सब कहने की कोई जरूरत नहीं है ।हरि हरि । पत्र भेजा और पत्र में लिखा था कि आप मुझे , द्वारकाधीश जानते ही थे वृंदावन वासी विरह की व्यथा से मर रहे हैं । वीरह की ज्वाला में जल रहे हैं हरि हरि। जब बस वह चाहते हैं , उन्हीं को चाहते हैं , उन्हीं का दर्शन चाहते हैं , उन्हीं का सानिध्य चाहते हैं , यह कृष्ण जानते थे इसलिए उन्होंने पत्र लिखा और कहा की "मैं कुरुक्षेत्र आ ही रहा हूं तो आज आ जाइये" ऐसे ही वह पोस्टमन आ गया और उन्होंने सारे घरों में पत्र की डिलीवरी की और जब यह पत्र पढ़े तब सारे ब्रजवासी , सभी के सभी तैयार हुए और सभी के सभी अब कुरुक्षेत्र आ रहे हैं , इस संकल्प के साथ कि जब इस समय कृष्णा को मिलेंगे तो हम उनको वृंदावन ही ले आएंगे । लेकिन हम जानते हैं कि ऐसा हुआ नहीं , कृष्ण ने पुनः कहा । पहले भी कहा था आ जाऊंगा ,आऊंगा , जब वह वृंदावन से मथुरा के लिए प्रस्थान कर रहे थे तब गोपिया कृष्ण बलराम के उस रथ को खूब रोक रही थी जिसको को अक्रूर चला रहे थे । उनको कह रहे थे , "तुम कैसे हो अक्रूर ? तुम तो क्रूर हो । भैया , किसने रखा तुम्हारा नाम अक्रूर ? हमारे प्राणनाथ को तुम लेकर जा रहे हो ।" जाते-जाते कृष्ण ने उन गोपियों को संदेश दिया , स्वयं नहीं कहा , एक दूत को यह संदेश दिया कि सब गोपियों को कह देना , क्या कहोगे ? आयासे , मैं आऊंगा ऐसा कह दो , वह पहली बार था जब कृष्ण ने कहा था मैं आ जाऊंगा। हरी हरी। फिर कृष्ण और बलराम मथुरा गए , कुछ लोग वैसे मथुरा में गए थे । मथुरा में उत्सव होने वाला था वह धूर्त ने बहाना बनाया था और बुलाया था , उत्सव होगा , धनुरयज्ञ होगा , कुश्ती का जंगी मैदान होगा , तब सभी गए थे नंदबाबा इत्यादि भक्त बृजवासी , कई सारे ग्वाल बाल भी गए थे । गए , रहे उत्सव भी हुआ और कंस का वध भी हुआ और पुनः वृंदावन लौटते समय जब आया तब सब ब्रजवासी लौटने की तैयारी में थे । स्वाभाविक ही और दूसरा कुछ विचार था ही नहीं , कृष्ण बलराम भी साथ ही आ जाएंगे । लेकिन वैसा नहीं हुआ तब उस समय कृष्णने पुनः कहा , दृश्यम एशाम , आप सब को देखने के लिए , मिलने के लिए मैं आ जाऊंगा । यह भेट ले लो , कई सारे भेट वस्तु कृष्ण ने दे दिए , करुणा हेतु कहो और आप जब लोटोगे जो जो वृंदावन में प्रतीक्षा में है वह भी दुखी होंगे इस बात से कि कृष्ण बलराम नहीं लौटे । यह उनको भी दे देना , यह प्रसाद उनको भी दे देना , यह सारे तोहफे वगैरे दे दिये और कह दिया कि हम आ जाएंगे । इस प्रकार दो बार कृष्ण ने कहा था कि मैं आ जाऊंगा , मैं वृंदावन लौटूंगा । वैसे कृष्ण (हंसते हुए) यहा अब कुरुक्षेत्र में मिले हैं , अब वृंदावन वासी कृष्ण को वृंदावन ले आने के लिए वहां पहुंचे थे किंतु अब तीसरी बार अब कृष्ण कहने वाले हैं , कह भी दिया कि मैं आऊंगा । चैतन्य चरितामृत में हमने वह संवाद पड़ा है लेकिन भागवत में वह संवाद का विस्तृत में वर्णन सुखदेव गोस्वामीने नहीं किया है लेकिन कृष्णादास कविराज गोस्वामी चैतन्य चरितामृत में रथ यात्रा के समय , चैतन्य महाप्रभु राधा भाव में और जगन्नाथ हे कृष्ण उनके मध्य का जो संवाद है , जो कृष्ण संवाद कुरुक्षेत्र में हुआ था वहीं संवाद अब यहाँ रथ यात्रा के प्रारंभ में हो रहा था वैसे वहां पर स्पष्ट लिखा है कृष्ण ने कहा है , और भी कुछ राक्षसों का वध करना बाकी है वह होते ही मैं आ जाऊंगा , मैं लौटूंगा । यह तीसरा वचन था , पुनः ऐसा वचन देकर द्वारकाधीश द्वारिका ही लौटे थे । रूप गोस्वामी प्रभुपाद अपने भाष्यों में लिखते हैं कि वैसे कृष्ण पर विश्वास रख सकते है , कृष्णा ने वचन दिया है तो कृष्ण को जरूर लौटना ही है , कृष्ण जरूर लौटने वाले हैं । पहली बार , दूसरी बार फिर तीसरी बार ऐसे तीन बार उन्होंने वचन दिया था कि मैं लौटूंगा तो उनको आना ही है , वह जरूर लौटेंगे , जरूर लौटेंगे । इसस प्रकार से उसका वर्णन हम यहां जगन्नाथपुरी में रथ यात्रा में एक प्रकार से वह बृजवासी उनको गुंडिचा मंदिर ले गए । गुंडिचा मंदिर ही वृंदावन है । एक रथ में कृष्ण बैठे थे , बलराम दूसरे रथ में , सुभद्रा तीसरे रथ में और उन रथोंको खींचकर बृजवासी कृष्ण बलराम सुभद्रा को वृंदावन ले आए , यह लीला जगन्नाथपुरी की है । ऐसा घटनाक्रम कहो वह लीला जगन्नाथ पुरी धाम में संपन्न हुई किंतु प्रकट लीला में जो हुआ वह कुछ भिन्य वर्णन है या लीला है । कृष्ण द्वारका लौटते हैं उन्होंने कहा ही था कुछ राक्षस बचे हैं । परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || (भगवद्गीता 4.8) अनुवाद भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | विनाशाय च दुष्कृताम् होतेही में लौटूंगा । भगवान शिशुपाल का हस्तिनापुर में वध करते हैं । इस बात का पता दन्तवक्रा को चलता है , जो दन्तवक्र मथुरा के पास उन दिनों में रहते थे । बात का पता में रहते थे । मथुरा के पास एक दतिया नाम का स्थान है । ह मतलब हत्या जहां दंतवक्र की हत्या हुई थी । हम जब ब्रजमंडल परिक्रमा में जाते हैं तब इसका उल्लेख होता है । हरि हरि । जिस दिन हम राधा कुंड पहुंचते हैं तब रास्ते में वहां दतिया ग्राम आता है । हरि हरि । केशरी ग्राम जहां पूतना का भी गांव है । वहीं पर दतिया , यह दंतवर्क को शिशुपाल के वध का पता चलता है । यह शिशुपाल और दंतवक्र भाई भाई थे और यही जय विजय थे , यही हिरण्यकश्यपु और हिरण्याक्ष थे यही रावण और कुंभकरण त्रेतायुग में थे । और वही थे द्वापर युग में शिशुपाल और दन्तवक्र । दन्तवक्र को शिशुपाल के वध का समाचार मिलता है वह दन्तवक्र बोहोत क्रोधित होता है और जिस ने शिशुपाल का वध किया उसका मैं वध करूंगा , उसकी जान मैं लूंगा ऐसा संकल्प लेकर वह द्वारका जाना चाहता था लेकिन इतना क्रोध , इतना क्रोध और जब क्रोध इतना आ जाता है , बढ़ जाता है तब व्यक्ति को क्रोधान्त हो जाता है , क्रोधान्त कहते है , मधान्त , कामान्ध , वह अंधा हो गया उसमें इंद्रियों की दिशा खो दी । वह द्वारका आना चाहता था लेकिन ऐसे ही चकर मार रहा था गोल गोल चक्र काट रहा था क्योंकि वह क्रोध के कारण अंधा ही हो गया , दिशा का कुछ ज्ञान नहीं हो रहा था, उस समय नारद मुनि आ गए " मैं आपकी मदद कर सकता हूं? " उन्होंने पूछा कि क्या मैं आपकी कुछ सहायता कर सकता हूं ? तब दन्तवक्र ने कहा , हाँ ! निश्चित ही , मैं उस द्वारकाधीश का वध करना चाहता हूं (हंसते हुए) नारद मुनि ने कहा कि मैं आपका काम थोड़ा आसान कर सकता हूं । आपको द्वारका जाने की आवश्यकता नहीं है, मैं स्वयं ही जाकर द्वारकाधीश को बताऊंगा कि ऐसा फलाना व्यक्ति आपका वध करना चाहता है । कृपया उसके पास जाइए उसको आपका वध करने दीजिए । वैसे ही कुछ हुआ , नारद मुनि द्वारका जाते हैं नारायण नारायण कहते हुए । नारद मुनि बाजाय विणा राधिका-रमण-नामे। नाम आमनि उदित हय, भकत-गीत-सामे॥ अनुवाद:- जैसे ही महान संत नारदजी अपने वाद्य यंत्र वीणा बजाते हैं, और “राधिका-रमण” नाम का उच्चारण करते हैं, भगवान का पवित्र नाम भक्तों के कीर्तन के बीच में स्वयं ही प्रकट हो जाता है। ऐसे नारद मुनि राधा कृष्ण के भी गुण गाते हैं । केवल नारायण के ही नहीं वह राधा कृष्ण के भी भक्त है । हरी हरी । द्वारकाधीश को उन्होंने यह समाचार दिया , द्वारकाधीश तैयार हुए । द्वारकाधीश दतिया ग्राम आए और अब वह दोनों की लड़ाई हो रही है , युद्ध हो रहा है । तब किसने किसका वध किया होगा ? भगवान का कभी वध होता है क्या? कोई वध कर सकता है क्या? केवल असुर ही ऐसा सोच सकता है कि मैं कृष्ण का वध करूंगा , मैं कृष्ण को मारूँगा । या जो भौतिक वादी शास्त्रग्य मंडली हैं और भी कई है भगवान नहीं है , भगवान नहीं है प्रचार करके वैसे वह भगवान का वध करने का प्रयास ही करते हैं । ठीक है । हरे कृष्ण । दन्तवक्र का वध हुआ और फिर इस समय कृष्ण मथुरा में जो विश्राम घाट है , उस विश्राम घाट पर पहुंच जाते हैं और वहां पहुंच कर अपने जो सारे हथियार हैं , शस्त्र अस्त्र है उसका वहा जमुना में विसर्जन करते हैं क्योंकि जितने कृष्ण के हिट लिस्ट में थे , समझते हो? इसका वध करना है, इसका बात करना , जरासंध का वध करना है , मूर का करना है , मुझे मुरारी बनना है तो जितने सारे असुर थे उन सभी के वध का कार्य पूरा हो चुका था । सूची में दंतवक्र आखिरी था तब इस शस्त्र अस्त्र से क्या करेंगे ? इसलिये जमुना में उनको फेंक दिया विसर्जन हुआ और इस समय कृष्ण अब अपना जो वचन था , उन्होंने उनका वचन निभाया । कृष्ण मथुरा से सीधे वृंदावन जाते हैं । अपने रथ में विराजमान है और वृंदावन के रास्ते में शंख ध्वनि भी हो रही है , शंखनाद सुनने से सबको पता भी चला कि यह कृष्ण के पंचजन्य शंख की ध्वनि है , सभी बृजवासी प्रसन्न है । वृंदावन वासियों के भाग्य का उदय आज खुलने वाला था , यह हुआ था कि जो ब्रजवासी कुरुक्षेत्र गए थे और जब कृष्ण ने कहा कि मैं आ जाऊंगा तब बृजवासी वृंदावन लौट तो गए लेकिन कोई अपने घर पर नहीं गया । वृंदावन के प्रवेश द्वार पर ही बृजवासी रुके रहे , उन्होंने सोचा कि कृष्ण ने कहा है कि मैं आ जाऊंगा , मैं आ जाऊंगा फिर उनको तो आना ही है और वह कभी भी आ सकते हैं , हमें तैयार रहना ही उचित होगा । हम को उनके स्वागत के लिए तैयार होना चाहिए , हम काम धंधे में व्यस्थ नहीं रहना चाहते , इतने में कृष्ण आ गए और स्वागत के लिए कोई है नहीं । सारे ब्रजवासी उत्कंठित भी थे और कृष्ण पर उनका विश्वास था । उन्होंने कहा है कि आ जाऊंगा फिर आएंगे ही । ठीक है कल नहीं आये तो आज जरूर आएंगे , ठीक है आज प्रातकाल नहीं है तो मध्यान्त तक तो आना है , ठीक है मध्यान्त तक नहीं आये सायंकाल को जरूर आएंगे । हर समय , हर क्षण , प्रतिक्षण कृष्ण की उनको प्रतीक्षा थी । अब जब कृष्ण के शंख की ध्वनि को सुना तब उनके जान में जान आई और अंत में हो सकता है कि पहले शंख का नाद सुन रहे थे फिर अब रथ और भी पास आ रहा है तो रथ के पहिए से काफी धूल उड़ रही है , उन्होंने उसको देखा होगा आकाश में देखो , देखो , देखो । यह धूल किसकी हो सकती है ? भगवान के रथ के पहिए से आसमान में उड़ी यह धूल है । रथ और पास आ रहा था , और पास आया था , और पास आ रहा था और जब रथ सामने आ ही गया तब सब इतने बेहद खुश थे , सभी कहने लगे आयोरे , आयोरे , आयोरे , आ गए रे , वह आ गए , वह लौट आए । वृंदावन में एक स्थान या एक ग्राम भी है जिसका नाम आयोरे ग्राम है । आयोरे ग्राम , क्या नाम है ?आयोरे ग्राम । ऐसेही ब्रज में नाम है , लीला के संबंधित नाम है । आयोरे ग्राम में फिर कृष्ण और बृजवासी का मिलन हुआ है , महामिलन हुआ है , मिलनोत्सव हुआ । वैसे ही यह जो जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव है यह भी कृष्ण और ब्रजवासी का मिलनोत्सव ही है । कृष्ण का मिलन वृंदावन में ब्रजवासियों के साथ हुआ , जगन्नाथ पूरी में कृष्ण वृंदावन में आए हैं , गुंडिचा मंदिर पहुंचे हैं । गुंडिचा मंदिर वृंदावन है या गुंडीचा सुंदराचल है । जगन्नाथ पुरी का सुंदराचल गुंडिचा है । वह कैसे आए ? रथ में बैठे थे और उनको खींचकर आए , रथ को खींचकर बृजवासी वृंदावन ले आए । वह एक वर्णन है , दूसरा प्रगट लीला में यह भी वर्णन है , कृष्ण स्वयं कुरुक्षेत्र से द्वारिका लौटे थे फिर द्वारिका से वह मथुरा के पास आ जाते हैं , दंतवक्र का वध होता है और विश्राम घाट में सारे शस्त्रों का विसर्जन होता है , वहां से अपने रथ में बैठ के , उस रथ को कोई ब्रजवासी वगैरा खींच नहीं रहा है । कृष्ण के रथ के घोड़े ही खींच रहे हैं , उसको दौड़ा रहे हैं और दौड़ के कृष्ण को वृंदावन में पहुंचाया है और वहां ब्रज वासियों के साथ कृष्ण का मिलन हुआ है । हरि हरि । जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव की जय । कृष्ण का स्वयं का रथ वही रथयात्रा रही । कृष्ण द्वारका से दतिया ग्राम आए और वहां से विश्राम घाट से वृंदावन यात्रा , उस यात्रा भी रथ था , रथयात्रा महोत्सव की जय । दो रथ यात्रा , दोनों की भी जय । कृष्णा वृंदावन पहुंच यह महत्वपूर्ण है , कैसे आए हैं वगैरा विस्तार में थोड़ा अंतर है लेकिन महत्वपूर्ण बात तो यह है कि कृष्ण वृंदावन आए । अन्येर हृदय -मन , मोर मन -वृन्दावन , ' मने ' वने ' एक करि ' जानि । ताहाँ तोमार पद - द्वय , कराह नदि उदय , तबे तोमार पूर्ण कृपा मानि ॥ (चैतन्य चरितामृत मध्य 13.137) अनुवाद:- श्रीमती राधारानी के भाव में श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा , “ अधिकांश लोगों के लिए मन तथा हृदय एक होते हैं , किन्तु मेरा मन कभी भी वृन्दावन से अलग नहीं होता , अतएव मैं अपने मन और वृन्दावन को एक मानती हूँ । मेरा मन पहले से वृन्दावन है और चूँकि आप वृन्दावन को पसन्द करते हैं , तो क्या आप अपने चरणकमल वहाँ रखेंगे ? इसे मैं आपकी पूर्ण कृपा मानूँगी । जैसे चैतन्य महाप्रभु कह रहे थे । रथ यात्रा के समय मेरा मन ही वृंदावन है , हमको भी अपने मन को वृंदावन बनाकर उस वृंदावन में कृष्ण का प्रवेश हो । श्लोक ३३ कृष्ण त्वदीयपदपङ्कजपञ्जरान्त मद्यैव मे विशतु मानसराजहंसः प्राणप्रयाणसमये कफवातपित्तैः कण्ठावरोधनविधौ स्मरणं कुतस्ते ॥ (मुकुण्डमाला 33) अनुवाद :-हे भगवान् कृष्ण , इस समय मेरे मन रूपी राजहंस को अपने चरणकमल के डण्ठल के जाल में प्रवेश करने दें । मृत्यु के समय जब मेरा गला कफ , वात तथा पित्त से अवरुद्ध हो जाएगा , तब मेरे लिए आपका स्मरण करना कैसे सम्भव हो सकेगा ? राजा कूलशेखर की प्रार्थना भी है , ऐसा हम कुछ तालमेल , मेलजोल करके हमें इसमें से मेरे लिए क्या है ? यह रथ यात्रा हुई । कृष्ण रथ में बैठे थे जगन्नाथपुरी में उनको खींचकर लाए बृजवासी उनको गुंडिचा मंदिर लाए । कृष्ण भी रथ में बैठकर स्वयं ही द्वारिका से मथुरा और मथुरा से वृंदावन आए लेकिन फिर हमारे लिए क्या है ? वह तो हुआ , वह लीला हुई । एक जगन्नाथपुरी में हुई , दूसरी वृंदावन में हुई । हमारे लिए क्या है? हमारा फायदा क्या है ? हमारा लाभ क्या है ? ब्रज वासियों को तो भगवान मिले , बृजवासी और कृष्ण का मिलन हुआ , वह भी अच्छी बात है उसमें भी हम खुशियां मना सकते हैं लेकिन मेरे लिए क्या है ? मेरा मिलन हो रहा है कि नहीं ? हम भी तो प्रतीक्षा में हैं । उसके लिए फिर यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। भी है और बहुत कुछ है । यह सब करते समय चेतोदर्पन मार्जन करके , अपने चेतना का मार्जन सफाई स्वच्छता करे ताकि उस स्वच्छ पवित्र मन में , वन में , वृंदावन में हमारे हृदय प्रांगण को साफ करके रखेंगे फिर कृष्ण वहां आकर विराजमान होंगे । हम जो जीव है , हम जो हैं कृष्ण के , कृष्ण के ही है । हमको कृष्ण मिलेंगे , कृष्ण प्राप्त होंगे , मिलन होगा यही हमारा भी लक्ष्य है या होना चाहिए । ठीक है । गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ।

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