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*हरे कृष्ण* *जप चर्चा -01-06 -2022* (गुरु महाराज द्वारा ) जय गौरंगा ! जय भक्तों ! हे जापको सुनो ! *हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे"* गौरंगा ! जपा टॉक से पहले मेरा स्मरण करो, यह तपस्या तो नहीं है यह तपस्या भी है। हम बद्रिकाश्रम में थे कुछ दिन पहले या हमने आपको बद्रिकाश्रम ने पहुंचाया था याद है। मैं तो भूल नहीं रहा हूं इसीलिए मुझे और हमने यह भी कहा था कि तपोभूमि है भारत भूमि तपोभूमि है। भारत भूमि के केंद्र में है बद्रिकाश्रम और उस भारत भूमि के बद्रिकाश्रम के केंद्र में है बद्रीनारायण भगवान, की जय ! यह तपोभूमि या तपस्या के विचार आ रहे हैं। बहुत सारे विचार आ रहे हैं तपस्या एक बहुत बड़ा विषय है। एक बहुत बड़ा टॉपिक है या कहो धर्म ही है। तप एक धर्म ही है, जप तप एक बहुत बड़ा धर्म का विधि विधान है अंग है। तो यह तपस्या का धर्म भी बद्रीनारायण बद्रीनाथ सिखाते हैं पता नहीं आपने नोट किया है या नहीं नर नारायण वहां तपस्या करते हैं। बद्रिकाश्रम में तो यह शिक्षा ग्रहण करनी है भगवान से ही या फिर इस संबंध में कहना होगा की नारद मुनि नारायण लोक में या वैकुंठ लोक में विचरण करते ही रहते हैं। आप जानते हो वह बहुत बड़े परिवज्रकाचार्य है। जब जब वे जाया करते थे बैकुंठ, वह देखा करते थे कि भगवान आराम कर रहे हैं अनंत शैया पर और लक्ष्मी जी उनके चरणों की सेवा कर रही है। जब भी जाते हैं ऐसा ही दृश्य देखते भगवान आराम कर रहे हैं। ही इज इंजॉय भगवान भोक्ता हैं लग्जरियस लाइफ और सब उनकी सेवा में है स्पेशली लक्ष्मी महारानी सेवा कर रही हैं। ऐसा ही दृश्य उनको दिखता, एक विजिट में नारद मुनि ने कहा प्रभु जी मैं यहां से आप को भेंट देकर आपका दर्शन करके जब पुनः ब्रह्मांड में जाता हूं और वहां मैं प्रचार करता हूं और कोई मुझे पूछते हैं, अभी आप वैकुंठ से लौटे हो तो भगवान क्या कर रहे थे ? मैं कहूंगा की दर्शन तो वही है आप आराम कर रहे हो, आप रमण कर रहे हो और आप सेवा ले रहे हो और लक्ष्मी जी आपकी सेवा में है तो यही उत्तर मुझे देना पड़ता है। यह बात सुनकर स्पेशली जो ग्रहस्थ हैं उनको आइडिया आ सकता है कि कृष्ण भगवान ऐसे करते हैं चलो हम भी वैसे ही करते हैं। आराम का या भोग विलास का जीवन चलो हम भी जीते हैं। नारद मुनि ने भगवान को कहा कि प्रभु कुछ ऐसा करके दिखाओ कि वह दर्शन, वह लीला मैं देखूंगा, उसका अनुभव करूंगा तब फिर मैं उसका प्रचार भी कर सकता हूं और वह प्रचार सुन के ग्रहस्थ संसार भर के लोग प्रेरित हो सकते हैं, लाभान्वित हो सकते हैं और फिर नकल करनी ही है भगवान की, तो भगवान के उस जीवन की (तपस्या के जीवन की) नकल कर सकते हैं। मैं तो थोड़ा विस्तार से कह रहा हूं कि मेरे पास , फिर भगवान ने वैसे ही किया। भगवान वैकुंठ को त्याग कर और लक्ष्मी को वहीं छोड़कर इस ब्रह्मांड में बद्रिकाश्रम आए और वहां उन्होंने तपस्या की, तपस्या कर ही रहे हैं। इस प्रकार इस भारत भूमि को वह तपोभूमि बनाते हैं या तप का आदर्श सभी के समक्ष रखे हैं। फिर यह लेसन कहो या सबक कहो जो हमको सीखना है बद्रिकाश्रम से और यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है तपस्या ! तपस्या का जीवन हरि हरि! वैसे ब्रह्मा का भी जन्म हुआ और उनको पता नहीं चल रहा था कि मुझे किसने जन्म दिया मुझे अब करना क्या है ?ऐसे जब ब्रह्मा जिज्ञासु हुए *अथातो ब्रम्ह जिज्ञासा* उन्होंने सर्वप्रथम जो बात सुनी वैसे तो भगवान ने हीं सुनाई , ब्रह्मांड में संसार में और कोई था ही नहीं ब्रह्मा तो पहले जीव थे कोई सुनाने वाला या कोई कुछ करने वाला और कोई था ही नहीं। जो भी बात सुनाई भगवान ने ही सुनाई और वह बात थी या वह शब्द थे वैसे तो वह अक्षर ही थे दो अक्षर थे त प त प त प तो ब्रह्मा को आईडिया आया मुझे तपस्या करने के लिए कहा जा रहा है, हरि हरि ! फिर उन्होंने तपस्या की, ब्रह्मा ने तपस्या की और ब्रह्मा हमारे आचार्य भी हैं और उन्होंने आदर्श रखा सभी जीवों के समक्ष, ब्रह्मा ने तपस्या की। भगवान ऋषभदेव के रूप में प्रकट हुए तो अपने पुत्रों को उपदेश दिया बच्चों, बालको, पुत्रों क्या करो ? *नायं देहो देहभाजां नृलोके। कष्टान्कामानहते विड्भुजां ये।। तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं। शुद्धयेद्यस्माद्ब्रह्मसौख्यं त्वनन्तम् ॥* (श्रीमदभागवतम ५.५.१) अनुवाद - भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा-हे पुत्रो, इस संसार के समस्त देहधारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए ही दिन-रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कूकर-सूकर भी कर लेते हैं। मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का दिव्य पद प्राप्त करने के लिए वह अपने को तपस्या में लगाये। ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है, तो उसे शाश्वत जीवन का आनन्द मिलता है, जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला है। तपस्या करो, उस लीला में तो सौ ही पुत्र थे, सबसे बड़े थे भरत लेकिन फिर यह उपदेश भगवान का उपदेश हमारे लिए भी है क्योंकि हम भी भगवान के ही पुत्र हैं हरि हरि ! धर्म के या फिर चार प्रकार के धर्म हैं या चार प्रकार के धर्म ही कहो या धर्म का आधार कहो या धर्म के स्तंभ कहो तो वह है, एक है दया और दूसरा है तपस्या और तीसरा है पवित्रता और चौथा है सत्य, यह चार धर्म के आधार स्तंभ है। धर्म स्थापना, मैं आता हूं धर्म की स्थापना करता हूं मतलब मैं क्या करता हूं ? यह जो धर्म के आधार हैं यह जो स्तंभ है इनको मैं मजबूत बनाता हूं इनकी रक्षा करता हूं हरि हरि ! यह तपस्या एक आधार स्तंभ है। इसकी रक्षा करेंगे, तपस्या का अपने जीवन में पालन करेंगे। तो फिर इसका फायदा है। *धर्मो रक्षति; रक्षिता:* यह तो संस्कृत हो गया यह पूरा वाक्य हो गया धर्मा रक्षति आप संस्कृत सीखना चाहते हो 1 दिन संस्कृत का प्रेजेंटेशन हुआ था। अतः धर्मो रक्षति, धर्म रक्षा करता है, कब धर्म रक्षा करता है ? रक्षिता, उस धर्म की हम रक्षा करेंगे तो वह धर्म हमारी रक्षा करेगा। तपस्या का पालन कहो कि हम तपस्या करेंगे तो वह तपस्या ही हमारी रक्षा करेगी, तपस्या धर्म है हरि हरि ! अर्थात हम सबको तपस्वी बनना है। ऐसा सोचते हैं कि तपस्वी तो साधुओं को होना चाहिए यह उपदेश तो साधुओं के लिए है या फिर साधुओं या फिर सन्यासियों के लिए ठीक है ब्रह्मचारीयों के लिए ठीक है, नॉट फॉर गृहस्थ, उनके लिए यह तपस्या नहीं है या फिर तपस्या का उपदेश नहीं है क्योंकि अर्जुन उस प्रकार के साधु थे क्या जिस प्रकार के आप समझते हो कि साधु को होना चाहिए। साधु होना मतलब सन्यासी साधू होता है या ब्रह्मचारी साधु होता है तो ऐसे गृहस्थ भी साधु होते हैं या गृहस्थों को भी साधु होना है हरि हरि ! गीता में भी कृष्ण तपस्या का उपदेश सुनाते हैं आई थिंक फोर्टीन चैप्टर , तपस्या करो और फिर भगवान शारीरिक तपस्या वाचिक तपस्या मानसिक तपस्या को समझाया बुझाया है उसकी परिभाषा सुनाई है। फिर तपस्या के भी, जो मैंने कहा अभी या कृष्ण ने कहा तपस्या के तीन प्रकार या फिर तपस्या तीन स्तर पर हो होती है शारीरिक वाचिक मानसिक यह सब समझ गए, तो हमको तपस्वी बनना है। तपस्वी बनेंगे तपस्या करेंगे ऐसा करेंगे तो ही *यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् । यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ॥* (श्रीमद्भगवद्गीता 9.27) अनुवाद : हे अर्जुन! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर॥ कृष्ण गीता में कहते है जो भी तपस्या करते हो, मेरे लिए तपस्या करो या मेरी प्राप्ति के लिए तपस्या करो। *वासुदेवे भगवति भक्तियोगः प्रयोजितः। जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानं च यदहैतुकम् ॥* (श्रीमदभागवतम १.२.७) अनुवाद -भगवान् श्रीकृष्ण की भक्ति करने से मनुष्य तुरन्त ही अहैतुक ज्ञान तथा संसार से वैराग्य प्राप्त कर लेता है। ऐसी की हुई तपस्या तपो दिव्यम , दिव्य तपस्या होगी नहीं तो वैसे संसार में कौन तपस्या नहीं करता सभी तपस्या करते हैं धन कमाने के लिए। धन अर्जन के लिए क्या कम तपस्या करनी पड़ती है क्या या बहुत कुछ जुटाने के लिए उपभोग के साधन जुटाने के लिए बहुत सारी सुविधा इनकन्वीनियंस हरि हरि ! तो तपस्या कौन नहीं करता तपस्या होनी चाहिए क्योंकि जब दिव्य तपस्या होगी उस तपस्या से शुद्धीकरण होगा उसको हम चेतो दर्पण मार्जनं कहते हैं। तपस्या करने से ही शुद्धीकरण होगा और अनंत सुख हमारी प्रतीक्षा कर रहा है जो जीव सुखी बनना चाहता है क्योंकि उसको पता नहीं चलता है कि संसार में हम कैसे सुखी हों सकते हैं हरि हरि ! *शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च | ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||* (श्रीमद्भगवद्गीता १८.४२) अनुवाद - शान्तिप्रियता, आत्मसंयम, तपस्या, पवित्रता, सहिष्णुता, सत्यनिष्ठा, ज्ञान,विज्ञान तथा धार्मिकता – ये सारे स्वाभाविक गुण हैं, जिनके द्वारा ब्राह्मण कर्मकरते हैं | ऐसा कहा ब्राह्मणों के लिए , तो फिर हमें ब्राह्मण बनना चाहिए वैष्णव बनना चाहिए शुद्र नहीं रहना चाहिए। यह ब्राह्मणों के स्वभाव हैं। ब्राह्मण क्या करते हैं ? वह अपने दम: तप: क्षमा शौचं के लिए प्रसिद्ध होते हैं। सुन रहे हो माइंड कंट्रोल सेंस कंट्रोल मन् निग्रह, इंद्रिय निग्रह, तपस्या यह ब्राह्मणों का स्वभाव या गुणधर्म या लक्ष्य है। ऐसे लक्षणों से साधु सुशोभित हैं। यह साधुओं के संतो के भक्तों के और फिर गृहस्थ भक्त भी हो सकते हैं। *तितिक्षवः कारुणिकाः सुहृदः सर्वदेहिनाम् ।अजातशत्रवः शान्ताः साधवः साधुभूषणाः ॥* (श्रीमदभागवतम ३.२५.२१) अनुवाद - साधु के लक्षण हैं कि वह सहनशील, दयालु तथा समस्त जीवों के प्रति मैत्री-भाव रखता है। उसका कोई शत्रु नहीं होता, वह शान्त रहता है, वह शास्त्रों का पालन करता है और उसके सारे गुण अलौकिक होते हैं। *चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् | तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ||* (श्रीमद्भगवद्गीता ६.३४) अनुवाद- हे कृष्ण! चूँकि मन चंचल (अस्थिर), उच्छृंखल, हठीला तथा अत्यन्त बलवान है, अतः मुझे इसे वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है | यह तपस्या के बारे में सोचो आप हरि हरि !आप लोग वैसे तपस्वी बन रहे हो लेकिन गेट मोर कंडेंस्ड और अधिक तपस्या करो और तपस्या को बढ़ाओ। *अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः । तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ॥* २.३.१० ॥ अनुवाद- जिस व्यक्ति की बुद्धि व्यापक है, वह चाहे सकाम हो या निष्काम अथवा मुक्ति का इच्छुक हो, उसे चाहिए कि सभी प्रकार से परमपूर्ण भगवान् की पूजा करे। उसकी तीव्रता को बढ़ा सकते हो हरि हरि ! इसी को कहते हैं तपस्या का जीवन सिंपल लिविंग सादा जीवन है या सरल जीवन है सिंपल लिविंग हाई थिंकिंग, भोगी मत बनो योगी बनो , तपस्वी बनो ऐसा ही संदेश है , भोग से होते हैं रोग, कितनी बार सुनने के उपरांत भी यू मेंटेन अटैचमेंट *यतो यतो निश्र्चलति मनश्र्चञ्चलमस्थिरम् | ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ||* (श्रीमद्भगवद्गीता ६.२६) अनुवाद - मन अपनी चंचलता तथा अस्थिरता के कारण जहाँ कहीं भी विचरण करता हो,मनुष्य को चाहिए कि उसे वहाँ से खींचे और अपने वश में लाए | हम लोग अपनी आसक्ति बनाए रखते हैं पुरानी आदतों से, पुराने विचार, पुराने हमारे संग ,एसोसिएशन से मुक्त हो हरि हरि! *असत्सङ्ग-त्याग,-एइ वैष्णव-आचार। 'स्त्री-सङ्गी'—एक असाधु,'कृष्णाभक्त' आर ॥* ( चैतन्य चरितामृत मध्य 87) अनुवाद- वैष्णव को सामान्य लोगों की संगति से हमेशा बचना चाहिए। सामान्य लोग बुरी तरह से भौतिकता में, विशेषतया स्त्रियों में आसक्त रहते हैं। वैष्णवों को उन लोगों की भी संगति से बचना चाहिए, जो कृष्ण-भक्त नहीं हैं। यह हमारा देश यह तपोभूमि है इसको भोग भूमि बनाया जा रहा है। पाश्चात्य जगत उनकी नकल करते करते हम भी भोगी और रोगी हो रहे हैं। भोग बढ़ाने से सुख नहीं होता हरी हरी ! और इतने भोग वासना बढ़ाई जा रही है और इसको इतना बढ़ावा दिया जाता है हरि हरि या संसार में जो माहौल है यह भोग की जो सामग्री है उसकी संख्या बढ़ ही रही है, बढ़ाते जा रहा है यह संसार पहले तो छोटी मोटी कुछ दुकानें हुआ करती थी। सुपर बाजार फिर हाई पर बाजार, मॉल्स इतने सारे प्रोडक्ट इतना सारा उत्पादन फैक्ट्री एंड इंडस्ट्रीज डे एंड नाइट करवा कर प्रोडक्शन करवा कर फिर उसका ट्रांसपोर्टेशन उसका प्रमोशन उसका डिस्प्ले में जो बिजी है , एक लेटेस्ट सर्वे हुआ उसका निष्कर्ष यही था कि भोग के साधनों की संख्या हंड्रेड टाइम्स मोर, 100 साल पहले की तुलना में कैसे आसानी से हंड्रेड टाइम्स मोर एंजॉयमेंट के साधन का हमने साइंस टेक्नोलॉजी एंड इंडस्ट्री इसकी मदद से हमने एक उत्पादन किया हुआ है। क्या हम लोग हंड्रेड टाइम्स मोर हैप्पी हुए हैं ? तो नहीं ! ऐसा सर्वे किया जा रहा था पता लगवाने के लिए अधिक दुकानें अधिक शब्द स्पर्श रूप रस गंध यह जो इंद्रियों के विषय हैं और इसी का तो प्रोडक्शन डिस्ट्रीब्यूशन और सेल्स होते हैं सुनने के शब्द या देखने की चीज है तो बार बार देखो जो कहा जाता है , यह सूंघने की चीज है कॉस्मेटिक, इस सर्वे का निष्कर्ष यह था कि जब साधन कम ही थे दुकानें कम ही थी प्रोडक्शन कम ही था उस समय अधिक लोग सुखी थे। प्रोडक्शन बढ़ गया हमने अपने घर को भी सजाया हरि हरि ! गिरिराज महाराज मेरे गुरु भ्राता उन्होंने मुझे एक समय कहा था कि मेरे पिता मेरे लिए एक अन्य घर खरीद रहे हैं तो मैंने पूछा किस लिए ? क्योंकि जब उनके पिता वह संसार भर से शॉपिंग करके ले आएंगे जोकि शिकागो में थे तो कहां रखेंगे उसको ? क्योंकि जो ले के आएंगे सामान और अन्य को भी दिखाएंगे , इसीलिए वह एक अन्य घर खरीद रहे हैं, वैसे तो यह दोनों ही वृद्ध हैं किंतु फिर भी ले कर के आ रहे हैं। इसी प्रकार से और भी सर्वे हुआ और उस सर्वे का निष्कर्ष ही था यह था वेस्टर्न स्टैंडर्ड जिसको कहते हैं एंजॉयमेंट के लिए या भोग के जो स्टैंडर्ड हैं उसके लिए सामग्री है उपभोग, उस भोगी देश में और यह तपोभूमि, उस भोग भूमि में जो सामग्री है जो उत्पादन है एंजॉयमेंट के अमेरिकन स्टैंडर्ड के मुताबिक सारा संसार आना चाहेगा। उस सर्वे में यह कहा था कि हम लोगों को 5 पृथ्वीयो की आवश्यकता होगी एक काफी नहीं है। इस पृथ्वी पर जो भी रिसोर्सेस अवेलेबल है रॉ मैटेरियल जिससे कि प्रोडक्ट बनता है तो हम को पांच पृथ्वीयो की आवश्यकता है। कहां से लाएंगे पृथ्वी तो एक ही है और यह संभव ही नहीं है या फिर जैसे अन्य वैज्ञानिक सोच रहे हैं हम मंगल पर जाएंगे हम चंद्रमाँ पर जाएंगे एक ग्रह सफिशिएंट नहीं है। ऐसी बात नहीं है इस प्लेनेट का हमने ऐसा हाल कर दिया, इस पृथ्वी का ग्लोबल वार्निंग कराके, अपनी धरती माता जिसकी गोद में हम रहते हैं उसी को हमने उसका बुखार का तापमान बढ़ा दिया। कैसे रहेंगे उस धरती माता की गोद में हम चैन से सुख से या आराम से ,माता के स्वास्थ्य को ही हमने बिगाड़ दिया। मदर अर्थ बीमार हो गई हमारी करतूतों से, हमारे भोग विलास के प्रयासों से, इस पृथ्वी का हाल ऐसा हमने कर दिया इसीलिए भी साइंटिस्ट ने सोचा वन अनदर प्लैनेट और कोई ग्रह नक्षत्र ढूंढो हरि हरि ! आप सब तपस्वी बनो ऐसा ही आदेश उपदेश और विधि विधान है। शास्त्र का स्पेशली तपस्या की बात कर रहे हैं। आपके क्या विचार हैं आपके और कुछ विचार हैं समझ है इसके विरोध में या आपके कोई आईडियाज हैं इन फेवर और अगेंस्ट आप कह सकते हो। थोड़ा समय हम बिता सकते हैं *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* निताई गौर प्रेमानन्दे !

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