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जप चर्चा, 3 दिसंबर 2021, पंढरपुर धाम. हरे कृष्ण 971 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। ओम नमो भगवते वासुदेवाय। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन आप सुन रहे हो, आप तैयार हो, शायद सब तैयार नहीं है। कुछ लोग तो जप ही कर रहे हैं। यह कथा लगभग 7:10 तक चलती रहेगी। कुछ भक्तों ने पुस्तक वितरण किया है तो, उनके आंकड़े भी अनाउंस करने हैं और भी कोई अनाउंसमेंट घोषणा रहेगी। उसके साथ लगभग 7:15 पर यह जप चर्चा समापन करने का एक नियम अभी-अभी बनाया है। हमारे आई एम पीएम मंदिरों के अध्यक्ष। यह ठीक है ना, क्योंकि यहां मंदिरों में दर्शन खुलते हैं श्रृंगार दर्शन इत्यादि इत्यादि और भी कार्यक्रम होते हैं। हर रोज 7:15 तक यह जप चर्चा समापन करेंगे इसीलिए अब ध्यान पूर्वक सुनिएगा। मैंन कहना प्रारंभ किया ही था। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन वैसे दो लीलाएं हुई। एक प्रात काल में और दूसरी दिन में। प्रात कालीन लीला तो आप सुन ही रहे थे। आज नहीं कई दिन पहले वह लीला संपन्न हुई। चीर घाट पर वस्त्र हरण की लीला है। गोपी वस्त्रहरण लीला प्रात काल में संपन्न हुई। भोर में या जब सूर्योदय हो रहा था कहिए। कृष्ण जल्दी उठकर गायों को तैयार किए हैं। और सभी ग्वालबाल भी अपने अपने घरों में सभी को बताया था आज हम जल्दी प्रस्थान करेंगे, हर रोज की तरह नहीं रहेगा। नहीं तो हमेशा क्या होता था 8:00 बजे प्रस्थान होता है। गोचारण लीला का प्रारंभ 8:00 बजे के पास आस पास होता है। इस दिन जरा जल्दी इससे यह हुआ कि, इस दिन ना तो यशोदा को न किसी ग्वाल बाल के माता को अपने पुत्रों के लिए दोपहर का जो भोजन है वह बनाकर देने के लिए समय ही नहीं था। कृष्ण जल्दी में थे। मित्रों को उनके साथ जाना था। कृष्ण जल्दी में इसलिए थे, गोपिया जो स्नान कर रही है चीर घाट पर वहां तक पहुंचना है। हो गया वस्त्रहरण, हो गया उसी प्रातकाल को। फिर वहां से कृष्ण अपने मित्रों के साथ गायों के साथ प्रस्थान करते हैं और कहां पहुंच जाते हैं, उपवने एक उपवन में पहुंच जाते हैं। उपवन का नाम भी बताया था आपको याद है, गुरु महाराज कॉफ्रन्स में एक भक्त को संबोधित करते हुए, "आप लिख रहे हो आपको याद है।" क्या है नाम, उस उपवन का नाम है अशोक वन। यह अशोक वन कौन से घाट के पास था, अक्रूर घाट। वहां कृष्ण पहुंचे हैं और गायों को चराने लगे और गाय चर रही हैं। तस्याउपवने कामं, चारयन्त पशुम नृप। यह श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के बावीसवे अध्याय का अंतिम श्लोक है। वहां पर शुकदेव गोस्वामी ने कहा है, तस्याउपवने कामं, चारयन्त पशुम नृप। हे राजा कृष्ण उपवन में जिसका नाम अशोक वन है गायों को ले गए। कृष्णमकृष्णरामा ग्रामोंपगम्य क्षुधारताइदम अब्रवन। वहां से भी तो चल के ही गए हैं और फिर वहां पर गाय चर रही हैं। अब कुछ मध्यान्ह का समय हो चुका है। दिन कौन सा है? याद है ना, पूर्णिमा का दिन है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा आपको याद रहना चाहिए। फिर अश्विन पूर्णिमा को क्या हुआ, फिर कार्तिक पूर्णिमा को क्या हुआ, अश्विन कार्तिक मार्गशीर्ष पूर्णिमा को क्या होने जा रहा है? मित्रों को लगी है भूख। क्षुधारता भूख से परेशान है। और सारे मित्र कृष्ण बलराम को संबोधित करने लगे। और उन्होंने कहा राम-राम महावीर्य इसी के साथ अब दूसरा अध्याय प्रारंभ हो रहा है। अध्याय संख्या के स्कंध वही है। दसवां स्कंध अध्याय 23। हे राम राम हे कृष्ण दुष्ट निभाना दुष्टों का संघार करने वाले हैं बलराम हे श्री कृष्णा इषावइ बाधते शुनः तशान्तिम करतुम अहर्तितः मित्रों ने कहा तुम तो दुष्टों का संहार करने वाले हो। यह जो हमारी दुष्ट भूख है ना, भूख को दुष्ट कह रहे हैं दुष्ट। कहे कि यह भूख यह हमको परेशान कर रही हैं। तो कुछ इस भूख का पराभव करो ना, भूख को थोड़ा शांत करो ना। तशान्तिम करतुम अहर्तितः तुम दोनों भी समर्थ हो हम सभी की भूख को मिटाने के लिए। हमारे क्षुधारताः हम परेशान हैं। हमको कष्ट हो रहे हैं। भूख लगी है। कुछ समाधान करो हे कृष्ण, बलराम। वैसे हररोज ऐसे नहीं कहते थे लेकिन आज कह रहे हैं। क्या कारण है, आपको बताया गया है। आज के दिन साथ में भोजन नहीं लेकर आए थे। भोजन साथ में लाए ही नही थे। नहीं तो भूख लगी है तो फिर कृष्ण को कहने की क्या जरूरत थी। अपना डिब्बा खोल लिया और खा लिया। और खाना प्रारंभ करते लेकिन किसी के पास भी भोजन नहीं था। सभी खाली हाथ है। या हो सकता है कोई लकड़ी या बासुरी हाथ में है लेकिन भोजन तो नहीं था। दोपहर का भोजन तो किसी के पास नहीं था। इसीलिए विशेष निवेदन हो रहा है। हे राम राम महावीर्य हे कृष्ण कुछ करो। तो कृष्ण और बलराम ने एक्शन लिया है। और कुछ ग्वालों को भेजा भी है। जाओ यहां पास में ही यज्ञ हो रहा है। यज्ञ करने वाले जो ब्राह्मण है उन से निवेदन करो। वे जरूर आपको कुछ देंगे। पत्रम पुष्पम फलम उनके साथ काफी कुछ होगा। यज्ञ की सामग्री और कोई भोजन भी होगा। भोग लगाया होगा। यज्ञार्थम यज्ञ की प्रसन्नता के लिए। वैसे यज्ञ यज्ञ पुरुष भगवान ही होते हैं। यज्ञार्थात्कर्मणोन्यत्र लोकोअयं कर्मबंधन तो यज्ञपुरुष मतलब भगवान। भगवान कह रहे हैं कृष्ण बलराम। यज्ञ हो रहा है तो यज्ञ पुरुष को कई आहुतियां वह लोग चढ़ा रहे हैं ही। तो वह आहुति अग्नि में चढ़ाने की बजाय बताएं वह हमारे मुख में चढ़ा सकते हैं। उनको बता दो, कृष्ण बलराम यहां पास में ही है। और उनको लगी है भूख और हे ब्राह्मणों कुछ दे दो। कोई सामग्री दे दो। कुछ पत्रं पुष्पं फलं दे दो। कुछ पक्वान्न दे दो। पक्वान्न पका हुआ अन्न। कुछ कच्चा भी होता है। कुछ पकि भी होता है। दोनों प्रकार के अन्न। तो मित्र गए हैं सारी लीला तो नहीं कहेंगे आपको। आपको पढ़ना है। उन ब्राह्मणों ने कुछ नहीं दीया इन बालको की और उन्होंने ध्यान भी नहीं दिया, उनका स्वाहा। हे कृष्ण बलराम को भूख लगी है, कुछ दे दो स्वाहा। कुछ थोड़ा तो दे दो स्वाहा। अरे पत्रं पुष्पं फलं तो दे दो स्वाहा। स्वाहा उनका तो चल रहा है स्वाहा। कृष्ण को चाहिए कृष्ण को भूख लगी है। कृष्ण मरने दो कृष्ण को। हमको कोई परवाह नहीं है। हमारा स्वाहा स्वाहा हम करेंगे। इसको कहते हैं कर्मकांड। कर्मकांड केवल विषेर भांड यही है भुक्ति मुक्ति सिद्धि कामी यह भुक्ति है ऐसे कई सारे यज्ञ करते रहते हैं। यज्ञार्थात कर्म जो यज्ञ भगवान की प्रसन्नता के लिए नहीं करते हैं। अपनी प्रसन्नता के लिए अपनी कुछ आकांक्षा की पूर्ति के लिए यज्ञ करते हैं। मित्र मांग मांग कर थक गए हैं। एक नहीं सुनी उन कर्मकांडी ब्राह्मणोंने तो फिर लौट आए। बेचारे कुछ भी नहीं दिया भूख तो लगी है। हे कृष्ण कृष्ण, बलराम, महावीर्य अब क्या करें? कैसा पेट भरे? हम भूख से परेशान हैं। तो फिर कृष्ण कहे ठीक है, कोई प्रॉब्लम नहीं। कृष्ण आइडियाबाज होते ही है, रहते ही हैं। उनके पास दूसरा पर्याय था। ठीक है, जहां यज्ञ हो रहा है वहां बात नहीं बनी, तो उनकी यज्ञ पत्नियों के पास जाओ, उनके घरों में जाओ। और उनको कहो कृष्ण बलराम यहां अशोक वन में है। उनको लगी है भूख और उनके मित्रों को भी लगी है भूख। कुछ तो दे दो भोजन कोई पकवान। तो मित्रों की एक टोली भागे दौड़े गई और वहां यह जो स्त्रियां थी उनको यज्ञ पत्नियां कहा है यज्ञ पत्नी। श्रीमद्भागवत में नाग पत्नीया प्रसिद्ध है। नागपत्नी मतलब किसकी पत्नी कालिया नाग की पत्नी। और यहां यज्ञ पत्नी मतलब यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों की पत्नियां। तो उनके पास पहुंचे और जैसे ही उन्होंने सुना कि कृष्ण पास में ही है, बगल के वन में है। वह कहने लगी हम कुछ कर सकते हैं आपके लिए या कृष्ण के लिए। कृष्ण यहां पास में है तो बता दो, बता दो हम क्या कर सकते हैं। आप क्यों आए हो यहां? बड़ी उत्कंठीत थी। कृष्ण पास में ही है और उन्हीं के कुछ यह दूत आए हैं, संदेशवाहक बनके आए हैं तो जरूर किसी उद्देश्य से कृष्णा ने भेजा होगा तो बता दो बता दो। तो मित्र कहने लगे हां कृष्ण बलराम है और उनको भूख लगी है और उनके पास कुछ भोजन नहीं है आज। उनके पास भी नहीं और हमारे पास भी नहीं है। देखो हमारा पेट तो देखो थोड़ा कुर्ता खोल कर दिखाया होगा पेट। मैया दया करो कृष्ण का भी यही हाल है, हम मित्रों का भी यही हाल है। तो यह सुनते ही बस यह सारी माताओं ने यज्ञ पत्नियों ने कई सारी टोकरिया भर दी। चतुर्विधा-श्री भगवत्-प्रसाद.. चतुर्विध मतलब चार प्रकार का भोजन होता है। कुछ चबाने का होता है। कुछ पीने का भी होता है। इसलिए उसको चतुर्विधा कहते हैं। कुछ तो हम चाटते हैं जीव्हा से उसको खाते हैं, तो यह चतुर्विध है। वैसे होंगे छप्पन भोग, लेकिन छप्पन भोगो का विभाजन होगा, फिर चार विभाग होंगे। इसलिए चतुर्विध कहां है कुछ चबाकर खाने के, कुछ पीने के, कुछ निगलने के और कुछ चाटने के। तो यह तैयारी हो गई उन्होंने टोकरिया भर दी, कुछ प्लेट्स भी तैयार किए कहो। और वे स्वयं ही लेकर जाने लगे, मित्रों ने कहा होगा हमको दे दो, हम ले जायेंगे। तो फिर यज्ञ पत्नियों ने कहा नहीं नहीं नहीं हम स्वयं ही पहुंचा देंगे। बस हमको मार्ग दिखा दो, बता दो कहां है चलो हमारे आगे आगे रहो हम पीछे-पीछे आ रही हैं। चलो दौड़ो कृष्ण को भूख लगी है हमें जल्दी करना होगा। तो सभी पहुंच गए जहां कृष्ण बलराम लाखों मित्रों से घिरे हुए हैं। वह प्रतीक्षा में घड़ी की और देख रहे हैं, कब आते हैं मित्र भोजन लेकर। लेकिन आ ही गए हैं केवल मित्र ही नहीं आए वह सारी यज्ञ पत्तियां आ गई। बहुत बड़ी संख्या में पहुंच गई, कई सारे पकवान्न व्यंजन लेकर। तो इतने सारे मित्रों, ग्वाल बाल और इसके मध्य में कई पर कृष्ण है। लेकिन इसमें से कृष्ण कौन से हैं? कैसे पता लगवाएगी. क्योंकि पहले कृष्ण बलराम को खिलाना है और फिर मित्रों को भी खलाएगी ही। तो इन यज्ञ पत्नियों ने भगवान के सौंदर्य का, रूप का वर्णन सुने था। हो सकता है किसी भागवत कथा में गई होगी या किसी जपा टॉक में उन्होंने सुना था कि कृष्णा ऐसे दिखते हैं, ऐसे वस्त्र पहनते हैं, यह होता है, वह होता है मुरली है, यह है, वह है। तो वह सारा याद रखा तो था भूली नहीं थी। वे जब कथा सुनते थे तब सोते नहीं थे। नोट भी करते थे फिर बाद में उसका चिंतन भी करती थी, जो जो उनको सुनाया था। और अब ढूंढ रही है ऐसे ऐसे वर्णन वाला कौन सा है बालक। वही है कृष्ण, वही होगा कृष्णा। तो वह वर्णन है दसवें स्कंध के 23 वा अध्याय का 22 वा श्लोक। बहुत सुंदर श्लोक है उत्तम श्लोक है। इसमें कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन किया हुआ है। आप इसको नोट करना ताकि आप कृष्ण को ढूंढना, देखना चाहोगे तो आप कहोगे ओहो नैति नैति नैति। या भी नहीं है, यह भी नहीं है, यह गणेश है, तो यह यमराज है, तो यह चंद्र है, इंद्र है तो यह यह है, यह है वह है। लेकिन न इति यह कृष्ण नहीं है, यह कृष्ण नहीं है। ठीक है यह विष्णु है, यह नारायण है, यह राम है लेकिन यह कृष्ण नहीं है। हां यह कृष्ण है। तो कैसे कृष्ण दिखे या दर्शन किया। और यह दर्शन हुबहू वैसा ही था जैसे इन माताओं ने सुना था उनके सौंदर्य का वर्णन। श्यामं हिरण्यपरिधिं वनमाल्यबर्ह- धातुप्रवालनटवेषमनुव्रतांसे । विन्यस्तहस्तमितरेण धुनानमब्जं कर्णोत्पलालककपोलमुखाब्जहासम् ॥ २२ ॥ तो शाम वर्ण का बालक.. अब हम इसको विस्तार से नहीं कह पाएंगे। आपके पास भागवत है उसको आपको पढ़ना होगा। श्याम वर्ण के हिरण्यपरिधिं तो उनके अंग का रंग या कांति श्याम वर्ण के हैं। घन एव श्याम घनश्याम है। वस्त्र है पीले वस्त्र है पितांबर हैं। लेकिन वह पीलापन साधारण नहीं है। जब बिजली चमकती है ऐसा चमकीला है वह पितांबर वस्त्र। वन माल्य वनमाला पहने हुए हैं। बर्ह और ऊपर मोर मुकुट है। बाकी औरों ने नहीं पहना हुआ है जिन्होंने मोर मुकुट धारण किया है वह कृष्ण है। धातु.. कई सारे धातु या खनिज पदार्थ होते हैं या धातु एलिमेंट्स सोना चांदी भी कहो या डायमंड। जो खान से मिलते हैं फिर उसका पॉलिशिंग वगैरह होता है। तो इस प्रकार के धातु वह पहने हुए है, उसके अलंकार बनाए हुए हैं। उसको मोती की माला पहने हुए हैं। नटवेश और वेश जो है नट जैसा है एक्टर जैसा। और कृष्ण तो नटराज है, सारे नटों के राजा है। अनुव्रतांसे यहां यज्ञ पत्नियों ने देखा कि ऐसा घनश्याम वर्ण का, पीतांबर वस्त्र धारण किया हुआ और कई सारे धातु और वनमाला मोर मुकुट पहना हुआ यह बालक। अपने मित्र के कंधे पर हाथ रखकर खड़ा है। अपने बगल वाले मित्र के कंधे पर अपना एक हाथ रखे हैं। विन्यस्तहस्तमितरेण धुनानमब्जं और दूसरे हाथ में यह कमल का पुष्प धारण किए हैं और उस को हिला रहे हैं। जिसको अंग्रेजी में ट्विरलिंग कहते हैं। कैसे ट्विरलिंग कैसे होता है दिखाइए। आप कभी घूमाते हो ऐसा? कृष्ण तो एक्टर है। ओके सत्यजीत ठीक कर रहे हैं। आपने तो हाथ में पेन लिया हुआ है, कृष्ण के हाथ में कमल का पुष्प था। आपके हाथ में.. अच्छा अगरबत्ती है क्या? ओके जब अगरबत्ती से आप आरती उतारते हो तो वह है ट्विरलिंग। धुनानमब्जं कर्णोत्पल कान में कुछ पुष्प रखे हैं, कानों के ऊपर। तो ऐसा विस्तार से वर्णन है कैसे वस्त्र है, कैसा रंग है, कैसी माला है और मोर मुकुट है। एक मित्र के कंधे पर हाथ रख कर खड़े हैं और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है और केवल पकड़े नहीं है उसको हिला रहे हैं। कान में कुछ पुष्प रखे हैं फूल रखे हैं। इसी के साथ अलककपोल उनके कुछ घुंघराले बाल उनके चेहरे को ढक रहे हैं। इससे भी कृष्ण का सौंदर्य और बढ़ा हुआ है। मुखाब्जहासम और मुख मंडल में हास्य है। हासम मुखाब्ज अब्ज इस श्लोक में दो बार आया है। एक मुख मंडल कमल सदृश्य है और हाथ में तो कमल का पुष्प रखे ही है। तो ऐसे कृष्ण को देखा और सब को फिर भोजन खिलाई। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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