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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *13 अप्रैल 2021* हरे कृष्ण । 833 स्थानों से आज जप हो रहा है । गौर प्रेमानंदे हरी हरी बोल । गौर हरी बोल ।क्या बोल ? हरी बोल या श्री राम बोल , गोविंद माधव गोपाल बोल । हरी हरी । एक साधारण दिन भी विशेष दिन बन जाता है जब हम कीर्तन करते हैं , जप करते हैं । एक साधारण दिन विशेष दिन बन जाता है । हम श्रवण कीर्तन उत्सव मनाते हैं और जप भी एक उत्सव ही हैं । जब हम जप करते है तब एक प्रकार का उत्सव ही मनाते हैं । श्रवन उत्सव ! *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।* और जब भी इन नामों का उच्चारण करते हैं तो भगवान प्रकट होते हैं । हरि हरि । इस प्रकार हमरी भगवान के साथ मुलाकात हो रही है । यह जप का समय , श्रवण कीर्तन का समय हमारा भगवान के साथ मिलन का समय होता है । इस प्रकार आपको हरी नाम का महिमा भी सुना ही रहे है । साधारण दिन को हम असाधारण बना देते है , लेकिन आज का दिन वैसेही साधारन नही है , आजका दिन विशेष दिन है । सर्वप्रथम आप सभी को नये वर्ष की शुभकामनाएं। जप चर्चा में आज पता तो चला की आज नया वर्ष है । यह सबको पता है कि अब एप्रिल मार्च चल रहा है, लेकिन यह किसको पता है कि आज विष्णुमास प्रारंभ हो रहा है? आज जो महीना प्रारंभ हो रहा है ? नया वर्ष प्रारंभ हो रहा है। नये वर्ष का यह पहिला महीना है । विष्णु जिसका नाम है , यह किसको पता है? यह सारा संसार ख्रीस्तब्ध से ही प्रभावित है । ख्रीस्त इसविसन , ऐसी गणना संसार अब कर रहा है। टू मच क्राइस्ट कॉन्ससियसनेस , यह क्राइस्ट की भावना कुछ ज्यादा ही हो गई , अंग्रेजो ने ऐसा जबरदस्त प्रचार भी किया और अपने ब्रिटिश राज को साम्राज्य बनाया और अपने ब्रिटिश राज को फैलाते समय , साथ ही साथ उन्होंने क्रिश्चनिलिटी का भी प्रचार किया । इसीलिए हम लोगो में हर समय प्रचार प्रसार का भाव नही होता है और हम बस काम मे व्यस्त है , भारत ऐसा कार्य नही करता । दुर्दैव की बात है हम भारतीय वैसा कार्य नही करते , जो कार्य अंग्रेजो ने किया उन्होंने सारे क्रिश्चनलिटी को कोने कोने में फैलाया , इसीलिए बीसी और एड़ी चलते रहते है। आज विष्णुमास प्रारंभ हो रहा है यह किसको पता है? चैत्र मास , विष्णुमास में गौरब्ध की बात कर रहा था। एक होता है ख्रीस्तब्ध , गौरब्ध फिर शकाब्द । यह गौरब्ध के अंतर्गत यह विष्णुमास है , वैसे दो सप्ताह पूर्व प्रारंभ हुआ । आज शकाब्द वाला , आब्द मतलब वर्ष । नया महीना , चैत्र मास प्रारंभ हो रहा है और यह चैत्र शुक्ल पक्ष की आज प्रथमा है और इस नए वर्ष का हम स्वागत करते है । वैसे महाराष्ट्र में और कई राज्यो में भी संभव है लेकिन हम महाराष्ट्र के है ? हम तो वैकुंठ के होने चाहिए थे लेकिन मैं कह रहा हूं कि मैं महाराष्ट्र का हूं । क्या हुआ ? महाराष्ट्र कॉन्ससिअसनेस ऐसी उपाधि है । (हसते हुये) ऐसा संसार है , माया बड़ी जबरदस्त है । जय महाराष्ट्र नही बोलते हैं या जय कर्नाटक नहीं बोलते । हरी हरी । ठीक है । आज गुढीपाडवा महाराष्ट्र में मनाते हैं और नए वर्ष का स्वागत करते हैं , गुढी पाड़वा , घर-घर में गुढी । *गुढिया तोरणे । करिती कथा गाती गाणे ॥२॥* *बाळकृष्ण नंदा घरी । आनंदल्या नरनारी ॥धृ॥* तुकाराम महाराज ने कहा लोग जब अपने प्रसन्नता व्यक्त करना चाहते हैं तो क्या करते हैं ? गुढीया । आपको पता है कि नही ? जो महाराष्ट्र के बाहर के है ? गुढी क्या होती हैं ? और गुढी कैसी होती है? गुढीपाड़वा मनाते हैं । तुकाराम महाराज को जब अपने अभंग में लिखना था , उन्होंने लिखा ही है । *गोकुळीच्या सुखा ।* *अंतपार नाही लेखा ॥१॥* *बाळकृष्ण नंदा घरी ।* *आनंदल्या नरनारी ॥धृ॥* *गुढिया तोरणे । करिती कथा गाती गाणे ॥२॥* *बाळकृष्ण नंदा घरी ।* *आनंदल्या नरनारी ॥धृ॥* गोकुल के सुख की कोई सीमा ही नहीं रही । *बाळ कृष्ण नंदा घरी* बाल कृष्ण जब नंद महाराज के घर में आये , *नंद घर आनंद भयो* उस समय तुकाराम महाराज लिखते हैं , सारे ब्रजमंडल में गुढीया तोरने गुढी और तोरण बांध दिए और सर्वत्र गुढी खड़ी की इस प्रकार ब्रजमंडल में खुशियां मना रहे थे , आनंद का कोई ठिकाना ही नहीं रहा , कुछ ऐसा ही यह समय है । आज का दिन यह चैत्र मास की प्रतिपदा , नया वर्ष । इस मास में जय श्री राम अब 9 दिन ही शेष है , प्रथमा द्वितीय तृतीय करते-करते नवमी जब आएगी तब जय श्रीराम ,श्रीराम प्रकट होंगे । हम सब रामनवमी मनाएंगे , रामनवमी का उत्सव कहो वह प्रारंभ हो रहा है । आज से तैयारियां चल रही थी। राम आ रहे है , राम प्रकट होने वाले हैं और फिर केवल राम ही प्रकट होने वाले नहीं थे , लक्ष्मण , भरत और शत्रुघ्न भी प्रकट होने वाले थे । इसलिये केवल रामनवमी ही नहीं मनानी है , लक्ष्मण नवमी , भरत नवमी , शत्रुघ्न नवमी को भी मनाना है । इसको नोंद करके रखलो , मैं स्मरण दिलाता रहता हूं । हरि हरि । क्योंकि यह चारों भगवान है । हरि हरि। जय श्री राम । राम के प्राकट्य कारण ही यह मास , चैत्र मास एक विशेष मास या पवित्र मास है । यह चैत्र वैशाख के मास , वसंत ऋतु के यह 2 मास है ।सभी ऋतु में वसंत ऋतु श्रेष्ठ है । *ऋतुनाम अहम कुसुमाकर* गीता में भगवान ने कहा है , कुसुमाकर मतलब फूल और इस मास में सर्वत्र फूल खिलेंगे। फूलों के साथ फिर सर्वत्र सुगंध भी फैलेगा और इस मास में मंद मंद हवा भी बहेगी और हवा सुगंध आप तक पहुंचायेगी । सुंदर वातावरण होगा , इन 2 मासों में सुगंधित वातावरण रहेगा इसीलिए भी इस वर्ष का स्वागत है , इस मास का इस दिन का भी स्वागत है । आज के दिन लोग किसी धार्मिक स्थल पर इकट्ठे होते हैं और खुशियां मनाते हैं , वैसे यह साल कैसा रहेगा ? ज्योतिष शास्त्र या ज्योतिष इनकी सलाह लेते हैं , या ज्योतिषशास्त्र भी वहां उपस्थित होते हैं वह बताते रहते हैं , क्या होगा ? यह वर्ष कैसा रहेगा ? हर व्यक्ति के लिए या फिर उस गांव के लिए उस राज्य के लिए , उस देश के लिए , पूरे मानव जाति के लिए यह सब का भी आज के दिन पता लगवाते रहते हैं । हरि हरि । यह बात जब मैं सोच रहा था तब मुझे इस बात का भी स्मरण हुआ कि जो , *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।* यह सर्वत्र फैलने वाला है , ऐसी भविष्यवाणी यह 1 साल की ही भविष्यवाणी नहीं है यह आने वाले कुछ 950 वर्षों के लिए भविष्यवाणी है । प्रभु नाम का प्रचार प्रसार सर्वत्र होगा । सर्वत्र ! *पृथिवीते आछे यत नगरादि - ग्राम ।* *सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम।।* चैतन्य भागवत अन्त्य - खण्ड (४.१.२६ ) *अनुवाद :* पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गाँव हैं , उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा । फिर मैं सोच रहा था कि अरे ! अरे ! यह ख्रीस्ताब्ध सबको पता है लेकिन यह गौराब्ध तो सिर्फ थोड़े ही लोगों को पता है । भारत के बाहर तो गौराब्ध , विष्णुमास या शताब्द , यह चैत्र मास पता ही नहीं है लेकिन सुनो आने वाले 500 वर्षों में 1000 , 2000 , 2500 , 5000 वर्ष होते होते जब और वर्ष बढ़ जाएंगे तब वह एक दिन आने वाला है पृथ्वी के सर्व नगरों में यह चैत्र मास हो सकता है , गुड़ी पाड़वा जैसे महाराष्ट्र में मनाते हैं वैसे वहां भी मनाएंगे । सब लोगों को रामनवमी का पता चलने वाला है । हरी हरी । और बहुत कुछ पता चलने वाला है । केवल भगवान का नाम ही नहीं फैलने वाला है । 1 दिन मैंने कहा था वैसे नाम के प्रचार के साथ हरि नाम का प्रचार होगा हर नगर , हर ग्राम में सारे पृथ्वी पर इसी नाम के साथ फिर धाम का भी पता होने वाला है , संसार भर के हर नगर में , हर ग्राम में अयोध्या धाम की जय , अयोध्या धाम का पता चलने वाला है । और वहा जन्मे सरयू नदी को भी जानेगे अभी तो अमेजॉन रिवर , बीस रिवर, नाइल रिवर ऐसी कुछ नदीया है उनके ही नाम लोग जानते हैं । गंगा का नाम भी काफी प्रसिद्ध है लेकिन हो सकता है , संभावना है कि सरयू नदी का नाम लोग नहीं जानते लेकिन आने वाले 5000-10000 वर्षों में सारे पृथ्वी पर राम नाम भी फैलने वाला है । *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।* राम नाम तो है ही । किसी ने पूछा कि हम जब हरे राम हरे राम कहते हैं यह राम श्री राम है या सीता के पति राम है ? तब श्रील प्रभुपाद ने कहा , "अगर आप ऐसा मानना चाहते हो ,तो वह भी ठीक है , हरे राम हरे राम यह राम है , यह भी ठीक है वैसे कृष्ण भी राम ही है लेकिन राम तो कृष्ण ही है ।" यह कैसे लगता है ? राम कृष्ण ही है , *ब्रह्म - संहिता श्लोक ५.३९* *रामादिमूर्तिषु कलानियमेन तिष्ठन् नानावतारमकरोद् भुवनेषु किन्तु । कृष्णः स्वयं समभवत्परमः पुमान् यो गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥३ ९ ॥* *अनुवाद:-* जिन्होंने श्री राम , नृसिंह , वामन इत्यादि विग्रहों में नियत संख्या की कला रूप से स्थित रहकर जगत् में विभिन्न अवतार लिए , परंतु जो भगवान् श्रीकृष्ण के रूप में स्वयं प्रकट हुए , उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूँ । ऐसे ब्रह्म संहिता में कहा है , राम आदि मूर्तियों में श्री कृष्ण ही स्वयं प्रकट होते हैं । राम रूप में प्रकट होते हैं। तो राम ही कृष्ण है । चैतन्य लीला में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भाग्यवान सार्वभौम भट्टाचार्य को जगन्नाथपुरी में एक विशेष दर्शन दिया जिसका नाम षड्भुज रूप है । 6 भुजाये थी , उसमें दो भुजाएं थोड़े हरे रंग की थी । जैसे हरियाली होते हैं उस रंग के दो हाथ थे , एक हाथ में धनुष था , दूसरे में बाण था और इस प्रकार और भी दो कृष्ण के और गौरांग महाप्रभु के दो हाथ और श्री राम के दो हाथ और दो हाथों में अपने अपने चिन्न धारण किए थे । इस दर्शन के साथ भी हम समझ सकते हैं , कृष्ण ही राम बन जाते हैं तो कभी , *केशव धृत राम शरीर* *जय जगदीश हरे* ज्यादा दिमाग लढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है , ज्यादा उदाहरण या सबूत देने की जरूरत नहीं है यह समजाने के लिए कि कृष्ण ही राम है । *वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयं* *दशमुखमौलिबलिं रमणीयम्।* *केशव! धृत-रामशरीर जय जगदीश हरे॥* *अनुवाद:-* हे केशव! हे जगदीश! हे रामचंद्र का रूप धारण करने वाले श्री हरि! तुम्हारी जय हो! लंका के युद्ध में तुम दशमुख राक्षस का वध करते हो तथा उसके सिरों को दसों दिशाओं के दिग्पालों को रमणीय व वांछनीय उपहार स्वरूप वितरण करते हो! केशव ही राम शरीर धारण करते हैं या राम बन जाते हैं। कभी राम बनके कभी श्याम बनके यह तो अच्छा था , जब हम सुन रहे थे कुछ साल पहले ऐसा सुनाई पड़ता है जब बड़े आवाज में ऐसे गाने सुनाए जाते थे लेकिन धीरे-धीरे अच्छा लग रहा था कि कभी राम बनके कभी श्याम बन के आ रहा था फिर उन्होंने आगे का साईं बाबा बनके फिर सत्यानाश हुआ यह मूर्खता है , यह अज्ञान है राम और कृष्ण एक ही है लेकिन साईं बाबा और यह बाबा और वह बाबा यह तो पाखंड हुआ। राम कृष्ण । जय श्रीराम । जय श्रीराम । वह भी इतिहास है हम भी कल कह रहे थे रामायण इतिहास भी है और वैसे जो इतिहास उपलब्ध है , अति प्राचीन इतिहास रामायण ही है। जिसको वैसे आदिकाव्य कहां है। आदि महाकाव्य कहते हैं और फिर उस काव्य की रचना करने वाले कवि भी हुए आदि कवि वाल्मीकि हो गए । *राम राम रामेति अक्षरम: मधुर अक्षरम:* रामायण का हर अक्षर मधुर है। पूजन्तम राम राम रामेति आरुत कविता शाखा वंदे वाल्मीकि कोकिलम ऐसे प्रार्थना है या ऐसा गौरव गाया है। वाल्मीकि मुनि का ऐसा परिचय है ऐसे वाल्मीकि मुनि पूज्यतंम वह गान कर रहे हैं । अभी-अभी मुझे भी कुछ सुनाई दे रहा है कुछ पक्षी भी यहां कुछ सुना रहे हैं उनकी चहक है , आरोह्य कविता शाखा मानो यह रामायण एक वृक्ष है और उसकी शाखा पर आरूढ़ हुए हैं। कौन ? वंदे वाल्मीकि कोकिलम , वाल्मीकि मुनि । सभी पक्षियों की गाण में कोकिल नंबर वन होता है । कोयल की जो आवाज ध्वनि है यह एकदम उत्तम होती है। वंदे वाल्मीकि कोकिलम , वाल्मीकि मुनि कोकिल जैसे पूज्यतंम गान कर रहे हैं। आरोह्य कविता शाखा रामायण नाम की कविता रूपी वृक्ष की शाखा पर वह बैठे हैं और विराजमान है , आरूढ़ है और अक्षरम मधुर अक्षरम रामायण का हर अक्षर मधुर माधुरी से पूर्ण उन्होंने भर दिया है। राम वह है जो राम रमती रमतीच , राम कैसे हैं ? जो स्वयं रमते हैं और औरों को रमाते हैं। रमन्ते योगिनः अनन्ते योगी रमते हैं राम आराम। हरि हरि। *कसा मला सोडूनि गेला राम रामबिना* *जीव व्याकुल होतो सुचत नाही काम* *रामबीना मज चैन पडेना, नाहि जीवासी आराम* ऐसे एक गीत हैं। राम राम राम चैतन्य महाप्रभु भी गाया करते थे और *कृष्ण केशव कृष्ण केशव कृष्ण केशव पाहिमाम राम राघव राम राघव राम राघव रक्षामाम* चैतन्य महाप्रभु इन राम के नामों का गान किया करते थे ऐसे राम राघव राम राघव रघुवंश में प्रकट हुए । रघुवंशी राम फिर राघव बन गए , यदुवंशी कृष्ण यादव बन गए । रघुवंशी राम राघव बने या राघव ही है। राम राघव राम राघव रक्षामाम । रक्षा करो ! हे श्री राम , *राम बिना मज चैन पड़े ना*, *नाहि जीवाशी आराम* राम के बिना जीना तो क्या जीना ? दुनिया वाले कहते हैं तुम्हारे बाहों के बिना जीना तो क्या जीना ? गधे कहि के गधिनी के पीछे दौड़ते रहते हैं । काम से जो लिप्त है उनके लिए तो जीना क्या जीना बाहों के बिना तुम्हारे है कुछ लोग काम से प्रेरित है लेकिन कुछ लोग प्रेम से प्रेरित है और दुनिया वालों को काम और प्रेम में जो भेद है इसका भी पता नहीं है। इतना भी विवेक नही हैं यह भेद है , यह काम है , यह प्रेम है । वह काम को ही प्रेम कहते हैं फिर वह आई लव यू वगैरा चलते रहता है , इस गीत में राम भक्त गा रहे हैं *राम बिन मज चैन पड़े ना नाही जीवाशी आराम* जीव का राम के बिना आराम हराम हैं । राम भी आराम देते हैं। *सोडूनि गेला राम कसा गेला मला सोडूनी* अयोध्या वासियों के विचार है , हमको छोड़कर श्री राम वनवास में कैसे और क्यों गए और हम कैसे जिएंगे श्री राम के बिना । हरि हरि । जीव को आराम देने वाले श्री राम हम सभी जीवों के प्राणनाथ श्री राम रामनवमी के दिन प्रकट हो कर इस सारे संसार को *प्राणतिः* प्राण देंगे या उनके बिना यह संसार निष्प्राण है , कोई जीवन नहीं है। श्री राम के बिना यह जीवन मृत्यु ही है। उसमें चैतन्य नहीं है। जय श्री राम । जैसे वाल्मीकि मुनि ने रामायण के रूप में कुछ 1000000 वर्षों पुराना इतिहास लिखा है ,और श्री राम की कथा है । वैसे ठीक है । वाल्मीकि मुनि के गुरु नारद मुनि भी रहे या जैसे व्यास जिन्होंने वैदिक वांग्मय की रचना की , महाभारत की रचना कहो और रामायण की रचना की , वाल्मीकि और व्यास इन दोनों के गुरु नारद मुनि रहे और है भी , ऐसा नहीं कि थे और अब नहीं है । वाल्मीकि और व्यास अभी भी हैं और नारद मुनि भी है और उनका संबंध वही है , ऐसा नहीं कि एक समय थे वाल्मीकि मुनि के गुरु नारद मुनि या व्यास के गुरु नारद मुनि और अभी नहीं है , ऐसा नहीं है इसीलिए हम कहते रहते हैं वी आर इटर्नर सर्वेंट , हम सदा के लिए आपके शिष्य है । हम आपके सदा के लिए शिष्य है या फिर प्रभुपाद लिखते हैं युवर एवर वेलविशर , मैं आपका सदा के लिए शुभकामना देने वाला या हितचिंतक हूं । वाल्मीकि मुनि ने रामायण की रचना की और श्रील व्यास ने महाभारत की रचना की , भागवत की भी रचना की ,इन दोनों ग्रन्थों की रचना के पहले नारद मुनि ने अपना संग , आदेश , उपदेश दिया है तभी इन दोनों ने अपने-अपने ग्रंथ लिखे हैं । नारद मुनि को भी वाल्मीकि मुनि का संग प्राप्त हुआ , दर्शन हुआ । अभी समय हो गया है । वाल्मीकि मुनि रामायण से प्रेरित हुए , वैसे रामायण की शुरुआत बालकांड जो प्रथम सर्ग है , रामायण में सर्ग चलते हैं सर्ग मतलब अध्याय , श्रीमद्भागवत के अध्याय तो रामायण में सर्ग है। श्रीमद्भागवत में 335 अध्याय है तो रामायण में 500 अध्याय हैं। श्रीमद् भागवत में द्वादश स्कंद है तो रामायण में सात कांड है। वहां स्कंध है यहां कांड है। श्रीमद्भागवत में 18000 श्लोक है तो रामायण में 24000 श्लोक है । आप इसकी नोंद करके रखो । बृहद ग्रंथ की मुल रचना वाल्मीकि मुनि ने की है। रामायण का जो प्रथम सर्ग हैं उसमें वाल्मीकि मुनि का और नारद मुनि का संवाद है। उसको वैसे संक्षिप्त रूप में संक्षिप्त रामायण भी कहते हैं। 100 श्लोकों में वह बालकांड का प्रथम सर्ग है। वैसे अधिकतर वाल्मीकि और नारद मुनि की मध्य का संवाद है और नारद जी ने राम की पूरी कथा संक्षिप्त में कही हैं , सुप्त रूप में कही है और फिर उसी से प्रेरित होकर वाल्मीकि को नारद मुनी का संग , दर्शन प्राप्त हुआ फिर नारद मुनि ने प्रस्थान किया और फिर उसके उपरांत भी इतिहास है । उसके उपरांत वाल्मीकि मुनि ब्रह्मा से मिलते हैं , ब्रह्मा से मुलाकात होती है और ब्रह्मा से प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त करने के उपरांत फिर वाल्मीकि मुनि रामायण की रचना करते हैं। अपने आश्रम में बैठकर , गंगा के तट पर उन दिनों में रामायण की रचना उन्होंने की है जब सीता का दूसरा वनवास था और लव और कुश उसी आश्रम में जन्मे थे , वह बालक ही थे उनका लालन-पालन सीता तो कर रही थी लेकिन वाल्मीकि मुनि भी कर रहे थे या कहो वह सीता का लालन-पालन कर रहे थे और सीता लव और कुश का लालन-पालन कर रही थी। उन दिनों में रामायण की रचना हुई । लव और कुश इस रामायण महाकाव्य के पहले विद्यार्थी बने। पहले विद्यार्थी रहे लव और कुश थे वाल्मीकि मुनि ने ही सारा रामायण पढ़ाया सुनाया और लव और कुश ने पूरे रामायण को केवल कंठस्थ ही नहीं किया हृदयंगम किया , यह लव और कुश रामायण के प्रथम प्रचारक भी बन गए और संगीतमय रामायण सुनाने लगे । लव और कुश विना बजाते हुए अलग-अलग छंदों में ईसका गान करते थे और सुनाया करते थे , वन में सुनाया करते थे ऋषी मुनि असंख्य संख्या में एकत्रित होते थे । तब कथा करते करते लव और कुश अयोध्या भी पहुंच गए और राम को पता चला कि कोई दो सुकुमार बालक अयोध्या की नगरी में सर्वत्र कोई कथा सुना रहे हैं। तब राम के मन में भी जिज्ञासा उत्पन्न हुई और लव और कुश को उन्होंने बुलाया फिर सारा दरबार भी वहां उपस्थित हुआ , सभी वहा पहुंच गए और पूरे दरबार के समक्ष लव और कुश को राम ने निवेदन किया कि कृपया राम कथा सुनाइए या कथा सुनाइए फिर स्वयं श्री राम रामायण कथा के श्रोता हो गए यह चक्र पूरा हो गया । राम की लीला राम ही सुन रहे हैं और श्री राम मंत्रमुग्ध हो गए और बेहद खुश , प्रसन्न हो गए । श्री राम वक्ताओं पर भी प्रसन्न हो गये और वह कथा से भी प्रसन्न हो गये । यह कथा अगर राम को प्रसन्न कर सकती है तो हमको तो जरूर ही प्रसन्न कर सकटी हैं । क्यों नहीं ? परमात्मा अगर प्रसन्न हो जाते हैं तो आत्मा तो प्रसन्न हो ही जाएगी । अभी घोषणा हो जाएंगी , हमने भी कुछ संकेत दे दिया । ऐसी कथा इस्कॉन नागपुर की ओर से प्रारंभ हो रही है आप सुन लो , ठीक है। आज के लिए इतना ही अभी रुकते हैं। *जय श्री राम ।*

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