Hindi

जप चर्चा, वृंदावन धाम से, 25 अक्टूंबर 2021 आज जप चर्चा में 907 भक्त उपस्थित हैं। जय राधे, जय कृष्ण, जय वृन्दावन। श्रीगोविन्द, गोपीनाथ, मदन-मोहन॥ ये गौडी़य वैष्णवों के इष्टदेव ही हैं। राधामदन-मोहन, राधागोविन्द देव, राधागोपीनाथ। हरि हरि! गौरांग! जय श्री राधे...श्याम! या जब गौरांग भी कहते हैं तो राधा तो आ ही जाती हैं।गौरांग महाप्रभु राधारानी ही हैं।फिर गौरांग कहो या श्रीराधे कहो एक ही बात हैं,लगभग एक ही बात हैं।हरि हरि! उन गौरांग को भी वृंदावन ही प्रिय था। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जहा भी रहते हैं,सदैव वृंदावन का स्मरण करते और वृंदावन जाना पसंद करते हैं। वृंदावन धाम कि जय...! ओजस्वनी गोपी भी वृंदावन जाना चाहती हैं।हम सभी के लिए वही लक्ष्य हैं। वैसे भी हम वृंदावन मायापुर के माध्यम से जाते हैं,यही हैं औदार्य धाम,और यही हमको माधुर्य धाम तक पहुंचाता हैं।हरि हरि! दोनो एक ही हैं,दोनों गोलोक ही हैं। "गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवीमहेशहरिधामसु तेषु तेषु। ते ते प्रभावनिचया विहिताश्च येन गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।।" (ब्रम्ह संहिता 5.43) अनुवाद: -जिन्होंने गोलोक नामक अपने सर्वोपरि धाम में रहते हुए उसके नीचे स्थित क्रमशः वैकुंठ लोक (हरिधाम), महेश लोक तथा देवीलोक नामक विभिन्न धामों में विभिन्न स्वामियों को यथा योग्य अधिकार प्रदान किया हैं, उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूंँ। "गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य" गोलोक में ही वृंदावन हैं,गोलोक में ही नवद्वीप हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।श्री कृष्ण उदार बनते हैं,गौरांग बनते हैं और प्रेम दाता बनते हैं। गोलोकेर प्रेमधन, हरिनाम संकीर्तन, रति ना जन्मिल केने ताय। संसार-विषानले, दिवानिशि हिया ज्वले, जुडाइते ना कैनु उपाय॥2॥ (हरि हरि बिफले.. नरोत्तम दास ठाकुर लिखित) अनुवाद:-गोलोकधाम का ‘प्रेमधन’ हरिनाम संकीर्तन के रूप में इस संसार में उतरा है, किन्तु फिर भी मुझमें इसके प्रति रति उत्पन्न क्यों नहीं हुई? मेरा हृदय दिन-रात संसाराग्नि में जलता हैं,और इससे मुक्त होने का कोई उपाय मुझे नहीं सूझता। गोरांग हमको संकीर्तन देते हैं,हमको हरि नाम धन देते हैं।हरि नाम धन बिना यह जीवन बेकार हैं,दरिद्र जीवन।वह व्यक्ति दरिद्र ही हैं, गरीब ही हैं जिसको यह हरि नाम धन प्राप्त नहीं हुआ हैं।फिर गरीब रहो, मरो, दुखी हो जाओ लेकिन सुखी होना हैं तो धनी होना पड़ेगा, धनवान होना होगा और कौन सा धन सुखी बनाएगा? हरि नाम धन, इसीलिए हम सब लोग प्रात:काल को उठते ही अपना धन अर्जन शुरू करते हैं।आपकी कमाई सुबह 4:00 बजे ब्रह्ममुहूर्त में ही शुरू होती हैं,बाकी लोग तो 10:00 बजे-11:00 बजे दुकान खोलते हैं, फँक्ट्ररी जाते हैं। धन कमाना शुरु करते हैं, लेकिन हरे कृष्ण भक्त बडे चालाक हैं। "जेई कृष्ण भजे सेई बडा़ चतुर।" जो कृष्ण को भजता हैं, वही चतुर हैं।आप कृष्ण का भजन और यह हरिनाम लेना प्रारंभ करते हो ओर धन कमाते हो। दरिद्र कौन अमीर कौन इसकी परिभाषा यही हैं। शिक्षाष्टक में यह समझाया हैं। "हरिनाम धन बिना दरीद्र जीवन" हरि नाम का धन या भक्ति का धन 'राम नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊ गली गली' यह हरिनाम के हीरे हैं,मोती हैं। इसको कमाते जाईये। इसका फिक्स डिपौजीट और फिर इसके इंटरेस्ट से आपकी इंटरेस्ट भी बढेगी।इंटरेस्ट बढेगी मतलब हरिनाम में रुचि बढेगी और अधिक अधिक डिपोजिट करोगे तो फिर ज्यादा ब्याज,इंटरेस्ट भी आएगा और आप सुखी होओगे। चैंट हरे कृष्ण अँन्ड बी हैप्पी।हैप्पी होने के लिए धनी होना चाहिए। यह दरिद्र जीवन छोड़ दो! इस संसार के अमीर लोग दरिद्र हैं। गरीबी हटाओ। हमारा प्रोग्राम भी वही हैं।गरीबी हटाओ! यह संसार बडा गरीब हैं।टाटाज और बिरलाज और अंबानी और भी बड़े गरीब हैं, गरीब बेचारे! इस संसार के तथाकथित धनी लोग या विदेश के भी धनी लोग।धनी हो जाओ।ये हरि नाम धन हैं।इसे लेलो।श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने इसको धन कहा हैं गोलोकेर क्या? प्रेमधन।गोलोकेर प्रेमधन, हरिनाम संकीर्तन। आप इस तथ्य को समझिए और इस धन को कमाते जाईये। ध्यान पूर्वक इसको डिपोजिट करते जाइये। मेक शोर आपके अकाउंट में इसका डिपोजिट हो। माया के अकाउंट में नाम अपराध करेंगे तो हमारा यह धन माया के अकाउंट में डिपोजिट होंगा। सावधानी पूर्वक,ध्यान पुर्वक प्रभु के नामों को सुनिए।मतलब प्रभुको ही सुनिए। राधा को सुनिए कृष्ण को सुनिए। श्रूयतां श्रूयतां नित्यं गीयतां गीयतां मुदा । चिन्त्यतां चिन्त्यतां भक्ताश्चैतन्य - चरितामृतम् ॥ (श्री चैतन्य चरितामृत, अन्त लीला 12.1) अनुवाद: -हे भक्तों , श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य जीवन तथा उनके गुण अत्यन्त सुखपूर्वक नित्य ही सुने , गाये तथा ध्यान किये जाँय । "श्रूयतां श्रूयतां नित्यं गीयतां गीयतां मुदा" इसको सुनो कैसे? सदैव सुनों और सदैव प्रसन्न रहो। ऐसा ही कहा हैं। हरि हरि! तन्नामरूपचरितादिसुकीर्तनानु स्मृत्योः क्रमेण रसनामनसी नियोज्य । तिष्ठन् व्रजे तदनुरागि जनानुगामी कालं नयेदखिलमित्युपदेशसारम् ॥ (श्रीउपदेशामृत 8) अनुवाद : समस्त उपदेशों का सार यही है कि मनुष्य अपना पूरा समय - चौबीसों घण्टे - भगवान् के दिव्य नाम , दिव्य रूप , गुणों तथा नित्य लीलाओं का सुन्दर ढंग से कीर्तन तथा स्मरण करने से लगाए , जिससे उसकी जीभ तथा मन क्रमशः व्यस्त रहें । इस तरह उसे व्रज ( गोलोक वृन्दावन धाम ) में निवास करना चाहिए और भक्तों के मार्गदर्शन में कृष्ण की सेवा करनी चाहिए ।मनुष्य को भगवान् के उन प्रिय भक्तों के पदचिह्नों का अनुगमन करना चाहिए,जो उनकी भक्ति में प्रगाढता से अनुरक्त हैं। "तन्नामरूपचरितादिसुकीर्तनानु स्मृत्योः क्रमेण रसनामनसी नियोज्य। " उपदेशामृत का 8 वा श्लोक श्रील रुप गोस्वामी भी आपको यही स्मरण दिलाते हैं, इनके कारण हम रुपानुग बन जाते हैं, उनके पदचिह्नो का हमे अनुसरण करना हैं। उन्होंने महत्वपूर्ण उपदेश दिये हैं।11 उपदेश के वचन हैं।प्रभुपाद ने इसको प्रस्तुत किया हैं।उपदेशामृत के साथ भक्तिरसामृत सिंधु यह दोनों ग्रंथ भी श्रील रुप गोस्वामी प्रभुपाद के ही हैं। इस 8 वे उपदेश में रुप गोस्वामी ने "तिष्ठन् व्रजे"हम वृंदावन में रहे या वृंदावन मे रहकर क्या करना चाहिए "तदनुरागि जनानुगामी" वृंदावन के जो अनुरागी भक्त है,वृंदावन,ब्रज के,कृष्ण लीला के समय वाले,महाप्रभु के लीला के समय वाले, ओर भी, हमारे जो पुर्ववर्ती आचार्य हैं। ये सब अनुरागी भक्त हैं।"तदनुरागि जनानुगामी"।जो अनुरागी जन हैं,उनका अनुगमन करते हुए हमे वृंदावन में रहना चाहिए।"तिष्ठन् व्रजे","कालं नयेदखिलमित्युपदेशसारम्"।इस प्रकार हमे अपना जीवन बीताना चाहिए, काल को व्यतीत करना चाहिए।नहीं तो व्यय या अपव्यय होता हैं।व्यय मतलब खर्च करना या इनवेस्ट करना होता हैं, अपव्यय मतलब हम अपने काल का दुरूपयोग करते हैं।अपव्यय न करे,व्यय करे,खर्च करे, समय का सदुपयोग करे। ये कैसे किया जा सकता हैं? "कालं नयेद", "तिष्ठन् व्रजे"वृंदावन में रहकर "तदनुरागि जनानुगामी"और ये करना ही "खिलमित्युपदेशसारम्", " सारे उपदेश का सार यही हैं। ऐसा रुप गोस्वामी कह रहे हैं। इस उपदेश का सार यही हैं।इस ग्रंथ का नाम तो उपदेशामृत हैं ही और इस उपदेशामृत का सार "खिलमित्युपदेशसारम्","तिष्ठन् व्रजे" वृंदावन में रहो! अपने मन को वृंदावन कि और दौडाओ! वृंदावन बिहारी लाल कि जय...! उनके विहार का ध्यान करो, स्मरण करो! उपदेशामृत के प्रारंभ में कहा गया हैं। "तन्नामरूपचरितादिसुकीर्तनानु स्मृत्योः क्रमेण रसनामनसी नियोज्य ।" 'तन्नाम'भगवान का नाम, रूप, गुण लीला धाम में इसका कीर्तन, इसका श्रवण, 'स्मृत्योः'इसका स्मरण करो।'रसनामनसी'अपनी जिव्हा का उपयोग करो। हरि हरि! जिव्हा से शुरुआत करो।'नियोज्य' ऐसा आयोजन या नियोजन बना दो,लेकिन और भी इंद्रिया हैं। सर्वोपाधि- विनिर्मुक्तं तत्परत्वेन निर्मलम्। हृषीकेण हृषीकेश-सेवनं भक्तिरुच्यते।। (श्री चैतन्य चरितामृत, मध्य लीला19.170) अनुवाद: - भक्ति का अर्थ है समस्त इंद्रियों के स्वामी, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की सेवा में अपनी सारी इंद्रियों को लगाना। जब आत्मा भगवान् कि सेवा करता है तो उसके दो गौण प्रभाव होते हैं। मनुष्य सारी भौतिक उपाधियों से मुक्त हो जाता है और भगवान् कि सेवा में लगे रहे ने मात्र से उसकी इंद्रियां शुद्ध हो जाती हैं। 'हृषीकेण हृषीकेश-सेवनं भक्तिरुच्यते' ऐसी भक्ति करो। ऐसा करते करते आप वृंदावन पहुँच जाओगे, आप का मन वृंदावन पहुँच जाएगा या फिर जहाँ आप हो वृंदावन वहा पहुँच जाएगा। ये दोनों ही बातें संभव हैं।ऐसे करोगे आप, ऐसे श्रवण,कीर्तन, स्मरण करोगे तो आपकी आत्मा वृंदावन पहुँच जाएगी या वृंदावन वहा पहुँच जाएगा जहाँ आप हो।ये दोनों ही बातें संभव हैं।आप जहाँ हो वृंदावन बिहारी लाल जी वहा पहुँच जाएगें।"तिष्ठन् व्रजे" वृंदावन में रहकर ये सब करना हैं और यही है कृष्णभावना। यह विधी हैं और विधी के साथ निषेध भी होते हैं।उनको भी याद रखो कि ये करना हैं, ये नहीं करना हैं। निषिद्ध बातों का सामना करते हुए इनको टालते हुए इन से बचते हुए "तिष्ठन् व्रजे"वृंदावन में रहो और"तदनुरागि जनानुगामी" वहाँ के जो अनुरागी भक्तवृंद हैं, यही रागानुगा भक्त हैं। कहते हैं, हम गौड़ीय वैष्णव जिस भक्ति का अवलंब करते हैं,उसे रागानुग भक्ति कहते हैं।यही हैं, रागमार्ग, रागानुगा भक्ति। तो मन को वृंदावन कि तरफ दौडाओ।"चलो वृंदावन!", "गो बैक टू होम" यह कार्तिक मास हैं, इसलिए यह सारी बातें कहीं जा रही हैं। इस मास में, वृंदावन मास और राधा दामोदर या यशोदा दामोदर कि आराधना, दीप दान इत्यादि विधीओं को हमको अपनाना हैं। परिक्रमा भी हो रही हैं। ब्रज मंडल परिक्रमा कि जय..! आप उनके साथ भी रहो,आपका शरीर तो वहाँ नहीं हैं, लेकिन मन से आप पहुँच सकते हो। आनलाइन परिक्रमा को देखो। उनके साथ रहो तो फिर ऐसे आप कृष्ण के साथ रहोगे या आप वृंदावन में रहोगे ।आपके पास ब्रजमंडल दर्शन नामक ग्रंथ होना चाहिए।भगवान ने मुझसे इसकी रचना करवाई हैं।ब्रज मंडल की 25 बार परिक्रमा करने के उपरांत ब्रजमंडल दर्शन नामक ग्रंथ में मैंनें अपने अनुभव लिखे हैं।आप उसे प्राप्त कर सकते हो,उसमें एक दिन का एक अध्याय हैं।ऐसे 30 अध्याय हैं।पता लगाओ।आज परिक्रमा कहां हैं?आपको पता हैं?आज पांचवा दिन हैं। राधास्मृति को कुछ स्मृति हो रही हैं, कुछ पांच उंगली तो दिखा रही हैं। ठीक है! वह ग्रंथ लेकर बैठी हैं। औरों के पास तो नहीं है या होंगा लेकिन वह दिखा नहीं रहे हैं।उदयपुर वाले हमको भगवान का दर्शन करा रहे हैं,विग्रह कि आराधना भी हो रही हैं। ठीक हैं और कुछ ब्रजमंडल दर्शन ग्रंथों के दर्शन करा रहे हैं।हरि हरि! इस ग्रंथ का एक अध्याय एक दिन के लिए माया से दुर रखता हैं। यह मंत्र हैं। इस ग्रंथ के 1 अध्याय को पढ़ने से पूरे दिन माया से बच सकते हो। यह 1-1 अध्याय पढ़ोगे तो यह आपको वृंदावन में पहुंचा देगा।आप अपने परिवार के साथ पढ़ सकते हो।परिक्रमा को फॉलो करते रहो,आपको इससे विषय मिलेंगे,सब्जेक्ट मैटर मिलेगा। परिक्रमा आज मधुबन से शांतिकुंड जा रही हैं। मधुबन से वह ताल वन जाएंगे,ताल वन से कुमुदवन जाएंगे और कुमुद वन से आगे बगुला वन की ओर बढ़ेंगे।कुमुद वन और बगुला वन के बॉर्डर में आज पदयात्रा की परिक्रमा का पड़ाव होगा।आज की काफी लंबी यात्रा हैं,सफर हैं, वैसे सफर तो नहीं करेंगे।परिक्रमा के भक्त कभी भी सफर नहीं करते है( यह सफर अंग्रेजी का सफर नही हैं) या फिर कुछ सफरिंग या तकलीफ हैं, भी तो वह परमानंद की प्राप्ति के लिए हैं।कहते हैं फ्रॉम ब्लिस्टर टू ब्लीस, ब्लिस्टर मतलब पहले पैर में छाले पड़ते हैं, बिना जूते चलते हैं, तो पैरों में ब्लिस्टर्स हो जाते हैं, लेकिन वह ब्लिस्टर्स से बलिस मे परिवर्तित होते हैं।पैर में कभी फोडे आ जाते हैं।कांटे भी हमारे पैर को चुमते हैं।यही तपस्या हैं और तपस्या से क्या होता हैं।ऋषभदेव भगवान ने बताया हैं- 5.5.1 ऋषभ उवाच नार्य देहो देहभाजां नलोके कष्टान्कामानहते विड्भुजा ये ।। तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं शुद्धधेरास्माद्ब्रह्मसौख्य वनन्तम् ॥१ ॥ - भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा - हे पुत्रो , इस संसार के समस्त देहधारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई हैं, उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए ही दिन - रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कूकर - सूकर भी कर लेते हैं । मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का दिव्य पद प्राप्त करने लिए वह अपने को तपस्या में लगाये।ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता हैं और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता हैं ,तो उसे शाश्वत जीवन का आनन्द मिलता हैं ,जो भौतिक आनंद से परे हैं और अनवरत चलने वाला हैं। आपने तो सुना ही होगा कि नो पेन नो गेन।कुछ पाने के लिए आपको कुछ तकलीफ से गुजरना पड़ता हैं।परिक्रमा में कुछ तथाकथित परेशानिया हो सकती हैं,लेकिन यह केवल गेन हैं,यानी पाना ही पाना हैं, कुछ खोने के लिए नहीं हैं।आप कृष्ण भावनाभावित हो कर बहुत कुछ कमाएंगे,वैसे तो कृष्णभावनाभावित हो कर कृष्ण को ही कमाएंगे,यही तपस्या हैं, यह दिव्य तपस्या हैं। वैसे साधना का जीवन तपस्या का जीवन हैं।आप वृंदावन में आकर तपस्या करते हुए ब्रज मंडल परिक्रमा करते हो। आप जहां भी हो वहीं से तपस्या करते हो।प्रातकाल: में ब्रह्म मुहूर्त में उठना भी तपस्या हैं।कई सारी तपस्याएं हैं और यह तपस्या दिव्य हैं और फिर अगर पूछोगे तो बताओ कौन तपस्या नहीं करता?कोई परेशानी नहीं, चिंता नही,हर एक व्यक्ति तपस्या करता हैं। हर व्यक्ति तपस्या करता ही हैं। असुविधा तो होती ही हैं। अब नाम नहीं बताउगा कि किस किस प्रकार की तपस्या होती हैं। आप सब जानते ही हो, लेकिन दिव्य तपस्या करनी चाहिए BG 9.27 “यत्करोषि यदश्र्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् | यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् || २७ ||” अनुवाद हे कुन्तीपुत्र! तुम जो कुछ करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ अर्पित करते हो या दान देते हो और जो भी तपस्या करते हो, उसे मुझे अर्पित करते हुए करो | जो भी खाते हो, जो तपस्या करते हो, जो भी दान देते हो ,यज्ञ करते हो,वह सब मुझे अर्पित करो,भगवान ऐसा कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं।यद् तपसयसि, मेरे लिए तपस्या करो। फालतू में इस संसार का धन कमाने के लिए नहीं।कृष्ण कह रहे हैं कि नहीं नहीं फालतू तपस्या मत करो।फालतु संसार मे धन कमाने के लिए कम तपस्या हैं क्या?कुछ तो कह रहे हैं कि नही नही बहुत तपस्या हैं।तपस्या करो कृष्ण के लिए, हरि प्राप्ति के लिए,तपस्या करो हरि नाम धन प्राप्ति के लिए या कृष्ण स्मरण प्राप्ति के लिए या ब्रज में वास के लिए तपस्या करो। साथ ही साथ आज नरोत्तम दास ठाकुर तिरोभाव तिथि महोत्सव भी हैं। यह कार्तिक मास महोत्सव का महीना हैं और आज श्रील नरोत्तम दास ठाकुर तिरोभाव तिथी महोत्सव हैं। हरि हरि। नरोत्तम दास ठाकुर भी एक समय बृजवासी रहे। उन्होंने वृंदावन में वास किया। वैसे वह थे तो खेचुरी ग्राम के। खिचुरी ग्राम वेस्ट बंगाल इंडिया में हैं, इस्ट बंगाल,जो भी हैं, आज से 500 वर्ष पूर्व उत्तर,दक्षिण दिशा यह सब फर्क नहीं था।यह नरोत्तमदास वहां पद्मावती नामक पवित्र नगरी के तट पर जन्मे हैं।उन्होंने घर बार,धन दौलत में बिल्कुल रुचि नहीं दिखाई। वैसे तो यह राजा के पुत्र थे,लेकिन राजा के पुत्र होते हुए भी पद पदवी में, धन दौलत में इन्होंने बिल्कुल भी रुचि नहीं दिखाई।बचपन से ही वह गौर नित्यानंद से आकृष्त थे।उन्होंने बड़े युक्ति पूर्वक घर को त्यागा। हरि हरि।जब नरोत्तम दास ठाकुर जन्मे तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अंतर्ध्यान हो चुके थे।उनकी प्रकट लीला का समापन हो चुका था। लेकिन जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु थे तो वह 1 दिन एक विशेष दिशा में देखकर जोर-जोर से पुकारने लगे।पूरब की ओर देख कर पुकारने लगे।नरोत्तम- नरोत्तम-नरोत्तम, किसी को भी पता नहीं चल रहा था कि यह नरोत्तम कौन हैं और वह किसे पुकार रहे हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु नरोत्तम दास ठाकुर के आगमन की घोषणा कर रहे थे।खैर यह नरोत्तम पुन्ह: वृंदावन पहुंच गए। वृंदावन में आकर लोकनाथ गोस्वामी की खूब सेवा कर रहे थे,बल्कि छुप छुप के सेवा कर रहे थे। लोकनाथ स्वामी और किसी से सेवा स्वीकार नहीं करते थे। जीव गोस्वामी नरोत्तम दास ठाकुर के शिक्षा गुरु थे।उस समय बाकी गोस्वामी अंतर्ध्यान हो चुके थे और जीव गोस्वामी का जमाना था। जीव गोस्वामी गोडिय वैष्णवो के रक्षक थे,क्योंकि केवल जीव गोस्वामी ही थे,तो वह कइ जीवो के शिक्षा गुरू थे। नरोतम दास ठाकुर के भी वह शिक्षा गुरू थे। और उन्हीं से दीक्षा लेना चाहते थे, लेकिन लोकनाथ स्वामी दीक्षा नहीं देना चाहते थे किंतु अंततोगत्वा नरोत्तम दास ठाकुर की सेवा,प्रयास और प्रार्थना और दृढ़ निश्चय का परिणाम यह निकला कि लोकनाथ गोस्वामी ने नरोत्तम दास ठाकुर को अपने शिष्य रूप में स्वीकार किया और लोकनाथ गोस्वामी के वह केवल एक मात्र शिष्य थे और तारों की क्या आवश्यकता हैं,जब चंद्रमा मौजूद हैं। ऐसे विशेष शिष्य थे, यह नरोत्तम दास ठाकुर। "लोकनाथ लोकेर जीवन"यह जो गीत हैं,यह नरोत्तम दास ठाकुर का ही हैं।उन्होंने कई सारी प्रार्थनाएं लिखी हैं।उनकी प्रार्थनाओं का एक संग्रह हैं।श्रील प्रभुपाद ने इस्कॉन के भक्तों को नरोत्तम दास ठाकुर के गीत दिए।श्रील प्रभुपाद गीत गाते थे,किसके?नरोत्तम दास ठाकुर, भक्ति विनोद ठाकुर और कुछ लोचन दास ठाकुर के भी गीत गाते थे। जिन गीतो को गोर किशोर दास बाबा जी महाराज भी पसंद करते थे और वह कभी कभी पूछते कि भगवद् साक्षात्कार में आपकी रुचि हैं?तो वह कहते कि हां हां, मेरी बहुत रुचि हैं।गोर किशोर दास बाबाजी महाराज कहते थे कि अगर आपके पास चवन्नी हैं या अठन्नी हैं,4 आना हैं या 8 आना हैं, एक समय चवन्नी,अठन्नी चलती थी। जब हम छोटे थे तब भारत में यह चवन्नी,अठन्नी चलती थी। गौर किशोर दास बाबा जी महाराज के समय भी यह चलता था।गौर किशोर दास बाबा जी महाराज को कोई कहता कि मेरे पास अगर चवन्नी हैं, तो मैं क्या करूं? तो वह कहते कि नरोत्तम दास ठाकुर का एक प्रार्थना ग्रंथ हैं,उसको खरीद लो और पढ़ो और गाते जाओ भगवत साक्षात्कार होगा,यह गौर किशोर दास बाबा जी महाराज की सिफारिश हुआ करती थी। एक समय परिक्रमा चल ही रही थी,उसमें एक स्मरणीय बात हैं कि जीव गोस्वामी सोच रहे थे कि वह नरोत्तम दास ठाकुर और श्रीनिवासाचार्य को ब्रजमंडल परिक्रमा में भेजें।वह उन दोनों को ब्रजमंडल परिक्रमा में भेजना चाहते थे।ऐसा उनके मन में विचार था कि मैं इन दोनों को परिक्रमा में भेजना चाहता हूं।ऐसा विचार कर ही रहे थे, तो एक भक्त राघव गोस्वामी आ गए और वह कहने लगे कि मैं ब्रज मंडल परिक्रमा में जा रहा हूं। अगर कोई जाना चाहता हैं तो चल सकता हैं। जीव गोस्वामी ऐसा चाहते ही थे,वह अपने दो शिष्यों को भेजना चाहते थे। राघव गोस्वामी,नरोत्तम दास ठाकुर और श्रीनिवासाचार्य और एक बड़ा नाम है हमारे गोडिय वैष्णव परंपरा में,जीव गोस्वामी के बाद गोडिय वैष्णव परंपरा के तीन आचार्य रहे। इन तीनों में से नरोत्तम दास ठाकुर और श्री निवास आचार्य इन दोनों को लेकर राघव गोस्वामी ब्रजमंडल की परिक्रमा करने चल पड़े। ब्रजमंडल की परिक्रमा के यह राघव गोस्वामी भी एक मंत्री हैं।यह चैतन्य महाप्रभु के परिकर और गोवर्धन में एक जगह हैं, पुछरी का लोटा,क्या आप जानते हो?जहां राधा कुंड श्याम कुंड हैं,वह एक मुख हैं गोवर्धन का,गोवर्धन एक मयूर जैसा हैं,उसका मुख हैं,जहां राधा कुंड और श्याम कुंड हैं और दूसरी और मयूर की पूंछ हैं।वहा पूछरी का लौटा नाम से एक बाबा बैंठे हैं। वहीं पास में एक स्थान हैं पूछरी का लोटा।यह पूछरी का लौटा दक्षिण में हैं।तो वहीं पर यह राघव गोस्वामी रहते थे।वहां उनकी गुफा भी हैं। जब हम ब्रज मंडल परिक्रमा में जाते हैं,गोवर्धन परिक्रमा के दिन हमारा नाश्ता प्रसाद वहीं होता हैं।वह मंजरी नहीं, वह तो सखी थे,चंपक लता सखी।अष्ट सखियों में से जो चंपक सखी हैं,वही यह राघव गोस्वामी थे।वह नरोत्तम के लिए गाइड बन गए।वह नरोत्तम का परिक्रमा में मार्गदर्शन करने लगे।नरोत्तम दास ठाकुर ने भी परिक्रमा की जिसका वर्णन एक नरहरी चक्रवर्ती हैं,उन्होंने एक ग्रंथ लिखा हैं,भक्ति रत्नाकर नामक ग्रंथ लिखा हैं, उसमें उन्होंने जो ब्रजमंडल की परिक्रमा की और नरोत्तम दास ठाकुर को अपने साथ ले गए,बृज मंडल परिक्रमा में उसका वर्णन हैं। मैं भी जब परिक्रमा में जाता हूं तो उस परिक्रमा की डेरी आज भी उपलब्ध हैं। नरहरी चक्रवर्ती ने वह हमें उपलब्ध कराया।हमारी ब्रज मंडल पुस्तक में भी कई सारे वर्णन भक्ति रत्नाकर से हैं।नरोत्तम दास ठाकुर इस प्रकार ब्रजवासी थे और उन्होने परिक्रमा की। फिर वह वृंदावन से गोडिय वैष्णवो का साहित्य लेकर लौट गए और 3 आचार्य बंगाल गए। उन्होंने उसे बैलगाड़ी में लोड किया और बोला की इसकी डिलीवरी बंगाल में करो।ऐसा जीव गोस्वामी का आदेश था। फिर नरोत्तम दास ठाकुर खेचुरी गांव में पहुंचे और वहीं से प्रचार प्रसार किया और आज भी पूरा मणिपुर,आसाम, इसट इंडिया में गोडिय वैष्णवो का जो प्रचार हुआ हैं,वह नरोत्तम दास ठाकुर की वजह से हुआ हैं।हरि हरि और पहली बार पूर्णिमा का उत्सव भी नरोत्तम दास ठाकुर ने मनाया।तब चैतन्य महाप्रभु नहीं थे। पहला गोर पूर्णिमा महोत्सव नरोत्तम दास ठाकुर ने मनाया।अब तो यह इस्कॉन में बहुत ही प्रचलित हैं। सर्वप्रथम उत्सव मनाने वाले नरोत्तम दास ठाकुर ही थे और उस उत्सव का क्या कहना, जाहनवा माता और भी बहुत भक्त,सारा गोडिय वैष्णव समाज ही वहां मौजूद था।पहला गोर पूर्णिमा उत्सव खैचुरी ग्राम में संपन्न हुआ। नरोत्तम दास ठाकुर जब गायन कर रहे थे, गोरांग और पंचतत्व के यश का गुणगान कर रहे थे,तो सारे पंचतत्व पुनह: वहां प्रकट हो गए।प्रकट लीला में इनमें से कोई भी वहां प्रकट नहीं था, प्रकट लीला हो चुकी थी, किंतु जब नरोत्तम दास ठाकुर गायन करने लगे, कैसे?भक्ति भाव के साथ, तो पंचतत्व सभी के मध्य में प्रकट हो गए।वहा जो हजारों लाखों भक्त उपस्थित थे सभी ने अनुभव किया कि गोरांग नित्यानंद प्रभु यहां उपस्थित हैं, गदाधर पंडित सभी ही उपस्थित हैं, देखो देखो श्री निवास ठाकुर भी यहां हैं। सभी को बहुत अचरज हुआ। ऐसे हैं हमारे नरोत्तम दास ठाकुर। इनको कहते हैं," नरोत्तम"," नरो में ऊतम"। आज के दिन उन्होंने पद्मावती में प्रवेश किया। उनके कई सारे अनुयायि उनके साथ हैं और वह अभिषेक कर रहे थे, नरोत्तम दास ठाकुर का अभिषेक कर रहे थे, उसी के साथ क्या हुआ? उनका शरीर पिघलने लगा और वह अधिकाधिक जल प्रयोग करते हुए अभिषेक कर रहे थे।वह शरीर नहीं रहा और जिस जल का वह प्रयोग कर रहे थे उसका दूध बन गया और वह समाधि नरोत्तम दास ठाकुर की दुग्ध समाधि हैं, दूध से बनी हुई समाधि।जब मैं मायापुर में 10 दिन पहले था तो हमारे नाम हट के भक्त आज के दिन हमें बुला रहे थे, वह उस क्षेत्र के हैं, जहा यह दुग्ध समाधि हैं।मुझे बुला रहे थे कि आईए आईए,आज के दिन वहां बहुत बड़ा उत्सव होगा, जहां नरोत्तम दास ठाकुर की दुग्ध समाधि हैं। उनका परायण या तिरोभाव भी बहुत अद्भुत हैं। जैसे कि आप संक्षिप्त मैं सुन रहे थे, ऐसे हैं हमारे नरोत्तम दास ठाकुर। "जे अनिलो प्रेम धन करुणा करूणा प्रचुर",यह गीत नरोत्तम दास ठाकुर का ही लिखा गया हैं। तिरोभाव तिथि के दिन जो हम गीत गातें हैं, यह रचना नरोत्तम दास ठाकुर की हैं। उन्होंने अपने विरह की व्यथा उस गीत में व्यक्त की हैं। इससे पता चलता हैं कि वह भक्तों से, गुरुजनों से, आचार्यो से कितना प्रेम करते थे।उनको जैसे-जैसे पता चल रहा था कि यह आचार्य नहीं रहे, रूप गोस्वामी नहीं रहे और भी आचार्य नहीं रहे तो यह भाव प्रकट करने लगे। इस गीत में वह अपने भाव व्यक्त कर रहे हैं।अब हमारी बारी हैं।हमें भी वैसे ही भाव व्यक्त करने हैं।कम से कम इस गीत को गाकर आप अपने भाव व्यक्त कर सकते हो। देख लो,इस गीत को पढ़ लो,गा लो, नरोत्तम दास ठाकुर के संबंध में और भी गीत हैं, उसको भी गा सकते हो। नरोत्तम दास ठाकुर तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय! ब्रज मंडल की जय!निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! श्रील प्रभुपाद की जय!

English

Russian