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जप * चर्चा अरावड़े धाम से 07 जुलाई 2021 हरे कृष्ण ! आज 900 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। आपने सुना ? हरे कृष्ण गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ! *क्षान्तिरव्यर्थ - कालत्वं विरक्तिर्मान - शून्यता । आशा - बन्धः समुत्कण्ठा नाम - गाने सदा रुचिः ।।* *आसक्तिस्तद्गुणाख्याने प्रीतिस्तद्वसति - स्थले । इत्यादयोऽनुभावाः स्युर्जात - भावारे जने।।* ( एम 23.18-19) अनुवाद : जब कृष्ण के लिए भावरूपी बीज का अंकुरण होता है, तब मनुष्य के स्वभाव में नौ लक्षण प्रकट होते हैं । ये हैं- क्षमाशीलता, समय को व्यर्थ न गंवाने के प्रति सतर्कता, विरक्ति , मिथ्या मान का अभाव, आशा, उत्सुकता, भगवान के पवित्र नाम का कीर्तन करने के लिए रुचि , भगवान के दिव्य गुणों के वर्णन के प्रति अनुरक्ति, भगवान् के निवास स्थानों यथा मन्दिर या वृन्दावन जैसे तीर्थस्थान के प्रति स्नेहा ये अनुभाव अर्थात् उत्कट भाव के गौण लक्षण कहलाते हैं । ये सब अनुभाव उस व्यक्ति के हृदय में दृष्टिगोचर होते हैं , जिसमें भगवत्प्रेम अंकुरित होना शुरू हो गया होता है । काल का अपव्यय ना करना उचित है। समय का अपव्यय, समय को फालतू नहीं गंवाना नॉट वेस्टिंग टाइम- अव्यर्थ - कालत्वं ऐसे भक्तों का लक्षण बताया है काल का वे अपव्यय नहीं करते। कल मैं सुन रहा था भक्ति सिद्धांतों के प्रमाण, भक्ति के सिद्धांत, भक्तिरसामृत सिंधु देख रहे हो इसमें भक्ति के 64 अंग (आइटम) बताएं हैं (लिखे हैं)। उसमें से एक अंग है "एकादशी", एकादशी के दिन उपवास करना उसके संबंध में जो महिमा कहो यहां लिखी है उसको पढ़ लूंगा और फिर अपना टॉपिक अव्यर्थ - कालत्वं है यह विषय है। उसकी ओर मुड़ते हैं। समय भी बलवान है और देखते हैं कैसे उसका सदुपयोग हम कर सकते हैं। भगवान भी काल है, काल भगवान की जय ! ब्रह्म वैवर्त पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति एकादशी के दिन उपवास करता है वह सारे पापों से मुक्त हो जाता है। (एक एक बात को आप नोट करते जाइए ईथर मेन्टल नोट्स और आप लिख सकते हो) और पवित्र जीवन में अग्रसर होता है। पापों से मुक्त होता है, पवित्र जीवन में अग्रसर होता है। मूल सिद्धांत केवल उपवास करना नहीं है अपितु गोविंद या कृष्ण के प्रति श्रद्धा या प्रेम बढ़ाना है। एकादशी के दिन उपवास करने का असली कारण है इसको अभी सुनिएगा, इस बात ने मेरा ध्यान कल आकृष्ट किया। टाइम यह समय का टॉपिक खोल रहा हूं तो असली कारण है एकादशी के दिन उपवास करने का शरीर की आवश्कताओ को कम करना, श्रवण और कीर्तन या अन्य कार्यों से अपने को भगवान की सेवा में लगाना, उपवास के दिन भगवान की लीलाओं का स्मरण करना, और उनके पवित्र नाम का निरंतर श्रवण करना सर्वश्रेष्ठ होता है। आवश्यकता को कम करना असली कारण बता रहे हैं, शरीर की आवश्यकता को कम करना और कीर्तनीय या अन्य कार्यों को भगवान की सेवा में लगाना ऐसा बता रहे हैं। आवश्यकताओं को एकादशी के दिन कम किया तो समय की बचत हुई, समय बच गया और उस समय का उपयोग फिर श्रवण कीर्तन या भक्ति के प्रकारों में इत्यादि करना है। हरि हरि ! *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* इस महामंत्र का हम उच्चारण करते हैं ऐसा भी मेरा विचार है यह काफी बड़ा समय है। महामंत्र को हरे से शुरुआत करके और अंत में भी हरे यह जो 16 नामों का उच्चारण करते हैं यह बहुत अधिक समय है। यदि हम ध्यान पूर्वक जप कर रहे हैं तो इस बात का हम अनुभव करेंगे या मैं करता हूं कि यह बहुत समय है। एक मंत्र का उच्चारण हम करते हैं यह बहुत समय है और फिर यह जो समय है इसका भी हमें सदुपयोग करना है। गवाना नहीं है, खोना नहीं है। नॉट वेस्टिंग टाइम, महामंत्र के समय, मतलब हर महामंत्र के, हर महा मंत्र नहीं है महामंत्र तो एक ही है हर मंत्र हर समय जब महा मंत्र का उच्चारण करते हैं एक-एक महामंत्र का हरे कृष्ण महामंत्र का, उस समय को भी हम कैसे उपयोग करें, ध्यान पूर्वक जप किया अर्थात सदुपयोग हुआ और माइंड लैस चैटिंग और यदि ध्यान नहीं है तो अपने समय का हमने दुरुपयोग किया। मैं यह भी पढ़ रहा था कुछ समय पहले जिस वचन को श्रील प्रभुपाद शायद वो चाणक्य नीति का एकवचन है। *क्षण एकोपि न लभ्यः स्वर्ण कोटिभिः* एक क्षण भी जो हाथ से गवायां वह छूट गया पुन: उस क्षण को हम प्राप्त नहीं कर सकते। आप कहोगे या कहा है इस वचन में, स्वर्णकोटिभिः मेरे पास कई सारी स्वर्ण मुद्राएं हैं या कोटि-कोटि स्वर्ण मुद्राएं ले लो, आज कल के नोट की कोई कीमत ही नहीं है, मेरे पास बहुत सारे गोल्ड कोइंस हैं , उसको ले लो और मुझे समय वापस करा दो , मुझे समय वापिस दे दो। ऐसा संभव नहीं है। एक एक क्षण की कीमत या मूल्य, मैं कहने जा रहा था कोटि कोटि स्वर्ण मुद्राओं से भी अधिक है यह समय है वैसे हम मूल्य चुका ही नहीं सकते कि हम समय को खरीद सके या समय को वापस ले लें। समय इतना मूल्यवान है और होना भी चाहिए। समय भगवान है। श्रीभगवानुवाच *कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः । ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।* (श्रीमद भगवद्गीता ११. ३२) अनुवाद- भगवान् ने कहा – समस्त जगतों को विनष्ट करने वाला काल मैं हूँ और मैं यहाँ समस्त लोगों का विनाश करने के लिए आया हूँ । तुम्हारे (पाण्डवों के) सिवाय दोनों पक्षों के सारे योद्धा मारे जाएँगे । मैं कौन हूं ? मैं समय हूं। आईएम टाइम , काल का एक अर्थ तो *मृत्यु: सर्वहरश्र्चाहमुद्भवश्र्च भविष्यताम् । कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ।।* (श्रीमद भगवद्गीता १०.३४) अनुवाद- मैं सर्वभक्षी मृत्यु हूँ और मैं ही आगे होने वालों को उत्पन्न करने वाला हूँ | स्त्रियों में मैं कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति तथा क्षमा हूँ | “ मृत्यु: सर्वहरश्र्चाहमुद्भवश्र्च हमने काल का दुरुपयोग किया , फिर भगवान काल बनके हमको दर्शन देंगे, मैं मृत्यु भी हूं कहते हैं, मैं मृत्यु के रूप में आता हूं, मैं मृत्यु बनता हूं ,मैं काल बनता हूं और सर्वहरश्र्चाहमुद्भवश्र्च तुमने जो जुटाया है, जो इकट्ठा किया है उसको लात मार के मैं बाहर करता हूं और तथाकथित तुम्हारी संपत्ति को मैं छीन लेता हूं। तुम चोर थे। यह संपत्ति तुम्हारी नहीं है। तुमने कभी स्वीकार नहीं किया, नहीं समझा, यह संपत्ति का मालिक मैं हूं। *भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्।सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति।।* (श्रीमद भगवद्गीता ५ .२९) अनुवाद- मुझे समस्त यज्ञों तथा तपस्याओं का परम का भोक्ता और समस्त लोकों देवताओं का परमेश्वर एवं समस्त जीवों का उपकारी एवं हितैषी जानकार मेरे भावनामृत से पूर्ण पुरुष भौतिक दुखों से शान्ति लाभ को प्राप्त करता है।। मैं स्वामी हूँ, हमें समय का सदुपयोग करना चाहिए। रेल के सफर में लोग टाइम पास मूंगफली, मूंगफली वाला आता है ट्रेन का सफर बीत नहीं रहा है मूंगफली लेनी है, लंबा सफर है और टाइमपास मूंगफली खाकर और पता नहीं क्या-क्या करते हुए अपने समय को गवांते हैं। शुकदेव गोस्वामी ने भी यहां कहा, अभी-अभी प्रवचन शुरू हुआ है "ओम नमो भगवते वासुदेवाय: " शुकदेव गोस्वामी की कथा प्रारंभ हुई, शुरुआत में उन्होंने कहा , *निद्रया हियते नक्तं व्यवायेन च वा वयः । दिवा चार्थेहया राजन् कुटुम्ब भरणेन वा ॥* (श्रीमद भागवतम २.१.३) अनुवाद- ऐसे ईर्ष्यालु गृहस्थ ( गृहमेधी ) का जीवन रात्रि में या तो सोने या मैथुन में रत रहने तथा दिन में धन कमाने या परिवार के सदस्यों का भरण - पोषण में बीतता है । मतलब सोते हुए लोग क्या करते हैं नक्तं अर्थात रात्रि को सोकर, ऐसे गवाते हैं। हरि हरि! व्यवायेन च वा वयः पूरी आयु व्यवायेन मतलब व्यभिचार से या मैथुन आनंद में या फिर रात या दिन में भी, इस प्रकार सारी आयु को गवाते हैं। यहाँ दो बातों का उल्लेख किया, निद्रया हियते एक तरफ सो के या फिर व्यवायेन मैथुन आदि क्रियाओं में, मतलब खान में पान में, तुमको देखना है कि हम अपनी रात का उपयोग कैसे करते हैं। निद्रा में करते हैं। सुना तो होगा ही, इस सिद्धांत को कैसे प्रयोग में लाना है, ज्ञान कैसे कराना है इस पर फिर भाष्य और ज्ञान देना पड़ता है और आवश्यक भी है। ज्ञान अविज्ञान, नॉलेज को कैसे अप्लाई करना है और उसको अमल करना है। यहां शुकदेव गोस्वामी ने कहा, रात बिताते हैं सोने में फिर समझाना होता है। सुना तो है, फिर थोड़ी नींद को कम करो अर्ली टू बेड अर्ली टू राइज मेक्स मेन हेल्दी वेल्थी एंड वॉइस अंग्रेजी में भी कहावत कही गई। थोड़ा जल्दी सो जाओ, क्योंकि लेट नाइट इसलिए लेट नाइट पार्टी है , मूवी देखनी है यह है वह है और मैथुन आनंद भी है। अर्ली टू बेड दूसरे जो काम धंधे हैं वह कम हो जाएंगे, शरीर की जो मांगे हैं या उसकी आवश्यकताएं हैं हम पूर्ति नहीं करेंगे, बस सोएंगे, हम जल्दी सोएंगे जल्दी उठेंगे, समय को बचाना है और समय को बचा के उस समय का उपयोग करना है भक्ति में, या भक्ति के अंगों में और कुछ लोगों के लिए या अधिकतर लोगों के लिए जब वह टाइम की बात करते हैं तो कहते हैं टाइम इज मनी, अर्थात समय का उपयोग धन कमाने में, टाइम इज इक्वल टू मनी, समय ही धन है। समय का उपयोग यदि किसी ने, उस व्यक्ति ने, धन कमाने के लिए नहीं किया तो ही इज़ वेस्टिंग हिज टाइम, समय को बर्बाद कर रहा है क्यों ? क्योंकि धन नहीं कमा रहा है। टाइम इज मनी ऐसा उसके दिमाग में उसी खोपड़ी में घुसा हुआ है। लेकिन दूसरा जो कृष्ण भावना भावित भक्त होते हैं वह क्या कहते हैं "टाइम इज कृष्ण", नोट करो। एक दुनिया के लिए टाइम इज मनी और कृष्ण भावना भावित भक्त कहते हैं टाइम इज कृष्ण अर्थात समय का उपयोग हमने कृष्ण अर्जन के लिए या कृष्ण प्राप्ति के लिए नहीं किया तो फिर क्या किया, हमने समय को गवाया। इस प्रकार के दो उदाहरण दिए इस प्रकार के दो मूल्यांकन होते हैं समय का भी मूल्य एक के लिए समय ही धन है टाइम इज मनी और दूसरे के लिए टाइम इज कृष्ण, चॉइस आपकी ही होती है कि हम किस पक्ष के हैं या हमारी क्या मान्यताएं हैं या इस समय को कैसे मूल्यांकन करते हैं। इसकी कीमत कैसे समझते हैं इसका उपयोग हमें कैसे करना चाहिए हरि हरि ! *कृष्ण-सू़र्य़-सम;माया हय अन्धकार।य़ाहाँ कृष्ण, ताहाँ नाहि मायार अधिकार।।* (श्रीचैतन्य-चरितामृत, मध्य लीला, 22.31) अनुवाद:-कृष्ण सूर्य के समान है और माया अंधकार के समान है। जहांँ कहीं सूर्यप्रकाश है वहांँ अंधकार नहीं हो सकता। ज्योंही भक्त कृष्णभावनामृत अपनाता है, त्योंही माया का अंधकार (बहिरंगा शक्ति का प्रभाव) तुरंत नष्ट हो जाता है। कृष्ण सूर्य सम भी कहा है, कृष्ण कैसे हैं सूर्य के समान है, माया है अंधकार तो हमको *असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्तोतिर्गमय ॥ मृत्योर् मा अमृतं गमय । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥* हे मनुष्य एक तो समझ ले वह तो कहा ही है। वरान निगोधका उत्तिष्ठ जागृत, उठो जागो हे जीव और समझो तुमको वरदान मिल चुका है। वरदान , उस वरदराज ने तुम्हें वरदान दिया है। क्या वरदान है ? कि मनुष्य जीवन वरदान है वरान निगोधका, मनुष्य जीवन भी दिया है और यह कृष्ण कॉन्शसनेस मूवमेंट हरे कृष्ण आंदोलन भी भगवान की व्यवस्था है और उसमें कई सारे श्रील प्रभुपाद की जय !उन्होंने सारी व्यवस्था करके रखी है उपलब्ध है साधु संग करोहे मनुष्य और वह भी वरदान है साधु संग प्राप्त होता है तुम अब कीर्तन कर सकते हो अब तुम जप कर सकते हो और वैसे तुमको भगवान ने ही भाग्यवान बनाया है गुरुजनों के पास पहुंचाया है यह वरदान है। उन्होंने तुम्हें महामंत्र दिया है और सेवा भी है साधना भी है वरदराज ने वरदान दिया है। उत्तिष्ठ जागो, इन वरों को प्राप्त करो ,वरदान मिला है इन को समझो इस मनुष्य जीवन का मूल्य समझो। *कौमार आचरेत्पाज्ञो धर्मान्भागवतानिह । दुर्लभं मानुषं जन्म तदप्यश्रुवमर्थदम् ॥* (श्रीमदभागवतम ७.६.१) अनुवाद - प्रह्माद महाराज ने कहा : पर्याप्त बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह जीवन के प्रारम्भ से ही अर्थात् बाल्यकाल से ही अन्य सारे कार्यों को छोड़कर भक्ति कार्यों के अभ्यास में इस मानव शरीर का उपयोग करे। यह मनुष्य-शरीर अत्यन्त दुर्लभ है और अन्य शरीरों की भाँति नाशवान होते हुए भी अर्थपूर्ण है, क्योंकि मनुष्य जीवन में भक्ति सम्पन्न की जा सकती है। यदि निष्ठापूर्वक किंचित भी भक्ति की जाये तो पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सकती है। ऐसे प्रल्हाद महाराज भी कहते हैं मनुष्य जीवन इसकी बड़ी महिमा है। इसका सदुपयोग करो अर्थात इस समय का उपयोग करो, समय के साथ रहो , फिर कृष्ण भक्त कहेंगे, समय के साथ रहो। मतलब किसके साथ रहो ? कृष्ण सूर्य सम ,कृष्ण के साथ रहो, डोंट गेट लेट बिहाइंड, यू मिस द बस, तुम लेट हो गए बस चली गई। वैकुंठ के लिए फ्लाइट चली गई, बी ऑन टाइम। समय पर या प्रेजेंट में रहो वर्तमान काल में रहो, भूतकाल की चिंता मत करो, शोक मत करो और भविष्य में कोई भौतिक महत्वकांक्षा मत रखो। *ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति । समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम् ।।* (श्रीमद भगवद्गीता१८. ५४) अनुवाद- इस प्रकार जो दिव्य पद पर स्थित है, वह तुरन्त परब्रह्म का अनुभव करता है और पूर्णतया प्रसन्न हो जाता है | वह न तो कभी शोक करता है, न किसी वस्तु की कामना करता है | वह प्रत्येक जीव पर समभाव रखता है | उस अवस्था में वह मेरी शुद्ध भक्ति को प्राप्त करता है | न शोचति न काङ्क्षति सोचता नहीं है कि पीछे जो हुआ जो नहीं भी हुआ, यह घोटाला हुआ वह घोटाला हुआ शोक मत करो और भविष्य का भी ज्यादा या कुछ भौतिक महत्वकांक्षी द गोल्स को भी त्यागो इसलिए भूतकाल में नहीं, भविष्य काल में नहीं। हम शोक करते रहते हैं बीते हुए समय में यह नहीं हुआ वह नहीं हुआ हम लोग भूतकाल में हैं और या फिर हम भविष्य में हैं, भविष्य का सोच रहे हैं। इस भौतिक जगत से कुछ ज्यादा आशा आकांक्षा है। भविष्य की उसकी कुछ योजना बना रहे हैं। सो वी आर इन द फ्यूचर लेकिन कहां है, वैष्णव को प्रजेंट में रहना चाहिए। वर्तमान काल में रहना चाहिए अर्थात जो कृष्ण के साथ है वह वर्तमान काल में है या फिर जप कर रहे हैं *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* ध्यान पूर्वक जप कर रहे हैं, इतना सारा समय है, इतने सारे क्षण हैं उसमें *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे* वहां कई सारे क्षण लगते हैं। उस समय उन क्षणों को *क्षण एकोपि न लभ्यः स्वर्णकोटिभि:* उसका सदुपयोग करते हुए उस हर क्षण का ध्यान पूर्वक जप करते हुए , ध्यान पूर्वक जप नहीं होने का कारण क्या है या फिर हम शोक कर रहे हैं। हम भूतकाल में हैं या (न शोचति न काङ्क्षति) कोई , भविष्य की कोई योजना बना रहे हैं। यह करूंगा फिर वह होगा फिर उसके बाद यह होगा तो जप के समय हमें वर्तमान काल में होना चाहिए अर्थात भगवान के साथ होना चाहिए। माया के साथ नहीं होना चाहिए हरि हरि ! *देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा । तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ।।* ( श्रीमद भगवद्गीता २.१३) अनुवाद- जिस प्रकार शरीरधारी आत्मा इस (वर्तमान) शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था में और फिर वृद्धावस्था में निरन्तर अग्रसर होता रहता है, उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा दूसरे शरीर में चला जाता है | धीर व्यक्ति ऐसे परिवर्तन से मोह को प्राप्त नहीं होता | हमारी पूरी आयु कौमारं यौवनं जरा यहां शंकराचार्य का कहना है जब हम बालक होते हैं *बालस्तावत क्रीडासक्तः* हम लोग सब समय खेलते रहते हैं खेलते ही रहते हैं। होता है विद्यार्जन का समय वैसे स्टूडेंट लाइफ तो विद्यार्जन के लिए होनी चाहिए, लेकिन खेल रहे हैं। वी आर वैस्टिंग आवर टाइम और फिर आजकल कंप्यूटर गेम्स, वैसे भी आजकल के गेम क्रिकेट हैं या फिर वॉलीबॉल या फिर दिस एंड देट, ऑल वेस्टिंग टाइम, कुछ लोग, बड़े लोग भी खेलते ही रहते हैं। कुछ खेल वैष्णव के लिए ठीक हैं जैसे स्विमिंग है या कुश्ती है। कुछ खेल तो ठीक हैं लेकिन ऐसे फालतू के खेल जैसे कंप्यूटर गेम ने तो हमारे बच्चों को बिगाड़ दिया, बड़ों को बिगाड़ दिया। शंकराचार्य कहते हैं जब तुम बच्चे होते हो तो तुम खेलते रहते हो इस प्रकार समय का अपव्यय होता है और फिर जब युवक बनते हैं तो युवती के पीछे भागते हैं ,युवती की चिंता करते हैं, युवती के साथ सेल्फी खींचते हैं, युवती के साथ डेटिंग होती है। लड़कियों के साथ यह होता है वह होता है और उसका चिंतन होता है, टॉक्स होते हैं। फोन भी सस्ते हो गए और सस्ते फोन पर फिर सस्ती बातें हल्की बातें, हलकट बातें चलती ही रहती हैं और फिर रात और दिन तो युवावस्था, *तरुणस्तावत तरुणी सक्तः* तरुण अवस्था, तरुणी में आसक्त है लिप्त है और फिर बच गई वृद्धावस्था , कौमारं यौवनं जरा, इस अवस्था में चिंता में मग्न रहते हैं फुल ऑफ इंज़ाइटी, इसका क्या होगा उसका क्या होगा। एक तो वृद्धावस्था में अधिक अधिक बीमारियों में व्यक्ति ग्रस्त होता है। उसकी भी चिंता है और भविष्य की चिंता है मैं नहीं रहूंगा कैसे होगा ? मेरे बेटे कैसे संभालेंगे ? दिस दैट , शंकराचार्य कहते हैं तुम्हारे पास फिर कौन सा समय है भाई भगवान के लिए बच्चे थे तो खेलते रहे, बड़े हुए तो यह मैथुन आनंद युवक-युवती के चक्कर में फंस गए और बूढ़े हो गए तो चिंता मग्न, वेयर इज योर टाइम, कौमारं, कुमार अवस्था तो चली गई युवावस्था भी चली गई और बुढ़ापा भी और अधिक अधिक बूढ़े हो रहे हो कब करोगे भगवान का ध्यान, और वह व्यक्ति बूढ़ा ही था वाराणसी में अब व्याकरण पढ़ ही रहा है लेकिन व्याकरण पढ़कर कुछ हरि हरि भगवान को तो नहीं समझ रहा है ऐसे ही पंडित बन चुका है या कर्मकांड कर रहा है। उसको भी शंकराचार्य कहते है "भज गोविंदम भज गोविंदम गोविंदम भज मूढ़ मते , नहीं-नहीं रक्षति, जब मृत्यु आएगी उस समय तुम्हारा यह जो डुक्रिन करणे व्याकरण का एक प्रकार है या यह व्याकरण है यह जो तुम अध्ययन कर रहे हो, इसको रख रहे हो, यह छोड़ दो या उसका उद्देश्य तुम नहीं समझ रहे हो, किस लिए पढ़ना है। व्याकरण या संस्कृत का अध्ययन भाषा का अध्ययन किस लिए करना है इसका उद्देश्य समझो। व्याकरण पढ़ना एक साधन है साध्य नहीं है। भज गोविंदम ! भज गोविंदम ! गोविंदम भज मूढ़मते, हे मूर्खों वहां पर शंकराचार्य ने उस कर्मकांडी व्याकरण के पंडित को मूर्ख कहा मूढ़ मते, फिर ऐसे आजकल के हमारे जो ह्यूमन बींस हैं हमारे जो बंधु बांधव हैं इस पृथ्वी पर पूरी मानव जाति के हम मानव हैं। उसमें से अधिकतर उनको कहना होगा हे मूर्खों ! यु आर रास्कल्स, प्रभुपाद कहा ही करते थे रास्कल्स, कुछ रास्कल ही कहते रहे कुछ साइंटिस्ट रास्कलस मायावादी रास्कलस क्योंकि कृष्ण ने भी कहा ही है. *न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः । माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ।।* ( श्रीमद भगवद्गीता ७. १५) अनुवाद- जो निपट मुर्ख है, जो मनुष्यों में अधम हैं, जिनका ज्ञान माया द्वारा हर लिया गया है तथा जो असुरों की नास्तिक प्रकृति को धारण करने वाले हैं, ऐसे दुष्ट मेरी शरण ग्रहण नहीं करते | जो मेरी शरण में नहीं आते हैं वे मूढ़ हैं या दुष्कृतम् है दुराचारी हैं माययापहृतज्ञाना , इनका ज्ञान माया ने चुरा लिया है। इस प्रकार सारा संसार ही वेस्टिंग टाइम अपने समय का दुरुपयोग कर रहे हैं। माया में लगा रहे हैं माया की सेवा में लगा रहे हैं क्योंकि उनके लिए टाइम इज मनी हरि हरि! या फिर क्या कहा जाए धर्म अर्थ काम मोक्ष चार पुरुषार्थ बताए हैं उसमें से दो पुरुषार्थ ओं में लगे हैं। वह कौन सा है ?अर्थ और काम , धर्म अर्थ काम मोक्ष उसमें से कौन सा, धर्म को भूल गए ,मोक्ष की कोई चिंता नहीं ,और बीच में जो दो पुरुषार्थ बचे हैं एक है अर्थव्यवस्था इकोनामिक डेवलपमेंट और इकोनामिक डेवलपमेंट होते ही काम उसका उपयोग काम में लगाना कामवासना में, इंद्रिय तृप्ति में, मनोरंजन में एंटरटेनमेंट, में इस प्रकार दुनिया वाले *मनुष्य जनम पाइया, राधाकृष्ण ना भजिया जानिया शुनिया विष खाइनु ।।१।।* हरि! मैंने अपना जन्म विफल ही गवाँ दिया। मनुष्य देह प्राप्त करके -कृष्ण का भजन नहीं किया। जानबूझ कर मैंने विषपान कर लिया है। हरि हरि ! आपका क्या विचार है एनीवे कई सारे निष्कर्ष इस वक्तव्य के हो सकते हैं लेकिन मुख्य बात तो यह है समय का, टाइम मैनेजमेंट सीखना होगा और प्रभुपाद चाहते थे कि 24 आवर्स कृष्ण कॉन्शसनेस, कितना समय अभ्यास करना चाहिए २४ आवर्स ऑफ कोर्स, कुछ घंटे 5 घंटे विश्राम करना है सोना है। दैट इज पार्ट ऑफ द टाइम मैनेजमेंट, हम षड गोस्वामी वृन्दो की श्रील प्रभुपाद की नकल नहीं कर सकते। श्रील प्रभुपाद भी कुछ तीन-चार घंटे ही सोते थे। हम सो जाते थे तो प्रभुपाद जग कर पूरी रात ट्रांसलेशन का कार्य करते थे। इस प्रकार आचार्यों ने, श्रील प्रभुपाद ने एक आदर्श रखा है हम सभी के समक्ष कि कैसे पूरे जीवन का या जीवन की जो कालावधी है लाइफ टाइम कैसा उपयोग करें या फिर उसमें भी 24 आवर्स का जो टाइम है 1 दिन एक रात का कैसा उपयोग करें, फिर प्रातः काल में क्या करें, सांय काल में क्या करें, मोटा मोटी की हमारी जो मॉर्निंग साधना है और जो इवनिंग साधना है वह सैंडविच जो होता है उसमें एक ब्रेड नीचे रखते हैं और एक ऊपर होता है और बीच में काफी टोमेटो चीज, दिस एंड देट फिर वह सेंड हो गया। मॉर्निंग प्रोग्राम मॉर्निंग साधना ब्रह्म मुहूर्त में उठना इत्यादि एक ब्रेड नीचे और ऊपर इवनिंग में पुनः जो बची हुई साधना या फिर संध्या आरती इत्यादि को श्रवण कीर्तन रीडिंग कृष्णा बुक कहो अलग अलग, कार्यों से सेवाओं से भर सकते हो, इस प्रकार हम कृष्ण भावना में व्यस्त रह सकते हैं। लेकिन आप में से कई सारे गृहस्थ भी हो। वीआर हाउसहोल्डर्स आप शायद सन्यासी होंगे या आपके फुल टाइम ब्रह्मचारी ड्यूटीज हैं , मंदिर में लेकिन हम वैसे नहीं हैं हम ऐसा नहीं कर सकते। हम वैसा नहीं कर सकते। तो क्या करें? इस पर चर्चा करो, विचार करो आपने आपके काउंसलर्स के साथ ,कुछ सेशन, ईस्ट गोष्टी रखो और समय का सदुपयोग करना है, समय को घुमाना नहीं है। इस टॉपिक पर चर्चा विचार होना चाहिए नहीं तो समय ऐसे ही जा रहा है। दिन आ रहे हैं दिन जा रहे हैं। वी आर नो कंट्रोल ओवर द टाइम ,ऐसे भी टाइम के ऊपर कंट्रोल ,भगवान के ऊपर कंट्रोल किसी का नहीं हो सकता। कुछ तो विचार होना ही चाहिए समय का, इस समय यह करेंगे उस समय वह करेंगे ताकि उसका सदुपयोग हो कृष्ण कॉन्शियस उपयोग हो। ओके अब यही विराम देता हूं। गौर प्रेमानन्दे हरी हरी बोल !

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