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*जप चर्चा* *08 -12 -2021* *पंढरपुर धाम से* हरे कृष्ण ! आज 1000 स्थानों से भक्त इस जप में सम्मिलित हैं। शाबाश ! नोएडा में शाबाश चलता है आप सब मिलकर के इस शाबाश के पात्र बन रहे हो आप अकेले ही होते या आप में से कुछ नहीं होते तो हम शाबाश नहीं कहते किंतु 1000 पार्टिसिपेंट्स के लिए पता नहीं मराठी में तो शाबाश कहते हैं या हिंदी में भी कुछ और हो सकता है आप धन्यवाद के पात्र बन रहे हो हरि हरि ! कीप अप द गुड वर्क जिसको कहते हैं अच्छा कार्य कर रहे हो। करते रहो, लगे रहो इस कार्य से हम प्रसन्न है। हमने कह दिया "हम" तो इतना पर्याप्त है। हम प्रसन्न होंगे मतलब मैं भी प्रसन्न, न केवल हो ही नहीं रहा हूं बल्कि अपनी प्रसन्नता व्यक्त भी कर रहा हूं। फिर इस हम में श्रील प्रभुपाद हैं सारे पूर्ववर्ती आचार्य हैं और अंततोगत्वा अल्टीमेटली स्वयं भगवान हैं। गुरु और गौरांग! कृष्ण कन्हैया लाल की जय ! बृजेंद्र नंदन है देवकीनंदन हैं वह भी आपके कीप अप गुड वर्क, इस कार्य से प्रसन्न हैं और अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं या उनकी प्रसन्नता को भी मैं उन्हीं की ओर से व्यक्त कर रहा हूं। वैसे शास्त्रों में कहा ही है *यस्य प्रसादाद् भगवत्-प्रसादो यस्याप्रसादान् न गतिः कुतोऽपि ध्यायन् स्तुवंस् तस्य यशस् त्रि-सन्ध्यं वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम् ।।* (गुरुअष्ठक) अर्थ- श्रीगुरुदेव की कृपा से भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। श्री गुरुदेव की कृपा के बिना कोई भी सद्गति प्राप्त नहीं कर सकता। अतएव मुझे सदैव श्री गुरुदेव का स्मरण व गुणगान करना चाहिए। कम से कम दिन में तीन बार मुझे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में सादर वन्दना करनी चाहिए। हमारे गुरुजन हमसे प्रसन्न हैं तो निश्चित ही भगवत्-प्रसादो , भगवान प्रसन्न है या और कोई बचता नहीं, किस को प्रसन्न करना है? बीवी को बच्चों को या बॉस को इसको या उसको हरि हरि !गुरु गौरांग जयत: गुरु और गौरांग की जय हो ! ऐसे भी लिखा और पढ़ा जाता है और इसी को परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तन भी कहा है। *चेतोदर्पणमार्जनं भव-महादावाग्नि-निर्वापणम् श्रेयःकैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधू-जीवनम् ।आनंदाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनम् सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्ण-संकीर्तनम् ॥१॥* अनुवाद: श्रीकृष्ण-संकीर्तन की परम विजय हो जो हृदय में वर्षों से संचित मल का मार्जन करने वाला तथा बारम्बार जन्म-मृत्यु रूपी दावानल को शांत करने वाला है । यह संकीर्तन यज्ञ मानवता के लिए परम कल्याणकारी है क्योंकि चन्द्र-किरणों की तरह शीतलता प्रदान करता है। समस्त अप्राकृत विद्या रूपी वधु का यही जीवन है । यह आनंद के सागर की वृद्धि करने वाला है और नित्य अमृत का आस्वादन कराने वाला है ॥१॥ मतलब सभी की जय हो और उसमें आप की भी जय हो, आपकी जय इसी में है। यह तो एक बात हुई और उससे रिलेटेड ही है मैं सोच रहा था कि उठते ही चैतन्य महाप्रभु कहते हैं। *जीव जागो जीव जागो, गौरचांद बोले कोत निद्रा जाओ माया पिशाचीर-कोले*। *भजिबॊ बोलिया ऎसॆ संसार-भितरे भुलिया रोहिलॆ तुमि अविद्यार भरे* *तॊमारॆ लोइते आमि हॊइनु अवतार आमि बिना बंधु आर कॆ आछॆ तॊमार* *एनॆछि औषधि माया नाशिबारॊ लागि हरि-नाम महा-मंत्र लओ तुमि मागि* *भकति विनोद प्रभु-चरणे पडिया सॆइ हरिनाम मंत्र लॊइलॊ मागिया* (अरुणोदय कीर्तन) हम प्रातः काल में वैसे ही कर रहे हैं जैसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु चाहते हैं या श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु हमको पुकार रहे हैं कि जीव जागो !जीव जागो !कौन कह रहे हैं? गौरा चांद बोले, गौर चंद्र बोल रहे हैं। *बहुकोटिचन्द्र जिनिवदनउज्ज्वल । गलदेशेवनमाला करेझलमल ॥* (गौर आरती - 6 पद) अनुवाद: श्रीचैतन्य महाप्रभु का मुखमण्डल करोड़ो चन्द्रमा की भाँति दैदीप्यमान हो रहा है तथा उनके गले में वनफूलों की माला झलमल कर रही है। जिनके मुख मंडल से बहु कोटि चंद्रमा जैसी ज्योत्सना या प्रकाश मिश्रित होता है गोरा चांद इनका नाम है या गौर चंद्र कहो या गोरा चांद कहो। वे गौर चंद्र हमको बुला रहे हैं। हम को जगा रहे हैं। गोरा चांद बोले जीव जागो! जीव जागो! कौन कह रहे हैं ? गौर चंद्र बोल रहे हैं।" कोत निद्रा जाओ माया पिशाचीर-कोले" माया को क्या कहा है पिशाचीनी *निकटस्थ मायातारे झपटिया धारे* ऐसा चैतन्य चरितामृत में चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा है यह माया झपट लेती है। आप सो तो नहीं रहे हो सीता ठाकुरानी ? जीव जागो ! जीव जागो! यह बात चल रही है। सुनते सुनते हम सो भी रहे हैं। मुझे नहीं पता कि आप सो रहे हो या बड़ी मजेदार बातें हैं। है कि नहीं? हां ! हम बात कर रहे हैं चैतन्य महाप्रभु कह रहे हैं की जीव जागो जीव जागो ऐसा सुनते सुनते ही हम सो रहे हैं। अब क्या करें चैतन्य महाप्रभु तो अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। महाप्रभु से रहा नहीं जाता हमको सावधान कर रहे हैं साधु सावधान ! उठो जागो कोत निद्रा जाओ माया पिशाचीर-कोले , माया पिशाची है। हम को पहचान लिया है हमको पछाड़ लिया है पंचमहाभूत कहते हैं ना, कभी-कभी ऐसी व्याख्या करते हैं पंचमहाभूत सुना है ? हमारे पीछे कितने भूत लगे हुए हैं पंचमहाभूत, एक ही पर्याप्त है लेकिन एक नहीं पांच-पांच भूत हमारे पीछे लगे हुए हैं , पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश का बंधन है। उसका बना है यह कारागार यह शरीर भी वैसा ही है। यहाँ गोरा चांद बोले श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु बुला रहे हैं मैं अच्छी बात कह रहा था या सही बात कह रहा था कि हम जब प्रातः काल में उठते हैं और फिर मंगला आरती के लिए मंदिर की ओर दौड़ते हैं राधा पंढरीनाथ का या राधा गोपीनाथ, राधा गोविंद, राधा मदन मोहन ऐसे नाम लेते रहते हैं और हम लोग काफी समय बिता सकते हैं उनके कई नाम हैं वहां पहुंचते ही *मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु | मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||* (श्रीमद्भगवद्गीता 18.65) अनुवाद - सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो। नमस्कुरु , भगवान को देखते ही प्रणाम करते हैं फिर दर्शन करते हैं खड़े होते हैं मंगल आरती का गान होता है और उसी के अंतर्गत फिर *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* कीर्तन करते हैं नृत्य करते हैं भगवान को देख रहे हैं दर्शन कर रहे हैं कीर्तन हो रहा है नृत्य हो रहा है। इस प्रकार और भी कई सारी बातें मुझे कहनी थी लेकिन इस तरह से हमारा इंटरेक्शन कृष्ण के साथ है। कृष्ण इज द सुप्रीम पर्सनैलिटी आफ गॉड हेड के साथ, लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण के साथ, हमारा आदान-प्रदान, लेनदेन गिव एंड टेक भी कहो, "इंटरेक्शन" अच्छा शब्द है हमारा इंटरेक्शन इंटर+ एक्शन इंटर रिलेशनशिप हमारी कृष्ण के साथ इंटरेक्शन प्रारंभ होती है। जीव का कृष्ण के साथ, हम भाग्यवान बनते हैं *अहो भाग्यमहो भाग्यं नन्दगोपव्रजौकसाम् । यन्मित्रं परमानन्दं पूर्ण ब्रह्म सनातनम् ॥* (श्रीमद भागवतम १०.१४.३२ ) अनुवाद - नन्द महाराज, सारे ग्वाले तथा व्रजभूमि के अन्य सारे निवासी कितने भाग्यशाली हैं! उनके सौभाग्य की कोई सीमा नहीं है क्योंकि दिव्य आनन्द के स्रोत परम सत्य अर्थात् सनातन परब्रह्म उनके मित्र बन चुके हैं कितने भाग्यवान हैं ब्रज में " व्रजौकसाम् " ओकस मतलब निवासी, बृज के निवासी कितने भाग्यवान हैं। हम भी जब उठते हैं और उठते ही भगवान की ओर दौड़ते हैं यह कुछ कम नहीं है हमारा दौड़ना राधा गोविंद की ओर या कृष्ण बलराम की ओर, यह वही है फॉलोइंग हिज फुट स्टेप, ही तो है। गोपियां कृष्ण की ओर मध्यरात्रि में दौड़ती हैं। प्रातः काल में तो ग्वाल-बाल दौड़ते हैं। नंद भवन की ओर , क्योंकि गोचरण लीला के लिए प्रस्थान करना होता है। सारे ग्वाल बाल बृज भर के नंद ग्राम पहुंच जाते हैं कृष्ण से मिलने के लिए और फिर मिलकर कृष्ण की गाय, उनकी गाय और अन्य ग्वाल बालों की गाय और कृष्ण, सभी गोचारण के लिए प्रस्थान करेंगे, अतः वे सभी नंद भवन आते हैं इस तरह उनका अनुसरण करते हुए हम भी जाते हैं। जहां भी मंदिर है हरे कृष्ण मंदिर है या फिर नंद भवन जहां हरि मंदिर है राधा कृष्ण का मंदिर है या कृष्ण बलराम मंदिर है या जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा का मंदिर है। यह वृंदावन है या नवदीप है सेम थिंग , इस तरह हम नवद्वीप की ओर वृंदावन की ओर, नंद भवन की ओर या योग पीठ की ओर, मायापुर में या जगन्नाथ हरि हरि हम दौड़ते हैं। हमारी आत्मा दौड़ रही है और उन भगवान का हम दर्शन करते हैं। अभ्यास करते हैं दर्शन करने का या प्रतिदिन थोड़ा अधिक अधिक दर्शन होने लगता है और फिर साधना भक्ति का, हरि नाम या इसके फलस्वरूप एक दिन हम कीर्तन करते करते हमे उत्कंठा होने लगती है। होना भी चाहिए उत्कंठा बढ़ाना है। *कदा द्रक्ष्यामि नन्दस्य बालकं नीपमालकम् । पालकं सर्वसत्त्वानां लसत्तिलकभालकम् ॥* कब दर्शन होगा नन्दस्य बालकं, नंद महाराज के बालक का, नीपमालकम् कदंब के पुष्पों की माला पहना हुआ हो वह बालक ऐसे जब हम कहते हैं तब उसी के साथ कृष्ण का वर्णन हो रहा है। वह हमको आकृष्ट करता है। कब होगा दर्शन, कब होगा दर्शन, नंद महाराज का बालक कैसा है? हमने सुना तो है नीपमालकम् कमल के पुष्पों की माला, फिर पदमाली हो गए या कभी वैजयंती माला पहनते हैं कभी कदंब के पुष्पों की माला पहनते हैं। *पालकं सर्वसत्त्वानां लसत्तिलकभालकम्* और उनके भाल पर तिलक है कस्तूरी तिलकम , फिर ऐसे यहां क्या क्या, बहुत कुछ याद आने लगता है। कृष्ण के सौंदर्य का हम स्मरण करते हैं तो याद आता है। अच्छा ही है मतलब कृष्ण याद आ रहे हैं और यू आर रिमेंबरिंग, रिमेंबरिंग मतलब इसका कुछ कनेक्शन है रिमेंबर रिटर्न रीबुक मतलब पहले कुछ किया था उसी क्रिया को पुनः करना जब कहना होता है तो उसमें "आर" र आता है और आर "र" रिटर्न रिजर्वेशन री मेंबर जो शब्द है दिस इज़ माय अंडरस्टैंडिंग, मैं थोड़ा सोचता रहता हूं रिमेंबर मतलब पहले कभी हम याद करते थे कृष्ण को , अब दुर्देव से भूले भटके जीव भूल गए, लेकिन अब हम क्या कर रहे हैं पुनः रिमेम्बर, डू यू रिमेंबर मी? ऐसा कभी-कभी हम पूछते हैं पहले हम याद करते थे साथ में रहते थे या साथ में पढ़ते थे फिर 50 वर्षों के बाद जब मिलेंगे तब कहेंगे डू यू रिमेंबर मी, डू यू रिमेंबर दैट वन, आप समझ रहे हैं मैं कुछ कहना चाह रहा हूं आपको, रिमेंबर मतलब पहले आपको देखा हैं सुना हैं पढा हैं देन वी रीमेंबर तब हम याद करते हैं। इवन भगवान के विग्रह को देखते हैं एंड डिस. इज़ द बिग रिमाइंडर यह बहुत बड़ा रिमाइंडर है यह रिमाइंडर की भगवान के रूप को ही देखते हैं। *माया मुग्ध जीवेर नाहि स्वत: कृष्ण ज्ञान। जीवेर कृपया कैला कृष्ण वेद पुराण।।* (चै.च. मध्य लीला 20.117) हम भगवान का सब भूल गया माया से मुग्ध हो गया, ऐसी माया दुरत्यया है। *दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया |मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ||* ( श्रीमद्भगवद्गीता 7.14 ) अनुवाद- प्रकृति के तीन गुणों वाली इस मेरी दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन है | किन्तु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं, वे सरलता से इसे पार कर जाते हैं | हम उनको भूल गए, स्वयं को भूल गए, इत्यादि इत्यादि हमारा जो स्वरूप है के अमी ? *के आमि', 'केने आमाय जारे ताप-त्रय'। इहा नाहि जानि— केमने हित हय' ॥* (चैतन्य चरितामृत मध्य 20.102) अनुवाद- मैं कौन हूँ? तीनों ताप मुझे निरन्तर कष्ट क्यों देते हैं? यदि मैं यह नहीं जानता, तो फिर मैं किस प्रकार लाभान्वित हो सकता हूँ? केन उपनिषद भी है क्यों? कैसे? ऑल दिस क्वेश्चंस ? भगवान का दर्शन भी करते हैं या भगवान के विग्रह का दर्शन भी करते हैं तब एक रिमाइंडर है फिर *हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* यह भी किसके लिए करते हैं ? यू रिमेंबर कृष्ण, श्रीप्रह्लाद उवाच । *श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥* (श्रीमद भागवतम ७.५.२३) अनुवाद -प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम, रूप, साज-सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना, उनका स्मरण करना, भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना, षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना, भगवान् से प्रार्थना करना, उनका दास बनना, भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना (अर्थात् मनसा, वाचा, कर्मणा उनकी सेवा करना)-शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं। जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए, क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है। श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं करने के लिए स्मरण करने के लिए यू रिमेंबर कृष्ण या *मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ||* ( श्रीमद्भगवद्गीता 18.65) अनुवाद- सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो | कृष्ण ने फाइनल इंस्ट्रक्शन दिया है उसके बाद भगवान ज्यादा बोलने वाले नहीं हैं। और अंत में क्या कहा मनमनाः रिमेंबर मी, अंग्रेजी में ट्रांसलेशन होता है मनमना मतलब मत-बना, मन - तुम्हारा मन मुझ में लगाओ मनमना मेरा भक्त बनो, मन लगाओ मुझमें, मेरे भक्त बनो मद्याजी माम् नमस्कुरु, मेरी आराधना करो मुझे नमस्कार करो, हो गया ना, जब हम मंगला आरती में जाते हैं या मंदिर में जाते हैं तो क्या करते हैं केवल दर्शन के लिए जाते हैं क्या क्या करोगे ? मनमनाः रिमेंबर कृष्ण भगवान को याद करने के लिए स्वयं को पुनः याद दिलाने के लिए रिमाइंडर, उनका भक्त बनने के लिए उनकी आराधना करने के लिए उनको नमस्कार करने के लिए बस हो गया। वी फॉलो फोर रेगुलेटीव प्रिंसिपल्स,ऐसे एक समय यह बात प्रभुपाद ने ही की है फॉलो फोर रेगुलाटीव प्रिंसिपल्स, ऐसा जब प्रभु पाद ने कहा मुझे याद आ रहा है तब भक्तों ने सोचा कि प्रभुपाद कह रहे हैं सोच रहे हैं या कहने वाले हैं वी फॉलो फोर रेगुलेटीव प्रिंसिपल्स, वह कौन से हैं प्रभुपाद ने तो नहीं कहा लेकिन भक्त मन में सोच रहे थे। नो मीट ईटिंग, नो इंटॉक्सिकेशन, नो इलिसिट सेक्स, नो गैंबलिंग इन 4 नियमों का हम पालन करते हैं। वी फॉलो फोर रेगुलेटीव प्रिंसिपल्स श्रील प्रभुपाद ने कहा कि हम 4 नियमों का पालन करते हैं ऐसा कहकर प्रभुपाद ने आगे कहा यू रिमेंबर कृष्ण, कृष्ण को याद करना पहला प्रिंसिपल है। २ बिकम माय डिवोटी मेरे भक्त बनो, ३ मध्याजी मेरी आराधना करो, ४ माम नमस्कुरु मुझे नमस्कार करो, इस तरह प्रभुपाद ने कहा वी फॉलो फोर रेगुलेटीव प्रिंसिपल्स हम 4 नियमों का पालन करते हैं और ऐसा जब आप करोगे तो भगवान ने फिर कहा है। उसको हमने कई बार कहा है डू यू रिमेंबर या फिर हम आपको पुन्: भी रिमाइंडर दे रहे हैं *मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे* ऐसा करोगे हे मित्रों या पुत्रों, भक्तों, तो क्या होगा? सब मुझे ही प्राप्त होंगे हरीबोल ! गुड न्यूज़ ! ब्रेकिंग द न्यूज़ ! फिर गोलोक लौटने के लिए या भगवत धाम लौटने के लिए हम को चिंता है, उसका महत्व अगर हम समझते हैं तो मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे हरि हरि ! हम बड़े भाग्यवान हैं यही मुझे कहना था भाग्यवान हैं और साथ में यह भी कहना है कि आप बुद्धिमान हो। हो कि नहीं हो? दुनिया बुद्धू है और आप बुद्धिमान हो। क्यों माधवी कुमारी समझ रही हो? *जेई कृष्ण भजे सेई बडा चतुर* (श्रील प्रभुपाद द्वारा), यही क्राइटेरिया है। कौन बुद्धिमान है कौन बुद्धू है। पता लगाएं जो कृष्ण को भजता है वह चतुर है इंटेलिजेंट होशियार बुद्धिमान है, अतः आप सभी बुद्धिमान और भाग्यवान भक्तों का पुन्: हार्दिक स्वागत इस ज़ूम कॉन्फ्रेंस और जपा टॉक में , ओके टाइम् इज़ अप ,ऐसे विचार आ रहे थे उसका थोड़ा झलक आपके सामने प्रस्तुत किया, वैसे नहीं कह पाते हैं। ठीक है तो फिर धन्यवाद। गौर प्रेमानंदे ! हरि हरि बोल !

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