Hindi

मैं आशा करता हूँ कि कल आपने राम नवमी का उत्सव धूमधाम से मनाया होगा। कल हमने जो किया था वह आज के जप की तैयारी थी। एक दिन पहले जो कुछ भी कार्य करते हैं , जिन भी सेवाओं में हिस्सा लेते हैं , जो कुछ श्रवण , कीर्तन , अथवा अपराध भी करते हैं , वह सब हमारे आज के जप को प्रभावित करता हैं। अतः तैयार रहिए , हमें ध्यानपूर्वक जप करने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। हमने यहाँ राजकोट में कल बहुत अच्छा समय व्यतीत किया , जब हमने यहाँ सीता, राम, लक्ष्मण तथा हनुमान के विग्रहों की स्थापना की। कल यहाँ स्वयं भगवान श्री राम अवतरित हुए। भगवान यहाँ अपने विग्रहों के रूप में प्रकट हुए , जब उनके श्री विग्रहों की यहाँ स्थापना हुई। निस्संदेह हमने यहाँ बहुत अधिक मात्रा में कीर्तन किया। यहाँ कीर्तन मेला का आयोजन हुआ था , जिसमें मुझे भी कीर्तन करने का मौका मिला। मैं श्रीमद भागवतम के नवें स्कंध से भगवान श्री राम की लीलाओं को पढ़ रहा था जिसे शुकदेव गोस्वामी ने महाराज परीक्षित को बताया था। श्रील प्रभुपाद जब भी श्री राम के विषय में बताते तो श्रीमद भागवतम से बताते , जैसे राम कौन हैं ? राम का चरित्र क्या हैं ? योगी राम के साथ क्या करते हैं ? स्मरन्ते योगिनः अनन्ते अथवा अनन्ते योगिनाम रमन्ते। वे इसमें यह भी कहते सत्यानन्दे योगिनः रमन्ते। कई बार उन्होंने यह भी बताया हैं : चिदात्मने योगिनः अनन्ते सत्यानन्दे (पद्म पुराण) रमन्ते अर्थात योगी आनंद लेते हैं। वे भगवान राम पर ध्यान टीकाकार उनका चिंतन करते हैं। राम ही हैं , जिन पर हमें चिन्तन करना चाहिए। राम का सदैव स्मरण होना चाहिए। योगी सदैव राम का स्मरण करते हैं। किस प्रकार के राम का योगीजन स्मरण करते हैं ? अनन्ते अर्थात उन राम का जो अनन्त हैं। योगी अनन्त राम का स्मरण करते हैं। राम सत्यानन्दे भी हैं , अर्थात वे अपने आप में आनंदमय हैं तथा जैसे ही कोई उनपर ध्यान केंद्रित करके उनका स्मरण करता हैं वे उसे भी वह आनंद प्रदान करते हैं। चिदात्मने : योगी चिदात्मनी पर ध्यान टिकाते हैं। आत्मनि अथवा परमात्मनि यही परम् भगवान के लक्षण हैं। चिदात्मनि का अर्थ हैं ज्ञान से परिपूर्ण। सत्यानन्दे : सच्चिदानंद राम। राम सत हैं अर्थात वे सनातन हैं। राम चित हैं अर्थात वे आनन्द से परिपूर्ण हैं। राम आनंद हैं अर्थात वे सदैव प्रसन्न रहते हैं। राम ही सत्यानन्दे चिदात्मनि हैं। इस प्रकार ऐसे श्री राम का ध्यान करके योगी सदैव आनंदित होते हैं। ऐसा भी कहा जाता हैं : रमन्ति रमयन्ती इति रामः। रमति अर्थात जो स्वयं आनंद लेते हैं , साथ ही साथ रमयती : अर्थात जो अन्यों की भी आनंद प्रदान करते हैं। वही राम हैं। वे स्वयं भी आनंद लेते हैं तथा वे अन्यों को भी आनंद प्रदान करते हैं। इससे हमें राम का अर्थ समझ में आया , इसके अलावा श्रील प्रभुपाद ने हमें यह भी बताया कि तीन राम होते हैं , यथा परशुराम , श्री राम एवं बलराम। अतः ये तीनों राम कृष्ण ही हैं। वे पूर्ण पुरुष भगवान श्री कृष्ण के अंश हैं। भगवान श्री कृष्ण के कई प्रकार के अवतार होते हैं। परशुराम , भगवान श्री कृष्ण के शक्त्यावेश अवतार हैं। श्री राम , उनके लीलावतार हैं तथा बलराम , भगवान श्री कृष्ण के स्वयं प्रकाश हैं। बलराम लगभग कृष्ण ही हैं। इस प्रकार ये तीन राम हैं परन्तु श्री कृष्ण भी राम ही हैं अथवा हम ऐसा समझ सकते हैं कि श्री कृष्ण मूल राम हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इस महामंत्र में जिन राम का वर्णन हैं वे कृष्ण ही हैं। यहाँ उनका सम्बोधन राम के रूप में हुआ हैं। वे आनंद लेते हैं , आनंद प्रदान करते हैं तथा अन्यों को आनंद देने में भी वे स्वयं आनंदित होते हैं। श्री कृष्ण भी अन्यों को आनंद प्रदान करते हैं। अतः उन्हें भी राम के नाम से जाना जाता हैं। ऐसा वर्णन आता हैं कि विष्णु के १००० नाम राम के १ नाम के समान हैं , तथा राम के ३ नाम कृष्ण के १ नाम के समान हैं। राम का १ नाम , ' हरे राम हरे राम ' यह राम नाम ३ राम नामों के समान हैं , तथा यही ' हरे राम ' का १ नाम ' हरे कृष्ण ' के समान हैं। चूँकि कृष्ण राधा रमण हैं अतः वे राधारानी के साथ आनंद लेते हैं। वे राधा को आनन्द प्रदान करते हैं। जब ये दोनों एक साथ होते हैं तो एक दूसरे के साथ रमण करते हैं , एक दूसरे से मिलते हैं , एक दूसरे का संग लाभ लेते हैं , तथा एक दूसरे को आनंद प्रदान करते हैं इसीलिए इन्हें राधा रमण कहा जाता हैं। राधा कृष्ण के साथ रमण करती हैं। ' हरे राम ' नाम का यही वास्तविक अर्थ हैं। राम भी रमण करते हैं। राम भी सीता के साथ भ्रमण करते हैं , उनका संग करते हैं , उन्हें आनन्द प्रदान करते हैं इसीलिए उन्हें सीता रमण भी कहा जा सकता हैं। इस प्रकार कृष्ण , राधा रमण हैं , वहीँ राम , सीता रमण हैं। कृष्ण जहाँ राधा - मोहन हैं वहीं राम , सीता मोहन हैं। तुंदे तान्डविनी रातिम वितनुते तुण्डावली लब्धये , कर्ण करोद कादम्बिनी घातयते करनारबुदेभयाः स्पृहां। चेतः प्रांगण संगिनी विजयते सर्वेन्द्रियाणां कृतिम , नो जने जनिता कियादभिर अमृतः कृष्णेति वर्ण द्वयी।। (विदग्ध - माधव १. १५) मुझे नहीं पता इस दो शब्दों "कृष-ण " में कितना अमृत हैं। जब कृष्ण के पवित्र नामों का उच्चारण किया जाता हैं तो वे हमारे मुख के अन्दर नृत्य करते हैं। उस समय हमारी आकांक्षा होती हैं कि कितना अच्छा होता यदि हमारे बहुत सारे मुख होते। जब यही हरिनाम हमारे कर्ण रंध्रों में प्रवेश करता हैं तो हमारी यह इच्छा होती हैं कि काश हमारे लाखों कान होते। जब यह हरिनाम हमारे ह्रदय प्रांगण में नृत्य करता हैं तो यह हमारे मन की सारी आदतों पर विजय प्राप्त कर लेता हैं , जिससे हमारी सारी इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं। यह रूप गोस्वामी की प्रसिद्द प्रार्थना हैं , जहाँ उन्हें हरिनाम की प्राप्ति होती हैं। वे कहते हैं , " जप करने से मुझे इतना अधिक आनन्द आता हैं "वरणाद्वये" . इन दो शब्दों " कृष " तथा " ण " इनका जप करने से रूप गोस्वामी को अत्यन्त आनन्द की प्राप्ति होती हैं। ऐसा भी वर्णन आता हैं कि कृष्ण शब्द में " कृष " का अर्थ हैं - कर्षति इति कृष्णः अर्थात वे अपने नाम के प्रथम भाग से इस जगत के सभी जीवों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। तत्पश्चात " ण " शब्द आता हैं जिसका अर्थ होता हैं कि वे उन सभी भक्तों को आनन्द प्रदान करते हैं। इसीलिए इनके शब्द के प्रथम भाग की टीका में गोपाल गुरु कहते हैं : " स्व माधुर्येण मम चित्तः आकर्षय " अर्थात हे भगवान कृपया मुझे अपनी ओर आकर्षित कीजिए। आप माधुर्य से परिपूर्ण हैं , आप मधुरता से भरे हुए हैं , कृपया आप मुझे अपने माधुर्य से आकर्षित कीजिए , आपका माधुर्य अनेक रूपों में हैं यथा लीला - माधुर्य , रूप - माधुर्य , प्रेम - माधुर्य , तथा वेणु - माधुर्य। तत्पश्चात मंत्र का दूसरा भाग आता हैं , " हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे " अतः जब हम राम कहते हैं तो उस टीका में वर्णन आता हैं ' मया सः रामस्व ' अर्थात हे भगवान ! कृपया आप मेरे साथ आनन्द लीजिए अथवा मुझे आनन्द प्रदान कीजिए। आप सदैव राधा के साथ आनन्द लेते हैं , इसीलिए आप राधा रमण कहलाते हैं। इसके अलावा आप सदैव यशोदा मैया , नन्द बाबा तथा गोप सखाओं के साथ भी आनन्द का विनिमय करते हैं। इस प्रकार कृष्ण केवल राधा के साथ ही आनन्द का आदान - प्रदान नहीं करते हैं अपितु वे अपने माता - पिता के साथ वात्सल्य भाव में तथा अपने गोप सखाओं के साथ सख्य भाव में इस प्रेम का आदान प्रदान करते हैं। इसीलिए उन्हें रमण कहा जाता हैं। सम्पूर्ण चराचर उनके साथ इस प्रकार का विनिमय करता हैं इसीलिए वे रमण हैं। रमण करके वे उन्हें आनन्द प्रदान करते हैं। अतः जब हम ' हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ' कहते हैं तो वास्तव में हम यह प्रार्थना करते हैं कृपया आप मेरे साथ आनन्द लीजिए अथवा कृपया आप मुझे भी आनन्द प्रदान कीजिए। अतः योगीगण : रमन्ते अनन्ते सत्यानन्दे चिदात्मनि , योगी सदैव उन भगवान पर ध्यान टिकाते हैं जो ज्ञान से परिपूर्ण हैं , तथा " ण " शब्द का अर्थ होता हैं आनन्द से परिपूर्ण। इसप्रकार ' हरे कृष्ण हरे कृष्ण ' कहते समय हम भगवान के साथ रमण करते हैं। इस जप सत्र का भी उद्देश्य यही हैं, जिससे हम भगवान के साथ रमण कर सकें , उनके साथ आदान - प्रदान कर सकें , उनसे बात कर सकें , तथा हमारा भगवान के साथ जो सम्बन्ध हैं उसे पुनः स्थापित कर सकें। यही वास्तव में रमण हैं। इस प्रकार कृष का अर्थ हुआ आकर्षक तथा तत्पश्चात आनन्द। हम इस जप सत्र को भगवद गीता में , भगवान के शब्दों में ही विराम देंगे : मदचित्तः मद गत प्राणः , बोधयन्तः परस्परं। कथयन्तश्च माम नित्यं , तुष्यन्ति च रमन्ति च।। मेरे शुद्ध भक्त सदैव मेरे में चित्त लगाते हैं , उनका जीवन पूर्ण रूप से मेरी सेवा में समर्पित होता हैं , इस प्रकार मेरे विषय में सदैव एक दूसरे से चर्चा करते हुए वे सदैव संतुष्ट रहते हैं तथा परम आनंद को प्राप्त करते हैं। (भगवद गीता १०.९) भगवान कहते हैं : मदचित्तः , इस प्रकार वे अत्यन्त गर्व के साथ अपने भक्ति का वर्णन करते हैं। मेरे भक्तों की चेतना सदैव मेरे में केंद्रित रहती हैं। " बोधयन्तः परस्परं " - मेरे भक्त सदैव एक दूसरे को मेरे विषय में बताते हैं तथा वे सदैव मेरे बारे में चर्चा करने में व्यस्त रहते हैं। " कथयन्तश्च माम नित्यं " - वे सदैव कथा , कीर्तन अथवा नाम स्मरण में व्यस्त रहते हैं। "तुष्यन्ति च " - इससे वे सदैव संतुष्ट रहते हैं , क्योंकि वे स्वयं को नाम स्मरण ने व्यस्त रखते हैं। " रमन्ति च " - यहाँ भी रमण हैं। यह एक महत्वपूर्ण शब्द हैं। वे सदैव इन कार्यो में व्यस्त रहते हैं तथा सदैव इनमें निमग्न रहते हैं। इस प्रकार यह भी रमण का अर्थ हैं। ठीक हैं मैं अपनी वाणी को यहीं विराम देता हूँ , मुझे बड़ोदा जाने के लिए रवाना होना हैं। आप सभी के साथ किसी अन्य दिन पुनः जप करेंगे।

English

15th April 2019 DEAR LORD! MAYA SAHA RAMASWA!! I hope you had good time yesterday celebrating Ram Navami. Jai Sri Ram! So, what we did yesterday was preparation for today's Chanting. So whatever we do, day before, the activities, festivities that we take part in, hearing- Chanting we do or we may be doing some offenses, that is also possible. So, all that influences this morning’s Chanting. So be prepared, prepare for Chanting all the time. We had good time here in Rajkot, as we installed Sri Sri Sita Ram Laxman Hanuman deities yesterday. Ram made His appearance. Lord incarnates, as deities are installed. Of course, we had lots of Kirtan. We had Kirtan-Mela. I also did Kirtan. Then I was also reading Bhagavatam ninth canto, where Sukadeva Goswami has narrated pastimes of Sri Ram. Srila Prabhupada always quoted this while defining Ram. Who is Ram? How is Ram? What Yogis do with Ram. ‘Smarante yoginaha anante’. Or ‘Anante yoginaha ramante’. He also used to add sattyanande yoginaha ramante. He also added lot of times, chidatmane yoginaha anante sattyanande ( Padma Purana) ramante - Yogis take pleasure, they wander in contemplating , meditating upon Ram. Ram is to be meditated upon. Or in other words Ram is to be remembered. Yogis always remember Ram. What kind of Ram? - anante. Ram is unlimited. Yogis meditate upon unlimited Sri Ram. Ram is also sattyanande. i.e. He is eternally blissful Himself & as one meditates upon Him, He makes them also blissful. Chidatmane - Yogis meditate upon Chidatmani. Atmani or Parmatmani that is Supreme Lord. Chidatmani that is full of knowledge. Sattyanande - sat chit anand Ram. Ram is sat - He is eternal. Ram is chit - Ram is full of knowledge . Ram is Anand- Ram is full of bliss. Ram is sattyanande chidatmani . So Yogis always take pleasure by meditating on such Ram. It is also described as ramati ramayati iti Ramaha. ramati - He enjoys, He takes pleasure. Also, ramayati - He gives pleasure to others. That is Ram. He enjoys Himself & He becomes cause of others enjoyment. Then we understand or Prabhupada mentions also, that there are three Rams. There is the Parashuram, Sri Ram & Balaram. So this three Ramas are also Krishna. They are portion or the portion of the plenary portion of Sri Krishna. There are different kinds of incarnations of Lord Sri Krishna. Parashuram is shakttyavesh avatar of Sri Krishna. Sri Ram is Leelavatar of Sri Krishna & Balaram is Svayam prakash of Sri Krishna. Balaram is almost Krishna. Manifestation of Sri Krishna. These are three Rams. But then Sri Krishna is also Ram or Sri Krishna is original Ram. HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE So this Ram in Mahamantra is Krishna. He is addressed as Ram or called as Ram. He gives pleasure or He takes pleasure & He also enjoys giving pleasure to others. Sri Krishna gives pleasure to others. Hence, He is also known as Ram or He is the original Ram. It is mentioned, thousand names of Vishnu is equal to one name of Ram & three names of Ram is equal to one name of Krishna. One name of Ram, 'Hare Ram Hare Ram’ -that Ram, three names of Ram, is equal to one name of ‘Hare Ram’ - Sri Krishna. As Krishna is Radha-Raman, He enjoys with Radha or He gives pleasure to Radha. As both of Them do, They wander, mingle, mix, associate & interact, that is why He is called as Radha-Raman. Radha does Raman with Krishna. There is 'Hare Ram’. Ram also does His Raman. Ram also mingles, wanders, associates & reciprocates with Sita & so is known as Sita-Raman. So, Krishna is Radha-Raman & Ram is Sita-Raman. Krishna is Radha-Mohan & Ram is Sita-Mohan. HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE tuṇḍe tāṇḍavinī ratiṁ vitanute tuṇḍāvalī-labdhaye karṇa-kroḍa-kaḍambinī ghaṭayate karṇārbudebhyaḥ spṛhām cetaḥ-prāṅgaṇa-saṅginī vijayate sarvendriyāṇāṁ kṛtiṁ no jāne janitā kiyadbhir amṛtaiḥ kṛṣṇeti varṇa-dvayī (Vidagdha - Madhav 1.15) "I do not know how much nectar the two syllables 'Krish-na' have produced. When the Holy name of Krishna is chanted, it appears to dance within the mouth. We then desire many, many mouths. When that name enters the holes of the ears, we desire many millions of ears. And when the Holy name dances in the courtyard of the heart, it conquers the activities of the mind, and therefore all the senses become inert.” This is Rupa Goswami's famous prayer where he finds the Holy name. He says “O! I derive so much pleasure by Chanting ‘varnadwaye’. By Chanting these two syllables one is 'Krush’ & other is 'na’. It is also explained this ‘Krush’ part of the name of Krishna - ‘ya karshati iti Krishna.’ He attracts the living entities with first part of His name & then ‘na’ means He gives pleasure to that entity, devotee. That is why, early part of first half of mantra is also prayer, commentary by Gopal Guru Goswami, which says - ‘swa madhuryen mam chitta' akarshaya’. O Lord! Please attract me. You are full of madhurya, You are full of sweetness, please attract me to You by Your madhurya, which is multifold such as Leela-madhurya, Rupa-madhurya, Prem-madhurya & Venu- madhurya. Then second part of mantra is ‘ Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare’. So, when we say that Ram, then the commentary says ‘Maya Saha ramaswa’ - o Lord! Please enjoy me or enjoy with me. You always enjoy with Radha, You are also Radha-Raman, you are always enjoying in Yashoda’s association & association of Nandbaba & cowherd boys. So, Krishna not only does His loving dealings with Radha but also with His parents in 'vatsalya’ bhav & friends in 'sakhya’ bhav, so that is Raman. Whole world or 'charachar’ is reciprocating with that & that is Raman. By doing that Raman, He gives them Anand. So when we pray by saying 'Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare’ ( Maya Saha ramaswa) we are praying please enjoy me or enjoy with me. Me too! Me too! I am made for your enjoyment. So Yogis - ramante anante sattyanande chidatmani. Yogis always meditate upon the Lord who is full of knowledge & 'na’ full of pleasure. So, while Chanting ‘ Hare Ram Hare Ram, we are attempting to do Raman with the Lord. This Japa session is also attempt to do Raman with the Lord, reciprocation with the Lord , communicate with the Lord, reestablish our relationship with the Lord. This is Raman. 'Krush’ part is attracting & then the pleasure. We will conclude with the statement of Lord , said in Bhagavad Gita- machhitta madgat pranaha bodhayantaha parasparam kathayantasha mam nittyam tushanti Cha ramanti Cha. (BG 10.9) Lord said machitaha -. He introduces His devotees in this way with pride. My devotees chetana , consciousness is glued to Me. Bodhayantaha parasparam. My devotees, they are always busy, they remind each other of Me & topic of their discussion is Me. Kathayantasha mam nityam - They always stay busy in Katha or Kirtan or naam-smaran. tushanti Cha ramanti Cha - They are always satisfied or Lord satisfies them, as they stay busy in naam-smaran. Ramanti Cha - again this Raman, this is important word. They remain absorbed & stay busy in this activity. So this is Raman part. So we will stop here. I have to move to Baroda. See you Chanting another day. Hare Krishna!

Russian

Джапа сессия 15.04.2019 ДОРОГОЙ ГОСПОДЬ! МАЙЯ САХА РАМАСВА! Надеюсь, вы хорошо провели время вчера, празднуя Рама-Навами. Джай Шри Рам!  Итак, то, что мы сделали вчера, было подготовкой к сегодняшнему воспеванию. Поэтому, чем бы мы ни занимались днем ранее: мероприятия, празднества, в которых мы принимаем участие, слушание, воспевание, которое мы совершаем, или мы можем сделать какие-то оскорбления, это также возможно. Итак, все это влияет на утреннее повторение. Так что будьте готовы, все время готовьтесь к воспеванию. Мы хорошо провели время здесь, в Раджакоте, так как вчера установили Божества Шри-Шри Сита-Рам-Лакшман-Хануман. Рама явился на свет. Господь воплощается, когда Божества установлены. Конечно, у нас было много киртана. У нас была киртан-мела. Я также вел киртан. И затем я читал девятую Песнь "Бхагаватам", где Шукадева Госвами рассказывал об играх Шри Рамы. Шрила Прабхупада каждый раз говорил это, давая определение Рамы: «Кто такой Рама? откуда Рама? Что йоги делают с Рамой?» Смаранте йогинаха ананте или Ананте йогинаха Раманте. И он обычно добавлял саттйананде йогинаха раманте. Еще он дополнял много раз, чидатмане йогинаха ананте саттьянанде (Падма Пурана) . Раманте – йоги получают удовольствие , они бродят в созерцании, медитируя на Раму. На Раму необходимо медитировать. Или, другими словами, Раму следует помнить. Йоги всегда помнят Раму: - Какого Раму?  – Ананте.  Рама не ограничен. Йоги медитируют на безграничного Шри Раму. Рама - саттьянанде. То есть Он Сам вечно блажен, и когда кто-то медитирует на Него, Он делает их тоже блаженными. Чидатмане - йоги медитируют на Чидатмани. Атмани или Параматмани - это Верховный Господь. Чидатмани, который исполнен знания. Саттьянанде – сат-чит-ананда Рама. Рама - это Сат, Он вечен. Рама - это чит – Рама - полон знания. Рама - это Ананда, Рама - полон блаженства. Рама - это саттьянанде чидатмани. Поэтому йоги всегда получают удовольствие, медитируя на такого Раму. Он также описывается как Рамати Рамаяти ити Рамаха. Рамати - Он наслаждается, Он получает удовольствие. Кроме того, Рамаяти - Он доставляет удовольствие другим. Это Рама. Он наслаждается Собой и становится причиной наслаждения других.» И мы понимаем, или Прабхупада упоминает также, что есть три Рамы: есть Парашурама, Шри Рама и Баларама. Итак, эти три Рамы тоже являются Кришной. Они являются частью или частью полной части Шри Кришны. Существуют различные виды воплощений Господа Шри Кришны. Парашурам - это шактйавеша-аватара Шри Кришны. Шри Рама – лила-аватара Шри Кришны, а Баларама - свайам пракаш Шри Кришны. Баларама - это почти Кришны. Проявление Шри Кришны. Это три Рамы. Но тогда Шри Кришна – это тоже Рама, или Шри Кришна -изначальный Рама. ХАРЕ КРИШНА ХАРЕ КРИШНА КРИШНА КРИШНА ХАРЕ ХАРЕ ХАРЕ РАМА ХАРЕ РАМА РАМА РАМА ХАРЕ ХАРЕ Итак, этот Рама в маха-мантре – это Кришна. К Нему обращаются как к Раме или называют Рамой. Он доставляет удовольствие или получает удовольствие, и Ему также нравится раздавать наслаждение другим. Шри Кришна доставляет удовольствие другим. Следовательно, Он также известен как Рама, или, Он является изначальным Рамой. Упоминается, что тысяча имен Вишну равна одному имени Рама, а три имени Рама равны одному имени Кришны. Одно имя Рама «Харе Рама, Харе Рама», то есть «Рама», три имени Рамы, - равно одному имени «Харе Рама»- Шри Кришны. Поскольку Кришна – это Радха-Раман, Он «наслаждается Радхой» или «доставляет удовольствие Радхе».  Они Обои бродят, общаются, «тусуются», объединяются и находятся во взаимодействии, поэтому Его называют Радха-Раманом. Радха делает «Раман» с Кришной. Это "Харе Рама". Рама также делает свой «Раман»: Рама также тусуется, бродит, общается и отвечает взаимностью Сите, и поэтому известен как Сита-Раман. Так, Кришна - это Радха-Раман , а Рама – это Сита-Раман. Кришна - это Радха-Мохан , а Рама – это Сита-Мохан. ХАРЕ КРИШНА ХАРЕ КРИШНА КРИШНА КРИШНА ХАРЕ ХАРЕ ХАРЕ РАМА ХАРЕ РАМА РАМА РАМА ХАРЕ ХАРЕ tuṇḍe tāṇḍavinī ratiṁ vitanute tuṇḍāvalī-labdhaye karṇa-kroḍa-kaḍambinī ghaṭayate karṇārbudebhyaḥ spṛhām cetaḥ-prāṅgaṇa-saṅginī vijayate sarvendriyāṇāṁ kṛtiṁ no jāne janitā kiyadbhir amṛtaiḥ kṛṣṇeti varṇa-dvayī  (Видагдха-Мадхава 1.15) «Я не знаю, сколько нектара производят эти два слога "Криш-на". Когда повторяют Святое Имя Кришны, кажется, что Оно танцует на устах. Тогда мы хотим иметь много, много ртов. Когда это Имя входит в отверстия ушей, мы желаем иметь много миллионов ушей. А, когда Святое Имя танцует во дворе сердца, оно побеждает деятельность ума, и поэтому все чувства становятся инертными.” „Трудно представить, сколько нектара заключено в двух слогах „криш“ и „на“. Когда святое имя повторяют, то кажется, что оно танцует на устах, и тогда хочется иметь множество уст. Когда имя Кришны проникает в уши, хочется иметь миллионы ушей. Когда же святое имя начинает танцевать в саду моего сердца, оно подчиняет себе всю деятельность ума, и все чувства мои цепенеют“. Это знаменитая молитва Рупы Госвами, где он обнаруживает Святое Имя. Он говорит: "О! Я получаю огромное удовольствие, повторяя "варн̣а-двайӣ ". Повторяя эти два слога, один из них  - "Крш", а другой - "на". Также объясняется, что эта "Крш" является частью Имени Кришны – "йа каршати ити Кришна". Он привлекает живые существа первой частью Своего Имени , и затем "на " означает, что Он доставляет удовольствие этому существу, преданному. Вот почему в начале первой половины мантры также содержится молитва, комментарий Гопала Гуру Госвами, в которой говорится: "сва мадхуриен мам читта акаршайа". О Господь! Пожалуйста, привлеки меня. Ты полон мадхурьи, ты полон сладости, пожалуйста, привлеки меня к Себе Своей мадхурьей, которая многообразна, как Лила-мадхурья, Рупа-мадхурья, Према- мадхурья и Вена-мадхурья. Затем вторая часть мантры  "Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе". Итак, когда мы говорим Рама, тогда в комментарии говорится "майя саха Рамасва"– «О Господь! Пожалуйста, наслаждайся мной или наслаждайся со мной. Ты всегда наслаждаешься Радхой, Ты также Радха-Раман, Ты всегда наслаждаешься общением Яшоды и союзом с Нанда-бабой и мальчиками-пастушками. Итак, Кришна занимается не только любовными отношениями с Радхой, но и со Своими родителями в ватсалья-бхаве и друзьями в сакхья-бхаве, так это и есть Раман. Весь мир или "чарачар" отвечает взаимностью, и это Раман. Занимаясь этим Раманом, Он дает - ананду. Поэтому, когда мы молимся, говоря: "Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе" , майя саха Рамасва, мы молимся:  «Пожалуйста, наслаждайся мной или наслаждайся со мной» Я тоже! Мне тоже! Я создан для Твоего удовольствия. Итак, йоги - раманте ананте саттьянанде чидатмани.  Йоги всегда медитируют на Господа, который исполнен знания и блаженства. Итак, пока мы повторяем Харе Рама Харе Рама,  мы пытаемся совершить Раман с Господом. Эта джапа-сессия также является стремлением делать Раман с Господом, ответить взаимностью Господу, пообщаться с Господом, восстановить наши отношения с Господом. Это Раман. Часть "Крш" привлекает , а затем доставляет блаженство. Мы закончим утверждением Господа, сказанным в Бхагавад-Гите: мач-читта̄ мад-гата-пра̄н̣а̄ бодхайантах̣ параспарам катхайанташ́ ча ма̄м̇ нитйам̇ тушйанти ча раманти ча  (Бхагавад-Гита 10.9) Господь сказал: «мат-читтах», - Он с чувством гордости представляет Своих преданных, - «Мои преданные читтах, сознание приклеено ко Мне. Бодхаянтах параспарам. Мои преданные всегда заняты, они напоминают друг другу обо Мне, и темой их обсуждения являюсь Я. «Катхаянташ ча мам нитьям» - они всегда заняты катхой, киртаном или Наам-смараном. тушйанти ча раманти ча - они всегда удовлетворены, или Господь наслаждает их, так как они остаются занятыми Наам-смараной. Раманти ча - опять этот Раман, это важное слово. Они остаются поглощенными и остаются занятыми в этой деятельности. Значит это часть Рамана.  Поэтому мы остановимся здесь. Я должен ехать в Бароду. Увидимся в следующий раз. Харе Кришна!