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*जप चर्चा*, *पंढरपुर धाम*, *8 अगस्त 2021* हरे कृष्ण। हमारे साथ 729 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। क्या इतने काफी है? बिल्कुल भी नहीं। या तो आज रविवार है। हरी हरी। या फिर हो सकता है कि नया पासवर्ड 1896 सभी के पास नहीं पहुंचा है। कुछ करो। हरी हरी। यह इतनी बड़ी चिंता नहीं है। उससे कुछ और भी कुछ चिंताजनक बातें हैं। जिसका संसार सामना कर रहा है। मैं आपको उसका स्मरण दिलाना चाह रहा था। यह सुप्रभात खबर तो नहीं है। लेकिन करें क्या? यह कलयुग है। *कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान्गुणः ।* *कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् ॥५१ ॥* (श्रीमद भगवतम 12.3.51) अनुवाद: हे राजन् , यद्यपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है । बुरा, बुरा, बुरा और पागल, पागल, पागल जगत है। जगत कैसा है? दुनिया पागल है, बुद्धू है, बेवकूफ है, बहुत कुछ है। क्या क्या कहें। कुछ दिन पहले, संसार के 14000 शास्त्रज्ञों ने इस संसार को मतलब हम सबको, संसार के जनता को, संसार के नेताओं को चेतावनी दी हुई है। एक प्रकार से उन्होंने आपातकालीन घोषित करा हुआ है। उनका यह भी कहना था कि शास्त्रज्ञो 1960 से दुनिया को बता ही रहे थे। सावधान! सावधान! बुरे दिन आने वाले हैं, अच्छे दिन नहीं। इस संसार का उज्जवल भविष्य नहीं है, काला भविष्य है। इसका स्मरण 1960 से दे ही रहे थे। अभी उन्होंने कुछ दिन पहले अंतिम घोषणा करी है और कहा दुनिया वालों सावधान! सुधरो और अपनी सोच में, दृष्टिकोण में और अपने जीवन शैली में सुधार करो और अपने खानपान में बदलाव लाइए। ऐसा उन्होंने नहीं कहा। लेकिन मैं ऐसा कह रहा हूं कि वे ऐसा वह कहना चाह रहे थे। ऐसा परिवर्तन अगर आप नहीं करोगे तो आने वाले 20 – 30 वर्षों में इस संसार का, इस पृथ्वी का, पृथ्वी माता का और पृथ्वी माता की गोद में हम जो पलते हैं, हमारा बहुत बुरा हाल होने वाला है। सावधान! हम पृथ्वी का तापमान बढ़ा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग हो रही है। आप ब्राजील में अमेजॉन के वन वहां पर वनों की कटाई चल रही है। अधिक अधिक पेड़ काटे जा रहे हैं और भी कुछ स्थानों पर भी खुदाई हो रही है। पृथ्वी के गर्भ में या गोद में खनिज पदार्थ आप ढूंढ रहे हो। आप शोषण कर रहे हो। आप में उपभोग की प्रवृत्ति इतनी बढ़ चुकी है। उपयोग करना और दुरुपयोग करना। उसका कुछ ज्यादा ही फायदा उठाना। हरि हरि। आपने क्या किया है? वायु प्रदूषण, आपने हवा को दूषित बनाया है। प्राण वायु जिससे हमको प्राण प्राप्त होता है। संसार के जन प्राण वायु का अभाव महसूस कर रहे हैं। कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण बढ़ रहा है। आपने पानी को खराब किया और दूषित किया। पृथ्वी का भी प्लास्टिक से प्रदूषण हो रहा है। काफी सारे औद्योगिक उत्पाद से गैस निकलती है जो हवा को दूषित करते हैं और कई रसायन है नदी में बहते हैं। फिर वह गंगा हो सकती है, यमुना हो सकती है। तो इस तरह जल प्रदूषण होता है। आप पृथ्वी को रासायनिक खाद खिला रहे हो। यह रसायनिक खाद खिला खिला के पृथ्वी की उपजाऊपन बहुत कम हो रही है। जो पृथ्वी की मिट्टी है वह अस्वस्थ है। आप रसायनिक उर्वरक (केमिकल फर्टिलाइजर) पृथ्वी को खिलाते हो। उसी से अनाज या फल या जो भी उत्पन्न होते हैं, उसमें रसायन होता है। उसको हम लोग खाते हैं। हमारा स्वास्थ्य खराब हो रहा है और साथ में पृथ्वी का भी स्वास्थ्य बिगड़ रहा है और इस पृथ्वी पर जो मनुष्य है, लोग हैं हमारे स्वास्थ्य में बिगाड़ कर रहे हैं। कोरोनावायरस 19 पैंडेमिक(सर्वव्यापी महामारी) हो गया। एक एपिडेमिक(महामारी) होता है और उससे भी अधिक खतरनाक पैंडमिक(सर्वव्यापी महामारी) होता है। इसका तो आप अनुभव कर ही रहे हो। ऐसा शास्त्रज्ञो ने कहा तो नहीं, उनकी घोषणा में ऐसा नहीं मिलता। हरि हरि। लेकिन अमेरिका में सर्वे हुआ। पूरे विश्व भर में सर्वे हुआ। हरि हरि। पूरे संसार में सबसे अधिक बीमार देश कौन सा है? उस सर्वे से पता चला कि अमेरिका सबसे अधिक बीमार देश है। जहां तक बीमारी की बात है तो यह मानसिक बीमारी से अधिक अमेरिकी बीमार हैं। पांच में से एक व्यक्ति बीमार है। पांच में से एक अमेरिकन मानसिक अस्पताल जाता है। भोग का परिणाम है रोग। अमेरिका अवसर प्रदान करने वाली भूमि है। यह औद्योगिक सभ्यता का प्रयोग पिछले 500 वर्षों से हो रहा है। जब से श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए। यह दो सभ्यता, एक औद्योगिक सभ्यता और दूसरी है कृष्ण भावना भावित सभ्यता दोनों का प्रचार और प्रसार हो रहा है। जो इस औद्योगिक सभ्यता के दुष्परिणाम है, वह स्पष्ट हो रहे हैं। अब इसीलिए शास्त्रज्ञो जिनकी रचना से और जिनकी व्यवस्था से विज्ञान और प्रौद्योगिकी (साइंस एंड टेक्नोलॉजी) की जय। ऐसा जो प्रचार वह करते थे और संसार भर में हो रहा था। शास्त्रज्ञो की जय। दुनिया शास्त्रज्ञो को ही गुरु मान रही थी। वह शास्त्रज्ञो को आंखें बंद करके मान रहे थे। अंधविश्वास कर रहे थे। वही शास्त्रज्ञो कुछ साल पहले एक शास्त्रज्ञ से पूछा कि अब क्या करना चाहिए इसका क्या उपाय है? पृथ्वी का ऐसा हाल हुआ है। पृथ्वी पर जो जन है और लोग हैं वह अधिकाधिक दुखी हो रहे हैं।तो उन्होंने कहा था, दूसरे ग्रह को । किंतु यह क्या समाधान है ? हरि हरि !! तो शास्त्रज्ञों ने अपने हाथ नीचे कर दिए, अब हम आपके सहायता नहीं कर सकते । आप अपने मर्जी के हैं ! तो वैज्ञानिकों का कोई भरोसा नहीं है या विज्ञान, प्रौद्योगिकी । उसको हम निंदा नहीं करते, श्रील प्रभुपाद कहा करते थे । अंध पंगुनिआई की बात है । यह विज्ञान ,प्रौद्योगिक है अंधी है, अंधा है । यह जैसे, भारत की संस्कृति लंगड़ा है, तो लंगड़ा और अंधा एक दूसरों की सहायता कर सकते हैं तो वैज्ञानिक अब तक, वैज्ञानिक अंधे होते हैं वह देख नहीं पाते ... *कृष्णे स्वधामोपगते धर्मज्ञानादिभि: सह ।* *कलौ नष्टद‍ृशामेष पुराणार्कोऽधुनोदित: ॥* ( श्रीमद् भागवतम् 1.3.43 ) अनुवाद:- यह भागवत पुराण सूर्य के समान तेजस्वी है और धर्म , ज्ञान आदि के साथ कृष्ण द्वारा अपने धाम चले जाने के बाद ही इसका उदय हुआ । जिन लोगों ने कलियुग में अज्ञान के गहन अन्धकार के कारण अपनी दृष्टि खो दी है , उन्हें इस पुराण से प्रकाश प्राप्त होगा । की बात है । कलियुग क्या करता है ? लोगों की दृष्टि को नष्ट करता है तो वैज्ञानिक वे प्रत्यक्षवादी होते हैं । परोक्षवाद नहीं । हम लोग वैष्णव हम परोक्षवादी होते हैं । शास्त्र प्रमाण या शब्द प्रमाण को स्वीकार करते हैं । भगवान की बात या गीता, भागवत् वेद पुराणकी बात सुनते हैं और उसी से हम देखते हैं समझते हैं या परोक्षवाद कहा जाता है । प्रत्यक्षवाद, दिखाओ हमको ! जो दिखता नहीं वह है नहीं । यह वैज्ञानिकों का दर्शन तत्व हुआ इसको प्रत्यक्षवाद कहते हैं । 'प्रति-आक्ष' जो भी सामने हैं हम उसको देख सकते हैं, छू सकते हैं, सुंघ सकते हैं नहीं तो उसका अस्तित्व नहीं है या फिर यह भौतिकवाद है या यह प्रत्यक्षवाद है या चार्वाक वाद है, चार्वाक का यह दर्शन तत्व है । इन शास्त्रज्ञ को और फिर इनके जो चैले हैं सारी दुनिया इनके चैले हैं उनकी आंखें खोलने की आवश्यकता है । तो जो सभ्यता श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने दी है ... *परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।* *धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥* ( भगवद् गीता 4.8 ) अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ । कहा और ऐसा किया भी तो ऐसी सभ्यता की आवश्यकता है दुनिया को सबसे ज्यादा । अधिक औद्योगिक उत्पादन, उत्पादन को बढ़ाओ उत्पादन को बढ़ाओ । अधिक उत्पादन होगा तो हमारे इंद्रिय तृप्ति के साधन बढ़ जाएंगे । इंद्रियों के विषय बढ़ जाएंगे और उसके बाद फिर मनोरंजन, मजा आएगा और ऐसा ऐसा होता है । ऐसा गणित चलता है दुनिया वालों का या यह प्रत्यक्षवादियों का, वैज्ञानिकों का । अधिक उपभोग के साधन तो औद्योगिकरण को बढ़ाओ और प्रोडक्ट जब तैयार हुआ है उसका तरक़्क़ी करो । उसके लिए सब यह इंटरनेट है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, तो तेज संचार ताकि कोकाकोला की प्रोडक्ट तैयार होते ही दुनिया को पता चलना चाहिए । आनंद', ऐसा बता दो और दुनिया जब इसको सुनेगी पढ़ेगी यह व्यावसायिक विज्ञापन ऐसा ऐसा प्रोडक्ट बाजार में उपलब्ध है, तो लोग टूट पड़ेंगे उसके बाद सारे प्रोडक्ट को क्या करेंगे ? दुकानों में नहीं ! अपने बाजारों में नहीं ! सुपर बाजार में, सुपर बाजार में नहीं ! हाइपर बाजार में, हाइपर बाजार में नहीं ! महा मॉल्स में, उसको सारा पहुंचा दो और फिर तेज परिवहन की व्यवस्था हो । ताकि हम को पता चलते ही ऐसा ऐसा प्रोडक्ट यहां पर भी मिलता है तो हम जल्दी वहां पर पहुंच जाते हैं और उसको प्राप्त करो उसके बाद उपभोग करो और उस का आनंद लो उसके बाद हम पीड़ित होंगे । ऐसा भी सर्वेक्षण किया गया की पहले छोटी-छोटी दुकानें हुआ करती थी और कुछ ही बिक्री होती थी कुछ प्रोडक्ट्स का । क्रय विक्रय होता था लेकिन अब तो मॉल्स वगैरा बने हैं, अधिक उत्पादन हो रहा है, अधिक बिक्री, खरीदना और बेचना हो रहा है और खरीदारी यह शौक बन गई । मैं खरीदारी के लिए मिडिल ईस्ट जाऊंगा । मैं खरीदारी के लिए पूरे विश्वभर आऊंगा । खरीदारी बढ़ाने से, मॉल बढ़ गए, उत्पादन बढ़ गया तो उसके साथ क्या दुनिया अधिक सुखी हो गई ? पहले की तुलना में तो छोटी-छोटी दुकानें थी, कुछ ही उत्पादन था । उसके सो हजार गुना उत्पादन बढ़ गया तो क्या हम लोग या मनुष्य जाति हजार गुना ज्यादा सुखी हो गए ? तो उस सर्वेक्षण में यह निकला, नहीं ! नहीं ! नहीं ! ...इससे कुछ नहीं होता है । वास्तविक में उनक पता नहीं चलता है, हम ही बता सकते हैं । या साधु शास्त्र आचार्य बता सकते हैं ऐसा नहीं होता है । आप ज्यादा उपभोग करने से ज्यादा सुखी हो सकते हैं । तो औद्योगिकरण उत्पादन बढ़ गए फिर परिवहन के साधन तेज हो गया, संचार फटाफट हो रहे हैं, तो इससे क्या दुनिया सुखी है ना दुखी है ! अधिक दुखी है या हम अधिक दुखी हो रहे हैं । इसीलिए यह वैज्ञानिक मंडली 14000 शास्त्रज्ञों ने होश में आ रहे हैं और हो सके तो हमें कुछ रुकना चाहिए और करने से पहले कुछ सोचना चाहिए कुछ करने से पहले I हम को रोकना होगा, सोचना होगा और हमको काफी कुछ रणनीति में परिवर्तन करना होगा या हमारे जीवन चर्या में परिवर्तन करना होगा । हरि हरि !! वरना, नहीं करोगे तो कुछ प्रलय जैसा अनुभव होगा । अब जब महामारी जो हुआ है यह छोटा प्रलय ही कहो । इतना सारा विनाश, कई प्रकार के विनाश, स्वास्थ्य सहित, मृत्यु और भी बहुत सी बातें । तो सावधान ऐसा आप सुधरोगे नहीं तो आपका इस दुनिया का, संसार का, पृथ्वी के सारे लोगों का, पूर्व का,पश्चिम का अमंगल होने वाला है, यह अंधकार भविष्य है । ठीक है ! तो आप भी इसको सुन रहे थे, तो आपका क्या विचार है ? या फिर क्या समाधान है ? आपको यह घर के लिए पाठ दीया ! वैज्ञानिक कह रहे हैं सावधान, सुधरो । कुछ परिवर्तन करो । वे बुद्धि नहीं लगा रहे हैं क्या करना चाहिए । कुछ बुद्धि है उनके पास लेकिन उनके समाधान जो है, समस्या है भौतिक ! समाधान भी है भौतिक होगा तो वह समाधान नहीं है । भौतिक समस्या का या सभी समस्या का समाधान आध्यात्मिक समाधान है । आध्यात्मिक या दिव्य या शास्त्रीक या शास्त्रउक्त कोई समाधान, कोई उपाय भी हो सकता है, तो हम आपसे सुनना चाहेंगे या दुनिया वालों को फिर कहो आप कहना चाहोगे के सुधार करना है तो यह सुधार । ऐसा करना चाहिए, ऐसा करने से फिर हम कुछ इस खतरे से बच सकते हैं । हमारे जो भविष्य, हमारे कोई भविष्य नहीं है । वैसे आप लोग तो भगवद् धाम लोटो गे लेकिन आपके संतानों को क्या होगा ? पोते, भविष्य की पीढ़ी ! ॥ हरे कृष्ण ॥

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