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जप चर्चा, 22 अक्टूबर 2021, वृंदावन धाम. हरि बोल, हमारे पदयात्री भी सुन रहे हैं वृंदावन में, आप भी आप परिक्रमा कर रहे हो आशा है और हम आपको प्रेरना देना चाहेंगे। आप परिक्रमा को देखे या सुने ऑनलाइन परिक्रमा की मैं बात कर रहा हूं। आपके सुविधा के लिए क्योंकि आप ब्रजमंडल नहीं पहुंचे तो आपके घर पर परिक्रमा को पहुंचाया जा रहा है। होम डिलीवरी हो रही है परिक्रमा की तो उसका फायदा उठाइए। मॉरीशयस में पहुंच रही है परिक्रमा हर जगह यह उपलब्ध है। और दामोदरअष्टकम गाइये और दीपदान कीजिए इस महीने में। और दीपदान करवाइये औरों से। हरि हरि उत्तिष्ठीत जाग्रत वराण निबोधत ऐसे एक वेद वाक्य या वाणी है। उत्तिष्ठीत उठो, जाग्रत जागो, वराण निबोधत और भगवान ने इस समय आपको जो वरदान दिया है उन वरदानों को समझो। बोध कराओ। वरान्निबोधत मनुष्य जीवन ही बहुत बड़ी देन है या वरदान है। दुर्लभ मानव जन्म यह जीवन बहुत दुर्लभ है। अध्रुवमपि अर्थदम प्रल्हाद महाराज ने कहा है, मनुष्य जीवन है तो अध्रुवम। अध्रुवम मतलब है इसकी कोई गारंटी नहीं है शाश्वतता का नहीं है। या यह सब होते हुए भी अर्थदम यह अर्थपूर्ण है, अर्थदम। तद अपी अर्थदम प्रल्हाद महाराज ने कहा है, अर्थपूर्ण ऐसा यह मनुष्य जीवन। भगवान ने इस वक्त हम को दिया है। इस वक्त हम शुकर कुकर ही बने हैं। शुकर मतलब सूअर कुकर मतलब कुत्ते। कुत्ते बिल्ली नहीं बने हैं। इस वक्त हमें मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ है। और यह दुर्लभ देह हैं तो इसका पूरा लाभ उठाओ। वह कहते हैं और फिर इस महीने में दामोदर महीने में दामोदर मास का पूरा लाभ उठाओ। अपने और अपने मनुष्य जीवन को सार्थक करो। हरि हरि, मनुष्य जनम पाइया राधा कृष्ण ना भजिया, जानिया शुनिया विष खाईलो। मनुष्य जीवन तो प्राप्त हुआ है किंतु, इस मनुष्य जीवन का उपयोग हम राधा कृष्ण के प्राप्ति के लिए अगर हम नहीं कर रहे हैं। अगर हम राधा दामोदर के प्राप्ति के लिए राधा दामोदर को प्रसन्न करने के लिए नहीं कर रहे हैं तो, फिर हम क्या करेंगे, जानिया शुनिया विष खाइलो हम जहर पिएंगे। तो जहर मत पियो। अमृत पियो। टनों में अमृत उपलब्ध है। यह दामोदर मास अमृत पान करने का महीना है। समय है। जहर को मारो गोली, फेक दो। त्याग दो। ठुकरा दो। इस संसार का जहर माया है जहर और कृष्ण है अमृत। हरि हरि, अक्रूर घाट पर परिक्रमा अब थोड़ी देर में पहुंच ही रहे हैं। अक्रूर घाट वहां भी स्मरण करेंगे हम अक्रूर जी का स्मरण करेंगे। अक्रूर गए वैसे वृंदावन, मथुरा में कंस के साथ रहा करते थे। कंस ने भेजा अक्रूर को भेजा लेकर आओ कृष्ण बलराम को। अक्रूर गए और कैसे गए और क्या क्या चिंतन कर रहे थे रास्ते में। यह भी स्मरणीय बात है। स्मरण करने योग्य बात है, कैसे और क्या भाव थे। क्या विचार थे। कैसे उत्कंठा थी अक्रूर जी की। श्रील प्रभुपाद कहते हैं, वृंदावन जाना है तो कैसे जाओ अक्रूर जैसे। वृंदावन जाओ जैसे अक्रूर गए। हरि हरि, जब अक्रूर कृष्ण बलराम का चिंतन कर ही रहे थे रास्ते में और महत्वाकांक्षा यह थी, "हां हां आज मैं देख लूंगा। आज मैं मिलूंगा। आज मैं दर्शन करूंगा कृष्ण बलराम का"। जब कृष्ण बलराम उन्होंने देख ही लिया, ददर्शकृष्णंराममचव्रजे गोधुवनम गतो सायंकाल के समय पहुंचे अक्रूर मथुरा से वृंदावन पहुंचे। मतलब नंदग्राम पहुंचे। नंदभवन पहुंचे और वहां पहुंचते ही कृष्ण बलराम का दर्शन किए। ददर्शकृष्णंराममचव इतना ही कह कर आगे की लीला की बात करते हैं शुकदेव गोस्वामी भी। और कृष्ण बलराम को देखें बस आगे बढ़ो किंतु, शुकदेव गोस्वामी ने अक्रूर ने जो ददर्शकृष्णंरामम राम मतलब बलराम कृष्णम मतलब श्रीकृष्ण को देखा तो कैसे देखा क्या? देखा उनके सौंदर्य को, देखा उनके चाल को देखा, उनके कुछ लीलाओं का भी स्मरण कर रहे हैं जब उन्होंने देखा कृष्ण बलराम को। अक्रूरने जैसे देखा आंखों देखा वर्णन शुकदेव गोस्वामी हमको सुना रहे हैं। भागवत कथा में वर्णन सुनाएं हैं। तो कोई भी भाग्यवान, आज भाग्यवान हैं। आज हम उनको उसको पढ़ना चाहते हैं। संक्षिप्त में समय कम है। आइये हम दर्शन करते हैं। जैसे दर्शन किया अक्रूर ने। क्या क्या देखा कृष्ण बलराम में, क्या-क्या देखा। आप भी देखना चाहते हो कृष्ण बलराम को। जरा उत्कंठित हो तो फिर दर्शन होंगे या जो सुनेंगे आप भी देखेंगे कैसा दर्शन रहा, या त कुछ साक्षात्कार या अनुभव भी रहा उनका। हरिबोल! ब्रजे गोधुवनम गतो सायंकाल के समय पहुंचे हैं अक्रूर नंदभवन या नंदग्राम में, नंदभवन के प्रांगण में। वैसे कृष्ण बलराम गोदोहन से अभी अभी लौटे है। गोचारण लीला खेलकर अब नहा धोकर स्नान हुआ है। अभिषेक हुआ है। और तुरंत ही अगला काम उनका है गो दोहन गाय का दूध निकालना। उसके लिए जब वे जा रहे थे गौशाला के लिए ओर तो अक्रूर उसी समय पहुंचे कृष्ण बलराम को देखें। पीत नीलांबरो अधरों शरद अंबुहृहेक्षणो.... कैसे कृष्ण बलराम थे पीतनीलांबर धरो, अंबर मतलब वस्त्र। कैसे थे वस्त्र, एक में नीले वस्त्र पहने थे वह थे बलराम और पीत पीतांबर वैसे नाम भी है कृष्ण का एक नाम भी है पितांबर और बलराम का नाम है नीलांबर एक ने मिले वस्त्र पहने हैं एक में पीले वस्त्र पहने हैं पीतांबर शरद अंबुहृहेक्षणो. और उन्होंने व्यक्ति को देखना है तो जब तक उनकी आंखों को नहीं देखते तो देखना पूरा नहीं होता। यहां तो अक्रूर कृष्ण बलराम का दर्शन उनकी आंखों का दर्शनसे ही कर रहे हैं। शरद अंबू शरद ऋतु में खिले हुए कमल के पुष्प जैसे श्रीकृष्ण बलराम की आंखें। पदमालोचनी कमललोचनी कृष्ण बलराम को देखें। हमारी आंखें तो मर्कट लोचनी होती है। बंदर जैसी हमारी आंखें होती है। लेकिन कृष्ण बलराम पदमालोचन नमः पंकजनेत्राय कुंती महारानी ने भी कहा था। नमः पंकजनेत्राय पंकज नेत्र किशोरों श्यामल श्वेतो श्रीनिकेतो बृहद भुजो.... दोनों भी किशोर आयु की दृष्टि से, उनकी उम्र की दृष्टि से किशोर कहने से उम्र का पता चलता है। एक समय वह कुमार थे, फिर पोगंड अवस्था को प्राप्त किए। अब उनकी उम्र थी कुछ 11 साल की है कृष्ण बलराम कि। बलराम थोड़े और बड़े है कृष्ण से लेकिन अब 10 से 15 साल की आयु किशोरावस्था कहलाती है। तो किशोरों दोनों किशोर हैं। श्यामल श्वेतो अंकेश विग्रहों की जो कांति है ,रंग है, कृष्ण है श्यामल और बलराम है श्वेतो जैसे शंख होता है या हंस होता है सफेद होते हैं श्वेतो एक है श्वेत वर्ण के दूसरे कृष्ण श्यामल वर्ण के। जयति जयति देवो मेघश्यामल कोमल अंगों जगन्नाथ की प्रार्थना में हम गाते हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु गाये जगन्नाथ को देख रहे थे तो उन्होंने वर्णन किया। जयति जयति मेघश्यामल कोमल अंगों अंग भी कोमल है। श्यामल कोमल कृष्ण श्यामल और कोमल तो दोनों भी है कृष्ण बलराम। लेकिन वर्ण की दृष्टि से कृष्ण श्यामल और बलराम श्वेत वर्ण के हैं। श्रीनिकेतो और यह लक्ष्मी के श्रीनिवास कहते हैं। भगवान को कहते हैं श्रीनिवास मतलब लक्ष्मी निवास। जहां भगवान वहां लक्ष्मी का वास होता है। वही रहती है लक्ष्मी भी या उनके गोद में या उनके ह्रदय में या उनके वक्षस्थल भी हैं वहां पर भी रहती हैं लक्ष्मी। और वृंदावन में तो लक्ष्मी सहस्त्र शतसंभ्रम सेव्यमानो तो यह गोपिया ही लक्ष्मीया हैं। और कृष्ण की गोपियां है। बलराम की अपनी गोपियां है। इसीलिए कहां है श्रीनिकेतो और बृहदभुजो और फिर इनका गुण है यह महाभुज है पाही पाही महाभुजो हे महाभुज रक्षा करो रक्षा करो। हरि हरि, सुमुखो सुंदरवरो बालवीरदविक्रमो इस तरह दर्शन किए बलराम का दर्शन किए। सुमुखो सुंदर मुख वाले। पुर्णेदो सुंदरमुखात सूमोखो सुंदरवरो सुंदरवर होते हैं। नटवर भी होते हैं। वर मतलब श्रेष्ठ। तो यह दोनों श्रेष्ठ और सुंदर भी है। सौंदर्य की दृष्टि से सौंदर्य में यह सबसे अधिक श्रेष्ठ है। किसी की भी तुलना नहीं हो सकती है कृष्ण बलराम के सौंदर्य के साथ। और बालवीरदविक्रमो वीरद मतलब हाथी, बालहाथी। मानो दो छोटे हाथी है और वैसे ही उनकी चाल है। उनका पराक्रम विक्रमो उनका पराक्रम हाथी जैसा है हाथी जैसे पराक्रमी है या बालहाथी जैसे इनकी चाल है। बालवीरद विक्रमो और आगे दर्शन में और भी थोड़ा गहराई में जाकर दर्शन की बात हो रहे हैं। थ्वजवज्रांकुशमभोजये चिन्हभिर अंगीरभिर व्रजम.. उनके चरणकमल में कृष्ण बलराम के चरणो में चरणकमल में कई अलग अलग चिन्ह है। यहां पर कुछ चिन्हों का ही उल्लेख हुआ है। ध्वजा है वज्र है। वज्र हथियार है और अंकुश है। हाथी को नियंत्रण में रखने के लिए जो होता है वह अंकुश है। अंबुजे कमल के पुष्पोका चिन्ह है और इन चिन्होसे भगवान के चरण कमल में तलवे में ऐसे चिन्ह है और ऐसे यह चिन्ह वाले चरण वृंदावन में चलते हैं शोभायंतो ब्रजम ब्रज वृंदावन में जब चलते हैं तो शोभा बढ़ाते हैं। यह वृंदावन ब्रज भूमि तो सम अंलकृत करते है। वृंदावन का डेकोरेशन होता है भगवान के चरणों के चिन्हों से। यह चिन्ह भी चिन्हा अंकित है। महात्मानो अनुक्रोशसितोइक्षणो.... हरि हरि उदार रुचिरक्रिडो ..... उनकी जो क्रीडाये हैं लीलाये है, क्रीडा है यह औदार्य है। कृष्ण बलराम अपनी लीला खेल कर अपने औदार्य का उदारता का प्रदर्शन करते हैं। यह हमको दान देते हैं। यह लीला का ताकि हम सुने और लाभान्वित हो। श्रगविनो और कई प्रकार के मालाएं पहनते हैं। वह मोती की माला है या अलग-अलग गए हैं। और वनमालो घर में यशोदा ने तो कई सारे अलंकार पहनाए थे कृष्णा को। कृष्ण गए मित्रों के साथ वन में पहुंचते हैं। मित्रों को लगता है नहीं यह सब अच्छा नहीं है। यह माला यह अच्छे नहीं हैं। यह तो बनावटी है। यह किसी ने तो बनाई है। तो वहां की पुष्पों से, पुष्प है, कुछ पत्र भी है उससे मालाएं बनाते हैं और पहनाते हैं कृष्ण बलराम को। तो फिर वनमाली कहलाते हैं। पदमामाली कहलाते हैं। वैजयंती कहलाते हैं। वैजयंती माला ऐसे वनमालो अक्रूर ने देखा कि वहां वनमाला भी पहने हुए हैं। पुष्पगंधानुलिप्तमअंगौ स्नातो विरजवाससो जैसे ही वह लौटे थे और गोचारण लीला से यशोदा और रोहिणी का पहला काम या उनका स्वागत होता है और फिर उनका स्नान करवाती है दिन भर जो वस्त्र पहने थे कृष्ण बलराम ने और सारे ब्रज की धूल वस्त्रों में और सारा धूल उनके अंगों में भी जैसे कि पांडुरंग बन जाते हैं तो उनके वस्त्र उतारकर उनका अभिषेक होता है नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। विरजवाससो स्नातो, अक्रूरजी ने देखा कि उन्होंने स्नान किया। अभी अभी स्नान किया है ऐसा दर्शन किया हुआ और वस्त्र पहने हुए हैं विरजवाससो अच्छे साफ कपड़े पहने हुए हैं। इसमें गंदगी नहीं है। अभी-अभी नए वस्त्र पहने हैं। और जब अभिषेक स्नान हुआ तो पुण्यगंधानुलिप्तांगो, कई सारे सुगंधी दिव्य द्रव्य का लेपन हुआ है। चंदन आदि सौरभ से लिप्त अंगों और संभव है कि अक्रूरजी वे सुंघ रहे हैं। वैसे श्रीकृष्ण का शरीर ही सुगंधित है। वैसे हमारे शरीर तो उसमें बदबू आती रहती हैं लेकिन कृष्ण बलराम के शरीर विग्रह बहुत स्वाभाविक ही सुगंधित रहते हैं। यह वैशिष्ट्य है उनके विग्रह का उनके रूप का। स्वाभाविक वह सुगंधित है। और ऊपर से गंधो का जो लेपन है। गंधोलिप्तांगो भी हुआ है। प्रधानपुरुषो यह दोनों कैसे हैं कृष्ण और बलराम प्रधान पुरुष है गोविंदम आदि पुरुषम आदि पुरुष है। प्रथम पुरुष है। प्रधान पुरुष है। जगतहितुहू और यह सारे संसार के जगतहुतू मतलब कारण है। सर्व कारणकारणम कृष्ण बलराम की जय! सभी कारणो के कारण जगतहतू है। जगतपति और सारे संसार के यह स्वामी है। पति है। हरि हरि, केवल राधा पति ही नहीं है, हम सबके भी पति भगवान ही हैं। वह है पुरुष। कृष्ण और बलराम है पुरुष और बाकी सब स्त्रियां है पुरुषः प्रकृति भगवान पुरुष है और हम सब प्रकृति स्त्रियां हैं। स्त्रियों के होते हैं पति। हमारे पति कृष्ण बलराम है। कैसा दर्शन किया जगतपति का दर्शन किया अक्रूर जी ने अवतीर्णोजगत्यर्थी समक्षेण बलकेशवो और वे अवतीर्णो दोनों प्रकट हुए हैं। जगत के कल्याण के लिए मतलब हमारे कल्याण के लिए। हम सुन रहे हैं। याद रखना हमारे कल्याण के लिए हमारे फायदे के लिए, हमारे उद्धार के लिए या केवल हम को दर्शन देने के लिए और दर्शन देकर या फिर श्रील प्रभुपाद ने हमको कृष्ण बलराम दिए। अक्रूर घाट में दर्शन है कृष्ण बलराम का दर्शन है। अक्रूर जी बीच में है और कृष्ण बलराम उनके दाएं और बाएं बाजू में खड़े हैं। उनको रथ में बिठाकर अक्रूर मथुरा के और ले जा रहे थे। अक्रूर घाट पर उन्होंने थोड़े समय के लिए रथ को रोका था तो, वहां भी कृष्ण बलराम का दर्शन है। और हमें भी श्रील प्रभुपाद कृष्ण बलराम मंदिर की जय! यहां मंदिर अंग्रेज का मंदिर नहीं है। कृष्ण बलराम का मंदिर है। इसमे अंग्रेज के मूर्ति की वहा स्थापना नहीं है। वहां कृष्ण बलराम है। हमारे कल्याण और हमको दर्शन देने के लिए है। विग्रहों के रूप में भगवान प्रकट होते हैं। दिशोविथी राजन कुर्वानु प्रभयास्वया अक्रूर जी ने अनुभव किया कि कृष्ण बलराम के उनके अंगों से प्रभया प्रभा कांति निकल रही हैं। वितरित हो रही हैं। उसी के साथ सारे दिशा ओ में 10 दिशाओं में जो अंधेर हैं उसको मिटा रहा है वह प्रकाश। कोटी सूर्य समप्रभ अंधेरा दूर दूर भाग रहा है। उसी के साथ तमसो मा ज्योतिर्गमय हो रहा है। हे अंधेरे, अंधेरे में आया हूं यहां पर तो कृष्ण बलराम है और कृष्ण बलराम प्रकाश की ओर ले जा रहे हैं या प्रकाश दे रहे हैं। यथामार्कतशैलो रौप्यस्यकनकाचित्तो कृष्ण बलराम पहाड़ है। पर्वत है। रौप्य एक चांदी का और दूसरा सोने का या मरकत मणि का पर्वत है। ऐसा दर्शन ऐसा अनुभव हो रहा है और ऐसे कृष्ण बलराम को जैसे ही देखा अक्रूर जी ने, रथातुर्णमवप्लुत्य सुअक्रूरस्नेहविवलहः। पपातचरणोपांते दंडवत रामकृष्णयो।। वैसे यह सब रथ में बैठे-बैठे अभी रथ में ही है। रथ पहुंचा है और कृष्ण बलराम को सामने देखा है। अब क्या हो रहा है, यह दर्शन से वे स्नेहविवलहः स्नेह उमड आया है। और रथ से नीचे उतरे क्या, वह धड़ाम से गिरे हैं। पपात वह गिर गए। जैसे हम लोग उतरते हैं, गाड़ी से उतरते हैं, रथ से उतरते हैं, टांगे से उतरते हैं, वैसे उतरे नहीं वैसे गिर पड़े उनके चरणों में। किनके चरणों में, रामकृष्णयोः रामकृष्ण बलराम कृष्ण के चरणों में दंडवत प्रणाम करते हुए गिरे हैं। भगवदर्शन अल्हाद बाष्पकुलेक्षणः पुलकचितांग औकंठ्यात स्वख्याने नाशकमनृपो श्लोक में लिखा है भगवत दर्शन अल्हाद कृष्ण बलराम के दर्शन से वे अल्हादित या आनंद के सागर में गोते लगा रहे हैं। और अब तो लोटांगन हो रहा है वहां। और अश्रु धाराएं बह रहे हैं। शरीर में रोमांच हैं। इतना सब हो गया अक्रूर जी का कृष्ण बलराम के दर्शन से। हरि हरि, गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! अभी हमें रुकना होगा क्योंकि मैं जहां पर हूं उस स्थान से मुझे अभी अक्रूर घाट पहुंचना है। फिर 7:30 बजे 740 तक देखते हैं अगर आपके पास समय है और इच्छा है पुनः मिलेंगे थोड़ी देर में। तब तक के लिए अपनी वाणी को विराम देते हैं। हमारा भी गला गदगद हो उठनख चाहिए था लेकिन ऐसा तो नहीं हो रहा है। विराम दे देंगे अभी। हरे कृष्ण।

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